ली होंगज़ी
6 अप्रैल, 1997 ~ सैन फ्रांसिस्को
हम अभी-अभी न्यूयॉर्क में मिले थे, और अब, कुछ ही दिनों बाद, हम आज यहाँ फिर से मिल रहे हैं। मैं मूल रूप से अपनी कही गई बातों को आत्मसात करने के लिए आपको कुछ समय देना चाहता था, क्योंकि पिछली बार जिन बातों पर मैंने चर्चा की थी वे उच्च-स्तरीय थीं। वास्तव में, यदि आप उन बातों के बारे में ध्यान से सोचते हैं जिनकी मैंने हाल ही में चर्चा की है, तो आप शायद पाएँगे कि वे कहीं अधिक उच्च-स्तरीय हैं। मैंने वास्तव में आपको सार बता दिया है। ऐसा करने का एक कारण है, वह यह कि, आप अत्यधिक शिक्षित हैं। साथ ही, आप में से कुछ लोगों ने फा को बाद में प्राप्त किया, लेकिन लोगों का यह समूह जिन्होंने फा को बाद में प्राप्त किया, उनमें तेजी से सुधार हो रहा है; इसलिए उनके लिए आवश्यकताएं भी अधिक हैं, और उनका स्तर तेजी से बढ़ रहा है। आप अनुभव करते हैं कि यह कठिन है और कठिनाइयाँ अधिक हैं, अर्थात्, अधिक समस्याएं प्रतीत होती हैं—यह अनिवार्य है। आज जो मैं सिखा रहा हूँ उनमें से बहुत सी बातों पर पहले कभी चर्चा नहीं की गई है। क्योंकि साधना के लिए समय बहुत सीमित है, मैं आशा करता हूँ कि यह फा आपको जितना शीघ्र हो सके प्रदान कर दूँगा जिससे आप जितना शीघ्र हो सके साधना अभ्यास कर सकें और जितना शीघ्र हो सके फल पदवी प्राप्त कर सकें।
कल ही की बात है कि मैंने निम्नलिखित विषयों के बारे में बात की थी। आप चीनी कथा, जर्नी टू द वेस्ट (पश्चिम की यात्रा) जानते होंगे। जब तांग भिक्षु शास्त्रों को प्राप्त करने के लिए पश्चिमी दिव्यलोक गये, तो वे सभी प्रकार की कठिनाइयों और कष्टों से गुजरे; नौ गुणा नौ, या इक्यासी विपत्तियां—एक भी चूकने का अर्थ था कि उन्हें इसकी भरपाई करनी होती, या यह स्वीकार्य नहीं किया जाता। तो यह बिल्कुल भी सरल नहीं था। आज आपके लिए फा को प्राप्त करना इतना सरल हो गया है। यहां तक कि यदि आप संयुक्त राज्य अमेरिका में नहीं हैं, तो आप बस एक हवाई जहाज का टिकट खरीद सकते हैं और कुछ ही समय में यहां पहुंच सकते हैं। इसलिए तुलनात्मक रूप से, आप वास्तव में यह फा अपेक्षाकृत सरलता से प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन साधना करनी इतनी सरल नहीं है। मैंने इस पर भी विचार किया है: हमें यह देखना है कि क्या लोग फा सीख सकते हैं, क्या वे फा प्राप्त कर सकते हैं, और वे इस फा को कैसे मानते हैं। इस अवधि को बहुत लंबा नहीं खींचा जा सकता है। जब इस फा को प्राप्त करने की बात आती है तो लोग अभी भी झिझकते हैं, बार-बार सोचते हैं और विचार करते हैं, "क्या मुझे इसे सीखने जाना चाहिए?" इत्यादि। हम भी इस विषय के बारे में सोच रहे हैं, इसलिए मुझे लगता है कि यह अच्छा है कि समय की थोड़ी कमी है। ऐसा नहीं है कि कोई भी इस फा को प्राप्त कर सकता है; हम पूर्वनिर्धारित संबंध (युआन फेन) में विश्वास करते हैं। दूसरे शब्दों में, समय की कमी के साथ यह संभव है कि जिन लोगों को फा प्राप्त नहीं होना है वे प्रवेश नहीं कर पाएंगे। एक लंबी अवधि के साथ एक समस्या उत्पन्न हो सकती है, अर्थात्, जिन लोगों को फा प्राप्त नहीं करना चाहिए वे हमारे साथ हस्तक्षेप कर सकते हैं या हमें हानि पहुंचा सकते हैं। चूंकि वे अविश्वास करेंगे, वे हस्तक्षेप के रूप में कार्य कर सकते हैं। निश्चित ही, हमारा द्वार पूरी तरह खुला है—चाहे आप कोई भी हों, जब तक आप सीखने में सक्षम हैं, हम आपके लिए उत्तरदायी रहेंगे। परन्तु हमें लोगों के हृदयों की परख करने की आवश्यकता है।
बुध्द फा व्यापक, विशाल और गहन है। आज हम जो फा सिखा रहे हैं वह बुध्द फा की पारंपरिक समझ को पार कर जाता है। हम संपूर्ण ब्रह्मांड के फा को सिखा रहे हैं—संपूर्ण ब्रह्मांड की प्रकृति। फिर भी इस विशाल ब्रह्मांड के भीतर, इसके प्रत्येक स्तर की अपनी ब्रह्मांडीय प्रकृति है, अर्थात, प्रत्येक आयाम में सत्य-करुणा-सहनशीलता से अभिव्यक्त फा के सिद्धांत होते हैं। और प्रत्येक स्तर पर फा के सिद्धांत वास्तव में विशाल और जटिल हैं। यदि आप एक विशेष स्तर पर सिद्धांतों की व्याख्या करना चाहते हैं, हो सकता है कि आप उन्हें पूरी तरह से समझाने में सक्षम न हों, भले ही आपने पूरा जीवन लगा दिया हो—यह इतने विशाल और जटिल हैं। जैसा कि आप जानते हैं, बुद्ध शाक्यमुनि ने तथागत स्तर से लोगों को और अपने साधक शिष्यों को धर्म सिखाया। लेकिन अपना पूरा जीवन सिखाने में लगाने के बाद, उन्होंने केवल अपने साधना मार्ग की बातें ही सिखाई थीं। बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा कि चौरासी हजार साधना मार्ग हैं, और इनमें ताओ विचारधारा के मार्ग सम्मिलित नहीं है। चीनी ताओ विचारधारा का कहना है कि उनके छत्तीस सौ साधना मार्ग हैं। और इनमें अभी भी पश्चिमी धर्मों के देवताओं के साधना के तरीके सम्मिलित नहीं हैं जिन्हें साधारणतः हम जानते हैं। इसके अतिरिक्त, बुद्ध शाक्यमुनि ने जिन चौरासी हजार साधना मार्गों की बात की, वे उस विस्तार के भीतर तथागत स्तर पर केवल एक समझ हैं। उस विस्तार से परे, ऐसे बहुत से साधना मार्ग हैं जिनका आप संभवत: पता नहीं लगा सकते, और बहुत सारे विभिन्न तथागत बुद्ध और फा के सिद्धांत हैं जिनकी उन्हें ज्ञानप्राप्ति हुई थी—यह अत्यंत विशाल है। आप कह सकते हैं कि बुद्ध फा का वर्णन विशाल महासागरों या समुद्रों के रूप में भी नहीं किया जा सकता है। ब्रह्माण्ड जितना विशाल है, यह फा उतना ही विशाल है—यह ऐसा ही है।
आज, मैं केवल मानव भाषा का—आज की सबसे सरल मानव भाषा का—आपको इस पूरे विशाल और गहन ब्रह्मांड की साधारण परिस्थिति के बारे में बताने के लिए उपयोग कर रहा हूँ । यदि आप इस फा को वास्तव में और पूरी तरह से समझ सकते हैं, और इस फा में साधना का अभ्यास कर सकते हैं, तो आप जो अनुभव करेंगे और ज्ञान प्राप्त करेंगे उसकी ऊंचाई और गहराई वर्णन से परे होगी। जब तक आप साधना अभ्यास करते हैं, आप धीरे-धीरे अधिक से अधिक अनुभव और ज्ञान प्राप्त करेंगे। जितना अधिक आप ज़ुआन फालुन को पढ़ेंगे, उतना ही अधिक आप इससे समझेंगे। [यदि] आपका जन्मजात गुण वास्तव में अच्छा है, तो आपके लिए इस दाफा में साधना करने के लिए पर्याप्त से अधिक है। आप चाहे जितने भी ऊंचे स्तर तक साधना करना चाहें, यह फा इतना विशाल है कि उसे समाहित कर लेगा—यह फा अविश्वसनीय रूप से व्यापक और विशाल है। जैसा कि आप जानते हैं, मैंने ज़ुआन फालुन में कहा है कि उसमें निहित फा के सिद्धांत वास्तव में व्यापक हैं। आप देख सकते हैं कि प्रत्येक शब्द के पीछे असंख्य, परत दर परत, बुद्ध, ताओ और देवता हैं—उन्हें गिना नहीं जा सकता। क्योंकि प्रत्येक स्तर में उस स्तर के सिद्धांत होते हैं, और प्रत्येक स्तर पर उस स्तर के बुद्ध, ताओ और देवता होते हैं, कल्पना कीजिये कि यह फा कितना विशाल है। वास्तव में, मैंने इसे आपके लिए केवल रेखांकित किया है। इसे वास्तव में समझना आपकी अपनी साधना के दौरान स्वयं आपके द्वारा ज्ञानप्राप्ति करने, साधना करने और समझने पर निर्भर करता है। इसलिए मैं आपको यह सिद्धांत बताता हूँ: सुनिश्चित करें कि आप यह नहीं सोचते हैं कि केवल ज़ुआन फालुन पुस्तक को पढ़ना और अभ्यासों को जानना ही पर्याप्त है, या यह सोचना पर्याप्त है कि यह अच्छा है और बस अभ्यास करते रहें। यदि आप स्वयं में सुधार करना चाहते हैं, तो आप पूरी तरह से इस पुस्तक पर निर्भर करें। इसलिए आपको इसे बार-बार पढ़ना चाहिए। जैसे-जैसे आप पुस्तक पढ़ते हैं आप अधिक समझ प्राप्त करेंगे और सुधार करते रहेंगे। और फल पदवी का पूरक साधन है—अभ्यास—जिससे आप निरंतर अपना स्तर बढ़ाते रहेंगे। इसलिए सुनिश्चित करें कि आप गलती से भी यह नहीं सोचते हैं कि इसे एक बार पढ़ना ही [पर्याप्त है], यह सोचें कि यह अच्छा है, दूसरों के साथ अभ्यास करें, और अभ्यास करना बंद न करें। यह फा अत्यंत महत्वपूर्ण है। फा का अध्ययन करने के लिए आपको कड़ा परिश्रम करना चाहिए।
यह ब्रह्मांड इतना विशाल है और इसकी संरचना इतनी जटिल है। मैंने आपको आयामों की रचना के बारे में बताया है। उदाहरण के लिए, पदार्थ अणुओं और उससे भी अधिक सूक्ष्म कणों से बना होता है। जिस आयाम के बारे में हम जानते हैं वह भी इन्हीं कणों से बना है। आज, विज्ञान को ज्ञात कणों में अणु, परमाणु, न्यूट्रॉन, परमाणु नाभिक और इलेक्ट्रॉन सम्मिलित हैं; और फिर क्वार्क और न्यूट्रिनो भी हैं। उससे और आगे क्या है यह आज के विज्ञान के लिए अज्ञात है। तो मैंने जो कहा है वह यह है कि इन कणों के प्रत्येक स्तर का आयाम वह है जिसे हम उस स्तर का आयाम कहते हैं। वास्तव में, कण आयाम में वितरित नहीं होते हैं; इसके स्थान पर, किसी एक स्तर में, वे हर स्थान में फैले हुए होते हैं—एक ही आयाम में नहीं। मानव जाति के पास इसके लिए कोई शब्द नहीं है, इसलिए हम इसे केवल एक आयाम कहेंगे; यही एकमात्र तरीका है जिससे हम इसका वर्णन कर सकते हैं। ठीक उस स्तर पर—कणों के स्तर की उस परत पर—एक आयाम बनता है। कणों के बीच आयाम होते हैं, और स्वयं कणों के अंदर भी आयाम होते हैं। और फिर कण विभिन्न आकार के कण भी बना सकते हैं। फिर, विभिन्न आकारों के कणों के बीच जो एक विशेष कण से बने होते हैं, उनमें भी आयाम होते हैं। यह आयामों की अवधारणा है जिसे मैंने पिछली बार आपको समझाया था।
मैंने हमेशा कहा है कि परमाणुओं और अणुओं के बीच एक विशाल आयाम है। हम मनुष्य अणुओं से बने सबसे बड़े कणों की परत, और ग्रह जिन्हें हम देखते हैं, जो कणों की एक परत हैं, के मध्य में रहते हैं। मनुष्य उस आयाम में रहते हैं। एक ग्रह भी एक कण है। और उससे आगे देखें तो मिल्की वे आकाशगंगा का भी एक बाहरी आवरण है। क्या मिल्की वे आकाशगंगा और ब्रह्मांड में फैली अनगिनत अन्य आकाशगंगाएँ एक आयाम का निर्माण करती हैं? वे परस्पर संबंधित भी हैं। फिर आकाशगंगाओं से परे, एक और भी ब्रह्मांडीय विस्तार है—तो क्या यह ब्रह्मांडीय विस्तार भी कणों की एक परत है? निश्चित ही यह कणों की एक परत है। ब्रह्मांड अविश्वसनीय रूप से विशाल है—इसका वर्णन करने का कोई तरीका नहीं है कि यह कितना विशाल है। इसके अतिरिक्त, हम जिस ब्रह्मांड में रहते हैं, उसके जैसे तीन हज़ार ब्रह्मांड, ब्रह्मांड की एक बड़ी परत बनाते हैं, जिसका एक बाहरी आवरण होता है और एक बड़ी परत के ब्रह्मांड का एक कण होता है। और फिर जिन कणों के बारे में मैंने अभी बात की थी वे केवल एक बिंदु से विस्तारित होते हैं। वास्तव में प्रत्येक परत के कण पूरे ब्रह्मांड में फैले हुए हैं। फिर भी जो मैंने अभी वर्णित किया है वह ब्रह्मांड की केवल दो परतें हैं और आप अभी से ही इसे मस्तिष्क को चकराने वाला पाते हैं। वास्तव में, भविष्य की मानवजाति का विज्ञान भी इसे जानने में समर्थ नहीं होगा—मानवजाति इतनी उच्च-स्तर की चीज़ों को कभी जानने में समर्थ नहीं होगी। यहां तक कि जिस सीमा तक हमने चर्चा की है, कणों की वह परत धूल का एक कण है—धूल का एक छोटा सा कण—इस विशाल ब्रह्मांड में। सोचिए यह ब्रह्मांड कितना विशाल है! यह उस प्रकार का आयाम है जिसके बारे में मैं आपको हमेशा से बताता आया हूँ।
पिछली बार मैंने फिर से आयामों की रचना पर चर्चा की थी। परमाणुओं और अणुओं के बीच और ग्रहों और अणुओं के बीच के आयामों के अतिरिक्त, प्रत्येक परत में परमाणु कण भी विभिन्न आकारों के कण बनाते हैं। और फिर इन विभिन्न आकार के कणों की परतों के बीच फिर से आयाम होते हैं। उदाहरण के लिए अणुओं को लें: हम साधारणतः जानते हैं कि अणुओं और परमाणुओं के बीच एक आयाम होता है। यदि अणुओं को परमाणुओं द्वारा बनाना हैं, तो अणु बनाने के लिए कई परमाणुओं को एक साथ व्यवस्थित करने की आवश्यकता होती है। तब, थोड़े परमाणु कणों से बने बड़े कणों की एक परत और अधिक परमाणु कणों से बने बड़े कणों [की एक और परत] के बीच आयाम का एक और स्तर होता है। जैसा कि मैंने कहा है, अणु सबसे बाहरी सतह पर कुछ भी बना सकते हैं—ऐसी चीजें जो हम मनुष्य देख सकते हैं, जैसे कि स्टील, लोहा, पानी, हवा, लकड़ी और हमारे मानव शरीर। यह सतह पर पदार्थ की वह परत है जिसे मनुष्य देख सकते हैं, और यह अणुओं से बने सबसे बड़े कणों की परत से बना है। और फिर, नीचे की ओर जाते हुए, अणु एक दूसरी कणों की परत का निर्माण करते हैं जो इन सबसे बड़े आणविक कणों से थोड़े छोटे होते हैं। और भी नीचे की ओर जाते हुए, कणों की एक तीसरी परत बना सकते हैं—ये सभी अणुओं से बनी होती हैं, क्योंकि अणु विभिन्न आकारों के कण बना सकते हैं। फिर उनमें भी आयाम होते हैं, इसलिए यह ब्रह्मांड अत्यंत जटिल है। इसमें और भी बहुत कुछ है, क्योंकि आयाम के प्रत्येक स्तर के भीतर लंबवत आयाम भी होते हैं, अर्थात विभिन्न स्तरों के आयाम। दूसरे शब्दों में, विभिन्न स्तरों के आयाम हैं जो धर्मों में समझी जाने वाली दिव्यलोकों की कई परतों की तरह हैं। साथ ही, विभिन्न स्तरों के आयामों में विभिन्न स्वतंत्र दिव्यलोक भी अस्तित्व में हैं। यह अत्यधिक जटिल है। मैंने आपको केवल एक सामान्य तथ्य के बारे में बताया है।
वास्तव में, इस प्रकार के आयाम के अतिरिक्त, एक प्रकार का स्थूल आयाम भी होता है, अर्थात, सबसे बाहरी सतह का आयाम। मैं कई बार आपको बताता हूं ... निश्चित ही, किसी ने मुझसे पिछली बार भी पूछा था कि आगे प्रगति के लिए आवश्यक लेख के मेरे एक लेख में, "मानव समाज बिल्कुल मध्य में है, सबसे बाहरी परत में, और सबसे बाहरी सतह पर।” से मेरा क्या अर्थ है। जहाँ तक "सबसे बाहरी सतह" का अर्थ है, इस ब्रह्मांड के सिद्धांत के अनुसार, कोई बाहरी या आंतरिक नहीं होता है, और न ही मानव जाति द्वारा समझी जाने वाली बड़े और छोटे की अवधारणा होती है। वे हम मनुष्यों की अवधारणाओं से पूरी तरह से भिन्न हैं। आज मैं इस "बाहर" पर चर्चा करूँगा। मैं क्यों कहता हूँ कि मानवजाति सबसे अधिक परिधीय सतह पर है और सबसे बाहर है? इसका क्या अर्थ है? दूसरे तरीके से कहें, तो जिस प्रकार के आयाम के बारे में मैंने पहले बात की है, उसके अतिरिक्त एक और प्रकार का आयाम अस्तित्व में है, जो ठीक वैसे ही है जिसमे आज हम मनुष्य रहते हैं, वह उससे पूरी तरह भिन्न है जहां देवता होते हैं। जिन आयामों के बारे में मैंने पहले बात की थी वे सभी अधिक सूक्ष्म उच्च-ऊर्जा पदार्थ से बने हैं, जबकि आज मैं जिस आयाम की बात कर रहा हूँ वह सतही पदार्थ से बना है। इस सतही पदार्थ के अंदर भी अनेकों अनेक विभिन्न तत्व और विभिन्न कण अस्तित्व में हैं। यह बहुत ही विशेष सतह का आयाम हम मनुष्यों की तरह ही है: आपके शरीर में विभिन्न आकारों की कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें कण भी कहा जा सकता है। प्रत्येक कोशिका की सतह पर त्वचा की एक परत होती है। फिर हमारे मानव शरीर की सतह पर त्वचा के कणों को बनाने वाली त्वचा तक, मानव शरीर की सतह पर कणों की सतही त्वचा पर मनुष्यों की मांस की त्वचा बनाती है। अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर यह त्वचा भी एक अत्यंत विशाल आयाम है। शरीर के अंदर के कणों की त्वचा से बनने वाले शरीर के ऊतक सतह की संरचना से पूरी तरह भिन्न होते हैं। ब्रह्मांड उसी प्रकार है। निःसंदेह, यह बहुत जटिल है। हम मनुष्य जिस आयाम में रहते हैं वह कैसा है? मान लीजिए कि यह सब कणों से बना है। कण चाहे कितने भी बड़े या छोटे क्यों न हों, प्रत्येक कण का एक बाहरी खोल होता है।
आज मैं वास्तव में आपको जो बता रहा हूं वह यह बाहरी खोल है। लेकिन यद्यपि इन बाहरी खोलों के साथ, कण, कणों को ढँक लेते हैं, कण, कणों को ढँक लेते हैं, और कुछ कण अंदर प्रतीत हो सकते हैं—पृथ्वी केंद्रीय स्थिति में है—वास्तव में वे सभी बाह्य से संबंधित हैं। यही कारण है कि मैं कहता हूं कि मनुष्य बाह्यतम सतह पर हैं। वे सभी बाह्यतम भाग से संबंधित हैं, क्योंकि वे सभी बाह्यतम सतह के खोल से जुड़े हुए हैं। त्वचा-खोल एक स्वतंत्र प्रणाली है। ब्रह्मांड का एक सबसे बड़ा बाहरी खोल है, और वे सभी इस सबसे बड़े बाहरी खोल से जुड़े हैं। यह आयाम जिसमें हमारी मानव जाति के मांस शरीर अस्तित्व में हैं, वह भी इसी रूप में है। इस आयाम की अपनी विशेषताएं हैं; यह देवताओं के दिव्यलोकों या उन आयामों से बिल्कुल भिन्न है, जिनकी मैंने पहले चर्चा की थी। फिर भी ब्रह्मांड में सभी पदार्थों की उत्पत्ति इन्हीं आयामों से होती है।
किसी ने आज मुझसे अगरबत्ती जलाने के बारे में पूछा। मैंने कहा कि इस ओर का पदार्थ अदृश्य हो जाने के बाद, दूसरी ओर की वस्तु को मुक्त कर दिया जाता है और छोड़ दिया जाता है। साथ ही, इस ओर की वस्तु फिर उस ओर जा सकती है। इसलिए इस ओर का पदार्थ उस ओर के लिए काफी मूल्यवान होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जलने से इस ओर का पदार्थ पहले ही रूपांतरित हो चुका है, और यह उस पदार्थ से भिन्न है जब यह इस ओर था। मैंने पहले भी यह कहा है: यदि आप पृथ्वी पर साधना करने के बाद मुट्ठी भर मिट्टी वापस ला सकते हैं, तो ऊपर वाले सोचेंगे कि आप असाधारण हैं। यह ऐसा है। वे कहते हैं कि सुखावटी दिव्यलोक में हर ओर स्वर्ण होता है। इसलिए यदि आप सुखावटी दिव्यलोक में गए और यह पाया कि वहां पर एक भी पत्थर का टुकड़ा या धूल का एक कण नहीं था, तो शायद आप इस भौतिक संसार से जो थोड़ा सा भाग वहां ले गए वह सबसे मूल्यवान होगा। हम मनुष्यों की एक कहावत है कि जो दुर्लभ है वह मूल्यवान होता है और जो दुर्लभ है वह असाधारण होता है। निश्चित ही, वास्तविकता में ऐसा होना आवश्यक नहीं है। मैं केवल एक उदाहरण दे रहा था। ऐसा इसलिए है क्योंकि उस ओर का सारा पदार्थ वास्तव में यहीं से उत्पन्न होता है। हालाँकि, ऐसा नहीं है कि हम मनुष्यों को विशेष रूप से ऐसा करने की आवश्यकता है। ब्रह्मांड की क्रियाविधियां कार्य कर रही होती हैं।
आइये मैं इस सतही संसार के बारे में और अधिक बात करता हूँ, अर्थात् वे ग्रह जिन्हें हम अपनी आँखों से देखते हैं। हालाँकि प्रत्येक ग्रह के अपने अन्य आयाम भी होते हैं—विभिन्न आकार के कणों द्वारा गठित असंख्य आयाम। हालाँकि सबसे बड़े कणों से बना सतह का आयाम इसका खोल या इसकी सबसे बाहरी सतह है। अभी-अभी मैंने एक समानता दर्शाने के लिए मानव शरीर का उदाहरण दिया। समानता दर्शाने के लिए ब्रह्मांड का उदाहरण देखें तो, हम मनुष्य जिस ब्रह्मांड में रहते हैं, वह ब्रह्मांड का बाहरी खोल है।
ब्रह्मांड अविश्वसनीय रूप से विशाल है, और हम वास्तव में ब्रह्मांड के मध्य में भी हैं। हालाँकि मैंने अभी कहा है कि यद्यपि कण भिन्न-भिन्न कणों से घिरे हुए प्रतीत होते हैं, आप वास्तव में अभी भी बाहर की ओर हैं, क्योंकि यह आयाम जहां आपका अस्तित्व हैं इसकी संरचना, पदार्थ और संबंध, बाहर के आयामों की प्रणालियों के जैसे हैं, और बाहर के आयामों द्वारा नियंत्रित हैं—यही स्थिति है। इसके अतिरिक्त, जैसा कि मैंने उल्लेख किया, बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा था कि रेत के एक कण में तीन हजार विश्व समाहित हैं। वास्तव में, बुद्ध शाक्यमुनि कहना चाहते थे कि रेत के कणों की सतह पर बने सूक्ष्म आयामों में अनेकों अनेक विभिन्न विश्व समाहित हैं। लेकिन मैं आपको आज और अधिक स्पष्ट रूप से बता दूं: रेत का बाहरी खोल—त्वचा—और प्रत्येक परत पर कणों के बाहरी खोल, जो रेत के कण बनाते हैं, इस ओर की उसी प्रणाली में है जहाँ हमारा भौतिक आयाम है। अणुओं से बने विभिन्न आकारों के कणों के भीतर अनेकों अनेक जीव बिल्कुल उसी आकार और रूप में हैं जैसी हमारी मानव जाति हैं। दूसरे शब्दों में, रेत के कणों के अंदर के लोग बिल्कुल हम मनुष्यों के समान हैं—काली त्वचा वाले लोग, गोरी त्वचा वाले लोग, और पीली त्वचा वाले लोग। और भविष्य में आपको यह विचित्र लगेगा कि उनकी वेशभूषा हमारे प्राचीन लोगों की वेशभूषा से बहुत भिन्न नहीं है। और फिर, उनके संसार के अधिक सूक्ष्म स्तर पर, एक अन्य प्रकार का समग्र परिवर्तन होता है, और इस प्रकार के परिवर्तन पर पहले कभी चर्चा नहीं की गई है। अर्थात्, विभिन्न सूक्ष्म जगतों में भी कुछ ब्रह्मांडीय विस्तार होते हैं। मैंने अभी जिस बारे में बात की वह रेत के कणों से बना ब्रह्मांडीय विस्तार है।
जिन सूक्ष्म संसारों के बारे में हमने बात की, उनमें जो जीव अस्तित्व में हैं वे किसी अन्य प्रणाली से संबंधित हैं—एक अन्य ब्रह्मांडीय पिंड में जीवन की एक प्रणाली, जहां उनके बुद्ध, ताओ, देवता, मनुष्य, पशु, पदार्थ, पहाड़, पानी, आकाश, पृथ्वी, वायु भी हैं, और सभी पदार्थ जो उनके सूक्ष्म ब्रह्मांडों में अस्तित्व में है। और इस प्रकार के अधिक सूक्ष्म और इससे भी अधिक सूक्ष्म जगत अस्तित्व में हैं। यही कारण है कि अतीत में हमारे कई साधकों ने बुद्धों को सूक्ष्म संसारों से निकलते हुए देखा था—रेत, मिट्टी, या पत्थर के एक छोटे से कण के सूक्ष्म संसारों से। वे बुद्ध स्वयं को बड़ा भी कर सकते हैं। उससे लघु प्रणाली में भी बुद्ध, ताओ, देवता और मनुष्य हैं, और वे बुद्ध भी स्वयं को रूपांतरित कर सकते हैं और हमारे संसार में आ सकते हैं क्योंकि वे बुद्ध हैं। वे स्वयं को कितना बड़ा कर सकते हैं? अधिक से अधिक, वे मिल्की वे आकाशगंगा जितने बड़े बन सकते हैं। जब वे छोटे हो जाते हैं, तो वे बस दृष्टि से ओझल हो जाते हैं। क्योंकि वे उन सूक्ष्म जगतों के बुद्ध हैं, वे हमारे ब्रह्मांडीय पिंड के बुद्धों से बिल्कुल भिन्न हैं। लेकिन उनका स्वरूप समान है, और साधना के लिए आवश्यकताएं भी समान हैं। वे समान रूप से महान हैं। वे भी सत्य-करुणा-सहनशीलता फा के अधीन हैं जो ऊपर से नीचे तक समान रूप से व्याप्त है।
यह ब्रह्मांड बस अविश्वसनीय रूप से विस्मयपूर्ण है। और इनसे बहुत, बहुत, बहुत अधिक लघु संसारों में और भी ब्रह्मांडीय पिंड हैं जिनमें छोटे बुद्ध, ताओ, देवता, मनुष्य और पदार्थ अस्तित्व में हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि रेत के एक कण में ही जीव अस्तित्व में हैं; बल्कि, वे सभी पदार्थ, भिन्न-भिन्न आकार के कणों—अंदर या बाहर—और ब्रह्मांड में सभी कणों के खोलों में फैले हुए हैं। मैंने अभी-अभी सूक्ष्म स्तर की बातों पर चर्चा की। जब यह विशाल ब्रह्मांडीय पिंड एक निश्चित बिंदु पर पहुंचता है, तो यह हमारे इस ब्रह्मांडीय पिंड के विस्तार से और आगे चला जाता है। इस ब्रह्मांडीय पिंड के विस्तार को "ब्रह्मांड" शब्द से सीमित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह उसकी अवधारणा से पूरी तरह भिन्न है। जब ब्रह्मांड एक निश्चित सीमा तक पहुंचता है, तो यह अचानक एक शून्यता से टकराता है जहां कुछ भी अस्तित्व में नहीं है। और आगे जाने पर, आपको एक बड़े ब्रह्मांडीय पिंड का अस्तित्व मिलेगा, जो हमारे इस ब्रह्मांडीय पिंड से बिल्कुल भिन्न है। मैं जिस ब्रह्मांडीय पिंड की बात कर रहा हूं वह इस ब्रह्मांड की अवधारणा से पूरी तरह परे है। तो उस बड़े ब्रह्मांडीय पिंड में बुद्ध, ताओ और देवता विशेष रूप से विशाल हैं। वे हमें वैसे ही देखते हैं जैसे हम बुद्धों, ताओ, देवताओं, मनुष्यों और चीजों को एक सूक्ष्म जगत या एक सूक्ष्म ब्रह्मांडीय पिंड में देखते हैं। अर्थात वे एक अन्य ही प्रणाली से संबंधित हैं, जो अविश्वसनीय रूप से विशाल है। जिस तरह से वे हम मनुष्यों को देखते हैं, उसकी तो बात छोड़ दीजिये, वे हमारे इस ब्रह्मांडीय पिंड को उसी प्रकार देखते हैं जैसे हम पुरातत्व अवशेषों को देखते हैं। उन्हें यह अजीब, आश्चर्यजनक, काफी अच्छा और रोचक लगता है। वे यह भी सोचते हैं कि ये प्राणी असीम रूप से विस्मयपूर्ण हैं। यह छोटा सा ब्रह्मांडीय पिंड भी जीवन से भरपूर है—वे भी इसे इसी तरह से देखते हैं। लेकिन उनकी इस ब्रह्मांडीय पिंड के विस्तार के भीतर की अवधारणाएं वैसी नहीं हैं जो हमारे जैसे जीवों की होती हैं—बिल्कुल भी नहीं। उनकी दृष्टि में आप एक सूक्ष्म जीव हैं और उनसे आपका कोई लेना-देना नहीं है। यही कारण है कि हमारे कई साधक अक्सर ऐसा ही अनुभव करते हैं जब वे चट्टानों, रेत, या यहां तक कि छोटे सूक्ष्म कणों में दृश्य देखते हैं।
जब हमारे कुछ शिष्यों का तीसरा नेत्र (त्येनमु) खुलता है, तो वे अपने तीसरे नेत्र में पर्वतों और नदियों को देखते हैं, और यह कि वे बाहर की ओर दौड़ रहे हैं—तेज गति से बाहर की ओर दौड़ रहे हैं। वे अनेकों अनेक पर्वतों और नदियों, और यहां तक कि कई, कई शहरों को पार करते हैं—वे अपने तीसरे नेत्र के भीतर ही दौड़ते रहते हैं। जो दृश्य आप देखते हैं—मैं आपको बता सकता हूं—बाहर के नहीं होते हैं: वे वास्तव में आपके सिर के अंदर की कोशिकाओं और अधिक सूक्ष्म कणों से बने संसार के अस्तित्व के रूप होते हैं। मैं अक्सर कहता हूं कि यदि आप देख सकते, तो आपको एक ही बाल में कई शहर मिल सकते हैं, और उनके भीतर रेलगाड़ियां और कारें दौड़ रही होंगी। यह वास्तव में अकल्पनीय लगता है। यह संसार भी बस एक ऐसा ही अत्यंत विशाल और जटिल संसार है, और हमारे आधुनिक विज्ञान की समझ से बिल्कुल भिन्न है। मैं अक्सर कहता हूं कि आज का विज्ञान अपनी स्थापना की शुरुआत से ही एक त्रुटिपूर्ण समझ और गलत आधार पर विकसित हुआ है। इसलिए यह केवल उस रुपरेखा तक ही सीमित है। जहाँ तक सच्चे विज्ञान की बात है, हमने वास्तव में ब्रह्मांड, जीवन और पदार्थ के बारे में जो कुछ भी सीखा है, आज के विज्ञान को विज्ञान नहीं माना जा सकता है क्योंकि इस विज्ञान के मार्ग का अनुसरण करके ब्रह्मांड की विस्मयता की खोज कभी नहीं की जा सकती है। मानव जाति का मानना है कि ब्रह्मांड में केवल मनुष्य ही एकमात्र प्राणी हैं—वे बहुत ही दयनीय, इस हद तक दयनीय हैं। परग्रही वास्तव में हमारी धरती पर आए हैं और उनके आने की तस्वीरें भी ली गयी हैं, फिर भी लोगों को अभी भी उनके अस्तित्व पर विश्वास नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग इस विज्ञान द्वारा सीमित हो गए हैं। वे लोग भावनात्मक रूप से प्रेरित हैं इसलिए वे शोध नहीं कर रहे हैं, और समझदारी नहीं दिखा रहे हैं। वे केवल उन चीजों पर विश्वास करने को तैयार होते हैं जो पहले से ही स्वीकृत की जा चुकी हैं, जो वास्तव में सही है उसकी वे उपेक्षा करते हैं, और केवल उन चीजों पर विश्वास करने को तैयार होते हैं जो उन्होंने पुस्तकों से सीखी हैं। यह आयामों का वह रूप है जिसकी मैंने चर्चा की है। क्योंकि मानव भाषा काफी सीमित है, इसलिए मुझे इसकी व्याख्या करना कठिन लगा। मैं सोचता हूँ, क्या आप सभी ने इसे समझा? (तालियाँ)
बुद्ध, ताओ, और देवता जिन्हें हम जानते हैं, हम मनुष्य, और सभी पदार्थ जो हम देखते हैं, उन आयामों में अस्तित्व में हैं जिनमें अनगिनत ब्रह्माण्ड हैं—असंख्य ब्रह्माण्ड—जिन्हें झाओ (खरब) की इकाई के साथ भी नहीं गिना जा सकता है। यह ब्रह्मांडीय विस्तार इतना विशाल है। यह एक स्वतंत्र प्रणाली है। फिर इस विस्तार से परे एक बड़ा ब्रह्मांडीय पिंड अस्तित्व में है, जो एक अन्य स्वतंत्र प्रणाली है। फिर उस प्रणाली से परे बड़ी, और भी बड़ी, और उससे भी बड़ी, बड़ी प्रणालियाँ अस्तित्व में हैं—यह ब्रह्मांड इतना विशाल है। और सूक्ष्म जगत में यह अत्यंत, अत्यंत, अति सूक्ष्म है। जहाँ हम मनुष्य रहते हैं, वह लगभग केंद्रीय स्थिति में है—चाहे स्थूल दृष्टिकोण से देखा जाए या सूक्ष्म दृष्टिकोण से, मानव संसार लगभग मध्य में है। फिर भी भिन्न-भिन्न कण भिन्न-भिन्न आयाम बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, विशेष, विभिन्न कणों से बने सतही संसार भी हैं। आप जानते हैं, जब मैं चीन में था, तो कुछ छात्रों ने पूछा कि जब कुछ शिष्यों की मुख्य आत्माओं (युआनशेन) ने उनके शरीरों को छोड़ा और हमारे इस भौतिक आयाम के स्थान की यात्रा की, तो उन्होंने बुद्धों के दिव्यलोकों या देवताओं के दिव्यलोकों को नहीं देखा। उन्होंने जो कुछ देखा वह हमारे इस भौतिक आयाम के वास्तविक दृश्य थे। उन्होंने देवताओं को क्यों नहीं देखा? ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने इस त्वचा-खोल के प्रकार के आयाम में प्रवेश किया, जो एक आयाम है जहां मनुष्य रहते हैं; यह हमारे जैसे भौतिक आयाम के रूप में है—यही स्थिति उन्होंने देखी। यह उस प्रकार के आयाम के अस्तित्व का रूप है जिसकी मैंने बात की थी।
हमारे कुछ ऐसे शिष्य भी हैं जिन्होंने मुझसे पूछा : "मानव जीवन कैसे शुरू हुआ?" क्योंकि मैंने पदार्थ के उद्गम का उल्लेख पहले किया है, मैं इस प्रश्न के बारे में भी बात करूँगा। यह मत सोचिये कि मैं विज्ञान के बारे में बात कर रहा हूँ—बुद्ध फा में सब कुछ सम्मिलित है। मैंने पहले पदार्थ के उद्गम के बारे में बात की है। उद्गम कैसे हुआ है? मैंने आपको यह नहीं बताया कि पदार्थ का उद्गम कैसे हुआ है। हालाँकि मैं आपको उन सभी भिन्न-भिन्न ब्रह्मांडीय पिंडों की उत्पत्ति के बारे में नहीं बता सकता, जिनके बारे में मैंने अभी बात की है, जो इतने विशाल हैं, लेकिन, मैं आपको बता सकता हूँ कि हमारे इस ब्रह्मांडीय पिंड के भीतर विभिन्न आयामों में पदार्थ और प्राणियों के अस्तित्व का उद्गम कैसे हुआ है। वस्तुतः पदार्थ का उद्गम जल से हुआ है। वह जल जो ब्रह्माण्ड का मूल है, पृथ्वी का साधारण लोगों का जल नहीं है। मैं क्यों कहता हूँ कि जल पदार्थ का मूल है? जब भी विभिन्न स्तरों का सबसे सूक्ष्म पदार्थ एक निश्चित बिंदु तक पहुँचता है तो कोई और पदार्थ नहीं रह जाता। एक बार जब कोई पदार्थ नहीं बचता, तो पदार्थ के कणों का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। और आगे देखने पर, व्यक्ति को एक स्थिति दिखती है: व्यक्ति को वह दिखता है जिसमें भौतिक कण नहीं होते है और जो शांत होता है—मैं साधारणतः उसे शांत जल कहता हूँ। इसे मूल—निर्जीव जल भी कहा जाता है। यदि आप इसमें कुछ फेकेंगे तो कोई लहर नहीं उठेगी। ध्वनि कंपन से भी कोई लहर नहीं बनेंगी—यह पूरी तरह गतिहीन होता है। फिर भी पदार्थ की सबसे मूल संरचना इसी प्रकार के जल से बनती है।
संरचना कैसे कार्य करती है? इस ब्रह्मांड में फा है। यह फा सत्य-करुणा-सहनशीलता है जिसके विषय में हम बात करते हैं। ब्रह्मांड की यह प्रकृति उस जल को सबसे प्रारंभिक, सबसे सूक्ष्म और पदार्थ के सबसे मूल एकल कणों में जोड़ती है, जिन्हे सबसे मूल कण भी कहा जा सकता है। फिर भी प्रत्येक एकल है; यह कुछ नहीं है, जल के बुलबुले की तरह। फिर दो मूल कण मिलकर एक बड़ा मूल कण बनाते हैं। और फिर एक-में-दो कणों के दो समूहों को मिलाकर एक और भी बड़ा कण बनता है। ये संयोजन तब तक जारी रहते हैं जब तक कि विभिन्न स्तरों पर कण विभिन्न पदार्थों के बाहरी आकार, प्राणियों, पदार्थ, वायु और प्रकाश, जल और समय का निर्माण करते हैं, जो कि अस्तित्व के लिए आवश्यक होते हैं, इत्यादि इत्यादि। कणों के संयोजन के विभिन्न तरीके हो सकते हैं, जिन्हें आज हम व्यवस्था क्रम कहते हैं।
कणों की व्यवस्था के क्रम भिन्न-भिन्न होते हैं, जो उस आयाम के सतही पदार्थ में अंतर का कारण बनते हैं। इस प्रकार निरंतर बड़े और बड़े कणों में संयोजन करते हुए, सूक्ष्म जगत से लेकर स्थूल जगत तक, वे अंततः उस चीज़ में संयोजित हो जाते हैं जिसे आज हम मनुष्य न्यूट्रिनो, क्वार्क, इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, परमाणु नाभिक, परमाणु और अणु के रूप में जानते हैं, ये मिलकर सतह का पदार्थ एवं और भी बड़े ब्रह्मांडीय पिंड बनाते हैं जिन्हें हम जानते हैं। इस बिंदु पर जब यह सतही पदार्थ बनता है, क्योंकि इसकी व्यवस्था के क्रम विविध हैं, सतह के पदार्थ में अंतर काफी बड़े होते हैं। लेकिन हम सभी जानते हैं कि लकड़ी अणुओं से बनी होती है, लोहा अणुओं से बना होता है और प्लास्टिक भी अणुओं से बना होता है। यहां तक कि हमारे आयाम में जल भी सूक्ष्म जल के कण मिलकर बड़े कण बनते हैं और ये बड़े कण, इसके बाद, जल के अणुओं का रूप लेते हैं। इसलिए हम कहते हैं कि क्योंकि सतही पदार्थ अधिक सूक्ष्म पदार्थ से बनता है, मैं आपको बता सकता हूँ, पूरा ब्रह्मांड जिसे हम समझने में सक्षम हैं, जल से बना है—और यह जल अत्यधिक उच्च घनत्व का है और पूरी तरह से गतिहीन है। यह इसी से बना है।
आपने कुछ ताओवादियों के बारे में प्राचीन मिथक सुने होंगे जो चट्टानों से पानी निकाल सकते थे। मैं आपको बता सकता हूं कि भले ही यह हमारी आधुनिक मानव सोच या आधुनिक विज्ञान की अवधारणाओं के साथ कुछ अवर्णनीय लगता है—वे सोचते हैं कि आप एक मिथक या कुछ अविश्वसनीय कहानी बता रहे हैं—मैं आपको बताता हूँ कि यह वास्तव में सच है क्योंकि सभी पदार्थ जल से बने हैं। स्टील या लोहे से भी जल निकाला जा सकता है और इन्हें जल में घोला भी जा सकता है। पदार्थ कितना भी कठोर क्यों न हो, उसके मूल कण जल से बने होते हैं। यदि कोई बुद्ध फा की दिव्य शक्ति को इस दृष्टिकोण से समझता है, तो मुझे लगता है कि इसे समझना कठिन नहीं होगा। इसमें इतनी शक्ति होती है—यह इसे मूल पदार्थ में वापस ले जा सकता है। जिस रूप के बारे में मैंने अभी बात की है वह श्रेणीबद्ध है—विभिन्न प्रमुख स्तरों में इस तरह के विभिन्न प्रकार के जल होते हैं।
हमने एक और स्थिति भी देखी है। जैसा कि मैंने अभी कहा, हमारा यह जल उस अति सूक्ष्म जल से बनता है जो बड़ी परतों के कण बनाता है, अंततः हमारे संसार में जल के अणु और जल बनाता है। तब, क्या वह जल जो विभिन्न स्तरों का मूल है, वह मानव भौतिक संसार की तुलना में बड़े कणों की परतों का निर्माण नहीं कर सकता था? और फिर आगे चलकर उस स्तर पर जल बनाता? वास्तव में, जैसा कि मैंने अभी कहा, मैं आपको नहीं बता सकता कि यह ब्रह्मांड आखिरकार क्या है। लेकिन मैं आपको बता सकता हूं कि विभिन्न स्तरों पर पदार्थ के विभिन्न मूल होते हैं—दूसरे शब्दों में, पदार्थ के मूल के रूप में विभिन्न जल। स्तर जितना उच्च होगा, जल का घनत्व भी उतना ही अधिक होगा, जिससे विभिन्न आयामों में विभिन्न कण, विभिन्न जल और विभिन्न जीव बना सकता है। जैसा कि आप जानते हैं, मानव शरीर, स्टील, लोहा, और सब कुछ हमारे इस आयाम में जीव और चीजें हैं। दूसरे शब्दों में, जिन जीवों को हम जानते हैं और जिनके संपर्क में मनुष्य आ सकते हैं, और जिन जीवों को मनुष्य अपनी आँखों से देख सकते हैं, वे भी वास्तव में जल से ही बनते हैं। केवल इतना है कि यह मानव संसार का जल है, अर्थात यह मानव जल सबसे बाहरी सतह पर है, जो उस गतिहीन, मूल जल से बना है। वह अंतर पहले से ही बहुत अधिक है। और जिन जीवों और पदार्थों को हमारी मानवीय आंखें देख सकती हैं, वे भी इसी जल से बने हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि यदि आप सब्जी के टुकड़े को हाथ में लेकर निचोड़ते रहें तो अंत में जल के अतिरिक्त कुछ नहीं बचेगा। फल के साथ भी ऐसा ही है। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि मानव शरीर का सत्तर प्रतिशत भाग जल है। लेकिन वे नहीं जानते कि हड्डियाँ और बाल भी जल के अणुओं से बने होते हैं, केवल वे अधिक सूक्ष्म जल से बने कणों से बने होते हैं। वास्तव में, वे सभी जल हैं; केवल इतना है कि वे अधिक सूक्ष्म कणों से बने हैं। हमारे इस भौतिक आयाम में सब कुछ जल से बना है।
कणों की भिन्न-भिन्न व्यवस्था क्रमों के कारण सूक्ष्म पदार्थ भिन्न-भिन्न रूप वाले पदार्थ बना सकते हैं। यदि आप जादू कर सकते हैं... निश्चित ही, अतीत में बहुत से लोग जादू करते थे, जल को बर्फ में बदल देते थे, या एक चीज को दूसरी चीज में बदल देते थे। यह अकल्पनीय लगता है, लेकिन यह वास्तव में अकल्पनीय नहीं है। जब आप किसी चीज़ की आणविक व्यवस्था के क्रम को बदलने में सक्षम होते हैं, तो वह कुछ और बन जाएगी। तो आप किसी चीज़ का रूप कैसे बदलते हैं? निश्चित ही, रूप बदलना और भी सरल है, और रूप बदलने के बाद यह कुछ और हो जाता है। एक बुद्ध, एक ताओ, या एक देवता का स्तर जितना उच्च होता है, उसके पास यह शक्ति उतनी ही अधिक होती है। जैसा कि आप जानते हैं कि मनुष्यों में बहुत अभाव होता है। कितना अभाव? यदि मनुष्य कुछ प्राप्त करना चाहते हैं या कुछ करना चाहते हैं, तो उन्हें अपने हाथों और पैरों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है—इसे पूरा करने के लिए उन्हें शारीरिक श्रम का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। लेकिन बुद्धों को नहीं होती। बुद्धों को केवल सोचने की आवश्यकता होती है—केवल विचार ही पर्याप्त होता है, क्योंकि बुद्धों के पास बहुत सी दिव्य शक्तियाँ होती हैं, कई दिव्य सिध्दियाँ होती हैं, और उनके पास अपना स्वयं का शक्तिशाली गोंग भी होता है। उस गोंग के प्रत्येक सूक्ष्म कण में बुद्ध की अपनी छवि होती है, और वे सूक्ष्म कण और भी अधिक सूक्ष्म कणों से बने होते हैं, सभी पर उनकी छवि होती है। इसके बारे में सोचें, जैसे ही उनका विचार प्रकट होता है, उनका गोंग बाहर उत्सर्जित हो जाता है। अत्यंत सूक्ष्म स्तर से प्रारम्भ होते हुए यह विभिन्न स्तरों के कणों की संरचना में परिवर्तन करता है। और वे जिस समय का उपयोग करते हैं वह सबसे तीव्र आयाम का होता है, इसलिए यह तुरंत हो जाता है। बुद्ध बहुत शीघ्रता से कार्य करते हैं, क्योंकि वे हमारे इस आयाम और समय द्वारा नियंत्रित नहीं होते हैं। वे तुरंत ही किसी वस्तु को उसके मूल से ही किसी दूसरी चीज में बदल देते हैं। इस प्रकार बुद्ध फा की दिव्य शक्ति का प्रभाव होता है। बुद्ध के विचार करते ही वस्तु क्यों बदल जाती है? जब एक बुद्ध सोचता है, तो उनके गोंग के अनगिनत कण और अथाह बुद्धिमत्ता दोनों एक साथ हर स्तर पर परिवर्तन कर रहे होते हैं, संपूर्ण [गोंग] भी हर उस चीज़ का परिवर्तन कर रहा होता है जो वह करना चाहते हैं, और उनके गोंग के बड़े कण भी वस्तु की सतह को बदल रहे होते हैं। किसी वस्तु के सबसे मूल कणों से लेकर उसके सतह के कणों तक, उनका गोंग एक साथ इसे सूक्ष्म से सतह तक बदल रहा होता है। फिर वह उस चीज़ को एक पल में घटित कर देते हैं—वह उसे तुरंत कर देते हैं। जो कुछ नहीं है वह कुछ में बदल जाता है, क्योंकि वह हवा में अणुओं और कणों को एक ऐसी वस्तु में संयोजित करने में सक्षम है जिसे आप देख सकते हैं—इसे कुछ नहीं से कुछ में बदलना कहते हैं। बुद्ध फा की दिव्य शक्ति इतनी प्रबल क्यों है? मानव जाति का विज्ञान और प्रौद्योगिकी कभी भी इस बिंदु तक नहीं पहुंच सका।
मानव जाति द्वारा बुद्ध फा की शक्ति को वैज्ञानिक और तकनीकी साधनों के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है, क्योंकि मनुष्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ-साथ नैतिकता को ऊँचा उठाना असंभव है—यह असंभव है। इसके अतिरिक्त, इस विज्ञान और प्रौद्योगिकी को विकसित करने में, मनुष्यों को हमेशा कुछ प्राप्त करने के लिए बहुत प्रबल मोहभाव होता है, जो ब्रह्मांड के फा के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इसलिए उनकी नैतिकता का उस ऊंचाई तक पहुंचना असंभव है। इसके अतिरिक्त, मनुष्यों की विभिन्न भावनाएँ और इच्छाएँ होती हैं, और सभी प्रकार के मोहभाव होते हैं: प्रतिस्पर्धात्मक प्रबल इच्छा, ईर्ष्या, उत्साह, लालच, आदि। यदि विज्ञान और प्रौद्योगिकी वास्तव में इतने उन्नत हो जाते हैं, तो ब्रह्मांड में अंतरिक्ष युद्ध छिड़ जाएंगे—वास्तव में ब्रह्मांडीय युद्ध हो सकते हैं। लेकिन बुद्ध, ताओ, और देवता इसकी अनुमति नहीं देंगे—वे बिल्कुल भी मनुष्यों को ब्रह्मांड में अशांति लाने की अनुमति नहीं दे सकते, इसलिए देवता मानव जाति को नियंत्रित कर रहे हैं। नैतिकता में सुधार के बिना मानव जाति के विज्ञान और प्रौद्योगिकी को उस उच्च स्तर तक पहुंचने की अनुमति नहीं है—यह बिल्कुल असंभव है।
मैं अक्सर कहता हूं कि इस दिन तक पहुंचने से पहले मानवजाति विभिन्न ऐतिहासिक कालों से गुजरी है। दूसरे शब्दों में, इतिहास में विभिन्न बिंदुओं पर विनाश का सामना करने के बाद अनेकों अनेक बार मानव जाति समाप्त हो जाती थी। और तब एक नई मानवजाति का उदय होता। इस प्रकार के भिन्न-भिन्न घटनाचक्रों के बाद हम आज यहां पहुंचे हैं। क्यों? साधना समुदायों ने इस स्थिति को पाया है: हर बार जब मानवजाति एक भयानक चरण पर पहुंचती या इतिहास द्वारा समाप्त कर दी जाती थी, यह एक ऐसा समय होता था जब मानवजाति की नैतिकता अत्यंत भृष्ट हुयी होती थी। कुछ लोग इस विषय में बात करते हैं कि यूनानी संस्कृति कितनी महान थी, लेकिन वे लोग कहाँ गए? आज यूनानी संस्कृति से कुछ देखा जा सकता है: यूनानी संस्कृति के जो तत्व बचे हैं वे निश्चित रूप से यूनानी सभ्यता के विकास की अंतिम अवधि से हैं, और हमने पाया है कि इसमें समलैंगिकता के साथ-साथ स्वच्छंद यौन संबंध भी थे, और इसमें इसके अतिरिक्त, जीवन वास्तव में फिजूलखर्ची वाला और अपव्ययी, भ्रष्ट और भयानक रूप से पतित था; हम देख सकते हैं कि मानवजाति पहले ही बुरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी थी। यह लुप्त क्यों हो गई? क्योंकि इसकी नैतिकता अब पर्याप्त अच्छी नहीं रही थी। मनुष्य को केवल इसलिए मनुष्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसका रूप मानवीय है। भूतों को मनुष्य क्यों नहीं कहते? आखिरकार, उनकी आपसे कणों की केवल एक परत कम होती है। और बंदरों एवं गोरिल्लाओं को मनुष्य क्यों नहीं कहा जा सकता? क्योंकि मनुष्य के न केवल मानव हाथ-पैर और एक धड़ है, बल्कि मानवीय नैतिक आदर्श और नैतिक मूल्य भी हैं। यदि मनुष्य अपने नैतिक मूल्यों, नैतिक आदर्शों और आचार संहिता को खो देते हैं, तो वे मनुष्य नहीं रह जाते हैं। तो आज का मानव समाज... सच कहूं तो, मैं आपको बता सकता हूं कि देवता अब मनुष्यों को मनुष्य नहीं मानते हैं। इसके बारे में सोचें: क्या मनुष्य भयंकर स्थिति में नहीं हैं? आपकी सरकार किसी चीज़ की अनुमति देती है, आपका देश इसकी अनुमति देता है, आपका राष्ट्र इसकी अनुमति देता है, और यहाँ तक कि आप भी अपनी सोच में इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि यह अच्छी हो। इसलिए यदि आप आज के समाज को देखें तो आप देख सकते हैं कि नशीली दवाओं का उपयोग, मादक पदार्थों की तस्करी, नशीली दवाओं का निर्माण, लिंग परिवर्तन, समलैंगिकता, यौन स्वतंत्रता, संगठित अपराध आदि एक अंतहीन धारा में उभर कर सामने आते हैं। स्वार्थ और इच्छाओं ने लोगों को एक दूसरे का शत्रु और बिना कोई पवित्र विचारों का बना दिया है। पतित मानव समाज की सभी प्रकार की घटनाएं प्रचुर मात्रा में हैं। तथाकथित आधुनिक कला, तथाकथित रॉक एंड रोल, आसुरिक-प्रकृति जो फुटबॉल के मैदान पर फूट पड़ती है, और इस तरह की चीज़ें सभी व्यापारों और व्यवसायों में होती हैं। ये चीजें समाज के हर पक्ष में व्याप्त हैं। मानव मन के पतन ने लोगों के मूल्यों को उलट दिया है: वे अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा मानते हैं—लोगों के मूल्य उलट गए हैं। बलपूर्वक धन हथियाना, यश और स्व-हित प्राप्त करना, [लोगों के बीच] संघर्ष की सोच का समर्थन करना, संगठित अपराध के नेताओं का महिमामंडन करना... क्या आप कहेंगे कि ये अब भी मनुष्य हैं?
मैं आज के उच्च विद्यालय के छात्रों के उनकी पतलून पहनने का तरीका देखता हूँ, उनके नितंबों पर बेल्ट बंधी होती है, कुछ चीजें आंतों की तरह उनकी टांगों और पैरों पर नीचे की ओर लटकती हैं, और उनकी बेल्ट का एक भाग बाहर लटका रहता है। उनके सिर दोनों तरफ से मुंडवाए होते हैं, जिससे सिर का ऊपरी भाग छत के किनारे जैसा हो जाता है। कुछ अन्य लोग असुरों की तरह बालों की केवल एक पट्टी बीच में छोड़ देते हैं, और उन्हें लगता है कि यह अच्छा लग रहा है। लेकिन क्या यह सच में अच्छा लगता है? यदि आप इसका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करते हैं, तो आप पाएंगे कि उनके पास सौंदर्यबोध की कोई अवधारणा नहीं है। महिलाएं काले रंग के कपड़े पहनती हैं, असुरों जैसी केश शैलियां रखती हैं, और उनके चेहरे अधोलोक के भूतों के जैसे भावहीन होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों के मूल्य उलट गए हैं। असुरों द्वारा विकार उत्पन्न करने के कारण, मानवजाति ने बुरी और निराशाजनक वस्तुओं को सुन्दर मान लिया है।
जैसा कि मैंने उस दिन कहा था, असुर-जैसे, दानव-जैसे और भूत-जैसे खिलौने जितने बदसूरत होते हैं, उतने ही शीघ्र वे बिकते हैं, और कोई भी सुंदर गुड़िया नहीं खरीदता है। लोगों के मूल्य पूरी तरह से बदल गए हैं। आप सब इसके बारे में सोचें: क्या यह डरावना नहीं है? मानव जाति का विकास वास्तव में चक्रीय है। इस तरह की चीज़ों को होने से रोकने का एक ही मार्ग है: मानवीय नैतिकता बनाए रखें। जैसा कि आपने देखा है, आजकल सामाजिक समस्याएँ एक के बाद एक उठ खड़ी होती हैं और कोई भी सरकार उनका समाधान नहीं कर पाती है। जातीय समस्याएं, देशों के बीच की समस्याएं, राष्ट्रीयताओं के बीच संघर्ष, राष्ट्रीयताओं के भीतर संघर्ष, समाज में अपराधों के कई कारण... सभी सरकारें उन्हें सिरदर्द मानती हैं और कोई भी उन्हें हल नहीं कर सकता। वे उन्हें हल क्यों नहीं कर सकते? क्योंकि उनकी सभी विधियां घटना को केवल घटना के भीतर से सुलझाने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन जब एक घटना को नियंत्रित किया जाता है, तो एक बदतर घटना घटित होती है। फिर जब आप उस एक घटना को नियंत्रित करते हैं, तो उससे भी बुरी घटना घटती है। मानवजाति ने जो कानून बनाए हैं, वे वास्तव में लोगों को यांत्रिक रूप से प्रतिबंधित कर रहे हैं और उन्हें नियंत्रित कर रहे हैं, जिसमें स्वयं कानून निर्माता भी सम्मिलित हैं। मनुष्य निरंतर स्वयं को प्रतिबंधित कर रहे हैं। वे प्रतिबंधित हो जाते हैं और इस बिंदु तक प्रतिबंधित हो जाते हैं कि अंत में उनके पास कोई मार्ग नहीं रह जाता। जब बहुत सारे कानून बनाए जाते हैं, तो मनुष्यों को पशुओं की तरह नियंत्रित किया जाता है और उनके पास कोई मार्ग नहीं बचता है; तब कोई भी कुछ समाधान नहीं कर पाता है।
लेकिन मैं आपको बता सकता हूँ कि मानव जाति की सभी बुराइयों का मूल कारण वास्तव में मानव नैतिकता का पतन है। वहां से प्रारंभ किए बिना, मानवजाति की कोई भी समस्या हल नहीं की जा सकती। उससे शुरू करके, मानवजाति की सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। क्या यह सच नहीं है? आप सभी इसके बारे में सोचें: यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने अंदर गहराई से स्वयं से एक अच्छा व्यक्ति बनने की आवश्यकता रखता है, आत्म-संयम का अभ्यास करने में सक्षम है, और वह जो कुछ भी करता है उसमें दूसरों को ध्यान में रखता है, दूसरों को हानि नहीं पहुंचाता है और इसके स्थान पर यह सोचता है कि क्या दूसरे इसे सह सकते हैं, कल्पना करें वह कैसा समाज होगा। क्या कानूनों की आवश्यकता होगी? क्या पुलिस की आवश्यकता होगी? हर कोई स्वयं को संयमित और अनुशासित कर रहा होगा। लेकिन राजनीतिक प्रचार और बलपूर्वक शासन करने से भी नैतिकता वापस नहीं आ सकती है—इससे केवल विपरीत ही प्राप्त होगा। संसार आज इस प्रकार विकसित हुआ है, जहां हर कोई कानूनी व्यवस्था को अच्छा समझता है। वास्तव में, जब कोई मार्ग नहीं निकलता तो यह अंतिम उपाय होता है। मानव जाति कई हजार वर्षों से विकसित हुई है। अतीत में इतने सारे कानून कभी नहीं थे, केवल साधारण "राजा का कानून" था, और सद्गुण (द) अच्छे और बुरे का न्याय करने की कसौटी थी। फिर भी प्राचीन लोगों की नैतिकता आज की तुलना में बहुत अधिक थी। आज लोग सोचते हैं कि प्राचीन लोग अच्छे नहीं थे। वास्तव में, ऐसा इसलिए है क्योंकि आप प्राचीन लोगों को आधुनिक लोगों की पतित धारणाओं के साथ देख रहे हैं। पहले के लोग आज के लोगों से कम बुद्धिमान नहीं थे। मानव मस्तिष्क का वह भाग जिसका उपयोग किया जा सकता है, उसका कभी विस्तार नहीं हुआ है; केवल इतना है कि आज लोग स्वयं को बहुत महान समझते हैं और अपने आप को बहुत समझदार समझते हैं।
समाज के विकास की व्यवस्था भी देवताओं ने ही की है। जब आप इस अवस्था तक विकसित होते हैं तो वे आपको आधुनिक मशीनरी, आधुनिक उपकरण और आधुनिक सुविधाओं की अनुमति देते हैं। क्या प्राचीन लोगों ने इनका निर्माण करने के बारे में नहीं सोचा था? यह केवल इतना है कि देवताओं ने उस चरण पर ऐसा होने की व्यवस्था नहीं की थी। आधुनिक लोग प्राचीन लोगों की तुलना में अधिक बुद्धिमान नहीं हैं। फिर भी अक्सर जितनी अधिक विकसित भौतिक चीजें होती हैं, उतने ही अधिक लोग इस भौतिक वास्तविकता में फंस जाते हैं। उन्हें लगता है कि ये उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं, यह कि प्राचीन लोग उन्हें नहीं बना सके, और यह कि हम आधुनिक लोग लगभग उतने ही समृद्ध हैं जितने देव हैं—आपने कल यूरोप से उड़ान भरी थी, और अब आप अमेरिका में हैं—बिल्कुल देवों की तरह। मैं आपको बता दूं कि यह सब इस विशाल ब्रह्मांड में बहुत पहले से अस्तित्व में है—ये लंबे समय से अन्य संसारों में अस्तित्व में हैं। लोग बुरे बन गए और यहाँ गिर गए जहाँ मानवजाति है—इस पृथ्वी पर। सभी मनुष्यों के मन में जन्म के पहले से ही चेतना होती है—बात केवल इतनी है कि उन्हें स्वयं इसके बारे में पता नहीं होता। यह कि "वैज्ञानिक और तकनीकी साधनों के माध्यम से," यह कि "हमारे विज्ञान और प्रौद्योगिकी कितने उन्नत हैं," वे "विमान और कारें जो विकसित की गई हैं," वे "आधुनिक चीजें" ... वास्तव में, मैं आपको बता दूं कि यह सब केवल इसलिए है क्योंकि उन अतीत की चीजों को आपकी चेतना में संग्रहीत किया गया है, और इस कचरे के ढेर में आपने चीजों को कचरे से बनाया है—सबसे बाहरी सतह के स्थूल पदार्थ से। और मनुष्य सोचते हैं कि ये बहुत अच्छी हैं। निःसंदेह, मानव जाति इस प्रकार नीचे गिर गई है। क्योंकि वे बुरे बन गए हैं, इसलिए वे इस अवस्था में गिर गए हैं और उन्हें कष्ट सहना पड़ता है। तब मानवजाति का विकास मनुष्य की इच्छा के अनुसार आगे नहीं बढ़ सकता है, और मनुष्यों को वह करने की अनुमति नहीं है जो वे चाहते हैं या जो कुछ उन्हें आरामदायक अनुभव कराता है—यह बिल्कुल अस्वीकार्य है। इसलिए मनुष्य भयानक स्थिति में हैं। जबकि यह व्यक्ति आपदाओं के बारे में बात कर रहा है और वह व्यक्ति आपदाओं के बारे में बात कर रहा है, मैं उन चीजों के बारे में कभी बात नहीं करता, और इसका कोई लाभ नहीं है। मैं चर्चा नहीं करता कि वे अस्तित्व में हैं या नहीं। यदि वे हैं भी, तो उनका हमारे अभ्यासियों या अच्छे लोगों से कोई लेना-देना नहीं होगा। लेकिन हमने वास्तव में देखा है कि क्योंकि मनुष्य वर्तमान अवस्था में आ गए हैं, जब वे अपनी समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं होते हैं और संकट में पड़ जाते हैं—जिसके कारण मानवजाति के पास कोई मार्ग नहीं बचता है—यह वास्तव में मानवजाति के नैतिक पतन के कारण होता है। क्योंकि हम जीवों के निर्माण और आयामों के बारे में बात कर रहे थे, इसलिए हमने मानव जाति की चर्चा की है। पदार्थ मनुष्यों का निर्माण कर सकता है क्योंकि जब कण विभिन्न पदार्थों में संयोजित होते हैं, तो वे सतह पर मनुष्यों के विभिन्न पदार्थों में संयोजित होते हैं। जब अणुओं की व्यवस्था का क्रम हड्डियों के कणों का होता है, तो सतही पदार्थ हड्डी होता है। जब उनकी व्यवस्था का क्रम मांस के अणुओं का होता है, तो वे मांस होते हैं। वे वही होते हैं जो व्यवस्था क्रम वे धारण करते हैं। और यह आपके अस्तित्व का निर्माण करता है—जब इसे इस प्रकार समझाया जाता है तो यह सरल होता है।
अभी-अभी मैंने दूसरे मुद्दे पर बात की। बहुत से लोग कहते हैं कि देवताओं ने मनुष्यों को बनाया है। कुछ ने इस बारे में बात की है कि मनुष्य कैसे मिट्टी से बने हैं। हम विशेष रूप से इस बारे में बात नहीं करेंगे कि मनुष्य कैसे बनाए जाते हैं—वास्तव में, सभी प्रकार के तरीके होते हैं। एक उच्चतर देव का केवल एक विचार आपकी रचना कर सकता है। सब कुछ जीवित है। आपके बाहरी रूप को बनाने के बाद आपके आंतरिक अंगों का निर्माण होता है। मनुष्य सोचते हैं कि मानव शरीर अत्यंत जटिल है, लेकिन महान बुद्धिमत्ता और महान ज्ञानप्राप्ति वाले देवताओं के लिए, यह एक छोटी सी बात है। केवल एक विचार मात्र के उत्पन्न होने से एक बुद्ध अत्यंत सूक्ष्म स्तर के पदार्थ से आपके आंतरिक अंगों की रचना कर सकते हैं, वे उन्हें तुरंत बना सकते हैं। जब भी कोई चीज बनती है तो उसमें प्राण डाल दिये जाते हैं। निस्संदेह, मनुष्यों के पास सह चेतनाएं (फू युआनशेन) भी होती हैं; कई-कई जीव मिलाकर एक मनुष्य बनता है। यह इस प्रकार होता है।
अतीत में, वैज्ञानिक समुदायों में लोग हमेशा सर खपा कर स्वयं को यातना देते थे कि मुर्गी पहले आई या अंडा। मैं कहूंगा कि न तो मुर्गी और न ही अंडा। यह केवल इतना है कि सूक्ष्म पदार्थ स्थूल पदार्थ बनाते हैं, छोटे कण बड़े कण बनाते हैं, जिन चीजों को पदार्थ भी नहीं कहा जा सकता है वे पदार्थ बनाती हैं। यद्यपि बड़े जीवों के शरीर को बनाने वाले कण आयतन के अनुसार हमारे कणों से भिन्न होते हैं, और इसलिए बाहरी आकृतियों के आकार भिन्न-भिन्न होते हैं, पदार्थ की सतह पर कणों की व्यवस्था के क्रम जो जीवों के अस्तित्व का गठन करते हैं—चाहे वे कितने भी बड़े या छोटे हों—समान होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक बड़ी परत के मनुष्यों के शरीर का प्रत्येक कण उन कणों की परत से बना है जो कि ग्रह हैं, तो इसके मांस की वही व्यवस्था है जो हमारे मानव शरीर की आणविक व्यवस्था है। दूसरे शब्दों में, ग्रहों का व्यवस्था क्रम हमारे आणविक व्यवस्था क्रम के समान है जो मांस बनाता है। तो एक लघु—या उससे भी लघु परत के मनुष्य उसी प्रकार बनते हैं। मैं इस बारे में बस इतना ही कहूंगा।
आज, इस ब्रह्मांड की संरचना को उपरी तौर पर समझाया गया है। नि:संदेह, विस्तृत रूप से नहीं बताया जा सकता है। कुछ लोगों ने मुझसे पूछा है, "गुरुजी, हम जानना चाहते हैं कि बुद्ध कैसे रहते हैं।" मैंने उत्तर दिया, "तब आप साधना करके स्वयं बुद्ध बनिए।" ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्यों को यह जानने की अनुमति नहीं है कि बुद्ध कैसे रहते हैं। मनुष्यों के पास यह अवधारणा बिल्कुल भी नहीं है। यदि मैं आपको बताऊं, तो आप उनके साथ मानवीय उत्साह और मानवीय विचारों और तर्क के साथ व्यवहार करेंगे, जो उनका अपमान करने और उनका अनादर करने के समान होगा। इसलिए हम आपको विशेष रूप से नहीं बता सकते। मैं आपको केवल सीमित मानवीय भाषा के साथ ऊपरी तौर पर बता सकता हूं। वास्तव में, आज इसे सिखाने के लिए भाषा के रूप में चीनी भाषा को चुनने से अधिक उपयुक्त हमारे लिए कुछ और नहीं हो सकता था, क्योंकि चीनी भाषा सबसे अभिव्यक्तिपूर्ण है और संसार की किसी भी भाषा से इसमें सबसे आंतरिक अर्थ हैं। यदि अंग्रेजी या दूसरी भाषा का उपयोग किया जाता तो कुछ भी व्यक्त नहीं किया जा सकता था। इसे समझाने के लिए मैंने स्थानीय बोली का कुछ उपयोग किया है। क्योंकि मानकीकृत आधुनिक चीनी भाषा भी चीजों को स्पष्ट रूप से समझाने में असमर्थ हैं, आपने मेरे शब्दों में स्थानीय भावों को पाया होगा, जो चीजों का सटीक वर्णन कर सकते हैं, और यह कि मेरे शब्दों का चुनाव अपरंपरागत है; बागू लेखन की नई शैली में गहरे आंतरिक अर्थ नहीं हैं। यदि इसे इस प्रकार से नहीं किया गया होता तो चीजों को व्यक्त करने का कोई मार्ग नहीं होता।
मैं एक और मुद्दे के बारे में बात करूंगा जिसके बारे में हर कोई बहुत चिंतित है। कुछ लोगों ने कहा है, "गुरुजी, मैं अभ्यास कर रहा हूँ लेकिन मैं कुछ नहीं देख सकता।" आइए इस प्रश्न पर चर्चा करें कि क्यों लोग देख पा रहे हैं या नहीं देख पा रहे हैं। वास्तव में, जब मैंने तीसरे नेत्र के बारे में बात की थी तो मैंने पहले ही इसकी व्याख्या कर दी थी। लोगों से आवश्यकताएं अधिक हैं, और सिद्धांत निरंतर उच्च होते जा रहे हैं। यदि मैं इसकी और व्याख्या करूंगा तो यह उस समझ को पार कर जाएगा। लेकिन मैं इसे पिछली बार कही गई बातों से जोड़ने का प्रयत्न करूंगा। मैं आपको इसे और आगे समझाऊंगा।
श्रोताओं में आप में से अधिकांश लोगों का जन्मजात गुण बहुत अच्छा है। वास्तव में, जब से आपने साधना अभ्यास शुरू किया है, तब से लेकर आज तक, चाहे यह थोड़े ही समय के लिए क्यों न रहा हो, आपको कुछ चीजें देखने में समर्थ होना चाहिए था। क्योंकि ज़ुआन फालुन पुस्तक में हम मानवीय मोहभावों को हटाने की कड़ी आवश्यकता पर जोर देते हैं, बहुत से लोग इसे देखने का साहस नहीं करते हैं। बहुत से लोगों ने कुछ चीजें अस्पष्ट रूप से देखी हैं, लेकिन वे उस पर विश्वास करने का साहस नहीं करते हैं। आपको देखने में असमर्थ होने के कई कारण हैं। पहला यह है कि कुछ लोग सोचते हैं: "यदि मैं कुछ देखता हूँ, तो यह उतना ही स्पष्ट होना चाहिए जितना मैं इस भौतिक संसार में देखता हूँ। तभी इसका महत्व है। यह वास्तव में एक प्रबल बाधा है। वे हमेशा इस मुद्दे को मानवीय विचारों और धारणाओं से समझते हैं। यह ऐसा नहीं है। जब आप वास्तव में स्पष्ट रूप से देख पाएंगे तब आपने ज्ञान प्राप्त कर लिया होगा—आप शत प्रतिशत ज्ञानप्राप्ति कर चुके होंगे। और उस समय आप मनुष्यों की तुलना में देवताओं को अधिक स्पष्ट रूप से देखेंगे। आप अधिक स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम होंगे क्योंकि उन लोकों में त्रि-आयामी प्रभाव का बोध हमारे लोक की तुलना में अधिक प्रबल है, वायु हमारी तुलना में स्वच्छ है, और पदार्थ हमारे से अधिक वास्तविक है। [हम में से कुछ ठीक से नहीं देख सकते] क्योंकि हमारी यह धारणा है कि जब आप स्पष्ट रूप से देखते हैं तभी आपने वास्तव में देखा है—लेकिन यह ऐसा नहीं है। अपनी साधना के दौरान, जब आप चीजों को देखते हैं, तो आपको उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से देखने की अनुमति नहीं होती है, इसलिए आप केवल धुंधला देख सकते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, लेकिन वे जो देखते हैं वह केवल एक भाग है—उनकी दृष्टि का क्षेत्र संकीर्ण है। वे केवल एक भाग को ही स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति की दृष्टि का क्षेत्र विस्तृत है, तो जो चीजें वह देखता है वे निश्चित रूप से अपेक्षाकृत धुंधली होती हैं—वह बहुत स्पष्ट नहीं देख सकता—या वह केवल बहुत निम्न और कुछ ही आयामों को देखने में सक्षम होता है। इसलिए हमें स्वयं को मनुष्यों के तथाकथित यथार्थवादी, भौतिक मूल्यों से बाधित नहीं करना चाहिए। यह एक कारण है। लेकिन कुछ अपवाद भी हैं। जन्म से ही स्पष्ट देखने वाले लोग कम हैं, इसलिए मैं इस बारे में बात नहीं करूंगा।
दूसरा कारण यह है कि आप में से बहुत से लोगों के साथ ऐसा नहीं है कि आप देख नहीं सकते—आप देख सकते हैं—लेकिन यह कि आप हमेशा सोचते हैं कि यह एक भ्रम है और हमेशा सोचते हैं कि यह कल्पना है। ऐसा कभी-कभी शुरुआती चरण में होता है। क्योंकि मैंने विशेष रूप से ज़ुआन फालुन में इसका उल्लेख किया था और आपको बताया था कि आपको मनोभाव का उपयोग नहीं करना चाहिए—क्योंकि आप जो देखते हैं वह आपके विचारों के अनुसार बदल जाएगा, आपकी सोच के अनुसार—हममें से कुछ इस संबंध को अच्छी तरह से संतुलित नहीं कर सकते। आपके मोहभावों और उत्साह से निर्मित कारकों के साथ, एक और बाधा है। कौन सी बाधा? अर्थात, आपका मन जो सोचता है और जो वस्तु आप देखते हैं उसकी छवि आपके मस्तिष्क के एक ही क्षेत्र में प्रतिबिंबित होती है—प्रभाव मस्तिष्क के उसी भाग में उत्पन्न होता है। लोगों द्वारा देखी जाने वाली चीजों की छवियां उनकी आंखों में अंकित नहीं होती हैं, लेकिन दृष्टि तंत्रिका के माध्यम से प्रेषित होती हैं और फिर मस्तिष्क के पीनियल ग्रंथि क्षेत्र में देखी जाती हैं। हालाँकि, जब आप चीजों के बारे में सोच रहे होते हैं उस समय आपके मस्तिष्क में एक छवि उभरती है, उस क्षेत्र में प्रभाव भी उत्पन्न होता है। इसलिए यह गलत धारणा उत्पन्न करता है: जब आप वास्तव में कुछ देखते हैं—क्योंकि यह पहले ही धुंधली दिखती है—तो आपको लगता है कि यह आपकी कल्पना है। वास्तव में, यह आपकी कल्पना नहीं है—आपने वास्तव में इसे देखा है।
अतीत में, कई निम्न साधना मार्गों ने विशेष रूप से अपने शिष्यों को उन्हें प्रशिक्षित करते समय कल्पना करने के लिए कहा। यदि आप नहीं देख पाए, तो आप कल्पना करने का प्रयत्न करेंगे; अंततः, आप और अधिक कल्पना करेंगे एवं यह और अधिक वास्तविक हो जाएगा, आप और भी अधिक कल्पना करेंगे एवं यह और भी अधिक वास्तविक हो जाएगा—उन्होंने उन्हें इस प्रकार प्रशिक्षित किया। एक निम्न साधना मार्ग का अनुसरण करके पवित्र उपलब्धि प्राप्त करना कठिन है, ठीक इसलिए क्योंकि उनमें चूक हैं—यह [कल्पना करना] अपने आप में एक मोहभाव है। आपको कुछ देखने के लिए कहा जाता है, लेकिन आप देख नहीं सकते; आप कल्पना करते हैं, इसे ध्यान से देखने की पूरा प्रयत्न करते हैं, एवं अपनी आँखें बंद करके और अधिक कल्पना करते हैं; जितना अधिक आप सोचते हैं, उतना ही यह वास्तविक हो जाता है; और धीरे-धीरे ऐसा लगने लगता है कि आपकी कल्पना इसे वास्तविक बना देती है। इस तरह वे निम्न साधना मार्गों में प्रशिक्षण लेते थे। चूंकि वे निम्न साधना मार्ग थे, वे यह नहीं समझ पाए कि यह एक मोहभाव है। वास्तव में, उन्होंने फल पदवी के बारे में बात ही नहीं की।
हम इन विषयों को बहुत गंभीरता से लेते हैं। कोई भी मोहभाव आपके फल पदवी तक पहुँचने को प्रभावित करेगा। मैं आपको इस विषय के बारे में स्पष्ट होने के लिए कह रहा हूं। शायद आपने जो देखा है उसे कल्पना के रूप में लिया है, लेकिन आप उस प्रकार अभ्यास नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, यदि किसी ने धुंधला सा फालुन देखा लेकिन सोचा कि यह उसकी कल्पना है, यदि आपने उसे हिलते या घूमते हुए देखा, तो मैं आपको बता सकता हूं कि आपने इसे देखा। मैंने जो कहा है, उसका अनुसरण करके आप ऐसा करके देख सकते हैं और देखें कि क्या होता है। मैं केवल उन शिष्यों के बारे में बात कर रहा हूँ जो पहले से ही देख सकते हैं लेकिन जिन्होंने सोचा कि यह कल्पना थी। आपमें से जो इसका अनुभव नहीं करते हैं, कल्पना करने पर जोर न दें—यह एक मोहभाव होगा। मैंने आपको यह अभी-अभी आप लोगों के मानसिक अवरोधों को हटाने के लिए कहा था। सुनिश्चित करें कि आप आसक्त न हों—सुनिश्चित करें कि आप इससे आसक्त न हों।
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