न्यूयॉर्क की मीटिंग में दी गयी फा की सीख
 

ली होंगज़ी
22 मार्च, 1997 ~ न्यूयॉर्क

कल के होने वाले सम्मेलन से पहले, मैं आपके प्रश्नों के उत्तर देना चाहूँगा—आज आप मुझसे पूछ सकते हैं।

शिष्य : क्या मेरे पति के पैसे खर्च करने को सद्गुण () खोने के रूप में माना जाएगा?

गुरुजी : पति-पत्नी का संबंध ऐसा ही होता है, इसलिए यह समस्या ही नहीं है। आप अब यह प्रश्न क्यों उठा रही हैं? क्योंकि लोगों ने इस मानवीय नैतिकता को भ्रष्ट कर दिया है। आजकल कुछ लोग नारी मुक्ति का समर्थन करते हैं, जो एक संवेदनशील मुद्दा है। कुछ लोग कहते हैं कि “हम स्त्रियाँ बहुत अधिक कष्ट उठाती हैं; महिलाओं को मुक्त किया जाना चाहिए; पुरुषों और महिलाओं को एक समान होना चाहिए; हम महिलाओं को बलवान होना चाहिए। ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ पुरुष महिलाओं के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते हैं, जो फिर प्रताड़ित अनुभव करती हैं। मैं आपको बता सकता हूँ कि जब यह समाज पतित हो जाता है, तो लोगों के लिए पतन के पीछे के कारकों को देखना या पतन कैसे हुआ यह देखना बहुत कठिन होता है; हर कोई समस्या में से ही समस्या पर चर्चा करना चाहता है।

वास्तव में, मैं आपको बता दूं कि नारी मुक्ति के लिए इस प्रकार का समर्थन भी कुछ ऐसा है जो मानव जाति के पतन के बाद ही होता है। ऐसा नहीं है कि पुरुषों द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है; बल्कि, पुरुष भी पुरुषों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं, महिलाएं भी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार कर रही हैं, और पुरुष भी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं; यह केवल इतना है कि पुरुषों द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार अधिक दिखाई देता है। वास्तव में, ऐसी महिलाएं भी होती हैं जिनके पास अधिकार होता है और वे पुरुषों के साथ दुर्व्यवहार करती हैं। यह पूरे समाज के नैतिक पतन के कारण है। तथ्य यह है कि एक पुरुष और एक महिला के बीच का संबंध शक्ति और कोमलता के बीच का है, इसलिए महिलाओं का पुरुषों द्वारा उत्पीड़ित होना अधिक प्रत्यक्ष होता है। लेकिन मैं आपको बता दूँ कि मैं क्यों कहता हूं कि यह परिस्थिति अनुचित है, और महिलाओं के लिए "स्वतंत्रता" और "आत्मनिर्भरता" का समर्थन अनुचित है। आज लोग हमेशा प्राचीन लोगों को आधुनिक लोगों की पतित धारणाओं से आंकते हैं, और सोचते हैं कि प्राचीन काल में महिलाओं पर अत्याचार किया जाता था। वास्तव में ऐसा बिलकुल भी नहीं है जैसे आधुनिक लोग इसकी कल्पना करते हैं। प्राचीन चीन में—पुरे संसार में, वास्तव में, पश्चिमी समाज में भी ऐसा ही था—पुरुष जानते थे कि अपनी पत्नियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, और वे अपनी पत्नियों का ध्यान रखते थे और देखभाल करते थे; और पत्नियाँ भी अपने पतियों का ध्यान रखना जानती थीं—इसी प्रकार यिन और यांग सह-अस्तित्व में थे। यदि दो यांग मिलते हैं तो वे लड़ते हैं; यदि दो यिन मिलते हैं तो भी यही होता है। यिन और यांग बस एक दूसरे के पूरक हैं, और इस प्रकार अपने सह-अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं।

परंतु आजकल, आप सभी इसके बारे में सोचें: एक बार नारी मुक्ति का समर्थन करने के बाद, महिलाओं को लगता है कि उनपर अत्याचार किया गया है और उन्हें उसका सामना करना चाहिए। किन्तु फिर क्या होता है? तलाक, लड़ाई, बच्चों को छोड़ देना और अन्य सामाजिक समस्याएं सामने आती हैं। मूल कारण यह नहीं है कि महिलाएं मुक्त हैं या नहीं, बल्कि मानव समाज की नैतिकता का पतन है—क्या यह कारण नहीं है? यही मूल कारण है। किसी समस्या को सुलझाने के लिए, यदि जो मूलभूत है उससे निपटा नहीं जाता है और घटना में से ही घटना का समाधान निकाला जाता है, तो इसका परिणाम केवल पहली समस्या का हल करना हो सकता है, लेकिन साथ ही एक नई समस्या सामने आ जाती है, और समाज ऐसे ही हमेशा विकृत पद्धति से विकसित होता जाता है। आज के समाज में बहुत से लोग समस्या का मूल्यांकन उसी विशिष्ट समस्या को ध्यान में रख कर करते हैं और एक जुझारू दृष्टिकोण के साथ संकट को हल करने का प्रयास करते हैं, जो इसका कभी हल नहीं कर सकता। मानवजाति नहीं जानती कि हाल के दिनों में यह ऐसा क्यों हो गया है। जब वे हमेशा उसी चीज को ध्यान में रख कर उसका समाधान ढूंढते हैं, तो वे प्रतिबंध लगाने के लिए सभी प्रकार के नियम बनाते हैं। लेकिन जब लोगों के मन सदाचारी नहीं होते हैं, नई, विकृत और बदतर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं; फिर वे और नियम बनाते हैं। मानवजाति इस प्रकार अपने आप को सीमित कर रही है, और अंत में यह स्वयं को इस हद तक सीमित कर लेती है कि उसके पास बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं बचता। इसके अतिरिक्त, ये चीजें अपने साथ बहुत सी सामाजिक समस्याएँ लेकर आती हैं।

यिन और यांग के सिद्धांत के अनुसार, महिलाओं को कोमल होना चाहिए न कि बलवान। पुरुष यांग होते है और बलवान होते हैं, जबकि महिला यिन होती हैं और कोमल होती हैं। जब शक्ति और कोमलता को एक साथ रखा जाता है, तो निश्चित रूप से यह वास्तव में सामंजस्यपूर्ण होता है। आजकल, ऐसा नहीं है कि पुरुष महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना चाहते हैं, लेकिन यह कि यह समाज पतित हो गया है। पुरुष और महिला दोनों दूसरों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं। साथ ही, आधुनिक समय में यिन और यांग का उलटफेर हुआ है, और यह चीन में सबसे अधिक देखा जाता है। खिलाडियों को देखें—महिलाएं हमेशा अधिक पदक जीत कर लाती हैं, जबकि पुरुष कभी कभी ही पदक जीत कर लाते हैं। मैं केवल एक उदाहरण दे रहा हूं। ऐसा क्यों है कि यिन अधिक बलवान है और यांग हर चीज में बहुत दुर्बल है? यह यिन और यांग के उलटने के कारण होता है। साथ ही तथाकथित नारी मुक्ति का समर्थन करने का दुष्प्रभाव भी है। यह समाज की नैतिकता का पतन है जो समाज में लोगों के हृदयों में अस्थिरता का कारण बनता है। वास्तव में, अपने मन में महिलाएं अपने पति को शर्मीला या महिलाओं जैसा पसंद नहीं करती हैं, है ना? उन्हें इस बात से घृणा है कि उनके पति में पर्याप्त पौरुष नहीं हैं और वे शक्तिशाली एवं कठोर नहीं हो सकते। लेकिन जब पुरुष बलवान और कठोर हो जाते हैं, तो महिलाएं इसे संभाल नहीं पाती हैं। क्या यह सच नहीं है?

लोग मानवजाति की सभी घटनाओं और अन्य सभी चीजों के पतन के मूलभूत कारणों की खोज करना नहीं जानते हैं। वे विशिष्ट समस्याओं में से ही विशिष्ट समस्याओं का समाधान करते हैं: जब यहां समस्याएं उत्पन्न होती हैं, तो वे यहाँ नियम बनाते हैं; जब वहाँ समस्याएँ आती हैं, तो वे वहाँ नियम बनाते हैं; और अंत में आपको सीमित कर दिया जाता है जैसे कि आप पिंजरे में बंद हैं और आगे नहीं बढ़ सकते। अंत में नियम कोई मार्ग नहीं बता सकते। सभी नियम बनाने वाले दूसरों को संचालित करना चाहते हैं; उन्होंने इस बारे में नहीं सोचा है कि नियम उल्टा उन्हें कैसे संचालित करते हैं। मनुष्य ने अपने लिए जो कुछ बनाया है उसके कारण ही वह पीड़ित हैं—क्या ऐसा नहीं है? इसलिए आपको समाज के मूल्यों की विकृति की धारा के साथ नहीं चलना चाहिए, ज्वार के साथ नहीं बहना चाहिए, या लहरों को धकेलना नहीं चाहिए—"क्योंकि साधारण लोग इसे इस प्रकार से करना चाहते हैं, हम भी उनके नेतृत्व का पालन करते हैं।" [इसी] लिए मैं कहता हूं कि हम साधारण लोगों की तरह नहीं हो सकते। साधारण लोग इन चीजों को नहीं देख सकते।

लोगों को संचालित करने के लिए कुछ "नियमों" का उपयोग करना मानव जाति के लिए अंतिम मार्ग नहीं है, बल्कि पूरी धरती पर सद्गुण () की साधना करना है। यदि लोगों की नैतिकता में सुधार होगा, तो लोगों द्वारा दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करने जैसी कोई बात नहीं होगी, और लोग एक-दूसरे का सम्मान करेंगे—क्या तब भी इतने सारे बुरे लोग हो सकेंगे? पुलिस की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। "इसके स्थान पर कि पुलिसकर्मी मुझपर नजर रखें, यदि मैं स्वयं ही बेहतर व्यवहार करूँगा, तो पुलिस की क्या आवश्यकता है?" यदि हर कोई सद्गुणों को संजोता है, तो नियमों की क्या आवश्यकता होगी? जैसा कि आप सभी जानते हैं, प्राचीन चीन में—विश्व के अन्य भागों में भी ऐसा ही था—जब मानव नैतिक स्तर बहुत ऊंचा था, तब वहाँ वे नियम नहीं थे। उनके पास नियम नहीं थे! केवल राजा के नियम थे जो बहुत ही साधारण थे। लोग अच्छे और बुरे का न्याय करने के लिए नैतिकता को मानक के रूप में उपयोग करते थे। आपने जो किया वह उचित था या नहीं यह आपके नैतिक मूल्यों पर निर्भर करता। "इस व्यक्ति के पास कोई सदगुण नहीं है"—यह वाक्य ही उसका न्याय करता था। क्षेत्रीय न्यायाधीश भी इसी प्रकार से मामलों का निर्णय करते थे। सदगुणहीन व्यक्ति को बांस से पीटा जाता था, और यदि वह पर्याप्त नहीं होता तो उसका सिर काट दिया जाता—"यह व्यक्ति अब मानव नहीं रहा, इसका सिर काट दिया जाए।" उसने मानवीय नैतिकता को भ्रष्ट कर दिया, इसलिए उसे समाप्त कर दिया गया। इस संसार में रहते हुए, मनुष्यों के पास मानवीय नैतिक मानक और नैतिक आचरण की मानवीय संहिताएँ होती हैं। इन चीजों के बिना वे पशुओं की तरह हैं, तो उन्हें क्यों रखा जाए? और क्या उन्हें समाप्त नहीं कर देना चाहिए? आज की मानव जाति की सोच को बदलना अब बहुत कठीन है। आपने आज महिलाओं के साथ जो स्थिति हुई है, उसे देखा है। लेकिन क्या अन्य क्षेत्रों में चीजें समान नहीं हैं? मानव समाज में बहुत सारी सामाजिक समस्याएँ हैं। लोगों के मन को सुधारना ही एकमात्र उपाय है।

शिष्य : युवा वर्ग विवाह करना चाहता है। क्या यह मोहभाव है?

गुरुजी : क्योंकि मुख्य भूमि चीन में भी बहुत से लोग हैं जो मंदिरों में नहीं जाते हैं—कॉकेशियन और अन्य प्रजातियों की तो बात ही छोड़ दें—यदि मैं एक भिक्षु बन जाता हूं और मंदिरों में इस फा को सिखाता हूं, तो जनता के बीच उन अत्यधिक लोगों को सक्षम बनाना, जो वास्तव में फा को प्राप्त कर सकते हैं उनके लिए फा को प्राप्त करना असंभव होगा। क्योंकि मैंने इसे समाज में सिखाया है, और इस रूप का उपयोग आपको फा प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए किया है, हमें एक ऐसी पद्धति अपनानी चाहिए जो इस समाज के तरीकों के अनुरूप हो, लोगों के जीवन के सामान्य तरीकों के अनुरूप हो, और जो लोगों को साधना अभ्यास करने में भी सक्षम बनाती हो। इसलिए हमने फा की शिक्षा के स्वरूप और विभिन्न चीजों के विवरण के संबंध में सावधानीपूर्वक व्यवस्था की है।

यदि मैं किसी मंदिर या मठ में जाता तो मैं अविवाहित रह सकता था। लेकिन मैं यह भी जानता था कि भविष्य में बहुत से लोग इस फा को सीखेंगे। भविष्य में हर कोई इसके बारे में जानेगा—चाहे आप श्वेत जाति के हों, पीली जाति के हों, या किसी भी प्रकार के व्यक्ति हों, आप निश्चित रूप से इसके बारे में जानेंगे। तब एक बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी: क्या होगा यदि अब से कोई विवाह नहीं करता? …वे मेरे जैसा बनना चाहते हैं। क्योंकि फा को सिखाते समय मैं अपने आचरण से एक उदाहरण भी स्थापित कर रहा हूं, ऐसा लगता है कि मेरे द्वारा किया गया हर एक कार्य—यहां तक कि जिस प्रकार से मैं वस्त्र पहनता हूं—कुछ लोगों द्वारा उसकी नकल की जाती है। इसलिए मैंने इन छोटी-बड़ी बातों पर विशेष ध्यान दिया है। मैं जो फा सिखा रहा हूं, वह न केवल सच्चा है, मुझे भी सच्चा होना होगा। जिस चित्र में मैं कसाया पहनता हूँ वह भविष्य के शिष्यों के लिए छोड़ दिया जायेगा जो पूर्णकालिक साधना करेंगे। फिर भी साधारण मानव समाज में बुद्ध फा की शिक्षा, पश्चिमी सूट पहने हुए, स्वर्ग और पृथ्वी की शुरुआत के बाद से पहली बार और बिना किसी पूर्व उदाहरण के है। क्योंकि फा को इस प्रकार सिखाया गया है, हमारी साधना को इस समाज के तरीके के अनुरूप होना होगा।

यदि मैंने कुछ अनुचित किया, तो भविष्य की मानवजाति बहुत बदल जाएगी। आप सभी जानते हैं कि बुद्ध मांस नहीं खाते हैं। साधना के अनेक मार्ग हैं। हालांकि उनमें से सभी मांस खाने के बारे में बौद्ध धर्म की तरह कड़े नहीं हैं, साधना के लिए मांस से दूर रहने की आवश्यकता होती है। क्योंकि मैं इस फा को साधारण लोगों के बीच सिखा रहा हूँ और साधकों को साधारण लोगों के बीच साधना अभ्यास करवा रहा हूँ, बहुत से लोगों का इसे सीखने के कारण, यदि मैं मांस नहीं खाऊँगा, तो भविष्य में लोग इसे नहीं खाएँगे, और मानव जाति की जीवन शैली और आहार बदल जायेंगे। लेकिन देव जानते हैं कि मांस वास्तव में मानव शरीर को बहुत हद तक बलवान बना सकता है, और इस कार्य का स्थान शाकाहारी भोजन नहीं ले सकता है—यह निश्चित है। निःसंदेह, यह हम साधकों के लिए भिन्न है। मांस खाने के बिना, एक साधक का स्वास्थ्य, इसके विपरीत, बहुत अच्छा रहता है, जो कि साधना के कारण होता है। जहाँ तक एक साधारण व्यक्ति की बात है, यदि वह साधना अभ्यास नहीं करता है और मांस नहीं खाता है, तो उसमें पोषण की कमी होगी ही—यह निश्चित है।

जहाँ तक विवाह न करने की बात है, यदि संतान न होती तो क्या मानवजाति समाप्त नहीं हो जाती? हमने सब कुछ ध्यान में रखा है। यह सच है कि बौद्ध भिक्षु बनने वाले साधकों के विवाह पर प्रतिबंध लगाने का एक नियम है। लेकिन यह अन्य साधना विधियों में आवश्यक नहीं है। अतीत में, भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक अवधियों, मानवजाति के भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक कालखंडों, या मानवजाति की सभ्यताओं के विभिन्न कालखंडों के कारण लोगों के लिए साधना अभ्यास की भिन्न-भिन्न आवश्यकताएं थीं।

विवाह न करने का ध्येय मनुष्य की दो चीजों—इच्छा और यौन आकर्षण को दूर करना है। किन्तु जब आप साधारण लोगों के बीच साधना का अभ्यास करते हैं तो ऐसा शुरुआत से ही नहीं किया जा सकता है, क्योंकि मानव जाति को अभी भी वृद्धि की आवश्यकता है। और हमारे पास साधारण लोगों के समाज में इतने सारे लोग साधना कर रहे हैं। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि साधक साधारण लोगों के समाज में साधना अभ्यास करें, साथ ही साथ यह भी चाहते हैं कि वे समाज में साधारण लोगों के जीवन के शैली से दूर हो जाएँ ... मानव समाज को वास्तव में लुप्त होने की अनुमति बिल्कुल नहीं है! आप सोचते हैं कि मानवजाति अच्छी नहीं है, फिर भी यह हमारे इस ब्रह्माण्ड का एक भाग है, जो ऊपर से नीचे तक फैला हुआ है, और यह निम्नतम स्तर पर इस फा की अभिव्यक्ति का भी एक भाग है। मानव जाति का अस्तित्व समाप्त नहीं हो सकता। लेकिन इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप एक व्यक्ति के रूप में विवाह नहीं करना चाहते हैं। यह एक व्यक्तिगत मामला है और यह अनुचित नहीं है। लेकिन एक बात है: किसी का विवाह न करना कोई मोहभाव नहीं है। हमें भूल से एक और रुकावट से बाधित नहीं होना चाहिए—कि व्यक्ति को फल पदवी तक पहुँचने के लिए संसारी जगत को छोड़ना होगा।

उदाहरण के लिए, जिन लोगों ने कई हज़ार वर्षों से चली आ रही साधना विधियों का पालन किया है, वे विवाह नहीं करते हैं—चाहे वे बुध्द विचारधारा के हों, ताओ विचारधारा के हों, मूल कैथोलिक धर्म, ईसाई धर्म के हों, या वे जो पहाड़ों में साधना करते हों। तो इससे लोगों ने अपनी समझ में एक धारणा बना ली है: जब तक एक व्यक्ति साधना अभ्यास करता है, वह विवाह नहीं कर सकता। यह प्रमुख हस्तक्षेप है क्योंकि हमारा दाफा आज संसार में फैला हुआ है। सुनिश्चित करें कि हमारे शिष्य जो संसारी जगत में साधना का अभ्यास करते हैं, ऐसा न हो कि वे इस बाधा के कारण विवाह न करें। आज जो हमारी साधना का रूप है वह लोगों के सबसे जटिल समूह के बीच में आपके सुधार के लिए है, न कि केवल आपकी सह आत्मा (फू युआनशेन) के सुधार या किसी और चीज की साधना करने के लिए है। तो आपको इन सबसे जटिल साधारण लोगों के बीच अपने मन को तपाना होगा। संसारी जगत में अभ्यास करने वाले शिष्यों को साधारण मानव समाज के आचरण के अनुरूप होना चाहिए। यह इस सुगठित रूप से बुने हुए फा का एक भाग है। क्या आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ? किन्तु यौन इच्छा और आकर्षण ऐसे मोहभाव हैं जिन्हें निश्चित रूप से नष्ट करने की आवश्यकता है। उन प्राचीन साधना विधियों या उन प्राचीन धर्मों की साधना विधियों से यह भ्रम पैदा न होने दें कि हमें भी उसी प्रकार से साधना अभ्यास करना होगा। ऐसा नहीं है। आज हमारी साधना का रूप वह साधना पद्धति है जो मैंने आपके लिए छोड़ी है, जिसमें हमारे इस फा को आज समाज में जिस तरह से फैलाया गया है वे सभी विभिन्न आवश्यकताएं सम्मिलित हैं—ये सभी भविष्य की पीढ़ियों के लिए छोड़े जा रहे हैं।

आप सभी हमारे स्पष्ट नियमों के बारे में जानते हैं। उदाहरण के लिए: हम राजनीति में सम्मिलित नहीं होते; हम चीजों को प्रशासित करने के लिए वास्तविकता में संगठनों की स्थापना नहीं करते हैं; हम पदानुक्रम स्थापित नहीं करते हैं; और हम धन को हाथ नहीं लगाते। यह फा निश्चित रूप से लोगों को आधिकारिक पद नहीं देगा। चाहे आप जो भी करते हैं या समाज में आपका कितना ऊंचा स्थान है—इससे आपकी साधना प्रभावित नहीं होगी। ये सामान्य मानव समाज के विषय हैं; आपकी साधना आपकी साधना है। आपको अपनी साधना और साधारण लोगों के बीच जो आप करते हैं उसमें अंतर करना चाहिए—वे दो भिन्न बातें हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप साधारण लोगों के बीच जो कार्य करते हैं वह साधारण मानव समाज और मानव जाति के लिए लाभदायक है, तो आप सद्गुण संचित कर रहे हैं लेकिन साधना अभ्यास नहीं कर रहे हैं—वे दो भिन्न-भिन्न चीजें हैं, इसलिए आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि आप उन्हें एक साथ न मिलाएं। कुछ लोग कहते हैं, "मैं अपने काम में पुण्य जमा करता हूँ और अच्छे कार्य करता हूँ, इसलिए मैं भविष्य में फल पदवी तक पहुँचूँगा।" यदि कोई व्यक्ति वास्तव में साधना अभ्यास नहीं करता है, भले ही वह किसी धर्म का प्रमुख या नेता बन जाए, या भले ही वह मंदिरों का निर्माण करे और बुद्ध की मूर्तियों को खड़ा करे, वह फल पदवी तक नहीं पहुँचेगा। यह एक आत्म-संतोषजनक विचार है। काम तो काम है, और यह कभी भी साधना का स्थान नहीं ले सकता; साधना साधना है; साधारण लोगों की वस्तुएँ साधारण लोगों की वस्तुएँ होती हैं। धर्मों के लिए कार्य करना वैसा ही है जैसे साधारण लोगों के लिए कार्य करना; जिन्होंने धार्मिक जीवन अपना लिया है वे बुद्ध नहीं हैं। बुद्ध लोगों के हृदयों को स्वीकार करते हैं, लेकिन धर्मों को नहीं। यह दो भिन्न-भिन्न विषय हैं—इन्हें आपस में न जोडें।

शिष्य : गुरुजी, शेन्ज़ेन और ग्वांगझू के शिष्यों की ओर से, मैं आपको अभिवादन देना चाहता हूं। मेरे आने से पहले, उन्होंने मुझे कहा कि मैं यह संदेश आप तक अवश्य पहुँचाऊँ।

गुरुजी : उन्हें बताएं कि गुरुजी अपने मन में अपने सभी शिष्यों के बारे में सोचते रहते हैं।

शिष्य : कॉलेज की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने वाले हाई स्कूल के शिष्य वास्तव में अपने स्कूल के काम में व्यस्त हो जाते हैं और व्यायाम कम करते हैं। इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए?

गुरुजी : यह कोई समस्या नहीं है। हमारी साधना पद्धति में गतिक्रियाएँ फल पदवी तक पहुँचने के लिए एक पूरक साधन हैं। हालांकि वे महत्वपूर्ण हैं, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने ह्रदय और मन की साधना करें। यदि आप हमेशा अपने आप को एक अभ्यासी के रूप में मानते हैं और यदि एक अवधि के लिए—भले ही यह बहुत लंबी अवधि हो—आप वास्तव में व्यस्त हैं और अभ्यास नहीं कर पा रहे हैं, किन्तु भीतर, गहराई से आप हमेशा स्वयं को एक अभ्यासी के रूप में मानते हैं और स्वयं आवश्यकताओं के अनुसार चलते हैं, तो आपका गोंग अभी भी बढ़ेगा। किन्तु एक बात है: यह अस्वीकार्य है यदि आप सोचते हैं, "तो क्योंकि गुरूजी ने यह कहा है, हम अब व्यायाम नहीं करेंगे।" वह दूसरे चरम पर जाना होगा। क्योंकि परिस्थितियां विशेष हैं, इसलिए इनपर विशेष रूप से ध्यान दिया जायेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि बुध्द फा असीम है। "बुद्ध फा असीम है" का क्या अर्थ है? इसमें असीमित मार्ग हैं; इसमें प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति के अनुसार, लोगों को बचाने के बहुत सारे मार्ग हैं।

शिष्य : गुरुजी, क्या कल वीडियोटेपिंग की अनुमति होगी?

गुरुजी : आपने सुना होगा कि मुख्य भूमि चीन में, बहुत से लोग इस फा को सीख रहे हैं जो हम सिखा रहे हैं, और मैं अब व्याख्यान नहीं दे रहा हूँ। न ही मैं मुख्य भूमि चीन में शिष्यों से मिलता हूं। वास्तव में, मैं मुख्य भूमि चीन में तीन वर्षों से शिष्यों से नहीं मिला हूं। लेकिन अधिक से अधिक लोग सीख रहे हैं, और इसने समाज का ध्यान आकर्षित किया है। वे देखते हैं कि बहुत से लोग सीख रहे हैं। इसके अतिरिक्त, जब लोग इसे सीखते हैं तो वे सभी अनुभव करते हैं कि यह अच्छा है। जैसा कि आप अभ्यासी कहते हैं, लोग इसे सीखने के बाद साधना में दृढ़ संकल्पित हो जाते हैं। फिर एक बार जब लोगों की संख्या ध्यान देने योग्य हो जाती है, तो चीनी समाज में, कुछ लोग थोड़ा सोचने लग जाते हैं। बहुत से लोग साधारण मानवीय सोच के साथ मेरा और फा का आकलन कर सकते हैं। लोगों के लिए भले कार्य करना भी बहुत कठिन है, क्योंकि लोगों के मन पवित्र नहीं हैं। हम इन अनावश्यक कष्टों से बचने का प्रयत्न करते हैं। इसीलिए हाल के दिनों में जब मैं कुछ देशों में शिष्यों से मिला, तो मैंने उनसे कहा कि वे इसका ऑडियो टेप या वीडियो टेप न बनाएं। कारण क्या था? इन चीजों को चीन में फैलाना कम करना था। हालाँकि हम राजनीति में भाग नहीं लेते हैं—इसलिए निःसंदेह यहाँ राजनीति का कोई प्रश्न ही नहीं है—बुरे लोग हमें अप्रासंगिक हानि पहुँचा सकते हैं, क्योंकि वे समस्या उत्पन्न करना चाहते हैं। मुख्य कारण समस्या से बचना है और जिससे हमारे इस फा को मानव जाति और भविष्य के लिए उचित ढंग से और बिना किसी गलती या भटकाव के छोड़ा जा सके। यदि हमें कोई अनावश्यक हानि होती है, तो यह भविष्य में पछतावे का कारण होगा। हम केवल वर्तमान के बारे में नहीं सोच सकते।

चाहे वह ऑडियो हो या वीडियो रिकॉर्डिंग, वे निश्चित रूप से भविष्य में नहीं रहेंगे—यह निश्चित है। जैसा कि आप जानते हैं, उनमें से कुछ अब पहले से ही मिटाए जा रहे हैं; अर्थात्, कुछ वीडियोटेप जो पहले बनाए गए थे, उनकी छवियां पहले ही लुप्त हो चुकी हैं, और ऑडियोटेप की ध्वनि लुप्त हो चुकी है। उन्हें धीरे-धीरे मिटाया जा रहा है। कुछ चीजें इस तरह नहीं रखी जा सकतीं। जब अन्य मेरी वह बात सुनते हैं जो आपकी परिस्थिति के अनुसार होती है, उनकी परिस्थिति भिन्न होगी और वे इसे भिन्न प्रकार से समझेंगे। ज़ुआन फालुन सभी के पढ़ने के लिए उपयुक्त है। यह स्थिति है। यह आपके ऊपर है कि क्या करना है। मैंने इस बारे में कोई पक्का उत्तर नहीं दिया है।

शिष्य : गुरुजी, मैं शंघाई से हूँ। शंघाई के शिष्य वास्तव में आपको बहुत याद करते हैं। पिछले अंतर्राष्ट्रीय अनुभव साझाकरण सम्मेलन से लौटने के बाद, मैंने उनसे कहा कि मैंने आपको देखा है, और उन सभी के अश्रु बहने लगे। उन्होंने मुझे आपको उनका अभिवादन पहुँचाने के लिए कहा।

गुरुजी : उन्हें बताएं कि मुझे खेद है कि मैं उस समय शंघाई नहीं जा सका जब मैं अभ्यास सिखा रहा था। क्योंकि उस समय मैं इस फा का एक पवित्र मार्ग को छोड़ कर जाना चाहता था, मैं अन्य चीगोंग गुरुओं की तरह नहीं था जो सड़क पर जंगली जड़ी-बूटियों के फेरीवालों की तरह काम करते हैं या जो भाग-दौड़ करके स्वयं ही अपना व्यापार करते हैं। मैं केवल स्थानीय चीगोंग संगठनों, चीगोंग साइंस एंड रिसर्च सोसाइटी, या सरकारी एजेंसियों द्वारा आमंत्रित किए जाने पर ही गया था। शंघाई ने निमंत्रण नहीं दिया, इसलिए यह बात आगे नहीं बढ़ी। बाद में जब तक यह निमंत्रण भेजा गया, तब तक मैंने अभ्यास सिखाना बंद कर दिया था। लेकिन मुझे बहुत खेद है कि मैं फा को सिखाने के लिए चीन के इस बड़े शहर में नहीं जा सका। बीजिंग के बाद, शंघाई चीन का सबसे बड़ा शहर है। निःसंदेह, मुझे पता है कि बहुत से लोग अब शंघाई में फा का अध्ययन कर रहे हैं। जो बात मुझे अच्छी लगती है वह यह है कि यद्यपि मैं वहां नहीं गया था, मुझे लगता है कि शंघाई में दाफा का प्रसार और विकास का समग्र तरीका अच्छा रहा है, और उन्होंने इसका ठोस रूप से अध्ययन किया है—यह अच्छा है।

शिष्य : गुरु ली, मैं बीजिंग का एक शिष्य हूँ। बीजिंग के सभी शिष्यों ने आपको अपना अभिवादन भेजा है।

गुरुजी : जो बीजिंग में हैं, और वास्तव में केवल बीजिंग में ही नहीं—यही बात कई क्षेत्रों के शिष्यों के लिए भी लागू होती है—मैं भी आपको याद करता हूं। लेकिन मुझे आपसे मिलने में झिझक हो रही है, क्योंकि एक बार आपसे मिलने के बाद, यदि एक व्यक्ति मुझे देखता है, तो कुछ ही घंटों में दर्जनों लोग आ जाएंगे; एक दिन में कई हजार लोग आ सकते हैं; और अगले दिन दस हजार से अधिक लोग आ सकते हैं। अन्य क्षेत्रों के लोग भी आ सकते हैं—आज ही की तरह, बहुत से लोग अन्य क्षेत्रों से आए थे। तो यह समाज में कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाओं को उत्पन्न कर सकता है, इसलिए मैं आपसे नहीं मिल सकता। लेकिन मुझे यह भी लगता है कि क्योंकि हम एक कड़ी सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप फा को बिना किसी समस्या के फैलाने में सक्षम हैं, इसलिए हमने इतिहास की एक बहुत ही गंभीर अवधि में एक परीक्षा उत्तीर्ण की है। तो इतिहास में भविष्य के किसी भी काल में हम अपरिजित रहने में सक्षम होंगे, है ना?

शिष्य : हमारे ऐसे शिष्य हैं जो हांगकांग और चीन से ज़ुआन फालुन की प्रतियां लाए हैं। क्या इन पुस्तकों को सम्मेलन कक्ष में बेचना ठीक है?

गुरुजी : यदि आपके पास ज़ुआन फालुन की प्रतियां हैं, सम्मेलन में लोगों के लिए कुछ अच्छी चीजें करना चाहते हैं, और बिना पुस्तक वाले शिष्यों के लिए चीजों को सुविधाजनक बनाना चाहते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ भी अनुचित है—आप ऐसा कर सकते हैं। क्योंकि आप प्रसिद्धि या स्वार्थ की इच्छा नहीं रख रहे हैं, इसमें कोई समस्या नहीं है। किन्तु इससे पहले कि हम इन चीजों को करें, यू.एस. में प्रभारी लोगों को बता दें जिससे अन्य प्रकार के दुष्प्रभावों से बचा जा सके। मुझे नहीं लगता कि यह कोई समस्या है।

आप में से जो लोग यहां मुझसे पिछली बार मिले थे, वे पहले ही साधना की एक अवधि से गुजर चुके हैं। मुझे लगता है कि आपने फा की समझ का एक निश्चित स्तर प्राप्त कर लिया है और आप अनुत्तरदायी व्यवहार नहीं करेंगे। मुझे इतना विश्वास क्यों है? क्योंकि आप जानते हैं कि मैं क्या सिखा रहा हूँ। हमें कुछ नहीं चाहिए—केवल लोगों के मन। यदि इन लोगों का मन परिवर्तित नहीं हो सकता है, तो यह फा किसी काम का नहीं रहेगा। कोई भी बलपूर्वक तरीका लोगों के मन को नहीं बदल सकता, इसलिए हमने यह नियम या वह नियम नहीं बनाया है या आपसे यह या वह करने की आवश्यकता नहीं रखी है—हम ऐसा नहीं कर रहे हैं। तथ्य यह है कि यह फा स्वयं ही अपने आपको स्वस्थ रूप से विकसित करने में सक्षम है, अधिक से अधिक लोगों को सिखा सकता है, और समाज में इतनी अच्छी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि फा पहले से ही लोगों के मन में है, क्योंकि वे जानते हैं कि स्वयं को कैसे संचालित करना है, और क्योंकि उन्हें अब किसी और की आवश्यकता नहीं है यह बताने के लिए कि उन्हें क्या करना है और उन्हें मेरी भी आवश्यकता नहीं है यह बताने के लिए कि उन्हें क्या करना चाहिए। इसलिए मैं इसे लेकर अधिक चिंतित नहीं हूं। यदि यहां उपस्थित हममें से कोई एक काम ठीक से नहीं करता है, तो हम में से बाकी लोगों को तुरंत पता चल जायेगा। फा यहाँ है; आपके पास चीजों का मूल्यांकन करने के लिए फा है। यह निश्चित रूप से ऐसे ही कार्य करता है।

शिष्य : गुरूजी ने कहा है कि यह फा केवल हम चीनी लोगों में ही नहीं, बल्कि अन्य प्रजातियों में भी फैलाया जाना चाहिए। हम आशा करते हैं कि गुरुजी इस बारे में मार्गदर्शन प्रदान करेंगे कि इस फा को अन्य लोगों तक व्यापक रूप से कैसे फैलाया जाए।

गुरुजी : हमारे पास इस पर कोई विशेष नियम भी नहीं है। फा को लोगों के लिए सार्वजनिक कर दिया गया है। अब तक, पुस्तक का, जर्मन, जापानी, कोरियाई, फ्रेंच, अंग्रेजी, रूसी और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। ऐसे और भी बहुत से हैं। इसके अतिरिक्त, इटालियन अनुवाद भी शायद हो रहा है, और अन्य भाषाओं में अनुवादों पर तीव्रता से काम किया जा रहा है।

अनुवाद समूह इस प्रकार की चीजों पर काम कर रहे हैं, क्योंकि अनुवाद उपलब्ध होने के बाद लोग उन्हें पढ़ पाएंगे। जहाँ तक [फा] के प्रचार करने की बात है, हमारे पास ऐसा कोई नियम नहीं है जो यह निर्धारित करे कि इसे इस प्रकार या उस प्रकार से किया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि इस फा का प्रचार करते समय हम इस फा को अच्छा मानते हैं, और इसलिए लोग इसे संजोते हैं। क्योंकि यह वास्तव में अच्छा है, आप इसके बारे में दूसरों को बताना चाहते हैं। तो जिस प्रकार से यह फा फैला है वह पूरी तरह से मन से मन और व्यक्ति से व्यक्ति से हुआ है। मूल रूप से यह इस तरह प्रचारित होता है। चीन में, पहले से ही दो करोड़ से अधिक लोग सच्चाई से साधना कर रहे हैं। यदि उन लोगों की गिनती की जाए जो कभी साधना करते हैं कभी नहीं, तो अब दस करोड़ लोग होंगे। लेकिन उपरी तौर पर यह शांत प्रतीत होता है और समाज के लोगों द्वारा इसके बारे में नहीं जाना जाता है। अर्थात्, हर कोई इसे मन से मन के द्वारा फैला रहा है—एक दुसरे को बताकर और अपने मन से। यह पहले से ही एक बहुत बड़ा चलन बन चुका है। कोई विशेष नियम नहीं हैं, और हर कोई इसे अपनी इच्छा से करता है। क्या आप समझे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ? हम किसी प्रकार की औपचारिकता की शर्त नहीं रखते, क्योंकि बुध्द विचारधारा सभी संवेदनशील जीवों का उद्धार—लोगों को बचाना सिखाती है। ऐसा नहीं है कि आप जाकर लोगों को बचाते हैं, क्योंकि आप अभी भी साधना अभ्यास कर रहे हैं और आप निश्चित रूप से लोगों को नहीं बचा सकते। लेकिन आपका फा को दूसरों से परिचित कराना उन्हें फा प्राप्त करने में सहायता करने का सबसे अच्छा तरीका है। भविष्य में लोग जानेंगे कि यह कितना मूल्यवान है। चाहे आप किसी को कितना भी धन दें या कितनी भी अच्छी वस्तुएं दें, यह उसे फा देने जितना अच्छा नहीं है। फा एक क्षेत्र, एक राष्ट्र, एक देश, या यहां तक कि मानव जाति को उसकी नैतिकता को पुनर्स्थापित करने और आनंदित, शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण होने में सक्षम बना सकता है। केवल इन चीजों से ही मानव जाति का स्वस्थ तरीके से विकास हो सकता है।

शिष्य : फालुन बुद्ध फा सीखने के बाद, पहली चीज जो मैं करना चाहता था वह थी कड़ी मेहनत करना और अच्छे से अपना कार्य करना। मैं पुस्तक तब पढ़ता हूं जब मेरे पास वास्तव में करने के लिए कुछ नहीं होता है।

गुरुजी : क्या यह सबसे अच्छा नहीं है? हो सकता है कि आपके जीवन में, कार्यस्थल पर, या समाज में जिन वस्तुओं का आप सामना करते हैं वे आपके कुछ मोहभाव संबंधित सुधार करने में आपकी सहायता कर सकती हैं। जब आपका सामना किसी वस्तु से होता है, तो हो सकता है कि यह आपके मोहभावों को हटाने के लिए हो या किसी परिस्थिति में आपकी सहायता करने के लिए हो। एक बार जब कोई व्यक्ति साधना मार्ग पर कदम रखता है, तब से उसके जीवन में कुछ भी आकस्मिक नहीं होगा। क्योंकि आपकी साधना क्रमानुसार व्यवस्थित की गई है और समय इतना अधिक नहीं है, तो ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता है जो संयोग से हो। हर चीज की सुगठित व्यवस्था की गयी है। आपके दैनिक जीवन में होने वाली उन आकस्मिक और छोटी प्रतीत होने वाली घटनाओं को संयोग के रूप में न लें, क्योंकि आपके साथ बहुत सी असामान्य घटनाएँ नहीं हो सकती हैं और आप साधना अभ्यास करने के लिए दूसरे आयाम में नहीं जा सकते हैं—आप इस प्रकार अपने ह्रदय और मन को बेहतर बनाने में सक्षम नहीं होंगे। आप अभी भी ऐसी परिस्थिति में हैं जहाँ आप सांसारिक चीजों के बीच हैं, आपकी समस्याएँ अभी भी सामान्य मानवीय समस्याएँ हैं, आपके जीने का तरीका अभी भी एक साधारण व्यक्ति का है, और जिन चीजों का आप सामना करते हैं वे पहले से बहुत भिन्न नहीं हैं। लेकिन यदि आप इसके बारे में ध्यान से सोचते हैं, तो वे समान नहीं हैं। वे सभी आपको साधना में सुधार करने में सक्षम बनाने के लिए होती हैं।

शिष्य : आप सत्य-करुणा-सहनशीलता सिखाते हैं। एक विशेष परिस्थिति में, हो सकता है किसी ने दूसरों को धोखा दिया हो, और उस स्थिति में हमने दूसरों को उस बदमाश को सबक सिखाने में सहायता करने का वचन दिया हो।

गुरुजी : हम ऐसा सोचते हैं, और यह पुस्तक में भी है: जब आपका सामना किसी साधारण परिस्थिति से होता है जो आपको बहुत अधिक क्रोध दिलाता है और आप हस्तक्षेप करना चाहते हैं, तो ऐसा नहीं है कि आपको इसकी अनुमति नहीं है। जब आपके सामने ऐसा हो तो कुछ शब्द कहना आपके लिए ठीक है। शायद आपके शब्दों का कोई प्रभाव न हो, या हो सकता है कि आप जो कहते हैं वह परिस्थिति के अनुसार न हो, क्योंकि आप यह नहीं देख सकते कि उनके संघर्ष के पीछे क्या है, अर्थात उनका कर्म संबंध क्या है। उदाहरण के लिए, दो लोग हैं, और एक व्यक्ति को दूसरे द्वारा मुक्का मारा जाता है। आप सोचते हैं कि एक साधारण व्यक्ति के दृष्टिकोण से जिस व्यक्ति ने मुक्का मारा है वह अनुचित है—उसने उस व्यक्ति को मुक्का क्यों मारा? किन्तु यदि आप समय में पीछे जाते हैं, तो आप पाएंगे कि उस व्यक्ति के जीवन के पहले भाग में, या उस व्यक्ति के पिछले जीवन में, उसने इस व्यक्ति को एक बार मुक्का मारा था। जब हम साधक किसी व्यक्ति को देखते हैं, तो हम उसके एक जीवनकाल को नहीं देख सकते; हमें उसके पूरे अस्तित्व को देखना चाहिए। वह व्यक्ति इस व्यक्ति का ऋणी है।

पुलिस के लिए इन चीजों को संभालना उचित है, और यह साधारण लोगों के लिए सांसारिक सिद्धांतों के अनुरूप है कि वे साधारण लोगों को संभालें—इससे किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं होता है। लेकिन मैं कहूंगा कि साधकों को कम हस्तक्षेप करना चाहिए या जब वे इन चीजों को देखते हैं तो बिल्कुल भी हस्तक्षेप न करने का प्रयास करें। क्यों? क्योंकि एक बार जब आप हस्तक्षेप करते हैं तो संभावना है कि आप इसे गलत तरीके से संभालेंगे। जब यह ऐसा नहीं होता है, लेकिन आप, एक साधक, इसे उस प्रकार से करने पर बल देते हैं, तो आप इस चीज को विलंबित करके या इसे बिगाड़ कर कर्म उत्पन्न कर सकते हैं। कि देव ने पहले से ही उसके लिए इस जीवन में अपने कर्मों का भुगतान करने की व्यवस्था की थी, लेकिन अब वह इसके लिए भुगतान नहीं कर सकता है, और उन दोनों को फिर से इससे गुजरने का अवसर खोजना होगा। मेरे कहने का अर्थ यही है। लेकिन यदि आप वास्तव में हत्या या आगजनी जैसी भयानक चीजों के सामना करते हैं और आप उन्हें अनदेखा करते हैं, तो यह एक शिनशिंग की समस्या होगी। आप तो एक साधक हैं, एक देव भी उन चीजों के बारे में कुछ करेंगे, है ना? और फिर, साधारणतः हमारे शिष्य इस प्रकार की चीजों का सामना कभी-कभी ही करते हैं, या कभी भी नहीं करते हैं। अर्थात्, वे आपके जीवन में आपके लिए व्यवस्थित नहीं की गयी हैं, क्योंकि चीजों को आपके शिनशिंग में सुधार के लिए अनुकूल होना चाहिए। यदि ये चीजें काम की नहीं हैं, तो सामान्य परिस्थितियों में हमारे शिष्यों को कभी-कभी या लगभग कभी भी इनका सामना नहीं करना पड़ेगा।

जहाँ तक किसी के साथ विश्वासघात करने या किसी साधारण व्यक्ति को कुछ वचन देने की बात है, वे सभी साधारण लोगों के विषय हैं। एक बार जब आप साधना अभ्यास कर लेते हैं, तो आपको फा के साथ चीजों को मापने और अपने आप को एक साधक के मानकों पर रखने की आवश्यकता होती है। यदि आप हर चीज को साधारण लोगों के मानकों से मापते हैं—कि "धोखाधड़ी" या कि "एक साधारण व्यक्ति को वचन देकर"—क्या आप केवल एक साधारण व्यक्ति नहीं हैं?

शिष्य : विदेश में अमेरिका में रहने वाले सभी शिष्य एक प्रकार के मोहभाव के साथ उबाऊ प्राकृतिक विज्ञानों का अध्ययन कर रहे हैं।

गुरुजी : मैं इस बारे में शायद कल बात करूँगा। मैं आपको यह सिद्धांत बताता हूँ: मानव जाति का इतिहास और मानव जाति का विज्ञान वास्तव में एक भूल है। इसके विकास की नींव, साथ ही मानव जाति, प्रकृति और पदार्थ की समझ की नींव, सभी अनुचित हैं। और इसके परिणामस्वरूप आज के मानव समाज में नैतिकता का ह्रास हुआ है। यह एक प्रमुख मुद्दा है; मैं इसके बारे में कल बात करूंगा। लेकिन एक बात है: यदि मानव जाति के पास कोई ज्ञान नहीं होता, तो लोग आज ज़ुआन फालुन को पढ़ने में सक्षम नहीं होते, या कम से कम वे इसके उच्च और गहरे आंतरिक अर्थों को देखने में सक्षम नहीं होते। तो संभवतः यह संयोग नहीं है कि आपने वह ज्ञान प्राप्त किया है, जो आपने सीखा है। भविष्य की मानव जाति एक नए वैज्ञानिक आधार पर विकसित होगी, इसलिए उन्हें भी ज्ञान की आवश्यकता होगी।

मुझे लगता है कि एक दाफा शिष्य के रूप में आपको स्वाभाविक रूप से पता चल जाएगा कि समय आने पर क्या करना है। शायद ये बातें आकस्मिक भी नहीं हैं। तो अब आपको बस वही सीखना चाहिए जो आपको सीखना चाहिए और आपको इसे अपना मोहभाव नहीं समझना चाहिए। मैंने सुना है कि एक साधक शिष्य पहली बार यू.एस. गया तो उसने स्कूल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उससे कुछ अनुचित हो गया। मैं कहूंगा, हो सकता है कि उसने पहले कुछ अनुचित किया हो, लेकिन अब वह अपनी पिछली गलती को और बढ़ा रहा है। क्योंकि जो हुआ सो हुआ, भविष्य में जानबूझकर अपने जीवन के लिए कठिनाइयाँ पैदा न करें—आपके द्वारा की गई कुछ भूल उसी प्रकार ठीक नहीं की जा सकती हैं। आप अपने मन में जानते हैं कि आपने अनुचित किया है, आप जानते हैं कि आप इसे भविष्य में उस प्रकार नहीं करेंगे, और जब इन विषयों की बात आती है, जब तक आप भविष्य में बेहतर करते हैं और इसके लिए सफलतापूर्वक प्रयास करते हैं, तो यह ठीक होगा। तब मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई समस्या है। इन विषयों के लिए, हमारी यह आवश्यकता नहीं है कि आप वापस जाकर उस बात को पहले जैसा कर दें और अतीत के लिए भुगतान करें क्योंकि आपने इसे अनुचित प्रकार से किया था—हम इसे इस प्रकार नहीं करेंगे। दूसरे शब्दों में, अपनी साधना में कठिनाइयाँ उत्पन्न न करें, और अपने जीवन में कठिनाइयाँ उत्पन्न न करें। शिष्यों के लिए, अभी हम आपको केवल अच्छी तरह से अध्ययन करने के लिए कह सकते हैं—क्योंकि आप एक शिष्य हैं, आपको अच्छी तरह से अध्ययन करना चाहिए।

भले ही आप किसी अन्य प्रकार का कार्य करते हैं, क्योंकि यह साधारण मानव समाज में एक प्रकार का कार्य है और साधारण मानव समाज के सिद्धांतों के दृष्टिकोण से यह इस आयाम में मानव समाज की सेवा है, आपको भी इसे अच्छी तरह से करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि मानव जाति भी ब्रह्मांड के दाफा के निम्नतम स्तर पर जीवन की एक अभिव्यक्ति है।

शिष्य : गुरूजी, जर्मनी के शिष्यों की ओर से, मैं आपको सभी का सम्मान देना चाहता हूं।

गुरुजी : मैंने जर्मनी का निमंत्रण देखा। रूस ने भी पिछले नवंबर में न्यौता भेजा था जब वहां ठंड थी। जब वहां गर्मी आ जाएगी तो मैं जाने का समय निकालूँगा।

शिष्य : गुरूजी, मैं जापान में आकर बस गया हूँ। हम हमेशा चाहते हैं कि यदि भविष्य में आपके पास अवसर हो तो आप जापान आएं।

गुरुजी : जब मैंने गुआंगज़ौ में कक्षाएं आयोजित कीं तो जापान से भी कोई आया था। बाद में, वह जापान लौट गया और उसने कुछ लोगों को एकत्रित किया, जो सभी जापानी थे। ऐसा लगता है कि सीखने वाले सभी बुजुर्ग लोग थे। कुछ अवधि तक सीखने के बाद, वह अभी भी उस चीगोंग को नहीं छोड़ सका जिसका उसने पहले अभ्यास किया था, इसलिए हमने उससे कभी संपर्क नहीं किया। क्योंकि वे सभी लोग जिन्हें उन्होंने सिखाया था वे भी पवित्र नहीं हैं, हमने उनसे संपर्क नहीं किया।

शिष्य : मेरे पति जापानी हैं, लेकिन उन्हें दाफा बहुत पसंद है। वह सोचते है कि यह बहुत अच्छा है।

गुरुजी : संभवतः कुछ सांस्कृतिक अंतर है। लेकिन मुझे लगता है कि यदि जापानी वास्तव में इसे सीख सकते हैं, तो उनके लिए काकेशियन की तुलना में यह सरल होगा, क्योंकि पूर्वी लोगों के सोचने का तरीका एक जैसा है; पश्चिमी लोगों की सोच भिन्न होती है। लेकिन जब पश्चिमी लोगों ने इसे सीख लिया है, तो वे भी बहुत अच्छे हैं। मैं एक बार जापान गया था, लेकिन केवल यह देखने के लिए कि जापानी लोग कैसे कर रहे हैं।

शिष्य : यदि भविष्य में यह दाफा लोगों के मन का फा बन जाता है, तो सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में, जैसे कि दर्शनशास्त्र या साहित्य में चीजें कैसी होंगी?

गुरुजी : सब कुछ बदलेगा। और यह बिल्कुल नया होगा। इस समाज, मानवता और हर चीज के बारे में लोगों की समझ बदल जाएगी। तो अब बीजिंग में हमारे कई शिष्य जानते हैं कि वे अन्य लोगों से भिन्न हैं और यह कहावत फैला रहे हैं: "हम नई मानव जाति हैं।" निःसंदेह, मैं उनकी बातों का समर्थन नहीं कर रहा हूँ, मैं केवल यह बात बता रहा हूँ। यह निश्चित रूप से आज के लोगों के सोचने और चीजों को समझने के तरीके से भिन्न होगा—यह निश्चित है। जैसे-जैसे आप इस फा का गहराई से अध्ययन करना जारी रखेंगे, आपको हर चीज की एक नई समझ प्राप्त होगी। आप में से जो लोग यहां उपस्थित हैं, उनके पास अपेक्षाकृत उच्च पेशेवर पदवियां हैं, और कई शिष्य विदेशों में पढ़ रहे हैं। जैसे-जैसे आप धीरे-धीरे इसका अनुभव करते हैं और इसके बारे में सोचते हैं, आप पाएंगे कि मानव जाति की हर चीज के बारे में आपकी समझ में बदलाव आ रहा है। ऐसा इसलिए है, जैसा कि मैंने कहा, मानव जाति का विकास, मानव जाति की अपनी उत्पत्ति और मूल की समझ—विकासवाद का सिद्धांत बिल्कुल भी अस्तित्व में नहीं है—और इसकी पदार्थ की समझ, ब्रह्मांड की समझ, जीवन की समझ, हम से पहले के संसार की समझ, और इस ब्रह्मांडीय अंतरिक्ष की समझ सभी अनुचित नींव पर विकसित की गई हैं।

शिष्य : मुख्य आत्मा (झू युआनशेन) कब प्रवेश करती है...

गुरुजी : साधारणतः मुख्य आत्मा जन्म से कुछ ही देर पहले प्रवेश करती है, लेकिन विशिष्ट समय निश्चित नहीं होता है। यह जन्म से पहले का क्षण हो सकता है, या जन्म से बहुत पहले—आधा महीना, एक महीना, या इससे भी पहले—सभी संभव हैं।

शिष्य : मानव जाति द्वारा किये जाने वाले मनुष्यों की क्लोनिंग पर गुरूजी के क्या विचार है?

गुरुजी : जब मानव जाति के पास कोई नैतिक संहिता नहीं होती है तो वह कुछ भी करेगी। उस प्रकार के मानव के जन्म के बाद, उसके पास माता-पिता की अवधारणा नहीं होती है और उसके पास मानवीय सदाचार और नैतिकता की अवधारणा नहीं होती है—यह डरावना है। यह उस व्यक्ति को बदलने और उस व्यक्ति को मारने के लिए उसी व्यक्ति का क्लोन भी बना सकता है। ये चीजें मानव जाति की नैतिकता के पतन के बाद ही प्रकट होती हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि मानव क्लोनिंग होगी, क्योंकि देवलोक इसकी अनुमति नहीं देंगे। यहां तक कि यदि एक क्लोन बनाया भी गया तो, यह वह व्यक्ति नहीं होगा—केवल एक असुर उसमें प्रवेश कर सकता है, क्योंकि देवता उसे कोई मुख्य आत्मा नहीं देंगे।

शिष्य : यदि मिश्रित नस्ल के लोग साधना अभ्यास करते हैं, तो वे किस दिव्यलोक में जाएँगे?

गुरुजी : जहाँ तक मनुष्यों की बात है, मिश्रित नस्ल के लोगों के पास अब दिव्यलोक में उनसे संबंधित मानव जातियाँ नहीं हैं। यदि वे साधक हैं, तो उनका बाहरी रूप अब महत्वपूर्ण नहीं रह गया है और यह सब व्यक्ति की मुख्य आत्मा (युआनशेन) पर निर्भर करता है। यदि उसकी मुख्य आत्मा श्वेत जाति की है, तो वह श्वेत है; यदि उसकी मुख्य आत्मा पीली जाति की है, तो वह पीला है; यदि उसकी मुख्य आत्मा काली जाति की है, तो वह काला है। यदि वह साधना अभ्यास करता है तो यह अलग बात होगी।

शिष्य : क्या मिश्रित जाति का व्यक्ति साधना में सफल हो सकता है?

गुरुजी : कोई व्यक्ति साधना कर सकता है या नहीं और वह साधना में सफल हो सकता है या नहीं, यह सब उस व्यक्ति पर निर्भर करता है। यदि मिश्रित नस्ल का व्यक्ति दृढ़ता से साधना करता रहता है, तो वह भी फल पदवी तक पहुँच सकता है। जब वह साधना में सफल हो जाता है तो उसकी मुख्य आत्मा वहीं लौट जाएगी जहां से भी वह आया था।

शिष्य : पिछली बार आपने क्या कहा था कि मिश्रित जाति का व्यक्ति क्या खो देता है?

गुरुजी : वह उस शरीर को खो देता है जो ऊपर से नीचे यहाँ तक गुजरकर आता है। मैं इस प्रकार समझता हूँ: पीली जाति के लोगों के पास वहाँ ऊपर पीली जाति के लोग हैं, और श्वेत जाति के लोगों के पास वहाँ ऊपर श्वेत जाति के लोग हैं। उसने यह संबंध खो दिया है।

शिष्य : आपने कहा है कि एक बच्चे में जन्म के बाद ही एक मुख्य आत्मा होती है। तो क्या यह सच है कि गर्भावस्था के दौरान वहाँ जीवन का अस्तित्व नहीं होता है? कृपया समझाएँ।

गुरुजी : यह सच नहीं है। कुछ भी… मैंने कहा है कि जब कुछ भी सृजित किया जाता है तो उसमें एक जीवन प्रवेश करता है। एक कारखाने द्वारा बनाया गया उत्पाद, कुछ भी, आपको वे ऐसे दिखते हैं, लेकिन वे सभी जीवित होते हैं। जब मां के शरीर में भ्रूण बहुत छोटा होता है—जिस क्षण थोड़ा सा मांस बनता है—तो वह जीवित होता है। तो वह मुख्य आत्मा के बिना कैसे जीवित रह सकता है? मुख्य आत्मा के बिना भी उसका स्वयं का जीवन है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्यों के संदर्भ में, स्वयं के अतिरिक्त... क्या अतीत में साधना द्वारा तीन प्राण और सात आत्माओं के बारे में बात नहीं की गयी थी? निःसंदेह, उन्होंने जो कहा वह विशिष्ट नहीं था। मैं आपको केवल यह सोच बता रहा हूँ, कि, आपकी मुख्य आत्मा के अतिरिक्त, आपके शरीर में अन्य तत्व भी हैं जो मानव जीवन का निर्माण करते हैं। स्वयं आपके देह में भी आपके माता-पिता की छवियों वाला जीवन है—पिता और माता की छवियां भी जीवित हैं। मानव शरीर पहले से ही बहुत जटिल है।

शिष्य : तो क्या गर्भपात को भी हत्या माना जाना चाहिए?

गुरुजी : जी हाँ। गर्भावस्था के दौरान गर्भपात हत्या है। चाहे मानवीय नैतिकता कैसी भी हो गई हो, या मानवजाति या उसके नियम इसकी अनुमति देते हैं या नहीं—नियम देवताओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं—यदि आपने हत्या की है, तो आपने हत्या की है। आप यह तर्क दे सकते हैं कि नियम के अनुसार आपने हत्या नहीं की—यही मनुष्य कहते हैं। हमने पाया है कि प्रसूति अस्पतालों के आस-पास के स्थान में कई बच्चे हैं जिनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है—उनके शरीर के कुछ अंग नहीं हैं, या उनके पास पूरा शरीर है लेकिन वे सभी छोटे, शिशुओं के छोटे जीव हैं। मूल रूप से, इन जीवों का पुनर्जन्म हुआ था, और उनका अपना भविष्य हो सकता था और हो सकता है कि वे कई वर्षों तक जीवित रहे हों और फिर पुनर्जन्म के दूसरे चक्र में प्रवेश कर गए हों। लेकिन आप जाकर इनमें से एक को पैदा होने से पहले ही मार देते हैं। फिर उसे इन लंबे वर्षों के दौरान दुःख के साथ संघर्ष करना पड़ता है—वह छोटा सा जीव बिलकुल अकेला, यह बहुत दुःख की बात है! उसे तब तक रुकना होगा जब तक कि स्वर्ग द्वारा नियत पृथ्वी पर उसके सभी वर्ष समाप्त नहीं हो जाते, और उसके बाद ही वह पुनर्जन्म के अगले चक्र में प्रवेश कर सकता है। तो आपने अचानक उसे इतनी दुखदायी स्थिति में धकेल दिया—क्या आप कह सकते हैं कि यह हत्या नहीं है? और फिर, ऐसा करने का कर्म बहुत बड़ा होता है।

शिष्य : इस कर्म के साथ, क्या कोई व्यक्ति अब भी साधना कर सकता है?

गुरुजी : हां, निःसंदेह वह साधना कर सकता है। लेकिन जैसा कि मैंने कहा है, ब्रह्मांड का दाफा सर्वव्यापी है। जब एक विशेष स्तर से देखा जाता है तो, फा संपूर्ण हो जाता है। विभिन्न स्तरों का फा भिन्न होता है, और स्तर जितना ऊँचा होता है, सिद्धांतों की समझ उतनी ही स्पष्ट होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि आप वास्तव में फल पदवी तक साधना कर सकते हैं, तो वे निश्चित रूप से आपके ब्रह्मांड के जीव बन जाएंगे। तब कुछ लोग सोचते हैं, "तो फिर हत्या करने की चिंता नहीं करते।" जो कोई भी इस प्रकार सोचता है निश्चित रूप से साधना में सफल नहीं हो सकता। और यदि आप साधना में सफल नहीं होते हैं, तो आप उन जीवों का ऋण नहीं चुका सकते जिनकी आपने हत्या की है। मैं जो कह रहा हूं वह आप समझ रहे हैं? साधना इन चीजों की भरपाई कर सकती है, यदि यह साधना सच्ची है। फल पदवी के बाद कर्मफल निर्धारित किया जाएगा।

शिष्य : यदि गर्भपात बीस वर्ष पहले किया गया था जब मैं यह नहीं जानती थी और इसकी अनुमति थी, यदि मैं अब इतने अधिक कर्म के साथ साधना अभ्यास करती हूँ तो क्या होगा?

गुरुजी : केवल साधना पर ध्यान दें। वास्तव में, हममें से कई लोगों के साथ, कौन जानता है कि हमने अपने अनेक जन्मों में किस जन्म में क्या किया है; और कौन जानता है कि किसी भी जीवनकाल में हम पर कितने कर्मों का ऋण है। वर्तमान में सभी लोग कर्म के ऊपर कर्म को लेकर यहाँ तक पहुंचे हैं; कर्म से मुक्त लोग अस्तित्व में नहीं हैं। वास्तविकता में ऐसा कोई नहीं है जिसने हत्या न की हो; यह आवश्यक नहीं है कि हत्या का अर्थ मनुष्य की हत्या ही हो। क्योंकि हम आपको बचा सकते हैं, और क्योंकि आप साधना करने में सक्षम हैं और फा को प्राप्त कर चुके हैं, इन बातों के बारे में न सोचें। बस साधना पर ध्यान दें और मैं व्यवस्था कर दूंगा। यदि आप फल पदवी तक पहुँचते हैं तो इस विषय को उचित प्रकार से निपटाया जाएगा।

शिष्य : जर्मनी में कई फालुन दाफा शिष्य शिकारी हैं। वे कहते हैं कि लोमड़ियां मानव शरीर को ग्रसित करती हैं और वे अच्छी नहीं होती हैं। मैं अब तक ऐसा नहीं मानता।

गुरुजी : हम विशेषकर लोमड़ियों के विषय में बात नहीं करेंगे। यह संभव है कि भविष्य में उनका अस्तित्व नहीं होगा। लेकिन साधक होने के नाते, हमें प्रयत्न करना चाहिए कि हत्या के कार्य न करें। इसके अतिरिक्त, हममें दया है। जहाँ तक लोमड़ियों से ग्रसित होने की बात है, कई लोमड़ियों ने कुछ विशेष शक्तियाँ प्राप्त कर ली हैं; कुछ लोमड़ियों के पास विशेष शक्तियाँ नहीं होती हैं और वे मानव शरीर को ग्रसित करने में सक्षम नहीं होती हैं।

शिष्य : क्या भविष्य की मानवजाति को उच्चता की ओर साधना करने की आवश्यकता होगी?

गुरुजी : जब तक भविष्य की मानवजाति अस्तित्व में आएगी, तब तक लगभग आप सभी अपनी साधना समाप्त कर चुके होंगे; लेकिन वह [समय] भी शीघ्र ही आएगा। भविष्य में लोगों के लिए ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं छोड़ी जाएगी, और वे मेरी छवि को नहीं जान पाएंगे। कुछ लोग कहते हैं कि मैंने स्वर्ग के कई रहस्य उजागर कर दिए हैं। वास्तव में, भविष्य के लोगों ने मेरे फा की शिक्षा को नहीं सुना है। गलियों के लोग अभी भी फा को नहीं जानते हैं और न ही सुना है। निस्संदेह, यदि आप वास्तव में साधना अभ्यास करते हैं, फल पदवी तक पहुँचते हैं, और चले जाते हैं, तो मैं फा को देवताओं को सिखा रहा हूँ। इसलिए स्वर्ग के रहस्य मनुष्यों के लिए उजागर नहीं किए गए हैं। भविष्य के लोग एक अद्भुत अवधि में प्रवेश करेंगे, और उनके पास पर्याप्त आशीषें होंगी। उनके लिए साधना अभ्यास करना अपेक्षाकृत अधिक कठिन होगा, क्योंकि एक अच्छे वातावरण में उतनी पीड़ा नहीं होगी। इसलिए साधना अभ्यास करना बिल्कुल भी सरल नहीं होगा। लेकिन दूसरी ओर, यह भी सामान्य होगा—मानव संसार इतना कठिन या बुरा नहीं होगा, और यह सामान्य साधना का काल होगा।

साधना कठिनाई से भरी होती है। और यह उन कठिनाइयों तक ही सीमित नहीं है जिन्हें आप सह रहे हैं। मैंने यह पहले कहा है: "शीर्ष पर असहनीय रूप से ठंड होती है।" जो मैं कह रहा हूँ वह उससे भिन्न है जो साधारण लोग कहते हैं। अर्थात, जब आपका आयाम ऊंचा हो जाता है, आपका गोंग ऊंचा हो जाता है, उसी के अनुसार आपका सब कुछ सुधर जाता है, और आपके सोचने का तरीका भी बदल जाता है, बहुत कम लोगों के साथ आप चर्चा करने के लिए कुछ समानता पाएंगे। इस तरह आप बहुत अकेलापन अनुभव करेंगे, और अपने भीतर एक प्रकार की कठिनाई अनुभव करेंगे। फिर इसके साथ एक स्थिति उत्पन्न होती है: ऐसा लगेगा कि आपके पास बोलने के लिए कम है और साधारण लोगों के साथ संपर्क कम है, यहां तक कि अपने परिवार के सदस्यों के साथ भी—इस प्रकार से होना निश्चित है। लेकिन यह सब सामान्य है. हम बस इस संबंध को संतुलित करने का पूरा प्रयत्न करते हैं। यह इसलिए है क्योंकि आपको वास्तव में एक साधारण व्यक्ति नहीं माना जा सकता है। क्योंकि आप देवता हैं और क्योंकि अब आप साधारण लोग नहीं हैं... अतीत में, एक बार एक भिक्षु जिसने साधना का अभ्यास किया था, वह सांसारिक जगत छोड़ गया था, वह एक अर्ध-देवता था—निःसंदेह, आज के भिक्षु वैसे नहीं हैं, और उनमे वे गुण भी नहीं है। सांसारिक जगत छोड़ने पर उन्हें अर्ध-देवता क्यों कहा जाता था? पहले, जब कोई साधना करने वाला सांसारिक जगत छोड़ देता था, वह सभी सांसारिक बंधनों को तोड़ देता था। क्या आपको लगता है कि वह अभी भी मनुष्य था? निःसंदेह वह एक मनुष्य के समान नहीं हो सकता था। मनुष्य इन सामान्य मानवीय भावनाओं के बिना नहीं रह सकता। आपके द्वारा साधना अभ्यास करने और वास्तव में सुधार करने के बाद, आप पाएंगे कि आप उससे मोहभाव नहीं रखते हैं जिससे मनुष्य जुड़े हुए हैं, और आपको लगेगा कि मनुष्य जिस बारे में बात करना पसंद करते हैं वह बहुत ही उबाऊ है।

फिर आपमें और मनुष्यों के बीच एक अंतर होना निश्चित है, और यह अंतर बड़ा और बड़ा होता जाएगा। लेकिन आपको वस्तुओं के इस पहलू के बारे में बहुत अधिक नहीं सोचना चाहिए, क्योंकि एक बार जब आप इस स्थिति में प्रवेश करते हैं, तो आप धीरे-धीरे और थोडा-थोडा करके उन चीजों के संपर्क में आएंगे जिनके साथ आपको संपर्क में आना चाहिए, और आप धीरे-धीरे गोंग के खुलने (काइगोंग) और ज्ञानप्राप्ति (काइवू) तक पहुंच जाएंगे। आपके पास आपका आनंद है, मनुष्यों के पास मनुष्यों का आनंद है, और निश्चित रूप से, देवताओं के पास देवताओं का आनंद है।

शिष्य : जो बच्चे अमेरिका में पले-बढ़े हैं वे चीनी भाषा इतनी अच्छी तरह नहीं जानते। क्या उन्हें भविष्य में चीन वापस भेज दिया जाना चाहिए?

गुरुजी : मैं आपको बता सकता हूं कि मैं विदेश में कई जगहों पर गया हूं और मैंने यह समस्या हर जगह पायी है, इसलिए जब मैं अपने शिष्यों को देखता हूं तो मैं बहुधा उन्हें यह बताता हूं: सुनिश्चित करें कि आपके बच्चे चीनी भाषा सीखें; आप अपनी पीली जाति की विशेषताओं को नहीं खो सकते। क्योंकि कोकेशियान दिव्यलोक में आपके लिए कोई स्थान नहीं है, आपको पीली जाति के लोगों के दिव्यलोग में ही वापस जाना होगा। सबसे चिंता की बात यह है कि जब आप फा का अध्ययन करते हैं तो उसका सही अर्थ नहीं समझ पाते हैं। आज अनुवादित पुस्तकें इस मध्य की अवधि के दौरान लोगों को समझने की प्रक्रिया प्रदान करती हैं। ठीक हमारी फालुन गोंग पुस्तक की तरह, यह केवल लोगों की समझने की प्रक्रिया के लिए है, जबकि सच्ची साधना में व्यक्ति ज़ुआन फालुन का अनुसरण करता है। विदेशी भाषाओं में अनुवादित पुस्तकें भी आपके समझने की प्रक्रिया के दौरान के लिए हैं। यदि आप वास्तव में साधना अभ्यास करना चाहते हैं, तो आपको मूल ग्रंथ पढ़ने की आवश्यकता है। केवल मूल ग्रंथ से ही आप जान सकते हैं कि वास्तव में क्या है। अनुवाद—चाहे वे कितने भी अच्छे क्यों न किए गए हों—उथले हैं और उनमें आंतरिक अर्थ नहीं हैं। इसलिए हम में से बहुत से लोग पाते हैं कि हर बार जब आप पुस्तक पढ़ते हैं तो यह भिन्न होती है; जब आप एक ही वाक्य को भिन्न-भिन्न आयामों से पढ़ते हैं तो यह पूरी तरह से भिन्न होता है।

शिष्य : कुछ अनुभवी शिष्य नए शिष्यों के साथ चर्चा में सम्मिलित होने के इच्छुक नहीं हैं। क्या ऐसा करना उचित है?

गुरुजी : हमारी ऐसी कड़ी आवश्यकता नहीं है कि हर कोई अभ्यास करने के लिए अभ्यास स्थलों पर आए। मैं आपको केवल यह बता रहा हूं कि एक समूह के रूप में अभ्यास करना और अभ्यास स्थलों पर आपस में चर्चा करना आपको शीघ्र सुधार करने में सक्षम बनाता है—वे शिष्यों को बेहतर बनाने में सहायता करते हैं। यदि कोई घर पर अभ्यास करना चाहता है, तो वह घर पर अभ्यास कर सकता है—इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। हमारे पास कुछ लोग हैं जिन्होंने बहुत अच्छी साधना की है, और यह सच है कि उनमें से बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो घर पर अभ्यास करते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो परिश्रमी नहीं हो पाते हैं और निरंतर प्रगति नहीं कर पाते हैं, और उनमें से बहुत से लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकलते हैं। इसलिए आप सामान्यीकरण नहीं कर सकते और न ही आप इन लोगों को बाध्य कर सकते हैं। साधना अभ्यास लोगों के मन पर निर्भर करता है। यदि कोई अपने मन से साधना नहीं करना चाहता है, तो उसे आने के लिए बाध्य करने का क्या लाभ है, है ना? यदि वह बुद्ध नहीं बनना चाहता, तो बुद्ध भी इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते। केवल एक व्यक्ति क्या चाहता है या वह क्या करना चाहता है वही महत्त्व रखता है। लेकिन आपको लगता है कि बाहर आने से हमें फा के प्रसार में सहायता मिलती है; आपको लगता है कि यह अच्छा है और उन्हें दूसरों की सहायता करने के लिए मनाते हैं। वास्तव में, ऐसा हो यह आवश्यक नहीं है। घर में साधना करना और बाहर साधना करना एक समान है।

अब मैंने एक और समस्या देखी है—निःसंदेह, यह वह समस्या नहीं है जो आपने अभी उठायी है। हमने मुख्य भूमि चीन में पाया है कि प्रारंभिक काल के कई अनुभवी शिष्य अब अभ्यास करने के लिए बाहर नहीं आते हैं, और यह कि लगभग सभी जो बाहर अभ्यास कर रहे हैं, उन्होंने मुझे फा को पढ़ाते हुए कभी नहीं सुना है—ऐसे बहुत से हैं। क्योंकि यह वह प्रारूप है जिसमें हमारा दाफा प्रचारित होता है, यह प्रारूप आप पर छोड़ दिया गया है, और आने वाली पीढ़ियाँ भी इसे इसी प्रकार करेंगी। यह बहुत ही उत्तम होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि जो अब घर पर अभ्यास करने लगे हैं वे अच्छे नहीं हैं; उनमें से कई पहले ही बहुत अच्छी साधना कर चुके हैं। वे पाते हैं कि, जिन्होंने अभी-अभी अभ्यास करना शुरू किया है और जिन्हें फा की गहरी समझ नहीं है, उन शिष्यों के साथ बात करने के लिए उनके पास कोई भी समान विषय नहीं है—ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। वे सोचते हैं कि जिन चीजों के बारे में अन्य शिष्य बात करना पसंद करते हैं वे मोहभाव हैं, और वे असहज अनुभव करते हैं; यही कारण हो सकता है कि वे नहीं आते—यह स्थिति होती है। साधारणतः, जब मनुष्य कुछ करते हैं, तो उसका कोई मोहभाव या कोई उद्देश्य होता है। यदि किसी व्यक्ति ने बहुत अच्छी तरह से साधना की है, जब उसके पास कोई साधारण मानवीय मोहभाव नहीं है तो वह मनुष्यों के साथ नहीं रह सकता है। वह मनुष्यों द्वारा कहा गया एक भी वाक्य सहन नहीं कर सकता—हर वाक्य, हर विचार और लोगों के मन में आने वाले विचारों का एक उद्देश्य होता है। जब आपका मन स्वच्छ और स्पष्ट होता है, जब कुछ भी नहीं होता है, तो आपको वह सब कुछ पता चल जाएगा जो दूसरे सोच रहे हैं। और तब आप दूसरों के किसी एक विचार, कोई भी कार्य, या किसी भी वाक्य को सहन नहीं कर पाएंगे, और आप चिढ़ जायेंगे। आपको बस यह अनुभव होगा कि आप इसे स्पष्ट रूप से उन्हें समझा नहीं सकते हैं, और इसलिए आप बाहर नहीं आएंगे—इस प्रकार के मुद्दे होते हैं, लेकिन सभी ऐसे नहीं होते हैं। किन्तु मुझे लगता है कि यह सबसे अच्छा है कि हमारे नए शिष्य अभ्यास करने बहार आएं। क्यों? क्योंकि यह वास्तव में आपको सुधरने में सहायता करता है। यदि आप अभ्यास करने के लिए बाहर नहीं आते हैं, और आप इसके स्थान पर घर पर अभ्यास करते हैं और अपने आप चीजों की ज्ञानप्राप्ति करने का प्रयास करते हैं, तो निश्चित रूप से आप ज्ञानप्राप्त करने में सक्षम होंगे, लेकिन यह धीमा होगा—कौन निरंतर प्रगति नहीं करना चाहता? कौन जल्द सुधार नहीं करना चाहता है?

शिष्य : जब हम कुछ कर रहे होते हैं और हमें नहीं पता होता है कि हमें यह करना चाहिए या नहीं, तो हम सत्य-करुणा-सहनशीलता को अपने मार्गदर्शक के रूप में कैसे उपयोग कर सकते हैं?

गुरुजी : वास्तव में, यह बात नहीं है कि कुछ किया जाना चाहिए या नहीं। आपको पता नहीं है कि लोग अधिकतर विशिष्ट परिस्थितियों में फंस जाते हैं और फिर अच्छे और बुरे का मूल्यांकन करने में असमर्थ होते हैं। मैं वर्तमान मानवजाति के विकास की स्थिति के बारे में सब कुछ क्यों देख पा रहा हूँ? मैं सबकुछ समझा सकता हूं क्योंकि मैं इसके भीतर नहीं हूं। जब आप किसी विषय को देखते हैं, तो उसे तब ना देखें जब आप उसमें फंसे हुए हों, विषय को अलग से और विशिष्ट विषय के भीतर मूल्यांकन न करें। इससे बाहर निकलें और इसे ध्यान से देखें, देखें कि क्या यह सत्य-करुणा-सहनशीलता के अनुरूप है या नहीं। कोई व्यक्ति जिसने अच्छी तरह से साधना की है, या एक देव, एक बोधिसत्व इसे कैसे संभालता? इसे इस तरह से सोचें, और जैसे ही पवित्र विचार उभरेंगे आपको पता चल जाएगा।

शिष्य : जटिल वातावरण उच्च स्तर के व्यक्ति उत्पन्न करते हैं। मुख्य भूमि चीन में वातावरण निश्चित रूप से अमेरिका की तुलना में कहीं अधिक जटिल है, इसलिए मुख्य भूमि चीन में साधना तेजी से होती है।

गुरुजी : वे सभी जटिल हैं; वे विभिन्न तरीकों से जटिल हैं। मुख्य भूमि चीन में लोगों के बीच मनोवैज्ञानिक संघर्ष वास्तव में तीव्र होते हैं—एक दूसरे के विरुद्ध उनके षडयंत्र गंभीर होते हैं। लेकिन यू.एस. में, सतही संस्कृति को हुई क्षति बहुत गंभीर है, और आसुरिक-प्रकृति अत्यधिक है। अतः कोई व्यक्ति कहीं भी साधना अभ्यास कर सकता है।

शिष्य : वायु अत्यधिक प्रमाण में प्रदूषित है। क्या यह साधना के लिए बहुत बुरी है?

गुरुजी : नहीं, यह हम साधकों के लिए कोई समस्या नहीं है। क्योंकि आपके शरीर को धीरे-धीरे उच्च-ऊर्जा पदार्थ द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है, ये चीजें आपको प्रदूषित नहीं कर सकतीं।

शिष्य : अच्छाई की ओर और सत्य-करुणा-सहनशीलता की दिशा में बढ़ने के लिए क्या साधना बाहरी वातावरण को प्रभावित कर सकती है, जिसमें प्राकृतिक वातावरण, सामाजिक वातावरण, या साधक की अपनी सामाजिक मंडली और रहने का वातावरण सम्मिलित है?

गुरुजी : यह ऐसा प्रभाव उत्पन्न कर रहा है, केवल यह बहुत सूक्ष्म है और इसे सरलता से नहीं देखा जा सकता है। आपके साथ सभी संबंधित चीजें सूक्ष्म परिवर्तनों से गुजर रही हैं—दो प्रकार के परिवर्तन। एक यह है कि कुछ आपसे और दूर हो जाती हैं, दूसरा यह है कि कुछ आपके पास, और पास आती जाती हैं—अर्थात्, वे बेहतर और बेहतर होती जा रही हैं। कुछ आपको पूरी तरह से छोड़ देती हैं; जो बहुत अच्छी नहीं हैं वे दूर हो जाती हैं—ऐसा होता है। यह परिवर्तन बहुत सूक्ष्म होता है।

शिष्य : गुरूजी, ध्यान करते समय, अंततः, अर्ध-पद्मासन की स्थिति की तुलना में पूर्ण-पद्मासन की स्थिति का क्या प्रभाव होता है?

गुरुजी : साधना का एक मूल तत्व है, एक आतंरिक यंत्र। हमारे पूर्ण-पद्मासन व्यायाम की क्रियाविधि एक मशीन की तरह ही है। मशीन के गियर को इस तरह स्थापित किया जाना चाहिए, लेकिन यदि आप इसे उस तरह स्थापित करने पर जोर देते हैं तो यह कुछ भी उत्पादन करने में सक्षम नहीं होगी। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि ऐसा ही हो, क्योंकि कुछ लोगों को क्रमिक सुधार की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। यदि आप अभी अपने पैरों को नहीं मोड़ सकते हैं, तो इसे धीरे-धीरे करने का प्रयत्न करें। इसलिए हमारे पास अभी भी इसे संभालने के तरीके हैं। आपको उस स्थिति तक पहुँचने का पूरा प्रयास करना चाहिए।

शिष्य : जब मैं पद्मासन करता हूँ, यदि मैं शांत नहीं हो पाता, तो मैं एकाग्रता भी प्राप्त नहीं कर पाता हूँ। इसका अर्थ है कि मेरा स्तर निम्न है और मैं उच्च स्तरों पर नहीं जा सकता।

गुरुजी : यदि आप बैठते ही दिंग प्राप्त कर सकते हैं, तो आपका वर्तमान स्तर पहले से ही बहुत ऊंचा है। पुस्तक में इस पर पहले ही चर्चा की जा चुकी है। यदि आप वास्तव में एकाग्रता (दिंग) में प्रवेश नहीं कर सकते हैं, तो जो विचार दबाया नहीं जा सकता उसे किसी और का विचार मानें। वास्तव में, मैं आपको बता दूं कि यह आप नहीं हैं—यह जन्म के बाद अर्जित धारणाओं और विचार कर्म से बना है। आप शुरुआत में ही ध्यान में बैठना और शांति में प्रवेश करना चाहते थे, लेकिन शांत क्यों नहीं हो रहा है? यह आपकी बात नहीं सुनता—क्या यह आप हो सकते हैं? यह कर्म का मंथन है, इसलिए आपको समझना चाहिए कि यह कोई और है। जैसे-जैसे आप अपने मोहभावों को कम करते जायेंगे आप धीरे-धीरे अधिक से अधिक शांत होने में सक्षम होंगे, और साथ ही आपके स्तर में सुधार भी होगा।

शिष्य : व्यायाम करते समय मुझे हमेशा नींद आती है। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि क्या मुझे सोना चाहिए, या यदि यह एक असुर है तो मुझे इससे लड़ना चाहिए?

गुरुजी : नींद अपने आप में कोई असुर नहीं है। यह वह कारक है जिससे मनुष्य आराम कर सके। यह भी उन चीजों, कारकों में से एक है, जिनसे ब्रह्मांड बना है। लेकिन एक साधक के रूप में, यदि आप साधना के दौरान सोते हैं तो यह एक असुर की भूमिका निभा सकता है, आपको साधना करने से रोक कर। यह स्वयं एक असुर नहीं है, लेकिन यह वह भूमिका निभा सकता है। लेकिन दूसरी ओर, यह आपकी इच्छाशक्ति को शक्तिशाली बनाने का भी प्रभाव डालता है। क्या आपको अपनी इच्छाशक्ति विकसित करने की आवश्यकता नहीं है? आपको अपनी इच्छा को बलवान करने की आवश्यकता है, और इसे रोकना आपकी इच्छाशक्ति को बलवान करना है—यह भी साधना है। व्यायाम करते समय नींद आना भी अपने आप में विचार कर्म का प्रभाव है।

शिष्य : मैं पूछना चाहता हूं कि वास्तव में ऊर्जा यंत्र क्या हैं।

गुरुजी : ऊर्जा यंत्र गतिशील यंत्र हैं जो गोंग के बहुत सूक्ष्म पदार्थों से बने होते हैं—पदार्थ जो मनुष्य नहीं देख सकते। इन यंत्रों का एक रूप होता है, लेकिन मनुष्य इसे नहीं देख सकते। जब आपकी साधना भविष्य में एक निश्चित बिंदु तक पहुँचती है और आपका तीसरा नेत्र कुछ हद तक खुल जाता है, तो आप इसे देख पाएंगे। यह एक पट्टे की तरह है, एक सफेद पट्टा, जो आपके शरीर के इर्द गिर्द कार्य करता है। लेकिन यह आपके अमृत क्षेत्र (दान्तियन) के अंदर के फालुन से जुड़ा है। जब आप अभ्यास करते हैं तो यह निरंतर बलवान होता जाता है। ये यंत्र जितने बलवान होंगे, आपके स्वचलित अभ्यास को उतने ही अच्छे प्रकार से संचालित करेंगे। अर्थात, जब आप व्यायाम नहीं कर रहे होते हैं तब भी वे घूम रहे होते हैं—वे स्वचलित रूप से अभ्यास करने में आपकी सहायता कर रहे होते हैं। हमारे द्वारा सिखाए जाने वाले सभी पाँच अभ्यासों में ये यंत्र कार्यरत होते हैं। इसलिए यद्यपि आप स्वयं को यहां बिना किसी गति के खड़े हुए देखते हैं, आपके शरीर के यंत्र आगे पीछे चल रहे होते हैं, आपके पूरे शरीर के परिवर्तन को संचालित करते हुए।

शिष्य : क्या फालुन दिव्यलोक में फालुन गीत है?

गुरुजी : यह विज्ञापन करना है और मानवीय चीजें करना है। बुद्ध फा को इतने हल्के में कैसे लिया जा सकता है?! आज लोगों ने बुद्धों को भी मानवीय रूप दे दिया है। लेकिन बुद्ध अतुलनीय रूप से महान देव होते हैं। अतीत में जब लोग बुद्धों का उल्लेख करते थे, तो असीम श्रद्धा का भाव पैदा होता था। आजकल उनका ऐसे ही उल्लेख किया जाता है। बुद्धों, बोधिसत्वों, और मरियम की छवियों को तराशा और कब्रिस्तानों में रख दिया जाता है—यह केवल बुद्धों, बोधिसत्वों और मरियम का निरादर करना है। वे मृतकों की कब्रों से घिरे हुए हैं। मनुष्य नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। वे सोचते हैं कि यह बहुत अच्छा है, और वे चाहते हैं कि बुद्ध, बोधिसत्व, और मरियम मृतकों की देखभाल करें—यह वैसा ही है जैसे वे देवताओं को आदेश दे रहे हों। क्या ऐसा नहीं है? वास्तव में, ये सभी मनुष्यों के पापी विचारों से पैदा हुई चीजें हैं। कई चीगोंग पध्दतियां नृत्य और गीत जैसे चीजें भी करती हैं। उन चीजों का साधना से क्या लेना-देना है? इसके अतिरिक्त, वे लोगों की भावनाओं (चिंग) के मोहभाव को प्रोत्साहित करते हैं। यह बुद्धों, ताओ और देवताओं को मानवीय विचारों और मानवीय तरीकों से देखना है। वास्तव में, उनके बारे में सोचने के लिए मानवीय तरीकों का उपयोग बिल्कुल नहीं किया जा सकता है। जब आप बहुत अच्छी तरह से साधना कर लेते हैं, और केवल जब आपके ऐसे मानवीय विचार नहीं होते हैं, तभी आप फल पदवी तक पहुँच सकते हैं।

शिष्य : हम "मनोभाव रखने" की स्थिति में रह रहे हैं। हमें उन इच्छाओं को अपने सामान्य जीवन से हटा देना चाहिए। कभी-कभी मैं भ्रमित हो जाता हूं और यह मुझे बहुत व्याकुल करता है।

गुरुजी : आप कह रहे हैं कि जब आप साधना करते हैं, तो आपको लगता है कि आपने फा की समझ का एक निश्चित स्तर विकसित कर लिया है और आपको सुधार करना चाहिए और कुछ विचारों से छुटकारा पाना चाहिए; फिर भी आप पाते हैं कि कुछ विचार अभी भी हैं और वे आपको दुविधा में डाल देते हैं, "मेरे अब भी ऐसे विचार क्यों हैं?" और आप स्वयं को दुविधा में पाते हैं। क्या यह ऐसा नहीं है? मैं आपको बता दूँ—मैंने इसे पिछली बार पहले ही समझाया था—यदि हम उन सभी मानवीय विचारों को हटा दें जो आपको एक साधारण व्यक्ति के जीवन को बनाए रखने में सक्षम बनाते हैं, तो आप साधारण लोगों के बीच एक दिन भी नहीं रह पाएंगे। मनुष्य जो कुछ भी करता है वह मोहभावों से प्रेरित होता है, इसलिए आप एक भी मानवीय विचार को सहन करने में सक्षम नहीं होंगे। जब आपके वे विचार नहीं होते हैं तो आपको पता नहीं होता है कि मनुष्यों के साथ कैसा अनुभव होता है। तो आपके लिए साधारण लोगों के बीच साधना अभ्यास करने के लिए, केवल फल पदवी प्राप्त करने पर ही आपकी सबसे बाहरी सतह रूपांतरित होगी और आपके सभी मोहभाव हट जाएंगे।

शिष्य : श्वेत जाति के लोग फल पदवी तक पहुँचने पर किस दिव्यलोक में जाएँगे?

गुरुजी : इस प्रश्न पर पहले ही चर्चा की जा चुकी है। हममें से कुछ लोगों ने ज़ुआन फालुन में बुद्धों के चित्र देखे होंगे; कुछ लोगों ने ज़ुआन फालुन के अंग्रेजी संस्करण में सेंट मैरी या जीसस की तरह कपड़े पहने हुए देवों को देखा होगा—कोकेशियान छवियों वाले देव—प्रत्येक शब्द में। यद्यपि आप हमारे दाफा का अभ्यास कर रहे हैं... मैंने कहा है कि हम बुध्द विचारधारा के हैं, लेकिन मैं संपूर्ण ब्रह्मांड की प्रकृति, ब्रह्मांड के सिद्धांतों—ब्रह्मांड के फा की शिक्षा दे रहा हूं। तो निश्चित रूप से देव भी उनमें सम्मिलित हैं। फिर यदि एक कोकेशियान फल पदवी तक पहुँचता है, तो उसके शरीर में संवर्धित गोंग भी एक कोकेशियान छवि धारण कर लेगा, और वह फल पदवी पर पहुँचने के बाद एक कोकेशियान दिव्यलोक में चला जाएगा; छोटे शिशु (यिंगहाई) जो साधना से उत्पन्न होते हैं, उन सभी के पंख होते हैं। निःसंदेह, वही ताओ स्कूल के लिए भी लागु होता है।

शिष्य : हत्या के कर्म का भुगतान कोई कैसे चूका सकता है?

गुरुजी : हमारे कई शिष्य हैं जिन्होंने अपनी साधना के दौरान कुछ भयानक घटनाओं का सामना किया है—कार दुर्घटनाएं, ऊंचे स्थानों से गिरना, और कई अन्य घटनाएं। बाद में, हमारे शिष्यों ने आनंद अनुभव किया—यह निश्चित रूप से आनंदित होने योग्य है। निःसंदेह, जैसा कि मैंने फा में समझाया है, यह अतीत में उत्पन्न कर्मों के एक बड़े भाग का भुगतान करने के समान है, और यहां तक कि उस जीव का भुगतान करने के समान भी हो सकता है। यदि उस जीव का वास्तव में भुगतान किया जा चूका है, तो आपका नाम नर्क से काट दिया गया है क्योंकि आप उस जीव के लिए पहले ही भुगतान कर चुके हैं।

वास्तव में, यह नहीं सोचिये कि दुर्घटना के बाद आपको कुछ नहीं हुआ—कर्म से बने, आप, वास्तव में मर चुके हैं। इसके अतिरिक्त, उस शरीर में विचार थे, एक हृदय था, और अंग थे जो आपके बुरे कर्मों से बने थे; इसकी दुर्घटना में मृत्यु हो गई, और यह पूरी तरह से कर्म से बना था। हमने आपके लिए इतना अद्भुत अच्छा कार्य किया है, और इतनी बड़ी मात्रा में कर्म को हटा दिया है और इसके साथ कई जीवों का भुगतान कर दिया है—कोई और ऐसा नहीं करता है। हम ऐसा केवल इसलिए करते हैं क्योंकि आप साधना अभ्यास करने में सक्षम हैं। जब आप इसे समझेंगे तो आपके पास मुझे धन्यवाद देने का कोई तरीका नहीं होगा।

शिष्य : हम फल पदवी कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

गुरुजी : मानव बनती को बुद्ध-शरीर में परिवर्तित करने के लिए हम अपना यह फा प्रदान करते हैं। हम यही तरीका अपनाते हैं; हम निर्वाण का मार्ग नहीं अपनाते हैं, और न ही हम ताओ विचारधारा में प्रकाश-परिवर्तन, या "शव-निष्कासन" की विधि का उपयोग करते हैं, जिसमें एक बांस की छड़ी को मानव शरीर में बदल दिया जाता है और एक ताबूत में रखा जाता है। हम स्पष्ट और भव्य रूप से लोगों को आपको फल पदवी प्राप्त करते हुए देखने देते हैं, क्योंकि आपका शरीर पहले ही रूपांतरित हो चुका होगा।

शिष्य : गुरूजी ने कहा है कि व्यक्ति को साधारण लोगों के बीच साधना का अभ्यास करते हुए अपने साधारण लोगों का कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए... मैं एक ऐसा कार्य खोजना चाहता हूँ जिसे मैं अधिक समय व्यय किए बिना अच्छी तरह से कर सकूँ, जिससे मैं साधना करने में समय व्यतीत कर सकूँ।

गुरुजी : हम सबकी यही सोच है। आप सभी एक सरल नौकरी खोजना चाहते हैं जिससे आपके पास साधना के लिए बहुत समय हो और, साथ ही, एक अच्छा काम करने में सक्षम हों। आखिर विचार तो विचार ही होता है। आपके उद्देश्य संभवतः साधना अभ्यास के लिए हैं। लेकिन कई बार चीजें वैसी नहीं हो पातीं जैसी हम चाहते हैं, क्योंकि हर किसी की स्थिति भिन्न होती है। जब तक आप यह शक्तिशाली मोहभाव नहीं रखते हैं—एक निश्चित तरीके से करने पर जोर देना—मेरा सिद्धांत शरीर (फाशन) आपके लिए बहुत अच्छी तरह से चीजों की व्यवस्था करेगा। आप एक सामान्य नौकरी कर सकते हैं और साथ ही साधना अभ्यास भी कर सकते हैं।

शिष्य : कुछ लोगों को लगता है कि ज़ुआन फालुन को पारंपरिक अक्षरों में पढ़ना सरलीकृत अक्षरों में पढ़ने से भिन्न है, यह एक भिन्न अनुभव है।

गुरुजी : यह ऐसा नहीं लग रहा है। यह एक समान होना चाहिए। एक बात है: मुख्य भूमि चीन में "सांस्कृतिक क्रांति" के बाद से, लोगों की सोच में अत्यधिक बदलाव आया है। जब इसकी बात आती है तो दक्षिण पूर्व एशिया या अन्य क्षेत्रों में विदेशों में ताइवानी और चीनी लोगों के सोचने का तरीका थोड़ा भिन्न है। क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि आप ज़ुआन फालुन को पारंपरिक अक्षरों में अपनी उस पहले की बनी हुई धारणा के साथ पढ़ते हैं—जैसे ही आप सरलीकृत अक्षरों को पढ़ते हैं, आपको लगता है कि आप चीन की उन चीजों में उलझ रहे हैं जिनके साथ आप सहज नहीं हैं? यह वास्तव में आपकी एक मानसिक बाधा है।

शिष्य : कभी-कभी जब मैं ज़ुआन फालुन पढ़ रहा होता हूं तो मैं पुस्तक को छोड़ना नहीं चाहता, और मैं व्यायाम गतिविधियों को भी नहीं करना चाहता।

गुरुजी : यदि जब आप ज़ुआन फालुन पढ़ते हैं तो आप इसे छोड़ना नहीं चाहते हैं, तो पढ़ना जारी रखें—यह ठीक है। अपने व्यायाम बाद में करना ठीक है। पुस्तक को और अधिक पढ़ना अच्छा है—फा का अध्ययन प्राथमिक महत्व रखता है।




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