मानव जाति का सृजन कैसे हुआ
 

मैं सबसे पहले चीनी नव वर्ष के आगमन पर सभी को अपनी शुभकामनाएं देना चाहता हूँ।

नव वर्ष का अवसर साधारणतः उसके बारे में कुछ सुखद बातें साझा करने का समय होता है। लेकिन मैं मानवता के निकट आ रही विपदा को देख रहा हूँ, और इस कारण से दिव्य प्राणियों ने मुझसे अनुरोध किया है कि, इस संसार में सभी को कुछ चीजें पारित की जाएं। जो भेद मैं प्रकट करने जा रहा हूँ वह प्रत्येक एक उच्च, बहुत ही संरक्षित रहस्य है, और इन मुद्दों का एक सच्चा दृश्य प्रदान करने, और लोगों को उद्धार का एक और अवसर देने के लिए साझा किया जा रहा है।

पहले यह प्रश्न है कि मानव जाति का सृजन कैसे हुआ। इसके सृजन की शुरुआत से लेकर इसके अंतिम दिनों तक, ब्रह्मांड चार चरणों वाली असाधारण लम्बी अवधि से गुजरा है: सृजन, स्थिरता, पतन और विनाश। जब विनाश का चरण अंतिम स्थिति तक पहुंच जाता है, तो वृहत ब्रह्मांडीय पिंड में विद्यमान सभी कुछ का पल भर में पूर्ण विनाश हो जाता है — जिसमें वह विश्व सम्मिलित है जिसमें हम विद्यमान हैं, और सभी जीवित चीजें नष्ट हो जाती हैं!

जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यह केवल उसके भौतिक शरीर के क्षय और विघटन की बात है, जबकि उसकी मुख्य आत्मा (जो वह वास्तव में है, और जो उसके भौतिक शरीर की मृत्यु होने पर नहीं मरती) फिर से पुनर्जन्म लेगी। तो जैसे कि ब्रह्मांड सृजन, स्थिरता, पतन और विनाश से गुजरता है, वैसे ही मनुष्य भी जन्म, बुढ़ापे, रोग और मृत्यु से गुजरते हैं। ये ब्रह्माण्ड के नियम हैं, जिनके अधीन उच्च प्राणी भी हैं, केवल उनकी समय अवधि लंबी होती है, यह प्रक्रिया प्राणियों की महानता के अनुपात में और अधिक लंबी हो जाती है। जीवन और मृत्यु उनके लिए दु:खदायी नहीं होते, और वे इन प्रक्रियाओं के दौरान सचेतन स्थिति में रहते हैं— उनके लिए यह ऐसा है जैसे कोई दूसरा वस्त्र धारण करना। दूसरे शब्दों में कहें तो, साधारणतः जीव वास्तव में मरते नहीं हैं। लेकिन जब विश्व और ब्रह्मांड सृजन-स्थिरता-पतन-विनाश की प्रक्रिया के अंतिम चरण में विघटित हो जाते हैं, जबकि, जीवों का पुनर्जन्म नहीं होगा, और जीवन या पदार्थ का अस्तित्व नहीं रहेगा, सभी धूल में परिवर्तित हो जाएंगे और वहां केवल शून्यता रह जाएगी। वर्तमान में, मानव जगत, सृजन, स्थिरता, पतन, विनाश के मार्ग के अंतिम विनाश काल से गुजर रहा रहा है। इस अंत की अवधि में सब कुछ और बुरा हो गया है, जैसा कि नियत था, और इसलिए विनाश निकट आ रहा है। और इसी कारण संसार इतना दुःख में है। अच्छे विचार दुर्लभ हैं, लोगों के मन विकृत हो गए हैं, व्याभिचार और नशीली दवाओं का दुरुपयोग सर्वव्याप्त है, और लोग नास्तिकता को चुन रहे हैं। ब्रह्मांड के अंतिम चरण में ये अवश्यंभावी हैं, और उस समय के बारे में बताते हैं जहाँ हम पहुंच चुके हैं!

सृजनकर्ता उन सभी दिव्य प्राणियों की संभाल करते हैं जो विद्यमान हैं साथ ही उन सभी जीवों की जो अच्छे और करुणामयी हैं, और ब्रह्मांड की सभी श्रेष्ठ रचनाओं का। इसलिए पतन के काल की शुरुआत में वे अनेक दिव्य प्राणियों को ब्रह्मांडीय पिंड के सबसे बाहरी आयाम पर ले गए (जिसे साधारणतः "दिव्य लोक से बाहर" के रूप में जाना जाता है), एक ऐसा स्थान जहाँ कोई दिव्य प्राणी नहीं हैं, और पृथ्वी का निर्माण किया। लेकिन पृथ्वी में स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रहने की क्षमता नहीं थी; इसके लिए यह आवश्यक था कि एक ऐसी ब्रह्मांडीय संरचना बनायी जाए जिसमें जीव और पदार्थ को सम्मिलित करते हुए एक संचार प्रणाली का निर्माण हो सके। इस कारण, सृजनकर्ता ने पृथ्वी के बाहर एक बड़ा क्षेत्र बनाया, जिसे उच्च प्राणी "तीन लोक" कहते हैं। इससे पहले कि उद्धार का अंतिम समय आए, किसी भी उच्च प्राणी को, चाहे वह कितना ही महान क्यों न हो, सृजनकर्ता की अनुमति के बिना इस क्षेत्र में प्रवेश करने या प्रस्थान करने की अनुमति नहीं थी। तीन लोकों के इस क्षेत्र में तीन प्रमुख लोक सम्मिलित हैं: इच्छा का लोक (यू), जो मानव जाति सहित इस पृथ्वी के जीवों से बना है; एक दूसरा लोक, आकार का लोक (से), जो इससे ऊपर है; और एक तीसरा लोक, उससे ऊपर, जिसे निराकार का लोक (वू से) कहा जाता है। प्रत्येक उपरी लोक अपने से नीचे वाले की तुलना में उच्च और अधिक यशस्वी है, हालांकि इनमे से कोई भी दिव्य लोक या और भी उच्च दिव्य राज्यों से तुलना नहीं कर सकता। जिस "दिव्यलोक" का लोग साधारणत: उल्लेख करते हैं, वह वास्तव में तीन लोकों में से आकार लोक या निराकार लोक में ही है। तीन लोकों में से प्रत्येक में दस स्तर होते हैं, जो कुल मिलाकर तैंतीस स्तर बनते हैं, यदि आप तीन लोकों को भी सम्मिलित करते हैं। मानवजाति इच्छा के लोक में निवास करती है, और यह सभी स्तरों में सबसे निम्न है, जिसका वातावरण सबसे बुरा है। यहाँ जीवन दु:खदायी और छोटा है, लेकिन इससे भी अधिक भयावह तथ्य यह है कि मानव जगत में बहुत कम चीजें जिन्हें लोग सत्य मानते हैं, वास्तव में वैध हैं। मनुष्य जिसे सत्य मानते हैं, उन्हें उच्च ब्रह्मांड में विपरीत माना जाता है (लेकिन इसका एक अपवाद वो उच्च सत्य हैं जो पवित्र प्राणियों ने मनुष्य को सिखाये हैं)। उदाहरण के लिए, दिव्य इसे उचित नहीं मानते हैं कि जो कोई युद्ध में विजयी होता है, वह शासक बन जाये, सैन्य बल द्वारा क्षेत्र को जब्त कर लिया जाये, या शक्तिशाली को नायक के रूप में देखा जाये— क्योंकि इसमें वध करना और दूसरों से बलपूर्वक छीनना सम्मिलित है। यह ब्रह्मांड का तरीका नहीं है, न ही उच्च प्राणियों के करने का तरीका। फिर भी मानव जगत में ये अनिवार्य हैं, और स्वीकृत हैं। वे मानव संसार के तरीके हैं, लेकिन वे ब्रह्मांड के तरीकों से विपरीत हैं। इसलिए, यदि कोई व्यक्ति दिव्यलोक लौटना चाहता है तो उसे सच्चे, उच्च नियमों का पालन करना चाहिए और स्वयं को सुधारना चाहिए। कुछ लोग संतुष्ट होते हैं कि वे जीवन में दूसरों की तुलना में थोड़े बेहतर हैं। लेकिन ऐसे लोग केवल इस मानवीय स्तर के भीतर अन्य मनुष्यों के साथ अपनी तुलना कर रहे हैं, जबकि यहाँ हर कोई वास्तव में ब्रह्मांड के कचरे के ढेर में रह रहा है। ब्रह्मांडीय पिंड की सबसे बाहरी परिधि पर तीन लोकों की स्थापना की गई थी, और यहां सब कुछ सबसे निचले, स्थूल और सबसे मलिन कणों— अणुओं, परमाणुओं, इत्यादि से बना है। उच्च प्राणियों की दृष्टि में यहीं पर ब्रह्मांड का कचरा फेंका जाता है। इस प्रकार वे अणुओं के इस तल को धूल या "मिट्टी" के रूप में देखते हैं और इसे सबसे निम्न स्थान के रूप में देखते हैं। यह कुछ धर्मों की मान्यता का मूल है कि मनुष्य को ईश्वर ने मिट्टी से बनाया था। मनुष्य वास्तव में आणविक स्तर के पदार्थ से बना था।

जब दिव्य प्राणियों ने मनुष्य को बनाया, तो उन्होंने सृजनकर्ता के आदेश पर ऐसा किया, और उन्होनें उन्हें निर्देश दिया कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी अनूठी छवि में बनाएं। इसी कारण गोरे, एशियाई, काले और अन्य प्रजातियाँ हैं। जबकि उनके बाहरी रूप भिन्न थे, उनके अंदर की आत्माएं सृजनकर्ता द्वारा दी गईं। और इसीलिए उनके एक जैसे नैतिक गुण हैं। मनुष्य को बनाने के लिए दिव्य प्राणियों को निर्देशित करने में सृजनकर्ता का उद्देश्य अंतिम काल में मनुष्य का उपयोग करना था जब वह वृहत ब्रह्मांड के सभी प्राणियों का— दिव्य प्राणियों सहित— उद्धार प्रदान करेंगे।

लेकिन सृजनकर्ता ने दिव्य प्राणियों से मनुष्यों को इतने निम्न और हीन स्थान में बनाने के लिए क्यों कहा होगा? ऐसा इसलिए था, क्योंकि ब्रह्मांड का सबसे निम्न स्तर होने के कारण, यह सबसे भीषण स्थानों में से एक है, और केवल जब परिस्थितियां कष्टदायी और दु:खदायी होती हैं, तभी कोई व्यक्ति आध्यात्मिक अभ्यास के माध्यम से स्वयं को ऊँचा उठा सकता है और अपने कर्मों को हटा सकता है। जब कोई व्यक्ति, कष्टदायी अनुभवों के बीच, अभी भी करुण विचार रख पाता है, कृतज्ञता रख पाता है, और एक अच्छा मनुष्य बना रहता है, वह इसके माध्यम से उन्नत हो रहा है। मोक्ष नीचे से ऊँचा उठने की एक प्रक्रिया है, और इसलिए नीचे से शुरू करना पड़ता है। यहां रहने वाले किसी के लिए भी जीवन दु:खदायी होता है। लोगों की बेहतर जीवन की प्रतिस्पर्धा में उनके बीच तनाव होता है, प्राकृतिक पर्यावरण की भी भयंकर स्थिति होती है, और यह तथ्य है कि जीवन जीने के लिए सोच-विचार और प्रयास की बहुत आवश्यकता होती है, ये कुछ उदाहरण हैं। ये सभी परिस्थितियाँ लोगों को स्वयं को ऊँचा उठाने और उनके कर्म को कम करने के अवसर प्रदान करती हैं। यह निश्चित है कि कठिनाइयों से गुज़रने से लोगों को अपने पापों और कर्मों का प्रायश्चित करने में मदद मिल सकती है। और जो कोई भी दु:खदायी परिस्थितियों और आपसी मतभेदों के बीच चरित्रवान बना रह सकता है, वह पुण्य और सदगुण का निर्माण करेगा और परिणामस्वरूप, वह अपनी आत्मा का उत्थान प्राप्त करेगा।

आधुनिक समय के आगमन के साथ, सृजनकर्ता ने ब्रह्मांड के अनेक जीवों को बचाने के लिए मुख्यत: मानव शरीर के उपयोग का प्रयोजन किया था। और इसलिए यहाँ के अधिकांश मानव शरीरों की मूल आत्माओं को उच्च प्राणियों की आत्माओं द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिन्होंने उनमें जन्म लिया। मानव शरीर के साथ वे कष्ट सहकर अपने कर्मों और पापों को कम कर सकते हैं। और इस स्थान में जो सत्य से रहित है, वे ईश्वर या पवित्र प्राणियों द्वारा सिखाए गए उच्च सत्यों को दृढ़ता से धारण करके और अच्छाई और करुणा में दृढ़ होकर, अपनी आत्मा का उत्थान प्राप्त कर सकते हैं। अंत काल अब हमारे पास आ चुका है, और तीन लोकों से बाहर जाने वाला दिव्य द्वार खोल दिया गया है। सृजनकर्ता उन लोगों को उद्धार के लिए चुन रहे हैं जिन्होंने वैसा किया है जैसा मैंने वर्णन किया।

ब्रह्मांड में सब कुछ सृजन, स्थिरता और पतन के चरणों के दौरान अशुद्ध हो गया, और जैसा सृजन के समय था उससे निम्न हो गया। और यही कारण है कि चीजें विनाश की ओर बढ़ रही हैं। दूसरे शब्दों में, वृहत ब्रह्मांड में सब कुछ दूषित हो गया है, सृष्टि के जीव अब उतने अच्छे नहीं रहे जितने वे शुरुआत में थे, वे अब शुद्ध नहीं रहे, और उन सभी ने कर्म और पाप अर्जित कर लिए हैं। और यही विनाश के आने का कारण है। इस प्रकार के पाप को धार्मिक संदर्भों में मौलिक पाप कहा गया है। ब्रह्मांड को बचाया जा सके इसलिए, सृजनकर्ता ने उच्च प्राणियों और दिव्य सम्राटों को बहुलता में पृथ्वी पर अवतरित होने और इस व्यवस्था में मानव रूप ग्रहण करने का निर्देश दिया, जहां वे पीड़ित होंगे, ऊँचे उठेंगे, अपने पापों का प्रायश्चित करेंगे, और स्वयं को नए सिरे से निर्मित करेंगे—परिणामस्वरूप दिव्यलोक की ओर पुनः उत्थान करेंगे। (सृजनकर्ता मानव जाति को बचाने के साथ-साथ ब्रह्मांड का फिर से सृजन कर रहे हैं।) नया ब्रह्मांड पूरी तरह से शुद्ध और अत्यंत महिमामय है। यदि इस प्रकार के कठिन वातावरण में भी कोई व्यक्ति अपने विचारों को सदाचारी रख सकता है; यदि वह आधुनिक मूल्यों और विचारों के आक्रमण के विरुद्ध अपनी मान्यताओं पर कायम रह सकता है, और पारंपरिक मूल्यों पर टिका रह सकता है; और यदि वह अभी भी नास्तिक और क्रमविकास गुटों के हमलों के बावजूद दिव्यता में विश्वास करता है, तो वह व्यक्ति अपने उद्देश्य को पूर्ण करेगा : जो है मोक्ष प्राप्त करना और दिव्यलोक में लौटना। संसार में अब सामने आ रहा सारा उन्माद, दिव्य प्राणियों द्वारा इसी प्रकार अंतिम चरण के लिए व्यवस्थित किया गया था। उनका लक्ष्य यहाँ के प्राणियों का परीक्षण करना और यह देखना था कि क्या वे उद्धार के योग्य हैं, और इस प्रक्रिया में, कठिन परिस्थितियों से गुज़रते हुए उनके पापों और कर्मों को हटाने का अवसर प्रदान करना था। और यह सब इसलिए किया गया था जिससे लोगों को बचाया जा सके और वे मोक्ष प्राप्त करके दिव्यलोक में वापस लौट सकें।

कहने का तात्पर्य यह है कि इस पृथ्वी पर लोगों के जीवन का उद्देश्य संसार में कुछ प्राप्त करना भर नहीं है। लोग जीवन में जो भी गहन प्रयास और प्रयत्न करते हैं, और जो वे चाहते हैं उसे पाने के लिए उनका उत्साह, जिसमें अनुचित तरीकों का प्रयोग भी सम्मिलित हो सकता है, अंत में केवल लोगों को अनैतिक बनाते हैं। लोगों के इस संसार में आने और मानव बनने का कारण उनके पापों और कर्मों का प्रायश्चित करना और समुचित आध्यात्मिक प्रगति करना था। लोग इस संसार में मोक्ष प्राप्त करने के लिए आए थे। वे आए और मानव रूप धारण किया, सृजनकर्ता और उनके उद्धार की प्रतीक्षा के लिए जिससे वे अपने दिव्यलोक में वापस लौट सकें। और जब वे प्रतीक्षा कर रहे थे, तब उन्होंने अपने पिछले कई जन्मों के दौरान पुण्य अर्जित किये; और लोगों के पुनर्जन्म का यही उद्देश्य था। इस संसार की अशांत अवस्था इन जीवों को कुछ बहुत महान बनाने के लिए है। निश्चित ही, ऐसे कुछ लोग हैं, जो कठिन समय में ईश्वर से मदद की गुहार करते हैं, किन्तु परिणाम से संतुष्ट नहीं होते, और ईश्वर से घृणा करने लगते हैं— तत्पश्चात उनके विरुद्ध भी हो जाते हैं। कुछ आसुरिक, दुष्ट शक्तियों की ओर भी गए, तथा और भी पाप किए व और भी अधिक कर्म उत्पन्न किया। जिन लोगों पर यह लागू होता है, उनके लिए बेहतर होगा कि वे शीघ्र ही पलट जाएं और ईश्वर से क्षमा याचना करें, यदि उन्हें अभी भी सुरक्षा तक पहुंचने का अवसर चाहिए। किसी के जीवन में जो कुछ भी घटित होता है— चाहे वह न्यायोचित प्रतीत हो या न हो— वास्तव में, उसके पिछले जन्मों में किए गए कर्मों का परिणाम है, वह भले ही अच्छा हो या बुरा। व्यक्ति के पिछले जन्मों में अर्जित पुण्य और सदगुण की मात्रा यह निर्धारित करती है कि इस जीवनकाल में, या शायद अगले में उसके भाग्य में क्या होगा। यदि व्यक्ति अभी एक धन्य और सदाचारी जीवन व्यतीत करता है, तो शायद उसके अगले जन्म में यह एक उच्च पद और वेतन में परिवर्तित हो जाएगा, या यह विभिन्न प्रकार की समृद्धि और भाग्य में परिवर्तित हो सकता है। और इसमें यह भी शामिल हो सकता है कि क्या उसका परिवार सुखी होगा, या यह भी कि उसके बच्चे कैसे बनते हैं, इत्यादि। यही मूल कारण है कि क्यों कुछ लोग धनी होते हैं और कुछ दरिद्र, क्यों कुछ उच्च पद पर आसीन होते हैं जबकि अन्य निराश्रित और बेघर। यह उस दुष्ट बकवास जैसा कुछ नहीं है जो कुटिल कम्युनिज्म धनवान और दरिद्र के बीच की समानता के विषय में उगलता है। ब्रह्मांड निष्पक्ष है। जो भलाई करते हैं वे इसके कारण धन्य होते हैं, जबकि जो लोग अनुचित कार्य करते हैं उन्हें भुगतान करना पड़ता है— इस जीवन में नहीं तो अगले जीवन में। क्योंकि ब्रह्मांड का यह एक अपरिवर्तनीय नियम है! आकाश, पृथ्वी, दिव्य और सृजनकर्ता समान रूप से सभी जीवों के प्रति करुणामयी होते हैं। आकाश और पृथ्वी, मनुष्य और दिव्य की तरह ही, सृजनकर्ता द्वारा बनाए गए थे, और ऐसा कभी नहीं होता कि वह कुछ जीवों के साथ प्रिय हों और दूसरों को कुछ कम दें। कुछ लोग सुखी जीवन जीते हैं और कुछ नहीं, इन सभी का कारण पिछले कर्मों के पुरस्कार और भुगतान हैं।

जब आप लोगों को जीवन में जीतते या हारते हुए देखते हैं, तो यह सामान्य रूप से इस संसार की चीजों के कारण होता हुआ प्रतीत होता है। लेकिन यह अंततः उन लोगों के पिछले कर्मों का प्रतिफल है। लोगों के पास कुछ है या नहीं, या वे जीवन में जीत रहे हैं या हार रहे हैं, वह इस तरह दर्शित होता है कि वह इस संसार के अनुरूप हो। इसलिए चाहे आप जीवन में धनवान हों या दरिद्र, आपको भलाई करनी चाहिए, अनुचित कार्य करने से बचना चाहिए, अच्छे और दयालु बने रहना चाहिए, आध्यात्मिक और धर्मपरायण होना चाहिए, और खुशी से दूसरों की सहायता करनी चाहिए। और ऐसा करने से आप आशीष और सदगुण अर्जित करेंगे, और अगले जन्म में उनका प्रतिफल प्राप्त करेंगे। अतीत में, चीन में बुजुर्ग अक्सर कहते थे कि जब चीजें कठिन होती हैं तो रोते मत रहो, और अच्छे कर्मों के माध्यम से पुण्य प्राप्त करके बेहतर अगला जीवन अर्जित करो। और मुद्दा यह था कि यदि आपने अपने पिछले जीवन में अच्छे काम नहीं किए और आशीष संचय नहीं किए तो ईश्वर से मदद के लिए प्रार्थना करना बेकार है। ब्रह्मांड के अपने नियम हैं, और उच्चतर प्राणियों को भी उनका पालन करना होता है। यदि वे ऐसे काम करते हैं जो उन्हें नहीं करने चाहिए तो उन्हें भी दंडित किया जाएगा। इसलिए चीजें उतनी सरल नहीं हैं, जितनी लोग उन्हें समझते हैं। क्या लोगों को यह आशा करनी चाहिए कि वे जिस किसी चीज के लिए भी प्रार्थना करेंगे, उच्च प्राणी उन्हें वह दे देंगे? अनिवार्य यह है कि पिछले जन्मों में इसके लिए आशीष और पुण्य को संचय करना होगा। और इसलिए जो चीजें आपको प्राप्त होती हैं वे आपके आशीष और पुण्य के कारण होती हैं! ब्रह्मांड के नियम यही निर्धारित करते हैं। लेकिन मौलिक स्तर पर कहा जाये तो, आशीष और पुण्य संचय करने का अंतिम लक्ष्य यह नहीं है कि जो आप चाहते हैं उसे प्राप्त करें। उन्हें संचय करने का वास्तविक उद्देश्य आपके लिए दिव्यलोक में लौटने का मार्ग प्रशस्त करना है। और यही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, न कि सुख का संक्षिप्त चरण जो वे आपके लिए इस जीवनकाल में ला सकते हैं!

आचार्य ली होंगज़ी
जनवरी 20, 2023