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अध्याय V प्रश्न और उत्तर
 

1. फालुन और फालुन गोंग

प्रश्न : फालुन किस पदार्थ से बना है?

उत्तर : फालुन उच्च तत्वों से बनी एक प्रज्ञावान सता है। यह स्वचालित रूप से गोंग को परिवर्तित करता है और इसका अस्तित्व हमारे आयाम में नहीं है।

प्रश्न : फालुन कैसा दिखाई देता है?

उत्तर : केवल यही कहा जा सकता है कि फालुन का रंग पीला-सुनहरी है। इस रंग का अस्तित्व हमारे आयाम में नहीं है। अन्दर के चक्र का मूल रंग बहुत चमकीला लाल है, जबकि बाहर के चक्र का मूल रंग संतरी है। इसमें ताओ मत से संबंधित दो लाल और काले ताइची प्रतीक चिन्ह् हैं। इसके अतिरिक्त महान आदि-ताओ मत से संबंधित दो लाल और नीले रंग के ताइची प्रतीक चिन्ह् और हैं। यह दोनों मत भिन्न-भिन्न हैं। श्रीवत्स प्रतीक “” पीला-सुनहरी है। जिन लोगों की 'त्येनमू' (तीसरी आंख) निम्न स्तर पर खुली है, वे फालुन को बिजली के पंखे की तरह घूमता हुआ देखते हैं। यदि कोई इसे स्पष्ट देख सके, तो यह बहुत सुन्दर है और अभ्यासी को इस बात की प्रेरणा देता है कि वह और कठोर परिश्रम करे और जोर के साथ आगे बढ़ता जाए।

प्रश्न : आरंभ में फालुन कहां स्थापित होता है? बाद में वह कहां स्थापित रहता है?

उत्तर : मैं वास्तव में आपको एक 'फालुन' देता हूं। यह उदर के नीचे के भाग में स्थापित है, वह स्थान जहां पर 'तान' (शक्ति पुंज) का संवर्धन करते हैं और स्थापित है। जिसके बारे में हम बता चुके हैं। इसका स्थान नहीं बदलता है। कुछ लोग बहुत से घूमते हुए फालुन देख सकते हैं। इसका प्रयोग मेरे विधि शरीरों द्वारा आपको शरीर को संतुलित करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न : क्या अभ्यास और साधना से फालुन विकसित किया जा सकता है? यह कितने विकसित किए जा सकते हैं? क्या इनमें और गुरु द्वारा दिए गए फालुन में कोई अंतर होता है?

उत्तर : फालुन अभ्यास और साधना से विकसित किया जा सकता है। जैसे- जैसे आपका ऊर्जा सामर्थ्य बढ़ता जाता है, और अधिक फालुन विकसित होंगे। सभी फालुन एक समान हैं। अंतर केवल यही है कि उदर के नीचे भाग में स्थापित फालुन इधर-उधर गतिविधि नहीं करता क्योंकि यही मूल स्थान है।

प्रश्न : क्या कोई फालुन की उपस्थिति और उसके आवर्तन का अनुभव कर सकता है?

उत्तर : इसको महसूस करने या देखने की आवश्यकता नहीं है। कुछ लोग बहुत संवेदनशील होते हैं और वे फालुन के आवर्तन को अनूभव करेंगे। फालुन की स्थापना के बाद, शुरू में हो सकता है आप शरीर में कुछ बचैनी अनूभव करें, अनन्द में दर्द हो सकता है, या यह महसूस करेंगे कि कोई वस्तु घूम रही है और कुछ गर्माहट महसूस कर सकते हैं, आदि। जब आप इसके अभ्यस्त हो जाएंगे आपको कोई संवेदना नहीं होगी। फिर भी, आलौकिक सिध्दियों के लोग इसे देख सकते हैं। यह इसी प्रकार है जैसे अन्दर; आप अपने अन्दर की गतिविधि को महसूस नहीं करते।

प्रश्न : फालुन के प्रतीक पर जिस दिशा में फालुन का घूमना दर्शाया गया है वह उस प्रकार का नहीं है, जैसा कि स्टूडेन्ट पास पर था (बेजिंग में पहली और दूसरी गोष्ठी के प्रसंग में)। स्टूडेन्ट पास पर गोष्ठी के लिए मुद्रित फालुन घड़ी की विपरीत दिशा से घूमता दर्शाया गया है। क्यों?

उत्तर : उद्देश्य यह है कि आपको कुछ अच्छा दिया जाए। इसकी ष्ष्क्ति बाहर की ओर सभी के शरीर को व्यवस्थित करता है, इसलिए यह घड़ी की दिशा में नहीं घूमता। आप इसे घूमते हुए देख सकते हैं।

प्रश्न : गुरु विद्यार्थियों में फालुन कब स्थापित करते हैं?

उत्तर : हम यहां आप सबसे इस पर चर्चा करना चाहते हैं। हमारे पास कुछ विद्यार्थी हैं जिन्होंने इससे पहले बहुत से बिभिन्न अभ्यास किए हैं। कठिनाई इस बात की है कि हमको शरीर में विद्यमान सारी गंदी और विकार ग्रस्त वस्तुओं को से छुटकारा पाना है, अच्छी वस्तुओं को रखना और बुरी को छोड़ना है। इसलिए यह एक अतिरिक्त कदम है। इसके बाद, फालुन स्थापित किया जा सकता है। हर व्यक्ति के अभ्यास के स्तर के अनुसार, स्थापित फालुन का आकार अलग-अलग होगा। कुछ लोगों ने इससे पहले 'चीगोंग' का अभ्यास नहीं किया होगा। उनके पुन: सामंजस्य करने और पैदायशी गुणों के कारण, मेरी कक्षा में कुछ लोग रोगमुक्त हो गये होंगे और ''ची'' के स्तर को छोड़कर दुधिया श्वेत शरीर (मिल्की व्हाइट बॉडी) की दशा में प्रवेश कर गये होंगे। उन परिस्थितियों में फालुन भी स्थापित किया जा सकता है। बहुत से लोगों का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है और उनका निरन्तर व्यवस्थित करते रहना पड़ेगा। इसलिए जब तक सामंजस्य पूर्ण नहीं हो जाते, फालुन कैसे स्थापित किया जा सकता है? ऐसे लोग कम हैं। चिन्ता न करें। मैंने पहले से ही ऊर्जा-यंत्र स्थापित कर दिया है जो फालुन का निर्माण कर सकता है।

प्रश्न : फालुन किस प्रकार ले जाया जा सकता है?

उत्तर : यह ले जाया नहीं जाता। मैं फालुन को भेजता हूं और आपके उदर के नीचे स्थापित करता हूं। यह हमारे भौतिक आयाम में नहीं है, बल्कि एक भिन्न आयाम में है। आपके उदर के नीचे जो अंतड़ियां हैं, यदि वे घूमने लग जायें तो क्या होगा और इस आयाम में हों। यह अन्य आयाम में है और इस आयाम से कोई भी विरोधाभास नहीं है।

प्रश्न : क्या आप अपनी अगली कक्षा में फालुन देना जारी रखेंगे?

उत्तर : आपको केवल एक मिलेगा। कुछ लोग उनके फालुनों के घूमने को महसूस करते हैं। यह बाहरी प्रयोग के लिए है, और केवल आपके शरीर को व्यवस्थित करने के लिए है। हमारी क्रियाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जब ऊर्जा बाहर निकलती है, तो कई फालुन निकलते हैं श्रृंखलाबध्द। इसलिए, अभ्यास आरंभ करने से पहले आपके शरीर में कई फालुन घूम रहे होते हैं और शरीर को संकलित करते रहते हैं। मैंने वास्तव में जो फालुन आपको दिया है, वह आपके निचले उदर में स्थापित है।

प्रश्न : क्या अभ्यास बंद करने से, फालुन लुप्त हो जाएगा? मेरे शरीर में फालुन कब तक रह सकता है?

उत्तर : जब तक आप स्वयं को अभ्यासी समझते रहेंगे और मेरे द्वारा बताई गई नैतिकगुण (नैतिक चरित्र) आवश्यकताएं पूरी करते रहेंगे, तो लुप्त होने का प्रश्न ही नहीं बल्कि और सुदृढ़ होगा। आपका ष्क्तीष्सामर्थ्य और भी बढ़ता रहेगा। परन्तु इसके विपरीत, यदि आप और लोगों की अपेक्षा अधिक अभ्यास करते हैं किन्तु मेरे द्वारा बताये गये 'नैतिकगुण' के मानदंड को बनाये रखने में असफल रहते हैं, तो मुझे डर है कि वह अभ्यास असफल होगा। यद्यपि कोई लाभ नहीं होगा। आप चाहे किसी भी प्रकार की पध्दति का अभ्यास करते हैं, यदि आप उसकी आवश्यकताओं के अनुसार नहीं करते हैं, तो बहुत संभव है कि आप एक अनिष्ट अभ्यास कर रहे हैं। यदि आपके मन में केवल बुरी बातें ही हैं, ''कितना खराब है वह आदमी, मुझे एक बार आलौकिक शक्तियां प्राप्त हो जायें, फिर उसे ठिकाने लगा दूंगा'', आदि, तो यदि आप फालुन गोंग का अभ्यास कर भी रहे हैं, जब आप ऐसे विचार अपने अभ्यास में जोड़ देते हैं और मेरे द्वारा बताये 'नैतिकगुण' आवश्यकताओं के अनुसार नहीं चलते तो क्या आप एक अनिष्टकारी अभ्यास नहीं कर रहे हैं?

प्रश्न : गुरु अक्सर कहते हैं ''यदि आप एक करोड़ डालर भी खर्च करें आप फालुन नहीं पा सकते'' इसका क्या अर्थ है?

उत्तर : इसका अर्थ यह है कि यह अविश्वसनीय रूप से बहुमूल्य है। मैं जो आपको देता हूं, वह केवल फालुन ही नहीं है - और बहुत सी वस्तुऐं हैं जो आपके अभ्यास की गारंटी करती हैं और वे भी बहुमूल्य हैं। उनमें से किसी को भी पैसों से नहीं आंका जा सकता।

प्रश्न : जो लोग देरी से आते हैं, क्या उनको भी फालुन मिल सकता है?

उत्तर : यदि आप अंतिम तीन दिनों से पहले आये हैं, तो आपके शरीर को संतुलित किया जा सकता है और फालुन तथा अन्य वस्तुऐं स्थापित की जा सकती हैं। यदि आप अंतिम तीन दिनों में आये हैं तो यह कहना कठिन होगा, किन्तु फिर भी आपको व्यवस्थित किया जायेगा। वस्तुओं को स्थापित करना कठिन होता है। यदि आपकी स्थिति अनुकूल है, तो वे आपको शरीर में स्थापित कर दी जायेंगी।

प्रश्न : क्या केवल फालुन ही वह वस्तु है जिससे मानव शरीर की किसी भी गलत स्थिति को संशोधित किया जा सकता है?

उत्तर : शरीर को संशोधित करना पूरी तरह फालुन पर ही निर्भर नहीं होता है। गुरु सुधार के लिए और बहुत से तरीकों का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न : फालुन गोंग के सृजन की पूर्व-एतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?

उत्तर : मैं सोचता हूं, यह एक अत्यंत विस्तृत प्रश्न है, और बहुत ऊंचे स्तर का है, कम नहीं। जिस स्तर पर हम हैं उसके अनुसार जितना हमें जानने का अधिकार है, यह उससे बाहर है। मैं यहां इस पर चर्चा नहीं कर सकता। किन्तु आपको एक बात समझ लेनी चाहिए : यह बुध्द मत का 'चीगोंग' नहीं है - यह बुध्द विचारधारा का 'चीगोंग' है। यह बुध्द मत नहीं है, यद्यपि हमारा उद्देश्य वही है जो बुध्द मत का है। यह इस प्रकार है कि साधना की दो अलग पध्दतियां हैं, जिनके दो भिन्न मार्ग हैं। हमारा उद्देश्य एक ही है।

प्रश्न : फालुन गोंग का इतिहास कितना लंबा है?

उत्तर : जिस पध्दति से मैंने प्रशिक्षण लिया, उससे यह पध्दति जो मैंने सार्वजनिक की है, भिन्न है। जिस फालुन की मैंने साधना की है, वह अब सिखाये और दिए जा रहे फालुन से अधिक शक्तिशाली है। साथ ही, मेरा गोंग जितना इस पध्दति में स्वीकार्य है उसकी तुलना में अधिक तेजी से विकसित हुआ। फिर भी मैंने जो अभ्यास पध्दति सार्वजनिक की है, उससे गोंग का विकास तेजी से होता है, इसलिए अभ्यासियों की नैतिकगुण आवश्यकताएं साधारण पध्दतियों की तुलना में कठोर हैं और ऊंची हैं। जो बस्तुएं मैंने सार्वजनिक की है उसे दोबारा क्रमबध्द किया गया है और उसकी कम कठिन आवश्यताऐं हैं, उसकी तुलना में जो मैंने अभ्यास किया था, किन्तु एक साधारण अभ्यास पध्दति से भिन्न है, मुझे इसका संस्थापक कहा जाता है। जहां तक फालुन गोंग के इतिहास समयावधि का प्रश्न है, उन वर्षों को छोड़ कर जब यह सार्वजनिक नहीं किया गया था, आप यह कह सकते हैं कि इसका आरंभ सन् 1992 में हुआ, जब मैंने उत्तर-पूर्व में यह सिखाना शुरू किया।

प्रश्न : जैसे हम आपके व्याख्यानों को सुनते हैं, गुरु हमें क्या देते हैं?

उत्तर : मैं प्रत्येक को फालुन देता हूं। एक फालुन साधना अभ्यास के लिए है तथा अन्य फालुन शरीर को व्यवस्थित करने के लिए है। साथ ही, मेरे विधि शरीर आपकी देखरेख कर रहे हैं - हर एक अभ्यासी की ज़ब तक आप फालुन गोंग की साधना करते हैं। अगर आप अभ्यास नहीं करते हैं तो यह स्वाभाविक है कि विधि-शरीर आपकी देखभाल नहीं करेंगे।

प्रश्न : क्या फालुन गोंग मुझे साधना में ''उचित फल'' (राइट फ्रूट) की प्राप्ति में मदद कर सकता है?

उत्तर : 'महान विधि' (दाफा) असीमित है। यदि आप साधना में तथागत के स्तर तक भी पहुंच जायें तो भी यह अन्त नहीं है। हम पवित्र साधना पध्दति से संबंधित हैं - आगे बढ़िए और साधना कीजिए! आपको उचित फल की ही प्राप्ति होगी।


2. अभ्यास के सिध्दांत और तरीके

प्रश्न : ''दि हैविनली सरकुलेशन'' (स्वर्गीय परिपथ) क्रिया करने के बाद और घर वापिस आने पर, कुछ लोग स्वप्न देखते हैं जिनमें वे स्पष्ट रूप से अपने आप को आकाश में तैरता हुआ दीखते हैं। यह किस बारे में है?

उत्तर : मैं कह सकता हूं कि जब आपके साथ ध्यान अवस्था या स्वप्नों में इस प्रकार कुछ होता है, तो वे स्वप्न नहीं है। यह आपकी आदि चेतना (युआनशेन) है, जो आपके भौतिक शरीर को छोड़कर जाती है जो स्वप्न अवस्था से पूर्णत: भिन्न है। जब आप स्वप्न देखते हैं, तो आप इतना स्पष्ट या विस्तार से नहीं देखते हैं। जब आपकी चेतना आपके शरीर को छोड़ती हे, तो जो आप देखते हैं और जिस प्रकार आकाश में उड़ते हैं, यह वास्तविकता से देखा और स्पष्ट याद किया जा सकता है।

प्रश्न : यदि फालुन विकृत हो जाए तो इसका क्या अनिष्ट परिणाम होगा?

उत्तर : इसका यह अर्थ है कि वह व्यक्ति भटक गया है और इसलिए फालुन ने अपना प्रभाव खो दिया है। इसके अतिरिक्त इससे आपकी साधना में बहुत सी समस्याऐं उत्पन्न हो जाएंगी। यह मुख्य पथ को छोड़कर साथ की गली में चलने जैसा है जहां आप भटक गये हैं और अपना रास्ता नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं। आपको समस्याओं का सामना करना पड़ेगा और इनका प्रभाव आपके दैनिक जीवन पर होगा।

प्रश्न : जब हम स्वयं ही अभ्यास करते हैं तो घर के वातावरण को कैसे व्यवस्थित करें? क्या फालुन घर में हो सकता है?

उत्तर : आप में से यहां बैठे हुए बहुत से लोग अपने घरों में फालुन की उपस्थिति को पहले ही देख चुके हैं। परिवार के सदस्यों ने भी इससे लाभ प्राप्त करना आरंभ कर दिया है। जैसा हमने पहले बताया है, एक ही समय और एक ही स्थान पर, बहुत से आयामों का अस्तित्व है। आपका घर भी इससे अछूता नहीं है; और इसका ध्यान रखना आवश्यक है। साधारणत: जिस तरीके से इसे किया जाता है, वह है कि अनिष्टकारी वस्तुओं को हटाना और उसके बाद एक कवच स्थापित करना है। जिससे घर में कोई बुरी वस्तु न प्रवेश कर सके।

प्रश्न : अभ्यास के समय, ची एक रोगग्रस्त स्थान से टकराती है, जिससे दर्द और सूजन बढ़ जाती है। ऐसा क्यों होता है?

उत्तर : रोग एक प्रकार की काली ऊर्जा का पुंज है। कक्षा के आरंभ में ही जब हम इसे टुकड़ों में विभाजित कर देते हैं, उस स्थान पर सूजन का अहसास होगा। इसने अपनी जड़ें पहले से खो दी हैं, और बाहर को निकलना आरंभ कर दिया है। इसे शीघ्र ही बाहर निकाल दिया जायेगा और रोग का अस्तित्व नहीं बचेगा।

प्रश्न : गोष्ठी में कुछ दिनों के बाद, मेरी पुरानी बिमारियां समाप्त हो गई थीं, किन्तु कुछ दिन बाद अचानक फिर लौट कर आ गईं। क्यों?

उत्तर : क्योंकि हमारी अभ्यास प्रणाली के साथ सुधार शीघ्रता से होते हैं और आपके स्तर बहुत कम समय में बदलते हैं, आपके जानने से पहले ही आप रोगमुक्त हो जाते हैं। जैसा मैं बता चुका हूं, बाद के लक्षणों को ''कष्टों'' का आना कहा जा सकता है। महसूस करें और ध्यान से देखें। ये पुरानी बीमारी के लक्षणों से अलग हैं। यदि आप अपने शरीर को व्यवस्थित करने के लिए दूसरे चीगोंग गुरुओं को दिखाएंगे, तो वे यह नहीं कर सकेंगे। 'गोंग' की वृध्दि के समय, यह आपके कर्म की अभिव्यक्ति है।

प्रश्न : साधना करते हुए, क्या हम औषधि ले सकते हैं?

उत्तर : इस समस्या के बारे में आप स्वयं निर्णय करें। साधना के दौरान औषधि लेने का अर्थ है कि साधना द्वारा बीमारी को दूर करने के प्रभाव पर आप विश्वास नहीं करते। यदि आप इस पर विश्वास करते, तो आप क्यों औषधि लेते? यदि आप अपना 'नैतिकगुण' ठीक नहीं रख सकते तो समस्या आने पर आप कहेंगे कि लि-होंगज़ी ने औषधि लेने से मना किया है। लेकिन लि-होंगज़ी ने आप से यह भी कहा है कि 'नैतिकगुण' के उच्च स्तर पर कठोरता स्थिर रहें। क्या आपने ऐसा किया है? सच्चे अभ्यासियों के शरीरों में जो वस्तुऐं होती हैं, वह साधारण लोगों में नहीं होतीं। साधारण लोगों को होने वाली सभी बीमारियां आपके शरीर में नहीं हो सकती। यदि आपका मन पवित्र है और आपको यह विश्वास है कि साधना से रोगमुक्ति हो सकती है तो आप औषधि लेना बन्द कर दें, इस संबंध में कोई चिन्ता न करें और उपचार न करें, कोई स्वाभाविक ही आपको रोगमुक्त कर देगा। आप सब प्रतिदिन पहले से अधिक स्वस्थ हो रहे हैं, और अनुभव कर रहे हैं। ऐसा क्यों है? मेरे विधि स्वरूप आप में से बहुतों के शरीरों पर आने-जाने के काम में व्यस्त हैं। वे अपने काम से आपकी सहायता कर रहे हैं। साधना करते समय, यदि आपका मन स्थिर नहीं है और अविश्वास का या कोशिश करके देखते हैं, का रवैया अपनाते हैं, तो आपको कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। आप बुध्द में विश्वास करते हैं या नहीं, यह आपके ज्ञान प्राप्ति के गुण और पैदायशी गुण पर निर्भर करता है। यदि एक बुध्द, जिन्हें मानव आंखों से स्पष्ट देखा जा सकता, यहां प्रकट हो जाए, तो हर मनुष्य बुध्द मत का अध्ययन करने चला जाता। तब आपकी विचारधारा में परिवर्तन का विषय ही न उठता। आपको पहले विश्वास करना चाहिए, तब आप देख सकेंगे।

प्रश्न : कुछ लोग गुरु को और उनके शिष्यों को रोग उपचार के लिए आमन्त्रित करना चाहते हैं। क्या यह स्वीकार्य है?

उत्तर : मैं जनता में रोग उपचार करने नहीं आया हूं। जब लोग हैं तो बीमारी होंगी ही। कुछ लोग मेरे शब्दों को समझ ही नहीं सकते, किन्तु मैं इससे आगे नहीं समझाऊंगा। बुध्द मत की अभ्यास पध्दतियां सभी चेतन प्राणियों के उध्दार के लिए है। यह रोग उपचार करना मान्य है। हमारे द्वारा दूसरों का उपचार करना मूल रूप से संगठनात्मक और प्रचार करने के लिए है। क्योंकि मैं अभी जनता में आया हूं और लोग मुझसे भलीभांति परिचित नहीं हैं तो हो सकता है कि मेरे व्याख्यान में कोई न आये। परामर्श करते समय, रोग उपचार करते हुए हम सबको फालुन गोंग का दृश्य देखने देते हैं। इस प्रदर्शन के परिणाम बहुत अच्छे रहे। इस प्रकार इसे केवल रोग उपचार के लिए ही नहीं किया। व्यवसायिक रूप से शक्तिशाली गोंग द्वारा उपचार करना मना है और न ही इस विश्व के नियमों को दूसरे विश्व के नियमों से बदलने की आज्ञा है। अन्यथा, रोग उपचार के परिणाम अच्छे नहीं होते। साधक विद्यार्थियों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए, हमें आपके शरीरों को रोग मुक्त अवस्था तक व्यवस्थित करना चाहिए - तभी आप उच्च स्तरों पर साधना कर सकते हैं। यदि आप सदैव अपनी बीमारी को लेकर चिन्तित रहते हैं और जरा भी साधना के इच्छुक नहीं हैं, यद्यपि आप कुछ भी न कहें, मेरा विधि स्वरूप आपके विचारों को स्पष्ट जानता है, और अंत में आपको कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। कक्षा के दौरान, हम आपके शरीरों को व्यवस्थित कर चुके हैं। वास्तव में, पहले आपको एक साधक लेना होगा। मैं आपके लिए आपके रोग का उपचार नहीं करूंगा और सत्र के बीच में आपसे धन नहीं मांगने लगूंगा - हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे। यदि आपकी बीमारी दूर नहीं हुई है, तो यह आपके ज्ञान प्राप्ति के गुरु की समस्या है। हम उन मामलों को अवश्य ही छोड़ नहीं देते जिनमें कुछ व्यक्ति बहुत बीमार हैं। आपके शरीर में उनका प्रतिफल भले ही दिखलाई न पड़े, लेकिन वह बहुत प्रबल है। हो सकता है एक बार व्यवस्थित करना बहुत न हो, फिर भी हमने अपनी ओर से भरपूर प्रयास किया है। यह बात नहीं है कि हम उत्तरदायी नहीं हैं, यह इसलिए कि रोग वास्तव में बहुत गंभीर है। जब आप अपने घर जाते हैं, और वहां साधना करते हैं, हम आपका उपचार उस समय तक करते रहेंगे जब तक आप पूर्णत: रोगमुक्त नहीं हो जाते। इस प्रकार के मामले बहुत कम है।

प्रश्न : अभ्यास करते समय हम शांत भाव में कैसे प्रवेश करते हैं? क्रियाओं का अभ्यास करते समय, यदि हम कार्यस्थल की समस्याओं के बारे में सोचें, तो क्या इसे आसक्ति समझा जायेगा?

उत्तर : अपने स्वार्थ से संबंधित मामलों को हल्केपन से लें, और मन सदैव स्पष्ट और स्वच्छ रखें। यदि आप तैयार हैं और यह जानते हैं कि विपत्तियां कब आने वाली हैं और वे कैसी होंगी, तो वे विपत्तियां नहीं रहेंगी। विपत्तियां अधिकांश अचानक और अघोषित आती हैं। यदि आप पूर्णत: वचनबध्द हैं, आप अवश्य ही उनसे उतीर्ण होंगे। केवल, इसी तरीके से आपके 'नैतिकगुण' का मूल्यांकन किया जा सकता है। एक बार आपकी आसक्तियां समाप्त हो जाती हैं, आपका 'नैतिकगुण' विकसित हो जाता है, आपकी दूसरों से लड़ने- झगड़ने की इच्छा समाप्त हो जाती है, आप दुश्मनी व मन-मुटाव भूल जाते हैं, और आपके विचार स्वच्छ हो जाते हैं, तब अपनी शांति प्राप्त करने की योग्यता के बारे में बात कर सकते हैं। यदि अब भी शांत नहीं हो पाते, तो आप स्वयं को दूसरा व्यक्ति समझें और उन विचारों को और किसी का समझें। कितने ही अलग-अलग विचार आयें, आप उन विचारों से बाहर निकल जायें और उन्हें इधर-उधर मुक्त घूमने दें। कुछ लोग यह सुझाव देंगे कि बुध्द के नाम का जप करें या गिनती गिनते रहें। यह सब विभिन्न प्रकार की पध्दतियां हैं जो अभ्यास में अपनायी जाती हैं। जब हम अभ्यास करते हैं, तो हमें किसी वस्तु पर विचार केन्द्रित करने की आवश्यकता नहीं है। किन्तु आपको यह जाने रखना है कि आप अभ्यास कर रहे हैं। कार्यस्थल के बारे में जो आपकी समस्या में उन्हें स्वार्थ नहीं माना जाता। वे आसक्तियां नहीं हैं और वह अच्छे स्वभाव की हैं। मैं एक सन्यासी को जानता हूं जो इस बात को अच्छी तरह समझता है। वह एक मंदिर का संचालक है और उसे बहुत सारे काम होते हैं। फिर भी, जब एक बार वह बैठता है, तो स्वयं को उन विचारों से अलग कर लेता है। यह निश्चित है कि वह उन के बारे में नहीं सोचता। यह भी एक योग्यता है। जब वह क्रिया अभ्यास करता है, तो वास्तव में उसके मन में कुछ भी नहीं होता है निजी विचार या कल्पना का जरा भी अंश नहीं। यदि आप अपने निजी जीवन को कार्यस्थल से नहीं मिलाते, तो भी आप अच्छे रहेंगे।

प्रश्न : अभ्यास करते समय, यदि बुरे विचार आयें, तो हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर : अभ्यास करते समय, बहुत से बुरे विचार समय-समय पर उत्पन्न हो सकते हैं। यह अभी आपकी साधना का आरंभ ही है, और शुरू में ही एक अत्यंत ऊंचे स्तर पर पहुंचना असंभव है, और न ही अभी हम आपके ऊपर बहुत ऊंची आवश्यकताएं थोपेंगे। आपसे यह कहना अव्यवहारिक होगा, कि मन से बुरे विचारों को आने से रोकिए, क्योंकि यह काम धीरे-धीरे होना है। आरंभ में, यह ठीक है, किन्तु अपने विचारों को इधर-उधर बेलगाम न भटकने दें। जैसे-जैसे समय गुजरता जाएगा, आपका मन ऊंचा उठेगा, और आपको स्वयं को ऊंचे मानदण्ड पर बनाये रखना होगा क्योंकि आप महान विधि (दाफा) की साधना कर रहे हैं। इस कक्षा को पूर्ण करने के बाद, आप एक साधारण व्यक्ति अब नहीं हैं। आपके शरीर में अब जो वस्तुएं हैं वे इतनी आलौकिक हैं कि आपको अपने 'नैतिकगुण' पर कठिन आवश्यकताएं रखनी होंगी।

प्रश्न : जब मैं अभ्यास करता हूं तो यह महसूस करता हूं कि मेरा सिर और पेट घूम रहे हैं और छाती के आसपास बेचैनी होती है।

उत्तर : फालुन के घूमने से शुरू में ऐसा हो सकता है। भविष्य में आपको यह कठिनाई नहीं होगी।

प्रश्न : अभ्यास के समय छोटे जानवर आकर्षित होते हैं, हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर : किसी भी प्रकार का साधना अभ्यास आप करें, उससे छोटे जानवर आकर्षित होते हैं उन पर ध्यान मत दीजिए बस। यह इसलिए है कि वहां सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र है। विशेषकर बुध्द विचारधारा के अनुसार, गोंग में वे सब पदार्थ हैं, जो सभी जीवित प्राणियों के लिए सहायक हैं। जब हमारा 'फालुन' घड़ी की दिशा में घूमता है, वह हमें सहायक होता है; जब वह घड़ी की विपरीत दिशा में घूमता है, तो वह दूसरों की सहायता करता है। वह फिर दोबारा घड़ी की दिशा में घूमता है; इसलिए सब तरफ सभी को लाभ पहुंचता है।

प्रश्न : ''ब्रह्मांड के दोनों छोरों को भेदने'' की क्रिया में, जब हाथ ऊपर-नीचे एक बार होता है तो उसे क्या एक गिना जायेगा? ''बुध्द के हजार हाथों का प्रदर्शन'' की क्रिया में, मुझे अपने हाथ फैलाने से पहले स्वयं को बहुत बड़ा और ऊंचा होने की कल्पना करनी चाहिए?

उत्तर : प्रत्येक हाथ एक बार ऊपर और नीचे होता है तो उसे एक बार ही गिना जाता है। जब ''बुध्द के हजार हाथों का प्रदर्शन'', की क्रिया में, आपको अपने बारे में कुछ भी नहीं सोचना चाहिए। आप स्वभावत: बड़े और ऊंचे महसूस करेंगे। आपको केवल यह अहसास होना चाहिए कि आप स्वर्ग और पृथ्वी के बीच में सबसे विशाल प्राणी हैं। केवल वहां खड़ा होना पर्याप्त है। उस अहसास को जानबूझ कर लाने का प्रयास न करें, क्योंकि ऐसा करना एक लगाव हो जाता है।

प्रश्न : बैठे हुए ध्यान की अवस्था का अभ्यास करते हुए, यदि मैं कमल की मुद्रा में पैर न रख सकूं, तो क्या होगा?

उत्तर : अगर आप कमल मुद्रा में पैर नहीं रख सकते, तो आप कुर्सी के एक किनारे पर बैठ कर अभ्यास कर सकते हैं। उसका प्रभाव समान होगा। चूंकि आप एक साधक हैं, आपको पैरों का अभ्यास करके क्रिया में कमल मुद्रा में बैठना चाहिए। अपने पैरों को आर-पार करने के लिए कुर्सी के एक किनारे पर बैठें। अंत में, आप अपने पैर आर-पार (कमल मुद्रा में) कर सकेंगे। जैसे-जैसे, आपका अभ्यास बढ़ता जायेगा, आपकी आयु भी बढ़ती जाएगी। क्या इससे आपको अपने अभ्यास में वृध्दि करने का पर्याप्त समय नहीं मिलता है? लेकिन क्रियाओं की विशेष बात है क्योंकि वे मस्तिष्क और शरीर दोनों की वृध्दि करते हैं। जब आपकी आयु में वृध्दि होती है और अगर आपको अपनी 'नैतिकगुण' की समस्या है, तो आपके जीवन को तुरंत खतरा हो जाएगा। क्योंकि आपकी आयु में वृध्दि अभ्यास में वृध्दि के लिए की गई है, तो यदि एक बार भी आपकी 'नैतिकगुण' गड़बड़ा जाती है, तो आपके जीवन को तुरंत खतरा पैदा हो जाएगा।

प्रश्न : ''दृढ़ किन्तु सौम्य'' का प्रभाव प्राप्त करने के लिए, हमको कितनी शक्ति लगानी चाहिए?

उत्तर : इसका पता आपको स्वयं लगाना होगा। उदाहरण के लिए जब हम वृहत हस्त मुद्राऐं करते हैं, तो हाथ बहुत सौम्य दिखाई पड़ते हैं, किन्तु मुद्राऐं वास्तव में ताकत के साथ की जाती हैं। बांहों, कलाई और अंगुलियों के बीच ताकत काफी मजबूत होती है। तब भी वे सब बहुत सौम्य लगते हैं। यह ''सौम्य में दृढ़ता'' है। जब मैंने आप सब के लिए हस्त मुद्राएं कीं, मैंने आपको पहले से ही शक्ति दे दी थी। धीरे-धीरे अभ्यास करते समय, आप यह महसूस करेंगे।

प्रश्न : क्या यह सत्य है कि पुरुष और स्त्री में काम वासना के संबंध आवश्यक नहीं हैं? क्या नौजवान लोगों को तलाक दे देना चाहिए?

उत्तर : पहले भी काम वासना पर चर्चा हो चुकी है। आपके वर्तमान स्तर पर, आपको सन्यासी बनने के लिए नहीं कहा गया है। यह तो आप स्वयं अपने आपको इनमें से एक बनने के लिए पूछ रहे हो (हम नहीं)। कुंजी है कि आपके लिए (काम वासना की) उस आसक्ति को छोड़ें। जिन बंधनों को आप छोड़ना नहीं चाहते, वे सब बंधन आपको छोड़ने हैं। साधारण व्यक्ति के लिए यह एक प्रकार की इच्छा है। किन्तु साधकों के लिए, हमें यह छोड़ देने योग्य होना होगा और इसे महत्व नहीं देना होगा। कुछ लोग वास्तव में इसके पीछे पड़े रहते हैं और उनके दिमाग में ये सब बातें भरी रहती हैं। साधारण लोगों की तुलना में भी, उनकी इच्छा बहुत अधिक होती है। साधकों के लिए तो यह और भी अनुचित है। क्योंकि आप साधना करते हैं और परिवार के सदस्य नहीं, इसलिए आपके जीवन की वर्तमान अवस्था में आपके लिए साधारण जीवन व्यतीत करना स्वीकार्य है। जब आप ऊंचे स्तर पर पहुंचेंगे, आप स्वयं जान लेंगे कि आपको क्या करना चाहिए।

प्रश्न : ध्यान में बैठने पर यदि नींद आ जाए, तो क्या यह ठीक है? मैं इस पर कैसे काबू कंरू? मैं कभी-कभी तीन मिनिट तक चेतना खो देता हूं और मुझे पता नहीं होता कि क्या हो रहा है।

उत्तर : नहीं, सोना ठीक नहीं है। जब आप अभ्यास कर रहे हैं तो कैसे सो सकते हैं? ध्यान में सोना भी एक प्रकार का राक्षसी हस्तक्षेप है। ऊंघना भी नहीं चाहिए। क्या ऐसा हो सकता है कि आपने अपना प्रश्न स्पष्ट रूप से लिखकर नहीं दिया? तीन मिनिट तक अचेतन रहने का यह अर्थ नहीं है कि कुछ गलत हो गया है। अचेतन होने की अवस्था प्राय: बेहतर दिंग (मन की शांत किन्तु चेतन अवस्था) प्राप्त करने का सामर्थ्य रखने वाले लोगों में होती है। फिर भी, यदि यह स्थिति अधिक समय के लिए होती है, तो एक समस्या का रूप धारण कर लेगी।

प्रश्न : क्या यह सत्य है कि जो अभ्यास करके 'राइट फ्रूट' प्राप्त करने के लिए संकल्पित हैं, वह उसे प्राप्त कर सकता है? यदि उनके पैदायशी गुण निम्न हैं, तो क्या होगा?

उत्तर : यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने किस प्रकार का संकल्प लिया है महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका निश्चय कितना दृढ़ है। जहां तक पैदायशी निम्न गुण के कारण है, फिर भी यह आपके संकल्प और ज्ञान के गुण पर निर्भर करता है।

प्रश्न : यदि मुझे जुकाम या बुखार हो तो क्या मैं फिर भी अभ्यास कर सकता हूं?

उत्तर : मैं यह कह रहा हूं कि इस कक्षा की समाप्ति के बाद आप कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। हो सकता है आपको विश्वास न हो। कभी-कभार मेरे विद्यार्थियों में जुकाम या बुखार के लक्षण क्यों दिखाई पड़ते हैं; यह विपत्ति और कठिनाई में उत्तीर्ण होना है और यह इंगित करता है कि आपका अगले स्तर पर विकास होना तय है। वे सब समझते हैं कि उनको इस बारे में ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, और यह गुजर जाएगा।

प्रश्न : क्या गर्भवती महिलाएं 'फालुन गोंग' का अभ्यास कर सकती हैं?

उत्तर : यह एक समस्या नहीं है क्योंकि फालुन की स्थापना दूसरे परिमाण में की गई है। हमारी अभ्यास प्रणाली में तेज गति वाली क्रियाऐं नहीं हैं जिसका गर्भवती स्त्री पर कोई बुरा प्रभाव पड़े। वास्तव में, यह उनके लिए लाभदायक है।

प्रश्न : जब गुरु हमसे दूर हों तो क्या उसका कोई प्रभाव होगा?

उत्तर : बहुत से लोगों के मन में यह विचार है : ''बेजिंग में गुरु नहीं हैं। हमें क्या करना चाहिए?'' यह बिल्कुल उसी प्रकार है ज़ब आप दूसरे प्रकार की क्रियाऐं करते हैं ग़ुरु प्रतिदिन आप पर दृष्टि नहीं रख सकते। सिध्दांत (फा) आपको सिखा दिया गया है; नियम आपको सिखा दिए गए हैं। क्रियाओं के संग्रह आपको सिखा दिए गए हैं; शक्ति-यन्त्रों का पूरा संग्रह आपको दिया जा चुका है। आप किस प्रकार साधना करते हैं, यह पूर्ण रूप से आप पर निर्भर है। आप यह नहीं कह सकते कि मैं आपके पास हूं तो आपको गारंटी होगी अन्यथा नहीं। हम आपको एक उदाहरण देते हैं। शाक्यमुनि को गुजरे हुए दो हजार से अधिक वर्ष हो गये हैं, बुध्दमतावलंबी अपनी साधना में निर्विचार अभी भी प्रयासरत हैं। इसलिए, आप साधना करते हैं या नहीं यह एक निजी निर्णय है।

प्रश्न : क्या फालुन गोंग के अभ्यास से ''बीगू'' स्थिति (भोजन, पानी का त्याग) हो जाएगी?

उत्तर : नहीं ऐसा नहीं होगा क्योंकि ''बीगू'' महान आदि-ताओ मत जो बुध्दमत और ताओ मत से भी प्राचीन है, की एक साधना पध्दति है; इसका अस्तित्व धर्मों की स्थापना से भी पूर्व था। यह प्रणाली में एकांतवास साधना से संबंधित है। क्योंकि महान आदि-ताओ मत के समय में कोई मंदिर-मठ प्रणाली नहीं थी, साधकों को किसी पर्वतीय स्थान पर साधना करनी होती थी, जहां उन्हें भोजन पहुंचाना असंभव था। जब उन्हें एकान्त में साधना करनी थी, जिसमें छ: महीने से एक वर्ष तक स्थिर रहना आवश्यक था, तो उन्होंने यह तरीका अपना लिया। आज, हमारे अभ्यास में ''बीगू'' आवश्यक नहीं है, क्योंकि पहले विशेष परिस्थितियों में ऐसा होता था। यह निश्चित ही आलौकिक शक्ति नहीं है। कुछ लोग इस प्रणाली को सिखाते हैं। मैं कहता हूं यदि पूरे विश्व भर के लोगों को भोजन की आवश्यकता न पड़े, तो साधारण लोगों की सामाजिक दशा में खलबली मच जाएगी। इस प्रकार इससे समस्या उत्पन्न होगी। यदि कोई भोजन न करे, तो क्या यह मानव समुदाय कहलाएगा? इसकी आज्ञा नहीं है और यह उस प्रकार नहीं होना चाहिए।

प्रश्न : पांच क्रियाओं का यह संग्रह हमें किस स्तर तक ले जायेगा?

उत्तर : यह पांच क्रियाओं का संग्रह आपको अत्यंत ऊंचे स्तर तक साधना में सहायता करेगा। निश्चय ही, समय आने पर आप यह जान जाएंगे कि आप किस स्तर तक साधना करना चाहते हैं। क्योंकि 'गोंग' की कोई सीमा नहीं है, जब आप उस स्तर पर पहुंचेंगे, तो आपके लिए दूसरी पूर्वनियोजित व्यवस्था होगी, और आप और भी ऊंचे स्तर का महान सिध्दांत (दाफा) प्राप्त करेंगे।

प्रश्न : ''फा अभ्यासी को परिष्कृत करता है'', क्या इसका अर्थ है कि, क्योंकि फालुन सदा घूमता रहता है, तो हमें अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं है?

उत्तर : अभ्यास मंदिरों में उपासना करने से भिन्न है। वास्तव में, जब आप किसी मंदिर में साधना करते हैं, तो भी आपको ध्यानावस्था में बैठना पड़ता है, यह वह योग्यता है जिसे अभ्यास करना आवश्यक है। आप यह नहीं कह सकते कि आप केवल अपना 'गोग' विकसित करना चाहते हैं और बिना कोई अभ्यास किये यह आपके सर के ऊपर उग आए तब आप अभ्यासी कैसे कहलाएंगे? मत में विरासत में प्राप्त कई वस्तुएं हैं जिन्हें अभ्यास से विकसित किया जाना आवश्यक है।

प्रश्न : दूसरी साधना प्रणालियों के अभ्यासी दावा करते हैं कि ''जिन अभ्यासों में मानसिक संकल्प नहीं होता। वे साधना नहीं है'' क्या यह ठीक है?

उत्तर : बहुत से भिन्न-भिन्न कथन हैं, किन्तु किसी ने भी आपको महान सिध्दांत उजागर नहीं किया है जैसे मैंने किया है। बुध्द विचारधारा में माना जाता है कि जिस साधना प्रणाली में संकल्प निहित हो, वह अधिक ऊंचे स्तर की नहीं हो सकती; ''जो साधना प्रणाली संकल्प का प्रयोग करती है'', उसका आशय उन अभ्यास प्रणालियों से नहीं है जिनमें गतिविधि होती है। उनकी ध्यान अवस्था और त्रेपिक में हाथों को जोड़ना भी गतिविधि है, इसलिए कि संख्या व गति व्यायामों आकार की चिन्ता नहीं है। ''संकल्प'' या ''बिन-संकल्प'' (वूवई) आपके मानसिक संकल्प को इंगित करते हैं। जहां तक अनुसरण का संबंध है, यदि आप में संकल्प है और आप अनुसरण करते हैं, तो वे आसक्ति हैं। इसका यही अर्थ है।

प्रश्न : नैतिकगुण ''सद्गुण'' के समान नहीं है। आप कहते हैं कि ''सद्गुण'' किसी के स्तर को निर्धारित करता है, लेकिन फिर आप कहते हैं कि 'नैतिकगुण' का स्तर 'गोंग' के स्तर को निर्धारित करता है क्या यह दोनों बातें परस्पर विराधी हैं?

उत्तर : आपने कदाचित स्पष्ट नहीं सुना होगा। 'नैतिकगुण' के अन्तर्गत व्यापक श्रेणी की वस्तऐं आती हैं, जिनमें 'सद्गुण' इसका एक भाग है। इसमें सहनशीलता, कष्ट सहने की शक्ति, ज्ञान प्राप्ति का गुण, संघर्षों से आप कैसे निबटते हैं, आदि भी शामिल हैं। ये सब 'नैतिकगुण' के विषय हैं जिनमें 'गोंग' और 'सद्गुण' का रूपातंरण सम्मिलित है। यह एक व्यापक मामला है। आपके पास कितना 'सद्गुण' है यह इस बात का संकेत नहीं है कि आपके पास 'गोंग' कितना है। इसके बजाए, यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में आप कितना 'गोंग' विकसित कर सकते हैं। केवल 'नैतिकगुण' में सुधार द्वारा ही 'सद्गुण' को 'गोंग' में रूपान्तरित किया जा सकता है।

प्रश्न : परिवार का हर एक सदस्य भिन्न प्रकार के 'चीगोंग' का अभ्यास करता है। क्या वे एक दूसरे से हस्तक्षेप करेंगे?

उत्तर : नहीं, फालुन गोंग के साथ नहीं। किन्तु मैं यह नहीं जानता हूं कि अभ्यास के अलग-अलग तरीके एक दूसरे से हस्तक्षेप करेंगे या नहीं। जहां तक 'फालुन गोंग' का प्रश्न है, इसके साथ कोई भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता। साथ ही, यह आपके परिवार के सदस्यों के लिए लाभदायक रहेगा। क्योंकि हम उचित विधि से साधना करते हैं और भटकने से बचे रहेंगे।

प्रश्न : समाज में बहुत से भिन्न-भिन्न प्रकार के वक्तव्य प्रचलित हैं, जैसे वह ''पत्रों की लड़ी'' का। हम उनके साथ किस प्रकार निबटें?

उत्तर : मैं यह बताना चाहता हूं कि यह सब स्पष्ट धोखा हैं उसके पत्र को वापस मत करो यह कितना दया का पात्र है। आप इसके साथ कुछ भी न करें। आप इसे देखकर ही पहचान सकते हैं कि यह ठीक है या नहीं। हमारे 'फा' में 'नैतिकगुण' साधना की कठोर आवश्यकताएं हैं। मैं कुछ 'चीगोंग' गुरुओं को चीगोंग सौदागर कहता हूं, क्योंकि वे 'चीगोंग' को व्यापार समझते हैं, और उसको रुपये में बदलने के लिए एक संपदा बना डाला है। इन लोगों के पास सिखाने के लिए वास्तव में कुछ भी नहीं है। यदि उनके पास कुछ थोड़ा बहुत है भी तो वह ऊंचे स्तर का नहीं होगा। बल्कि कुछ अनिष्टकारी भी हो सकता है।

प्रश्न : यदि 'फालुन गोंग' के विद्यार्थियों ने विधिवत मंदिरों में कुछ धर्म स्वीकार कर लिया है, तो उन्हें क्या करना चाहिए? क्या उन्हें छोड़ देना चाहिए?

उत्तर : हमें इस मामले से कोई सरोकार नहीं है। यद्यपि आपने विधिवत बुध्द धर्म स्वीकार किया है, किन्तु यह केवल एक औपचारिकता है।

प्रश्न : जबसे हमने अपना अध्ययन शुरू किया, तो हममें से बहुतों के सिरों में सूजन अनुभव होती है और सिर भारी लगता है।

उत्तर : यह इसलिए हो सकता है कि आप नये विद्यार्थी हैं और आपके शरीर पूरी तरह व्यवस्थित नहीं हुए हैं। जो शक्ति मैंने छोड़ी है, वह बहुत शक्तिशाली है। जब रोगयुक्त 'ची' बाहर निकलती है तो आपका सिर भारी लगेगा। यह उस समय होता है, जब हम आपके सिर का रोग उपचार कर रहे होते हैं, और यक एक अच्छी बात है। लेकिन जितनी जल्दी आपकी बीमारी दूर होती है, तो उसका प्रतिफल भी उतना अधिक होगा। जब हमने 7 दिनों की गोष्ठी आयोजित की थी, तो कुछ लोग सहन नहीं कर सके। अगर समय और कम कर दिया जाए, तो समस्याऐं पैदा हो सकती थी। जो शक्ति छोड़ी गई है, वह बहुत शक्तिशाली है और प्रतिफल बहुत तीव्र होते हैं, जिससे सिर की सूजन को असहनीय हो सकती है। ऐसा लगता है कि 10 दिन की गोष्ठी सुरक्षित है। जो लोग कुछ देर से आए उनकी प्रतिक्रिया और भी तेज़ हो सकती है।

प्रश्न : क्या हम अभ्यास के समय सिगरेट या शराब पी सकते हैं? यदि हमें अपने काम की प्रकृति को देखते हुए शराब पीनी पड़े तो?

उत्तर : मैं इस विषय को इस प्रकार देखता हूं। हमारे बुध्द विचारधारा 'चीगोंग' में शराब पीना वर्जित है। बिना शराब पिये हुए, कुछ समय बाद शायद आप दोबारा शराब पीना चाहें। धीरे-धीरे, छोड़ दें, किन्तु अधिक समय न लगायें, अन्यथा आपको सजा मिलेगी। जहां तक सिगरेट पीने का सवाल है, मैं समझता हूं, यह प्रश्न इच्छा शक्ति का है। यदि आप में इच्छा है आप छोड़ सकते हैं। साधारण लोग अक्सर यह सोचते हैं, ''मैं आज छोड़ दूंगा''। कई दिन बाद, वे इस पर अडिग नहीं रह पाते। तब, कुछ दिनों बाद, उनके मन में फिर विकार आता है और एक बार फिर छोड़ने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार चलते हुए, वे कभी सिगरेट पीना नहीं छोड़ सकेंगे। इस दुनिया में, साधारण लोग रहते हैं, और उनमें सामाजिक मेलजोल होना स्वाभाविक है। जब वे दूसरों के साथ संपर्क में आते हैं। किन्तु, एक बार अभ्यास आरंभ करने के बाद आप स्वयं को साधारण व्यक्ति न समझें। जब तक आप में इच्छा शक्ति है। आप अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर सकते हैं। वास्तव में, मेरे कुछ विद्यार्थी फिर भी सिगरेट पीयेंगे। वह अपनी मर्जी से छोड़ सकता है, किन्तु जब कोई उसके हाथ में पकड़ा दे तो वह नम्रतावश मना नहीं कर पाता। वह सिगरेट पीना चाहता है, और कुछ दिन सिगरेट पीने को न मिले, तो उसे बेचैनी होती है। किन्तु यदि फिर पीता है, तो उसे बेचैनी होगी। आपको अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए। कुछ लोग जन संपर्क के व्यवसाय में हैं और उसमें यह आवश्यक हो सकता है कि वे अक्सर अतिथियों के साथ शराब पीयें और भोजन करें। इस समस्या का हल कठिन है। कम से कम पीने की कोशिश करें, या इस समस्या के समाधान का कोई और तरीका तलाश करें।

प्रश्न : जब तक हम फालुन को घूमते हुए नहीं देख सकते, यदि हम सोचें कि यह घड़ी की दिशा में घूम रहा है, क्या इससे फालुन पर प्रभाव पड़ेगा यदि वह घड़ी की विपरीत दिशा में घूम रहा हो?

उत्तर : फालुन स्वयं अपने आप घूमता है। उसे आपके मानसिक संकल्प के निर्देश की आवश्यकता नहीं है। मैं इस बात को एक बार फिर दोहराना चाहता हूं : संकल्प का प्रयोग न करें। वास्तव में, संकल्प इसे नियंत्रित कर भी नहीं सकते। यह मत सोचें कि आपके संकल्प से घड़ी की विपरीत दिशा में घूमने लगेगा। संकल्प उदर के नीचे स्थापित फालुन, आपके संकल्प से नियंत्रित नहीं हो सकता। जो फालुन बाहर से आपके शरीर को व्यवस्थित करने में प्रयोग आते हैं, हो सकता है वे अपके संकल्प को स्वीकार लें यदि आप चाहें कि वे किसी विशेष प्रकार से घूमें; आपको इसका आभास हो जायेगा। मेरा आपको कहना है : आप यह न करें। संकल्प के साथ, आप अभ्यास नहीं कर सकते। क्या संकल्प के साथ अभ्यास करना ''अभ्यासी द्वारा गोंग को परिष्कृत करना नहीं हो जायेगा?'' जबकि यह होना चाहिए ''फालुन या सिध्दांत (फा) जो अभ्यासी को परिष्कृत करता है''। ऐसा क्यों है कि आप अपने संकल्पों पर अपनी पकड़ को ढ़ीला नहीं कर सकते? कोई भी अभ्यास जो ऊंचे स्तर पर पहुंचा है ताओ साधना भी संकल्प से प्रभावित नहीं होता।

प्रश्न : फालुन गोंग के अभ्यास के लिए सबसे उत्तम समय, स्थान और दिशा क्या होने चाहिए जिससे सबसे अच्छे परिणाम प्राप्त हो सकें? दिन में कितनी बार अभ्यास उचित माना जाता है? यदि कोई भोजन से पहले या बाद में अभ्यास करता है, तो क्या कोई अन्तर पड़ेगा?

उत्तर : क्योंकि फालुन गोल है और ब्रह्मांड का संक्षिप्त रूप है, यह ब्रह्मांड नियमों की साधना करता है। फिर ब्रह्मांड सदा गतिशील है। इसलिए यह सिध्दांत (फा) है, जो अभ्यासी को परिष्कृत करता है। जब आप साधना नहीं कर रहे होते हैं, तो यह आपका संवर्धन करता है, और यह किसी दूसरे साधना के सिध्दांत या मत, जो सार्वजनिक किए गए हैं, उनसे भिन्न है। यह केवल मेरी ही प्रणाली है जिसमें ''फा अभ्यासी को परिष्कृत करता है''। दूसरी सभी साधना पध्दतियां ''दान'' का मार्ग अपनाती हैं, जो हमारे से भिन्न है, और संकल्प सहित गोंग का संवर्धन करती हैं और ''दान'' को बनाती हैं। हमारी प्रणाली का किसी भी समय अभ्यास किया जा सकता है, क्योंकि जब आप अभ्यास नहीं कर रहे होते हैं, तो 'गोंग' आपका संवर्धन करता है। समय निश्चित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अपने समय अनुसार, जितना अभ्यास करना चाहें, कर सकते हैं। हमारी क्रियाओं में इसके लिए कठोर आवश्यकता नहीं है, किन्तु हमारे यहां 'नैतिकगुण की निश्चित ही कठोर आवश्यकता है। हमारी क्रियाऐं किसी दिशा पर भी निर्भर नहीं है। जो भी दिशा आप पसंद करें वह ठीक है, क्योंकि ब्रह्मांड घूम रहा है और गतिशील हैं। अगर आप पश्चिम को मुख करते हैं, तो यह आवश्यक नहीं कि वह वास्तविक पश्चिम है। यदि आप पूर्व को मुख करते हैं, तो यह आवश्यक नहीं कि वह वास्तविक है। मैंने अपने विद्यार्थियों से कहा है कि वे अभ्यास के समय पश्चिम की ओर मुख करें, केवल सम्मान देने के लिए। वास्तव में, इसका कोई प्रभाव नहीं है। आप किसी भी स्थान पर, घर के अन्दर या बाहर क्रियाऐं कर सकते हैं। किन्तु मेरा यही मानना है कि हमें एक स्थान खोजना चाहिए जहां अच्छा मैदान, अच्छा वातावरण और वायु हो। विशेषकर, वह कूढ़ाघर, मैली चीजों, शौचालय से पर्याप्त दूरी पर होना चाहिए और किसी बात का वास्तव में महत्व नहीं है। महान विधि के अभ्यास के लिए समय, स्थान या दिशा से कोई संबंध नहीं है। आप भोजन के पहले या बाद में अभ्यास कर सकते हैं; किन्तु यदि आपने अधिक भोजन किया होगा। तो तभी अभ्यास करना कठिन होगा। यह अच्छा होगा कि आप कुछ समय आराम कर लें। जब आपको इतनी भूख लग रही है कि आपका पेट गड़गड़ाहट कर रहा हो तो भी आपको शांत रहना कठिन होगा। आप अपनी स्थिति देखकर स्वयं इन बातों का प्रबंध करना चाहिए।

प्रश्न : क्रियाऐं समाप्त होने के बाद क्या कोई आवश्यकताएं हैं जैसे मुख को रगड़ना।

उत्तर : क्रियाओं के बाद हम ठंडे पानी या और किसी वस्तु के बारे में परवाह नहीं करते और हमें मुख या हाथ रगड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। ये सभी आरंभिक अवस्था में, मानव शरीर में शक्ति नाड़ियां और एक्यूपंक्चर बिन्दु खोलने के लिए उपयोग होते हैं। हम महान विधि (दाफा) से साधना करते हैं। जिसमें इन वस्तुओं की आवश्यकता नहीं होती। इस समय, आपकी वह स्थिति नहीं है जहां आपके शरीर को अभी-अभी व्यवस्थित किया गया हो। साधारण मनुष्य के लिए आरंभ में ही साधक बन पाना बहुत कठिन लगता है, और कुछ प्रकार की (चीगोंग) क्रियाऐं मानव शरीर को सीधे नहीं बदल सकती। उनकी कुछ आवश्यकताऐं बहुत जटिल हैं। यहां हमारे पास वह नहीं हैं और न ही हमारे पास उनकी तरह धारणाऐं हैं। जो कुछ मैंने नहीं बताया है उसे लेकर परेशान न हों क़ेवल साधना करते रहें। क्योंकि हम महान विधि (ग्रेट-वे) से साधना करते हैं, कुछ दिनों में आपका शरीर आरंभ की अवस्था से गुजर जायेगा जिसमें यह उन छोटी-मोटी बातों या उन प्रक्रियाओं से डरे जिनकी ऐसी कुछ आवश्यकताएं होती हैं। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि यह दूसरी साधना प्रणालियों के कुछ वर्ष के अभ्यास के समान है, लेकिन यह बहुत कुछ उसी प्रकार है। मैं नीचे के स्तर के विषयों के बारे में चर्चा नहीं कर रहा हूं जैसे यह दिशा या वह शक्ति नाड़ी आदि। हम केवल ऊंचे स्तर की वस्तुओं की ही चर्चा करते हैं। महान विधि (ग्रेटवे) की साधना वास्तविक साधना है। यह साधना है, क्रियाऐं नहीं।

प्रश्न : क्रियाऐं करने के बाद, क्या हम बाथरूम जा सकते हैं? मेरे पेशाब में बहुत से बुलबुले होते हैं। क्या ची का रिसाव हो रहा है?

उत्तर : यह कोई समस्या नहीं है। क्योंकि हम ऊंचे स्तर पर अभ्यास करते हैं, हमारे पेशाब और मल में वास्तव में शक्ति होती है। फिर भी, वह बहुत कम मात्रा में है और इसका किसी पर भी कोई प्रभाव नहीं होता। महान विधि (ग्रेटवे) की साधना का अर्थ सभी प्राणियों का उध्दार भी है। यह छोटा सा रिसाव कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि हम को जो वापस लाभ होता है, वह बहुत अधिक होता है, इस कक्षा में जो शक्ति मैंने दी है, वह अत्यंत शक्तिशाली है, और वह दीवारों में सब ओर फैली हैं।

प्रश्न : क्या हम 'फालुन गोंग' का प्रचार और प्रसार कर सकते हैं? क्या हम उन लोगों को यह सिखा सकते हैं, जिन्होंने कक्षा में भाग नहीं लिया है? जिन लोगों ने कक्षा में भाग नहीं लिया है क्या वे सहायता केन्द्र में अभ्यास कर सकते हैं? क्या यह उचित है कि हम अपने संबंधियों या मित्रों को जो शहर से दूर रह रहे हैं, टेप या पुस्तकें भेजें?

उत्तर : हमारे अभ्यास के तरीके का प्रचार करते हुए और अधिक लोगों को फायदा पहुंचाते हुए, कोई भटकेगा नहीं। मैंने आपको बहुत सी विधियों (फा) पर व्याख्यान दिया है और आपको ऊंचे स्तर की विधि जानने दी है और उच्च स्तर की वस्तुओं को समझने और देखने दिया है। मैंने यह सब बातें पहले ही बता दी है क्योंकि मुझे डर था कि यदि मैं प्रतीक्षा करता हूं, तो आप जब उन वस्तुओं का सामना करेंगे और देखेंगे तो हो सकता है कि समझ न सकें। आप दूसरों को अभ्यास करना सिखा सकते हैं, किन्तु आप 'फालुन' स्थापित नहीं कर सकते। आपको क्या करना चाहिए? मैंने कहा है कि यदि आप कभी-कभी ही साधना करते हैं या वास्तव में अभ्यास नहीं करते तो मेरे विधि स्वरूप (फाशन) आपको छोड़ देंगा। यदि आप सच्चाई से साधना करेंगे, तो मेरे विधि स्वरूप आपकी देखभाल करेंगे। इसलिए जब आप किसी को सिखाते हैं, तो जो मैंने आपको सिखाया है, आप वही सूचना देते हैं; उसमें फालुन बनने का शक्ति यंत्र भी सम्मिलित है। जिस व्यक्ति को आप सिखलाते हो, यदि वह अभ्यास में परिश्रम करता है, तो फालुन बन जायेगा। यदि यह पूर्वनिश्चित है और उसके वंशानुगत गुण अच्छे हैं, तो उसको उसी जगह फालुन की प्राप्ति हो सकती है। हमारी पुस्तक बहुत विस्तृत है। यदि कोई सीधे न भी सीखा हो तो भी अच्छी साधना की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न : क्या फालुन गोंग का श्वास से कोई संबंध है? हम श्वास को कैसे नियमित करें?

उत्तर : फालुन गोंग का अभ्यास करते समय, आपको श्वास को नियमित करने की आवश्यकता नहीं है। हमें श्वास की चिन्ता नहीं है। यह तो व्यक्ति आरंभ के स्तर पर सीखता है। हमें यहां इसकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि श्वास को नियमित करना और नियंत्रित करना केवल दान के अभ्यास के लिए ही आवश्यक है। क्योंकि इसमें व्यक्ति हवा को जोड़ता है और अग्नि को खिलाता है। सांस को ऊपर खींचना या नीचे छोड़ना या लार का पान करना, ये सब दान के अभ्यास के उद्देश्य के लिए होते हैं। हम उस प्रकार साधना नहीं करते हैं। जिस सब की आपको आवश्यकता है, वह फालुन पूर्ण करता है। इससे अधिक कठिन और ऊंचे स्तर की वस्तुऐं गुरु की विधि स्वरूप करते हैं। वास्तव में कोई भी साधना प्रणाली - ताओ मत की भी, जिसमें जन साधना का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, किसी मानसिक संकल्प के साथ फलित नहीं की जाती। वास्तव में, वह उस मत का ग्रान्ड-मास्टर ही शिष्य की साधना तथा परिवर्तन करने में सहायता करता है, और ऐसा उसकी जानकारी के बिना ही किया जाता है। आप स्वयं अपने आप इसको प्राप्त नहीं कर सकते, जब तक कि आपको ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। केवल ज्ञानी पुरुष ही यह सब कर सकते हैं। आंतरिक क्रिया के लिए रूपक (हवा को जोड़ना, अग्नि को खिलाना)।

प्रश्न : क्या अभ्यास करते समय हमें अपने मन को केन्द्रित करना चाहिए? इन क्रियाओं में किस ओर ध्यान रहना चाहिए?

उत्तर : हमें यहां मन को केन्द्रित नहीं करना है। मैं हर किसी को बता रहा हूं कि मन को केन्द्रित न करें और सब लगाव छोड़ दें। किसी भी प्रकार के मानसिक संकल्प पर जोर मत डालो। तीसरी क्रिया संग्रह में जहां दोनों हाथ 'ची' द्वारा दोनों ब्रह्मांड के छोरों का छेदन किया जाता है, तो उस समय केवल एक शीघ्र विचार ही बहुत है। और दूसरी किसी भी वस्तु के बारे में न सोचें।

प्रश्न : क्या शक्ति एकत्रित करना उसी प्रकार है जैसे 'ची' एकत्रित करना?

उत्तर : हम ''ची'' किस लिए एकत्रित करते हैं? जो हम साधना करते हैं, वह महान विधि (दाफा) है। भविष्य में, आप ''ची'' निकाल भी नहीं पाएंगे। जिसका हम साधना करते हैं, वह ''ची'' नहीं है, जो निम्न स्तर की है। इसके बजाय, हम प्रकाश बाहर निकालते है, और फालुन शक्ति एकत्रित करता है, हम कुछ नहीं करते। फिर भी क्रिया ''ब्रह्मांड के दोनों छोरों का छेदन'' का उपयोग वास्तव में, आपके शरीर को खोलने के लिए किया जाता है। यह शक्ति एकत्रित करने का कार्य भी कर सकता है, किन्तु यह मुख्य उद्देश्य नहीं है। कोई ''ची'' किस प्रकार एकत्रित करता है। क्योंकि आप महान विधि (दाफा) द्वारा साधना करते हैं, केवल आपके हाथ हिलाने भर से आप अपने सर के ऊपर भार महसूस करेंगे, क्योंकि बहुत अधिक ''ची'' एकत्रित हो गई है। लेकिन आपको इसकी क्या आवश्यकता है? शक्ति जानबूझ कर एकत्रित करना आवश्यक नहीं है।

प्रश्न : क्या फालुन गोंग में ''एक सौ दिन के अन्दर नींव का निर्माण'' और ''एम्ब्र्योनिक सांस'' शामिल हैं?

उत्तर : ये सब निम्न स्तर के अभ्यास हैं और हम उनकी साधना नहीं करते। हमने अस्थिर प्राथमिक सीढ़ी को बहुत पहले पार कर लिया है।

प्रश्न : क्या फालुन गोंग का यिन और यैंग के संतुलन से संबंध है?

उत्तर : यह ''ची'' की साधना का स्तर है, जो निम्न स्तर की वस्तुएं हैं। जब आप उस स्तर के ऊपर निकल जायेंगे। तो आपके शरीर से यिन और यैंग के संतुलन का विषय रहेगा ही नहीं। आप किस प्रणाली को अपनाते हैं, इसका कोई अन्तर पड़ता : जब तक आप गुरु से वास्तविक शिक्षा ग्रहण करते हैं, तो आपको निम्न स्तर से ऊपर उठने की गारंटी है। पहले जो कुछ आपने सीखा होगा, वह सब छोड़ना होगा, पास में कुछ नहीं रखना। नये स्तर पर नई वस्तुओं की साधना की जाएगी। इस नये स्तर से गुजरने के बाद, फिर दूसरी नई वस्तुओं की साधना की जाएंगी। यह इस प्रकार है।

प्रश्न : जब बिजली की गड़गड़ाहट हो तो क्या हम अभ्यास कर सकते हैं? क्या फालुन गोंग के अभ्यासियों को शोर से डर लगता है?

उत्तर : मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। मैंने एक बार बेजिंग के एक बड़े अहाते में विद्यार्थियों को सिखलाया। वर्षा आने वाली थी और बहुत अधिक गड़गड़ाहट हो रही थी। उस समय, वे क्रियाओं का अभ्यास कर रहे थे, जो केवल शिष्यों को सिखलाई जाती हैं, और इनमें से एक चल-मुद्रा द्वारा धर्म चक्र पर चलने के कि जाती है। मैंने वर्षा आती हुई देखी, किन्तु उनका अभ्यास पूरा नहीं हुआ था। किन्तु भारी वर्षा को रूकना पड़ा। बादल बहुत नीचे थे, और भवन के ऊपर घिर रहे थे। बिजली की गड़गड़ाहट हो रही थी और बहुत अंधेरा था। उस समय फालुन के छोर पर बिजली गिर पड़ी, लेकिन हमको कोई हानि नहीं हुई। किसी का बाल बांका भी नहीं हुआ। हम यह स्पष्ट देख सकते थे कि किस प्रकार बिजली कडकड़ाती हुई जमीन पर गिरी थी, परंतु फिर भी हमें कोई हानि नहीं हुई। इसका अर्थ यह है कि हमारे 'गोंग' ने हमारी रक्षा की। जब मैं अभ्यास करता हूं, मैं यह नहीं सोचता हूं कि मौसम कैसा है? जब मैं अभ्यास के बारे में सोचता हूं, तो अभ्यास करता हूं। जब तक समय है, मैं अभ्यास करता हूं। मैं शोर से भी नहीं डरता हूं। दूसरे तरीकों में शोर से डर होता है, क्योंकि जब आप बहुत शांत होते हैं और अचानक कोई तेज शोर हो, तो आपको ऐसा महसूस होगा कि आपके सारे शरीर में फैली ''ची'' फूटने वाली है, और झिलमिलाकर शरीर के बाहर दौड़ रही है। लेकिन चिन्ता मत करो, हमारे अभ्यास में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं होगा। फिर भी, अभ्यास के लिए शान्तिपूर्ण स्थान का ही प्रयत्न करें।

प्रश्न : क्या हमें गुरु के चित्र का ध्यान करना चाहिए?

उत्तर : चित्र के ध्यान करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब आपकी तीसरी आंख (त्येनमू) खुली है, तो आप अपने पास मेरे विधि स्वरूप को देखेंगे।

प्रश्न : क्रियाओं के पांच संग्रहों का अभ्यास करते समय क्या कोई आवश्यकता है? क्या उनका अभ्यास एक साथ होना चाहिए? जिन क्रियाओं को 9 बार दोहराने की आवश्यकता है क्या हमें उनको गिनना चाहिए? यदि हम 9 से अधिक बार क्रियाऐं करें या कुछ क्रियाओं को ठीक से याद न रख सकें तो क्या उनका विपरीत फल निकलेगा?

उत्तर : आप पांच संग्रहों में से किसी भी संग्रह की क्रियाओं का अभ्यास कर सकते हैं। मैं सोचता हूं यह उत्तम होगा यदि दूसरे संग्रह से पहले, आप पहले संग्रह की क्रियाओं का अभ्यास करें। क्योंकि पहला संग्रह सारे शरीर को खोल देता है। यह पहले, एक बार करना चाहिए। जब आपका शरीर पूर्ण रूप से खुल जाए, तो दूसरे संग्रह की क्रियाऐं करें; यह अधिक प्रभावशाली है। जितना समय आपके पास है, उसके अनुसार अधिक से अधिक अभ्यास करो। आप किसी एक संग्रह को अभ्यास के लिए चुन सकते हैं। तीसरे और चौथे संग्रह की क्रियाओं को 9 बार दोहरा कर करना चाहिए और यह पुस्तक में लिखा हुआ है कि आप चुपचाप संख्या गिन सकते हैं। आप घर में जब अभ्यास करें तो अपने बच्चे से खड़े होकर गिनने के लिए कह सकते हैं। 9 बार क्रियाऐं दोहराने के बाद, आपको दोबारा क्रियाऐं दोहराने के लिए शक्ति यंत्र की आवश्यकता नहीं पड़ेगी क्योंकि मेरी वस्तुऐं इसी प्रकार काम करती हैं। आरंभ में, आपको उसके बारे में सोचना पड़ता है, फिर आदत पड़ने के बाद, आप स्वाभाविक रूप से रूकेंगे। यदि आप कुछ क्रियाऐं गलत याद रखते हैं या बहुत अधिक या बहुत कम बार क्रियाऐं करते हैं, तो उसे ठीक कर लें, यही अच्छा है।

प्रश्न : क्रियाओं का अन्त अभ्यास का अन्त क्यों नहीं है?

उत्तर : फालुन अपने आप घूमता है और उसे यह तुरंत पता लग जाता है कि आपने अभ्यास समाप्त कर दिया है। इसमें अत्यधिक शक्ति होती है और जो शक्ति वह बाहर निकालता है, उसे तुरंत समेट सकता है, जो उद्देश्य से इतने उचित प्रकार से संभव नहीं है। यह अभ्यास का अन्त नहीं है, बल्कि यह शक्ति को वापिस समेटता है। दूसरी अभ्यास प्रणालियों में जब क्रिया समाप्त होती है तो अभ्यास भी समाप्त हो जाता हैं हमारी प्रणाली का अभ्यास हर समय होता है - जब क्रियाऐं समाप्त भी हो जायें, अभ्यास को समाप्त नहीं किया जा सकता। यदि आप फालुन के घूर्णन को रोकना चाहें तो भी आप रोक नहीं सकते। यदि मैं और गहरे स्तर पर चर्चा करूं तो आप नहीं समझ पायेंगे। यदि आप उसके घूर्णन रोक सकें, तो आपको मुझे भी रोकना होगा। क्या आप मुझे रोक सकेंगे?

प्रश्न : क्या हम जैयिन (दोनों हाथों को मिलाना) और हेशी (दोनों हाथों को छाती के पास जोड़ना) को ''खड़े होकर करने वाली मुद्रा'' (क्रिया-2) की तरह कर सकते हैं?

उत्तर : पहले संग्रह में बुध्द एक हजार हाथ प्रदर्शित करते हुए था ''खड़े होकर करने वाली मुद्रा'' की तरह अभ्यास नहीं कर सकते। जब आप फैलने के लिए अत्यधिक जोर लगाते हैं तो आपको समस्या का सामना करना पड़ेगा।

प्रश्न : क्या यह आवश्यक है कि अभ्यास के समय बगल की बांहों को खोखला रखा जाये। पहले संग्रह के अभ्यास में, मेरे बगल की बांहें बहुत कसी हुई महसूस हुई। क्या हो रहा है?

उत्तर : क्या आप बीमार हैं? आरंभ में, जब आपके शरीर को संतुलित किया जाता है, तो आपको कई घटनाओं का पता लगेगा। आपके कुछ लक्षण होंगे किन्तु वे क्रियाओं के कारण नहीं हैं।

प्रश्न : जिन लोगों ने गुरु लि की कक्षाओं में भाग नहीं लिया है, क्या वे पार्क में दूसरे विद्यार्थियों के साथ अभ्यास कर सकते हैं?

उत्तर : हां, कोई भी विद्यार्थी दूसरों को अभ्यास करना सिखा सकता है। जब विद्यार्थी दूसरों को क्रियाऐं सिखाते हैं तो यह उस प्रकार नहीं होगा, जैसा मैंने आपको यहां सिखाया है, मैं आपके शरीर को सीधा संतुलित करता हूं। किन्तु फिर भी कुछ लोग हैं जो अभ्यास आरंभ करते ही फालुन प्राप्त कर लेते हैं, क्योंकि प्रत्येक विद्यार्थी के पीछे मेरा विधि स्वरूप है; वह इन सब बातों का सीधा ख्याल रख सकता है। यह सब लोगों के पूर्व निश्चित संबंध पर निर्भर करता है। जब उनका पूर्व निश्चित संबंध बलशाली है, तो उनको उसी स्थान पर फालुन प्राप्त हो जाता है, यदि आपका पूर्व निश्चित संबंध इतना बलशाली नहीं है, तो आप लंबे अभ्यास के बाद, घूर्णनशील यंत्र को स्वयं विकसित कर सकते हैं। और अधिक अभ्यास के बाद आप घूर्णनशील यंत्र में से फालुन उत्पन्न कर सकते हैं।

प्रश्न : शांतिपूर्ण क्रिया में हस्त संकेतों का क्या अर्थ है, क्या आलौकिक शक्तियों को सुदृढ़ करना है?

उत्तर : हमारी भाषा इसे नहीं समझा सकती। हर एक संकेत का अर्थ अत्यंत गूढ़ है। साधारणत: इनका अर्थ है : मैं क्रियाओं का अभ्यास और बुध्द के 'फा' का अभ्यास आरंभ करता हूं। मैं अपने शरीर को संतुलित करूंगा और साधना की दशा में पहुंच जाऊंगा।

प्रश्न : जब हम साधना से दुग्ध श्वेत शरीर की दशा में पहुंच जाते हैं, तो क्या यह सच है कि शरीर के सारे रोम छिद्र खुल जाते हैं और शारीरिक श्वास प्रक्रिया स्थापित हो जाती है?

उत्तर : आप सभी इसे महसूस करने की कोशिश करें : आप इस स्तर से पहले ही पार कर चुके हैं। आपके शरीर को दुग्ध श्वेत शरीर की अवस्था तक संतुलित करने के लिए, मैंने 10 घंटे तक 'फा' पर व्याख्यान दिए, इससे कम नहीं। हम आपको तुरंत उस अवस्था में पहुंचा देते हैं, जहां दूसरी प्रणालियों में कई दशाब्दियां या अधिक लगती हैं। क्योंकि इस कदम में 'नैतिकगुण' मानदण्ड की आवश्यकता नहीं है, यह गुरु की अपनी शक्ति पर निर्भर करता है। आपको इस बात का पता लगने से पहले ही, आप उस स्तर को पार कर जाते हैं। शायद यह केवल कुछ ही घंटे लंबा था। हो सकता है एक दिन आप बहुत संवेदनशील महसूस करें, किन्तु कुछ समय बाद आप उतने संवेदनशील नहीं होंगे। वास्तव में एक बड़ा स्तर अभी गुजर गया है। दूसरी अभ्यास प्रणालियों में, आप इस दशा में एक वर्ष या अधिक रहेंगे; वे वास्तव में निम्न स्तर पर हैं।

प्रश्न : बस में चलते समय या पंक्ति में खड़े हुए, क्या यह उचित होगा यदि हम 'फालुन गोंग' की सभी गतिविधियों के बारे में सोचें?

उत्तर : दैनिक अभ्यास के लिए हमारी क्रियाओं को न तो मानसिक संकल्प और न ही विशेष समय की आवश्यकता है। निश्चय ही, जितना अधिक अभ्यास करेंगे, उतना ही अच्छा होगा। जब आप अभ्यास नहीं करते हैं तो भी अभ्यास आपका परिशोधन करता है। किन्तु आरंभ में आपको अधिक अभ्यास करना चाहिए और उसे मजबूत करना चाहिए। कुछ विद्यार्थी जब कार्यवश एक-दो महीनें की यात्रा पर जाते हैं, तो उन्हें अभ्यास का समय नहीं मिल पाता। किन्तु इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। जब वे वापस आते हैं फालुन लगातार घूमता रहता है क्योंकि वह कभी बंद नहीं होता। जब तक आप अपने दिल में स्वयं को अभ्यासी समझते हैं, और अपने 'नैतिकगुण' की अच्छी तरह रक्षा करते हैं, तो फालुन अपना कार्य करता रहेगा। किन्तु एक बात है : यदि आप अभ्यास नहीं करते हैं और साधारण लोगों जैसे ही हो जाते हैं, तो फालुन लुप्त हो जायेगा।

प्रश्न : क्या फालुन गोंग और तंत्र विद्या का साथ-साथ अभ्यास किया जा सकता है?

उत्तर : तंत्र विद्या भी विधि चक्र (फालुन) का उपयोग करती है, लेकिन हमारी साधना प्रणाली के साथ इसका अभ्यास नहीं हो सकता। यदि आप तंत्र विद्या की साधना करते हैं, और इसका विधि चक्र भी बन गया है, तो आप तंत्र विद्या की साधना जारी रख सकते हैं, क्योंकि तंत्र विद्या भी सही साधना प्रणाली है। किन्तु इन दोनों का एक साथ अभ्यास नहीं किया जा सकता। तंत्र विद्या का विधि चक्र केन्द्रिय नाड़ी का संवर्धन करता है और समतल घूमता है। इसका विधि चक्र हमारे फालुन से भिन्न है, और चक्र में मंत्र हैं। हमारा फालुन उदर के नीचे सीधा स्थित है और इसका चपटा भाग बाहर की ओर है। उदर के नीचे स्थान की कमी से, मेरा फालुन ही सारा स्थान घेर लेता है। यदि एक और वहां स्थापित कर दिया जाये तो गड़बड़ी हो जायेगी।

प्रश्न : फालुन गोंग का अभ्यास करते हुए, क्या हम बुध्द मत की साधना प्रणाली का अभ्यास कर सकते हैं? क्या हम वह टेप सुन सकते हैं जिसमें बोधीसत्व अवलोकितेश्वर के नाम का उच्चारण होता है? क्या वे बुध्दिस्ट लोग जो घर में रहते हैं, फालुन गोंग सीखने के बाद शास्त्रों का उच्चारण कर सकते हैं? क्या हम दूसरे व्यायाम उसी समय कर सकते हैं?

उत्तर : मेरा सोचना है नहीं। हर प्रणाली अभ्यास का मार्ग है। यदि आप वास्तविक रूप से साधना करना चाहते हैं और केवल बीमारियां दूर करना या स्वास्थ्य सुधारने तक सीमित नहीं रहना चाहते, तो आपको केवल एक ही प्रणाली द्वारा साधना करनी चाहिए। यह एक गंभीर मामला है। ऊंचे स्तरों की ओर साधना के लिए यह आवश्यक है कि आप केवल एक ही साधना प्रणाली में नियमित रहें। यह पूर्ण सत्य है। यहां तक कि बुध्द मत की साधना प्रणालियां भी एक दूसरे में नहीं मिलाई जा सकती। जिस साधना के बारे में हम बात कर रहे हैं, वह ऊंचे स्तरों की है और कई युगान्तरों से चली आ रही है। यदि आप अपनी समझ के अनुसार अभ्यास करने लगें तो अनुचित होगा। दूसरे आयाम से देखा जाए तो, परिवर्तन की प्रक्रिया अत्यंत गूढ़ और जटिल है। ठीक उसी प्रकार जैसे आप किसी ठीक यंत्र से उसका कोई पुर्जा हटा दें और उसके स्थान पर कोई दूसरा पुर्जा लगा दें, तो वह यंत्र तुरंत खराब हो जायेगा। वही बात साधना प्रणाली के संबंध में है : इसमें कुछ भी नहीं मिलाना चाहिए। यदि कुछ मिलावट करेंगे तो वह गलत होकर रहेगा। यह सभी साधना प्रणालियों के लिए सत्य है : यदि आप साधना करना चाहते हैं तो केवल एक प्रणाली पर ही अपना ध्यान लगायें। यदि आप इसके विपरीत करेंगे। तो आप कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकेंगे। यह लोकोक्ति ''प्रत्येक मत में से सबसे अच्छी बात एकत्रित करना'', बीमारियों को दूर करने के मामलों और स्वास्थ्य सुधार तक ही सीमित है। इससे आप ऊंचे स्तर तक नहीं पहुंच सकेंगे।

प्रश्न : जो लोग दूसरी अभ्यास प्रणालियों को अपना रहे हैं, उनके साथ यदि हम अपनी प्रणाली का अभ्यास करें तो क्या हम एक दूसरे के साथ हस्तक्षेप कर रहे हैं?

उत्तर : चाहे वह कोई भी साधना प्रणाली से अभ्यास कर रहा है - ताओ मत, आलौकिक अभ्यास या बुध्द मत का अभ्यास - जब तक वह अभ्यास पवित्र है, तो उसका हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। आप का भी उसके अभ्यास में हस्तक्षेप नहीं होगा। यह उसके लिए लाभदायक होगा यदि वह आपके पास अभ्यास कर रहा है। क्योंकि फालुन एक चेतन सत्ता है और यह शक्ति पुंज (ज्ञान) का संवर्धन नहीं करता, तो यह स्वयं सहायता करेगा।

प्रश्न : क्या हम अन्य 'चीगोंग' गुरुओं से अपने शरीर को संतुलित करने के लिए कह सकते हैं? यदि हम दूसरे 'चीगोंग' गुरुओं के व्याख्यान सुनें तो क्या उनका हमारे ऊपर कोई प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर : मैं विश्वास करता हूं कि यह कक्षा पूर्ण होने पर आपको महसूस होगा कि आपका शरीर किस अवस्था में पहुंच गया है। कुछ समय पश्चात, आपको बीमारी होने की अनुमति नहीं होगी। जब कभी समस्याऐं आयेंगी तो आपको जुकाम या पेट में दर्द हो सकता है, लेकिन वास्तव में वे उसी प्रकार की नहीं रहेंगी। वे कठिनाइयां और परीक्षाऐं हैं। यदि आप दूसरे 'चीगोंग' गुरुओं की ओर देखेंगे, तो इसका यह अर्थ है कि जो कुछ मैंने कहा है, आपने उसे पूरी तरह नहीं समझा है, और न विश्वास किया है। अनुसरण करने की मनोवृत्ति अपनाने से, आपका बुरे संदेशों के प्रति आकर्षण बढ़ेगा जिससे आपकी साधना में रूकावट आ सकती है। यदि उस चीगोंग गुरु का 'गोंग' फूटी से आता है, तो आप भी उन तत्वों को आकर्षित कर बैठेंगे। यही बात उनके व्याख्यानों को सुनने से है : ''सुनने की इच्छा'' का अर्थ क्या यह नहीं है कि ''आप उनका अनुसरण करना चाहते हैं''? आपको इस समस्या का स्वयं समाधान करना होगा। यह ''नैतिकगुण'' की समस्या है और मैं इस बारे में बीच में नहीं आऊंगा। यदि वह ऊंचे स्तर के सिध्दांत और 'नैतिकगुण' के सबंध में बात करता है, तो यह ठीक हो सकता है। आपने मेरी कक्षा में भाग लिया और बड़ी कठिनाई से आपके शरीर को व्यवस्थित किया गया है। मूल रूप से, आपके शरीर से दूसरी क्रियाओं के संदेश बिखरे दुए थे और शरीर को खराब किए हुए थे। अब आपके शरीर को हर प्रकार से सबसे उचित अवस्था में व्यवस्थित कर दिया गया है, सब बुराईयां निकाल दी गई हैं और अच्छाइयों को रोक लिया गया है। वास्तव में यदि आप साधना के दूसरे तरीके सीखने चाहें। तो मुझे आपत्ति नहीं है। यदि आप यह महसूस करते हैं कि 'फालुन गोंग' अच्छा नहीं है तो आप दूसरे साधना के तरीके सीख सकते हैं। लेकिन मेरा यह मानना है कि यदि बहुत अधिक भिन्न-भिन्न प्रणालियां सीखेंगे, तो यह आपके लिए अच्छा नहीं होगा। आपने महान विधि (दाफा) की साधना कर ली है और विधि स्वरूप आपके पास हैं। आपने ऊंचे स्तर की वस्तुओं को प्राप्त कर लिया है और आप अब फिर वापिस जाकर दोबारा तलाश करना चाहते हैं।

प्रश्न : यदि हम फालुन गोंग का अभ्यास करते हैं तो क्या हम दूसरे तरीके सीख सकते हैं, जैसे - मालिश, आत्मरक्षा, सिंगल फिन्गर ज़ेन, ताइ जी, आदि? यदि हम इनका अभ्यास न करें, लेकिन संबंधित पुस्तकें पढ़ें तो क्या इसका कोई प्रभाव होगा?

उत्तर : मालिश, आत्मरक्षा सीखना उचित है, किन्तु आप पर क्रूरता आयेगी, तो आप बेचैनी महसूस करेंगे। 'सिंगल फिन्गर ज़ेन, और ताइ जी को हम 'चीगोंग' की श्रेणी में रखते हैं। यदि आप इनका अभ्यास करेंगे तो आप वस्तुओं की मिलावट कर लेंगे। और मेरे उन तत्वों को, जो आपके शरीर में मौजूद हैं, अपवित्र कर देंगे। यदि आप उन पुस्तकों को पढ़ें जो 'नैतिकगुण' हैं, तो यह उचित है। लेकिन कुछ लेखक स्वयं क्रिया करने से पहले ही निष्कर्ष निकाल लेते हैं। इससे आपके विचारों में उलझन आयेगी।

प्रश्न : ''अपने सिर के सामने चक्र को पकड़ने'' की क्रिया को करते समय, मेरे हाथ कभी-कभी छू जाते हैं। क्या यह ठीक है?

उत्तर : हाथों को छूने मत दो। हम चाहते हैं कि आप कुछ फासला छोड़ें। यदि हाथ छूते हैं तो हाथों की शक्ति शरीर में वापस लौट जाएगी।

प्रश्न : दूसरे संग्रह का अभ्यास करते समय यदि हम बांहों को अधिक रोक न सकें। तो क्या हम नीचे रख सकते हैं और अभ्यास जारी रख सकते हैं?

उत्तर : साधना बहुत कठिन है। यदि आप महसूस करते हैं कि आपके हाथ दुखते हैं, और आप हाथ नीचे लाते हैं, तो यह प्रभावशाली नहीं है। सलाह यह है : जितनी देर तक आप क्रिया करें उतनी ही उत्तम है। किन्तु आप अपने सामर्थ्य अनुसार करें।

प्रश्न : महिलाओं के लिए पूर्ण कमल मुद्रा में बायां पैर दाऐं पैर के नीचे क्यों है?

उत्तर : ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारी साधना प्रणाली में एक आवश्यक बात पर ध्यान रखा जाता है : स्त्री शरीर पुरुष शरीर से भिन्न है। इसलिए, साधना स्त्री शरीर रचना के अनुरूप होनी आवश्यक है, यदि वह अपनी 'बन्ती' का अपने रूपान्तरण के लिए प्रयोग करना चाहती है। स्त्रियों के लिए, साधारणतया, बायां पैर दाऐं पैर को सहारा देता है क्योंकि यह उसकी अपनी स्थिति के अनुसार है। पुरुष इसके विपरीत हैं, क्योंकि उनकी आवश्यक प्रकृति भिन्न है।

प्रश्न : क्या अभ्यास करते समय, टेप या संगीत को सुनना या श्लोक का उच्चारण करना मान्य है?

उत्तर : यदि यह बुध्दमत का अच्छा संगीत है, तो आप सुन सकते हैं। तो भी वास्तविक साधना में संगीत की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसमें शान्ति अवस्था में प्रवेश के सामर्थ्य की आवश्यकता है। संगीत सुनना एक प्रकार से विभिन्न विचारों को एक विचार से प्रतिस्थापित करने का प्रयास है।

प्रश्न : ब्रह्मांड के दोनों छोरों का भेदन का अभ्यास करते समय, क्या हमें शिथिल रहकर करना चाहिए या बलपूर्वक करना चाहिए?

उत्तर : ब्रह्मांड के दोनों छोरों के भेदन के अभ्यास में खड़े होकर स्वाभाविक रूप से ढ़ीला छोड़ देना चाहिए, यह पहले संग्रह की तरह नहीं है। अन्य सभी अभ्यासों में आपको तनावमुक्त रहने की आवश्यकता है; यह पहले संग्रह से अलग है।


3. 'नैतिकगुण' का अभ्यास

प्रश्न : मैं ज़न-शान-रेन के स्तर तक पहुंचना चाहता हूं। किन्तु कल मैंने स्वप्न में देखा कि मैं किसी से बुरी तरह बहस कर रहा था और जब मैं शान्त रहना चाहता था, मैं असफल हो गया। क्या वह मेरी 'नैतिकगुण' में सुधार लाने के लिए था?

उत्तर : यह अवश्य था। मैंने पहले भी आपको बताया है कि स्वप्न क्या है। आप स्वयं इसके बारे में सोचें और स्वयं समझें। 'नैतिकगुण' के सुधार में जो वस्तुऐं सहायक होती हैं, वे अचानक और अप्रत्याशित रूप से आती हैं। वे इसकी प्रतीक्षा नहीं करती कि कब आप मानसिक रूप से उनका स्वागत करने के लिए तैयार होंगे। यह निश्चित करने के लिए कि कोई व्यक्ति अच्छा है या बुरा, उसकी परीक्षा आप उसी समय ले सकते हैं जब वह मानसिक रूप से इसके लिए तैयार न हो।

प्रश्न : क्या 'फालुन गोंग' में ज़न -शान और रेन के ''रेन'' का यह अर्थ है कि चाहे कोई वस्तु ठीक है या नहीं, इसके बारे में न सोचते हुए, हम प्रत्येक वस्तु को सहन करें?

उत्तर : ''रेन'' के संबंध में जो मैं कहता हूं वह उन सब विषयों के बारे में है, जो आपके निजी स्वार्थ और लगाव से संबंधित हैं, जिन्हें आप छोड़ना नहीं चाहते हैं। वास्तव में ''रेन'' कोई भयावह वस्तु नहीं है, साधारण लोगों के लिए भी नहीं। मैं आपको एक कहानी सुनाता हूं। हान-शिन एक महान वरिष्ठ जनरल था जो अपनी युवावस्था से ही युध्द-कलाओं का दीवाना था। उसके काल में, जो लोग युध्द-कलाओं को सीख रहे थे वे अपने साथ तलवार रखना पसंद करते थे। जब हान-शिन गली में चल रहा था, तो एक बदमाश उसके सामने आया और उसको चुनौती दी : ''यह तलवार किसलिए ले जा रहे हो? क्या तुम लोगों को मारने का साहस करते हा अगर यह बात है, तो पहले मुझे मारो''। जैसे वह बात कर रहा था, उसने अपनी गर्दन आगे बढ़ा दी। उसने कहा ''अगर तुम मुझे मारने की हिम्मत नहीं करते, तो मेरी टांगों के बीच में से रेंगो''। तब हान-शिन उसकी टांगों के बीच में रेंग कर निकला। उसमें ''रेन'' का अद्भुत सामर्थ्य था। कुछ लोग सहनशीलता को कमजोरी समझते हैं, जैसे किसी को आसानी से धमका दिया जाए। वास्तविकता यह है कि जो लोग सहनशीलता का अभ्यास कर सकते हैं उनकी इच्छा शक्ति बहुत सुदृढ़ होती है। जहां किसी बात के सही या गलत होने का प्रश्न है, आपको यह देखना चाहिए कि क्या वह ब्रह्मांड के सिध्दांत के अनुरूप है। आप यह सोच सकते हैं कि आप किसी घटना विशेष के मामले में निरपराध है, और यह कोई दूसरा व्यक्ति है जिसने आपको घबड़ा दिया है। आप कहेंगे ''मैं जानता हूं यह कुछ मामूली चीज़ों के बारे में है।'' जो मैं कहता हूं वह एक अलग सिध्दांत है, जो इस भौतिक आयाम में देखा नहीं जा सकता है। इस बात को मज़ाक के तौर पर रखते हुए कहें तो, शायद आप पर अपने पूर्व जीवन का किसी का कर्जा होगा। आप यह कैसे कह सकते हैं कि यह ठीक या गलत है। हमें सहनशील होना ही है। यह कैसे हो सकता है कि आप पहले दूसरों को परेशान और नाराज करें और उसके बाद सहनशील हो जायें? जिन लोगों ने आपको परेशान किया है, आपने उनके प्रति सहनशील ही नहीं रहना है बल्कि उनके प्रति कृतज्ञ भी होना है। अगर कोई व्यक्ति आपको चिल्लाता है और उसके बाद आपके गुरु के सामने आप पर दोष लगाता है कि आप उस पर चिल्लाये, तो आपको हृदय से कहना चाहिए ''आपका धन्यवाद''। आप कह सकते हैं ''क्या मैं अह क्यू में नहीं बदल जाऊंगा''? यह आपका विचार है। यदि आप इस घटना को उसी प्रकार नहीं लेते हैं जैसे उसने लिया है, तो आपने अपने नैतिकगुण में सुधार कर लिया है। वह इस भौतिक आयाम में लाभ उठाता है, लेकिन वह आपको दूसरे आयाम में कुछ वस्तुऐं दे देता है, क्या वह नहीं देता? आपकी 'नैतिकगुण' में सुधार आ गया है और काला तत्व परिवर्तित हो गया है। आपने तीन तरीकों से लाभ प्राप्त किया है। आपको उसके प्रति कृतज्ञ क्यों नहीं होना चाहिए? साधारण लोगों के दृष्टिकोण से इसे समझना बहुत कठिन है, किन्तु मैं साधारण व्यक्तियों को व्याख्यान नहीं दे रहा हूं। मैं साधकों को व्याख्यान दे रहा हूं।

प्रश्न : जो लोग फूटी से ग्रसित नहीं हैं, वे फूटी से दूर रहने के लिए, नैतिकगुण सुधार सकते हैं। यदि कोई पहले से ही फूटी से ग्रसित हो तो क्या होगा? वह इससे छुटकारा कैसे पा सकता है?

उत्तर : एक पवित्र विचार एक सौ बुराइयों को पराजित कर देता है। आपने आज महान विधि (दाफा) प्राप्त की। आज से यदि फूटी आपको लाभ पहुंचाती है, तो भी आपको वह स्वीकार नहीं करनी चाहिए। जब वह आपको धन, प्रसिध्दि और निजी लाभ पहुंचाती है, तो आप अपने मन में बहुत प्रसन्न होते हैं, यह सोचते हैं ''मैं कितना योग्य हूं'' और दूसरों के सामने आप दिखावा करते हैं। जब आपको बेचैनी होती है, तो आप उसके साथ नहीं रहना चाहते और उपचार के लिए गुरु की ओर देखते हैं। किन्तु जब वह आपको प्रलोभन दे रही होती है, तो आप ठीक से बर्ताव क्यों नहीं करते? हम आपके लिए इसकी संभाल नहीं कर सकते, क्योंकि आपने उसके द्वारा पहुंचाए गए सारे लाभ स्वीकार किए है। यदि आपको केवल लाभ ही चाहिए तो यह स्वीकार्य नहीं है। यह तभी भयानक होगी, जब आप उसे नहीं चाहते चाहे वह अच्छी चीजें लाए, जब आप गुरु द्वारा बताये हुए तरीके से साधना करते रहते हैं और जब आप सत्यनिष्ठ हो जाते हैं और आपका मन स्थिर होता है। जब वह आपको कुछ लाभ देने का प्रयास करे, और आप उसे पूर्णतया अस्वीकार कर दें, तो वह उसके लिए जाने का समय होगा। यदि वह फिर भी आप पर ठहरती है, तो यह एक अनुचित कार्य होगा। उस समय, मैं उसे ठीक कर सकता हूं। वह मेरे एक हाथ हिलाने से ही लुप्त हो जायेगा। किन्तु यदि आप उसके द्वारा दिया हुआ लाभ उठाना चाहें, तो यह अनुचित होगा।

प्रश्न : क्या लोग पार्क में अभ्यास करने से फूटी से ग्रसित हो सकते हैं?

उत्तर : मैंने आपको यह कई बार समझाया है। हम एक सत्यनिष्ठ विधि से साधना करते हैं। यदि आपका मन सत्यनिष्ठ है, तो सारी बुराइयां पराजित हो जाएंगी। एक सत्यनिष्ठ साधना प्रणाली में, मन सच्चा और बहुत पवित्र रहता है, इसलिए अभ्यासी को कोई हानि नहीं हो सकती। फालुन एक अद्भुत सत्ता है। बुरी वस्तुऐं आपको ग्रसित नहीं कर सकती बल्कि आपके पास होने से उनको डर लगेगा। यदि आपको विश्वास न हो, तो आप दूसरे स्थानों पर अभ्यास कर सकते हैं। वे सब आपसे डरेंगी। यदि मैं आपको (बाहर विचरित) फूटी की संख्या बता दूं, तो आप सब डर जाएंगे; बहुत से लोग फूटी से ग्रसित हैं। जब इन लोगों का रोगों को दूर करने और स्वास्थ्य में सुधार लाने का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है, तो वे अभ्यास जारी रखते हैं। वे क्या चाहते हैं? ये समस्याऐं उस समय पैदा होती है, जब उनका मन सत्यनिष्ठ नहीं होता। फिर भी इन लोगों पर कोई दोष नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि वे सिध्दान्तों को नहीं जानते। मेरा सार्वजनिक रूप से आने का एक यह भी उद्देश्य था कि मैं आपके लिए बुरी वस्तुओ को ठीक कर सकूं।

प्रश्न : भविष्य में साधक कैसी आलौकिक शक्तियों का विकास करेंगे?

उत्तर : मैं इसके संबंध में चर्चा नहीं करना चाहता। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की स्थितियां भिन्न होती हैं, इसलिए यह कहना बहुत कठिन है। भिन्न स्तरों पर विभिन्न आलौकिक शक्तियां विकसित होंगी। किन्तु महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक स्तर पर आपका 'नैतिकगुण' का क्या स्तर है। यदि कुछ प्रकार की आसक्तियां छोड़ दी गई हैं, तो उस प्रकार की एक आलौकिक शक्ति विकसित हो सकती है। किन्तु वह आलौकिक शक्ति अपनी आरंभिक अवस्था में ही होगी इसलिए बहुत शक्तिशाली नहीं होगी। जब तक आपका 'नैतिकगुण' बहुत ऊंचे स्तर पर नहीं पहुंचता है, आलौकिक शक्तियां आपको नहीं दी जा सकती। फिर भी हमारी क्लास में कुछ व्यक्तियों के जन्मजात गुण बहुत अच्छे हैं। उन्होंने एक आलौकिक शक्ति विकसित कर ली है जिससे उन्हें वर्षा में घूमते हुए भीगने से रक्षा मिलेगी। कुछ व्यक्तियों ने दूर बोध की शक्ति प्राप्त कर ली है।

प्रश्न : क्या ''नैतिकगुण साधना'' या ''सभी आसक्तियों को छोड़ने'' से आपका अभिप्राय बुध्द विचारधारा के ''खालीपन'' और ताओ विचारधारा के ''शून्यता'' से है?

उत्तर : ''नैतिकगुण'' या ''सद्गुण'' के बारे में हम जो बात करते हैं उसका संबंध बुध्द विचारधारा के ''खालीपन'' और ताओ विचारधारा के ''शून्यता'' से नहीं है। बल्कि बुध्द विचारधारा का 'खालीपन' और ताओ विचारधारा का 'शून्यता' हमारे ''नैतिकगुण'' में सम्मिलित हैं।

प्रश्न : क्या एक बुध्द सदैव बुध्द रहेगा?

उत्तर : जब आप साधना द्वारा ज्ञान प्राप्त कर लेंगे, तो आप ज्ञानी कहलाएंगे - अर्थात उच्च स्तर के प्राणी। किन्तु ऐसी गारंटी नहीं है कि आप कभी दुव्यवहार नहीं करेंगे। वास्तव में, साधारणतया उस स्तर पर आप गलत काम नहीं करेंगे, क्योंकि आपने सत्य को देखा है। किन्तु यदि आपने अपने आपको उचित प्रकार से नियंत्रित नहीं किया, तो आप बिना किसी अपवाद के, नीचे गिर जाएंगे। यदि आप सदैव अच्छे काम करेंगे तो सदा के लिए उसी स्तर पर ठहरे रहेंगे।

प्रश्न : ''महान जन्मजात गुण'' वाला व्यक्ति कैसे होता है?

उत्तर : यह कुछ विशेषताओं पर निर्भर करता है : (1) अच्छे जन्मजात गुण, (2) उत्कृष्ट ज्ञानशीलता, (3) सहनशीलता की विशेष शक्ति, (4) बहुत कम आसक्तियां, और दुनियादारी की अधिक परवाह न करना। इस प्रकार के महान जन्मजात गुणवाले लोग अब बहुत कठिनाई से मिलते हैं।

प्रश्न : अच्छे जन्मजात गुण न होते हुए यदि व्यक्ति फालुन गोंग का अभ्यास करें, तो क्या वह 'गोंग' विकसित कर सकता है?

उत्तर : अच्छे जन्मजात गुण न होते हुए भी, 'गोंग' विकसित कर सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में कुछ द अवश्य होता है। यह असंभव है कि किसी व्यक्ति में कुछ भी द न हो ऐसा कोई भी नहीं है। यदि आपके पास 'श्वेत तत्व' नहीं है, तो आपके पास 'काला तत्व' है। साधना से काला तत्व श्वेत तत्व में परिवर्तित किया जा सकता है; यह एक अतिरिक्त कदम है। जब आपने साधना के दौर में दुख उठाया है, नैतिकगुण को सुधारा है और त्याग किए हैं, तो आपने गोंग को विकसित कर लिया है। साधना आवश्यक है। यह गुरु का विधि स्वरूप है जो इसे 'गोंग' में परिवर्तित करता है।

प्रश्न : जब किसी का जन्म होता है तो उसका सारा जीवन पूर्व से निश्चित हो जाता है। क्या कठिन परिश्रम से कोई अन्तर पड़ता है?

उत्तर : वास्तव में, अन्तर पड़ता है। यह भी निश्चित हो चुका है कि आपने कठिन परिश्रम करना है, इसलिए आप स्वयं कठिन परिश्रम करेंगे। आप साधारण व्यक्ति हैं। किन्तु बहुत महत्व की वस्तऐं नहीं बदली ज सकतीं।

प्रश्न : जब तक 'त्येनमू' (तीसरी आंख) नहीं खुलती है तो हम कैसे कह सकते हैं कि जो संदेश हमने प्राप्त किए हैं, वे अच्छे हैं या बुरे?

उत्तर : ऐसा स्वयं अपने आप करना कठिन है। आपकी पूरी साधना प्रणाली के दोरान, बहुत सी समस्याऐं होती हैं। जिनसे आपकी 'नैतिकगुण' की परीक्षा होती है। मेरे विधि स्वरूप द्वारा आपकी सुरक्षा का तात्पर्य आपके जीवन की खतरे से रक्षा करना है। किन्तु विधि स्वरूप उन समस्याओं से नहीं निपटेगा जो आपने जीतनी हैं, निश्चित करनी हैं और जिनको आपने समझना है। कभी-कभी जब बुरे संदेश आएंगे तो हो सकता है वे आपको बताए कि लॉटरी का नम्बर क्या है, किन्तु नम्बर ठीक हो हो सकते हैं और गलत भी। या वे दूसरी वस्तऐं भी बता सकते हैं। यह सब आप पर निर्भर करता है। जब आपका मन सच्चा है, तो बुरी वस्तुऐं आक्रमण नहीं कर सकतीं। जब तक आप अपने 'नैतिकगुण' की अच्छी तरह रक्षा करते हैं, आपके सामने कोई समस्या नहीं होगी।

प्रश्न : जब हम मनोवेग के कारण परेशान हों तो क्या हम अभ्यास कर सकते हैं?

उत्तर : जब आपकी मनोदशा ठीक न हो तो आपके लिए और शांत रहना कठिन होगा। आपके, मन में बुरे विचार भटक रहे होंगे। साधना में संदेश भी हस्तक्षेप कर सकते हैं। जब आपके मन में बुरे विचार हैं, तो वे आपकी साधना में व्यवधान उत्पन्न करेंगे, और उसे बुरे उद्देश्य की साधना में परिवर्तित कर देंगे। जिन क्रियाओं का अभ्यास आप करते हैं, वे भले ही आपको 'यानशिन' में सिखाई हो या और किसी गुरु ने या तंत्र विद्या के जीवित बुध्द ने सिखलाई हों। किन्तु, यदि आपने उनके 'नैतिकगुण' की आवश्यकताओं का कठोरता से पालन नहीं किया होगा, तो आपने जो अभ्यास किया, वह उनकी साधना प्रणाली नहीं हो सकती यद्यपि उन्होंने ही आपको सिखाया था। सब को चलिए हम सब इस बारे में सोचें : यदि आप खड़े होकर अभ्यास कर रहे हैं और बहुत थकावट महसूस कर रहे हैं, जबकि आपका मन अब भी बहुत सक्रिय है और सोच रहा है ''मेरी कम्पनी मे वह फला व्यक्ति इतना बुरा क्यों है? उसने मेरी रिपोर्ट क्यों की? मैं अपनी आय बढ़ाने के लिए क्या कर सकता हूं? मूल्यों में वृध्दि हो रही है मुझे अधिक खरीदारी करनी चाहिए'', तो क्या आप उद्देश्य से, अनजाने में अनिष्टकारी तरीके से साधना नहीं कर रहे? इसलिए, यदि आप भावपूर्ण संकट अनुभव कर रहे हो तो अच्छा यह होगा कि आप अभ्यास न करें।

प्रश्न : ''अत्यंत ऊंचे नैतिकगुण'' का क्या मानदण्ड है?

उत्तर : 'नैतिकगुण' साधना से आता है और इसके लिए कोई निश्चित मानक नहीं हैं। यदि आप आग्रह करें कि नैतिकगुण का मानक होना चाहिए, तो जब आप घटनाओं का सामना करें, तो आपको यह सोचने का प्रयास करना चाहिए, ''यदि वह ज्ञान प्राप्त व्यक्ति होता जिसे इस समस्या का सामना करना पड़ता, तो वह क्या करता''? आदर्श लोग वास्तव में विशिष्ट होते हैं, किन्तु वे साधारण लोगों के लिए अनुकरणीय होते हैं।

प्रश्न : हमें दूसरे चीगोंग गुरुओं की वार्ता या वक्ताओं को संदेह से नहीं देखना चाहिए। किन्तु जब हमारा सामना धोखेबाजों से हो जाए, जो लोगों को धन के लिए धोखा देते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर : यह इस प्रकार नहीं होना चाहिए। आपको पहले यह देखना चाहिए कि वे क्या चर्चा करते हैं और फिर स्वयं यह निश्चय करें कि क्या वह धोखेबाज हैं। यह निश्चय करने के लिए कि एक चीगोंग गुरु अच्छा है या धोखेबाज, आपको उसका 'नैतिकगुण' देखना होगा। गोंग सदैव 'नैतिकगुण' के समान ऊंचा होता है।

प्रश्न : हम कर्म को किस प्रकार समाप्त करें या जैसा कि बुध्द मत में कहा जाता है, ''कर्म ऋण''?

उत्तर : साधना स्वयं कर्म के समाप्त करने का तरीका है। सबसे उत्तम उपाय यह है कि आप अपने 'नैतिकगुण' में सुधार करें, क्योंकि इससे काला तत्व बदलकर श्वेत तत्व द बन जाता है। द तब गोंग में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न : यदि हम फालुन गोंग का अभ्यास करें तो क्या ऐसे नियम हैं जो हमको कुछ कार्यों को करने से मना करते हैं?

उत्तर : बुध्द मत में जिन वस्तुओं को निषेध किया गया है, उनमें से अधिकांश हम नहीं कर सकते, किन्तु हमारा दृष्टिकोण अलग है। हम साधु या साध्वी नहीं है। हम साधारण लोगों के बीच में रहते हैं, इसलिए यह भिन्न है। यदि आप कुछ क्रियाकलापों को ऊपरी तरीके से लेंगे, तो यह पर्याप्त है। अवश्य ही, जैसे-जैसे आपका शक्ति सामर्थ्य बढ़ता जाता है और बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच जाता है, आपके 'नैतिकगुण' से जो आवश्यकता है वह भी बहुत ऊंची हो जायेगी।


4. त्येनमू

प्रश्न : जब गुरू व्याख्यान दे रहे थे, मैंने गुरु के सिर के ऊपर स्वर्णिम प्रभा-मंडल देखा, और बहुत से सिर के आकार के स्वर्णिम प्रभा-मंडल आपकी कमर के पीछे देखे?

उत्तर : इस व्यक्ति की त्येनमू बहुत ऊंची स्तर तक पहुंच गई है।

प्रश्न : गुरु के शिष्य जब दूसरों का उपचार कर रहे थे, तो उनके मुंह से स्वर्णिम प्रकाश उगल रहा था।

उत्तर : मैं कहता हूं कि इस व्यक्ति ने बहुत अच्छी साधना की है। उसने बाहर निकलती हुई आलौकिक शक्तियों को देखा है।

प्रश्न : यदि किसी बच्चे की 'त्येनमू' खुल जाए तो क्या इसका कुछ प्रभाव होगा? क्या खुली 'त्येनमू' से शक्ति का स्राव होगा?

उत्तर : छ: वर्ष से कम बच्चों की 'त्येनमू' बहुत आसानी से खुल जाती है। यदि छोटे बच्चे अभ्यास न करें तो, उनकी खुली हुई त्येनमू से शक्ति का स्राव होगा; फिर भी, परिकर में किसी एक को अभ्यास करना चाहिए। उत्तम होगा कि वह दिन में एक बार उसकी त्येनमू में देखे, जिससे वह बन्द न हो और अधिक शक्ति का रिसाव न हो। छोटे बच्चे स्वयं साधना अभ्यास करें तो यह सर्वोत्ताम है। जितना वे इसका प्रयोग करेंगे, उतनी अधिक शक्ति का स्राव होगा। इसका प्रभाव उनके भौतिक शरीर पर नहीं, बल्कि उनकी सबसे आधारभूत वस्तुओं पर पड़ता है। किन्तु यदि इसे अच्छी तरह सुरक्षित रखा जाए, तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जो कुछ मैंने कहा है, वह बच्चों से संबंधित है, वयस्कों से नहीं। कुछ लोगों की त्येनमू बहुत खुल जाती है, और उन्हें शक्ति के स्राव से भय नहीं होता, किन्तु वे बहुत ऊंचे स्तर की वस्तुओं को नहीं देख सकते। कुछ ऐसे भी हैं जो बहुत ऊंचे स्तर की वस्तुओं को देख सकते हैं। जब वे देखते हैं, कोई विधिस्वरूप या अन्य गुरु उन्हें शक्ति उपलब्ध कर देता है। यह कोई समस्या नहीं है।

प्रश्न : मैंने गुरु के शरीर और छाया पर स्वर्णिम दीप्ति देखी, लेकिन पलक झपकते ही वह लुप्त हो गई। क्या हुआ?

उत्तर : वह मेरा विधि स्वरूप है। मैं व्याख्यान दे रहा हूं और मेरे सिर के ऊपर शक्ति-स्तंभ है; यह उस स्तर का है, जिस पर मैं हूं। यह पलक झपकते ही लुप्त हो गया, क्योंकि आप अपने 'त्येनमू' का प्रयोग नहीं जानते। आपने अपनी शारीरिक आंखों का प्रयोग किया।

प्रश्न : हम आलौकिक शक्तियों का प्रयोग कैसे करते हैं?

उत्तर : मैं सोचता हूं कि यदि कोई अपनी आलौकिक शक्तियों को सेना विज्ञान या ऊंची तकनीक या जासूसी के लिए प्रयोग करे, तो यह एक समस्या हो जाएगी। हमारे ब्रह्मांड की विशिष्टताऐं हैं। यदि प्रयोग उस विशिष्टताओं के अनुकूल होगा, तो शक्तियां काम करेंगी; यदि अनुकूल नहीं हैं तो शक्ति काम नहीं करेंगी। अच्छे कार्यों के उद्देश्य पूर्ण करने के लिए भी, कोई ऊंचे स्तर से शक्ति प्राप्त नहीं कर पायेगा। वह उन्हें केवल महसूस करेगा। यदि कोई व्यक्ति केवल लघु आलौकिक शक्तियों का प्रयोग करता है समाज के साधारण विकास क्रम में कोई रूकावट नहीं आयेगी। यदि वह कुछ वस्तुओं को बदलना चाहता है, तो उसे विशेष प्रयास करने होंगे। उस कार्य के लिए उसकी आवश्यकता है या नहीं, जो वह कहता है उसका महत्व नहीं है, क्योंकि समाज का विकास उसकी इच्छा अनुसार नहीं होता। वह कुछ वस्तुओं को प्राप्त करना चाहता हो, किन्तु अंतिम निर्णय उसके हाथ में नहीं है।

प्रश्न : किसी की चेतना शरीर के अन्दर और बाहर कैसे जाती है?

उत्तर : जिस चेतना के बारे में हम चर्चा करते हैं वह अक्सर सर के कपाल से बाहर जाती है। वास्तव में, यह केवल वहीं से बाहर जाने तक सीमित नहीं है। वह किसी भी स्थान से बाहर जा सकती है, जो दूसरे साधना के तरीकों से अलग है जहां केवल सर के कपाल से ही बाहर जाना होता है। यह शरीर को किसी भी स्थान से छोड़ सकती है। उसी प्रकार चेतना शरीर में प्रवेश करती है।

प्रश्न : त्येनमू के क्षेत्र में एक लाल रोशनी है, जिसके बीच में एक काला छेद है। वह तेजी से फैलता है। क्या त्येनमू खुल रहा है? कभी-कभी इसके साथ तारे की रोशनी या बिजली की चमक होती है?

उत्तर : जब आप तारे की रोशनी देखें, तो त्येनमू खुलने वाली होती है। जब चमक देखें, तो यह पूरी तरह खुल जाती है।

प्रश्न : मैंने गुरु के सिर और शरीर पर लाल और हरे प्रभा-मंडल देखे। किन्तु जब मैंने अपनी आंखें बंद की, तो मैं कुछ भी नहीं देख सका। क्या मैंने बाहरी दृष्टि से देखा?

उत्तर : आपने बाहरी दृष्टि से नहीं देखा। आप यह नहीं जानते कि आंखें बन्द करके कैसे देखा जाता है, इसलिए आपने केवल खुली आंखों से देख लिया। लोग अक्सर यह नहीं जानते किवे अपने पहले से खुले हुए त्येनमू का कैसे उपयोग करें। कभी वे संयोग से अपनी खुली आंखों से वस्तुऐं देख लेते हैं। किन्तु जब आप वस्तुओं को वास्तव में अच्छी तरह देखना चाहें, तो आप अपनी आंखों का उपयोग करने लगते हैं; इसलिए वस्तुऐं फिर लुप्त हो जाती हैं। जब आप ध्यान नहीं दे रहे होते तो आप उनको दोबारा देख लेंगे।

प्रश्न : मेरी पुत्री आकाश में कुछ घेरे देखती है, किन्तु वह स्पष्ट नहीं बता पाती। हमने उसे फालुन का प्रतीक दिखाया और वह कहती है कि वह यही है। क्या उसकी त्येनमू वास्तव में खुल गई है?

उत्तर : 6 वर्ष से कम के बच्चों की त्येनमू हमारे फालुन प्रतीक पर एक दृष्टि डालने से ही खुल सकती है। किन्तु आप यह न करें। इसे बच्चे देख सकते हैं।

प्रश्न : मैं नहीं जानता कि पहले से खुली 'त्येनमू' का प्रयोग कैसे करूं क्या गुरु कृपया बताएंगे?

उत्तर : जब 'त्येनमू' पूरी तरह खुल जाती है, तो लोग उसका प्रयोग जान जाएंगे, यद्यपि उन्होंने पहले ऐसा नहीं किया होगा। जब वह बिल्कुल चमकीली और प्रयोग करने में सरल होती है, तो लोग जान जाते हैं कि उसका प्रयोग कैसे किया जाये, यद्यपि उन्होंने पहले कभी ऐसा नहीं किया होगा। त्येनमू से देखना बिना सोचे समझे हो जाता है। यदि आप अधिक प्रभावी होकर देखना चाहें, तो आप स्वाभाविक रूप से अपनी आंखों के द्वारा देखने लगते हैं और ऑप्टिक नर्व (प्रकाश नाड़ी) का प्रयोग करने लगते हैं। इसलिए आप और नहीं देख पाते।

प्रश्न : जब 'त्येनमू' खुली हो तो क्या हम सारा ब्रह्मांड देख सकते हैं?

उत्तर : जब 'त्येनमू' खुलने की बात आती है, तो इसके स्तर होते हैं। दूसरे शब्दों में, आप कितना सत्य देख सकते हैं, यह आपके स्तर पर निर्भर होता है। त्येनमू खुलने का यह अर्थ नहीं है कि ब्रह्मांड में प्रत्येक वस्तु देख सकते हैं। किन्तु अधिक साधना अभ्यास से आप अपना स्तर ऊंचा करेंगे जब तक कि आपको पूर्ण ज्ञान-प्राप्ति न हो जाये। तब आप और अधिक स्तरों को देख सकेंगे। फिर भी यह तय नहीं है कि जो आप देखेंगे, वह संपूर्ण ब्रह्मांड का सत्य है। क्योंकि अपने जीवनकाल में जब शाक्यमुनि उपदेश दे रहे थे, वे लगातार अपने अन्दर सुधार भी लाते जा रहे थे। जब कभी वे नये स्तर पर पहुंचते थे तो वे पाते कि जो उपदेश पहले वे दे रहे थे, वह संपूर्ण नहीं थां उनके उपदेश और ऊंचे स्तर के अनुरूप फिर से बदलते रहते थे। इसलिए उन्होंने अंत में कहा ''कोई धर्म ऐसा नहीं है जो स्थिर हो'' प्रत्येक स्तर का अपना सिध्दांत है। उनके लिए भी ब्रह्मांड का पूर्ण सत्य देखना असंभव था। हमारे साधारण लोगों की दृष्टि में, यह सोच से भी बाहर है कि इस विश्व में कोई तथागत के स्तर तक ऊंचा पहुंच सकता है। क्योंकि वे केवल तथागत के स्तर तक का ही जानते हैं और वे यह नहीं जानते हैं कि उससे ऊपर भी बहुत ऊंचे स्तर हैं, वे उच्च प्रकृति के रहस्यों को न तो जानते हैं और न स्वीकार कर पाते हैं। तथागत बुध्द फा का बहुत छोटा स्तर है। इसलिए यह कहा जाता है कि ''महान फा असीमित है।''

प्रश्न : हम आपके शरीर पर जो वस्तुऐं देखते हैं, क्या वह वास्तव में मौजूद हैं?

उत्तर : वास्तव में, वे मौजूद हैं - सभी आयाम तत्वों से बने हैं। केवल उनकी संरचना हमारे से भिन्न है।

प्रश्न : मेरी भविष्य की पूर्व-सूचनाऐं अक्सर सच्ची होती है।

उत्तर : यह ''पूर्व-सूचना'' बताने की आलौकिक शक्ति है, जिसके बारे में हमने चर्चा की है। वास्तव में यह पूर्व-ज्ञान और अतीत दर्शन (सुमिंग टोंग) का नीचे का स्तर है। जिस गोंग का हम संवर्धन करते हैं, वह अलग आयाम में है जहां काल या अवकाश का सिध्दांत नहीं होता; चाहे कितनी ही दूरी हो या कितना अधिक समय हो एक समान होता है।

प्रश्न : अभ्यास के दौर में रंगीन लोग, आकाश और चित्र क्यों सामने आते हैं?

उत्तर : मैं सोचता हूं कि इस कक्षा के लोगों के लिए - चाहे आपने कोई भी अभ्यास किया हो; कितने समय तक आपने अभ्यास किया है, या आप उस स्तर तक पहुंचे हों या नहीं कि आप बीमारी का उपचार करने योग्य हों - इस नीचे स्तर पर, मैं यह नहीं चाहता हूं कि आप लोगों का उपचार करें, क्योंकि आप स्वयं भी अभी नहीं जानते हैं कि आप किस स्तर पर हैं। शायद आपने दूसरे लोगों की बीमारी का उपचार किया होगा। हो सकता है कि आपका सत्यनिष्ठ मन हो, जो सहायता करता होगा। या यह एक गुजरता हुआ गुरु हो सकता है, जिसने आपकी मदद की होगी, क्योंकि आप एक अच्छा कार्य कर रहे थे। यद्यपि जो शक्ति आपने साधना से विकसित की है, वह आपको कुछ करने में सहायता करती है, किन्तु वह आपकी रक्षा नहीं कर सकती। जब आप उपचार कर रहे होते हैं तो आप रोगी के समान क्षेत्र में होते हैं। कुछ समय बाद, रोगी की काली ची आपको उससे अधिक बीमार कर देगी। यदि आप रोगी से पूछें ''क्या आप ठीक हैं''? वह कहेगा ''कुछ अच्छा हूं''। यह किस प्रकार का उपचार है? कुछ 'चीगोंग' के गुरु कहते हैं ''कल आना और फिर परसों आना। मैं तुम्हारा कुछ सत्रों में उपचार करूंगा'', वह ''ऐसा क्रमबध्द भी करता है''। क्या यह धोखा नहीं है? क्या यह सर्वोत्ताम नहीं होगा कि आप बीमारियों के उपचार के लिए तब तक रूक जायें, जब तक कि आप ऊंचे स्तर पर नहीं पहुंचते? फिर, जिस किसी का उपचार करेंगे, वह ठीक हो जायेगा। वह कितना अच्छा लगेगा। यदि आपने अपने 'गोंग' को कुछ कम नीचे स्तर से अधिक तक विकसित कर लिया है और यदि यह पूर्ण आवश्यक हो कि आप उपचार करें, मैं आपके हाथों को खोल दूंगा और बीमारियों के उपचार वाली आलौकिक शक्ति उभार दूंगा। किन्तु यदि आपने ऊंचे स्तर तक अभ्यास करना है, तो मैं सोचता हूं कि आप इन वस्तुओं से दूर रहें। महान विधि (दाफा) को बढ़ावा देने के लिए और सामाजिक समारोहों में भाग लेने के लिए, मेरे कुछ शिष्य उपचार कर रहे हैं। क्योंकि वे मेरी और से हैं और मैंने उनको प्रशिक्षित किया है, इसलिए वे सुरक्षित हैं और उन्हें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।

प्रश्न : यदि हमने आलौकिक शक्ति विकसित कर ली है। तो क्या हम दूसरों को बता सकते हैं?

उत्तर : यह कोई समस्या नहीं है, यदि आप दूसरों को बतायें जो फालुन गोंग का अभ्यास करते हैं, शर्त यह है कि आप विनम्र रहें। आप सभी का एक साथ अभ्यास करने का कारण है कि आप आपस में एक दूसरे से वार्ता और विचार-विमर्श कर सकें। वास्तव में, यदि आप बाहर निकलें तो जिन लोगों के पास आलौकिक शक्तियां हैं, उनको भी आप बता सकते हैं। यह तब तक उचित है जब तक कि आप शेखी न मारें। यदि आप अपनी योग्यता की शेखी मारना चाहते हैं, तो समस्या हो जाएगी। यदि आप अधिक शेखी मारेंगे तो आपकी शक्ति लुप्त हो जाएगी। यदि आप केवल 'चीगोंग' के बारे में बात करना चाहें और बिना किसी अनुचित निजी विचार से बात करें, तो मैं कहता हूं कि कोई समस्या नहीं होगी।

प्रश्न : बुध्द विचारधारा ''शून्यवाद'' के बारे में बताता है और ताओ विचार- धारा ''रिक्तवाद'' के बारे में। हम किस बारे में बात करते हैं?

उत्तर : बुध्द विचारधारा की ''शून्यवाद'' और ताओ विचारधारा का ''रिक्तवाद'' उनके अपने साधना प्रणाली में अनोखे हैं। वास्तव में, हमें भी उस स्तर तक पहुंचने की आवश्यकता है। हम उद्देश्य से साधना करने के बारे में चर्चा करते हैं और बिना उद्देश्य के 'गोंग' प्राप्त करने के बारे में। अपनी 'नैतिकगुण' को बढ़ाने और आसक्तियों को छोड़ने से भी शून्यता और रिक्तवाद की प्राप्ति होती है, किन्तु हम इन पर इतना ज़ोर नहीं देते। क्योंकि आप भौतिक जगत में रहते हैं, आपको जीवन निर्वाह आजीविका चलाना आवश्यक है - आपको कार्य करने होते हैं। अनिवार्य रूप से कार्य करने से यह पता चलता है कि जो आप कर रहे हैं वह अच्छा है या बुरा। हमें क्या करना चाहिए? जिसका हम संवर्धन करते हैं। वह 'नैतिकगुण' है जो हमारी प्रणाली की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है। जब तक आपका मन सत्यनिष्ठ है और जो कार्य आप करते हैं उनसे हमारी आवश्यकताऐं के उपयुक्त हैं, तो आपको 'नैतिकगुण' की कोई समस्या नहीं होगी।

प्रश्न : हमे अपनी आलौकिक शक्तियों के विकास का पता कैसे लगेगा?

उत्तर : साधना के आरंभिक घेरे में, यदि आपने आलौकिक शक्तियां विकसित कर ली हैं, तो आपको यह महसूस हो जायेगा। यदि आपने अभी तक आलौकिक शक्तियां विकसित नहीं की हैं; किन्तु आपका शरीर संवदेनशील है, तो आप इसे महसूस कर सकते हैं। यदि इनमें से कुछ भी नहीं हो रहा, तो आपके लिए बताने का कोई तरीका नहीं है। जो आप कर सकते हैं वह यह है कि उनकी जानकारी के बिना भी आप अपनी साधना जारी रखें। हमारे 60-70 प्रतिशत विद्यार्थी हैं जिनकी 'त्येनमू' खुल गई है। मैं जानता हूं वे देख सकते हैं। यद्यपि आप कुछ नहीं कहते, आप अपनी आंखें अच्छी तरह खोलकर देखते हैं। मैं आपसे साथ-साथ अभ्यास करने के लिए क्यों कहता हूं? मैं चाहता हूं कि आप अपनी मंडली में विचारों का आदान-प्रदान और चर्चा करें। किन्तु इस साधना प्रणाली का उत्तरदायित्व लेते हुए, आप अपनी मंडली से बाहर आवश्यकता से अधिक चर्चा न करें। आपस में विचारों का आदान-प्रदान करना और एक दूसरे में सुधार लाना, स्वीकार्य है।

प्रश्न : विधि स्वरूप कैसा दिखाई पड़ता है? क्या मेरे पास विधि स्वरूप है?

उत्तर : एक व्यक्ति का विधि स्वरूप उसी प्रकार दिखाई पड़ता है, जैसा वह स्वयं है। अभी आपके पास विधि स्वरूप नहीं है। जब आपका अभ्यास एक विशिष्ट स्तर पर पहुंच जायेगा, तो आपकी त्रि-लोक-फा साधना पूरी हो जाएगी और एक अत्यंत उच्च स्तर पर पहुंच जाएंगे। केवल उसी समय आपके विधि स्वरूप विकसित हो सकेंगे।

प्रश्न : कक्षा पूरी होने के बाद, कितने समय तक गुरु के विधि स्वरूप हमारे साथ रहेंगे?

उत्तर : जब कोई विद्यार्थी अचानक उच्च स्तर पर साधना करना शुरू कर देता है, तो यह उसके लिए बड़ा परिवर्तनशील बिन्दु होता है। उसकी सोच में परिवर्तन की बात है। इसलिए जब एक साधारण व्यक्ति को कोई ऐसी वस्तु मिल जाये जो उसे साधारण व्यक्ति होते हुए नहीं मिलनी चाहिए, तो यह खतरनाक स्थिति हो जाती है, उसके जीवन को खतरा हो जाता है। मेरे विधि स्वरूप उसकी सुरक्षा करेंगे। यदि मैं यह अभी तक नहीं कर सका और फिर भी 'फा' का प्रचार करता हूं, तो वह ऐसा होगा जैसे लोगों को हानि पहुंचाना। बहुत से 'चीगोंग' गुरु साधना सिखाने से डरते हैं, क्योंकि वे उत्तरदायित्व को पूरा नहीं कर सकते। मेरे विधि स्वरूप आपकी हर समय रक्षा करेंगे, ज्ञान की प्राप्ति होने तक। यदि आप बीच में रूकते हैं, तो विधि स्वरूप भी अपने आप ही, आपको छोड़ देंगे।

प्रश्न : गुरु कहते हैं साधारण जन्मजात गुण वाले लोग क्रियाओं द्वारा साधना नहीं करते बल्कि अपनी 'नैतिकगुण' द्वारा करते हैं। क्या यह ठीक है कि जब तक किसी व्यक्ति की 'नैतिकगुण' बहुत ऊंची है, तो वह बिना क्रियाओं का अभ्यास किए हुए उचित फल पदवी प्राप्त कर सकता है?

उत्तर : सिध्दांत अनुसार यह ठीक है। जब तक आप अपनी 'नैतिकगुण' बढ़ाते हैं, तो 'सद्गुण' 'गोंग' में बदल सकता है। किन्तु आप स्वयं को साधक समझें। यदि आप ऐसा नहीं समझते तो आप केवल 'सद्गुण' को ही लगातार इकट्ठा करते रहेंगे। आप द अधिक मात्रा में इकट्ठा करेंगे, और आपके सत्यनिष्ठ होने से होता रहेगा। उस स्थिति में, यदि आपने स्वयं को साधक भी समझें, तो भी आप आगे नहीं जा सकेंगे, क्योंकि आपने ऊंचे स्तरों के 'फा' को नहीं सीखा है। जैसाकि आप सब जानते हैं, मैंने बहुत सी वस्तऐं उजागर की हैं। गुरु की रक्षा के बिना, ऊंचे स्तरों पर अभ्यास करना बहुत कठिन है। आप एक दिन भी ऊंचे स्तरों पर अभ्यास नहीं कर सकते - यह असंभव है। इसलिए ज्ञान प्राप्ति इतनी सरल नहीं है। किन्तु आपका 'नैतिकगुण' में सुधार हो जाये, तो आप ब्रह्मांड की विशिष्टताओं के साथ एक सार हो सकते हैं।

प्रश्न : दूरवर्ती उपचार का क्या सिध्दांत है?

उत्तर : यह बहुत सरल है। ब्रह्मांड का विस्तार हो सकता है और सिकुड़ भी सकता है, इसी प्रकार आलौकिक शक्तियां भी। मैं अपने मूल स्थान पर रहता हूं और बाहर नहीं जाता, लेकिन आलौकिक शक्तियां जो बाहर निकलती हैं, वे बहुत दूर अमेरिका तक के रोगियों तक पहुंच सकती हैं। (किसी व्यक्ति का उपचार करने के लिए) या तो मैं अपनी आलौकिक शक्तियां उसके स्थान तक भेज सकता हूं या सीधे उसकी आदि चेतना को (युआन शैन) यहां अपने पास बुला सकता हूं। यह दूरवर्ती उपचार का सिध्दांत है।

प्रश्न : क्या हम जान सकते हैं कि कितने प्रकार की आलौकिक शक्तियां विकसित हो जाएंगी?

उत्तर : दस हजार से अधिक आलौकिक शक्तियां हैं। यह विस्तार से जानने की आवश्यकता नहीं है कि यह कितनी हैं। इस सिध्दांत को जानना, और यह ''फा'' ही पर्याप्त है। शेष आपकी साधना के लिए छोड़ा गया है। इससे अधिक जानना न तो आपके लिए आवश्यक है और न अच्छा है। गुरु शिष्यों की तलाश में रहते हैं और शिष्यों को स्वीकार करते हैं। वे शिष्य कुछ भी नहीं जानते और उनके गुरु भी उनको नहीं बताते हैं। यह सब उन पर निर्भर करता है कि वे स्वयं अनुभूति करें।

प्रश्न : जब मैं कक्षा में अपनी आंखें बन्द करता हूं, तो मैं आपको मंच पर व्याख्यान देते हुए देख सकता हूं। आपका ऊपरी भाग काला है। डेस्क भी काली है। आपके पीछे कपड़ा गुलाबी है। कभी आप हरी रोशनी से घिरे हुए हैं। क्या हो रहा है?

उत्तर : यह प्रश्न उस स्तर का है, जिस पर आप हो क्योंकि जब 'त्येनमू' अभी खुली है आप सफेद रंग को काला और काले को सफेद देखेंगे। जब आपके स्तर में छोड़ा और सुधार आ जाये, तो आप सब कुछ सफेद ही देखेंगे। और इससे भी अधिक सुधार होने पर, आप सब रंगों में अंतर करने लगेंगे।


5. विपत्तियां

प्रश्न : क्या गुरु ने विद्यार्थियों के लिए विपत्ति परीक्षाओं का प्रबंध किया है?

उत्तर : आप यह कह सकते हैं। ये आपके 'नैतिकगुण' में सुधार के लिए व्यवस्थित किए गए हैं। यदि आपका 'नैतिकगुण' आवश्यक स्तर पर नहीं पहुंचा है, तो क्या आपको ज्ञान प्राप्त करने और साधना पूर्ण करने दिया जा सकता है? यदि हम प्राथमिक स्कूल के विद्यार्थी को कॉलेज भेज दें, तो क्या यह ठीक रहेगा? मैं ऐसा नहीं सोचता हूं। यदि हम आपको उच्च स्तर पर साधना की अनुमति दे दें जबकि आपको 'नैतिकगुण' में भी उचित प्रकार से सुधार नहीं हुआ है और आप किसी विषयवस्तु पर अपने विचार हल्के नहीं कर सकते या कोई वस्तु छोड़ नहीं सकते, आप मामूली बातों पर ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों से वाद-विवाद कर सकते हैं, यह स्वीकार्य नहीं है! इसीलिए हम 'नैतिकगुण' पर इतना बल देते हैं।

प्रश्न : साधक और साधारण व्यक्तियों की विपत्तियों में क्या अंतर है?

उत्तर : हम साधक साधारण व्यक्तियों से बहुत भिन्न नहीं हैं। आपकी विपत्तियां साधक के रूप में आपके मार्ग के अनुसार आयोजित की जाती हैं। साधारण लोग अपने कर्मों के अनुसार फल भुगतते हैं, इसलिए उन पर विपत्तियां आती हैं। इसका यह अर्थ नहीं है कि क्योंकि आप साधक हैं, इसलिए आप पर विपत्तियां हैं और क्योंकि वह साधारण व्यक्ति हैं, इसलिए उस पर विपत्तियां नहीं होंगी। यह दोनों के लिए एक ही है। केवल यह है कि आपकी विपत्तियों को बांध दिया गया है जिससे आपके 'नैतिकगुण' में सुधार आ सके। जबकि साधारण व्यक्ति की विपत्तियों द्वारा उसके कर्मों का भुगतान होता है। सच्ची बात यह है कि विपत्तियां आपके अपने कर्मों के अनुसार आती हैं। जिनका मैं शिष्य के 'नैतिकगुण' में सुधार के लिए उपयोग करता हूं।

प्रश्न : क्या ये विपत्तियां उन्हीं इक्यासी कठिनाइयों के समान हैं जो शास्त्रों को लाने के लिए पश्चिम की यात्रा के समय में हुए थे?72

उत्तर : थोड़ी सी समांतर हैं। साधकों के जीवन का पूर्व निर्धारण कर दिया गया है। आपको बहुत अधिक या बहुत कम कठिनाइयां नहीं होंगी, और यह आवश्यक नहीं है कि ये इक्यासी हों। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने जन्मजात गुण के अनुसार कितने ऊंचे स्तर तक साधना कर सकते हैं; यह उस स्तर तक के लिए नियोजित किया गया है, जिसे आप प्राप्त कर सकते हैं। साधक उस हर वस्तु को छोड़ने की प्रक्रिया का अनुभव करेंगे जो साधारण व्यक्तियों के पास है, किन्तु साधकों के पास नहीं होनी चाहिए। यह वास्तव में कठिन है। हम उन तरीकों के बारे में सोचेंगे जिससे उन सभी वस्तुओं को छोड़ सकें जिन्हें छोड़ना कठिन लगता है, जिससे विपत्तियों द्वारा आपके नैतिकगुण में सुधार हो सके।

प्रश्न : जब हम अभ्यास करते हैं, तो लोग उसे बिगाड़ने का प्रयत्न करते हैं, तो क्या करें?

उत्तर : फालुन गोंग दूसरे लोगों के तोड़फोड़ से नहीं डरता। शुरू के दौर में, मेरे विधि स्वरूप आपकी रक्षा करते हैं, किन्तु यह निश्चित नहीं है कि आपको किसी भी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। सोफे पर बैठकर, दिन भर चाय पीते हुए गोंग विकसित करना असंभव है। कभी-कभी जब आप विपत्तियों का सामना करें, आप मेरे नाम को पुकारें और प्रत्यक्ष मुझे देखें। हो सकता है मैं आपकी सहायता न करूं, क्योंकि आपको इसी पर विजय पाने की आवश्यकता है। किन्तु जब आपको वास्तविक खतरा होगा, मैं आपकी सहायता करूंगा। फिर भी, वास्तविक खतरा नहीं है क्योंकि आपका जीवन पथ बदल दिया गया है और किसी अप्रिय घटना को हस्तक्षेप की आज्ञा नहीं है।

प्रश्न : हम विपत्तियों का सामना कैसे करें?

उत्तर : मैं आपको बार-बार बता चुका हूं : अपनी 'नैतिकगुण' की रक्षा कीजिए! यदि आप यह निश्चित कर लें कि आप अनुचित कार्य नहीं करेंगे, तो यह अच्छी बात है। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब दूसरे लोग कुछ कारणों से आपके हित में रूकावट डालते हैं : यदि आप साधारण मनुष्य की तरह लड़ेंगे, तो आप भी साधारण व्यक्ति हो जाएंगे। क्योंकि आप एक साधक हैं, आपको उस प्रकार समस्याओं से उस प्रकार नहीं निपटना चाहिए। जो वस्तुऐं आपके 'नैतिकगुण' में रूकावट डालती हैं, उनसे आपका 'नैतिकगुण' सुधरता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप उनका किस प्रकार सामना करते हैं और क्या आप उससे अपनी 'नैतिकगुण' को बनाये रखना और सुधारना चाहते हैं।


6. आयाम और मानव जाति

प्रश्न : ब्रह्मांड में आयामों के कितने स्तर हैं?

उत्तर : मेरी जानकारी के अनुसार, ब्रह्मांड में आयामों की अनगिनत परतें हैं। जब बहुत से आयामों के अस्तित्व का प्रश्न आता है, तो उन आयामों में क्या जीवन है और वहां कौन रहता है, यह वर्तमान वैज्ञानिक तरीकों से जानना बहुत कठिन है। आधुनिक विज्ञान को अभी तक भौतिक प्रमाण देना है। किन्तु हमारे कुछ 'चीगोंग' गुरु और वे लोग जो आलौकिक शक्तियों के स्वामी हैं, वे दूसरे आयामों को देख सकते हैं, यह इसलिए है कि दूसरे आयामों को त्येनमू के द्वारा ही देखा जा सकता है, मानव की शारीरिक आंख से नहीं।

प्रश्न : क्या सभी आयाम ज़न, शान और रेन की विशेषताओं को ग्रहण करते हैं?

उत्तर : हां, सभी आयाम ज़न, शान और रेन की विशेषताओं को ग्रहण करते हैं। जो लोग इन विशेषताओं के अनुरूप होते हैं वे अच्छे लोग हैं, जबकि जो उनके विरोध में होते हैं। वे बुरे हैं, जो इन विशेषताओं का समावेश कर लेते हैं वे ज्ञान प्राप्त कहलाते हैं।

प्रश्न : मूल मानव जाति की उत्पत्ति कहां से हुई?

उत्तर : मूल ब्रह्मांड में बहुत से समतल अथवा लम्बवत स्तर नहीं थे। ब्रह्मांड के विकास व गतिशीलता के दौर में, जीवन की उत्पत्ति हुई। वह सबसे प्राचीन मूल जीवन कहलाया। यह ब्रह्मांड के अनुरूप था और कुछ भी बुरा अस्तित्व में नहीं था। ब्रह्मांड के अनुरूप होने का अर्थ है कि वह वैसा होगा, जैसा ब्रह्मांड उसमें वे सभी सामर्थ्य थे जो ब्रह्मांड के थे। जैसे ब्रह्मांड उद्भव और विकास हो रहा था, कुछ स्वर्गीय लोक आविर्मूत हो गये। बाद में, अधिकाधिक जीवन उत्पन्न होता गया। हमारे निम्न स्तर की बात करें तो, सामाजिक दल बन गये जिनमें पारस्परिक प्रतिक्रियाऐं विकसित हो गईं। इस उत्पत्ति की प्रक्रिया में, कुछ लोगों में परिवर्तन आ गया और वे ब्रह्मांड की विशेषताओं से दूर होते चले गये। वे इतने अच्छे व्यक्ति नहीं रहे। इसलिए उनकी आलौकिक शक्तियां क्षीण हो गईं। साधक इसलिए इस बात पर जोर डालते हैं कि ''सच्चाई की ओर वापस आना है'', जिसका अर्थ है पूर्व स्थिति में वापस आना। जितना ऊंचा स्तर होगा, उतना ही वह ब्रह्मांड के साथ समिश्रित रहेगा और उतनी ही अधिक प्रबल आलौकिक शक्तियां होंगी। ब्रह्मांड की उत्पत्ति की प्रक्रिया में, उस समय कुछ प्राणी बुरे हो गये और फिर भी उनका नाश नहीं किया जा सका। इसलिए योजनाऐं बनाई गईं कि वे अपने जीवन में सुधार ला सकें और ब्रह्मांड के साथ फिर समिश्रित हो जायें। उन्हें निम्न स्तर पर भेजा गया ताकि वे दु:खों का सामना करें और स्वयं को सुधार सकें। बाद में, लोग लगातार इस स्तर पर आते गये। तब इस स्तर पर एक बंटवारा हो गया। जिन लोगों का 'नैतिकगुण' नीचे गिर गया था, वे इस स्तर पर फिर नहीं रह सकते थे। इसीलिए, दूसरा और भी नीचा स्तर बनाया गया। यह लगातार इस प्रकार चलता गया और स्तर नीचे, और नीचे गिरते गये, जब तक कि उस स्तर पर नहीं पहुंच गये जहां आज का मानव जगत है। यह आज के मानव समुदाय की उत्पत्ति है।