ली होंगज़ी
1996
मुझे अपना परिचय देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप सभी मुझे जानते हैं—मैं ली होंगज़ी हूं। मैं हमेशा से आपसे मिलना चाहता था, लेकिन विभिन्न कारणों से मुझे ऐसा करने का अवसर नहीं मिला। इस बार मैं विशेष रूप से आपसे मिलने के उद्देश्य से आया हूं। ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं जानता हूं कि यहां ऑस्ट्रेलिया में महान मार्ग के बारे में जानने वाले लोग पहले की तुलना में अधिक हैं। अतीत में, इसे सीखने वाले कई लोगों ने शिक्षाओं का अध्ययन करने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया था, और इसके बारे में उनकी समझ उथली थी। मैंने सोचा कि अब जब आप समझ गए हैं कि मैं क्या प्रसारित कर रहा हूं, तो मैं आपसे मिल सकता हूं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन चीजों के बारे में आप जानना चाहते हैं उनमें से कई चीजें [फालुन दाफा] पुस्तकों में लिखी हुयी हैं। मेरी एक प्रवृत्ति है : मुझे अच्छा लगता है जब अन्य लोग मुझसे साधना के बारे में उन चीजों के विषय में पूछते हैं जिनको वे नहीं समझ पाते हैं। लेकिन जब वे लोग जो अभी तक शिक्षाओं से परिचित नहीं हैं, मुझसे उनके बारे में पूछते हैं, तो मैं बस... मुझे इसे कैसे कहना चाहिए? यदि आपकी [साधना की] समझ बहुत उथली है, तो आपको एक साथ ही सभी चीजों को समझाना बहुत कठिन होगा। यदि आप पहले पुस्तकें पढ़ने, शिक्षाओं का अध्ययन करने, उनकी एक निश्चित स्तर की समझ प्राप्त करने में सक्षम हैं, और फिर मुझसे कुछ चीजों के बारे में पूछते हैं जो आपके सुधार के संदर्भ में सार्थक हैं, तो मुझे लगता है कि चाहे आप केवल सीख रहे हैं या वास्तव में स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित कर रहे हैं, तो यह आपके लिए लाभदायक होगा। मुझे लगता है कि पूर्वनिर्धारित अवसर का अब योग्य समय आ गया है, इसलिए मैं आया हूं।
मैं जानता हूं कि यहां बैठे लोगों में एक ऐसा समूह है जिसने [अभ्यास] का अध्ययन शुरू नहीं किया है, एक ऐसा समूह है जो अभी भी केवल व्यायाम करता है और जिसने अभी तक शिक्षाओं का अध्ययन गंभीरता से नहीं लिया है, और ऐसे लोगों का एक समूह है जिन्होंने काफी अच्छा अध्ययन किया है। मुझे हर किसी से शिक्षाओं का अध्ययन करने की अपेक्षा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि इस सब में एक सम्बन्ध सम्मिलित है। यह ज्ञात है कि चीन की भूमि पर, चीगोंग बीस वर्षों से अधिक समय से समाज में व्यापक रूप से फैल रहा है। सांस्कृतिक क्रांति के मध्य से अंतिम काल में चीगोंग की लोकप्रियता चरम पर पहुंचने लगी थी। फिर भी किसी ने कभी यह नहीं बताया कि चीगोंग वास्तव में क्या है। किसी ने यह नहीं बताया है कि चीगोंग ने जो दिव्य सिध्दियाँ या आधुनिक विज्ञान के लिए अस्पष्ट घटनाएँ उत्पन्न की हैं, वे वास्तव में क्या हैं। चीगोंग के प्रकट होने का उद्देश्य क्या है? यह बात केवल कुछ लोग ही जानते हैं। चीगोंग पूरे इतिहास में कभी प्रकट नहीं हुआ, तो यह अब क्यों प्रकट हुआ है? इसके अतिरिक्त, यह एक आध्यात्मिक चीज है जो समाज में फैल रही है। ऐसा क्यों हुआ? बहुत कम लोग यह जानते हैं। निश्चित ही, जब चीगोंग चीन में व्यापक रूप से फैलने लगा, तो कई उत्कृष्ट चीगोंग गुरु इसे सिखाने के लिए सामने आए। वे बस इतना जानते थे कि ऐसा करने का उद्देश्य लोगों को स्वस्थ होने में सहायता करके कुछ अच्छे कार्य करना था। उनकी इस विषय की एक सरल विचार प्रक्रिया और समझ थी।
भले ही चीगोंग लंबे समय से व्यापक रूप से फैल रहा है—वास्तव में, दशकों से—ऐसा कोई भी नहीं है जो इसके वास्तविक, गहरे अर्थ को समझता हो। इसलिए, ज़ुआन फालुन पुस्तक में मैंने चीगोंग समुदाय की कुछ घटनाओं, समाज में चीगोंग के फैलने का कारण और चीगोंग के मुख्य उद्देश्य की व्याख्या की है। अतः पुस्तक एक व्यवस्थित उत्पाद है जो व्यक्ति को साधना में आगे बढ़ने में सक्षम बना सकती है। पुस्तक को बार-बार पढ़ने पर कई लोगों को एक अनोखी घटना का अनुभव हुआ है : चाहे आप इस पुस्तक को कितनी भी बार पढ़ें, आपको नया नया सा लगेगा; चाहे आप इस पुस्तक को कितनी भी बार पढ़ते हैं, आपको किसी विशेष अनुच्छेद की नई समझ प्राप्त होती रहेगी; चाहे आप इस पुस्तक को कितनी भी बार पढ़ें, आपको अभी भी अनुभव होगा कि इसमें कई आतंरिक अर्थ हैं जो अभी भी आपके सामने आने शेष हैं। ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने उन चीजों के बारे में बताया है जो किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से विकसित करने में सक्षम बना सकती हैं, किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से स्वयं को कैसे विकसित करना है, ब्रह्मांड के निश्चित गुण, और कई अन्य चीजें जिन्हें दिव्य रहस्य माना जाता है; मैंने इन तत्वों को इस पुस्तक में व्यवस्थित रूप से संगठित किया है। यह एक अभ्यासी को फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम बना सकती है, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से पहले कभी किसी ने ऐसा कुछ नहीं किया है। कई लोगों ने इस पुस्तक को पढ़ा है और मानते हैं कि इसमें कई दिव्य रहस्य सम्मिलित हैं—जिनमें से कई सबसे अधिक संरक्षित रहस्यों में से हैं—जिनके बारे में अतीत में मानव जाति को कभी भी जानने की अनुमति नहीं थी। इन सभी बातों को मैंने पुस्तक में उजागर किया है। निःसंदेह, ऐसा करने के पीछे मेरा अपना उद्देश्य है। यदि कोई लापरवाही से और बिना उत्तरदायित्व के दिव्य रहस्यों को प्रकट करता है, और साधारण व्यक्ति के साथ उच्च आयामों के इन सिद्धांतों पर लापरवाही से चर्चा करता है जैसे कि वे कोई साधारण सिद्धांत हों, तो वह दिव्य रहस्यों को उजागर कर रहा होगा और बुरे कर्म कर रहा होगा, और उसे निश्चित रूप से इसके लिए प्रतिशोध का सामना करना पड़ेगा।
मैं यह उपक्रम एक उद्देश्य से कर रहा हूं। मेरा एक उद्देश्य यह है कि, सतही स्तर पर, मैंने देखा है कि कई लोग, इतने वर्षों तक चीगोंग का अभ्यास करने के बाद, यह जान गए हैं कि चीगोंग एक गहरा और प्रगाढ़ विषय है और यह एक व्यक्ति को एक उच्च आध्यात्मिक आयाम तक पहुंचने में सक्षम बना सकता है। यहाँ तक कि फल पदवी तक भी। फिर भी उन्हें रोक दिया गया है क्योंकि वे इस जैसा वास्तविक आध्यात्मिक मार्ग नहीं खोज पाए हैं। दूसरी ओर, औसत चीगोंग अभ्यास केवल अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए उपयोगी है और इसका उपयोग साधना के लिए नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार बहुत से लोग साधारण बौद्ध बनने के लिए मठों में गए हैं और भिक्षुओं के अधीन शिष्यत्व शुरू किया है। निश्चित ही, क्योंकि हम इस विषय पर हैं, मैं उल्लेख करूंगा कि बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा था कि उनकी शिक्षाएं धर्म के अंत के युग में लोगों को बचाने में सक्षम नहीं होंगी। यह बात बुद्ध शाक्यमुनि ने कही थी, और इसका कारण यह है कि कई कारकों के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। इसलिए कई लोगों के लिए, चाहे वे आध्यात्मिक प्रगति करने का कितना भी प्रयास करें, चाहे वह किसी मठ में हो या चीगोंग का अभ्यास करके, उन्हें ऐसा लगता है जैसे उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ या वे आध्यात्मिक रूप से ऊपर नहीं बढ़े हैं, और वास्तव में उन्होंने स्वयं में सुधार नहीं किया है। इसलिए मैं हर किसी में स्वयं को बेहतर बनाने की इच्छा देखता हूं लेकिन यह भी देखता हूं कि लोग बहुत पीड़ित हैं क्योंकि उन्हें इस स्थिति से बाहर निकलने का मार्ग खोजने से रोक दिया गया है। इसलिए मैं वास्तव में उन लोगों का मार्गदर्शन करना चाहता हूं जो अभ्यास को अधिक आध्यात्मिक ऊंचाइयों की ओर ले जाना चाहते हैं। यह [मेरे ऐसा करने का] एक प्रमुख कारण है।
फिर भी जब एक पवित्र साधना प्रसारित होता है, तो यह आवश्यक है कि उसके अनुयायी अपने नैतिकगुण और नैतिक आदर्शों में सुधार करें और बेहतर मनुष्य बनें। तो फिर, एक अभ्यासकर्ता को औसत अभ्यास न करने वाले के नैतिक आदर्श को पार करना आवश्यक है। इस प्रकार वह समाज को लाभान्वित करेगा। निःसंदेह, ऐसे कई लोग हैं जिनमें पुस्तक पढ़ने के बाद भी साधना करने के आवश्यक गुण नहीं होते हैं, लेकिन वे उचित मानवीय नैतिकता के सिद्धांतों को समझ जाते हैं। तब से, ये लोग अच्छे मनुष्य बन सकते हैं। यद्यपि उनके पास साधना करने के लिए आवश्यक गुण नहीं है, फिर भी वे अच्छे लोग होंगे, और वे समाज को लाभान्वित करेंगे। यह अपरिहार्य प्रभाव है जो एक पवित्र साधना के प्रसारित होने पर होता है। वास्तव में, इतिहास में प्रकट हुए सच्चे धर्म, जैसे कि ईसाई धर्म, कैथोलिक धर्म, बौद्ध धर्म और ताओवाद, साथ ही यहूदी धर्म, समाज को दयालु बनने में सहायता करने में सक्षम हैं और जो लोग वास्तव में साधना में आगे बढ़ना चाहते हैं उन्हें उचित शिक्षा और फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं। जिनके पास अभी के लिए, साधना करने के गुण नहीं है वे उन लोगों को समाज में उत्कृष्ट व्यक्ति बनने में सक्षम करते हैं, जिससे भविष्य में ऐसे लोगों के लिए साधना करने के अवसर उत्पन्न हो सकें—यही उनका प्रभाव है।
हालाँकि हम एक धर्म नहीं हैं, मैं उन्नत चीगोंग ज्ञान का प्रसार कर रहा हूँ, और इसलिए यह कोई साधारण चीगोंग मार्ग नहीं है। स्पष्ट रूप से कहें तो, चीगोंग किसी सांसारिक वस्तु का पीछा करना नहीं है। चीगोंग क्या है? चीगोंग साधना है। लेकिन यह साधना का सबसे प्राथमिक स्तर है, वह स्तर जिसमें ताई ची भी सम्मिलित है। ताई ची, जैसा कि आप सभी जानते हैं, बहुत अच्छी है, और 1950 के दशक में ही चीन में व्यापक रूप से प्रसारित हो रही थी। यह कुछ ऐसा है जिसे झांग सैनफेंग ने मिंग राजवंश में प्रसारित करना शुरू किया था। फिर भी उन्होंने जो कुछ प्रसारित किया था वह केवल तकनीकें और क्रियाएं थीं, और उन्होंने अभ्यास के आध्यात्मिक तत्वों का प्रसार नहीं किया था। अर्थात्, उन्होंने लोगों को ऐसी शिक्षाएँ नहीं दीं जो उन्हें आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने और साधना के हर चरण में सुधार करने में मार्गदर्शन कर पायें। इस प्रकार ताई ची अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के स्तर पर ही सीमित है, और इसका उपयोग साधना के उन्नत चरणों की ओर बढ़ने के लिए नहीं किया जा सकता है। यद्यपि यह प्रथा बहुत अच्छी है, लेकिन इसके आध्यात्मिक तत्वों का प्रसार नहीं हुआ। वे आध्यात्मिक स्वरुप अतीत में भी होते थे, लेकिन वे बाद की पीढ़ियों तक पारित नहीं हुए। दूसरी ओर, आज हम जो शिक्षाएँ प्रसारित कर रहे हैं, वे व्यवस्थित रूप से इन चीजों को प्राप्त करवाती हैं।
निश्चित ही, यहां पर कई नए शिष्य हैं, और कुछ को मैं जो कह रहा हूं उसे समझने में कठिनाई हो सकती है। जैसा कि आप सभी जानते हैं, ऐसे कई धर्म हैं जिनके अनुयायी बेहतर मनुष्य बनते हैं और दिव्यलोकों में जाते हैं। बौद्ध धर्म में, सुखावटी निस्संदेह एक दिव्यलोक है। पूरे इतिहास में, प्रत्येक महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति या संत ने बताया कि एक अच्छा मनुष्य कैसे बनें और यदि कोई व्यक्ति दिव्यलोक में जाना चाहता है, तो उसे उच्च स्तर के आदर्श तक पहुंचना होगा। फिर भी उन्होंने इसके पीछे के कारण नहीं बताये। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये सभी महान ज्ञानप्राप्त प्राणी—चाहे वह यीशु हों, बुद्ध शाक्यमुनि हों, लाओ ज़ हों, इत्यादि—लगभग दो हज़ार वर्ष पहले प्रकट हुए थे। उस समय के लोग आज के लोगों से भिन्न थे; वे अधिक सरल, सच्चे और दयालु थे और उनके विचार उतने जटिल नहीं थे। क्योंकि उस समय के लोगों की मनःस्थिति आज के लोगों की तुलना में भिन्न थी, इसलिए [उन महान ज्ञानप्राप्त प्राणियों] द्वारा सिखाई गई शिक्षाएँ उस समय में प्रभावी थीं। उस समय, उनके द्वारा सिखाई गई चीजें लोगों को फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम बनाने में पूरी तरह से सक्षम थीं। समय के साथ-साथ आज लोगों की सोच काफी जटिल हो गई है और उनके सोचने के तरीके भी बदल गए हैं। इस प्रकार, आज लोग उन बातों को नहीं समझ सकते जो इन महान ज्ञानप्राप्त प्राणियों ने उस समय प्रसारित की थीं। इसलिए जब आज लोग इन धर्मग्रंथों को पढ़ते हैं, तो उन्हें उनका उचित अर्थ समझने में कठिनाई होती है। हालाँकि मैं चीगोंग प्रारूप का उपयोग करके इस अभ्यास का प्रसार कर रहा हूँ, आप सभी जानते हैं कि मैं दिव्य मार्ग का प्रसार कर रहा हूँ। कुछ लोग सोचते हैं, "आपने जो दिव्य मार्ग प्रसारित किया है वह बुद्ध शाक्यमुनि ने जो सिखाया उससे भिन्न है।" यदि मैं आज बुद्ध शाक्यमुनि के शब्दों का उपयोग करके लोगों को चीजें समझाऊं, तो कोई भी इसे समझ नहीं पाएगा। बुद्ध शाक्यमुनि की भाषा उस समय के लोगों की भाषा थी, इसलिए उस समय के लोग इसे समझ सकते थे। इसलिए आपको दिव्य मार्ग समझाने के लिए अब मुझे वर्तमान की भाषा का उपयोग करना होगा जिससे आप इसे समझ सकें। कुछ लोग यह भी सोच सकते हैं, "आप जो चर्चा कर रहे हैं वह बौद्ध धर्मग्रंथों से नहीं है।" क्या बुद्ध शाक्यमुनि वही शिक्षा दे रहे थे जो छह आदिकालीन बुद्धों ने सिखाई थी? यदि मैत्रेय संसार में अवतरित होते हैं तो क्या वह बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा कही गई बातें दोहराएंगे? लोगों को बचाने वाले ज्ञानप्राप्त प्राणी जो कुछ सिखाते हैं वे वह सिद्धांत होते हैं जिनके बारे में उन्होंने ज्ञानप्राप्त किया है, वे वह चीजें हैं जो उन्होंने मनुष्य को बचाने के लिए प्रसारित की हैं।
इस पुस्तक में मैंने साधना से संबंधित बहुत सी बातें लिखी हैं। जब कोई व्यक्ति पहली बार साधना करता है, तो उसके विचार का स्तर औसत व्यक्ति के समान ही होता है। शिक्षाएँ आपके साधना को शुरू से लेकर उस बिंदु तक मार्गदर्शन करेंगी जब तक आप फल पदवी प्राप्त नहीं कर लेते। मैंने वास्तव में महान ब्रह्मांड के मौलिक महान मार्ग का प्रसार करके कुछ अभूतपूर्व किया है, कुछ ऐसा जो आपको अभी पायी जाने वाली सभी पुस्तकों—प्राचीन और आधुनिक, चीनी और विदेशी—को पढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। जिन सिद्धांतों की मैंने व्याख्या की है वे ब्रह्मांड के निश्चित गुण और दिव्य मार्ग का सार हैं, और मेरे शब्दों के माध्यम से उन्हें सटीक रूप से व्यक्त किया गया है। पुस्तक पढ़ने के बाद, कई लोग सोचते हैं या पूछते हैं, "गुरु ली के पास कितना शैक्षणिक ज्ञान है?" ऐसा लगता है कि उन्होंने कई शैक्षणिक क्षेत्रों को [शिक्षाओं में] सम्मिलित किया है, चाहे वे प्राचीन, आधुनिक, चीनी या विदेशी हों, जैसे कि खगोल विज्ञान, भूगोल, इतिहास, रसायन विज्ञान, भौतिकी, खगोल भौतिकी, उच्च-शक्ति भौतिकी और दर्शनशास्त्र। लोगों को लगता है कि मेरा ज्ञान बहुत प्रगाढ़ है, लेकिन मुझे वास्तव में लगता है कि साधारण लोगों के शैक्षणिक ज्ञान की तुलना में यह काफी अपर्याप्त है। फिर भी आप इन सिद्धांतों को नहीं सीख पाएंगे, भले ही आप सारी पुस्तकें पढ़ लें या संसार के सभी शैक्षणिक विषयों को सीख लें। चाहे आप संसार का सारा शैक्षणिक ज्ञान प्राप्त कर लें, फिर भी आप एक साधारण व्यक्ति ही रहेंगे। इसका कारण यह है कि आप दूसरों की तुलना में अधिक सांसारिक ज्ञान प्राप्त करके, इस आध्यात्मिक स्तर पर बने रहते हैं—आप अभी भी एक साधारण व्यक्ति हैं। लेकिन मैं जिन सिद्धांतों और चीजों की व्याख्या कर रहा हूं वे इस सांसारिक आयाम से संबंधित नहीं हैं; वे उससे उच्च हैं। इस प्रकार, शिक्षाओं में व्याप्त विचार सांसारिक ज्ञान से उत्पन्न नहीं होते हैं। यह मार्ग [संपूर्ण] ब्रह्मांड को समाहित करता है, जिसमें समाज का सारा ज्ञान सम्मिलित है।
मैंने ब्रह्मांड के मार्ग के सभी सिद्धांतों, सबसे मूल से लेकर सबसे उच्च तक को व्यक्त करने के लिए सरल और आसानी से समझ में आने वाली भाषा के साथ-साथ साधना के सबसे प्राथमिक रूप—चीगोंग—का उपयोग किया है। पुस्तक को पहली बार पढ़ने पर, आप पाएंगे कि यह एक अच्छा मनुष्य बनने के सिद्धांत सिखाती है; यदि आप पुस्तक को दोबारा पढ़ेंगे, तो आप पाएंगे कि यह जो समझाती है वह कोई सांसारिक सिद्धांत नहीं हैं, और यह एक ऐसी पुस्तक है जो सांसारिक ज्ञान से परे है; यदि आप इसे तीसरी बार पढ़ने में सक्षम होते हैं, तो आप पाएंगे कि यह एक दिव्य पुस्तक है; यदि आप इसे पढ़ते रहेंगे, तो आप इसे छोड़ नहीं पाएंगे। चीन में अब ऐसे लोग हैं जिन्होंने पुस्तक को सौ से अधिक बार पढ़ा है और जो अभी भी इसे पढ़ रहे हैं, और वे इसे छोड़ नहीं पाते। पुस्तक में बहुत सारे आंतरिक अर्थ हैं, और जितना अधिक आप पढ़ेंगे, उतने ही अधिक आप उन्हें देखे पाएंगे। ऐसा क्यों है? हालाँकि मैंने कई दिव्य रहस्यों को उजागर किया है, जो अभ्यासी नहीं हैं उन्हें सतही शब्दों में देखने में असमर्थ होंगे। केवल जब कोई अभ्यासी निरंतर पुस्तक पढ़ता है तो वह इसके आंतरिक अर्थों का पता लगाने में सक्षम होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से स्वयं को विकसित करते हुए निरंतर आगे बढ़ता रहता है। जब [ज़ुआन फालुन को पढ़ना शुरू किया], तो आपको ऐसा क्यों लगा कि यह पुस्तक एक अच्छा मनुष्य बनने के सिद्धांतों की व्याख्या करती है? और फिर जब आप इसे दूसरी बार पढ़ते हैं तो यह वैसा नहीं होता है, क्योंकि यह [अर्थ की एक नई परत तक] पहुँच जाता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति साधना करना चाहता है, तो उसे पहले साधक नहीं होते हुए शुरुआती बिंदु से प्रारंभ करना होगा। धीरे-धीरे वह अपने नैतिकगुण में सुधार करता है और उच्च आदर्श प्राप्त करता है। जब आप पहले स्तर के आदर्श को पूरा कर लेते हैं, तो उस स्तर की शिक्षाएँ आपके अभ्यास में आपका मार्गदर्शन करने के लिए उपस्थित होंगी; जब आप दूसरे स्तर के आदर्श को पूरा कर लेते हैं, तो आपके पास उस स्तर पर अपने अभ्यास का मार्गदर्शन करने के लिए दूसरे स्तर की शिक्षाएँ होंगी। जैसे-जैसे आप निरंतर आगे बढ़ते हैं, यह अभ्यास प्रत्येक स्तर पर आपके साधना का मार्गदर्शन करने में सक्षम होना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो, चाहे आप अपने साधना में जिस भी स्तर पर प्रगति कर रहे हों, जब तक आप फल पदवी तक नहीं पहुंच जाते, तब तक आपको अपने अभ्यास को हर कदम पर निर्देशित करने के लिए उस स्तर की शिक्षाओं की आवश्यकता होती है। मेरी पुस्तक में ये सभी चीजें सम्मिलित हैं, इसलिए जब आप वास्तव में स्वयं में सुधार करना चाहते हैं, तो आप इन चीजों को देखेंगे, और [पुस्तक] आपका मार्गदर्शन करने में सक्षम होगी कि आप अपने अभ्यास में कैसे आगे बढ़ें। इस पुस्तक में प्रचुर मात्रा में आंतरिक अर्थ हैं। यदि आप इसे दस हजार बार भी पढ़ें, तब भी यह आपकी फल पदवी प्राप्त होने तक आपकी साधना का मार्गदर्शन करने में सक्षम होगी।
फल पदवी के मुद्दे पर बात करें तो, यह ज्ञात है कि यीशु ने कहा था कि यदि आपको उन पर श्रद्धा है तो आप दिव्यलोक में जा सकते हैं। बौद्ध धर्म में कहा गया है, "यदि कोई व्यक्ति साधना के माध्यम से बुद्ध बन जाता है, तो वह सुखावटी में जा सकता है।" [ज्ञानप्राप्त प्राणियों] ने स्पष्ट रूप से चीजों को सरल तरीके से कहा, और इस तथ्य पर जोर नहीं दिया कि आप केवल वास्तविक साधना करके ही [उन दिव्यलोकों में] जा सकते हैं। लेकिन वास्तव में, धर्मों में साधना भी सम्मिलित है। यह केवल इतना है कि बुद्ध शाक्यमुनि और यीशु दोनों ने निम्नलिखित स्थिति देखी : आध्यात्मिक समूहों में एक कहावत है : "व्यक्ति को केवल अभ्यास का प्रयास करने की आवश्यकता है, और बाकी सब उसके गुरु के हाथों में है।" यह भी एक ऐसी बात है जिसके बारे में वे लोग नहीं जानते जो साधना नहीं करते। जो लोग साधना नहीं करते हैं वे सोचते हैं, "शारीरिक व्यायाम करने के माध्यम से मैं अधिक मात्रा में उच्च शक्ति विकसित कर सकता हूं।" हमें यह धारणा उपहासपूर्ण लगती है, क्योंकि यह असंभव है। निश्चित ही, यदि आप आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, तो आप केवल तभी सफल हो पाएंगे जब आपका गुरु वास्तव में आपका उत्तरदायित्व लेता है, आपके शरीर में अनेक यंत्र स्थापित करता है, और, जैसे कि बीज बोये जाते हैं, आप में कई चीजें रोपित करते हैं। इसके अतिरिक्त, आप आध्यात्मिक प्रगति करते हुए केवल तभी आगे बढ़ पाएंगे जब गुरु आपका ध्यान रखेंगे, आपकी सुरक्षा करेंगे, आपके कर्मों को हटायेंगे और आपको उच्च शक्ति विकसित करने में सहायता करेंगे। धर्मों में साधना का उल्लेख नहीं है। क्यों नहीं है? यीशु जानते थे कि यदि आपको उन पर आस्था है, तो आप आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं, और ऐसा करते हुए ऊँचा उठ सकते हैं। लोग अब धर्मों के माध्यम से आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते, इसका कारण यह है कि वे अब [यीशु जैसे ज्ञानप्राप्त प्राणियों] द्वारा कही गई बातों का वास्तविक अर्थ नहीं समझते हैं। बहुत से लोग सोचते हैं, "यदि मेरी यीशु पर श्रद्धा है, तो मैं मरने के बाद दिव्यलोक में जा सकता हूँ।" इसके बारे में सोचिये : यदि हम दिव्यलोक में जाना चाहते, तो हम वहाँ कैसे पहुँच सकते हैं? यदि आप चीजों को सांसारिक मानसिकता के साथ करते हैं, इच्छाओं और भावनाओं से भरे हुए हैं, और आपके विभिन्न प्रकार के मोहभावों के साथ, दूसरों के विरुद्ध प्रतिस्पर्धा करने का मोहभाव है, और दिखावा करने की इच्छा है—ऐसे बहुत सारे बुरे, सांसारिक मोहभाव हैं—यदि आपको जहां बुद्ध हैं वहां भेज दिया जाये तो आप बुद्ध से बहस करना और लड़ना शुरू कर सकते हैं क्योंकि आपने अपने सांसारिक मोहभावों से छुटकारा नहीं पाया है। जब आप देखते हैं कि एक महान बोधिसत्व कितनी सुंदर है, तो आपके मन में अशोभनीय विचार आ सकते हैं। क्या इसकी अनुमति दी जा सकती है? बिल्कुल नहीं। इस प्रकार, आप संसार में रहते हुए इन मोहभावों से भरी, गंदी और बुरी मानसिकताओं से छुटकारा पाने के बाद ही उस स्तर पर जा सकते हैं। आप स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित करके और श्रद्धा के माध्यम से वहां पहुंच सकते हैं, लेकिन आप दिव्यलोक में केवल तभी जा सकते हैं, जब आप अपराध स्वीकार करने और पश्चाताप करने के बाद फिर से वही गलती नहीं करते हैं, और इस प्रकार बेहतर और बेहतर बनते हैं और एक दिव्य प्राणी का आदर्श प्राप्त करते हैं।
कुछ लोग कहते हैं, "जब तक मुझे यीशु में आस्था है, मैं दिव्यलोक में जा सकता हूँ।" मैं कहूंगा कि आप वहां नहीं जा पाएंगे। क्यों नहीं? आज के लोग अब यीशु द्वारा कही गई बातों का वास्तविक अर्थ नहीं समझते हैं। तथागत स्तर पर और बुद्ध के आध्यात्मिक स्तर पर यीशु एक ज्ञानप्राप्त प्राणी हैं। जो लोग साधना नहीं करते वे उनकी कही गई बातों का गहरा अर्थ नहीं समझ सकते। आप केवल धीरे-धीरे अनुभव कर सकते हैं और उन्होंने जो कहा उसका गहरा अर्थ खोज सकते हैं यदि आप निरंतर उनके तरीकों के अनुसार आध्यात्मिक प्रगति करते हैं। यीशु की इस बात का उदाहरण लीजिए, "मुझ में आस्था रखो और आप दिव्यलोक में जा सकते हैं।" वास्तव में, यदि आप वास्तव में यीशु में आस्था प्रदर्शित करना चाहते हैं, तो आपको उन सिद्धांतों के अनुसार जीना होगा जो उन्होंने एक अच्छा मनुष्य बनने के लिए सिखाए हैं—केवल तभी आप दिव्यलोक में जा सकते हैं। अन्यथा, यीशु द्वारा इतनी सारी बातें कहने का क्या तात्पर्य था?! जब आप अपराध स्वीकार करते हैं और पश्चाताप करते हैं, तो आप सोचते हैं कि आप [अपने धार्मिक अभ्यास में] बहुत अच्छा कर रहे हैं और आपकी मानसिक स्थिति बहुत अच्छी है। लेकिन जब आप चर्च के द्वार से बाहर निकलते हैं, तो आप जैसा चाहें वैसा व्यवहार करते हैं और नास्तिकों से भी बदतर काम करते हैं। आप दिव्यलोक में कैसे जा सकते हैं? आपने अपनी मानसिक स्थिति में बिल्कुल भी सुधार नहीं किया होता है। याद करें कि यीशु ने कहा था, "यदि आपकी मुझ पर आस्था है, तो आप दिव्यलोक में जा सकते हैं।" अर्थात्, उन पर सच्ची आस्था रखने के लिए आपको उनकी शिक्षाओं के अनुसार कार्य करना होगा, है ना? यह सिद्धांत अन्य धर्मों पर भी लागू होता है।
यह बुद्ध शाक्यमुनि के बाद की आने वाली पीढ़ियाँ थीं जिन्होंने उनके कुछ कथनों को एकत्रित किया और उन्हें धर्मग्रंथों का रूप दिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, लोग यह मानने लगे कि एक व्यक्ति की धर्मग्रंथ पढ़ने की मात्रा या उसके बौद्ध ज्ञान की मात्रा साधना के समान है। वास्तव में, बुद्ध शाक्यमुनि के समय में कोई धर्मग्रंथ ही नहीं थे। इसके अतिरिक्त, (बुद्ध शाक्यमुनि के समय) पांच सौ साल बाद तक धर्मग्रंथ व्यवस्थित रूप से एकत्रित नहीं किए गए थे और बुद्ध शाक्यमुनि के मूल शब्दों से पूरी तरह से भिन्न थे। लेकिन उस समय में [जब बुद्ध शाक्यमुनि उपदेश दे रहे थे], लोगों को केवल इतना ही जानने की अनुमति थी; बहुत अधिक जानना अस्वीकार्य होता। यह एक अपरिहार्य तथ्य है। जीवन के अंत में, अपने वर्षों के अंत में, बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा, "मैंने अपने जीवनकाल में किसी भी मार्ग (धर्म) की शिक्षा नहीं दी है।" ऐसा इसलिए है क्योंकि बुद्ध शाक्यमुनि ने वास्तव में ब्रह्मांड के मार्ग की व्याख्या नहीं की थी, न ही उन्होंने यह बताया था कि जन, शान, रेन के परिभाषित गुण सांसारिक जगत में या तथागत के आध्यात्मिक स्तर पर कैसे प्रकट होते हैं। उन्होनें वास्तव में इसे स्पष्ट नहीं किया था! तो फिर तथागत बुद्ध ने क्या सिखाया? उन्होंने जो सिखाया वह वही था जो उन्होंने पहले मानव जगत में अपने साधना के दौरान ज्ञानप्राप्त किया था, उनके पिछले पुनर्जन्मों के दौरान उनके साधना के बारे में कुछ समझ और कहानियाँ, और मार्ग की कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में उनकी समझ। धर्मग्रंथों को टुकड़ों में संकलित किया गया था और इसलिए वे अव्यवस्थित रूप में हैं। तो बाद की पीढ़ियों ने बुद्ध शाक्यमुनि के शब्दों को दिव्य मार्ग के रूप में क्यों समझा? एक कारण यह है कि यह चीजों को मानवीय रूप से समझना है; दूसरा कारण यह है कि शाक्यमुनि एक बुद्ध हैं, इसलिए उनके शब्द दिव्यता से ओत-प्रोत हैं। मनुष्यों के लिए, दिव्यता से ओत-प्रोत शब्द एक स्तर पर दिव्य सिद्धांतों को [अभिव्यक्त] करते हैं और दिव्य मार्ग का [भाग] हैं। लेकिन बुद्ध शाक्यमुनि ने वास्तव में साधना के सिद्धांतों, ब्रह्मांड के निश्चित गुणों, वह क्या है जो किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से सुधार करने में सक्षम बनाता है, और ऐसे अन्य विषयों की व्यवस्थित रूप से व्याख्या नहीं की। उन्होंने वास्तव में इन बातों को स्पष्ट नहीं किया! इसीलिए मैं कहता हूं कि मैंने कुछ अभूतपूर्व किया है। मैंने एक विशाल द्वार खोला है और कुछ उच्च किया है [पहले से कहीं अधिक]—मैंने साधना के सभी सिद्धांतों और फल पदवी प्राप्त करने से संबंधित कारकों की व्याख्या की है। और मैंने उन्हें बहुत व्यवस्थित ढंग से समझाया है। यही कारण है कि उच्च लोकों के देवताओं ने कहा है, "आपने मनुष्यों को स्वर्ग में आने की सीढ़ी दे दी है—जुआन फालुन।"
मैं यहां बुद्ध शाक्यमुनि को कमतर दिखाने का प्रयत्न नहीं कर रहा हूं। मेरा ऐसा कुछ करने का ध्येय नहीं है। मुझमें सांसारिक भावनाएँ नहीं हैं, और मैं नश्वर संसार की प्रसिद्धि और भौतिक हितों से जुड़ा हुआ नहीं हूँ। क्योंकि मैंने इस [अभ्यास] को सार्वजनिक कर दिया है, मैं आपके प्रति उत्तरदायी रहूँगा, और मैं आपको इस सिद्धांत को स्पष्ट रूप से समझाऊंगा। मैं आपसे कुछ नहीं चाहता, और मैं आपसे एक पैसा भी नहीं मांगूंगा, क्योंकि मैं आपसे केवल अच्छाई की दिशा में चलने का प्रयास करने के लिए कह रहा हूं। कुछ लोगों ने मुझसे पूछा है, "गुरूजी, आपने हमें बहुत सारी चीजें सिखाई हैं और हमें बहुत सारी चीजें दी हैं—आप बदले में क्या चाहते हैं?" मैंने कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं केवल आपको बचाने के लिए यहां आया हूं। मैं केवल यह चाहता हूं कि आप एक बेहतर मनुष्य बनने का प्रयास करें और आप आगे बढ़ने और स्वयं को बेहतर बनाने में सक्षम हों।'' ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने देखा है कि सांसारिक जीवन जीना मानव अस्तित्व का उद्देश्य नहीं है। आजकल, लोग सांसारिक जगत की झूठी वास्तविकताओं से मोहित हो जाते हैं और सोचते हैं, "लोगों को इसी प्रकार रहना चाहिए।" यह विशेष रूप से ऐसा ही है क्योंकि समाज के नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट आई है। हर कोई समाज की शक्तिशाली धाराओं के साथ पतन की ओर बह रहा है, और समग्र रूप से समाज का पतन हो रहा है। इस प्रकार, कोई भी व्यक्ति अपनी गिरावट का पता नहीं लगा सकता। कुछ लोग सोचते हैं कि दूसरों की तुलना में थोड़ा बेहतर होने के कारण वे अच्छे लोग हैं। वास्तव में, आप स्वयं को परखने के लिए एक अस्वीकृत आदर्श का उपयोग कर रहे हैं, और ऐसे लोगों के बीच रहते हुए जो अच्छे नहीं हैं, आप दूसरों की तुलना में कुछ ही बेहतर हैं। यदि आपको आध्यात्मिक प्रगति करनी है और आध्यात्मिक आयाम में वापस लौटना है जैसा कि समाज हुआ करता था, भले ही वह क्षेत्र विशेष रूप से ऊंचा नहीं था, जब आप आज के समाज को उस दृष्टिकोण से देखते हैं तो आप पाएंगे कि यह भयावह है! यह सचमुच भयावह है! आप पाएंगे कि वर्तमान मानवजाति वास्तव में बुराइयों और पाप से ऊपर तक भरी हुई है।
स्वर्ग के महान ज्ञानप्राप्त प्राणी—चाहे वे बुद्ध हों, दाओ हों, या देवता हों—अब वर्तमान के लोगों को मानव नहीं मानते हैं। यह वाक्य थोड़ा कठोर लगता है, क्योंकि निस्संदेह संसार में अभी भी अच्छे लोग हैं। लेकिन वे जिस चीज का उल्लेख कर रहे हैं वह मानव जाति की समग्र परिस्थिति है, बड़ी तस्वीर है, और यह वास्तव में ऐसी ही है। अतीत में, जब लोग अपराध स्वीकार करने के लिए किसी मंदिर या चर्च में जाते थे, तो उन्हें लगता था कि यीशु या दिव्यलोक के अन्य प्राणी वास्तव में उनकी बात सुनते थे, और वे अपने मन में समाधानों की गूँज सुनते थे, जो उनके प्रश्नों के उत्तर होते थे। हालाँकि, आज लोगों को इसका अनुभव नहीं होता है, और जो लोग बुद्ध की पूजा करते हैं वे अब उनका अस्तित्व नहीं देख सकते हैं। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मानवजाति आध्यात्मिक रूप से चीजों को समझने में असमर्थ हो गई है और तेजी से भ्रष्ट हो गई है। इसलिए, दिव्य प्राणी अब मानवजाति की परवाह नहीं करते। क्योंकि आधुनिक लोगों के कर्म बहुत अधिक हैं और वे चीजों को आध्यात्मिक रूप से समझने में असमर्थ होते जा रहे हैं, जब उन्हें कुछ बुरा करने का दंड भुगतना पड़ता है, तो वे इसे एक संयोग के रूप में देखते हैं। मैंने देखा है कि यद्यपि मानव जाति के नैतिक स्तर में भारी गिरावट आई है, लोग अनजाने में इस शक्तिशाली धारा के साथ बह रहे हैं। कुछ लोग अभी भी अपनी दिव्य प्रकृति और अपने प्राकृतिक स्वभाव के अनुसार चल रहे हैं, और इन वर्षों के दौरान जब [फालुन दाफा का] अभ्यास प्रसारित हो रहा है, बहुत से लोग साधना में प्रगति करने में सक्षम हुए हैं, और साधना में बहुत उन्नत चरण तक पहुंच गए हैं। कुछ ने ज्ञानप्राप्ति का अनुभव किया है, कुछ क्रमिक रूप से ज्ञानप्राप्ति की प्रक्रिया में हैं, और कुछ ने दिव्य स्थिति प्राप्त कर ली है। इससे मुझे बहुत प्रसन्नता होती है, क्योंकि [इससे मुझे पता चलता है कि] मैंने यह व्यर्थ ही नहीं किया है। मैं व्यक्तियों और समाज दोनों के प्रति उत्तरदायी हूं, और मैंने व्यर्थ में दिव्य रहस्यों को उजागर नहीं किया है, क्योंकि मैंने लोगों को साधना में प्रगति करने में सक्षम बनाया है।
मैंने अभी जो मुद्दा उठाया है वह यह है कि मानव अस्तित्व का उद्देश्य केवल मनुष्य बने रहना नहीं है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो शायद अभी भी इसे ठीक से समझ नहीं पाए हैं और सोचते हैं कि लोग केवल इसी प्रकार जीने के लिए बने हैं। सच है—अपनी माँ के गर्भ से जन्म लेने के बाद हर कोई एक जैसा होता है; उनमें से कोई भी अन्य आयामों का अस्तित्व नहीं देख सकता, इसलिए वे उन पर विश्वास नहीं करते हैं। इसके अतिरिक्त, आज लोग आधुनिक विज्ञान के अपूर्ण और त्रुटिपूर्ण होने पर भी उस पर बहुत अधिक विश्वास करते हैं। ब्रह्मांड के बारे में इसकी समझ बहुत उथली है—अर्थात बहुत निम्न स्तर की है—और यह ऐसा ही है। इसलिए इस पर बहुत अधिक विश्वास करना लोगों के लिए एक बहुत बड़ा संकट उत्पन्न करता है : यह मानवीय नैतिकता को पूरी तरह से नष्ट कर देगा। उच्चतर लोकों के लोग नैतिक मूल्यों से रहित व्यक्ति को मानव नहीं मानते हैं! ऐसा इसलिए है क्योंकि केवल मनुष्य ही ऐसे नहीं हैं जो मनुष्यों जैसे दिखते हैं : भूत, बंदर और गोरिल्ला सभी के पास एक मस्तिष्क और चार हाथ-पैर होते हैं। लोगों को मानव कहा जाता है क्योंकि नश्वर संसार में रहते हुए, उन्हें मानवीय नैतिक मानदंडों और आदर्शों का पालन करना होता है और क्योंकि उनके पास जीवन जीने का एक मानवीय तरीका है। जब लोग इन चीजों से दूर हो जाते हैं, तो देवता उन्हें मनुष्य नहीं मानते। फिर भी लोग सोचते हैं कि वे जैसे भी चाहे रह सकते हैं और विकास कर सकते हैं। लेकिन समाज उच्च स्तर के प्राणियों द्वारा नियंत्रित होता है, और मानव जाति तकनीक के माध्यम से कभी भी बुद्ध के स्तर तक नहीं पहुंच पाएगी। अन्यथा, अंतरिक्ष युद्ध सचमुच भड़क उठेंगे! इस प्रकार, मानव तकनीक को—जो दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा, ईर्ष्या और विभिन्न प्रकार की भावनाओं और इच्छाओं से भरी हुई है—उच्च स्तर के अस्तित्व तक पहुंचने की अनुमति नहीं है।
मानव मस्तिष्क का सत्तर प्रतिशत से अधिक भाग उपयोग नहीं होता है, और आधुनिक चिकित्सा इस बात को समझ गई है। ऐसा क्यों है? मानवीय ज्ञान को सीमित कर दिया गया है। तो बुद्धों के पास महान ज्ञान और दिव्य शक्तियाँ क्यों हैं? वे सब कुछ जानने में सक्षम क्यों हैं और उनके पास इतनी महान बुद्धि क्यों है? यह उस सिद्धांत के कारण है जिसे मैंने अभी समझाया है। कुछ लोग कहते हैं कि मेरी पुस्तक "वैज्ञानिक ज्ञान की इतनी विस्तृत श्रृंखला के विषय में बताती है!" वे पूछते हैं, "गुरुजी, क्या आपके पास बहुत ज्ञान है और आप कई विश्वविद्यालयों में गए हैं?" नहीं, मैं नहीं गया। तो फिर [आपके पास उस प्रकार का ज्ञान] कैसे हो सकता है? मेरे और आपके बीच अंतर यह है कि मेरा मस्तिष्क पूर्ण रूप से मुक्त है और आपका मस्तिष्क नहीं है। लोगों को दर्शनशास्त्र, खगोल विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान और मानव इतिहास जैसे क्षेत्र बहुत जटिल लगते हैं, लेकिन वास्तव में ये बहुत सरल हैं। वे दिव्य मार्ग के सबसे निचले स्तर—मानव जाति के स्तर—पर सांसारिक चीजों का मात्र एक छोटा सा भाग हैं। [वे सभी क्षेत्र] एक ही जैसे सिद्धांतों का पालन करते हैं; अर्थात्, वे ब्रह्मांड के निश्चित गुणों के रूप में और इस स्तर के पदार्थ द्वारा बनाए गए हैं – वे बस ऐसे ही हैं। फिर भी मानव बुद्धि इस सारे ज्ञान को आत्मसात नहीं कर सकती क्योंकि मानव मस्तिष्क को बंधित कर दिया गया है। इस स्थिति से कैसे निपटा जाना चाहिए? यहां तक कि यदि कोई अधिक ज्ञान सीखना चाहता है, तो उसका मस्तिष्क और अधिक ज्ञान आत्मसात करने में असमर्थ है, इसलिए फिर आपको भौतिकी, रसायन विज्ञान, खगोल विज्ञान, उच्च-शक्ति भौतिकी, दर्शनशास्त्र, इतिहास और अन्य क्षेत्रों का अध्ययन करना होता है। अपने जीवनकाल में कोई व्यक्ति ऐसे एक भी शैक्षणिक क्षेत्र के संपूर्ण ज्ञान में महारत प्राप्त नहीं कर सकता, इसलिए मानव ज्ञान बहुत तुच्छ है।
मैंने अभी उल्लेख किया है कि चाहे आप कितना भी ज्ञान प्राप्त कर लें, चाहे आप किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर या सलाहकार हों और चाहे आप कितने भी प्रसिद्ध क्यों न हों, आप अभी भी एक साधारण व्यक्ति ही हैं। इसका कारण यह है कि आपका ज्ञान सांसारिक स्तर से आगे नहीं गया है। साथ ही, आज की मानव जाति का अनुभवजन्य विज्ञान भी त्रुटिपूर्ण है। उदाहरण के लिए, आज का विज्ञान न तो दिव्य प्राणियों के अस्तित्व को सिद्ध कर सकता है और न ही अन्य आयामों के अस्तित्व को। यह अन्य आयामों में जीवन और पदार्थ के स्वरूपों का पता नहीं लगा सकता है; वह नहीं जानता कि मनुष्य के पास नैतिकता नामक एक पदार्थ होता है जो उनके शरीर पर अभिव्यक्त होता है; वह यह भी नहीं जानता कि मनुष्य के पास कर्म नामक एक पदार्थ भी होता है जो मानव शरीर को घेरे हुए होता है। इसलिए हर कोई आधुनिक विज्ञान पर विश्वास करता है, लेकिन आधुनिक विज्ञान इनमें से किसी भी बात को सिद्ध नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त, एक बार जब आप नैतिकता, अच्छे और बुरे कर्मों और विज्ञान के क्षेत्र से बाहर की अन्य चीजों के बारे में बात करते हैं, तो अन्य लोग इन अवधारणाओं को काल्पनिक कहते हैं। क्या यह वास्तव में मानव जाति के सबसे आवश्यक गुण—उसकी नैतिकता—पर आक्रमण करने के लिए आधुनिक विज्ञान को एक अस्त्र के रूप में उपयोग करना नहीं है? क्या ऐसा नहीं हो रहा है? क्योंकि यह [भौतिक] सद्गुण के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है और सिद्ध नहीं कर सकता है, इसलिए यह कहता है कि सद्गुण काल्पनिक है। यदि मानवीय नैतिक मूल्यों को वास्तव में इस प्रकार से नकार दिया जाता है, तो मनुष्यों के पास उन्हें नियंत्रित करने के लिए कोई जन्मजात नैतिक दिशा-निर्देश नहीं रहेगा और उनके पास अब नैतिक आदर्श भी नहीं रहेंगे। उन्हें कुछ भी करने या अनुचित काम करने में कोई झिझक नहीं होगी, और यह मानवीय नैतिकता को निरंतर गिरावट की ओर धकेल देगा। यह विज्ञान की सबसे बड़ी कमी से उत्पन्न होने वाले प्रभाव हैं।
मैंने पहले उल्लेख किया है कि एक निपुण वैज्ञानिक के उस प्रकार के हठी विचार नहीं होते हैं जो कई अन्य लोगों के होते हैं जो तर्क के स्थान पर भावना को रखने के कारण होते हैं। उन विचारों ने आधुनिक विज्ञान पर कठोर और प्रतिबंधात्मक सीमाएँ लगा दी हैं, क्योंकि लोग सोचते हैं कि अनुभवजन्य विज्ञान से परे सबकुछ अवैज्ञानिक है। बस अपने आप से पूछें : जब हम किसी ऐसी चीज को समझने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करते हैं जिसे मानव जाति पहले नहीं समझती थी, तो क्या वह विज्ञान नहीं है? निःसंदेह, तब उस खोज को विज्ञान का भाग माना जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि मानव जाति निरंतर स्वयं को पूर्ण कर रही है और स्वयं को फिर से खोज रही है, जिससे विज्ञान विकसित हो सका है और अंततः ब्रह्मांड को सही अर्थ में समझ सका है। अनुभवजन्य विज्ञान जिस वर्तमान तरीके से विकसित हो रहा है वह अत्यधिक बेढंगा और धीमा है। यह वास्तव में एक अंधे व्यक्ति की तरह है जो टटोलकर यह पता लगाने का प्रयास कर रहा है कि हाथी कैसा दिखता है। यह समग्र ब्रह्माण्ड के भौतिक स्वरूप को नहीं देख सकता और न ही ब्रह्माण्ड के निश्चित गुणों के अस्तित्व को देख सकता है। इसलिए जब वह हाथी के एक भाग को छूता है, तो वह सोचता है कि वह भाग उसका संपूर्ण भाग है। इसने केवल हाथी के पैर को छुआ होता है, लेकिन कहता है, “ओह, विज्ञान ऐसा ही है। यह वह विज्ञान है जो वास्तव में जीवन और पदार्थ को समझता है। वह नहीं देख सकता कि पूरा हाथी कैसा दिखता है। वह नहीं देख सकता कि ब्रह्मांड अनगिनत विभिन्न काल अवधियों से बना है, न ही वह अन्य आयामों या जीवन और पदार्थ के अन्य स्वरूपों को देख सकता है, इसलिए [अन्य आयामों के अस्तित्व जैसी अवधारणाओं] को सरल सोच वाले और हठी लोगों द्वारा काल्पनिक घोषित किया जाता है। यह मानव जाति के नैतिक पतन का सबसे महत्वपूर्ण कारक है। बहुत से लोग मानव जाति के सबसे प्राचीन और मूल गुणों पर आक्रमण करने के लिए विज्ञान को एक अस्त्र के रूप में उपयोग करते हैं। यह भयावह है! यदि मनुष्य सद्गुण गंवा दे तो देवता उसे मनुष्य नहीं मानेंगे। यदि दिव्यलोक मानवजाति को मानव नहीं मानेंगे, तो मानवजाति समाप्त कर दी जाएगी और शून्य से आरंभ की जाएगी।
कुछ लोग सोचते हैं, “मानव जाति प्रगति कर रही है। वानरों से लेकर आज हम जहां हैं वहां तक हमारा विकास एक गौरवशाली उपलब्धि है!” लेकिन आपको कुछ पता होना चाहिए : पूरे प्रागैतिहासिक काल में—चाहे वह 1 लाख वर्ष पहले हो, या बहुत, बहुत पहले, यहाँ तक कि 10 करोड़ वर्ष पहले भी—उन्नत सभ्यताएँ हमेशा पृथ्वी पर अस्तित्व में थीं; बात केवल इतनी है कि वे भिन्न-भिन्न काल में नष्ट हो गयीं। उन्हें क्यों नष्ट किया गया? हालाँकि उनका भौतिक और तकनीकी विकास बहुत तेजी से हुआ, लेकिन उनकी नैतिकता की भावना की गति बनी नहीं रह पायी या नष्ट हो गयी। उन्हें अब अस्तित्व में नहीं रहने दिया गया और नष्ट कर दिया गया। आधुनिक विज्ञान की समझ से पदार्थ की गति नियमों के अनुसार चलती है। जब पदार्थ की गति उसे एक निश्चित अवस्था में लाती है, तो दूसरी अवस्था में स्थानांतरण अनिवार्य रूप से होगा। उदाहरण के लिए, यह संभावना है कि पृथ्वी ब्रह्मांड में घूमते समय किसी अन्य ग्रह से टकराकर नष्ट हो गई हो। भले ही ये चीजें कैसे भी घटित हुई हों, वैज्ञानिकों ने वास्तव में पता लगाया है कि हमारे ग्रह पर कई भिन्न-भिन्न प्राचीन सभ्यताओं के अवशेष हैं, और ये अवशेष आज से बहुत पहले के हैं, जैसे कुछ सैकड़ों-हजारों वर्ष पहले के हैं, लाखों वर्ष पहले, और यहां तक कि करोड़ों वर्ष पहले के भी। प्रत्येक काल की विभिन्न सभ्यताओं द्वारा छोड़े गए अवशेष सभी भिन्न-भिन्न हैं, क्योंकि वे एक ही काल से संबंधित नहीं हैं, इसलिए कुछ वैज्ञानिक इस मुद्दे पर विचार कर रहे हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने एक परिकल्पना प्रस्तावित करते हुए कहा है, "प्रागैतिहासिक सभ्यताएँ और संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं।" ऐसा कुछ वैज्ञानिकों ने कहा है। हममें से जो लोग आध्यात्मिक और धार्मिक क्षेत्रों में हैं वे चीजों को और भी अधिक स्पष्ट रूप से देखते हैं, क्योंकि [हम जानते हैं] इससे पहले भी कई भिन्न-भिन्न मानव सभ्यताएं अस्तित्व में रही हैं। क्योंकि इन सभ्यताओं के नैतिक मूल्य भ्रष्ट हो गए—और हमने निस्संदेह देखा कि यही हुआ—उनका अस्तित्व समाप्त हो गया। नष्ट हो चुकी प्राचीन यूनानी संस्कृति से उस समय के लोगों के भ्रष्टाचार और पतन के अवशेष देखे जा सकते हैं।
कुछ लोग कहते हैं, "हम वानरों से विकसित हुए हैं।" आपको पता होना चाहिए कि मनुष्य वास्तव में वानरों से विकसित नहीं हुए हैं। डार्विन के सिद्धांत में कहा गया कि मनुष्य का विकास वानरों से हुआ है। जब उन्होंने पहली बार इस सिद्धांत को प्रस्तावित किया, तो उन्होंने बहुत घबरा कर ऐसा किया। उनका सिद्धांत त्रुटिपूर्ण और छिद्रों से भरा था। फिर भी लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया और आज भी स्वीकार कर रहे हैं। ध्यान रखें कि आपको लाखों वर्षों के दौरान, वानरों के मनुष्यों में विकसित होने की प्रक्रिया का कोई साक्ष्य नहीं मिल सकता है, जैसा कि उन्होंने प्रस्तावित किया था—बिल्कुल भी नहीं। वानर और मनुष्य के बीच कोई मध्यस्थ प्रजाति क्यों नहीं है? अन्य प्रजातियाँ जो मानव नहीं हैं, जैसे कि पशु जिनके बारे में उन्होंने दावा किया कि वे विकसित हुए हैं, उनमें भी मध्यवर्ती प्रक्रियाओं का अभाव है। इसके अतिरिक्त, ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में उपस्थित प्रजातियाँ अन्य महाद्वीपों से भिन्न क्यों हैं? ये बातें वह नहीं बता सके। फिर भी लोगों ने छिद्रों से भरे विकासवाद के इस सिद्धांत को स्वीकार कर लिया है। यही बात बहुत अजीब है!
हमने देखा है कि मनुष्य वास्तव में वानर के वंशज नहीं हैं; यह केवल इतना है कि प्रत्येक समयावधि के लिए भिन्न-भिन्न प्रजातियाँ होती हैं। पृथ्वी और महाद्वीपीय परतें, जिन पर मानव जाति रहती है, स्थानांतरित हो रही हैं और परिवर्तित हो रही हैं। भूविज्ञानी एशिया, यूरोप, अमेरिका, दक्षिण और उत्तरी अमेरिका महाद्वीपों को महाद्वीपीय परत मानते हैं। ये महाद्वीपीय परतें अक्सर स्थानांतरित होती रहती हैं और उन पर उपस्थित सभ्यताएँ फिर सागर में डूब जाती हैं। तब शायद एक भिन्न महासागर में एक महाद्वीप सतह पर आ जाता है; चीजें निरंतर इस प्रकार से स्थानांतरित होती रहती हैं। लोगों ने अब खोज की है कि प्रशांत, अटलांटिक, भारतीय और कई अन्य महासागरों के तल पर प्राचीन, विशाल संरचनाएं हैं और वे सभ्यताओं के निवास रहे हैं। फिर भी यह पाया गया कि ये संरचनाएँ सैकड़ों-हज़ारों वर्ष पुरानी हैं, लाखों वर्ष पुरानी हैं, या उससे भी पुराने युगों की हैं। कम से कम, आज की मानव जाति इतना तो जानती है कि महाद्वीपीय परतें पिछले कुछ लाख वर्षों से स्थानांतरित नहीं हुई हैं। फिर ये संरचनाएँ सागर में कब डूब गयी थीं? वे निश्चित रूप से बहुत समय पहले, सैकड़ों हजारों वर्ष पहले या उससे भी पहले डूब गयी थीं। इसलिए जब भिन्न-भिन्न महाद्वीपीय परतें स्थानांतरित होती हैं, तो उन पर प्रजातियां भिन्न-भिन्न होंगी, लेकिन वे विकासक्रम के माध्यम से भिन्न नहीं होती हैं। उनके बीच समानताएं हैं, लेकिन वे एक ही प्रजाति नहीं हैं। कदापि नहीं!
निश्चित ही, मैं दिव्य मार्ग सिखा रहा हूं, इसलिए [जो मैं सिखाता हूं] वह सांसारिक सिद्धांतों से भिन्न होगा, क्योंकि हम चीजों को उच्च स्तर से समझते हैं और वास्तव में मानव जाति को समझते हैं। मैं आप सभी को बता रहा हूं कि मनुष्य का विकास वानरों से नहीं हुआ; वे ब्रह्मांड के द्वारा ही बनाए गए थे। आप सभी जानते हैं कि चीन में ताई ची का दाओवादी सिद्धांत है। यह ताई ची सिद्धांत यिन और यांग की दो शक्तिओं (ची) के विषय में बात करता है। यिन और यांग के निर्माण से पहले, चीजें अराजकता की स्थिति में थीं। वे इसे शून्यता की अवस्था (वूजी) कहते हैं। उसमें से सर्वोच्च परम (ताईजी) का उदय हुआ। यिन और यांग की दो शक्तियां प्रकट हुईं, और फिर सर्वोच्च परम ने सभी चीजों का निर्माण किया। यह दाओवादी मार्ग का सिद्धांत है। मुझे लगता है कि यह वैज्ञानिक रूप से भी उचित है। मैंने वास्तव में एक स्थिति देखी है—निश्चित रूप से, मैं अकेला नहीं हूं जिसने इसे देखा है—कि ब्रह्मांड में पदार्थ के विशाल पिंडों की गति से जीवन उत्पन्न हो सकता है। हम इस पदार्थ को देख नहीं सकते, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसका अस्तित्व ही नहीं है। उदाहरण के लिए, मानव नेत्र वायु को नहीं देख सकते, लेकिन क्या इसका अस्तित्व नहीं है? यह अस्तित्व में है। क्या वायु से भी अधिक सूक्ष्म कोई पदार्थ है? हाँ, बहुत सारे है। बहुत सारे पदार्थ ऐसे भी हैं जो उस सूक्ष्म पदार्थ से भी अधिक सूक्ष्म हैं। पदार्थ के ये विशाल पिंड इस प्रकार क्यों अस्तित्व में रह सकते हैं? वे वास्तव में जीव हैं। प्रत्येक वस्तु में जीवन है; यह केवल इतना है कि [इसका जीवन] हमारे सांसारिक आयाम में प्रकट नहीं होता है, इसलिए आप इसके जीवन के अस्तित्व को नहीं देख सकते हैं। एक क्षण में मैं समझाऊंगा कि ऐसा क्यों है। प्रत्येक वस्तु में जीवन होता है। पदार्थ के इन विशाल पिंडों ने अपनी गति के माध्यम से जीवन का निर्माण किया, और अस्तित्व के अधिक ऊंचे स्तरों पर, ये जीवन अधिकतर निराकार होते हैं; उनमें से कुछ मनुष्य, पशु, वस्तु या पौधों का रूप धारण कर लेते हैं।
फिर चीजें मनुष्यों के [अस्तित्व के] स्तर तक क्यों पहुंच गईं? शुरुआत में बात उस बिंदु तक नहीं पहुंची थी। ब्रह्मांड में पदार्थ की गति से निर्मित प्राणी ब्रह्मांड के मूल गुणों के अनुरूप होते हैं, अर्थात ब्रह्मांड के मार्ग के सिद्धांतों के अनुसार, जेन, शान, रेन, क्योंकि वे जेन, शान, रेन से बनाए गए थे। एक बार जब बड़ी संख्या में प्राणी विशाल क्षेत्रों के आयामों में निर्मित हो गए, तो उनके जीने का वातावरण जटिल हो गया और उन्होंने समाजों का निर्माण किया। यह बिल्कुल हमारे मानव समाज की तरह था, जहां लोग इस आधार पर सामाजिक संरचनाएं बनाते हैं कि उन्हें कैसे रहना है। एक बार जब [इन विशाल क्षेत्रों के प्राणियों ने] सामाजिक संरचनाएं स्थापित कर लीं, तो वे धीरे-धीरे परिवर्तित होने लगीं और जटिल हो गईं। कुछ लोगों के विचार स्वार्थी हो गए और उन आवश्यकताओं से भटकना शुरू कर दिया जो अस्तित्व के उस स्तर पर जीवन के लिए ब्रह्मांड के मूल गुणों की थीं। तब वे उस स्तर पर नहीं रह सकते थे, और इस प्रकार उनके पास निचले स्तर पर गिरने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। फिर जब उस निचले स्तर पर भी वे और भ्रष्ट हो गए, तो उनके पास फिर से नीचे गिरने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। इतिहास की एक अत्यंत लंबी अवधि में, ये जीव धीरे-धीरे इस प्रकार भ्रष्ट होते गए; वे धीरे-धीरे एक आयाम से दूसरे आयाम तक गिरते गए, जब तक कि वे मानवीय आयाम तक नहीं गिर गए। उस समय से ही उनके पास अस्तित्व का एक निम्न स्वरूप है और उन्होंने प्रजनन के लिए निम्न साधनों का उपयोग किया।
लेकिन यह मानवीय आयाम मूल रूप से अस्तित्व में नहीं था। ज्ञानप्राप्त प्राणी और उच्च जीव मनुष्यों के लिए एक आयाम बनाना चाहते थे, भ्रम से भरा एक आयाम, यह देखने के लिए कि क्या लोग अपने मूल प्रकृति के उस शेष भाग को पकड़े रह सकते हैं या नहीं, और क्या लोग जहां से वे आए थे वहां वापस लौटने में सक्षम होंगे या नहीं। उन्होंने इन विचारों को ध्यान में रखते हुए इस आयाम का निर्माण किया। उस समय, [इस आयाम का निर्माण] मनुष्यों को—जीवों को—एक अंतिम अवसर देना था, और [उच्च प्राणियों, जिन्होंने इसे बनाया] ने इतने सारे मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन बाद में उन्हें पता चला कि यह आयाम बिल्कुल अनोखा था: इस आयाम में जीव अन्य आयामों या अन्य आयामों में जीवन को नहीं देख सकते हैं, लेकिन ब्रह्मांड में अन्य सभी आयामों में रहने वाले जीव अन्य आयामों के दृश्य देख सकते हैं। किसी भी अन्य आयाम के जीव हवा में उड़ और तैर सकते हैं, और अन्य सभी आयामों के जीव अपने शरीर को बड़ा या छोटा बना सकते हैं। आज के वैज्ञानिक सोचते हैं कि मनुष्य के विचार विद्युत तरंगों की तरह ही एक पदार्थ हैं। निःसंदेह, आप स्वीकार करेंगे कि विद्युत तरंगें भी पदार्थ हैं। लेकिन अन्य आयामों में आप पाएंगे कि स्थिति इतनी सरल नहीं है। मानव विचार उन चीजों का [भौतिक अभिव्यक्ति से] उत्पादन कर सकते हैं जो एक व्यक्ति अपने मन में कल्पना करता है, इसलिए वह जो सोचता है वह वास्तविकता बन सकती है। क्योंकि मनुष्यों के पास शक्ति नहीं है, उनके विचार जो [भौतिक अभिव्यक्तियाँ] उत्पन्न करते हैं वे शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। लेकिन जिन चीजों के बारे में महान ज्ञानप्राप्त प्राणी, दिव्य प्राणी और उच्च जीव सोचते हैं वे ठोस रूप से अस्तित्व में रहेंगी। कहने का तात्पर्य यह है कि जो चीजें [एक दिव्य प्राणी] चाहता है, वह वैसे ही उत्पन्न होंगी जैसे वह चाहता है। इस प्रकार, अतीत में लोग कहते थे, "बुद्ध जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं, और पूर्ण रूप से निश्चिंत और शांत होते हैं।" वे प्राणी इसी प्रकार जीते हैं। लेकिन मनुष्य, जिसे इस आयाम में जबरन भेजा गया है, इस [सांसारिक] तरीके से रहने लगा है।
हर कोई अपनी माँ के गर्भ से इस संसार में आता है और अपने बारे में बहुत अच्छा अनुभव करता है। कुछ सफल व्यवसायी हैं; कुछ उच्च पदस्थ अधिकारी हैं; कुछ लोग स्वच्छन्द जीवन जीते हैं, और वे सभी स्वयं को दूसरों से बेहतर मानते हैं। वास्तव में, उन्हें भी बहुत कष्ट होता है! [उन्हें लगता है कि वे बहुत सुखी हैं] क्योंकि वे नहीं जानते कि वे पहले कैसे जीते थे। उदाहरण के लिए, कुछ धर्म कहते हैं, "मानव जीवन कष्टों से भरा है।" ऐसा क्यों है? जब आप अपनी माँ के गर्भ से जन्म लेते हैं, तो आपके पास एक भौतिक शरीर होता है जो अणुओं से बना होता है। अन्य आयामों वालों का शरीर अणुओं से नहीं बना होता है, क्योंकि उनका सतही शरीर अधिकांश तौर पर परमाणुओं से बना होता है। लेकिन अणुओं से बना सतही पदार्थ ही इस आयाम का निर्माण करता है, जिसमें मानव शरीर भी सम्मिलित है। आपने इस प्रकार के भौतिक शरीर के साथ जन्म लिया हैं, और आपको अणुओं से बने दो नेत्र दिए गए हैं जो अन्य आयामों को नहीं देख सकते हैं। इस प्रकार, आप भ्रम के संसार में रहते हैं। इस प्रकार, भ्रम के इस संसार में रहते हुए आप ब्रह्मांड की सच्चाई को नहीं देख सकते हैं। क्या आप यह नहीं कहेंगे कि आपका जीवन उस व्यक्ति के समान है जो कुएं के तल में बैठकर पूरा आकाश देखने का प्रयत्न कर रहा है? केवल यही तथ्य आपके जीवन को दयनीय बना देता है। इसके अतिरिक्त, इस शरीर के साथ, आपको कष्ट सहन करने में कठिनाई होगी, और आप बहुत अधिक ठंड, गर्मी, प्यास, या चलने से होने वाली थकान को सहन नहीं कर पाएंगे—किसी न किसी तरह, ऐसी कई चीजें होंगी जो आपके लिए समस्याएं और पीड़ा ले आएंगी। आपको जन्म लेने, उम्र बढ़ने, रोगी होने और मरने के चक्र से भी निपटना होगा और आपको अक्सर रोग होते रहेंगे। आप सोच सकते हैं कि आप बहुत स्वच्छन्द जीवन जीते हैं, लेकिन वास्तव में यह केवल इतना है कि जब आप पीड़ित होते हैं, आप दूसरों की तुलना में थोड़ा बेहतर होते हैं, और उनसे थोड़ा कम पीड़ित होते हैं, इसलिए आपको ऐसा लगता है कि आपका जीवन बहुत स्वच्छन्द है। मनुष्य इसी प्रकार जीते हैं, इसलिए इस वातावरण में रहते हुए लोग धीरे-धीरे अपनी मूल प्रकृति गंवा देते हैं और देवताओं पर कम से कम विश्वास करते हैं। और अनुभवजन्य विज्ञान की त्रुटिपूर्ण प्रकृति के [प्रभाव] के कारण, लोगों ने अपने नैतिक आदर्शों को गंवा दिया है और सबसे भयानक स्थिति में गिर गए हैं।
लेकिन मानवीय संसार के पास एक बड़ा लाभ है: क्योंकि यह पीड़ा से भरा है, यह किसी व्यक्ति को आध्यात्मिक प्रगति करने में सक्षम बना सकता है। बुद्ध हमेशा बुद्धत्व के एक ही स्तर पर क्यों रहते हैं? वे और भी ऊपर क्यों नहीं उठ सकते? बोधिसत्व साधना के माध्यम से बुद्ध बनने में असमर्थ क्यों हैं? यदि [वे] थोड़ा कष्ट उठाना भी चाहें, तो भी उन्हें कष्ट कहीं नहीं मिलेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि आध्यात्मिक प्रगति करने का एकमात्र मार्ग भ्रम के संसार में रहते हुए अपने दिव्य प्रकृति को दृढ़ करना है। [ऊपर, बुद्धों के लोक में] कोई भ्रम नहीं होता है और वे सब कुछ देख सकते हैं। यदि आप सब कुछ देख सकते हैं, तो आपके आध्यात्मिक सुधार का कोई अर्थ नहीं है। इस प्रकार, आध्यात्मिक सुधार और ज्ञानोदय को प्राथमिकता है; [अन्य आयामों] को देखने में सक्षम होना गौण है। कुछ लोग कहते हैं, "यदि मैं [अन्य आयाम] देख पाउँगा तो ही मैं साधना करूँगा, लेकिन यदि मैं उन्हें नहीं देख सकता तो मैं नहीं करूँगा।" यदि हर कोई [अन्य आयाम] देखने में सक्षम होता, तो साधारण समाज अब मानव समाज नहीं रह जाता; यह देवताओं का समाज हो जाता। शत प्रतिशत लोग—प्रत्येक व्यक्ति—साधना करेंगे, जिनमें वे लोग भी सम्मिलित होंगे जिन्होंने सभी प्रकार के घोर अपराध किए हैं और जो भयानक लोग हैं। इसके बारे में सोचें: क्या वह अब भी एक मानव समाज होगा? मनुष्य इस वातावरण में इसलिए गिरे क्योंकि वे बुरे हो गए। यदि आप वहां वापस जाना चाहते हैं जहां से आप गिरे थे, तो आपको दो चीजों की आवश्यकता है: एक है कष्ट, और दूसरी है ज्ञानप्राप्त करना। ज्ञानप्राप्त करने की बात करते हुए, यीशु ने "आस्था" शब्द का उपयोग किया, जबकि पूर्व में वे "ज्ञानप्राप्त करना" शब्द का उपयोग करते हैं। यदि आप इन चीजों को गंवा देते हैं तो आप आध्यात्मिक रूप से सुधार नहीं कर सकते। लेकिन लोगों को अक्सर ऐसा क्यों लगता है कि आध्यात्मिक प्रगति करना कठिन है? वास्तव में, आध्यात्मिक प्रगति करना अपने आप में कठिन नहीं है; कठिनाई तब होती है जब आप सांसारिक भावनाओं को नहीं छोड़ पाते। पूरे इतिहास में, लोगों को कभी नहीं बताया गया कि दिव्य मार्ग क्या है। बुद्ध शाक्यमुनि ने जो सिखाया उसे लोग व्यवस्थित दिव्य मार्ग के रूप में लेते हैं। ध्यान में रहे कि यह विशाल ब्रह्मांड काफी संपूर्ण है और ज्ञान से भरपूर है। बुद्ध शाक्यमुनि ने बुद्ध सिद्धांतों का केवल एक छोटा सा भाग ही सिखाया था, और उन्होंने लोगों को वह सब कुछ नहीं बताया जो वे जानते थे। उन्होंने लोगों को केवल वही बताया जो उन्हें उस समय जानना चाहिए था। इस प्रकार, दिव्य मार्ग का केवल एक छोटा सा भाग ही आज के समाज तक पारित किया गया है। मैंने उल्लेख किया है कि मैंने समाज को कई भिन्न-भिन्न चीजें पारित की हैं और कुछ ऐसा किया है जो पहले कभी किसी ने नहीं किया है। मैंने जो पुस्तक लिखी, ज़ुआन फालुन, उसमें प्रमाणित भाषा का उपयोग नहीं किया है क्योंकि आज की प्रमाणित भाषा उच्च और गहरे अर्थों को सम्मिलित नहीं कर सकती है। इस प्रकार, मैंने इसे प्रचलित शैली में लिखा।
मैं बहुत कुछ बता चूका हूँ। क्योंकि आज समय उपलब्ध लग रहा है, मैं अपने व्याख्यान की अवधि बढ़ाना चाहता था। लेकिन यहां कुछ लोग ऐसे भी हैं जो शायद मेरी बात को स्वीकार नहीं कर पाएंगे यदि मैं उन चीजों के बारे में बात करूं जो बहुत उच्च हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों ने अभी तक [शिक्षाओं] का बिल्कुल भी अध्ययन नहीं किया है; उन्हें अभ्यास के बारे में अच्छी अनुभूति है और इसलिए वे आकर सुनना चाहते हैं; अन्य लोग कुछ प्राप्त करने या मुझे किसी प्रकार का प्रदर्शन करते देखने के लिए यहां आये हो सकते हैं। यहां विभिन्न प्रकार के भिन्न-भिन्न इरादों वाले लोग हैं। यदि मैं आज यहां प्रदर्शन करूं, तो यह आपके लिए बहुत मनोरंजक हो सकता है, जैसे कि आप कोई जादू का तमाशा देख रहे हों, लेकिन आप मुझे या शिक्षाओं को गंभीरता से नहीं लेंगे। उस प्रकार से दिव्य मार्ग का प्रसार करना निषिद्ध है। यहां मेरा एकमात्र उद्देश्य आपको दिव्य मार्ग समझाना है, और आप इस पर विश्वास करते हैं या नहीं यह आप पर निर्भर करता है। फिर भी इसकी शक्ति महान है, क्योंकि मैंने अपनी शिक्षाओं में वे चीजें सम्मिलित की हैं जो मैं लोगों को देना चाहता हूँ और जो उन्हें आध्यात्मिक प्रगति करने में सक्षम बनाएंगी। जब तक आप मेरे वीडियोटेप, ऑडियोटेप और मेरे द्वारा लिखी गई पुस्तक पढ़ते हैं [या सुनते हैं], आपको [इन बातों का] एहसास होगा; जब तक आप [पुस्तक] पढ़ेंगे, आपका शरीर शुद्ध किया जाएगा और आप रोग से मुक्त हो जायेंगे; जब तक आप आध्यात्मिक प्रगति करते हैं, आप उन चीजों को देख पाएंगे जिन्हें अभ्यास न करने वाले देखने में असमर्थ हैं; जब तक आप आध्यात्मिक प्रगति करते हैं, आप उन चीजों का अनुभव और ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे जिनका ज्ञान अभ्यास न करने वाले नहीं कर पाते हैं। जैसे-जैसे आप उच्चतर आध्यात्मिक क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं, चीजें अधिक से अधिक अद्भुत होती जाएंगी, और यह सब [किस प्रकार होता है] पुस्तक में निहित है। लेकिन यदि आप आध्यात्मिक प्रगति नहीं करते हैं तो आप इन चीजों को नहीं देख पाएंगे। हो सकता है कि आप पुस्तक को एक बार पढ़ने के बाद चीजों को देखने में सक्षम होना चाहें, लेकिन यह असंभव है! आप केवल उन्हीं चीजों को देख पाएंगे जो आपके आध्यात्मिक स्तर और आपकी समझ की सीमा के अनुरूप हैं। जब तक आप साधना में आगे बढ़ते हैं, और जब तक आप स्वयं को पूरी तरह से अध्ययन, आध्यात्मिक सुधार करने और पढ़ने में व्यस्त रखते हैं, तब तक आप और अधिक अद्भुत चीजों को अनुभव करेंगे, देखेंगे और जानेंगे।
यदि मैं उन चीजों पर चर्चा करूं जो बहुत उच्च हैं, तो बहुत से लोगों को इसे समझने में कठिनाई होगी। यह जानते हुए, मैंने पिछले दो वर्षों से शिक्षाओं की व्यवस्थित व्याख्या नहीं की है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने उन शिक्षाओं को पूरी तरह से प्रस्तुत कर दिया है जो मैं मानव जाति के लिए पारित करना चाहता हूं। मैं लोगों को अपने व्याख्यान रिकॉर्ड करने की भी अनुमति नहीं देता। क्यों? बहुत से लोग नवीनता चाहते हैं। वे यह जानने पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि गुरूजी ने क्या नई बातें कही होंगी और ठोस आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर पाते हैं। झुआन फालुन वह है जो मैंने लोगों को साधना के लिए दिया है, क्योंकि यह व्यवस्थित शिक्षा है। अन्य बातें जो मैंने कही हैं वे केवल ज़ुआन फालुन की व्याख्या कर रही हैं और इसकी पूरक हैं। एक व्यक्ति जो रिकॉर्डिंग करता है और उसे समाज में प्रसारित करता है, वह उन लोगों के साथ हस्तक्षेप कर रहा होता है जो साधना के प्रति गंभीर हैं। ज़ुआन फालुन मूल से लेकर उच्चता तक व्यवस्थित रूप से [सबकुछ सम्मिलित करता है], जबकि मैं अब जो सिखा रहा हूं वह केवल आज उपस्थित लोगों के लिए निर्देशित है।
मैं एक और मुद्दे पर भी जोर देना चाहता हूं: हम साधक एक आध्यात्मिक मार्ग पर टिके रहने पर जोर देते हैं। आपको पता होना चाहिए कि "भिन्न-भिन्न मार्गों से मुख्य बातें चुनना" वाक्य एक सांसारिक कहावत है, किसी साधक के शब्द नहीं है। किसी कौशल को सीखते समय, उस कौशल में प्रवीण व्यक्ति से सीखने में कोई समस्या नहीं है। लेकिन उच्च स्तरीय आयाम के सिद्धांत मानव जाति के सिद्धांतों के विपरीत हैं। मानवजाति जिन चीजों को अच्छा समझती है वे बुरी भी हो सकती हैं, क्योंकि सब कुछ उलट जाता है। आप पाते हैं कि यहाँ दिन है, परन्तु वहाँ रात है; जो आप उचित समझते हैं वह अनुचित हो सकता है। ऐसा क्यों है? मैं आप सभी को एक सरल सिद्धांत समझाऊंगा। आप सभी जानते हैं कि जब लोगों को पीड़ा होती है, तो वे सोचते हैं कि यह बुरा है, या यदि कोई आपको धमकाता है, तो आप असहज अनुभव करते हैं और सोचते हैं कि स्थिति आपके लिए बुरी है। आपको पता होना चाहिए कि जब लोग थोड़ा कष्ट अनुभव करते हैं और थोड़ी कठिनाई का सामना करते हैं, तो यह अच्छी बात है! अब आप देख सकते हैं कि जो मैं आपको सिखाता हूं वह [आपने जो पहले सीखा है उससे] कुछ भिन्न है। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि उच्च-स्तरीय आयामों तक पहुँचने के बाद ये सिद्धांत पूरी तरह से उलट जाते हैं। वहाँ वे यह नहीं सोचते कि मनुष्य के रूप में जीना ही मानव अस्तित्व का उद्देश्य है। यदि आप मानव संसार में थोड़ी सी कठिनाई सहते हैं और पिछले जन्म के कर्म ऋणों को चुकाते हैं, तो आप उच्च-स्तरीय आयाम में लौट सकते हैं, और आप उस स्थान पर भी लौट सकते हैं जहां आपका जीवन निर्मित किया गया था, जो सबसे अद्भुत स्थान है। और यदि आप उन्नति करने में असमर्थ भी रहे, तो भी आपके अगले जीवन में कम कष्ट होंगे क्योंकि आपके कर्म कम हो चुके थे।
लेकिन यदि आप अपने कर्मों का भुगतान नहीं करते हैं, तो आप उच्च-स्तरीय दिव्यलोक में जाने में असमर्थ होंगे। यह बिल्कुल उस सिद्धांत की तरह है जिसका मैंने वर्णन किया है: यदि एक बोतल गंदी चीजों से भरी हुई है, तो चाहे आप बोतल को कितनी भी कसकर बंद कर दें, जब आप इसे पानी में फेंकेंगे, तो यह तुरंत नीचे डूब जाएगी। यदि आप थोड़ी-सी गन्दी चीजें बाहर फेंक देंगे, तो वह थोड़ी-सी ऊपर तैरने लगेगी; थोड़ा और उंडेल दो और यह थोड़ा और ऊपर तैरने लगेगी; और अधिक उंडेलने पर, जब इसे बंद करने के बाद आप इसे फिर से पानी में फेंकने का प्रयास करते हैं, भले ही आप इसे नीचे धकेलें, आप इसे डुबा नहीं पाएंगे, क्योंकि यह अपने आप ऊपर तैरने लगेगी। यह उसी प्रकार की स्थिति होती है जब आप आध्यात्मिक रूप से स्वयं का सुधार करते हैं। आपका शरीर जितने जन्मों से गुजरा है, हर जन्म में आपने दूसरों का लाभ उठाया होगा, उन्हें धोखा दिया होगा, उन्हें हानि पहुंचायी होगी या उनका वध किया होगा, या शायद इससे भी बदतर काम किए होंगे। इसलिए, आपको इन कार्यों के कारण अपने कर्मों का भुगतान करना होगा। इस ब्रह्मांड का एक सिद्धांत है: आप कुछ खोए बिना कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे, और यदि आप कुछ प्राप्त करते हैं, तो आपको कुछ खोना भी होगा। आपको उन चीजों का भुगतान अवश्य करना चाहिए जिनका आप पर ऋण है, यदि इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में—निश्चित रूप से चीजें इसी प्रकार काम करती हैं। इसलिए, आजकल जब लोग कष्टदायक स्थितियों का अनुभव करते हैं, तो वे सोचते हैं कि यह एक संयोग है और यह दूसरों द्वारा उनके साथ अन्याय करने और बुरा व्यवहार करने के कारण हुआ है। आपको पता होना चाहिए कि इनमें से कोई भी स्थिति संयोगवश नहीं होती है और ये सभी आपके अतीत के कर्मों के कारण हैं। यदि आपके कोई कर्म नहीं है, तो सड़क पर चलते समय हर कोई आपको देखकर मुस्कुराएगा, और जिन लोगों को आप जानते भी नहीं हैं, वे आपकी सहायता करने के लिए आगे आएंगे। आप पूरी तरह से चिंता मुक्त होंगे! लेकिन इस प्रकार का व्यक्ति मानवीय आयाम में बिल्कुल नहीं रह सकता, क्योंकि उसे दिव्यलोक लौट जाना चाहिए। लोग ऐसे ही होते हैं: क्योंकि उनके कर्म होते हैं, यदि वे अपने मन को शुद्ध नहीं कर सकते, तो वे कभी भी साधना में प्रगति नहीं कर पाएंगे। यह बिल्कुल उस सिद्धांत की तरह है जिसका मैंने अभी उल्लेख किया है।
वास्तव में, लोगों के लिए थोड़ा कष्ट सहना और थोड़ी कठिनाई का सामना करना बुरा नहीं है। यदि आप थोड़ी सी कठिनाई का सामना करते हैं, तो आप अपने कर्म का भुगतान करेंगे, और आप वास्तव में एक अद्भुत स्थान पर जा सकते हैं जहां आपको फिर कभी कष्ट नहीं सहना पड़ेगा। भले ही आप सोचते हैं कि आप मानव संसार में कितने भी प्रसन्न हों, आपके पास कितने अरब रुपये हैं, या आप कितने ऊंचे अधिकारी बन गए हैं, यह शीघ्र ही बीत जाएगा, केवल कुछ दशकों तक रहेगा। इसके बारे में सोचें: आप इस संसार में कुछ भी नहीं लेकर आए थे, और आप इस संसार से कुछ भी नहीं लेकर जाएंगे। आप अपने साथ क्या ले जा सकते हैं? कुछ नहीं। आप [अपनी संपत्ति] किसे दे सकते हैं? आप सोचते हैं कि आपने उन्हें अपने वंशजों को दे दिया है, लेकिन जब आप अगले जन्म में पुनर्जन्म लेंगे, तो वे आपको नहीं पहचानेंगे, और यहां तक कि यदि आप जाकर उनका फर्श साफ करते हैं, तो भी आपको कोई दया की दृष्टि या उनसे कोई पुरस्कार नहीं मिलेगा। वास्तव में ऐसा ही है! यहां लोग केवल भ्रम में खोये हुए हैं।
हम यहां मानव जीवन के आवश्यक सिद्धांतों के बारे में बात कर रहे हैं। [यह सिद्धांत] विशेष रूप से साधकों पर लागू होते हैं। ध्यान रखें कि जब आप पीड़ित होते हैं, जब दूसरे आपका लाभ उठाते हैं, आपके लिए कठिनाई पैदा करते हैं, या जब आप कुछ भौतिक हितों को गंवा देते हैं, जैसे कि मैं समझता हूं, आवश्यक नहीं कि यह बुरी चीज हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस ब्रह्मांड में एक सिद्धांत है कि जो लोग खोते नहीं हैं वे पाते नहीं हैं, और यदि आप पाना चाहते हैं, तो आपको खोना ही होगा। यह भी सत्य है कि यदि आप लाभ प्राप्त करते हैं और नहीं खोते हैं, तो आपको खोने के लिए विवश किया जायेगा—यही ब्रह्मांड की प्रकृति है। विशाल ब्रह्मांड के सभी पदार्थ जीवित हैं, और सभी पदार्थ जेन, शान, रेन से बने हैं। इस प्रकार, सभी पदार्थ—जिनमें पत्थर, लोहा और स्टील, वायु, मानव जाति द्वारा निर्मित कोई भी उत्पाद और अन्य पदार्थ सम्मिलित हैं—अपने सूक्ष्म स्तर पर, जेन, शान, रेन के निश्चित गुणों से बने पदार्थ हैं। जेन, शान, रेन इस विशाल ब्रह्मांड में सब कुछ निर्मित करते हैं, और वे ब्रह्मांड में हर चीज को संतुलित करते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को मारता है, अपशब्द बोलता है, लाभ उठाता है या उसे पीड़ा पहुंचाता है, तो उसे प्रसन्नता अनुभव होती है, क्योंकि उसको लाभ प्राप्त हुआ है। जो अभ्यासी नहीं है वे उससे कह सकते हैं, "वाह, आप सचमुच प्रभावशाली हैं!" [इस व्यक्ति को] कोई हानि नहीं हुई। लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें बहुत बड़ी हानि हुई है। क्यों? जब वह बुरे काम करता है, तो वह लाभ पाने वाला पक्ष बन जाता है। जब वह दूसरों का लाभ उठाता है, तो इसका अर्थ है कि उसने लाभ प्राप्त किया है, और इस प्रकार उसे हानि अवश्य होगी। क्योंकि दूसरे पक्ष को हानि उठानी पड़ी और उसकी स्थिति बदतर हो गई है, तो अब उस पक्ष को कुछ मिलना चाहिए। उसे कुछ कैसे प्राप्त होगा? जब आप उस पर प्रहार करते हैं या उसे कोसते हैं, तो यह आपके शब्दों की या आपके प्रहार की शक्ति पर निर्भर करता है, आपके शरीर को घेरे हुए सद्गुण नामक सफेद पदार्थ का उतना टुकड़ा आपको छोड़कर उसके पास चला जाएगा। लेकिन वह भी मनुष्य है और शायद वह इस सिद्धांत को नहीं समझता है। "आपने मुझे मारा," वह व्याकुल होते हुए कहता है। जब वह व्याकुल हो जाता है, तो वह मूलतः सद्गुणों को पीछे धकेल रहा होता है। जब वह पलटकर वार करता है और कोसता है, तो वह सद्गुण को वापस लौटा रहा होता है। अब, न तो किसी व्यक्ति ने खोया और न ही पाया; किसी को भी कुछ प्राप्त नहीं हुआ। ब्रह्मांड के मार्ग के सिद्धांत निष्पक्ष हैं।
यदि, एक साधक के रूप में, वह स्थिति को हल्के में ले सकता है और कह सकता है: "भले ही आप मुझे मारें या कोसें, मेरा मन स्थिर रहेगा और मैं इस पर कोई ध्यान नहीं दूंगा, क्योंकि मैं एक साधक हूं। आप साधक नहीं हैं और मैं चीजों को आपकी तरह नहीं देख सकता।" तो फिर एक प्रश्न पर विचार करें: क्या इस व्यक्ति का नैतिक स्तर एक औसत व्यक्ति से ऊपर नहीं उठ गया है? जब कोई दूसरा व्यक्ति उस पर प्रहार करता है तो क्या उस कृत्य से उसे सद्गुण नहीं मिलेगा? और यह सद्गुण पदार्थ उच्च शक्ति में विकसित हो सकता है। आपकी उच्च शक्ति ब्रह्मांड से एकत्रित कुछ पदार्थों के साथ-साथ सद्गुणों द्वारा विकसित होनी चाहिए। सद्गुण के बिना, आप अपनी साधना में उच्च शक्ति उत्पन्न करने में असमर्थ होंगे। इसलिए जब कोई दूसरा व्यक्ति आप पर प्रहार करता है, तो वह आपको अपना सद्गुण देता है, आप अपना सद्गुण बढ़ाते हैं, और आप साधना के एक और चरण में आगे बढ़ सकते हैं—क्या यह सिद्धांत इसी प्रकार काम नहीं करता है? आपको मिलने वाला भुगतान उस कष्ट से कहीं अधिक है जो एक साधारण व्यक्ति ने आपको पहुँचाया है, है ना? फिर जब वह आप पर प्रहार करता है, आपको कोसता है, या आपके लिए कोई कठनाई उत्पन्न करता है, तो आपको इसके कारण कष्ट होता है। जब आप पीड़ित होते हैं, तो आपके शरीर पर एक काला पदार्थ जिसे कर्म कहा जाता है, जो आपके पिछले जन्मों का ऋण है, सद्गुण के जितने आकार के भाग में परिवर्तित हो जाएगा, और दूसरे पक्ष को भी आपको सद्गुण का एक भाग देना होगा [जो आपके कष्ट की मात्रा के अनुरूप हो]। ध्यान दें कि जो साधक नहीं है उसको भी एक ही बार में दो चीजें मिल रही होंगी—"आपने मुझे थोड़ा कष्ट दिया, लेकिन मुझे दो प्रकार के भुगतान मिले।"
लेकिन एक साधक को चार प्रकार से भुगतान प्राप्त होंगे। जब आपने यह सब सहा है, तो आप उसके स्तर तक नहीं गिरे, आपका मन शांत था, इसलिए जब आपको पीटा गया तो आपने बदले में वार नहीं किया या जब आपको कोसा गया तो आपने उत्तर नहीं दिया। इसके बारे में सोचें: जब आपका मन शांत रहा, तो क्या साधना से आपके नैतिकगुण में सुधार नहीं हुआ? यदि उसने आपको कष्ट और पीड़ा नहीं पहुँचाई होती तो आप आध्यात्मिक प्रगति कैसे कर सकते थे? यह सोच कि आप बस वहां आराम से बैठे रहेंगे, चाय पीते रहेंगे और टेलीविजन देखते रहेंगे, और साधना के माध्यम से जितना चाहें उतना ऊँचा उठते रहेंगे, बिल्कुल निरर्थक है। आप केवल इस जटिल वातावरण में रहकर, और परीक्षाओं और कठिनाइयों का सामना करके ही अपने नैतिकगुण में सुधार कर सकते हैं और उच्च स्तर और आध्यात्मिक आयाम तक पहुँच सकते हैं। फिर, यदि आपका नैतिकगुण उसके स्तर तक नहीं गिरा, तो क्या उसमें सुधार नहीं हुआ? और क्या आपने एक ही बार में तीन चीजें प्राप्त नहीं कर लीं? तो फिर एक साधक के रूप में, क्या आप अपने आध्यात्मिक विकास को आगे बढ़ाना और शीघ्र ही फल पदवी प्राप्त नहीं करना चाहते? तो फिर यदि आपके नैतिकगुण में सुधार होगा तो क्या आपकी उच्च शक्ति का स्तर भी नहीं बढ़ेगा? निश्चित रूप से! एक सिद्धांत है जो बताता है, "किसी की उच्च शक्ति की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि उसका नैतिकगुण कितना अच्छा है।" यदि किसी व्यक्ति का नैतिकगुण नहीं सुधरता है, तो क्या वह अपनी उच्च शक्ति की मात्रा [बिना सुधारे] बढ़ा सकता है? यह बिल्कुल असंभव है! उस प्रकार की परिस्थिति नहीं हो सकती है और ऐसा कभी भी नहीं होगा। कुछ लोग सोचते हैं कि दूसरों का नैतिकगुण उनके जितना अच्छा नहीं है, तो उन दूसरों के पास उच्च शक्ति क्यों है? वे एक विषय में आपके जितने अच्छे नहीं हैं, लेकिन अन्य विषयों में वे शायद आपसे बेहतर हो सकते हैं। क्योंकि साधना एक के बाद एक मोहभाव को दूर करने की एक प्रक्रिया है, इन लोगों को जिन मोहभावों को हटाना शेष है, जब वे प्रकट होते हैं, तो वे साधक न होने की तरह व्यवहार कर सकते हैं, लेकिन एक बार उन मोहभावों को हटा दिए जाने के बाद वे निश्चित रूप से प्रकट नहीं होंगे। एक साधक के रूप में, जब आप कष्ट सहते हैं, तो आप एक ही बार में चार चीजें प्राप्त कर रहे होते हैं। उपहास में कहें तो—आपको इस तरह का सौदा कहां मिल सकता है?
कुछ लोग तब बहुत व्याकुल और क्रोधित हो जाते हैं जब कोई उन्हें मारता है या कोसता है। जब कोई उनका लाभ उठाता है या उनसे धन ऐंठता है, तो वे बहुत क्रोधित होते हैं! लोग इन [भौतिक] चीजों को अत्यधिक महत्व देते हैं और जो कुछ उनका है उसका थोड़ा सा भी दूसरों द्वारा छीने जाने को सहन नहीं कर पाते हैं। इसके बारे में सोचें: इस व्यक्ति का जीवन कितना दुखद है! जब उसे कुछ तुच्छ भौतिक वस्तुएँ मिलती हैं, तो वह उन तुच्छ भौतिक वस्तुओं के लिए मन से प्रसन्न होता है। आजकल लोग ऐसे ही हैं। उसे इस बात का अहसास नहीं है कि उसने वास्तव में क्या खोया है—यह खोना सबसे भयावह चीज है! सद्गुण इतना मूल्यवान क्यों है? आप जानते होंगे कि पूर्व के वृद्ध लोग कहते हैं, "केवल सद्गुणों से ही आशीर्वाद मिलेगा।" आशीर्वाद के विषय में कई पहलू सम्मिलित हैं: एक उच्च पदस्थ अधिकारी बनना, बड़ा भाग्य बनाना, घर और जमीन होना, संपन्न होना, इत्यादि। ये सभी चीजें सद्गुण के आदान-प्रदान से प्राप्त होती हैं। सद्गुण किसी व्यक्ति के [शाश्वत] अस्तित्व के साथ रहता है। जब किसी व्यक्ति का देहांत होता है, तो यह उसकी मूल आत्मा के साथ जाता है—जब आप पुनर्जन्म लेते हैं, तो यह आपके साथ रहता है। केवल सद्गुण ही नहीं—काला पदार्थ, कर्म, जिसका मैंने अभी उल्लेख किया है, वह भी जीवन भर आपके साथ रहता है। ये दोनों पदार्थ व्यक्ति के साथ रहते हैं। अतीत में, वृद्ध कहते थे, "जो अनुचित काम करेगा उसे प्रतिशोध का सामना करना पड़ेगा।" प्रतिशोध का प्रबंधन कौन करता है? ऐसा बही-खाता कौन रखता है? आपके इन मामलों से निपटने की झंझट कौन करेगा? फिर भी सद्गुण आपके शरीर पर है और उससे जोर से चिपका हुआ है, और आपका अगला जीवन उस पर निर्भर है। यदि आपके पास बहुत अधिक कर्म हैं, तो आपके जीवन में बहुत अधिक कष्ट, रोग और आपदाएँ होंगी; ढेर सारे सद्गुण के साथ, आपके जीवन में ढेर सारा धन, आशीर्वाद और उच्च पदवी वाली सरकारी नियुक्तियाँ होंगी। ये [वास्तविकताएं] इन [पदार्थों] द्वारा लाई जाती हैं। और एक अभ्यासी के लिए, सद्गुण और भी अधिक मूल्यवान है, क्योंकि यह उच्च शक्ति में परिवर्तित हो सकता है—यही बात है।
आधुनिक विज्ञान इस मुद्दे को नहीं देख सकता क्योंकि वह इस आयाम से बाहर नहीं निकल सकता। जिस आयाम में मानवजाति निवास करती है उसका स्वरूप क्या है? आपको पता होना चाहिए कि मानव जाति जिस आयाम में रहती है वह पदार्थ के दो प्रकार के कणों के बीच उपस्थित है। हममें से जिन लोगों ने भौतिकी का अध्ययन किया है, वे जानते हैं कि अणु, परमाणु, परमाणु नाभिक, क्वार्क और न्यूट्रिनो सभी कणों के स्तर हैं, और वे भौतिक तत्व हैं जो बड़े कण बनाते हैं। हम मनुष्य कणों के किस स्तर के बीच रहते हैं? सबसे बड़ी चीज जिसे हम मनुष्य नेत्रों से देख सकते हैं वह एक ग्रह है और सबसे छोटी चीज जिसे हम सूक्ष्मदर्शी से देख सकते हैं वह एक अणु है। वास्तव में, हम मनुष्य बिल्कुल ग्रहों और अणुओं के बीच के आयाम में रहते हैं। हम सोचते हैं कि यह व्यापक, विशाल और अतुलनीय रूप से बड़ा है। मैं कहूंगा कि आधुनिक विज्ञान उन्नत नहीं है; कोई भी अंतरिक्ष यान कितना भी ऊँचा क्यों न उड़े, वह हमारे भौतिक आयाम से आगे नहीं जा सकता; कंप्यूटर कितना भी उन्नत क्यों न हो, वह मानव मस्तिष्क की बराबरी नहीं कर सकता, क्योंकि मानव मस्तिष्क अभी भी एक रहस्य बना हुआ है। इस प्रकार, मानव विज्ञान बहुत उथला है।
यह कल्पना करने का प्रयास करें: मानव जाति ग्रहों और अणुओं के बीच में निवास करती है। क्योंकि अणु परमाणुओं से बने होते हैं, परमाणुओं और अणुओं के बीच का आयाम कैसा होता है? आधुनिक वैज्ञानिक परमाणुओं को केवल व्यक्तिगत इकाइयों के रूप में ही समझ पाए हैं और केवल उनकी व्यक्तिगत संरचनाओं को ही समझ पाए हैं। वास्तव में, वह स्थान जहां परमाणु बसते हैं वह स्वयं अस्तित्व का एक स्तर है, और इस स्तर द्वारा निर्मित भौतिक आयाम काफी विशाल है; बात बस इतनी है कि उन्होंने जो खोजा है वह एक बिंदु तक ही सीमित है। तो फिर इस स्तर का आयाम कितना बड़ा है? हम हमेशा दूरी मापने के लिए अपने मानकों को मानव जाति के आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य पर आधारित करते हैं। आपको अनुभवजन्य विज्ञान के ढांचे और अवधारणाओं से बाहर निकलने की आवश्यकता है। किसी आयाम में प्रवेश करने से पहले आपको उसके स्वरूप के अनुरूप होना होगा। परमाणुओं और अणुओं के बीच की दूरी के संबंध में, विज्ञान जानता है कि एक अणु की चौड़ाई नापने के लिए बीस लाख पंक्तिबद्ध परमाणुओं की आवश्यकता होती है। अर्थात, उन्होंने समझ लिया है कि दूरी काफी बड़ी है, इसलिए आप अनुभवजन्य विज्ञान के ढांचे और मानसिकता से चीजों को नहीं समझ सकते हैं। एक क्षण के लिए यह सोचें: क्या परमाणुओं और परमाणु नाभिकों के बीच का स्थान एक आयाम नहीं है? फिर, परमाणु नाभिक और क्वार्क के बीच के आयाम में दूरी कितनी बड़ी है? फिर, क्वार्क और न्यूट्रिनो के बीच की दूरी का क्या? निस्संदेह, आज का विज्ञान जिन सबसे छोटे कणों का पता लगा सकता है वे न्यूट्रिनो हैं। वे वास्तव में उन्हें देख नहीं सकते; वे उनका पता लगाने के लिए केवल वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं, और वे उनके अस्तित्व के स्वरूप को जानते हैं। वास्तव में, न्यूट्रिनो अभी भी सबसे मूल पदार्थ से बहुत परे है!
मैंने अभी जो वर्णन किया है वह आयामों के अस्तित्व का सबसे मूल रूप है। मानव आयाम के सभी पदार्थ, जिनमें वायु के वे पदार्थ भी सम्मिलित हैं जिन्हें आप नहीं देख सकते हैं और वे पदार्थ जिन्हें आप देख सकते हैं, जैसे लोहा, कंक्रीट, पशु, पौधे, अन्य पदार्थ और मानव शरीर, अणुओं से बने होते हैं। मनुष्य अणुओं के स्तर पर निवास करता है, मानो किसी त्रि-आयामी पेंटिंग में; आप इस स्तर पर रहते हैं और इसे छोड़ नहीं सकते। मानव विज्ञान इस छोटे से आयाम की चीजों तक ही सीमित है और इससे आगे नहीं बढ़ सकता। और फिर भी लोग कहते हैं कि विज्ञान इतना उन्नत है और अन्य सभी सिद्धांतों को अस्वीकार करते हैं। मानव प्रौद्योगिकी ब्रह्माण्ड की उच्चतर समझ तक नहीं पहुँच सकती। यदि यह वास्तव में इस आयाम से परे जा सकता है, तो यह अन्य आयामों में जीवन और पदार्थों के रूपों और उनके काल अवकाशों द्वारा बनाई गई संरचनाओं को देख पायेगा। फिर भी हम साधक इन चीजों को देखने में सक्षम हैं, क्योंकि बुद्ध सबसे उन्नत वैज्ञानिक होते हैं।
दिव्य नेत्र का वर्णन करते समय मैंने इस मुद्दे पर चर्चा की है। जब लोग चीजों को अपने सामान्य नेत्रों के स्थान पर दिव्य नेत्र से देखते हैं, तो वे एक मार्ग खोल रहे होते हैं जो या तो किसी व्यक्ति की भौंहों के बीच के स्थान से या किसी की नाक के आधार के स्थान से शुरू होता है (वह स्थान जिसे दाओवादी अभ्यासी पर्वत का आधार कहते हैं।) और वह सीधे पीनियल ग्रंथि से जुड़ता है। चिकित्सा ग्रंथों में पीनियल ग्रंथि शब्द का उपयोग किया जाता है, जबकि दाओवादी अभ्यासी निवान महल शब्द का उपयोग करते हैं। फिर भी चिकित्सा शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि पीनियल ग्रंथि के अग्र आधे भाग में मानव नेत्र की पूरी संरचना होती है। आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों को यह बहुत अजीब लगता है: "यहाँ नेत्र क्यों है?" उन्हें लगता है कि यह एक अवशेषी नेत्र है, क्योंकि वे अभी भी इन चीजों को समझाने के लिए विकासवाद के सिद्धांत का उपयोग करते हैं। वास्तव में, यह वैसा ही दिखता है, और यह बिल्कुल भी अवशेषी संरचना नहीं है। जब लोग अपने नेत्रों का उपयोग किए बिना चीजों को देखते हैं... निश्चित ही, जब कोई व्यक्ति साधना के माध्यम से अपने नेत्रों को परिष्कृत करता है, तो उसके नेत्र वस्तुओं के पार भी देख सकते हैं और इस तरह की अलौकिक क्षमता प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि दिव्य मार्ग असीमित है। साधारणतः, जब कोई व्यक्ति चीजों को देखने के लिए अपने नेत्रों, अर्थात अणुओं से बने इन नेत्रों का उपयोग नहीं करता है, तो वह इस आयाम से परे देख सकता है और अन्य आयामों के दृश्य देख सकता है। यह ऐसा ही है। इस प्रकार, साधक वह देख सकते हैं जो साधना न करने वाले देखने में असमर्थ हैं। निश्चित ही, अपने जीवन में विभिन्न बिंदुओं पर कुछ अभ्यास न करने वाले कभी-कभी कुछ घटनाओं की अस्पष्ट झलक देख सकते हैं जिनका अर्थ उनके लिए अस्पष्ट होता है, जैसे कि आपके सामने एक व्यक्ति को देखना जो अचानक अदृश्य हो जाता है, या किसी न किसी चीज को देखना या सुनना। यह संभव है कि जो चीजें आपने देखी या सुनीं और जिनके बारे में अनुमान लगाना कठिन था, वे वास्तव में अन्य आयामों की चीजें थीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे लोग जिनके दिव्य नेत्र या कान इतने कसकर बंद नहीं होते हैं, वे कभी-कभी अन्य आयामों की चीजें सुन या देख सकते हैं।
मैंने अभी उस आयाम पर चर्चा की जिसमें मनुष्य निवास करता है। वास्तव में, हम मनुष्य जिस ग्रह पर रहते हैं वह सबसे बड़ा कण या पदार्थ नहीं है। इस ग्रह से परे भी बड़े पदार्थ हैं! इस प्रकार, बुद्ध शाक्यमुनि के नेत्र अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर, काफी सूक्ष्म पदार्थ देख सकते थे; स्थूल दृष्टि से वह काफी बड़े और स्थूल पदार्थों को देख सकते थे। लेकिन बुद्ध शाक्यमुनि अभी भी यह नहीं देख सके कि अंत में ब्रह्मांड वास्तव में कितना बड़ा था, और इस प्रकार उन्होंने कहा, "यह इतना विशाल है कि इसका कोई बाह्य नहीं है और इतना छोटा है कि इसका कोई आंतरिक नहीं है।" यह ब्रह्माण्ड कितना विशाल है! इस बारे में सोचें कि यह कितना जटिल है; यह वैसा नहीं है जैसा मानवजाति को ज्ञात है। हमारे इस आयाम को ही लें, और जिस रूप में इसका अस्तित्व है—वह स्वयं ही काफी जटिल है! इस आयामी रूप के अतिरिक्त, लम्बवत आयामी रूप भी हैं, और इन लम्बवत आयामों के भीतर कई भिन्न-भिन्न विशिष्ट संसार होते हैं—यह बहुत जटिल है। मैं जिन विशिष्ट संसारों की बात कर रहा हूं वे दिव्यलोक और उनके जैसे अन्य हैं। प्रत्येक आयाम का एक भिन्न काल अवकाश भी होता है। इसके बारे में सोचें: क्या परमाणुओं से बने आयाम का समय हमारे अणु-निर्मित आयाम के समान हो सकता है? अंतरिक्ष के बारे में इसकी अवधारणा और इसकी दुरी हमारी अवधारणा से भिन्न हैं, क्योंकि सब कुछ बदल जाता है। परग्रहीयों की उड़न तश्तरियां बिना किसी निशान के क्यों प्रकट और अदृश्य हो सकती हैं, और वे इतनी गति से यात्रा क्यों कर सकते हैं? वे अन्य आयामों में यात्रा करते हैं—यह इतना सरल है। यदि मानवजाति ब्रह्मांड में अस्पष्ट घटनाओं को समझने के लिए आज के विज्ञान के परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करती है, या आध्यात्मिकता या धर्म को समझने का प्रयत्न करने के लिए इस पद्धति का उपयोग करती है, तो वह इन चीजों को कभी भी समझने में सक्षम नहीं होगी। उसे अपने सोचने का तरीका बदलने और चीजों को एक भिन्न दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है। मानव जाति के इतिहास में, विज्ञान आज के यूरोपीय लोगों द्वारा खोजे और आविष्कृत तथाकथित अनुभवजन्य विज्ञान तक ही सीमित नहीं था, और यह एकमात्र दृष्टिकोण नहीं था—अन्य दृष्टिकोण भी थे। पृथ्वी पर उपस्थित प्राचीन सभ्यताओं द्वारा की गई विकास प्रक्रियाओं में जीवन, पदार्थ और ब्रह्मांड को समझने के विभिन्न दृष्टिकोण सम्मिलित थे। चीन के प्राचीन विज्ञान ने एक भिन्न दृष्टिकोण अपनाया। निःसंदेह, क्योंकि चीनी संस्कृति में बहुत ऊँचे आयामों से उत्पन्न हुए तत्व हैं, और क्योंकि मनुष्य की नैतिकता उस स्तर तक नहीं पहुंची है, इसलिए [प्राचीन चीनी विज्ञान का प्रसारण] प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस प्रकार, [प्राचीन चीनी विज्ञान] को पारित नहीं किया गया था, और जो पारित किया गया था वह पश्चिम का यह सबसे अल्पविकसित विज्ञान था। इसलिए यह काफी अपर्याप्त है।
मैंने अभी-अभी इस बारे में बात की कि कैसे मनुष्य मूल रूप से इस भौतिक आयाम में नहीं बनाया गया था और मानव होने के उद्देश्य के बारे में। यदि मनुष्य का पतन जारी रहता है तो उसे विनाश का सामना करना पड़ता है—पूर्ण विनाश—जिसे "मन और शरीर का पूर्ण विनाश" कहा जाता है, और यह एक भयावह संभावना है! इस प्रकार, जब बुद्ध लोगों को बचाते हैं, तो यह आपको इस गंभीर संकट का सामना करने से रोकने और आपको मानवीय पीड़ा से मुक्ति दिलाने और दिव्यलोक में ले जाने के लिए होता है। यह वास्तव में, मूल रूप से मनुष्य की पीड़ा के मुद्दे को हल करता है। बुद्ध में आस्था रखने के लिए मनुष्य का प्रारंभिक बिंदु अब प्राचीन काल से भिन्न है। अतीत में, जब मनुष्य बुद्ध में आस्था रखता था, तो वह उनकी पूजा करता था और उनका सम्मान करता था और साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयत्न करता था—इसमें कोई अन्य विचार सम्मिलित नहीं थे। आज मनुष्य बुद्धों पर इसलिए आस्था रखता है जिससे उनसे कुछ मांग सके। फिर भी बुद्धों की दृष्टि में, [बुद्धों से] चीजें प्राप्त करने का प्रयत्न करने की मानसिकता सबसे गंदी, मलीन मानसिकता है। तो इस तथ्य पर विचार करें कि बुद्ध आपको बचाने का प्रयत्न कर रहे हैं, और फिर भी आप सांसारिक सुख और प्रसन्नता चाहते हैं। यदि आप वास्तव में इस सांसारिक जगत में पूरी तरह से प्रसन्न और आरामदायक रहने के लिए बने हैं, तो आप वास्तव में बुद्ध नहीं बनना चाहेंगे, क्योंकि आप पहले से ही एक बुद्ध होंगे। ऐसी परिस्थिति कैसे संभव हो सकती है? यदि आप कई जन्मों के अर्जित किए गए कर्मों का भुगतान नहीं करते हैं और अपने द्वारा किए गए बुरे कार्यों का भुगतान नहीं करते हैं, और आप केवल एक सुखी जीवन चाहते हैं, तो आप इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं? केवल एक ही तरीका काम करता है: साधना प्रारंभ करें, केवल तभी आप अपने द्वारा किये गए कर्मों को हटा सकते हैं। भले ही आप बुद्ध नहीं बनना चाहते, आपको एक अच्छा मनुष्य बनना होगा और, अधिक अच्छे कर्म और, कम बुरे कर्म करने होंगे। यही एकमात्र तरीका है जिससे आप भविष्य में प्रसन्न रहेंगे और यही एकमात्र तरीका है जिससे आपके सच्चे स्वरुप का जीवनकाल बढ़ाया जा सकेगा। फिर भी यह संभव है कि पुनर्जन्म लेते समय, एक व्यक्ति का मस्तिष्क रिक्त कर दिया जाएगा और एक बुरे वातावरण में पुनर्जन्म होगा, और फिर [समाज की] धारा का अनुसरण करते हुए विनाश की ओर चल पड़ेगा।
अभी मैंने उल्लेख किया था कि बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा था कि यह ब्रह्मांड इतना विशाल है कि इसका कोई बाह्य भाग नहीं है और यह इतना लघु है कि इसका कोई आंतरिक भाग नहीं है। हो सकता है कि कुछ लोग अभी भी इस कथन को ठीक से न समझ पाएं। अर्थात बुद्ध शाक्यमुनि ने जो समस्या देखी वह क्या थी? उन्होंने अनगिनत विश्वों के अपने सिद्धांत पर व्याख्यान दिया। बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा: न केवल हमारे जैसे भौतिक शरीर वाले लोग अन्य आयामों में अस्तित्व में हैं, हमारे जैसे मानव समाज वाले अनगिनत विश्व भी हैं। हमारी आकाशगंगा में ऐसे अनगिनत ग्रह हैं। उन्होंने यह भी कहा कि रेत के एक कण में अनगिनत संसार समाहित हैं। उन्होंने कहा कि रेत के एक कण में हमारे इस आयाम के समान अनगिनत आयाम समाहित हैं जहां मनुष्य बसते हैं। लेकिन आप मनुष्यों के आकार के अनुपात को (अन्य वस्तुओं की तुलना में) समझने के लिए आज के विज्ञान की चीजों की अवधारणाओं का उपयोग नहीं कर सकते, क्योंकि वे भिन्न-भिन्न काल अवकाशों में बसते हैं।
कुछ लोगों को मेरी अभी कही गयी बात अनोखी लग सकती है और वे इसे समझ नहीं पाते। यह कल्पना करने का प्रयास करें: पृथ्वी एक नियमित क्रम के अनुसार घूमती है। तो एक परमाणु की परिक्रमा करने वाले इलेक्ट्रॉन और सूर्य की परिक्रमा करने वाली पृथ्वी के बीच क्या अंतर है? स्वरूप वही है। यदि आप एक इलेक्ट्रॉन को विस्तृत करें जिससे वह पृथ्वी जितना बड़ा हो जाए, तो क्या आप उस पर जीवन पाएंगे? इस पर किस प्रकार के पदार्थ आस्तित्व में होंगे? बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा कि ब्रह्मांड बेहद छोटा है। उन्होनें कितनी दूर तक देखा? उन्होंने अत्यंत सूक्ष्म पदार्थ देखे। उन्होंने कहा कि रेत के एक कण में अनगिनत संसार समाहित हैं—रेत के एक छोटे से कण में अनगिनत संसार समाहित हैं। फिर यह कल्पना करने का प्रयास करें: यदि बुद्ध शाक्यमुनि ने जो कहा वह सच है, तो क्या रेत के उस कण के संसार में नदियाँ, झीलें और सागर नहीं होंगे? और क्या उन नदियों, झीलों और सागरों में रेत नहीं होगी? और क्या वहाँ रेत के एक कण में भी अनगिनत संसार नहीं समाये होंगे? तो क्या रेत के कण के रेत के कण में अनगिनत संसार नहीं होंगे? बुद्ध शाक्यमुनि ने आगे की जांच के बाद पाया कि यह अंतहीन रूप से चलता रहता है। इस प्रकार, उन्होंने कहा कि यह ब्रह्मांड इतना छोटा है कि इसका कोई आंतरिक भाग नहीं है। उन्होनें पदार्थ की सबसे गहरी उत्पत्ति नहीं देखी। निश्चित ही, मैंने अतीत में पदार्थ की सबसे गहरी उत्पत्ति पर चर्चा की है, और मैं यहां इस पर अधिक बात नहीं करूंगा। क्योंकि मैंने अत्यधिक उन्नत और गहन चीजों पर चर्चा की है, और विशेष रूप से क्योंकि बहुत से लोग मंडरिन भाषा को अच्छी तरह से नहीं समझते हैं, इसलिए मैं इन चीजों के बारे में अधिक बात नहीं करूंगा। मुझे लगता है कि अभी मैं बस इतना ही कहूंगा। अब आप उन प्रश्नों को पूछ सकते हैं जो आपकी साधना और शिक्षाओं के अध्ययन के दौरान उभरे हैं और मैं आपके लिए उनका उत्तर दूंगा।
शिष्य: हमने ज़ुआन फालुन (खंड I और II) पढ़ा है, और एक वाक्यांश है जिसे समझना मेरे लिए कठिन है, क्योंकि मैं तंत्रवाद का शिष्य हुआ करता था। उनमें एक विषय है जहाँ यह प्रतीत होता है कि वे आयाम जहाँ बोधिसत्व और बुद्ध निवास करते हैं, वर्तमान में आपदा में हैं।
गुरुजी: यह बहुत उच्च स्तर से संबंधित प्रश्न है। आप साधना के माध्यम से उच्च स्तर पर पहुँचने के बाद ही इन चीजों को देख और समझ पाएंगे। मैं स्पष्ट रूप से केवल इस मुद्दे की व्यापक रूपरेखा पर चर्चा कर पाउँगा। मनुष्य के इस आयाम में यह मार्ग अब काम नहीं करता क्योंकि समाज में नैतिकता का पतन हो रहा है और क्योंकि मनुष्य के हृदय में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो गया है। जब लोगों के कोई पवित्र विचार नहीं होते, तो मार्ग काम करना बंद कर देता है। जब मानव समाज का मार्ग काम नहीं करता है, तो मानव जाति नीचे की ओर गिर जाती है। जब मानव समाज के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर इस मार्ग ने काम करना बंद कर दिया, और जब [मार्ग से] भटकाव बहुत उच्च-स्तरीय आयामों में होने लगा, तो पदार्थों और जीवन का पतन शुरू हो गया होगा। वे बुरे हो गए होंगे इसलिए गिर गए होंगे। इसलिए जब यह समस्या बड़े पैमाने पर होने लगती है, तो यह समस्या केवल मानव जगत तक ही सीमित नहीं रहती। उदाहरण के लिए, मार्ग ऊपर से नीचे की ओर हर चीज में व्याप्त है, इसलिए यदि ऊपर के आयाम थोड़ा भटक जाते हैं तो नीचे के आयाम पूरी तरह से बदल जाएंगे। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे की जब आप बंदूक चलाते हैं, यदि गोली चलाते समय आपका निशाना थोड़ा सा भटक जाता है, तो गोली निशान से काफी दूर चली जाएगी। तो इतने बड़े परिवर्तन निचले आयामों में क्यों होते हैं? समाज भयावह हो गया है! नशीली दवाओं का दुरुपयोग, नशीली दवाओं की तस्करी—लोग सभी प्रकार के बुरे कार्य करते हैं। बहुत से लोगों ने अनगिनत बुरे काम किए हैं, जैसे कि भूमिगत आपराधिक गिरोहों का भाग होना, समलैंगिकता में सम्मिलित होना, अनैतिक कार्य करना, इत्यादि, जिनमें से सभी व्यवहार मनुष्यों के आदर्शों से गिरे हुए होते हैं। बुद्ध इन मुद्दों को कैसे देखते हैं? आपकी सरकारें [इस व्यवहार को] अनुमति देती हैं, और कानून इसकी अनुमति देते हैं, लेकिन केवल मनुष्य ही इसकी अनुमति देते हैं—स्वर्ग के सिद्धांत इसकी अनुमति नहीं देते हैं! अतीत में, मानवजाति सुंदर और अच्छी चीजें पसंद करते थे। लेकिन अब, जब आप उन खिलौनों को देखते हैं जो लोग बेचते हैं और जो पेंटिंग लोग बनाते हैं, वे सभी अस्तव्यस्त धब्बों का एक समूह हैं, और इन्हें अब कलाकृति माना जाता है। वे क्या दर्शाते हैं? कोई स्पष्टता से नहीं कह सकता। मनुष्य के सभी मूल्य [जो उचित है उससे] विपरीत दिशा में जा रहे हैं। कूड़े का ढेर एक कुशल मूर्तिकार की कलाकृति हो सकता है। पूरे समाज में यही चलन है। यहां तक कि दुकानों में मल के आकार के खिलौने भी बेचे जा रहे हैं। पहले, लोग केवल वही गुड़िया खरीदते थे जो सुंदर होती थी, लेकिन अब खोपड़ियों, भयानक दिखने वाले लोगों, राक्षसों और भूतों के रूप में खिलौने बना दिए गए हैं और वे अति शीघ्र बिक जाते हैं, क्योंकि अच्छे विचार नहीं रखने वाले लोग उन्हें खरीदने के इच्छुक हैं। यह क्या दर्शाता है? उस व्यक्ति के मूल्यों में भारी गिरावट आई है! अतीत में, गायकों को एक मधुर स्वर, एक संगीत संरक्षिका से स्नातक होना और स्वयं को शालीनता से प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती थी, क्योंकि उनके संगीत को श्रोताओं को मधुरता का अनुभव करवाने की आवश्यकता होती थी। आजकल, लंबे बाल वाले पुरुष जो बिल्कुल पुरुषों की तरह नहीं दिखते हैं और जो जोर से चिल्लाते हैं, जब टेलीविजन उनका प्रचार करता है तो वे सितारे बन जाते हैं। सब कुछ बर्बाद हो रहा है और मानवजाति की हर चीज का पतन हो रहा है। ऐसी और भी कई परिस्थितियाँ हैं जो बहुत भयावह हैं! यदि आप साधना नहीं करते हैं तो आप उन पर ध्यान नहीं देंगे। धर्म के प्रति मनुष्य की समझ भी बदल गई है। वह इसे राजनीति समझते हैं। कुछ लोग बिना सोचे बुद्ध की निंदा करते हैं, और अब रेस्तरां के मेनू पर "बुद्ध जम्पिंग ओवर ए वॉल" नामक व्यंजन लिखा जाता है। यह बुद्धों की निंदा है! आज के समाज को क्या हो गया है? यदि आप साधना नहीं करते हैं तो आपको इन चीजों के बारे में पता नहीं चलेगा, लेकिन एक बार जब आप ऐसा करेंगे और इन चीजों पर दृष्टि डालेंगे, तो आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे! ध्यान रखें कि समाज का इस हद तक बिखरना कोई अकेली घटना नहीं है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ आयामों में मार्ग में समस्याएँ उत्पन्न हुईं। यह कई पदार्थों और जीवों के मार्ग से भटकने के कारण हुआ। मैं इसे आपको केवल इस प्रकार ही समझा सकता हूं क्योंकि यदि मैं इसकी गहराई में जाऊंगा, तो यहां बहुत से लोग इसे समझ नहीं पाएंगे। मुझे लगता है कि यदि मैं इसे इस प्रकार समझाऊं तो आप इसे समझ पाएंगे।
शिष्य: मैं यह प्रश्न पूछने में लज्जित अनुभव कर रहा हूँ, लेकिन मैं जानता हूं कि यदि मैंने अभी प्रश्न नहीं पूछा तो यह अवसर चला जायेगा। बहुत से लोग इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हैं, लेकिन क्योंकि गुरूजी आज यहाँ हैं, यह एक बहुत ही अनमोल अवसर है। कुछ वर्ष पहले एक रात, मैं आधी रात के बाद तांत्रिक शैली में ध्यान कर रहा था, क्योंकि मैं तंत्र विद्या का अभ्यास करता था। लेकिन मैंने एक विमान की तरह अवर्णनीय तेजी से चक्कर लगाना शुरू कर दिया और मैं इस प्रकार हवा में उठ गया। मैं इतना ऊपर उठ गया और फिर अपने सिर के ऊपर से बाहर निकल गया। जब मैं अपने सिर के ऊपर से बाहर निकला तो थोड़ा सा तेज़ दर्द हुआ, और दर्द के दौरान मैं और भी ऊपर उठ गया। मैं काफी डरा हुआ था। मुझे लगा कि शायद मेरी आत्मा निकल गयी है और मैं अपना शरीर नहीं देख पा रहा था। दूसरे दिन, कुछ अजीब हुआ: जब मैं दिन के उजाले में अपने कमरे में बैठा था, मैंने रोशनी का एक रुपहला वृत और रुपहली रोशनी देखी, लेकिन वे पांच मिनट बाद अदृश्य हो गईं। तीसरे दिन, मैंने एक फालुन देखा। क्या हो रहा था?
गुरुजी: भले ही आप अतीत में तंत्र विद्या करते थे, लेकिन इससे आपको कुछ प्राप्त नहीं हुआ। आप फालुन को क्यों देख पाए? ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने आपकी साधना शुरू करने से पहले ही आपकी देखभाल करनी शुरू कर दी थी। अभ्यासियों के लिए हवा में तैरना बहुत सरल है; यह कुछ ऐसा है जिसे आज का विज्ञान समझा नहीं सकता। वास्तव में, कोई व्यक्ति हवा में तब तैर सकता है जब उसके शरीर की सभी शक्ति नाड़ियाँ खुल जाती हैं। चाहे वह हवा में न भी उड़ता हो, लेकिन जब वह चलता है, पर्वतों पर चढ़ता है, या सीढ़ियाँ चढ़ता है तो उसे ऐसा अनुभव होगा जैसे वह उड़ रहा है, और वह थकेगा नहीं। जब शक्ति नाड़ियाँ खुलेंगी तो चीजें इसी प्रकार होंगी। जहाँ तक मुख्य आत्मा का प्रश्न है, कुछ लोगों की मुख्य आत्माओं के लिए शरीर छोड़ना सरल होता है और दूसरों के लिए यह कठिन होता है। एक बार जब आपने अपना शरीर छोड़ दिया, तो फालुन ने आपके उड़ते हुए शरीर को गति प्रदान कर दी, और इस प्रकार आप बहुत तेज़ी से घूमने लगे। जहाँ तक आपके अपने से अधिक ऊपर जाने से डरने की बात है, तो इसका कारण यह है कि उस समय आपकी शक्ति केवल एक निश्चित स्तर पर थी। जब आप पहली बार इस प्रकार की किसी चीज का अनुभव करेंगे तो आप डर जाएंगे; यह सभी के साथ ऐसा ही है। वास्तव में, हममें से कई लोग जो फालुन दाफा का अभ्यास करते हैं वे हवा में उड़ सकते हैं, और यह बिल्कुल सामान्य है। एक बार जब कोई व्यक्ति साधना शुरू कर देता है, तो उसकी शक्ति नाड़ियाँ खुलने लगेंगी, और जब संपूर्ण दिव्य परिपथ खुल जाएगा, तो व्यक्ति हवा में उड़ने में सक्षम हो जाएगा।
जब मैं इस पर चर्चा कर रहा हूं तो मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि किसी को भी यह विचार नहीं रखना चाहिए: "यदि मैं हवा में उड़ सकूं तो कितना अच्छा होगा!" एक बार जब आप इसके पीछे जाने की धारणा विकसित कर लेते हैं, तो आप हवा में नहीं उड़ पाएंगे, भले ही आप इसमें सक्षम हों। ऐसा इसलिए है क्योंकि साधना शून्यता और इच्छाओं से मुक्त होने पर जोर देता है। आपको साधना तो करनी चाहिए लेकिन उससे कुछ प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए; आपको साधना तो करनी चाहिए लेकिन उससे उच्च शक्ति प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। साधना करते समय आपको इसी प्रकार की अवस्था में रहना चाहिए। यदि आप सारा दिन बुद्ध बनने के बारे में सोचते हैं, तो यह एक प्रबल मोहभाव है। यदि आप इस इच्छा से छुटकारा नहीं पाते हैं तो आप इसे कभी भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे, इसलिए साधना केवल मानवीय इच्छाओं से छुटकारा पाना है। जिस किसी भी सांसारिक चीज से आप जुड़े हुए हैं वह एक मोहभाव है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप किसकी इच्छा रखते हैं, जितना अधिक आप उसकी इच्छा करेंगे उतना ही कम आप इसे पाने में सक्षम होंगे। यह आपको तभी प्राप्त होगी जब आप इच्छा छोड़ देंगे—आप सभी को इस सिद्धांत को ध्यान में रखना चाहिए। यदि आप भौतिक संसार में कुछ पाना चाहते हैं, तो आप उसका पीछा कर सकते हैं, उसके बारे में सीख सकते हैं और कड़े परिश्रम के माध्यम से उसे प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन जहां तक उन चीजों की बात है जो सांसारिक जगत से परे हैं, तो आप [वे चीजें केवल उनके प्रति इच्छा त्याग कर ही] प्राप्त कर सकते हैं। इस [स्थिति] को क्या कहा जाता है? इसे "चीजों को पाने का प्रयत्न किए बिना स्वाभाविक रूप से प्राप्त करना" कहा जाता है।
जहाँ तक डरने की बात का प्रश्न है जिसका आपने उल्लेख किया है, वास्तव में डरने की कोई बात नहीं है; यदि आप हवा में उड़ते हैं, तो बस उड़ें [आप उस समय डरे हुए थे] क्योंकि किसी ने भी आपको इस [घटना] के बारे में नहीं बताया था, और क्योंकि मानव जगत में आपके पास आपको सिखाने के लिए कोई गुरु नहीं था। हवा में उड़ना एक साधारण घटना है और यह व्यक्ति की इच्छा से नियंत्रित होती है। यदि आप कहते हैं, "मैं नीचे आना चाहता हूँ," जैसे ही आपके मन में यह विचार आएगा, आप नीचे आ जायेंगे; यदि आप कहते हैं कि आप ऊपर उठना चाहते हैं तो आप उठ जायेंगे। यदि आप फिर डर जाते हैं, तो यह एक मोहभाव है, और आप सरलता से गिर सकते हैं, इसलिए सुनिश्चित करें कि आप डरें नहीं। अतीत में, एक व्यक्ति था जो अपनी साधना में इतना आगे बढ़ गया कि अर्हत बन गया, लेकिन जैसे ही वह उत्साहित हुआ तो गिर गया। क्यों? मानवीय उत्साह भावना की अभिव्यक्ति है और एक मोहभाव है। एक अभ्यासी का मानना है, “यदि आप मुझे कोसते हैं या मेरे बारे में अप्रिय बातें कहते हैं तो मैं प्रभावित नहीं होऊँगा; यदि आप कहेंगे कि मैं अच्छा हूँ तो भी मैं प्रभावित नहीं होऊँगा; यदि आप कहेंगे कि मैं बुरा हूं तो भी मैं इसे मन पर नहीं लूंगा।'' लेकिन यह व्यक्ति जैसे ही उत्साहित हुआ वह गिर गया। साधना में अर्हत बनने तक पहुँचना कठिन है, लेकिन अंत में, इस व्यक्ति ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा फिर से शून्य से प्रारंभ की! कुछ वर्षों के बाद, वह फिर से अरहत बनने की स्थिति में आगे बढ़ा, लेकिन इस बार उसने सोचा, “मैं फिर से उत्साहित नहीं हो सकता। नहीं तो मैं फिर गिर जाऊँगा।” उसे उत्साहित होने का डर था। लेकिन जैसे ही वह डरा तो फिर गिर गया। ऐसा इसलिए है क्योंकि डर एक मोहभाव है। साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयास करना बहुत गंभीर मामला है; यह एक उपहास नहीं है! इसलिए आपको इस मुद्दे पर अवश्य ध्यान देना चाहिए।
इससे पहले कि लोग और प्रश्न पूछें, मुझे एक और विषय पर बात करनी है: हमें साधना में एक मार्ग के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। मैं जानता हूं कि अतीत में यहां कई लोगों ने तंत्र विद्या का अध्ययन किया था; कई लोग बौद्ध धर्म में आस्था रखते हैं; कई अन्य लोग ईसाई धर्म या कैथोलिक धर्म में आस्था रखते हैं। जैसे कि मैं समझता हूं, आपको एक आध्यात्मिक मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए! आपको एक ही मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध क्यों होना चाहिए? यह एक पूर्ण, सच्चा सत्य है! [एक मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध न होना] एक प्रमुख कारण है कि धर्म विनाश काल में लोगों के लिए साधना में सफल होना असंभव हो गया है। इसके पीछे कुछ कारक हैं [तथ्य यह है कि लोग साधना में सफल नहीं हो सकते]: लोग सच्ची आध्यात्मिक शिक्षाओं को नहीं समझ पाते हैं, और साथ ही, लोग आध्यात्मिक मार्गों को मिश्रित करते हैं। आध्यात्मिक मार्गों का मिश्रण एक मुख्य कारण है। एक बार जब आप एक मार्ग का अभ्यास कर लेते हैं, तो आप अन्य मार्गों का अभ्यास नहीं कर सकते। मैं आपको यह क्यों बता रहा हूँ? ऐसा इसलिए है क्योंकि "सभी मार्गों से सर्वश्रेष्ठ बातें चुनना" यह एक सांसारिक तरीके की सोच है, और जब आप सांसारिक कौशल और ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं तो चीजें इसी प्रकार काम करती हैं। हालाँकि, साधना का सिद्धांत एक मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध होना है। बौद्ध धर्म में वे इसे "कोई दूसरा मार्ग नहीं" कहते हैं। यदि आप कहते हैं, "मैं बौद्ध और दाओवादी दोनों मार्गों का अभ्यास करूंगा," तो जब आप उनका अभ्यास करेंगे तो आप उनमें से किसी में भी सफल नहीं होंगे, और कोई भी आपको उच्च शक्ति नहीं देगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि "व्यक्ति को केवल अभ्यास के प्रयास की आवश्यकता है, और बाकी सब उसके गुरु के हाथ में है।" इसके बारे में सोचें: क्या आप केवल थोडा सा चीगोंग प्रशिक्षण करके बुद्ध बन सकते हैं? यदि आप तंत्रवाद का अभ्यास करते हैं, तो क्या आप कुछ मंत्रों का पाठ करके, कुछ निर्देशित-विचार अभ्यास करके और कुछ मुद्राएँ करके बुद्ध बन सकते हैं? मानवीय इच्छाभाव का कोई महत्व नहीं है—यह केवल एक इच्छा है। यह गुरु ही है जो वास्तव में चीजों को घटित करते हैं! कुछ लोग सोचते हैं, "हम बौद्ध धर्मग्रंथों का पाठ करेंगे, तंत्रवाद का अध्ययन करेंगे, और बौद्ध चीगोंग का अभ्यास करेंगे क्योंकि [ये अभ्यास] सभी बौद्धधर्म हैं। उसमें अनुचित क्या है?" मनुष्य इसे इसी प्रकार समझते हैं, लेकिन दिव्य प्राणी इसे उस प्रकार नहीं समझते हैं। इसके बारे में सोचें: तथागत बुद्ध या बुद्ध अमिताभ साधना में कैसे सफल हुए? उन्होंने साधना के अपने तरीकों के माध्यम से फल पदवी प्राप्त की, और उनकी उच्च शक्ति इसे विकसित करने की उनकी अपनी पद्धति से आयी। इस प्रकार उन्होंने अपने दिव्यलोक का [निर्माण] पूरा किया और आध्यात्मिक रूप से स्वयं फल पदवी प्राप्त की। उनके आध्यात्मिक मार्ग के अनूठे कारकों ने ही उनकी साधना के दौरान उनकी हर चीज का सृजन किया।
बुद्ध शाक्यमुनि की फल पदवी तक पहुँचने की विधि को "शील, समाधी, प्रज्ञा" कहा जाता है। आपको चार प्रकार के ध्यान, आठ प्रकार की समाधी का अभ्यास करना होगा और उसके आध्यात्मिक मार्ग के अनुसार चलना होगा। इस मार्ग का अभ्यास करने में, आपको उसी प्रकार की उच्च शक्ति की आवश्यकता होगी जो बुद्ध शाक्यमुनि के पास है यदि आप वहां जाना चाहते हैं जहां वह हैं। यदि आप तंत्रवाद का अभ्यास करना चाहते हैं, यदि आप वैरोचन द्वारा शासित दिव्यलोक में जाना चाहते हैं तो आपको "शरीर, वाणी और मन" की तांत्रिक आवश्यकता का पालन करना होगा। यदि आप हर चीज का अभ्यास करते हैं, तो आपको कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। यदि आप शुद्धावास बौद्ध धर्म का अभ्यास करते हैं और "बुद्ध अमिताभ" का पाठ करते हैं, और फिर पलटकर ज़ेन सिद्धांतों का अध्ययन करते हैं, तो आपको कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। लोगों के पास केवल एक ही शरीर होता है, और आपके शरीर को बुद्ध-शरीर में परिवर्तित करना—बुद्ध का शरीर, आप जानते हैं—इतना सरल काम नहीं है, और आप इसे स्वयं नहीं कर पाएंगे। एक बुद्ध को स्वयं ऐसा करना होगा, क्योंकि आपके शरीर को बुद्ध-शरीर में परिवर्तित करना एक अत्यंत जटिल कार्य है, जो मानव जाति के सबसे सटीक उपकरण से भी अधिक जटिल है। उन्हें आपके शरीर में "यंत्र" नामक चीजों का एक संग्रह स्थापित करना होगा और कई बीज बोने होंगे जो आपके शक्ति केंद्र में दिव्य मार्ग की दिव्य शक्तियों के विभिन्न स्वरूपों को विकसित करेंगे। ये सभी चीजें बुद्ध के आध्यात्मिक मार्ग से उत्पन्न होती हैं, और केवल उनके साथ ही आप उनके मार्ग का अभ्यास कर सकते हैं और आध्यात्मिक रूप से उस बिंदु तक प्रगति कर सकते हैं और तब आप उनके बुद्ध दिव्यलोक में प्रवेश कर सकते हैं। यदि आप एक मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं, तो आप केवल एक शरीर के साथ, आध्यात्मिक रूप से कैसे प्रगति कर सकते हैं, जिससे आप दो भिन्न-भिन्न बुद्ध दिव्यलोकों में प्रवेश कर सकें? जब बुद्ध आपको इस प्रकार का आचरण करते देखेंगे, तो वे आपको कुछ नहीं देंगे और सोचेंगे कि आपका नैतिकगुण कमतर है। स्पष्ट रूप से कहें तो, आप ऐसे मनुष्य हैं जो दिव्य मार्ग को बाधित करने का प्रयत्न कर रहे हैं। तथागत बुद्ध के आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त करना—यह बहुत मुश्किल और कठिन है! तथागत बुद्ध के आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त करने के लिए—एक व्यक्ति को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है! यदि आप, एक साधारण व्यक्ति के रूप में, उनकी चीजों को बदलने और बाधित करने का प्रयास करते हैं, दो चीजों को एक साथ मिलाते हैं, और उन चीजों को उथल-पुथल कर देते हैं जिन्हें दो बुद्धों ने ज्ञानप्राप्त किया है, तो क्या आप दिव्य मार्ग को बाधित नहीं कर रहे हैं?! यह उतना गंभीर है! लेकिन आज के भिक्षुओं और आज की मानव जाति को यह भी पता नहीं है कि वे दिव्य मार्ग को हानि पहुंचा रहे हैं। निश्चित ही, आपको पूरी तरह से दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि आप इसके बारे में नहीं जानते थे, लेकिन भले ही आपको दोषी नहीं ठहराया जाएगा, फिर भी आपको कुछ नहीं दिया जाएगा। किसी को भी अपनी इच्छानुसार दिव्य मार्ग में गड़बड़ी करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। आपने दिव्य मार्ग के दो मार्गों, दो तथागत बुद्धों के मार्गों को गड़बड़ा दिया होगा। ऐसा बिल्कुल नहीं होगा! इस प्रकार, जब तक आप अपनी साधना में चीजों को मिश्रित करते रहेंगे, आपके लिए कुछ भी प्राप्त करना असंभव होगा। ऐसा नहीं है कि आप कह सकते हैं, "मैं केवल बौद्ध मार्ग का अभ्यास करता हूं, दाओवादी मार्ग का नहीं; यह तब तक ठीक है जब तक वे सभी बौद्ध हैं," और फिर आप ज़ेन, तंत्रवाद, शुद्धावास, हुआयान और तियानताय के बौद्ध पद्धतियों का अभ्यास करते हैं—आप लापरवाही से व्यवहार कर रहे होंगे और हानि पहुंचा रहे होंगे, और आपको कुछ भी प्राप्त नहीं होगा। आपको वास्तव में कुछ भी प्राप्त नहीं होगा, इसलिए यदि आप फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम होना चाहते हैं तो आपको एक मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध होना होगा।
मैं यहां जो समझा रहा हूं वह एक सिद्धांत है। ऐसा नहीं है कि आपको ली होंगज़ी के फालुन दाफा का ही अध्ययन करना चाहिए। प्रागैतिहासिक काल के दौरान, हमारे फालुन दाफा ने, शाक्यमुनि के बौद्ध धर्म की तरह, एक बार बड़े पैमाने पर समाज में लोगों को बचाया था, लेकिन मानव सभ्यता के इस काल में ऐसा नहीं हुआ है। यह पहली बार है कि इसे वर्तमान मानव जाति के उद्भव के बाद सार्वजनिक किया गया है, और यह शायद अंतिम बार होगा जब इसे सार्वजनिक किया जाएगा, लेकिन यह हमेशा के लिए बना रहेगा। निश्चित ही, हमारा फालुन दिव्यलोक है, और फल पदवी प्राप्त करने वाले शिष्य वहां जा सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि आपको मेरी शिक्षाओं का पालन करना चाहिए। आप किसी भी शिक्षा का पालन कर सकते हैं। जब तक यह एक पवित्र आध्यात्मिक मार्ग है, जब तक आप इसकी प्रामाणिक शिक्षाओं को प्राप्त करने में सक्षम हैं, और यदि आपको लगता है कि आप उस मार्ग में फल पदवी प्राप्त कर सकते हैं, तो अभ्यास के लिए वहां जा सकते हैं। लेकिन मैं आपसे एक मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध रहने का आग्रह कर रहा हूं।
मैं आपको यह भी बता दूं कि बुद्ध अपने वास्तविक स्वरूप का उपयोग करके आपको नहीं बचा सकते। यदि कोई बुद्ध यहाँ बैठे, भव्य रूप से अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन करे, और आपको मार्ग समझाए, तो यह लोगों को नहीं बचाएगा—यह मार्ग को हानि पहुँचाएगा। यहां तक कि जिन लोगों ने अक्षम्य पाप किए थे वे भी सीखने आ जायेंगे और किसी को भी आस्था और विवेक की आवश्यकता नहीं होगी। जैसे ही लोग देखेंगे कि यह एक वास्तविक बुद्ध है, तो कौन उनसे नहीं सीखेगा? सारी मानवजाति सीखने आएगी। क्या ऐसा नहीं होगा? इस प्रकार, केवल वही गुरु जिसने मानव संसार में पुनर्जन्म लिया है, लोगों को सिखा सकता है और बचा सकता है। इससे आपकी आस्था और विवेक की परीक्षा होगी, क्योंकि यह आप पर निर्भर है कि आप विश्वास करते हैं या नहीं। लेकिन आप स्वयं पढ़ सकते हैं और उनकी शिक्षाओं के बारे में सोच सकते हैं। वैसे भी, मैं आपके प्रति उत्तरदायी हूँ इसलिए मैं आपको यह सिद्धांत समझा रहा हूँ। क्योंकि आप साधना करना चाहते हैं, मैं आपको ये बातें बता रहा हूं—अन्यथा, मैं अपना उत्तरदायित्व नहीं निभा रहा होऊंगा। क्योंकि आपके पास यहां आने का पूर्वनिर्धारित अवसर है, इसलिए मैं आपको ये बातें बता रहा हूँ। अब किसी भी मार्ग में साधना में सफल होना बहुत कठिन है। साधकों का कोई भी ध्यान नहीं रख रहा है, इसका मुख्य कारण यह है कि लोग साधना में गड़बड़ी कर रहे हैं। निःसंदेह, यदि आप स्वयं को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम हैं और आपको लगता है कि आप अपने स्वयं के साधना के माध्यम से फल पदवी तक पहुँच सकते हैं, तो आपको जो उचित लगता है उस मार्ग को साधना करने के लिए चुन सकते हैं। यह ऐसा है। क्योंकि बुद्ध मनुष्य के हित के लिए कार्य करते हैं, इसलिए मुझे आपको यह बताना होगा कि यदि आप साधना करना चाहते हैं तो आपको एक ही मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध होना होगा। न केवल आप अन्य मार्गों की क्रियाओं का अभ्यास नहीं कर सकते, आप अन्य मार्गों के ग्रंथों का अध्ययन भी नहीं कर सकते, आप अन्य मार्गों की बातों को अपने विचारों में नहीं ला सकते, और आपको इच्छा भरे विचारों से छुटकारा पाना चाहिए। क्योंकि जब आप व्यायाम करते हैं तो कई चीजें आपके विचारों पर निर्भर करती हैं, यदि आपके विचारों में कोई इच्छा सम्मिलित होती है, तो आप चीजों का पीछा कर रहे होंगे। यदि आप किसी चीज के पीछे जाएंगे तो वह चीज आपको मिल जाएगी। तब आपके शरीर की उच्च शक्ति गड़बड़ा जाएगी, आपका फालुन विकृत हो जाएगा और अपनी प्रभावशीलता खो देगा, और आप अपनी साधना में कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
मैं आपको याद दिला दूं कि यह फालुन बहुत मूल्यवान है। हालाँकि मैंने इसे आपको दे दिया है, लेकिन इसे प्रसारित करने से पहले के समय में, एक व्यक्ति को एक हजार साल तक साधना करने पर भी यह नहीं मिल पाता था। इसे प्राप्त करने पर निश्चित रूप व्यक्ति की आधी साधना पूरी हो जाती है। आपकी उच्च शक्ति फालुन द्वारा स्वचालित रूप से विकसित होगी। इसलिए जब तक आप अपने आंतरिक क्षेत्र को बेहतर बनाने पर काम करते हैं, आप बड़ी मात्रा में उच्च शक्ति प्राप्त करेंगे और आगे बढ़ेंगे। [फालुन] एक उच्चतर जीव है, अर्थात, यह एक ऐसा जीव है जो आपसे भी उच्च है। हालाँकि मैंने आपको एक दिया है, ऐसा इसलिए है क्योंकि आप साधना करना चाहते हैं, जो आपकी दिव्य प्रकृति को दर्शाता है। जब आपको यह विचार आता है, तो [मैं] आपको बचाऊंगा—यह इसी प्रकार किया जाएगा, और आप जो प्राप्त करेंगे वह बहुत मूल्यवान होगा। साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयास करना एक अत्यंत गंभीर मामला है, और मैं आपको [फालुन] को विकृत या बर्बाद नहीं करने दूंगा। यदि आप साधना करते समय अन्य चीजों को मिश्रित करते हैं, तो हम आपसे [फालुन] वापस ले लेंगे, क्योंकि हम आपको इस जीव, इस उच्च जीव को बर्बाद नहीं करने दे सकते। कुछ लोग सोचते हैं, "मैंने अन्य चीजें सीखीं, लेकिन क्योंकि यह फालुन इतना शक्तिशाली है, तो इसने मेरी रक्षा क्यों नहीं की?" ऐसा इसलिए है क्योंकि ब्रह्मांड में एक सिद्धांत है कि आप जो चाहते हैं उस पर आप अपना निर्णय स्वयं लेते हैं। यदि आप अपने स्वयं के निर्णय लेते हुए, दुष्ट चीजों के पीछे जाते हैं... दुष्ट चीजें हर स्थान पर होती हैं, आप के भीतर घुसने का प्रयत्न कर रही होती हैं, भले ही आप उन्हें न चाहें! यदि आप उनको पाना चाहते हैं, तो वे एक क्षण से भी कम समय में आपके पास आ जायेंगी। तो फालुन आपको उनसे क्यों नहीं बचाता? ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने वे चीजें मांगी थीं। इसलिए आपको इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए। साधना एक अत्यंत गंभीर विषय है।
जब मैं चीन में इस अभ्यास का प्रसार कर रहा था, तो ऐसे अनेक लोग थे जिनके दिव्य नेत्र खुले थे और जो चीजों को देखने की क्षमता में बहुत आगे थे—लेकिन खुले हुए तीसरे नेत्र के साथ साधना करनी भी कठिन है। आप विशाल, अमर प्राणियों को देख सकते हैं। क्योंकि वे अन्य आयामों के प्राणी हैं, वे अपने शरीर को उस बिंदु तक विस्तारित कर सकते हैं जिससे वे बहुत विशाल दिखायी देते हैं। वे पीले वस्त्र पहनते हैं, विशाल होते हैं, और मनुष्यों को महान दिव्य शक्तियों वाले प्रतीत होते हैं। वे आपसे कहते हैं: “मैं आपको अपना शिष्य बना लूँगा। आओ मुझसे सीखो।” जैसे ही व्यक्ति की इच्छा उभरेगी, वह अमर प्राणी से शिक्षा प्राप्त कर लेगा और उस क्षण वह नष्ट हो जायेगा। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि [उस प्रकार का अमर प्राणी] कितना विशाल प्रतीत होता है, वह तीन लोकों के आगे नहीं जा पाया है और उसका कोई वास्तविक महत्व नहीं है; बात केवल इतनी है कि वह इस आयाम में नहीं है और अपनी इच्छानुसार अपने शरीर को परिवर्तित कर सकता है। इसलिए आपको इन मुद्दों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। साथ ही ऐसे असुर भी होते हैं जो आपके साथ हस्तक्षेप करने आते हैं: “आओ मुझसे सीखो। मैं आपको कुछ बातें सिखाऊंगा।" कुछ लोगों के लिए—विशेष रूप से वे जो अन्य मार्गों का अभ्यास करते हैं—जैसे ही वे [ध्यान करने के लिए] बैठते हैं, वे अक्सर अपने स्वयं के व्यायाम क्रियाओं में कुछ जोड़ने का प्रयत्न करते हुए ऐसी मुद्राएं करते हैं जो काफी सुंदर लगती हैं—लेकिन आपको पता होना चाहिए कि असुरों को पता है कि इस प्रकार का भी काम कैसे करना है। आप नहीं जानते कि ये चीजें आपको कौन दे रहा है, इसलिए जैसे ही आप अभ्यास करते हुए [उस प्राणी जिसने आपको चीजें दीं] के साथ जाएंगे, वह आपके शरीर में चीजें डाल देगा, और आपका शरीर गड़बड़ा जाएगा। मैंने देखा है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हर तरह की चीजें सीखते हैं, और उनके शरीर भयानक रुप से गड़बड़ा गये होते हैं, जो हर प्रकार की चीजों से भरे होते हैं—ऐसे लोग साधना में बिल्कुल भी कहीं नहीं पहुंचेंगे। हम नियति पर जोर देते हैं। यदि आप मुझसे मिलते हैं, तो ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके भाग्य में यही लिखा था। यदि आप वास्तव में आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, तो हमें आपको पूरी तरह से शुद्ध करना होगा। हम आपकी अच्छी चीजों को रखेंगे और आपकी बुरी चीजों को हटायेंगे, आपके शरीर को व्यवस्थित करेंगे, इसे शुद्ध करेंगे, और आपको दूधिया-श्वेत शरीर की स्थिति तक पहुंचाएंगे। यही एकमात्र तरीका है जिससे आप वास्तव में शक्ति पैदा कर सकते हैं और उच्च आध्यात्मिक स्तर पर आगे बढ़ सकते हैं।
शिष्य: आपके पास अनेक दिव्य शरीर (फाशन) हैं जो साधना का मार्गदर्शन कर सकते हैं, लेकिन हम ऑस्ट्रेलिया में हैं। हमारा मार्गदर्शन करने कौन आ सकता है? हमें अपना गुरु किसे मानना चाहिए?
गुरुजी: इस व्यक्ति ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। यह ज्ञात है कि जब कोई व्यक्ति साधना करता है तो यह अत्यंत गंभीर मुद्दा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों के पास अनेक जन्मों के कर्म हैं और उन्होंने अपने पिछले जन्मों में बुरे कर्म किए हैं, इसलिए उनके पास अन्य आयामों में शत्रु और ऋण के लेनदार होंगे। यदि उन शत्रुओं और लेनदारों को पता चला कि आपने साधना शुरू कर दी है, तो वे आपसे बदला लेने आएंगे, इसलिए जो लोग अभी साधना शुरू कर रहे हैं उनके जीवन को जोखिम का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार, मैंने उल्लेख किया है कि गुरु के बिना आपके लिए साधना में सफल होना बिल्कुल असंभव होगा। आप साधना में केवल तभी सफल हो सकते हैं जब आपका कोई गुरु हो जो आपका ध्यान रख रहा हो और आपकी रक्षा कर रहा हो, और वह किसी भी बड़े संकट को आने से रोकता हो। संसारभर में आध्यात्मिक मार्गों के साधक हुआ करते थे, और उनमें से एक बड़ा भाग चीन में था। कई दाओवादी साधक शिष्यों को अपना लेते हैं। हालाँकि अब दाओवाद का एक धर्म है, जिसमें बड़ी संख्या में शिष्य हैं, वास्तविक शिक्षा केवल एक ही व्यक्ति को दी जाती है, क्योंकि यही एकमात्र तरीका है जिससे [दाओवादी गुरु] यह आश्वस्त कर सकते हैं कि यह व्यक्ति समस्याओं में न पड़े। [एक दाओवादी गुरु] केवल एक ही व्यक्ति का ध्यान रखने में सक्षम है, क्योंकि दाओवादी मार्गों में सभी प्राणियों को बचाने का तरीका नहीं है।
मैं इस [अभ्यास] को क्यों पारित कर सकता हूँ और इतने सारे लोगों को बचा सकता हूँ? चीन में अब एक करोड़ लोग इसे सीख रहे हैं, और इसमें चीन के बाहर इसे सीखने वाले लोग सम्मिलित नहीं हैं। किसी को समस्या क्यों नहीं हुई? आज हमारे साथ यहाँ कोई है जिसे एक कार ने टक्कर मार दी थी। कार नष्ट हो गई, लेकिन व्यक्ति वास्तव में ठीक था। वह पीड़ा में या डरा हुआ नहीं था, और वह कहीं से भी घायल नहीं हुआ था। ऐसा क्यों हो सकता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे लेनदार भुगतान की मांग करने आते हैं, लेकिन हम आपको वास्तव में संकट में नहीं पड़ने दे सकते। फिर भी, ऋण चुकाना होगा। यदि गुरु आपकी रक्षा नहीं करेंगे, तो तुरंत आपकी मृत्यु हो जाएगी। यदि आपकी मृत्यु हो जाती तो आप साधना कैसे कर सकेंगे? मेरे अनगिनत दिव्य शरीर हैं जो मेरे जैसे ही दिखते हैं। वे अन्य आयामों में हैं और निस्संदेह, बड़े या छोटे हो सकते हैं। वे बहुत बड़े और बहुत छोटे हो सकते हैं। उनकी बुद्धि पूरी तरह से बंधन मुक्त है, और उनकी दिव्य शक्ति बुद्ध के समान ही है। मेरा मुख्य शरीर यहां मेरे साथ है, लेकिन उनमें स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता है, और वे आपका ध्यान रखेंगे, आपकी रक्षा करेंगे, आपको उच्च शक्ति विकसित करने में सहायता करेंगे और कुछ कार्य करेंगे। वास्तव में, वे मेरे ही अवतार हैं, और इस प्रकार मैं आपकी रक्षा करने में सक्षम हूं। मैं ऑस्ट्रेलिया में नहीं रहता हूँ, लेकिन अभ्यास आपको पारित किया गया है, और आप शिक्षाओं को अपना गुरु मानकर उनमें मार्गदर्शन की खोज कर सकते हैं।
शिष्य: क्या दिव्य शरीर हमारी साधना का मार्गदर्शन कर सकते हैं और हमारी रक्षा कर सकते हैं?
गुरुजी: जब कोई अभ्यासी संकट में पड़ने वाला होता है, तो मेरे दिव्य शरीर इन चीजों को हटा देंगे और उन्हें होने से रोकेंगे, और वे आपको संकेत भी देंगे। जब आप [जो संकेत आपको बताने का प्रयत्न कर रहे हैं] उनको समझ नहीं पाते हैं, लेकिन आप एक दृढ़ अभ्यासी हैं, तो [मेरे दिव्य शरीरों में से एक] आपको कुछ बताने के लिए आपके सामने प्रकट हो सकता है या शायद आपको अपनी उपस्थिति अनुभव करवा सकता है। क्योंकि हो सकता है कि आपकी साधना पर्याप्त उच्च स्तर तक न पहुँची हो, हो सकता है कि वह आपको अपने दर्शन न करा सके, लेकिन वह आपको अपनी उपस्थिति अनुभव करने देगा। अधिकतर जब आप सो रहे होते हैं तो वह आपको उसे देखने देगा। इस प्रकार यह ऐसा होगा जैसे आप सपना देख रहे हैं, और आपको यह तय करने के लिए अपनी आध्यात्मिक समझ का उपयोग करना होगा कि आप जो देख रहे हैं वह वास्तविक है या नहीं, इसलिए अधिकतर जब आप उसे देख पाएंगे तो वह आपके सपनों में होगा। यदि आपकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बहुत शक्तिशाली है, तो आप ध्यान करते समय उसे देख सकते हैं। लेकिन यदि आप हमेशा मुझे देखना चाहते हैं, तो यह भी एक प्रकार का पीछा करना और मोहभाव है, इसलिए आपको मुझे देखने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जब आप इसके बारे में सोचना बंद कर देंगे, जब तक आप आध्यात्मिक प्रगति करते रहेंगे, आप निश्चित रूप से भविष्य में [मुझे] देख पाएंगे।
शिष्य: गुरुजी, यद्यपि आप मेरी रक्षा कर रहे हैं, लेकिन मुझ पर बड़ी कर्म बाधाएँ हैं, तो आप मेरी रक्षा कैसे कर पा रहे हैं?
गुरुजी: यह भी बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। क्योंकि आज के समाज में लोगों के कर्म तेजी से जमा हो रहे हैं, उनके कर्म अब बहुत अधिक हो गए हैं। ऐसा नहीं है कि केवल मनुष्यों में ही इतनी बड़ी मात्रा में कर्म होते हैं; क्योंकि मनुष्य पुनर्जन्म ले सकते हैं, वे उच्च और निम्न आयामों में पशुओं, पदार्थों, पौधों और जीवों में पुनर्जन्म ले सकते हैं। क्योंकि पुनर्जन्म के छह मार्ग हैं, एक व्यक्ति उनमें से किसी में भी पुनर्जन्म ले सकता है। और लोग अपने सदगुण और कर्म साथ लेकर आते हैं। आज के लोगों में सद्गुण की मात्रा कम और कर्म की मात्रा अधिक है। तो ऐसा लगता है मानो केवल मनुष्यों में ही कर्म नहीं हैं; कंक्रीट और मिट्टी में भी कर्म होते हैं। यह ज्ञात है कि अतीत में, यदि चीन में किसी किसान का हाथ खेत में काम करते समय कट जाता था, तो वह थोड़ी सी मिट्टी उठाकर घाव पर लगा देता था और घाव ठीक हो जाता था। घाव पर थोड़ी-सी मिट्टी छिड़कने से ही घाव ठीक हो जाता था। आजकल, क्या आप मिट्टी को छूने का साहस करेंगे [यदि आपको कोई चोट लगी हो]? यदि आपने इसे नहीं छुआ तो भी आपको टिटनेस हो सकता है! कर्म हर स्थान पर है। पदार्थों और पौधों पर कर्म है, और पशुओं और मनुष्यों पर हर स्थान पर कर्म है, इसलिए उच्च-स्तरीय आयामों से देखा जाए तो पूरे संसार में काली लहरें चल रही हैं। महामारी क्यों होती है? गंभीर महामारियाँ बस वे काली लहरें हैं, जो भिन्न-भिन्न स्थानों पर घूमने वाले कर्मों के उच्च-घनत्व वाले समूह हैं। वे जहां भी जाते हैं वहां महामारी फैल जाती है। अब, जब आज की मानवजाति का कर्म इतना विशाल है, तो क्या किया जा सकता है? आपको पता होना चाहिए कि यदि आप साधना करना चाहते हैं, तो यह वैसा ही है जैसा मैंने अभी उल्लेख किया है: यदि आप पर दूसरों की कुछ हत्याओं का ऋण है और आपको साधना शुरू करने से पहले उन्हें चुकाने तक प्रतीक्षा करनी पड़े, [तब तक] अवसर जा चुका होगा, और आपको मुझसे मिलने का अवसर नहीं मिलेगा।
तो इसके बारे में क्या किया जाना चाहिए? इस ब्रह्मांड में मनुष्य के अस्तित्व का उद्देश्य मानव बने रहना नहीं है; यह साधना के माध्यम से उस स्थान पर लौटना है जहां आपका वास्तव में सृजन किया गया था। कुछ लोग कहते हैं, "मैं मानव संसार में हूं और मैं सांसारिक भावनाओं को नहीं छोड़ सकता। यदि मैं साधना करता हूँ, तो मेरी पत्नी, बच्चों, माता-पिता और भाई-बहनों का क्या होगा? [भावनाओं के बिना] मेरा जीवन व्यर्थ होगा। यह आपके मानवीय दृष्टिकोण से आपकी समझ है; आप अपने वर्तमान शुरुआती बिंदु से चीजों के बारे में सोच रहे हैं। जब आप एक नए शुरुआती बिंदु पर पहुंचते हैं, एक उच्च आध्यात्मिक स्तर पर पहुँचने के बाद, आप एक भिन्न स्तर पर होंगे और आप इस प्रकार नहीं सोचेंगे। लेकिन मैं आपको एक सिद्धांत याद करवाना चाहता हूं: आपके सच्चे संबंधी कौन हैं? मैं यहां आपके पारिवारिक संबंधों में हस्तक्षेप करने का प्रयत्न नहीं कर रहा हूं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई व्यक्ति पुनर्जन्म के छह मार्गों से गुजरता है, तो आप इस जीवन में एक मनुष्य हो सकते हैं, और अगले जीवन में आप एक पशु या एक पौधा हो सकते हैं, और जन्म जन्मान्तर आपके कितने माता-पिता, पत्नियाँ, बच्चे, और भाई-बहन हुए होंगे? आपके अस्तित्व की लंबी अवधि के दौरान उनकी अनगिनत संख्या रही होगी। कुछ मनुष्य हुए होंगे और कुछ नहीं। उनमें से आपके वास्तविक परिवार के सदस्य कौन हैं? मनुष्य बहुत गहरे भ्रम में है! आपके सच्चे माता-पिता उस स्थान पर हैं जहाँ ब्रह्मांड में आपका अस्तित्व उत्पन्न हुआ था; केवल वहीं आप उन्हें मिल सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्राणियों की उत्पत्ति दो प्रकार की होती है: एक तो विशाल पदार्थों की गति से उत्पन्न प्राणी; दूसरा तब होता है जब ब्रह्मांड में पदार्थों की गति से बना एक मूर्त जीवन एक मानव जीव के गर्भवती होने जैसी स्थिति में प्रवेश करता है, और जीवन का निर्माण करता है। इस [दूसरे] प्रकार के जीव के माता-पिता होते हैं। तो आपके सच्चे माता-पिता अभी आपको देख रहे हैं और आपके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, लेकिन आप वापस नहीं लौटते हैं और यहीं भ्रमित होकर रहते हैं, यह सोचकर कि यहां के लोग आपके परिवार के सदस्य हैं।
मनुष्य के अस्तित्व का उद्देश्य केवल मनुष्य बने रहना नहीं है; यह उसके वास्तविक स्वरूप में लौटना है। यदि कोई व्यक्ति साधना के माध्यम से बुद्ध बनने की इच्छा रखता है, भले ही उसके पास साधना करने का पूर्व-व्यवस्थित अवसर न हो, तो वह भविष्य में साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का अवसर पाने के लिए स्वयं को तैयार कर सकता है। मैं चीजों को इस प्रकार क्यों समझा रहा हूँ? ऐसा इसलिए है क्योंकि उसकी इच्छा बहुत मूल्यवान है! पीड़ा और भ्रम से भरे वातावरण में रहते हुए भी, उनमें अभी भी वहीं वापस लौटने, जहां से वे आए थे, साधना के माध्यम से बुद्ध बनने और एक बेहतर मनुष्य बनने की आकांक्षा है। इसलिए यदि आप साधना करना चाहते हैं, तो [देवता] आपको हरी झंडी दिखाने का मार्ग ढूंढने में सहायता करेंगे। जब किसी व्यक्ति के मन में [साधना करने की इच्छा] का विचार आता है, तो यह विचार संसार की दसों दिशाओं को हिला देगा; वह सोने के समान चमकीला होगा, और हर कोई उसे देख सकेगा। यदि कोई व्यक्ति साधना करना चाहता है तो चीजें ऐसी ही होती हैं, लेकिन उस व्यक्ति के भारी मात्रा के कर्मों के बारे में क्या किया जा सकता है? हमें आपके कर्मों को हटाने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग करना होगा। आपके कर्मों को बिना शर्त नहीं हटाया जा सकता, न ही इन्हें पूरी तरह से हटाया जा सकता है। अन्य लोग मनुष्यों के कर्मों को हटाने में कितने सक्षम हैं? मैं इन बातों पर ध्यान नहीं देता, लेकिन बौद्ध धर्म में वे कहते हैं कि आप एक जीवनकाल में साधना पूरा नहीं कर सकते; इसे पूरा करने के लिए कई पुनर्जन्मों की आवश्यकता होती है। अर्थात आप एक बार में इतने सारे कर्म नहीं हटा सकते। लेकिन यदि आप सच्चे मन से आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, तो हम आपकी साधना पूरी करने और इसी जीवनकाल में फल पदवी प्राप्त करने का एक तरीका खोज लेंगे। यदि आप वास्तव में वृद्ध हैं, या यदि आपके पास जीने के लिए अधिक समय नहीं है और आपके पास अपनी साधना को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, तो जब आप इस जीवन के शेष भाग को जीने के पश्चात पुनर्जन्म लेंगे तो आपके पास फालुन होगा। जब आपका पुनर्जन्म होता है तो आपके पास यह अभी भी रहेगा जैसे-जैसे आप पूर्वनिर्धारित संबंधों के अगले क्रम पर आगे बढ़ते रहेंगे।
जब कोई व्यक्ति पवित्र आध्यात्मिक मार्ग की साधना करता है, तो मैं उस व्यक्ति के कर्मों को इस मात्रा तक हटा दूंगा कि वह आध्यात्मिक प्रगति कर सके और इसे सहन करने में सक्षम हो सके। इसको पूरी तरह से हटाना, या आपके लिए इसका कुछ भी भुगतान न करना स्वीकार्य नहीं है। तो फिर शेष भाग कैसे चुकाओगे? हम इसे आपके साधना के मार्ग में व्यवस्थित कर देंगे, और यह सब आपका अपना कर्म होगा। हम इसे उन स्थानों पर रखेंगे जहाँ आपको अपने साधना के विभिन्न चरणों में सुधार करने की आवश्यकता होगी, और यह आपके नैतिकगुण में सुधार करने में सहायता करने के लिए उपयोग किए जाने वाली परीक्षाओं और कठिनाइयों के रूप में कार्य करेगा। जब आपको एक नए आध्यात्मिक स्तर पर आगे बढ़ने की आवश्यकता होगी, तो आपको कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, या आप अपने शरीर में कहीं कष्ट अनुभव करेंगे। आपको इन परिस्थितियों की अपनी समझ बनाने की आवश्यकता होगी, और इन क्षणों में निर्णय लेना होगा कि क्या आप एक साधक के रूप में आचरण करना चाहते हैं, या क्या आप इन मुद्दों से एक साधारण व्यक्ति की तरह निपटेंगे, और क्या आप उन्हें अपने मन से छोड़ सकते हैं और उन्हें हल्के में ले सकते हैं। जब आप प्रत्येक परीक्षा और कठिनाई को सुधार करने के अवसर के रूप में लेंगे और चीजों को छोड़ देंगे, तब आप परीक्षा उत्तीर्ण करने में सक्षम होंगे। कुछ लोग सोचते हैं कि जब वे साधना करते हैं तो उन्हें बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वे कठिनाइयाँ वास्तव में उतनी बड़ी नहीं होती हैं। जितना अधिक आप सोचते हैं कि कठिनाई बड़ी है, वास्तव में यह उतनी ही बड़ी हो जाती है, और आप उतने ही छोटे हो जाते हैं। यदि आप इस पर ध्यान नहीं देते हैं और इसे मन से नहीं लेते हैं, यह सोचते हुए, "जब तक पहाड़ों पर हरियाली रहेगी, जलाने के लिए हमेशा लकड़ी रहेगी। जब गुरु और मार्ग मेरे साथ हैं, तो डरने की क्या बात है? मैं इसे भूल जाता हूँ!” जैसे ही आप चीजों को छोड़ देंगे, आप पाएंगे कि कठिनाई छोटी हो गई है और आप बड़े हो गए हैं, आप इसे सरलता से हटाने में सक्षम होंगे, और कठिनाई बस छोटी बन जाएगी—यह निश्चित है कि चीजें उसी प्रकार होंगी। जब कोई व्यक्ति किसी कठिनाई से उबर नहीं पाता है, तो वास्तव में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह अपने मोहभाव को छोड़ने में असमर्थ होता है या मार्ग में आस्था की कमी होती है। ऐसे अधिकांश लोगों की कोई न कोई इच्छा होती है जिसे वे छोड़ नहीं पाते हैं और यही कारण है कि वे उस पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं। व्यक्ति इस पर नियंत्रण नहीं कर पाता क्योंकि वह मानवीयता को छोड़ नहीं पाता।
शिष्य: मेरा एक प्रश्न है। मैं लंबे समय से फालुन दाफा का अभ्यास कर रहा हूं। मैंने गुरूजी की पुस्तकें पढ़ी हैं और गुरूजी के वीडियोटेप को बड़ी उत्सुकता से देखा है। लेकिन एक वाक्य है जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ: गुरूजी ने कहा, "आप अपने स्वयं के अभ्यास से फालुन उत्पन्न करने में असमर्थ हैं, और गुरूजी को व्यक्तिगत रूप से आप में फालुन स्थापित करना होगा।" इसलिए मैं चीन जाकर गुरूजी से मेरे लिए फालुन स्थापित करने के लिए कहने की सोच रहा था। यह एक प्रश्न है। दूसरा प्रश्न यह है: हम कैसे प्रमाणित कर सकते हैं कि हमारे पास वास्तव में फालुन है? ये मेरे दो प्रश्न हैं।
गुरुजी: बहुत से लोग एक मुद्दे के बारे में चिंता करते हैं: "हम यह अभ्यास सीखना चाहते हैं, लेकिन हमने आपकी कक्षा में भाग नहीं लिया है, न ही हमने आपको व्यक्तिगत रूप से देखा है। क्या हमें फालुन मिल सकता है?” कुछ लोग कुछ भी अनुभव नहीं कर पाते हैं [और सोचते हैं], "क्या गुरूजी हमारा ध्यान नहीं रख रहे हैं?" बहुत सारे लोगों के मन में ये प्रश्न होगा। वास्तव में, मैंने पुस्तक में लिखा है कि आपके पास फालुन होगा। क्योंकि मैं यहाँ सभी प्राणियों को बचाने के लिए आया हूँ, यदि मैं आपके प्रति उत्तरदायी नहीं होता, तो आपका इन [उच्च-स्तरीय] चीजों को पढ़ना आपके लिए संकट पैदा कर देता—इसलिए मुझे आपका ध्यान रखना होगा। यदि आप वास्तव में स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित कर रहे हैं और फिर भी मैं आपका ध्यान नहीं रख रहा हूँ, तो मैं वास्तव में लोगों को हानि पहुँचा रहा हूँ और उन्हें उनकी मृत्यु की ओर भेज रहा हूँ, और फिर मुझे उसका भुगतान करना पड़ेगा, इसलिए मैं उस प्रकार से काम नहीं कर सकता। क्योंकि मैं चीजें वैसे ही कर रहा हूं जैसा मैं हूं, इसलिए मुझे आपके प्रति उत्तरदायी होना होगा। अच्छे जन्मजात गुण वाले अनेक लोग हैं जिन्होंने देखा है कि इस पुस्तक का प्रत्येक शब्द एक फालुन है। क्योंकि आयाम एक-दूसरे से भिन्न होते हैं, जब [पुस्तक] को और भी गहरे आयाम से देखते हैं, तो प्रत्येक शब्द में मेरे दिव्य शरीर और बुद्ध की छवि है, और यहां तक कि प्रत्येक शब्द का प्रत्येक अक्षर एक बुद्ध है। इसके बारे में सोचें: केवल एक बुद्ध की शक्ति महान होती है। जब आप यह पुस्तक पढ़ते हैं तो आपके रोग ठीक क्यों हो जाते हैं? यदि आपकी दृष्टि कमजोर है, तो ऐसा क्यों है कि जब आप इस पुस्तक को पढ़ते हैं, तो जितना अधिक आप पढ़ते हैं, शब्द उतने ही बड़े होते जाते हैं और आपकी आँखें नहीं थकतीं? जब आप यह पुस्तक पढ़ते हैं तो चमत्कारी परिवर्तन क्यों होते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे शब्द मार्ग से बने हैं, और वे आपके लिए कुछ भी कर सकते हैं और आपके लिए फालुन स्थापित कर सकते हैं। मेरे पास आपकी देखभाल करने वाले दिव्य शरीर भी हैं, और वे इनमें से कोई भी काम कर सकते हैं, इसलिए आप ये चीजें प्राप्त करेंगे, भले ही आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से न मिलें।
जहां तक आपकी इंद्रियों की बात है, कुछ लोग संवेदनशील हो सकते हैं और पेट के निचले भाग में घुर्णन अनुभव कर सकते हैं। यह केवल एक ही स्थान पर नहीं घूमेगा; ऐसा पूरे शरीर में होगा। आज यहां बैठे हुए हममें से कुछ लोगों ने अनुचित बातें कही हैं; कृपया भविष्य में इस पर ध्यान दें। उन्होंने कहा है कि हमारा फालुन दाफा, अभ्यास के माध्यम से नौ फालुन उत्पन्न करता है। आपको पता होना चाहिए कि मैं वास्तव में आपके लिए केवल एक ही फालुन स्थापित करता हूं, और यह फालुन अतुलनीय रूप से शक्तिशाली है और स्वयं को अंतहीन रूप से विभाजित कर सकता है। आपके साधना के शुरुआती चरणों में, मैं आपके शरीर को व्यवस्थित करने के लिए आपके शरीर के बाहर विभिन्न स्थानों पर घूमने वाले कई सैकड़ों फालुन स्थापित करता हूं। कुछ लोग कहते हैं, "फालुन यहाँ, वहाँ घूम रहे हैं—वाह—वे मेरे पूरे शरीर में घूम रहे हैं।" ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें आपके शरीर को शुद्ध करने और आत्मसात करने की आवश्यकता है। मैं आपको व्यवस्थित करने के लिए अपने अभ्यास में उच्च शक्ति की विशेष विशेषताओं का उपयोग करता हूं, जिससे आप अनुभव करेंगे कि हर स्थान पर अनगिनत फालुन घूम रहे हैं। आपको लगेगा कि ये नौ हैं, इसलिए आप ऐसा कहते हैं। इसलिए मैं आपके शरीर को व्यवस्थित करने के लिए अनेक बाहरी-उपयोग के फालुन का उपयोग करूंगा। कुछ लोग संवेदनशील होते हैं और कुछ नहीं। जो संवेदनशील नहीं हैं उन्हें कुछ भी अनुभव नहीं होगा, और जो संवेदनशील हैं वे [उन फालुन] को अनुभव करने में सक्षम होंगे। लेकिन चाहे आप चीजों को अनुभव करने में सक्षम हैं या नहीं, यह सब शुरुआती चरणों में होता है। जो लोग चीजों को अनुभव कर सकते हैं, एक बार जब [फालुन] आपके शरीर के अनुकूल हो जाता है और उसका भाग बन जाता है, तो आप इसे अनुभव नहीं कर पाएंगे। आपका ह्रदय धड़क रहा है; क्या आप अनुभव करते हैं कि यह हमेशा धड़कता रहता है? जब आप इस पर अपना हाथ रखेंगे तब आपको अनुभव होता है। आपका पेट गड़गड़ा रहा है; क्या आप अनुभव कर सकते हैं? आपका रक्त प्रवाहित हो रहा है; क्या आप अनुभव कर सकते हैं? एक बार जब [फालुन] आपके शरीर का भाग बन जाता है, तो आपको कोई संवेदना नहीं होगी और आप इसे अनुभव नहीं कर पाएंगे। ऐसे लोग भी हैं जिन्हें [फालुन प्राप्त करने के] प्रारंभिक चरण में भी कोई संवेदना नहीं होती है। लोगों के एक बड़े भाग को शुरुआत में कोई संवेदना नहीं होगी, लेकिन साधना के बाद के चरणों में उन्हें कई भिन्न-भिन्न संवेदनाएँ होंगी। जब तक आप अभ्यास करते रहेंगे, मैं निश्चित रूप से आपकी देखभाल करूंगा।
सबसे स्पष्ट परिवर्तन यह है कि आपका शरीर शीघ्र ही शुद्ध हो जाएगा। मुख्यभूमि चीन में बहुत से लोग जानते हैं कि फालुन दाफा का अभ्यास करने से बहुत सारे चमत्कार होते हैं! जैसे ही लोग अभ्यास करते हैं, उनके रोग दूर हो जाते हैं। क्यों? बहुत से लोग अपने रोग ठीक कराने की मंशा के बिना आये हैं। उन्होंने अभ्यास किया क्योंकि उन्हें लगा कि दाफा अच्छा था! परिणामस्वरूप, उनके रोग ठीक हो गए। लेकिन अक्सर ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें अभ्यास से अच्छे परिणाम नहीं मिलते। परिणाम अच्छे क्यों नहीं होते हैं? वे सुनते हैं कि फालुन दाफा रोगों को ठीक कर सकता है और वे अपने रोगों को ठीक करने के लक्ष्य के साथ अभ्यास में आते हैं, इसलिए उनके रोगों को नहीं हटाया जा सकता है। चीजों को पाने का प्रयत्न किए बिना उन्हें स्वाभाविक रूप से प्राप्त करें। आपके रोग को ठीक करने की इच्छा एक प्रकार की मंशा है। मानव शरीर को कर्म का भुगतान करना होता है और रोगी होना होता है। आपका लक्ष्य [अभ्यास में सम्मिलित होने में] स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित करने का होना चाहिए, और आपको अपने रोगों को ठीक करने की इच्छा को हटाना होगा। जब तक आप अपने रोगों के ठीक होने के बारे में नहीं सोचते हैं, इन [रोग से संबंधित] विषयों पर ध्यान नहीं देते हैं, और केवल व्यायाम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, आपको सब कुछ मिलेगा। परन्तु यदि आप अपने रोग ठीक कराने के लिये आते हैं, तो आपको कुछ नहीं मिलेगा। अतीत में, हम हमेशा मानसिक रूप से रोगी लोगों और गंभीर रोगों वाले लोगों को कक्षाओं में प्रवेश करने से मना कर देते थे; आप गंभीर रूप से रोगी व्यक्ति को अपने रोग के बारे में सोचना बंद करने के लिए चाहे कितना भी कहें, वह ऐसा नहीं कर सकता। उसका जीवन लगभग समाप्त हो चुका है; क्या वह अपने रोग के बारे में सोचना बंद कर सकता है? वह अपने रोग के कारण रात को सो नहीं पाता है, इसलिए चाहे आप उसे इसके बारे में सोचना बंद करने के लिए मनाने का कितना भी प्रयत्न करें, यह काम नहीं करेगा। कभी-कभी वह कहेगा कि उसने इसे छोड़ दिया लेकिन उसका मन अभी भी इसके बारे में दृढ़ता से सोच रहा है, इसलिए हम उसके लिए कुछ नहीं कर सकते। हम कुछ क्यों नहीं कर सकते? इसका कारण यह है कि जब लोगों को बचाने के लिए एक पवित्र आध्यात्मिक मार्ग प्रसारित किया जाता है तो बहुत कठोर आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है; अन्यथा, हम एक दुष्ट प्रथा प्रसारित कर रहे होंगे। आपको अपनी उस मानसिकता को बदलना होगा [अपने रोग को ठीक करने के लिए दाफा का उपयोग करने की], और तब हम वास्तव में [आपके रोग को ठीक कर सकते हैं]। यदि आपने वह मानसिकता नहीं बदली तो हम आपके लिए कुछ नहीं कर पाएंगे। यदि आप उस मानसिकता को बदल देते हैं, तो आप एक साधारण व्यक्ति नहीं रहेंगे, लेकिन यदि आप इसे नहीं बदल सकते हैं, तो आप एक साधारण व्यक्ति बने रहेंगे—इस प्रकार दोनों पक्षों का सीमांकन होता है। इस प्रकार, एकमात्र तरीका यह है कि चीजों को स्वाभाविक रूप से घटित होने दिया जाए। कुछ लोग बिना किसी विशेष लक्ष्य के आते हैं; उन्हें लगता है कि अभ्यास बहुत अच्छा है और वे इसका अभ्यास करने का प्रयास करना चाहते हैं। वे दूसरों को व्यायाम करते हुए देखते हैं और अप्रत्याशित रूप से इसका अभ्यास करने का निर्णय लेते हैं, और ये लोग वास्तव में अपने सभी रोग ठीक कर लेते हैं। निश्चित ही, हर किसी को एक ही बार में इतने ऊंचे आदर्श को पूरा करने की हमें आवश्यकता नहीं है, क्योंकि समझने की एक प्रक्रिया होती है, जो ठीक है। लेकिन कुछ प्राप्त करने के लक्ष्य से अभ्यास न करें।
शिष्य: क्षमा कीजिये, लेकिन मुझे तीन प्रश्न पूछने हैं। पहला प्रश्न यह है कि मैंने ज़ुआन फालुन में पढ़ा है कि चीमन मार्ग में, वे आपसे उस उच्च शक्ति को हटाते नहीं हैं जिसे आप विकसित करते हैं, और कुछ मार्गों में, आपकी उच्च शक्ति का दस में से आठ भाग हटा लिया जाएगा और उसे आपके दिव्यलोक को समृद्ध करने के लिए उपयोग किया जाएगा। क्या हमारे दाफा में भी उच्च शक्ति को हटा दिया जाता है?
गुरुजी: क्योंकि एक व्यक्ति मानव जगत में अपनी आध्यात्मिक यात्रा से गुजरता है, उसे अपने अभ्यास के माध्यम से उन सभी चीजों का उत्पादन करना होगा जिनकी उसे भविष्य में बुद्ध के रूप में आवश्यकता होगी। यह ज्ञात है कि बुद्ध जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं, उनके पास विस्तृत दिव्य शक्तियाँ होती हैं, और उनके पास अतुलनीय पुण्य होता है। ये चीजें कहां से आती हैं? वे जितना कष्ट सहते हैं, उतना ही उन्हें पुण्य भी मिलता है। इस प्रकार, साधना के माध्यम से सफलतापूर्वक बुद्ध बनने के लिए उन्हें अपनी उच्च शक्ति को अत्यधिक मात्रा में बढ़ाने की आवश्यकता होती है। अतीत में, इन चीजों पर केवल धार्मिक समूहों के लोगों के बीच चर्चा की जाती थी जिन्होंने बहुत उच्च आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर लिया था; ये बातें जो अभ्यासी नहीं हैं उनको नहीं बताई गईं। फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए एक अभ्यासकर्ता को वास्तव में एक बहुत उच्च स्तर तक पहुंचने की आवश्यकता होती है। क्यों? यदि आपके पास केवल उच्च शक्ति है, तो जब आप वहां जाएंगे तो आपको वह कुछ भी नहीं मिलेगा जो आप चाहते हैं और आपको कोई पुण्य नहीं मिलेगा। ऐसा नहीं चलेगा। आपको अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान इन चीजों का उत्पादन करने की आवश्यकता है। अपनी संपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा के दौरान आप जो कष्ट सहते हैं, वह आपका महान गुण है। जब आप पीड़ित होते हैं या जब आपके नैतिकगुण में सुधार होता है, तो आपकी उच्च शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए जब आप भविष्य में एक अत्यंत उच्च स्तर पर पहुँचेंगे, तो आपको अपनी उच्च शक्ति का दस में से आठ भाग हटाना होगा और इसका उपयोग आपके दिव्य स्तर के साथ आने वाले असीमित पुण्य को प्राप्त करने के लिए करना होगा। जब आप अपने स्वयं के दिव्यलोक को समृद्ध करते हैं, तो वह सब उन से आता है जो आप आध्यात्मिक रूप से विकसित होने पर पीड़ित होते हुए उत्पन्न करते हैं। यहां तक कि आपके द्वारा साधना के माध्यम से बनाए गए नैतिकगुण मानक को भी तोड़ दिया जाता है और दिव्यलोक को समृद्ध करने के लिए उपयोग किया जाता है; ये चीजें वास्तव में आपके पुण्य हैं और आपके कष्टों के सहने से आती हैं। शेष दस में से दो भाग आपका दिव्य स्तर होगा। यदि आप बोधिसत्व के मानक तक पहुँचते हैं, तो आप बोधिसत्व होंगे; यदि आप बुद्ध के मानक तक पहुँचते हैं, तो आप बुद्ध होंगे; यदि आप अर्हत के मानक तक पहुँचते हैं, तो आप अर्हत होंगे; यदि आप और भी ऊंचे लोकों तक पहुँचते हैं, तो आप और भी महान बुद्ध होंगे। दूसरी ओर, चीमन मार्ग अधिक जटिल है, लेकिन जो लोग इसका अभ्यास करते हैं उन्हें सद्गुण और पुण्य को [अपने दिव्यलोक में] पूर्ण रूप से समृद्ध करने के लिए अपनी उच्च शक्ति का उपयोग करना होता है।
शिष्य: मैं अपना दूसरा प्रश्न पूछना चाहता हूँ। मेरा नैतिकगुण उतना अच्छा नहीं है, इसलिए जब दूसरे मुझे कोसते हैं या मेरा लाभ उठाते हैं तो मुझे अपने भीतर बहुत क्रोध अनुभव होता है। गुरूजी जो कहते हैं, उसके अनुसार, जब दूसरे आपको मारते हैं, आपको कोसते हैं, या आपका लाभ उठाते हैं, तो वे आपको सद्गुण देते हैं, इसलिए आप भीतर ही भीतर व्याकुल नहीं हो सकते। यदि मैं क्रोधित होता हूँ तो क्या मैं अपनी उच्च शक्ति की मात्रा नहीं बढ़ा पाउँगा?
गुरुजी: एक अभ्यासी होते हुए, जब आप जो अभ्यासी नहीं हैं उन पर क्रोधित होते हैं तो आप भी उनके जैसे ही हो जाते हैं। जब आप क्रोधित होते हैं तो आप सद्गुणों को दूर धकेल देते हैं; बात केवल इतनी है कि आप इसे वापस उसे नहीं लौटाते। आप इसे इसलिए वापस नहीं लौटाते क्योंकि आपने वास्तव में कुछ खोया है, लेकिन यदि आप संघर्ष को उसी तरह से संभालते हैं जैसे दूसरा पक्ष संभालता है, तो आप इसे वापस उसको लौटा देते हैं। कुछ लोग सोचते हैं, "इस व्यक्ति ने वास्तव में मेरा लाभ उठाया और मुझसे बहुत सारा धन छीन लिया, फिर भी मुझे प्रसन्नता से उसे धन्यवाद देना होगा। यदि कोई मुझे पीटता है, तब भी मुझे उस व्यक्ति को मुझे कोसने देना होगा। न केवल मैं बदले में नहीं कोस सकता, बल्कि मुझे उसे धन्यवाद भी देना होगा। लोग कहेंगे, "क्या यह आह क्यू जैसा होना नहीं है? क्या यह बहुत निर्बल और कायरतापूर्ण नहीं है?” नहीं, ऐसा नहीं है। इसके बारे में सोचें: वास्तव में अच्छे नैतिकगुण के बिना आप ऐसा नहीं कर पाएंगे। यह एक अभ्यासी की दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन है; क्या कोई जो अभ्यासी नहीं है वह ऐसा कर सकता है? दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना आप इसे नहीं कर पाएंगे, और यह निर्बल और कायरतापूर्ण होना नहीं है। निश्चित ही आपको प्रसन्न होना चाहिए। इसके बारे में सोचें: यदि व्यक्ति ने आपका लाभ नहीं उठाया होता, तो आपको पुण्य का एक अतिरिक्त भाग नहीं मिलेगा, और जब आपको पुण्य का एक अतिरिक्त भाग मिलता है, तो साधना के माध्यम से आप इसे उच्च शक्ति के एक भाग में परिवर्तित कर सकते हैं। जब वह व्यक्ति आपका लाभ उठाता है, तो आपका कर्म हट जाता हैं! क्या आप कर्म के साथ बुद्ध बन सकते हैं? आपको यह सब हटाने की आवश्यकता है। जब कोई आपका लाभ उठाता है तो वह आपको सद्गुण भी देता है और कर्म भी हटाता है। आप उसके स्तर तक नहीं गिरते हैं, आप शांत रहते हैं और आपके नैतिकगुण स्तर में सुधार होता है। आपके सिर के ऊपर एक नापने वाली छड़ी होती है जो नैतिकगुण को नापती है, और नापने वाली छड़ी जितनी ऊंची होगी, आपकी उच्च शक्ति की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। आपके नैतिकगुण में सुधार होता है, आपकी उच्च शक्ति की मात्रा बढ़ जाती है, आपका कर्म सद्गुण में परिवर्तित हो जाता है, और जिस व्यक्ति ने आपका लाभ उठाया है उसे भी आपको सद्गुण देना पड़ता है, इसलिए आप एक ही बार में चार चीजें प्राप्त करते हैं। क्या आपको उसे धन्यवाद नहीं देना चाहिए? आपको सचमुच उसका मन से धन्यवाद करना चाहिए। अभी मैंने उल्लेख किया है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है इसका निर्धारण करने के लिए समाज के सिद्धांत [उन्हें जैसा होना चाहिए] इसके विपरीत हैं। एक बार जब आप अस्तित्व के उच्च स्तर पर पहुंच जाएंगे तो आप पाएंगे कि जिन चीजों से लोगों को मोहभाव है वे सभी बुरी हैं।
शिष्य: मेरा तीसरा प्रश्न पुस्तक में वर्णित वध के विषय में है। वध करना बहुत बड़ा पाप है तो यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या कर ले तो क्या उसे पाप माना जाएगा?
गुरुजी: यह पाप माना जाता है। आज का समाज बुरा है और हर प्रकार की अजीब चीजें प्रकट हो गई हैं। लोग "इच्छामृत्यु" का समर्थन करते हैं, जिसमें एक व्यक्ति को घातक सुई लगायी जाती है। लेकिन लोग किसी को घातक सुई क्यों लगायेंगे? ऐसा इसलिए है क्योंकि दूसरे लोग सोचते हैं कि वह पीड़ा में है। लेकिन हम सोचते हैं कि उसका कष्ट उसके कर्मों को नष्ट कर रहा है, इसलिए जब वह अपने अगले जीवन में पुनर्जन्म लेगा, तो उसका शरीर हल्का और कर्मों से मुक्त होगा, और उसके पास अधिक सुख और अन्य चीजें होंगी जो उसकी प्रतीक्षा कर रही होंगी। निस्संदेह, जब वह कष्ट के माध्यम से कर्म को हटाएगा तो उसे बहुत कठिनाई अनुभव होगी, लेकिन जब आप उसे उसके कर्म को हटाने नहीं देंगे और आप उसे मार देंगे, तो क्या वह वध नहीं है? वह कर्म के साथ [संसार से] चला जाता है, जिसका भुगतान उसे अगले जन्म में करना होगा। आप कौन सा तरीका उचित कहेंगे? जब आप आत्महत्या करते हैं तो एक और पाप होता है। मानव जीवन पूर्व-व्यवस्थित होता है, और इसलिए आपने उच्च प्राणियों के चीजों के समग्र अनुक्रम को हानि पहुंचायी होगी, जिसमें समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करते समय आपके द्वारा बनाए गए पारस्परिक संबंध सम्मिलित हैं। यदि आपका देहांत हो जाता है, तो क्या यह चीजों के समग्र अनुक्रम के लिए उच्चतर प्राणियों की व्यवस्था को गड़बड़ा नहीं देगा? यदि आप उन चीजों में गड़बड़ी करते हैं, तो वे आपको ऐसे ही नहीं छोड़ देंगे, इसलिए आत्महत्या पाप है।
शिष्य: एक बुद्ध जो चाहे वह कर सकता है, लेकिन क्या बुद्ध भावनाओं और इच्छाओं से मुक्त नहीं हैं? क्या वे अब भी चीजों का आनंद ले पाते हैं?
गुरुजी: कुछ लोग कहते हैं कि बुद्ध भोजन नहीं करते और उनके पास मानव शरीर नहीं होता। ऐसा प्रतीत होता है कि साधारण जनता में बुद्धों के बारे में इसी प्रकार की अनुचित धारणा है। लेकिन मैं यह बताना चाहता हूं कि आध्यात्मिक प्रकृति के तथ्यों को सांसारिक सोच के तरीकों का उपयोग करके ठीक से नहीं समझा जा सकता है। बुद्ध के पास मानव शरीर न होने के संदर्भ में, यह है कि उनके पास आणविक स्तर के पदार्थों से बना मलीन मानव शरीर नहीं है। सतह पर उनके सबसे स्थूल कण परमाणु हैं, और उनके सबसे सूक्ष्म कण ब्रह्मांड के अधिक सूक्ष्म पदार्थ हैं। उनके पदार्थ जितने अधिक सूक्ष्म होते हैं, उन पदार्थों में उतनी ही अधिक उज्ज्वल शक्ति होती है, क्योंकि बुद्ध का प्रकाश हर चीज को प्रकाशित करता है। कुछ लोग कहते हैं कि बुद्ध भोजन नहीं करते। वे मानव भोजन नहीं खाते; वे अपने आयामों के पदार्थ खाते हैं। उन पदार्थों को "भोजन" नहीं कहा जाता है। इसलिए यदि आप बुद्ध के स्तर के शब्दों के अर्थ को नहीं समझते हैं, तो आप उन्हें समझ नहीं पाएंगे। मनुष्य हमेशा मानवीय मानसिकता से चीजों को समझता है।
कुछ जो अभ्यासी नहीं हैं कहते हैं, "बुद्ध होना पूरी तरह से व्यर्थ होगा। आपके पास कुछ भी नहीं होगा और आप वहीं एक लट्ठे की तरह बैठे रहोगे।” आपको पता होना चाहिए कि एक बुद्ध अपने दिव्यलोक का राजा है। ऐसे व्यक्ति के लिए हम जो शीर्षक "तथागत" का उपयोग करते हैं, वह उसके नैतिकगुण मानक के स्तर की अभिव्यक्ति पर आधारित होता है। वास्तव में, वे उस दिव्यलोक के राजा हैं। वे उस दिव्यलोक में अनगिनत प्राणियों का प्रबंधन करते हैं। निश्चित ही, वह साधारण लोगों की तरह दूसरों को बलपूर्वक प्रबंधित करने के लिए कानूनों का उपयोग नहीं करते हैं; वह पूरी तरह से दया और करुणा से प्रबंधन करते हैं। वहां हर कोई उस स्तर के मानक को पूरा करता है, जो अतुलनीय रूप से अद्भुत है। उनमें सांसारिक भावनाएँ नहीं होती हैं। इसके स्थान पर उनके पास करुणा (सी-बेई), एक अधिक ऊंचा आध्यात्मिक स्तर और ऐसी चीजें हैं जो अधिक शुद्ध हैं, और उनके पास ऐसी कोई भी चीज नहीं है जो साधारण लोगों के पास है। तथागत के पास अधिक अद्भुत चीजें होती हैं जो उच्च आध्यात्मिक स्तरों के अनुसार होती हैं। यह एक उच्चतर प्राणी की अवस्था है, और ऐसे प्राणी भी हैं जो उनसे भी कहीं अधिक ऊंचे हैं। यदि सब कुछ निरर्थक होता तो बेहतर होता कि मरकर सब कुछ समाप्त कर दिया जाता। [बुद्धत्व की स्थिति] अधिक अद्भुत है, और केवल जब आप उस दिव्यलोक में पहुंचेंगे तो आपको पता चलेगा कि सुख क्या है। [बुद्धत्व की स्थिति] बहुत अद्भुत होती है, लेकिन यदि आप इन सांसारिक चीजों को नहीं छोड़ेंगे और उन्हें नहीं हटायेंगे तो आप उसे प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
शिष्य: चीमन मार्ग के अभ्यासी अपनी उच्च शक्ति का [एक भाग] क्यों नहीं हटाते हैं?
गुरुजी: किसने कहा कि चीमन मार्ग में ऐसा नहीं किया जाता है? सभी स्थितियों में एक व्यक्ति को अपनी दिव्य स्थिति को समृद्ध करने के लिए अपनी साधना से विकसित की गई उच्च शक्ति का उपयोग करना पड़ता है। चीमन आध्यात्मिक मार्ग के एक से अधिक प्रकार हैं, जो बहुत विविध और अनोखे हैं। कुछ परिस्थितियों में, एक चीमन अभ्यासी अपनी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान ही स्वयं में सुधार करने के साथ-साथ जो आवश्यक है उसे पूरा करता रहता है, लेकिन उसे जो प्रयास करने पड़ते हैं वह [चीमन मार्ग नहीं अपनाने वाले अभ्यासियों से] भिन्न नहीं होते हैं। उसकी उच्च शक्ति का केवल एक भाग यहां [उसके सिर के ऊपर एक स्तंभ पर] बनता है, इसलिए इसे [अंत में] हटाया नहीं जाता है। जिन लोगों का शक्ति स्तंभ अंततः तोड़ा जाएगा उनकी उच्च शक्ति तेजी से बढ़ती है। जिन लोगों की शक्ति हटायी नहीं जाती है, वे अपने आध्यात्मिक विकास के दौरान अपने पुण्यों और सद्गुणों को समृद्ध करते रहते हैं, और उनकी उच्च शक्ति धीमी गति से बढ़ती है। लेकिन उन्हें जो प्रयास करने होते है वे उतने ही होते है।
शिष्य: मेरे दो प्रश्न हैं। पहला प्रश्न यह है कि पहले दिन जब मैं ध्यान में बैठा, तो मैंने अपने बाईं ओर गुरूजी के दिव्य शरीरों में से एक को देखा, लेकिन उन्होंने काले कपड़े पहने थे और मुस्कुरा रहे थे। बाद में, मैंने ऐसे लेख पढ़े जिनमें इस बारे में बात की गई थी। क्योंकि मैंने इन [गुरूजी] को पहली बार देखा था, इसलिए मैं इस बारे में आपसे मार्गदर्शन चाहूँगा। [मैंने जो रंग उन्हें पहने हुए देखे] मैंने जो वीडियो में देखे उससे भिन्न थे।
गुरुजी: ऐसा इसलिए था क्योंकि आयामों के बीच विरोधाभास हैं। उदाहरण के लिए, दाओवादियों को कौन सा रंग पसंद है? बैंगनी, इसलिए वे कहते हैं कि बैंगनी ची पूर्व से आती है, और वे सोचते हैं कि बैंगनी सबसे उच्चतम रंग है। बौद्ध मार्ग को पीला, सुनहरा-पीला रंग पसंद है, लेकिन [ये दो रंग] वास्तव में एक ही रंग हैं। इस आयाम में यह बैंगनी है, और दूसरे आयाम में सुनहरा-पीला है। इसलिए जब हम अपने आयाम में काली चीजें देखते हैं, तो वे अन्य आयामों में सफेद होती हैं; जब आप ऐसी चीजें देखते हो जो यहां सफेद हैं, तो वे वहां काली होती हैं; यहां जो चीजें हरी हैं वे अन्य आयामों में लाल हैं। सभी रंग विभिन्न आयामों में भिन्न दिखाई देते हैं, इसलिए जब आप जिस अवस्था में होते हैं तो आपको उस प्रकार का रंग दिखाई देगा। सभी को इस पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी असुर वास्तव में लोगों के साथ हस्तक्षेप करने में कुशल होते हैं। अधिकांश समय मेरे दिव्य शरीर बौद्ध कषाय पहनते हैं, और उनके घुंघराले बाल होते हैं जो बहुत नीले, चमकीले नीले होते हैं। यह केवल बहुत ही अनोखी स्थितियों में होता है कि आप मेरे दिव्य शरीरों को वही धारण किये हुए देखते हैं जैसे मैं अभी हूँ—अत्यंत अनोखी स्थितियाँ, जो बहुत दुर्लभ हैं। इसलिए आपको इनमें भेद करने में सक्षम होना चाहिए। यदि यह मैं हूं, तो आप इसे अनुभव कर पाएंगे, और आपका मन शांत हो जाएगा; यदि यह मैं नहीं हूं तो आपके मन में एक संदेह होगा।
शिष्य: मैं दो महीनों से इस अभ्यास का अध्ययन कर रहा हूं, और इन दो महीनों में, दशकों से मेरे जो रोग थे, वे सब हट गए। ऐसा इसलिए है क्योंकि शिक्षाओं का अध्ययन करने का मेरा उद्देश्य अपनी कर्म बाधाओं को हटाना है। इन दो महीनों में, मुझे आश्चर्यजनक रूप से अच्छा अनुभव हुआ है, और मैंने थोड़ी सी भी दवा नहीं ली है। यह एक बात है। दूसरी बात यह है कि मैं गुरूजी से पूछना चाहूंगा कि ध्यान करते समय मैंने जो देखा वह फालुन था या नहीं। मैंने देखा कि कोई चीज निरंतर चक्राकार में घूम रही है। परन्तु उसका धरती के समान मिट्टी जैसा रंग था। इसका पूरा भाग घूम रहा था और यह बिल्कुल अद्भुत था, लेकिन मैं इसकी आंतरिक संरचना नहीं देख सका।
गुरुजी: हालाँकि फालुन प्रतीक के रंग नहीं बदलते हैं, लेकिन इसका पृष्ठभूमि का रंग बदलता रहता है। लाल, नारंगी, पीला, हरा, हरा-नीला, नीला, बैंगनी, रंगीन और रंगहीन—यह रंग बदलते रहते हैं, इसलिए यह आवश्यक नहीं कि फालुन उन रंगों में प्रकट हो [जिन्हें आप यहां देखते हैं]। इसके अतिरिक्त, जब फालुन आपके शरीर को व्यवस्थित करता है तो यह बहुत तेजी से घूमता है और यह पंखे के चक्र या बवंडर के जैसे दिखता है। कभी-कभी यह धीरे-धीरे घूमता है और आप इसकी आंतरिक संरचना को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। जब यह तेज़ी से घूमता है तो संरचना को देखना कठिन होता है। जब आप अभ्यास शुरू करते हैं तो यह आपके शरीर को व्यवस्थित करता है, यह जानता है कि किस गति से और कैसे घूमना है, इसलिए [आप जो भी देखते हैं] वह कोई समस्या नहीं है और यह सब स्वाभाविक है।
शिष्य: क्या हम महान कमल मुद्रा कर सकते हैं?
गुरुजी: महान कमल मुद्रा एक निर्धारित मुद्रा है। यह महान कमल मुद्रा है। (गुरूजी करके दिखाते हैं।) जब हम व्यायाम करते हैं तो हमें ऐसा करने की आवश्यकता नहीं होती है। आप ऐसा तब कर सकते हैं जब आप गुरु से बुद्ध की मूर्ति या दाओवादी लाओ ज या दिव्यलोक के मूल गुरु की मूर्ति, जो आपके घर पर है, की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए कहते हैं। यह सबसे अच्छा होगा यदि आप मेरी पुस्तक हाथों में लें—क्या इसमें मेरी तस्वीर नहीं है?—और जैसे कि आप मुझसे सीधे बात कर रहे हों, यह कहें, " गुरूजी, कृपया मेरे लिए प्राण प्रतिष्ठा करें।" महान कमल मुद्रा करते समय इस पुस्तक को हाथों में लें, और प्राण प्रतिष्ठा तीन सेकंड में हो जाएगी। मेरे दिव्य शरीर उसी प्रकार के भगवान के दिव्य शरीर को उस बुद्ध प्रतिमा में रहने के लिए आमंत्रित करेंगे। यदि आप मुझसे बुद्ध अमिताभ की एक प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करवाते हैं, तो मेरा दिव्य शरीर बुद्ध अमिताभ के दिव्य शरीर को उस बुद्ध प्रतिमा पर आमंत्रित करेगा—यही सच्चा प्रतिष्ठापन है। आज के धर्मों के वे भिक्षु जो वास्तव में आध्यात्मिक रूप से स्वयं में सुधार करने का प्रयत्न नहीं करते हैं और ऐसे कई पाखंडी चीगोंग गुरु प्रतिष्ठापन नहीं कर सकते हैं। उनके पास बुद्ध को आमंत्रित करने का आध्यात्मिक अधिकार नहीं है। यह वह बुद्ध है जिसके बारे में हम बात कर रहे हैं; वह ऐसे ही किसी के लिए भी नहीं आ जायेंगे। निःसंदेह, कुछ लोग बुद्ध प्रतिमा पर प्रकाश प्रतिबिंबित करने के लिए दर्पण पकड़ते हैं और कहते हैं कि उन्होंने प्रतिष्ठापन कर दिया है, और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बुद्ध प्रतिमा के नेत्रों पर सिनेबार स्याही से तब तक पेंट करते हैं जब तक कि उनके नेत्र पूरी तरह से लाल न हो जाएं और यह भी दावा करते हैं कि उन्होनें प्रतिष्ठापन कर दिया है। ऐसी सभी क्रियाएं बस चीजों को गड़बड़ा देती हैं!
शिष्य: अभी (गुरूजी) ने कहा कि मनुष्य विभिन्न दिव्यलोकों और स्तरों से नीचे गिरे हैं। फिर स्वाभाविक होगा कि सैद्धांतिक रूप से उन्हें उस दिव्यलोक में लौट जाना चाहिए जहां से वे गिरे थे। लेकिन ऐसा लगता है कि मानवीय आयाम के प्राणी नहीं जानते कि वे किस दिव्यलोक से आये हैं। इसलिए जब वे साधना करते हैं, तो उनके द्वारा चुनी गई विधि भिन्न हो सकती है [उस साधना से जो साधारणतः उस दिव्यलोक की ओर ले जाती है], जैसे कि उन्हें फालुन दाफा का अध्ययन करने का पूर्वनिर्धारित अवसर मिला है।
गुरुजी: आप उस दिव्यलोक में लौटने की आशा कर रहे हैं जहाँ से आप आए थे, जहाँ आपका जीवन उत्पन्न हुआ था—आपकी इच्छा उचित है। अब आपको जो पहली समस्या हल करनी होगी वह यह पता लगाना है कि साधना के माध्यम से कैसे वापस लौटा जाए—यह सबसे महत्वपूर्ण विषय है। यहां कोई दूसरे विकल्प नहीं है। ऐसा नहीं है कि सब कुछ आपके लिए निर्धारित है, बुद्ध वहां बैठे हैं, और आप चुन सकते हैं कि आप [बुद्ध के दिव्यलोकों में से] कौन सा चाहते हैं। यदि, जब आप साधना के माध्यम से ऊपर उठते हैं, तो आप वास्तव में एक उच्च स्थान पर पहुंच जाते हैं और अपनी मूल स्थिति में लौटने में सक्षम होते हैं, तो उस दिव्यलोक में आप अपने संबंधियों को देख पाएंगे और यहाँ-वहाँ घूम पाएंगे। उस समय आपके लिए यह मायने नहीं रखेगा कि आप किस दिव्यलोक में हैं, [बिल्कुल वैसे ही] इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप सिडनी में रहते हैं या ब्रिस्बेन में।
शिष्य: दिव्य दाओ मार्ग के साथ क्या स्थिति है जो दक्षिण पूर्व एशिया में इतने व्यापक रूप से फैल रहा है?
गुरुजी: आपको पता होना चाहिए कि यह अंत समय हैं, जिसे बुद्ध शाक्यमुनि ने मार्ग के अंत का युग कहा है, जब अनगिनत असुर संसार में आते हैं। जब बुद्ध शाक्यमुनि इस संसार में थे, तो एक असुर ने उनसे कहा, "अभी मैं आपके मार्ग को अराजकता में नहीं डाल सकता, लेकिन जब आपका मार्ग, मार्ग के अंत के युग में प्रवेश करेगा, तो मैं अपने सभी शिष्यों और उनके अनुयायियों को भिक्षु बनकर आपके मठों में भेज दूंगा।" देखते हैं कि आप इसके बारे में क्या करेंगे!” यह सुनकर बुद्ध शाक्यमुनि के आंसू छलक पड़े। निस्संदेह बुद्ध शाक्यमुनि के पास इससे निपटने का कोई मार्ग नहीं था, और इसलिए मार्ग के अंत के युग में चीजें अराजक हो गईं। मार्ग के अंत के युग का उन्होंने उल्लेख किया जिसमें केवल मनुष्य ही सम्मिलित नहीं हैं, और केवल मठ ही सम्मिलित नहीं हैं, क्योंकि पूरे समाज में ऐसी घटनाएं और लोग हैं जो मानव जाति के उपक्रमों को हानि पहुंचा रहे हैं। दुष्ट धर्म धरती पर फैल गये हैं! सतही तौर पर, वे अपने अनुयायियों को बेहतर मनुष्य बनने के लिए भी कहते हैं, लेकिन अपने मन में, उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं होती है। उन्हें या तो प्रसिद्धि, धन, या किसी दुष्ट प्रभाव—उन चीजों की परवाह है। तो सोचिए कि वे किस प्रकार की बुरी चीजों के पीछे पड़े हैं। दिव्य मार्ग मनुष्य को बचाने के लिए प्रदान किया जाता है। यदि आप इसका उपयोग धन कमाने के लिए करते हैं, तो यह अत्यंत दुष्ट पाप है! निःसंदेह, असुरों को इसकी परवाह नहीं है कि [यह पापपूर्ण है या नहीं]। वे मानव जाति, मनुष्य की नैतिकता और उसकी जन्मजात नैतिक दिशा-निर्देश को नष्ट करने के लिए धर्म की आड़ लेते हैं या अपने अनुयायियों को बेहतर मनुष्य बनने के लिए कहते हैं। यह अत्यंत क्रूरता है। इसलिए मुझे लगता है... निश्चित ही, कुछ चीजें हैं जो मैं कहना नहीं चाहता। आप इस बात में अंतर करने में सक्षम हैं कि क्या पवित्र है और क्या दुष्ट है, इसलिए अपने लिए चीजों का मूल्यांकन स्वयं करें। मैं यह नहीं कहना चाहता कि कौन दुष्ट है और कौन नहीं।
लेकिन मैं आपको केवल यह बता सकता हूं कि यदि कोई मानव जगत में लोगों को बचाना चाहता है, तो यह एक बहुत बड़ा उपक्रम है, और इसके लिए ब्रह्मांड के सभी देवताओं को सहमति में अपना सिर हिलाना होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें चीजों के अनेक भिन्न-भिन्न पहलू सम्मिलित हैं, इसमें प्रत्येक जातीय समूह और उस समूह से संबंधित दिव्यलोक के प्राणी सम्मिलित हैं, और इसमें अनेक, अनेक मुद्दे सम्मिलित हैं, इसलिए यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे कोई भी व्यक्ति बिना सोचे-समझे कर सकता है। मुझे पता है कि यीशु को सूली पर क्यों चढ़ाया गया था। और बुद्ध शाक्यमुनि ने निर्वाण का मार्ग क्यों अपनाया? एक पवित्र मार्ग प्रसारित करना कठिन है, लेकिन यदि आप एक दुष्ट मार्ग प्रसारित करते हैं तो कोई भी आपको परेशान नहीं करता है। वास्तव में ऐसा नहीं है कि कोई आपको परेशान नहीं करता; जब एक पवित्र मार्ग का प्रसार किया जा रहा है, तो साधारणतः बहुत सारे दुष्ट मार्ग भी आ जाते हैं, यह देखने के लिए कि आप किसे चुनते हैं। यदि केवल एक ही विकल्प होता, यदि प्रसारित किये जा रहे सभी मार्ग पवित्र होते, और यदि सभी दुष्ट मार्ग समाप्त हो जाते और संसार उनसे मुक्त हो जाता, तो किसी भी व्यक्ति के लिए साधना करनी बहुत सरल हो जाती। लोग इस मार्ग के सच्चे अभ्यासी कैसे बन पाते? हर कोई इस मार्ग को अपनाएगा, क्योंकि यह एकमात्र उपलब्ध मार्ग होगा, इसलिए [इस मार्ग का प्रमुख] अपने शिष्यों की परीक्षा कैसे ले सकता है कि वे उनकी शिक्षाओं का पालन करने में कितने दृढ़ हैं? इसलिए साधारणतः जब एक पवित्र मार्ग प्रसारित किया जा रहा होता है, तो दुष्ट मार्ग भी प्रसारित किये जाते हैं, यह देखने के लिए कि लोग कौन सा विकल्प चुनते हैं। आपकी आध्यात्मिक समझ को परखने के लिए, जब आप साधना शुरू करेंगे तो ऐसे लोग होंगे जो आपको ढूंढेंगे और कहेंगे, "अरे, आओ मेरे साथ इसका अभ्यास करो! आओ मेरे साथ उसका अभ्यास करो! अरे, मैं अब यह महान अभ्यास कर रहा हूं," इत्यादि। निश्चित है कि वे आपको वहां खींचने और आपकी परीक्षा लेने का प्रयत्न करेंगे। ऐसी परिस्थितियाँ जहाँ लोग आपको दूर खींचने का प्रयत्न करेंगे, आपकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत से लेकर अंत तक होंगी। जब ये चीजें घटित होती हैं तो हम हस्तक्षेप क्यों नहीं करते? मेरे दिव्य शरीर किसी भी चीज से निपट सकते हैं। वे कुछ क्यों नहीं करते? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे असुरों का उपयोग लोगों के मन की परीक्षा लेने के लिए कर रहे होते हैं कि वे इस अभ्यास में मूल रूप से दृढ़ हैं या नहीं। साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयास करने की प्रक्रिया इतनी अधिक गंभीर है। तो इस प्रकार की चीज होगी।
ठीक है, मैंने समझा दिया है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है। आजकल, पवित्र धर्मों के लिए भी लोगों को बचाना बहुत कठिन है, दुष्ट धर्मों की तो बात ही छोड़ दीजिये! उनमें से कुछ लोग वेशभूषा धारण करते हैं और लोग उन्हें अपने साथ ले जाते हैं, वे जहां भी जाते हैं धन मांगते हैं, और लोग अभी भी उनमें श्रद्धा रखते हैं। लोग कितने भ्रमित हैं! यदि लोगों ने पवित्र आध्यात्मिक मार्ग की शिक्षा नहीं प्राप्त की है, तो उनके लिए धोखा खाना बहुत सरल है।
शिष्य: विचार कर्म कैसे कार्य करता है?
गुरुजी: कुछ लोगों का मन अनजाने में बुरे विचार पैदा करता है। हम एक पवित्र साधना का पालन करते हैं—मैं समाज, मानव जाति और व्यक्तियों के प्रति उत्तरदायी होने के सिद्धांत का पालन करते हुए यह उपक्रम कर रहा हूं। उस प्रकार का व्यक्ति जानता है कि [फालुन दाफा] अच्छा है, लेकिन उसका मन मुझे कोसता है और यह भी कहता है कि दाफा पर विश्वास न करें और यह पाखंडी है। ऐसा क्यों होता है? मनुष्य के शरीर पर कर्म के अतिरिक्त विचार कर्म भी होते हैं। प्रत्येक वस्तु जीवित है, और इस प्रकार विचार कर्म भी जीवित है। यदि आप आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, तो आपको अपने विचारों को शुद्ध करना होगा, और आपको दूसरों को कोसने के विचारों, आपके द्वारा बनाई गई धारणाओं और विभिन्न प्रकार के कर्मों को हटाना होगा, जो सभी कई जन्मों के दौरान उत्पन्न हुए हैं। आपकी सच्ची प्रकृति तभी उभरेगी जब आप उन चीजों को हटा देंगे। जब आप साधना करते हैं और लोगों को कोसने के इन विचारों और धारणाओं को हटाने का प्रयास करते हैं, तो वे विचार इसका विरोध करेंगे—क्या वे मरना स्वीकार कर सकते हैं? वे आपके मन में प्रतिक्रिया करेंगे: "यह सब पाखंडी है," उसको कोसेंगे, लोगों को कोसेंगे, और जितना अधिक आप अभ्यास करेंगे उतना अधिक वे कोसेंगे, जिससे आपके मस्तिष्क में गंदे अपशब्द उत्पन्न होंगे। वास्तव में, मैं आपको याद दिला दूं कि वे विचार आप नहीं हैं; वे कर्म हैं, विचार कर्म हैं। आपको उन्हें अस्वीकार करना होगा। व्यायामों का यह संग्रह स्वयं आपको परिष्कृत करता है। यदि आपके स्वयं के विचार और चेतना स्पष्ट नहीं हैं, तो जैसे ही अपशब्द निकलेंगे और यदि आप दृढ़ नहीं होंगे, तो आपकी मुख्य चेतना उनके साथ हो लेगी, और आप अभ्यास करना बंद कर देंगे और दृढ़ नहीं रहेंगे। तो फिर हम इसके पश्चात आपकी देखभाल नहीं करेंगे। क्योंकि हम आप ही को बचाते हैं, यदि आप उत्तीर्ण नहीं होते हैं तो हम आपको नहीं बचाएंगे।
यह स्थिति अतीत में बहुत बार घटित होती थी। चीन में कुछ लोगों के मन ने बहुत तीखी प्रतिक्रिया की। एक व्यक्ति के मन ने बहुत कोसा और वह विचारों को नहीं हटा पाया। अंत में, उसने कहा, "मैं गुरूजी को निराश कर रहा हूँ! मैं गुरूजी को भी कोस रहा हूं। मैंने बहुत ज्यादा कर्म उत्पन्न कर लिए हैं, मैं अब जीना नहीं चाहता,'' और इसके साथ ही उसने छुरी उठायी और अपना गला काटने का प्रयत्न किया। निश्चित ही, आप ऐसा करने का प्रयत्न न करें। उसने जितना भी प्रयत्न किया वह अपना गला नहीं काट पाया; उसे दर्द नहीं हुआ और खून नहीं बहा। वह व्याकुल हो गया और फालुन दाफा स्वयंसेवक से इस बारे में पूछने के लिए बाहर भागा। उसने कहा, ''मेरा मन बार-बार गुरूजी को कोसता रहता है। मुझे क्या करना चाहिए?" जब स्वयंसेवक ने देखा कि क्या हो रहा है, तो उसने इस व्यक्ति को उपदेश पढ़कर सुनाना शुरू कर दिया, और उस व्यक्ति को लगा कि इससे [मुद्दे को सुलझाने में] काफी सफलता प्राप्त हुयी। बाद में, उस व्यक्ति ने मुझसे इस स्थिति के बारे में पूछा और मैंने उसे बताया। वास्तव में यह आपका कर्म है जो कोस रहा है, आप स्वयं नहीं। आपको चिंता करने की आवशयकता नहीं है, क्योंकि यह कर्म है, आप नहीं, जो मुझे कोस रहा है। लेकिन आपकी मुख्य चेतना स्पष्ट होनी चाहिए और इसे दूर हटा देना चाहिए; इसे हटाने का प्रयास करें और इसे कोसने से रोकें। यदि आप इसे हटायेंगे और नियंत्रित करेंगे तो मेरे दिव्य शरीर को पता चल जाएगा कि आप क्या कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह आपके द्वारा किए गए हर काम को जानता है और ऐसा करने से पहले ही उसे पता चल जाता है कि [कर्म कोसने वाला है]। यह आपके लिए एक परीक्षा है, यह देखने की परीक्षा है कि आपकी मुख्य चेतना दृढ़ है या नहीं। यदि आप दृढ़ हैं, तो मेरा दिव्य शरीर कुछ समय के पश्चात इस कर्म को हटा देगा। मैं इस विचार कर्म को इसलिए हटाता हूं क्योंकि यह सीधे आपके साधना में हस्तक्षेप कर रहा है और चीजों को उचित प्रकार से समझने की आपकी क्षमता को प्रभावित कर रहा है। इस मुद्दे पर ध्यान दें और समझ लें कि जब यह सामने आए तो [कर्म और अपने विचारों के बीच] अंतर कैसे करें।
शिष्य: मैं एक प्रश्न पूछना चाहूँगा जिसमें व्यायाम और एक व्यक्ति की क्रियाएं और नैतिकगुण के बीच के संबंध सम्मिलित है। क्या अधिक व्यायाम करने से किसी के नैतिकगुण को और बेहतर बनाने में सहायता मिल सकती है?
गुरुजी: इसका कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन गतिक्रियाएं फल पदवी का एक प्रमुख पहलू हैं और मूल हैं। हमारा मार्ग वह है जिसमें यंत्र आपकी ओर से अभ्यास करते हैं। जब आप अभ्यास नहीं कर रहे होते हैं तब भी यंत्र आपकी ओर से अभ्यास करते हैं, चाहे आप सो रहे हों, काम कर रहे हों या भोजन कर रहे हों। यह दिन के चौबीस घंटे निरंतर आप पर काम करता है, और इससे आपके जीवन में व्यायामों का अभ्यास करने में लगने वाला समय कम हो जाता है और आप शीघ्रता से फल पदवी प्राप्त कर पाने में सक्षम हो पाते हैं। क्योंकि मैंने उल्लेख किया है कि मैं आपको इस जीवनकाल में फल पदवी प्राप्त कराऊँगा, इसलिए मुझे चीजों को उसी प्रकार से कार्य कराने की आवश्यकता है। फिर भी हमारे अभ्यास में व्यायाम अन्य अभ्यासों के समान नहीं हैं, जिनमें आप अभ्यास करते समय केवल अपनी उच्च शक्ति की मात्रा बढ़ाते हैं, और जैसे ही आप रुक जाते हैं, आपकी उच्च शक्ति की मात्रा बढ़नी बंद हो जाती है। जब हम व्यायामों का अभ्यास करते हैं, तो यह आपके अंदर स्थापित सभी यंत्रों को सुदृढ़ करते हैं। आप अपने शरीर के अंदर और बाहर दोनों ओर के यंत्रों को सुदृढ़ करते हैं। मैं यह क्यों कहता हूं कि हम अपने हाथों को न तो सिर में शक्ति उड़ेलने की स्थिति में रखते हैं, न ही शक्ति को बाहर भेजने या निकालने की स्थिति में रखते हैं, बल्कि अपनी हथेलियों को शरीर की ओर रखते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि जब आप [अपने व्यायाम गतिक्रियाओं में] ची यंत्रों का अनुसरण करते हैं जो मैंने आपके शरीर के बाहर स्थापित किये हैं, तो व्यायाम करते समय आपके हाथों में बड़ी मात्रा में शक्ति होगी और ची यंत्र सुदृढ़ होंगे; वे हैं, यंत्र। जब आपके हाथ पेट के निचले भाग पर एक के ऊपर एक होते हैं तो वे आपके शक्ति केंद्र के यंत्रों को सुदृढ़ करते हैं, और जब आप खींचने वाली गतिक्रियाएं करते हैं तो आप गतिमान यंत्रों को सुदृढ़ करते हैं। इस प्रकार, जब हम व्यायाम करते हैं, तो यह उन यंत्रों को सुदृढ़ करते हैं जो आप पर लंबे समय तक काम करते हैं और जो बिना रुके चौबीस घंटे काम करते हैं, और इसलिए व्यायामों का अभ्यास फल पदवी प्राप्त करने के हमारे साधन [का एक भाग] है। लेकिन [व्यायामों का अभ्यास करना] ही सब कुछ नहीं है, क्योंकि वे फल पदवी प्राप्त करने के लिए एक पूरक साधन हैं। फिर भी व्यायामों का अभ्यास करना आवशयक है। इस मार्ग में साधना के माध्यम से आप जो चीजें उत्पन्न करते हैं उन्हें विकृत होने से रोकना सीधे तौर पर चीजों के इस संग्रह और आपके व्यायाम गतिक्रियाओं से संबंधित है। क्योंकि हमारे पास जादुई चीजें भी हैं, ऐसी चीजें जो जीवन को परिवर्तित कर देती हैं और किसी व्यक्ति को अपना जीवनकाल बढ़ाने में सक्षम बनती हैं, जो अलौकिक सिध्दियों को सुदृढ़ करती हैं, इत्यादि, व्यायाम गतिक्रियाओं का निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है। साधना पहले आती है और व्यायामों का अभ्यास बाद में आता है। साधना प्राथमिक है और व्यायामों का अभ्यास उसके बाद है। लेकिन यदि आप इस मार्ग में फल पदवी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको आध्यात्मिक प्रगति भी करनी होगी और व्यायाम भी करने होंगे।
शिष्य: जब मैं व्यायाम करता हूं तो मैं कोई भी [विशेष] चीजें नहीं देख पाता। मैं केवल श्वेत प्रकाश देख सकता हूं, और जब चाहूं गुरूजी की छवि देख सकता हूं। क्या वह भ्रम है?
गुरुजी: मैं इसे दो विषयों में बाटूंगा। जिनके दिव्य नेत्र देख नहीं सकते, ऐसे कारक सम्मिलित हो सकते हैं जो उन्हें साधना के अधिक उन्नत चरणों तक पहुंचने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जिन लोगों में चीजों को सही ढंग से समझने की शक्तिशाली क्षमता होती है और जो अपनी साधना में ऊंचे स्तरों तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं, उन्हें जितना कम देखने की अनुमति होगी, उतनी ही तेजी से वे आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं। क्योंकि वे इस भ्रम के संसार में पीड़ा सहते हैं और चीजों का ज्ञान प्राप्त करते हैं, [जो देख सकते हैं उनकी तुलना में] उतनी ही मात्रा का कष्ट उन्हें दोगुनी तेजी से आगे बढ़ने में सक्षम बनाएगा। इन लोगों की स्थिति भिन्न होती है, और शायद यह उन्हें साधना में आगे बढ़ने में सहायता करने के लिए है।
दूसरी बात यह है कि भले ही आप कहते हैं कि आपने कुछ नहीं देखा, वास्तव में आपने कुछ देखा है। जब आप किसी भी चीज पर विशेष ध्यान नहीं दे रहे थे, तो आपने देखा कि एक श्वेत प्रकाशआपके शरीर को ढंक रहा है। इसके अतिरिक्त, कभी-कभी आप जब चाहें तब चीजों को देखते हैं, और आप वास्तव में इसे देखते हैं, लेकिन आपको लगता है कि यह एक भ्रम है। बहुत से लोग, जब वे चीजों को देखने में सक्षम होते हैं, तो सोचते हैं कि वे चीजों की कल्पना कर रहे हैं। आपको पता होना चाहिए कि जब आप चीजों को अपने नेत्रों से देखते हैं, तो आप [चीजों को उस तरह से देखने] के अभ्यस्त हो जाते हैं, क्योंकि आप सोचते हैं कि यह आपके नेत्र हैं जो [उन चीजों को] देख रहे हैं। लेकिन आपने शायद इस बात पर विचार नहीं किया होगा कि आप जो कुछ भी देखते हैं वह आपके ऑप्टिक तंत्रिका के माध्यम से आपके मस्तिष्क तक प्रसारित होता है और वहां एक छवि के रूप में प्रदर्शित होता है; मस्तिष्क देखी हुई वस्तु को प्रदर्शित करता है। आपके नेत्र तो बस कैमरे के लेंस की तरह हैं; वे स्वयं चीजों का विश्लेषण और प्रदर्शन नहीं कर सकते, क्योंकि यह मस्तिष्क ही है जो चीजों को प्रदर्शित करता है। क्योंकि यह मस्तिष्क है जो छवियों को प्रदर्शित करता है, दिव्य नेत्र जो देखता है और लोग जो कल्पना करते हैं वह दोनों मस्तिष्क में प्रदर्शित होते हैं। जब आप कुछ सोचते हैं, तो मस्तिष्क ही सोचता है, और जब आप कुछ देखते हैं, तो मस्तिष्क ही छवि बनाता है। इसलिए जब कुछ लोग चीजों को देखने में सक्षम होते हैं, तो वे सोचते हैं कि वे चीजों की कल्पना कर रहे हैं। लेकिन यह भिन्न है, क्योंकि जब आप किसी चीज की कल्पना करते हैं तो वह उतनी वास्तविक नहीं लगेगी और वह हिलेगी नहीं, क्योंकि वह एक स्थिर छवि है। दूसरी ओर, जब आप वास्तव में चीजों को देखते हैं, तो वे गतिशील होंगी। जब आप इन चीजों को देखने के अभ्यस्त हो जायेंगे, तो आप धीरे-धीरे इस तरह से और भी चीजें देखेंगे, और जैसे-जैसे आप समय के साथ धीरे-धीरे इसके अभ्यस्त हो जाएंगे, आप धीरे-धीरे पाएंगे कि आपने वास्तव में चीजें देखी है, और संभवतः [इस क्षमता] का बेहतर उपयोग करने में सक्षम होंगे।
अतीत में, जब कुछ दाओवादी अपने शिष्यों को प्रशिक्षित करते थे, तो वे विशेष रूप से उनसे चीजों की कल्पना कराते थे क्योंकि वे इस संबंध को समझते थे और इस प्रकार से अपने शिष्यों की अलौकिक क्षमताओं को प्रशिक्षित कर सकते थे। [उदाहरण के लिए], आपके सामने कोई सेब नहीं है, लेकिन आपको कल्पना करनी है कि आपके सामने एक सेब है, और गुरु आपको बताएँगे कि यह किस प्रकार का सेब है। वास्तव में, कोई सेब नहीं होता है, लेकिन गुरु आपको इसे सूँघने में सक्षम होने के लिए प्रशिक्षित करेंगे; फिर आप कल्पना करेंगे कि सेब कैसा दिखता है—इस प्रकार वे अपने शिष्यों को प्रशिक्षित करते हैं। क्योंकि ये छवियाँ मस्तिष्क में बनती हैं, इसलिए कुछ लोग इस बात को स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाते हैं। वैसे भी, जब आप किसी चीज की कल्पना कर रहे होते हैं, तो वह गतिमान नहीं होती है, और जब आप किसी चीज को देखते हैं तो वह गतिमान होती है।
शिष्य: एक बार जब मैं रात को सपना देख रहा था तो मैंने कुछ डरावना देखा, लेकिन मैंने आपके बारे में नहीं सोचा; मैंने जो सोचा वह तंत्रवाद था। लेकिन मैं एक बहुत ही समर्पित फालुन दाफा शिष्य हूं। तो क्या इसका अर्थ यह है कि यदि किसी दिन कुछ हुआ तो मैं नष्ट हो जाऊँगा, और यहाँ तक कि मेरी मूल आत्मा भी नष्ट हो जाएगी?
गुरुजी: [ऐसा इसलिए हुआ] क्योंकि आप कभी कभार ही पुस्तक पढ़ते हैं। हालाँकि अब आप दाफा का अभ्यास करते हैं, फिर भी आपके मन में तांत्रिक बातें हैं, इसलिए आपने सपने में जो सोचा वह तंत्रवाद था, दाफा नहीं। कुछ लोगों ने मुझसे पूछा है कि यदि उन्हें मृत्यु के संकट का सामना करना पड़े तो उन्हें क्या करना चाहिए। मैंने कहा कि आप अपनी साधना से असंबंधित किसी भी चीज का सामना नहीं करेंगे—यह निश्चित है। लेकिन आपका सामना उन चीजों से हो सकता है जो आपकी साधना से संबंधित हैं। यदि आपने आज सचमुच अपनी जान गंवा दी, तो इसका अर्थ यह होगा कि कोई भी आध्यात्मिक मार्ग आपका ध्यान नहीं रख रहा था और आपने कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं की थी। कुछ धर्म कहते हैं कि आपने जो भी जानें ली हैं उसका बदला आपको अपनी जान से चुकाना होगा, क्योंकि उनका कहना है कि आध्यात्मिक यात्रा को एक जीवनकाल में पूरा करना असंभव है। एक जीवन का बदला अपने जीवन से चुकाने के बाद, आप अगले जीवन में साधना जारी रख सकते हैं—वे इसी का समर्थन करते हैं। लेकिन हम यहां इसका समर्थन नहीं करते हैं। हम यहां इस बात पर जोर देते हैं कि आपको इन समस्याओं का अनुभव नहीं कराया जाएगा, क्योंकि मेरे सच्चे शिष्यों को बिल्कुल भी मृत्यु के संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
शिष्य: मुझे उस समय एहसास ही नहीं हुआ कि यह एक सपना था।
गुरुजी: उस समय आप तंत्र विद्या का अभ्यास कर रहे थे, लेकिन वास्तव में साधना नहीं कर रहे थे, इसलिए [आपके तंत्र विद्या के अभ्यास] का कोई प्रभाव नहीं पड़ा; इस प्रकार, कोई भी आपका ध्यान नहीं रख रहा था। कुछ लोग कहते हैं कि जब वे सपने देखते हैं तो उन्हें धन पड़ा हुआ दिखता है और वे उसे उठा लेते हैं। वास्तव में, यह सपने लोगों के लिए यह देखने की परीक्षा होती है कि आपका नैतिकगुण उचित है या नहीं। कुछ अभ्यासियों का कहना है कि वे दिन के समय तो बहुत अच्छा आचरण करते हैं लेकिन सपनों में स्वयं को अच्छी तरह से संभाल नहीं पाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे अपने मन की गहराई में [नैतिकगुण में] सुदृढ़ नहीं होते हैं। सपने में यह देखने के लिए उनकी परीक्षा होती है कि वे उचित हैं या नहीं, इसलिए ऐसी परिस्थिति बनेगी। यदि ऐसा होता है कि आपने अनुचित आचरण किया है तो दुखी न हों। यदि आप इसे गंभीरता से लेते हैं, तो आप निश्चित रूप से इसमें अच्छा कर सकते हैं और भविष्य में आप ठीक रहेंगे।
शिष्य: गुरूजी ली ने चीन में [फालुन दाफा] कक्षाओं में उपस्थित सभी लोगों के लिए फालुन स्थापित किया। क्या आप हम लोगों के लिए फालुन स्थापित करेंगे जो आज आपका व्याख्यान सुन रहे हैं? दूसरा प्रश्न यह है कि, हम मानसिक रूप से पीड़ित लोगों को अभ्यासी बनने की अनुमति नहीं देते हैं; क्या मस्तिष्क संबंधी छोटी समस्याओं से निपटने का कोई तरीका है?
गुरुजी: मैं सबसे पहले, पहले प्रश्न के बारे में बात करूंगा। मैंने उल्लेख किया है कि इस पुस्तक के प्रत्येक शब्द के पीछे मेरा दिव्य शरीर है, और प्रत्येक शब्द मेरे दिव्य शरीर की छवि है। प्रत्येक शब्द बुद्ध की छवि है। मेरे अनगिनत दिव्य शरीर हैं; इतने अधिक हैं कि उन्हें गिनने के लिए संख्याओं का उपयोग नहीं किया जा सकता। यह ज्ञात है कि बुद्ध शाक्यमुनि ने उल्लेख किया था कि बुद्ध अमिताभ के बीस लाख दिव्य शरीर हैं। मेरे दिव्य शरीर इतने अधिक हैं कि आप उन्हें संख्याओं में नहीं गिन सकते—इसमें बहुत अधिक समय लगेगा। मैं आवश्यकतानुसार अधिक से अधिक लोगों का ध्यान रख सकता हूँ; मैं संपूर्ण मानव जाति का भी ध्यान रख सकता हूँ। निःसंदेह, हम केवल अभ्यासियों के लिए ही ऐसी भूमिका निभाते हैं। हम अभ्यास नहीं करने वालों के साथ या सामाजिक मुद्दों में सम्मिलित नहीं होते हैं। इसलिए जब आप साधना करेंगे, तो जैसे ही आपके मन में कोई विचार आएगा, मेरे दिव्य शरीर को इसके बारे में पता चल जाएगा। एक और परिस्थिति भी होती है। आप देख रहे हैं कि मेरा यह शरीर अब एक मानव मांस का शरीर है और इतना ही बड़ा है। लेकिन यदि आप अगले आयाम में प्रवेश करेंगे तो आप पाएंगे कि वहां मेरा शरीर इससे कई गुणा विशाल है। प्रत्येक अगले आयाम में मेरा शरीर पिछले आयाम की तुलना में ऊँचा और विशाल है, और मेरा सबसे बड़ा शरीर अवर्णनीय रूप से विशाल है। कई शिष्यों ने मेरे विशाल शरीर की संक्षिप्त झलक देखी है। वे कहते हैं, "गुरुजी, जब मैं आपके पैर के अंगूठे के पास खड़ा था, तो मैं उसका ऊपरी भाग नहीं देख सका।" तो (मेरे) इतने बड़े शरीर के साथ, क्योंकि पूरी पृथ्वी यहाँ है, आप जहाँ भी हों मैं आपका ध्यान रख सकता हूँ। क्या मुझे फालुन स्थापित करने के लिए किसी के सामने खड़ा होना आवश्यक है? मैं इसे किसी भी व्यक्ति के लिए उसी प्रकार स्थापित कर सकता हूं जैसे कि वे मेरे समक्ष हैं चाहे मैं उनके समक्ष ना भी होऊं। यहां तक कि जब मैं वहां नहीं हूं जहां आप हैं, मैं वहीं हूं जहां आप हैं।
आपने जो दूसरा प्रश्न पूछा है वह स्किजोफ्रेनिया के विषय में है। चाहे यह छोटा हो या गंभीर, हमारा इसके लिए एक स्पष्ट नियम है: हम ऐसे लोगों को अभ्यास में सम्मिलित होने का समर्थन नहीं करते हैं। यह मार्ग दूसरों से भिन्न है। हम उसी व्यक्ति को बचाते हैं, और यदि हम ऐसा नहीं कर सकते, तो हम [हमारी चीजें] किसी और को नहीं देंगे। हमारी उच्च शक्ति उसी व्यक्ति के शरीर पर स्थापित होती है, और हम केवल आपकी मुख्य आत्मा को बचाते हैं; हम केवल आप ही को बचाते हैं। ऐसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ है। पूरे इतिहास में, चाहे आपने तंत्रवाद का अभ्यास किया हो या अन्य धर्मों का, उन सभी ने आपकी सहायक आत्मा को बचाया है। मैंने यहाँ युगों के रहस्यों में से एक रहस्य को उजागर किया है। जब यह रहस्य उजागर हुआ, तो वास्तव में इसका बहुत विरोध हुआ। लेकिन भविष्य में जब पृथ्वी अद्भुत हो जाएगी, तो कई बुद्ध लोगों को बचाने के लिए फिर से संसार में आएंगे। जब ऐसा होगा, तो केवल मैं ही मनुष्य की मुख्य आत्मा को नहीं बचाऊंगा, बल्कि वे भी ऐसा करेंगे। मैंने [मुख्य आत्मा को बचाने के विषय के संबंध में] परिस्थिति को बदल दिया और उसे उलट दिया क्योंकि मनुष्य की मुख्य आत्मा को बचाने से समाज की नैतिकता की स्थिरता के संदर्भ में प्रत्यक्ष लाभ होता है। जब आप किसी व्यक्ति की सहायक आत्मा को बचाते हैं तो वह व्यक्ति स्वयं आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर पाता। यह केवल लोगों का धार्मिक समूहों में सम्मिलित होना होता है, जिससे समाज पहले जैसा ही रह जाता है। [इस प्रकार से लोगों को बचाना] समाज पर अधिक प्रभाव नहीं डालता है। इसलिए जब आप किसी व्यक्ति की मुख्य आत्मा को बचाते हैं, चाहे वह साधना करे या नहीं, वह एक अच्छा मनुष्य होगा और समाज के लिए लाभकारी होगा। मानसिक रूप से रोगी लोग स्पष्ट नहीं होते, इसलिए हम उन्हें बचा नहीं पाते। हम उन्हें बचाते हैं जो स्पष्ट होते हैं; यदि हमने किसी ऐसे व्यक्ति को [साधना के लिए] चीजें दी जो अपनी क्षमताओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता हैं, तो वे चीजें अगले दिन उस व्यक्ति से कोई और ले लेगा। ऐसा व्यक्ति दृढ़ता से अभ्यास नहीं करेगा, इसलिए वह हमारे नियमों का पालन करने, एक ही मार्ग के प्रति प्रतिबद्ध रहने और विभिन्न अन्य मार्गों का अभ्यास करने से बचने में भी सक्षम नहीं होगा। क्योंकि साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयास एक गंभीर मामला है, हम ऐसे व्यक्ति को नहीं बचा सकते यदि वह ये चीजें नहीं कर सकता। कुछ लोग ऐसे व्यक्ति को अभ्यास कराने पर जोर देते हैं, लेकिन यदि उसके साथ कुछ अनुचित होता है तो वही लोग उत्तरदायी होते हैं। यदि वह कुछ समय तक अभ्यास करता है और फिर उसके साथ कुछ अनुचित हो जाता है, तो वह कहेगा कि समस्याएं फालुन दाफा के अभ्यास से आयीं। हम मानसिक रूप से रोगी लोगों को बिल्कुल भी शिक्षा नहीं देते—यह निश्चित है। क्योंकि ऐसे लोग अभ्यासी नहीं होते हैं, उन्हें रोग होंगे और समस्याएँ होंगी। जब वे अभ्यास स्थल पर अभ्यास करने का प्रयास कर रहे होते हैं तो उनके साथ कुछ अनुचित हो सकता है। ऐसी परिस्थितियाँ उनके अभ्यास के कारण नहीं होती हैं, बल्कि इसलिए होती हैं क्योंकि उनके रोगों के दोबारा उभरने का समय आ गया होता है।
शिष्य: सारी मानव जाति एक ही जैसी है, लेकिन पूर्व में फैले बौद्ध धर्म और पश्चिम में फैले ईसाई धर्म के बीच एक बड़ा अंतर है। पश्चिम में बौद्ध धर्म बहुत कम है। क्या वे दो भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ हैं?
गुरुजी: पश्चिम ईसाई धर्म और पूर्व बौद्ध धर्म क्यों अपनाता है? पूर्वी धर्मों और पश्चिमी धर्मों के बीच बड़े अंतर क्यों हैं? वास्तव में, ईसाई धर्म बौद्ध प्रणाली की सीमा के भीतर ही आती है। बात बस इतनी है कि लोगों, संस्कृति और विभिन्न खगोलीय पिंडों की संस्कृतियों के बीच मतभेदों ने विभिन्न लोगों की शारीरिक विशेषताओं और सोचने के तरीकों में अंतर पैदा कर दिया है। अर्थात्, लोगों के भिन्न-भिन्न मानक और निश्चित गुण होते हैं। इससे साधना के माध्यम से बुद्ध बनने की दिशा में काम करने के उनके तरीकों और उच्च स्तरों पर रहने वाले दिव्य प्राणियों की उनकी अवधारणाओं और समझने के तरीकों में अंतर पैदा होता है। ये सभी [धर्म] वास्तव में एक ही हैं और सभी बुद्ध के आध्यात्मिक आयाम में ही हैं। यीशु वास्तव में तथागत आध्यात्मिक स्तर पर हैं। लेकिन संस्कृति, अवधारणाओं और उपस्थिति में अंतर के कारण, वे बुद्ध शब्द का उपयोग नहीं करते हैं, हालांकि बुद्ध शब्द पूर्व में उपयोग किया जाने वाला शब्द है। निश्चित ही, स्वरुप के अंतर के होते हुए, यीशु के दिव्यलोक में लोग स्वयं को सफेद वस्त्र में लपेटते हैं। दूसरी ओर, बुद्ध के दिव्यलोक में रहने वाले लोग स्वयं को पीले वस्त्र में लपेटते हैं। उनका बालों को सवांरने का तरीका भी भिन्न-भिन्न होता है और भिन्न-भिन्न समूहों के बीच बालों को सवांरने का तरीका ही सबसे बड़ा अंतर है। दाओवादी अपने बालों को ऊपरी गाँठ में बाँधते हैं; बौद्ध अरहतों ने सिर मुंडवाये होते हैं; बोधिसत्वों के बाल प्राचीन चीनी महिलाओं की शैली में होते हैं। और यह सब ऐसा क्यों है? प्राचीन चीन में पहने जाने वाले कपड़े वही हैं जो दिव्यलोक में निम्न स्तर के देवताओं द्वारा पहने जाते हैं; यह वास्तव में दिव्य साम्राज्यों और दिव्यलोकों में रहने वालों द्वारा अपनायी जाने वाले वस्त्रों के जैसी ही शैली है। पश्चिमी लोगों के साथ भी ऐसा ही है, क्योंकि वे अपने दिव्यलोकों में इसी प्रकार के वस्त्र धारण करते हैं। लोग ऐसे ही होते हैं। निःसंदेह, वर्तमान फैशन सभी नई शैलियाँ हैं। वास्तव में, आधुनिक लोग जो वस्त्र धारण करते हैं वे सबसे बुरे और भद्दे हैं।
गोरों के दिव्यलोक में बौद्ध धर्म का अस्तित्व क्यों नहीं है? और एशियाइयों के दिव्यलोकों में ईसाई धर्म का अस्तित्व क्यों नहीं है? ये धर्म तकनीकी रूप से उन स्थानों में नहीं हैं। मुझे याद है कि बाइबिल या ऐसी ही किसी पुस्तक में, यहोवा और यीशु दोनों ने उस समय कुछ ऐसा कहा था: "पूर्व की ओर न जायें।" और भी बहुत कुछ था, लेकिन मुझे बस यह पंक्ति याद है, "पूर्व की ओर न जायें," उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा था कि शिक्षाओं को पूर्व की ओर न प्रसारित करें। उनके अनुयायियों ने उनकी बात नहीं मानी और अभियान दल के साथ पूर्व की ओर यात्रा की। इस स्थिति में एक समस्या सामने आती है। पृथ्वी की जातियों का आपस में मिलना वर्जित है। अब जातियां मिश्रित हो गई हैं, और इसने एक अत्यंत गंभीर समस्या खड़ी कर दी है। मिश्रित नस्ल के लोगों का अब उपरोक्त [अपनी जाति के] लोगों के साथ कोई संबंध नहीं रहा है, और उन्होंने अपनी जड़ें खो दी हैं। मिश्रित जाती के लोगों ने अपनी जड़ें खो दी हैं; यह ऐसा है जैसे कि स्वर्गलोकों और दिव्यलोकों में रहने वाले लोग उनका ध्यान नहीं रख रहे हैं, जैसे कि वे कहीं के नहीं रहे और उनमें से कोई भी प्राणी उन्हें अपनाना नहीं चाहता है। इसलिए यदि आप यूरोप और एशिया महाद्वीपों को जोड़ने वाले क्षेत्र को देखें, तो वह क्षेत्र कभी रेगिस्तान था। यह निर्जन था और जब परिवहन इतना उन्नत नहीं था तो इसे पार करना कठिन था। आधुनिक उपकरणों की प्रगति के साथ, इस [बाधा] को तोड़ दिया गया है, इसलिए जातियां तेजी से मिश्रित हो गई हैं, और इसके गंभीर परिणाम सामने आए हैं। निश्चित ही, मैं इन चीजों पर ध्यान केंद्रित नहीं करता; केवल यह कहना है कि जो ऊपर हैं वे इन जातियों को स्वीकार नहीं करते हैं।
जो समस्या मैंने अभी बतायी है वह यह है कि मानव जातियों और उनकी सम्बंधित जातियों के बीच अनुरूप संबंध है। ऊपर की श्वेत जाति, इस संसार में और इस ब्रह्मांड में, इस ब्रह्मांड का एक बहुत छोटा प्रतिशत है—यह उनका दिव्यलोक है। दूसरी ओर, पीली जाति और बुद्ध तथा दाओ के दिव्यलोक अत्यंत असंख्य हैं, और वे लगभग पूरे ब्रह्मांड को भर देते हैं। तथागत बुद्ध गंगा नदी में रेत के कणों जितने असंख्य हैं—वे इतने असंख्य और विशाल हैं। इस ब्रह्माण्ड में पीली जाति के लोगों के स्वरुप वाले लोग बड़ी संख्या में हैं, इसलिए ऊपर और नीचे की जातियाँ एक दूसरे से मेल खाती हैं। "शिक्षाओं को पूर्व में प्रसारित नहीं करो" कहने में यीशु का अभिप्राय यह था कि पूर्व के लोग उनके लोगों का भाग नहीं हैं। यीशु ने कहा कि शिक्षाओं को पूर्व में प्रसारित न करें, और मैंने पाया है कि यीशु के दिव्यलोक में कोई एशियाई नहीं है। यह बहुत दुःखद है! वर्तमान में, लोग अब अपने भगवान के शब्दों पर ध्यान नहीं देते हैं, और एशियाई लोग अब बुद्ध के शब्दों पर ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए लोगों ने इन चीजों को गड़बड़ा दिया है। मैंने यह भी पाया है कि अतीत में बुद्ध के दिव्यलोक में श्वेत लोग नहीं थे। लेकिन मैं अब जो प्रसारित कर रहा हूं उसे पश्चिमी लोगों तक क्यों पहुंचा रहा हूं? ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं संपूर्ण ब्रह्मांड के सिद्धांतों का प्रसार कर रहा हूं। जहां तक उन काकेशियन लोगों की बात है जो मेरे इस महान मार्ग पर अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी करते हैं, जब वे अपनी यात्रा पूरी करेंगे, तो उनके शरीर का स्वरुप और उनके आध्यात्मिक मार्ग के स्वरुप यीशु के दिव्यलोक के लोगों के समान होंगे। जब वे अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी करेंगे तो चीजें इसी प्रकार होंगी। पीली जाति के लोग जब अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी करेंगे तो वे बुद्ध की छवि में होंगे। इसलिए मैं दोनों प्रकार के लोगों को बचा सकता हूं। क्योंकि मैं जिस आध्यात्मिक मार्ग का प्रसार कर रहा हूँ वह बहुत विशाल है, मैं आपको यह भी बता दूँ... इतना विशाल कोई द्वार पहले कभी नहीं खोला गया है, लेकिन यह किसी कारणवश है।
शिष्य: गुरूजी, मिश्रित जातियों के बच्चों की परिस्थिति क्या है?
गुरुजी: जब मैंने कुछ समय पहले मिश्रित जातियों के बच्चों की परिस्थिति के बारे में बात की थी, तो मैं मानव जाति को एक दिव्य रहस्य बता रहा था। ऐसा नहीं है कि हम इस समस्या के विषय में कुछ करने वाले हैं। मैंने उल्लेख किया कि मैं इससे भी विशाल कुछ कर रहा हूं, और मैं मिश्रित जातियों के लोगों को भी बचा सकता हूं, हालांकि यह केवल इस अवधि के लिए है कि मैं उन्हें बचा सकता हूं। हालाँकि पूर्वी और पश्चिमी दोनों ही पृथ्वी पर रहते हैं, लेकिन दोनों पक्षों को भिन्न करने वाली कोई चीज है जिसके बारे में लोग नहीं जानते हैं। यह ज्ञात है कि पूर्वी लोग संख्या नौ (जिउ) जैसी चीजों को महत्व देते हैं; इस संख्या की ध्वनि अच्छी है, [क्योंकि इसका उच्चारण इस शब्द के भाग के समान है] "लंबे समय तक चलने वाला" (चिजिउ); संख्या आठ (बा) ध्वनि फा से मेल खाती है, जैसे कि "भाग्य बनाना" (फासाय), और [इन संख्याओं का उपयोग] वास्तव में थोड़ा प्रभाव डाल सकता है। अर्थात्, फेंगशुई, भूविज्ञान, और अन्य चीजें जो एशियाई लोग उपयोग करते हैं, पश्चिम में उपयोग करने पर काम नहीं करती हैं, और काकेशियनों पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। और जिस ज्योतिष, शकुन आदि को श्वेत लोग बहुत मानते हैं, वह एशियाई लोगों पर काम नहीं करता। कुछ लोग सोचते हैं कि यह उन पर काम करता है, लेकिन यह केवल आपकी सोच है, क्योंकि वास्तव में ऐसा नहीं होता है। क्यों? काकेशियनों के जीवमंडल में विशेष भौतिक तत्व हैं जो उनके आयाम को बनाते हैं, और एशियाई लोगों के जीवमंडल में विशेष सामग्री है जो उनके अस्तित्व को बनाती है। ये चीजें मनुष्य की संरचना में व्याप्त हैं, इसलिए दोनों प्रकार के लोग भिन्न-भिन्न हैं। जब लोग जातियों को मिश्रित कर लेते हैं, तो जब आप उनके बच्चे को देखते हैं, तो यह मिश्रित जाती का बच्चा होता है। लेकिन इस बच्चे के अस्तित्व के बीच में एक विभाजन होता है, और एक बार यह विभाजन बन गया तो बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से अधूरा होगा; उसका शरीर अधूरा होगा। आधुनिक विज्ञान जानता है कि प्रत्येक पीढ़ी पिछली पीढ़ी से बदतर होती है, इसलिए यह परिस्थिति आयेगी। निःसंदेह, यदि यह व्यक्ति साधना करता है, तो मैं संभाल सकता हूँ और इसकी देखभाल कर सकता हूँ। जो अभ्यासी नहीं हैं उनके लिए इन चीजों का ऐसे ही ध्यान नहीं रखा जा सकता।
शिष्य: जब मैं तीसरा व्यायाम करता हूं, तो मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे मेरी हथेलियों से गर्मी उत्सर्जित हो रही है। मुझे नहीं लगता कि किसी अन्य आध्यात्मिक मार्ग में ऐसा होता है। जब मैं अभ्यास कर रहा होता हूं, तो मुझे ऐसा अनुभव होता है जैसे मैं एक बोधिसत्व हूं और मैं सभी से श्रेष्ठ हूं। क्या यह उचित है?
गुरुजी: जब आप व्यायाम का अभ्यास करें तो कोई विचार न जोड़ें। तंत्रवाद का मार्ग निम्नलिखित तरीके से काम करता है: [साधक सोचता है,] "मैं एक बुद्ध हूं।" वह व्यक्ति बुद्ध नहीं है, लेकिन क्या उसका भौतिक शरीर परिवर्तित हो गया? नहीं ऐसा नहीं है। फिर जब वह अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी कर लेगा तो कौन परिवर्तित होगा? सहायक आत्मा। इस अभ्यास को पारित करते समय मैंने आपसे कहा था कि मैं मुख्य आत्मा को बचाता हूँ। फिर यदि आपकी सहायक आत्मा अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी कर लेती है, तब भी आपको पुनर्जन्म के छह मार्गों में प्रवेश करना होगा, और एक बार जब दो प्राणी अलग हो जाएंगे, तो आपको कुछ भी याद नहीं रहेगा कि क्या हुआ था। हथेलियों से गर्मी उत्सर्जित होना साधारण बात है।
शिष्य: क्या महान मार्ग का अभ्यास करते समय हम कुछ निर्देशित विचार भी नहीं जोड़ सकते?
गुरुजी: [हमारे अभ्यास] में कोई मानसिक व्यायाम नहीं है, और सभी इच्छायुक्त विचार मोहभाव हैं।
शिष्य: दो प्रश्न: एक एशियाई और पश्चिमी लोगों के विषय के बारे में है जिसका गुरूजी ने अभी उल्लेख किया है। उदाहरण के लिए, यदि ऐसे कई लोग हैं जो मूल रूप से एशियाई थे लेकिन जिन्होंने पश्चिमी लोगों के रूप में पुनर्जन्म लिया है, तो उनके विषय में क्या किया जाना चाहिए?
गुरुजी: इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। यहां दो प्रकार की परिस्थितियां हैं: यदि यह व्यक्ति किसी उद्देश्य से [इस संसार में] नहीं आया है, तो हम इस व्यक्ति को उसके शरीर के परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तन करेंगे; यदि वह किसी उद्देश्य से आया है, तो यह एक भिन्न परिस्थिति है और इसे एक भिन्न विषय माना जाना चाहिए।
साथ ही, मैं आपको याद दिला दूं कि आपको इस बात से सावधान रहना होगा कि आप इस पद्धती को कैसे प्रसारित कर रहे हैं। यदि कोई रुचि लेता है और सीखने आता है, तो आपने सदगुण अर्जित कर लिया है, और यह ऐसी चीज है जो असीमित सदगुण अर्जित करवाती है। लेकिन एक और बात है: यदि कोई व्यक्ति सीखना नहीं चाहता है, लेकिन आप उसके सीखने पर जोर देते हैं और उसे सीखने के लिए खींचकर ले आते हैं, तो मैं कहूँगा कि यह अच्छा नहीं है, क्योंकि यदि वह साधना के माध्यम से बुद्ध नहीं बनना चाहता है तो कोई बुद्ध भी इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता। लोग स्वयं निर्णय लेते हैं कि वे क्या प्राप्त करना चाहते हैं और क्या पाना चाहते हैं। हम लोगों को अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, इसलिए आप उन्हें अभ्यास के बारे में बता सकते हैं, लेकिन आप दूसरों को बलपूर्वक इसमें नहीं खींच सकते। इस बिंदु पर, मैं आपको याद दिला दूं कि हम किसी को अभ्यास सीखने के लिए विवश नहीं करते हैं। साथ ही, भविष्य में, हमारे स्वयंसेवकों या हमारे प्रभारी लोगों को [फालुन दाफा] का प्रसार करते समय प्रशासनिक तरीकों का उपयोग नहीं करना चाहिए। आप सभी अभ्यासी हैं, इसलिए यह शिक्षाएं ही हैं जो लोगों को आश्वस्त करती हैं। आप सभी शिक्षाओं का अध्ययन कर रहे हैं, इसलिए जब एक स्वयंसेवक ने कुछ अनुचित या अच्छे तरीके से नहीं किया है, तो अन्य शिष्य इसे देखकर कहेंगे कि स्वयंसेवक को उस क्षेत्र में कोई समस्या है। इसलिए वे स्वयंसेवक जैसी गलती करने से बचेंगे। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि हर कोई शिक्षाओं का अध्ययन कर रहा है और वे केवल किसी के विचारों के आधार पर काम नहीं करेंगे; वे शिक्षाओं में निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करते हैं। निश्चित ही, आपके प्रति हमारा व्यवहार वैसा ही है: यदि आप अभ्यास करना चाहते हैं तो सीखें, और यदि आप इसे सीखना नहीं चाहते हैं, तो आप जा सकते हैं; हम किसी को हानि नहीं पहुंचाएंगे। यदि आप इसे सीखना नहीं चाहते हैं, तो ठीक है, लेकिन यदि आप इसे सीखना चाहते हैं और साधना करना चाहते हैं, तो हम आपके प्रति उत्तरदायी होंगे, और यह निश्चित है कि हम इसे निभा सकते हैं। हम औपचारिकताओं के विषय में कठोर नहीं हैं, लेकिन साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयास गंभीर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम इतने महान और गंभीर आध्यात्मिक मार्ग में किसी भी प्रकार का विचलन नहीं होने दे सकते। इतिहास में कभी भी इतनी बड़ी बात जनता तक नहीं पहुंचाई गई। अब आप यहाँ बैठ कर सोच रहे हैं, “यहाँ आना मेरे लिए बहुत स्वाभाविक था; यह ऐसा था कि जैसे किसी ने मुझे इसके बारे में बताया, मैं आ गया।'' आपको पता होना चाहिए कि यह बहुत संभव है कि आपका यहां होना तय था, और उस पूर्वनियति ने शायद इस अवसर को घटित कर दिया। यह दुर्लभ है कि कोई व्यक्ति बिना किसी पूर्वनिर्धारित पृष्ठभूमि के आया हो। मुझे लगता है कि यदि आप सभी प्रश्न पूछते रहेंगे तो पूछने के लिए और कुछ नहीं बचेगा। आप उन सभी चीजों के उत्तर व्याख्यानों में पा सकते हैं जिनके बारे में आप पूछना चाहते हैं।
शिष्य: एक ही समय में दो आध्यात्मिक पद्धतियों का अभ्यास न करने के विषय पर, मुझे लगता है कि यदि कुछ लोग फालुन दाफा सीखते हैं, तो शायद वे अन्य चीजें भी मिश्रित कर सकते हैं जो वे सीख रहे हैं, और कुछ पारंपरिक दिव्य ज्ञान भी है ...
गुरुजी: साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयास एक गंभीर विषय है। ऐसा नहीं है कि आप “बुक ऑफ़ चेंजिस” या “एट ट्राईग्राम्स” पर शोध नहीं कर सकते। जैसा कि मैं देखता हूं, साधना के लिए समय सीमित है, इसलिए यदि आप उस समय का उपयोग इस फालुन [दाफा] का शोध करने और समझने में कर सकते हैं, तो यह बहुत बढ़िया होगा, क्योंकि इससे उच्च कुछ भी नहीं है। अर्थात, “एट ट्राईग्राम्स” के सिद्धांत जिन्हें आज का समाज जानता है, साथ ही अनेक तकनीक-जैसी चीजें, आकाशगंगा से आगे नहीं जाती हैं। दूसरी ओर, यह ब्रह्मांड बहुत विशाल है जो आपकी कल्पना से परे है। जिस ब्रह्माण्ड में हम हैं उसके जैसे तीन हजार ब्रह्माण्ड एक बड़े ब्रह्माण्ड का निर्माण करते हैं। तीन हजार बड़ी सीमा वाले ब्रह्मांड एक और भी बड़ी सीमा वाले ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं, और उसके भीतर अनगिनत भगवान और बुद्ध हैं। आकाशगंगा की क्या बिसात है? यह बहुत लघु है। अभ्यास सीखने वालों के लिए, विचार करें कि शिक्षाओं का इतना विस्तृत संग्रह आपको दिया गया है। मैं वास्तव में नहीं सोचता कि साधकों के लिए [उन अन्य चीजों का अध्ययन करने पर] शक्ति व्यर्थ करना आवश्यक है। लेकिन यदि आप उन चीजों का अपने कार्य के कारण अध्ययन करते हैं, तो मैं इसका विरोध नहीं करता, क्योंकि यह सांसारिक अध्ययन का क्षेत्र है, और इसलिए बस जाकर इसका अध्ययन करें। यदि यह केवल आपकी रूचि है, तो मुझे लगता है कि बेहतर होगा कि आप इन चीजों पर अपना समय व्यर्थ करना बंद कर दें! मुझे आपके प्रति उत्तरदायी होना होगा, क्योंकि साधना के माध्यम से बुद्ध बनने का प्रयास एक गंभीर विषय है। इस प्रकार, यदि आप अपनी शक्ति का उपयोग शिक्षाओं को गहराई से समझने के लिए करते हैं तो यह सबसे अच्छा है। आपको असीमित लाभ प्राप्त होंगे, क्योंकि अध्ययन का कोई भी क्षेत्र इसकी तुलना नहीं कर सकता।
जहां तक आत्माओं और प्रेतों को आमंत्रित करने की सांसारिक पद्धति का प्रश्न है, मैं कहूंगा कि आपको उनसे और भी अधिक दूर रहना चाहिए। क्योंकि प्रेत निम्न-स्तरीय चीजें हैं, ऐसी चीजों के पीछे भागना हमारे दिव्य मार्ग से बहुत परे है! इसके अतिरिक्त, वे दुष्ट चीजें हैं; वे भूत हैं। और फिर, मैंने पुस्तक में ज्योतिष विद्या के बारे में भी विस्तार से बात की है। यदि आप आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, तो यह एक गंभीर विषय है। एक बार जब कोई व्यक्ति शक्ति प्राप्त कर लेता है तो उसके शब्द किसी चीज को निश्चित रूप से वास्तविकता बना सकते हैं। क्योंकि जो अभ्यासी नहीं हैं उनकी अवस्थाएं अस्थिर होती हैं, आप किसी को बता देते हैं कि उसकी परिस्थिति इस प्रकार से है, लेकिन शायद यह वैसी न हो। फिर भी जैसे ही आप कहते हैं कि यह इस प्रकार है, तो आप इसे वास्तविकता बना देंगे, और आपने एक बुरा काम किया होगा। इसलिए अभ्यासीयों को स्वयं का मूल्यांकन करने के लिए उच्च आदर्श का उपयोग करना चाहिए। यदि आप कोई बुरा काम करते हैं, तो यह कोई साधारण बात नहीं है। मैं आपके शरीर को स्वच्छ करता हूँ; जैसे ही हम देखते हैं कि आप साधना करना चाहते हैं तो हम ऐसा करते हैं। यदि आप आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, तो आपको इन चीजों को छोड़ देना चाहिए, क्योंकि शुद्ध और पवित्र साधना ही सर्वोत्तम है।
शिष्य: मुझ पर मानसिक बोझ है। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि भाग्य मुझे आज फालुन दाफा सीखने के लिए यहां लाया है। मैंने पढ़ा कि जुआन फालुन खंड II में कहा गया है कि जो लोग इस जीवन में अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी नहीं कर सकते, वे इसे अगले जीवन में जारी रखने का संकल्प ले सकते हैं। फिर भी मेरा वास्तविक उद्देश्य फल पदवी प्राप्त करना है। लेकिन अब मैं वृद्ध हो गया हूं तो मुझे क्या करना चाहिए?
गुरुजी: यह वृद्ध लोगों के लिए एक मुद्दा है। अर्थात्, यद्यपि हमारा मार्ग किसी व्यक्ति को शीघ्रता से परिष्कृत कर देता है, क्या इस व्यक्ति का शेष जीवनकाल साधना के लिए पर्याप्त होगा? सच कहूँ तो, यह किसी के लिए भी पर्याप्त है, चाहे उनकी आयु कितनी भी हो। लेकिन एक बात है: हमारे अधिकांश अभ्यासी इस स्थिति को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम नहीं हैं। आप कह सकते हैं कि आप इस स्थिति को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम हैं, लेकिन वास्तव में आप नहीं हैं, क्योंकि आप अपनी साधना में पर्याप्त उच्च आध्यात्मिक स्तर में आगे नहीं बढ़े हैं, और आपका मन पर्याप्त उच्च आदर्शों को पूरा नहीं कर पाया है, इसलिए आप स्थिति को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम नहीं होते हैं। हमारा मार्ग मन और शरीर दोनों को परिष्कृत करता है, इसलिए जैसे-जैसे आप आध्यात्मिक प्रगति करते हैं, आपका शरीर परवर्तित होता है और आपका जीवनकाल बढ़ जाता है। क्योंकि यह अभ्यास मन और शरीर दोनों को परिष्कृत करता है, आप अभ्यास करते हुए अपना जीवनकाल बढ़ाते हैं, इसलिए सैधांतिक रूप में, चाहे आप कितने भी वृद्ध क्यों न हो गए हों, वास्तव में, आपके पास पर्याप्त [अभ्यास करने का समय] है। लेकिन एक बात है: आपके जीवनकाल का बढ़ना शत-प्रतिशत साधना के लिए है और सांसारिक जीवन जीने के लिए नहीं है। फिर यदि व्यक्ति को पता नहीं है कि उसका जीवनकाल बढ़ गया है और वह चीजों को अच्छी तरह से संभाल नहीं पाता है, और अभ्यासियों की आवश्यकताओं के अनुसार चीजों को सौ प्रतिशत नहीं कर सकता है, तो उसे हमेशा मृत्यु के संकट का सामना करना पड़ेगा—यही वह समस्या है जिसका सामना वृद्ध लोग करते हैं।
हालाँकि, यदि उन्होनें वास्तव में अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी नहीं की, और दृढ़ नहीं रहे, तो उनके पास आगे बढ़ने के लिए केवल तीन मार्ग हैं: एक, अगले जीवन में साधना जारी रखना। मेरे दिव्य शरीर उनका ध्यान रखेंगे, तब भी जब वे पुनर्जन्म लेंगे, और वह एक ऐसे परिवार में पुनर्जन्म लेंगे जहां वह साधना कर सकते हैं। इन सबकी व्यवस्था करनी होगी। दूसरा विकल्प यह है कि यदि वह साधना नहीं करना चाहते हैं और सोचते हैं कि मानवीय स्थिति बहुत अधिक पीड़ा से भरी है, तो वह उस आयाम तक जायेंगे जिस पर वह अपनी साधना में पहुँच चुके हैं। इसलिए यदि वे तीन लोकों को छोड़ देते हैं, तो वे तीन लोकों के बाहर उस आयाम में एक चेतन प्राणी होंगे; यदि वे तीन लोकों से बाहर नहीं जाते हैं, तो वे तीन लोकों के उस आयाम में एक निम्न देवता के रूप में रहेंगे। लेकिन तीन लोकों के भीतर, उन्हें फिर भी लगभग तीन से पांच सौ वर्षों के बाद पुनर्जन्म लेने के लिए नीचे आना होगा; यह केवल इतना है कि वह कुछ सौ वर्षों की प्रसन्नता का सुख ले सकता है। यह एक विषय है। दूसरा मार्ग यह है कि कुछ लोग वास्तव में साधना में काफी आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन फिर भी वे आदर्श पर खरे नहीं उतरते हैं। शिक्षाओं के बारे में उनकी समझ के कारण या क्योंकि उन्होंने विशेष योगदान दिया है, वे फालुन दिव्यलोक में प्राणी बनने के लिए जा सकते हैं, और क्योंकि वे तीन लोकों से परे हैं, इसलिए वे पुनर्जन्म से नहीं गुजरेंगे। निश्चित ही, यह अच्छा है, हालाँकि यह एक असामन्य स्थिति है, क्योंकि आवश्यकताएँ काफी कठोर हैं। फिर भी वे बुद्ध, अरहत या बोधिसत्व नहीं हैं—वे फालुन दिव्यलोक में केवल साधारण लोग होंगे। तो चीजें इस प्रकार हैं। वास्तव में, क्योंकि आपने पहले ही अभ्यास शुरू कर दिया है, साधना के माध्यम से आपके बुद्ध बनने का बीज बोया जा चूका है।
शिष्य: मेरा एक प्रश्न है: लोगों के आध्यात्मिक स्तर कैसे निर्धारित होते हैं?
गुरुजी: मैंने यह कहा है: मैंने कहा कि जब एक श्रेष्ठ व्यक्ति दाओ सुनता है, तो वह लगन से उसका पालन करता है, और मैं लाओ ज द्वारा दिए गए एक कथन का उपयोग कर रहा था। जब एक औसत व्यक्ति दाओ सुनता है, तो वह इसका कभी-कभार अभ्यास करता है, और जब एक कमतर व्यक्ति दाओ सुनता है, तो वह इस पर जोर से हंसता है। इसका क्या अर्थ है? वाक्यांश "जब कोई श्रेष्ठ व्यक्ति दाओ सुनता है" का अर्थ है कि जब यह व्यक्ति साधना के बारे में सुनता है, तो वह तुरंत इसे अपनाना चाहता है, और वह इस पर विश्वास करता है। इस प्रकार का व्यक्ति खोजना कठिन है। वह तुरंत साधना आरम्भ कर देता है और अंत तक इसे जारी रखता है—वह एक श्रेष्ठ व्यक्ति है। जब कोई श्रेष्ठ व्यक्ति दाओ सुनता है, तो वह लगन से उसका पालन करता है। वाक्यांश "जब एक औसत व्यक्ति दाओ सुनता है, तो वह इसका कभी-कभार अभ्यास करता है" का क्या अर्थ है? वह देखता है कि हर कोई इसे सीखने के लिए आ रहा है और इसलिए वह भी उनके साथ आ जाता है। जो भी हो, वह सोचता है कि यह बहुत अच्छा है। शायद जैसे ही वह व्यस्त हो जाता है या सांसारिक समस्याओं का सामना करता है, वह इसके बारे में भूल जाता है। वह मन ही मन सोचता है, "दूसरों ने वैसे भी इसे सीखना बंद कर दिया है, इसलिए मैं भी इसे सीखना बंद कर दूंगा।" उसे इसे सीखने या न सीखने से कोई अंतर नहीं पड़ता है—वह दाओ सुनने वाला एक औसत व्यक्ति है, जो इसका अभ्यास कभी-कभार ही करता है। वह अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी कर सकता है, लेकिन वह शायद नहीं भी कर सकता है। कोई व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी करेगा या नहीं, यह उस पर निर्भर करता है। जब एक कमतर व्यक्ति दाओ सुनता है, तो वह उस पर जोर से हंसता है। जैसे ही कमतर व्यक्ति दाओ सुनता है, वह कहता है, “साधना? क्या बकवास है!" वह हंसते हुए कहते हैं, "यह सब अंधविश्वास है और मैं इसमें विश्वास नहीं करता।" निस्संदेह, वह आध्यात्मिक प्रगति करने में और भी कम सक्षम होगा; चीजें ऐसी ही हैं। जहां तक यह बात है कि कोई व्यक्ति साधना में कितने ऊंचे स्तर तक आगे बढ़ सकता है, तो मुझे लगता है कि यह इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति का मन कितना सहन कर सकता है। [कुछ लोगों के लिए], जब आप थोड़ी सी कठिनाई में पड़ जाते हैं, तो एक बार इस कमरे से बाहर निकलने के बाद आप इसे सहन नहीं कर पाएंगे। जैसे ही मैं यहां व्याख्यान देता हूं, आप सभी सोचते हैं कि यह अच्छा है। क्योंकि यह एक पवित्र आध्यात्मिक मार्ग है, मेरे अंदर जो शक्ति है वह दयालु और करुणामयी है, इसलिए आप सभी यहाँ सहज अनुभव करते हैं और मेरा व्याख्यान सुनकर प्रसन्न होते हैं। निस्संदेह, यही बात तब घटित होगी जब आप साधना करेंगे, क्योंकि यह एक पवित्र आध्यात्मिक मार्ग है। लेकिन यदि द्वार से बाहर निकलने पर आप पूरी तरह से बदल जाते हैं, आपके मन में सांसारिक चीजों के प्रति कुछ मोहभाव तुरंत उभर आते हैं, और आप साधना में रुचि गंवा देते हैं और इसके बारे में भूल जाते हैं, तो ऐसा नहीं चलेगा।
शिष्य: क्या आप मिश्रित जाति के बच्चों की परिस्थिति के बारे में अधिक बता सकते हैं?
गुरुजी: मैंने पहले ही मिश्रित जाति के बच्चों पर चर्चा की है, जो एक ऐसी घटना है जो इन दिनों में ही सामने आई है। यदि आप मिश्रित जाति के हैं तो निःसंदेह यह आपकी गलती नहीं है, और इसके लिए आपके माता-पिता को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है—वास्तविकता यह है कि मानव जाति ने यह अराजक घटना उत्पन्न की जिसके कारण ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई। पीले, श्वेत और काले लोगों की दिव्यलोक में उनके अनुसार ही जातियाँ होती हैं। यह सत्य है कि [दिव्यलोक में रहने वाले] वास्तव में उन लोगों का ध्यान नहीं रखते जो उनकी जाति के नहीं हैं, जो उनके जैसे नहीं हैं। यह मैं केवल बातें नहीं बना रहा हूं—मैं जो आपको बता रहा हूं वह दिव्य रहस्य हैं। इन अंतिम दिनों के दौरान मिश्रित जातियां उत्पन्न हुईं, लेकिन आप इसके लिए लोगों को दोष नहीं दे सकते। सब लोग धारा के साथ बह गए हैं, और क्योंकि सत्य कोई नहीं जानता, इसलिए बहते-बहते यहाँ तक आ पहुँचे हैं। यदि आप साधना करना चाहते हैं, तो मैं इस स्थिति को संभाल सकता हूँ। आप किस दिव्यलोक में जाएंगे, इसका निर्णय हमें आपकी स्थिति के आधार पर करना होगा। मैं आपको वहीं आत्मसात करूँगा जहां आपका सबसे बड़ा भाग मेल खाता हो। वैसे भी, इन विषयों के संबंध में, आपको केवल साधना पर ध्यान देना चाहिए, इन चीजों पर नहीं। अब जब आपने फालुन दाफा अपना लिया है तो आपको किस बात का भय है? अतीत में जब मैंने शिक्षाओं के व्याख्यान दिए थे तो मैंने कभी इस पर चर्चा नहीं की थी, लेकिन इस स्थिति को अभी नहीं तो बाद में लोगों को समझाने की आवश्यकता थी।
शिष्य: क्या यह बहुत अच्छा नहीं होगा यदि मानव जाति केवल सब्जियाँ खाए?
गुरुजी: वह काम नहीं करेगा। आप चीजों को इसी प्रकार देखते हैं, लेकिन दिव्यलोक ने मानव जीवन के लिए मानक निर्धारित किए हैं, और मनुष्य माने जाने के लिए सभी को इन मानकों को पूरा करना होगा। [वह काम नहीं करेगा] क्योंकि मांस निश्चित रूप से सब्जियों की तुलना में शरीर की गर्म उर्जा को बेहतर ढंग से भरने में सहायता कर सकता है। लेकिन जो लोग साधना करते हैं उनके लिए यह एक भिन्न विषय है।
शिष्य: जब हम ध्यान करते हैं तो मन कितना शांत होना चाहिए, इसके लिए क्या कोई विशिष्ट मानक है? यदि दाफा अभ्यासी की मुख्य आत्मा हमेशा स्वयं के बारे में सोचती रहती है, तो क्या इससे व्यक्ति की शांत होने की क्षमता प्रभावित होगी?
गुरुजी: मुख्य आत्मा और आपका शांत अवस्था में प्रवेश करना दो भिन्न चीजें हैं। किसी व्यक्ति के लिए शुरुआत में अपने मन को शांत करना असंभव है। लोग अपने मन को शांत क्यों नहीं कर पाते? ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों के बहुत सारे मोहभाव होते हैं: आपका व्यवसाय, आपकी शिक्षा, आपकी नौकरी, पारस्परिक मतभेद, आपके बच्चे के रोग, कोई भी आपके माता-पिता की देखभाल नहीं कर रहा है, सांसारिक मुद्दे—ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके बारे में आप नहीं सोचेंगे, और ये सब ये चीजें आपके मन के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लेंगी। इसके बारे में सोचें: क्या आप अपने मन को शांत करने में सक्षम होने का दावा कर सकते हैं? आप बैठ जाते हैं और कहते हैं कि आप उन चीजों के बारे में नहीं सोचेंगे, लेकिन वे अपने आप सामने आ जाती हैं, इसलिए ऐसा कोई तरीका नहीं है जो आपको अपने मन को शांत करने में सक्षम बनाए। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा मैंने पुस्तक में लिखा है—आप कहते हैं कि यदि आप बुद्ध के नाम का जप करते हैं, अपने मन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, या संख्याएँ गिनते हैं तो आप अपने मन को शांत कर सकते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी तरीका काम नहीं करेगा। वे एक प्रकार की विधि हैं, लेकिन वे हमेशा काम नहीं करतीं। एकमात्र चीज जो काम करती है वह धीरे-धीरे सांसारिक चीजों के प्रति आपके मोहभाव को अधिक हल्के में लेना है। जब आप इन्हें अधिक हल्के में लेंगे तो आप स्वाभाविक रूप से अपने मन को शांत कर पाएंगे। जब आप वास्तव में अपने मन को शांत कर पाएंगे, तो आप बहुत ऊंचे स्तर पर पहुंच जाएंगे। लेकिन एक बात है: एक बार जब आप फालुन दाफा का अभ्यास शुरू कर देंगे, तो क्या आप एक साधु के जैसे हो जाएंगे, जिसे किसी भी चीज की चाह नहीं होती और उसकी कोई भौतिक संपत्ति नहीं होगी? नहीं, हम अपनी पूरी क्षमता से समाज के अनुरूप होते हैं क्योंकि हम स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित करते हैं, क्योंकि जब आप सांसारिक जगत में होते हैं, तो आप ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते जैसे कि आप विशेष हैं, और सतह पर आप केवल एक साधारण व्यक्ति हैं। इसलिए हमें स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित करते हुए अपनी सर्वोत्तम क्षमता से समाज के अनुरूप होना चाहिए। यदि युवा विवाह करना चाहते हैं, तो उन्हें आगे बढ़ना चाहिए और ऐसा करना चाहिए, और यदि आप कोई व्यवसाय करना चाहते हैं या एक अधिकारी बनना चाहते हैं, तो इससे [आपकी साधना] पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। हम एक सिद्धांत समझा रहे हैं। समाज में प्रत्येक सामाजिक वर्ग के अपने पारस्परिक संघर्ष होते हैं। हम धर्मों की सीमित रूपरेखाओं को नहीं मानते हैं। दाओवादी मार्ग अपने ताईजी से आगे जाने में असमर्थ हैं, और बौद्ध प्रथाएँ अपने सिद्धांतों से आगे जाने में असमर्थ हैं। इसलिए हम धर्मों के सिद्धांतों को नहीं मानते हैं, क्योंकि हम संपूर्ण ब्रह्मांड के सिद्धांतों को समझा रहे हैं।
हमने पाया है कि आप आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं, भले ही आप किसी भी सामाजिक वर्ग से हों, आप क्या करते हैं और आपका व्यवसाय क्या है। ऐसा क्यों है? एक औसत कर्मचारी, आश्रय पाने और भोजन अर्जित करने में सक्षम होने के लिए, व्यक्तिगत रूप से और अपने कार्यस्थल पर दूसरों के साथ संघर्ष करेगा। फिर यह प्रश्न है कि इन संघर्षों का सामना करते हुए वह एक अच्छा मनुष्य कैसे बन सकता है। एक औसत अधिकारी, एक कार्यालय कर्मचारी, इस समस्या का सामना करता है कि वह अपने सामाजिक वर्ग में एक अच्छा मनुष्य कैसे बने, क्योंकि लोग भौतिक हितों के लिए आपस में संघर्ष करते हैं। अपने जीवन के सभी विभिन्न पहलुओं में संघर्षों का सामना करते हुए वह इस समस्या का सामना करता है कि एक अच्छा मनुष्य कैसे बने। व्यवसायियों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है कि अपने सामाजिक वर्ग में व्यवसाय करते समय अच्छे लोग कैसे बनें, अन्य व्यवसायियों के साथ कैसे काम करें, और अन्य लोगों के साथ संघर्ष को कैसे संभालें। उन्हें अपने-अपने स्तर के संघर्षों का भी सामना करना पड़ता है। यह किसी राष्ट्र के राष्ट्रपति के लिए भी ऐसा ही है: राष्ट्रपति को अपने देश के लिए कड़ा परिश्रम करना होता है, उनके पास ऐसी चीजें होती हैं जो सुचारू रूप से चलती हैं और ऐसी चीजें होती हैं जो नहीं चलती हैं, ऐसी चीजें होती हैं जो सफल होती हैं और जो विफल होती हैं, और राष्ट्रों के बीच संघर्ष होते हैं, इसलिए वह चिंता करने वाली बातें हैं। एक मनुष्य के रूप में जीवन ऐसा ही है, इसलिए सामाजिक सीढ़ी पर अपनी परिस्थिति की चिंता किए बिना, आप नश्वर संसार, लोगों और समाज से निपटने से बच नहीं सकते हैं; इस प्रकार, आपको संघर्षों का सामना करना पड़ेगा। इन संघर्षों से निपटते समय आपके सामने यह समस्या आती है कि एक अच्छा मनुष्य कैसे बनें, और यदि आप एक अच्छे मनुष्य बन सकते हैं तो आप साधारण लोगों से आगे निकल जायेंगे।
यह वही सिद्धांत है जिसे हम समझा रहे हैं: यह भौतिक रूप से किसी भी चीज से छुटकारा पाने के बारे में नहीं है। बल्की, यह मोहभावों से छुटकारा पाने के बारे में है। यदि आप बड़ा व्यवसाय करते हैं तो यह ठीक है, और इससे आपकी साधना प्रभावित नहीं होगी। आप जितना बड़ा व्यवसाय करेंगे, निस्संदेह आप उतना ही अधिक धन कमाएंगे, लेकिन आप पैसे को सर्व-महत्वपूर्ण नहीं मानेंगे। आप उन लोगों की तरह नहीं होंगे जो छोटे-छोटे भौतिक लाभों से अत्यधिक मोहभाव रख रहे हैं। भले ही आपका घर सोने से बना हो, आपके मन को इससे मोह नहीं होगा और आप इसे बहुत हल्के में लेंगे। यह हमारे साधकों के लिए आवश्यक मानक है। यदि आप एक महत्वपूर्ण अधिकारी हैं, तो आप लोगों के लिए अच्छे काम कर सकते हैं; यह वह मानक है जो हमने अभ्यासीयों के लिए निर्धारित किया है। यह ऐसे ही है, है ना? इस [अवधारणा] को समझाते समय हम धर्मों से आगे जाते हैं और इसका सार समझाते हैं। आप किसी भी वातावरण में स्वयं का सुधार कर सकते हैं। लेकिन एक बात है: मानव जगत में साधना सीधे तौर पर व्यक्ति के मन का सुधार करती है। तो मैं यह क्यों कहता हूँ कि मैं सचमुच आपको बचा रहा हूँ? ऐसा इसलिए है क्योंकि आप स्वयं वास्तव में सुधार कर रहे हैं और वास्तव में मानव संसार में रहने के तनाव और दबाव को सहन कर रहे हैं। क्योंकि आप स्वयं वास्तव में सुधार कर रहे हैं, [हमारे अभ्यास में उत्पादित] उच्च शक्ति आपको दी जानी चाहिए, इस प्रकार हम आपको बचा रहे हैं।
सहायक आत्मा भी उच्च शक्ति प्राप्त कर सकती है, लेकिन यह हमेशा आपकी संरक्षक आत्मा रहेगी, और यह अपनी आध्यात्मिक यात्रा भी पूरी कर सकती है और आपका अनुसरण कर सकती है। हालाँकि मैंने आज यह विषय उठाया है, फिर भी चीजों के बारे में आपकी समझ अभी भी उतनी गहरी नहीं है। आपको पता होना चाहिए कि कुछ लोग अभी भी अन्य आध्यात्मिक मार्गों की चर्चा कर रहे हैं और इस बारे में बात कर रहे हैं कि अन्य मार्ग कैसे हैं, और ऐसा इसलिए है क्योंकि आप अभी जो मैंने कहा उसका वास्तविक अर्थ समझने में सक्षम नहीं हैं! पूरे इतिहास में सभी आध्यात्मिक मार्गों ने आपकी सहायक आत्मा को बचाया है, आपको नहीं—वे आपको नहीं बचाते हैं! मैंने युगों का एक रहस्य उजागर किया है! इस विषय पर बात करने की अनुमति पाने के लिए मुझे काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अतीत में, चाहे आपने कैसा भी अभ्यास किया हो, आप स्वयं नहीं बचेंगे, तो आप किसके लिए अभ्यास कर रहे थे? जीवन भर साधना के बाद, आपको अभी भी पुनर्जन्म के छह मार्गों से गुजरना होगा, इस बात से अनजान कि आप अगले जीवन में किस रूप में पुनर्जन्म लेंगे। क्या यह दयनीय नहीं है? ऐसा क्यों था? अतीत में, न तो धर्म और न ही अन्य आध्यात्मिक मार्गों ने आपकी मुख्य आत्मा को बचाया। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें लगा कि मुख्य आत्मा को बचाना बहुत कठिन है और वह बहुत भ्रमित होती है। आपको लगता है कि आप समझ रहे हैं कि मैं यहां क्या समझा रहा हूं, लेकिन कुछ लोग यहां से जाने के बाद अपनी इच्छानुसार कार्य करने लग जाते हैं, स्वयं को इसमें झोंक देते हैं और प्रत्यक्ष, सांसारिक लाभों के लिए दूसरों के विरुद्ध प्रतिस्पर्धा करते हैं; लोग ऐसे ही होंगे, यह निश्चित है। यही कारण है कि दिव्य प्राणी मनुष्यों को बचाना बहुत कठिन मानते हैं। लेकिन मैं आपको बचा रहा हूं। आपकी सहायक आत्मा का नाम भी वही है जो आपका है, उसने आपके साथ ही जन्म लिया है, और उसी शरीर को नियंत्रित करती है—यह केवल इतना है कि आप उसके अस्तित्व के बारे में नहीं जानते हैं। दुसरे जो हैं वे उस आत्मा को बचाते हैं; बात करते समय वे आपकी ओर देख सकते हैं, लेकिन वास्तव में वे उस आत्मा से बात कर रहे होते हैं। कभी-कभी, समझकर या बिना समझे, आप कुछ बातें कह सकते हैं, लेकिन वह आपके मन से नहीं आती। बहुत से लोग जब ध्यान करते हैं और एक समय में कई घंटों तक बैठे रहते हैं तो वे अचेतन अवस्था में चले जाते हैं। जब वे ध्यान समाप्त करते हैं तो वे वास्तव में उत्साहित हो जाते हैं और कहते हैं, "देखो मैंने कितना अच्छा अभ्यास किया है। मैंने कई घंटों तक केन्द्रित होकर ध्यान लगाया। यह बहुत दुःख की बात है! क्या आपने वास्तव में अभ्यास किया? क्या आप जानते हैं कि आपने किया या नहीं? यह पूर्णतया कोई अन्य व्यक्ति है जो वास्तव में अभ्यास कर रहा है।
अतीत में, कुछ दाओवादी मार्ग आपको अपनी मुख्य आत्मा को सुन्न करने के लिए मदिरा पीने के लिए कहते थे जिससे आपकी सहायक आत्मा साधना कर सके। कई दाओवादी मार्गों में लोग तब तक मदिरा पीते हैं जब तक वे सुन्न नहीं हो जाते, अचेत नहीं हो जाते और गहरी नींद में सो नहीं जाते, जिसके बाद दुसरे उनकी सहायक आत्माओं को साधना करने के लिए ले जाते हैं। मैं युगों का एक रहस्य समझा रहा हूं, हालांकि ऐसा लग सकता है कि मैं इसे यहां ऐसे ही बता रहा हूं। चाहे आप किसी भी मार्ग के बारे में बात कर रहे हों, क्योंकि [उच्च प्राणियों] ने मनुष्यों को साधना पूरी करने में असमर्थ माना है, शायद अपने मन की करुणा के कारण, वे चाहते हैं कि आपके शरीर से कोई व्यक्ति साधना पूरा कर सके, जिसे आपके रूप में गिना जाएगा, पुण्य संचित करके और कष्ट सहकर, क्योंकि आपकी युवावस्था अंततः साधना में ही व्यतीत हुई थी। तो आगे क्या होगा? क्या आप अपने अगले जन्म में एक सहायक आत्मा के रूप में पुनर्जन्म लेंगे? यह संभव है। लेकिन जैसे कि मैं देखता हूं, उस अवसर की संभावना बहुत कम है। और फिर आपसे दोबारा साधना शुरू कराई जाएगी? इसकी संभावना भी बहुत कम है। लेकिन कुछ लोगों को पुण्य दिया जाएगा। वह कैसे काम करता है? वे उच्च पदस्थ अधिकारी बनेंगे, बड़ी संपत्ति अर्जित करेंगे, या बड़ा व्यवसाय करेंगे—जब वे अपने अगले जीवन में प्रवेश करेंगे तो उनके लिए यही किया जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि अततः, उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में पुण्य और आशीर्वाद अर्जित किया है। मुझे नहीं लगता कि यहां कोई भी यह परिणाम चाहता है। हर बार जब मैं इस मुद्दे पर चर्चा समाप्त करता हूं, तब भी कुछ लोग आते हैं और मुझसे पूछते हैं कि मैं विभिन्न आध्यात्मिक मार्गों और धर्मों के बारे में क्या सोचता हूं। मुझे लगता है कि चीजों को समझने की उनकी क्षमता बहुत कम है। आप हमारे फालुन दाफा के स्पष्ट गुणों को पढ़ सकते हैं, जो वहां [पोस्टर पर] लिखे गए हैं, लेकिन लोग उन पर ध्यान नहीं देते हैं और बस उन्हें अनदेखा कर देते हैं जैसे कि वे केवल साधारण वाक्यांश हैं। वे ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत हैं, और वास्तव में अतीत में चीजें ऐसी ही थीं।
यह संभव है कि जब आप इस कमरे से बाहर निकलेंगे, तो आपका शरीर बहुत आरामदायक अनुभव करेगा, लेकिन एक बात ध्यान देने योग्य है: जैसे-जैसे आप स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित करते हैं, तब भी ऐसे समय आएंगे जब आपका शरीर अस्वस्थ अनुभव करेगा। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके पास विभिन्न जन्मों से संचित कर्म हैं। आप एक ही जीवनकाल में किसी व्यक्ति के कर्मों को एक साथ पूरी तरह से बाहर की ओर नहीं धकेल सकते; अन्यथा, उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाएगी। तो हम धीरे-धीरे कर्म को शरीर के अंदर से बाहर धकेलते हैं; इसलिए, कुछ समय के बाद आपका शरीर अस्वस्थ अनुभव करेगा, और आप सोचेंगे, "क्या मैं बीमार हो गया हूँ?" मैं आपको याद दिला दूं कि यह कोई रोग नहीं है। लेकिन जब यह आएगा तो यह आपको बहुत अस्वस्थ अनुभव कराएगा, और कभी-कभी यह काफी गंभीर होगा—यह काफी गंभीर प्रतीत होगा। लेकिन कुछ लोग समझते हैं [जो भी हो रहा है], और जब उन्हें कष्ट अनुभव होता है तो वे उत्साहित हो जाते हैं, कहते हैं, "गुरूजी मेरा ध्यान रख रहे हैं और मेरे रोग और मेरे कर्म को हटा रहे हैं।" दूसरी ओर, कुछ लोग, जो अस्वस्थ अनुभव नहीं करते हैं और उनके शरीर में कोई संवेदना नहीं होती है, वास्तव में चिंतित हो जाते हैं: "गुरूजी मेरा ध्यान नहीं रख रहे हैं। क्यों मेरे कर्म हट नहीं रहे हैं?” लेकिन अक्सर कुछ नए शिष्य होते हैं, जो जैसे ही अपना शरीर अस्वस्थ अनुभव करते हैं, सोचते हैं कि वे रोगी हैं और दवा लेने का निर्णय करते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि व्यायाम करना और दवा लेना दोनों उचित है। हमने एक सिद्धांत देखा है: अस्पताल लोगों के कर्मों को नहीं हटा सकते हैं। डॉक्टर साधक नहीं हैं। उनके पास अपेक्षित आध्यात्मिक अधिकार नहीं है और वे मानव जगत में केवल तकनीशियन हैं। वे केवल आपके सतही कष्ट को दूर कर सकते हैं, लेकिन [आपके शरीर की] गहरी परतों से नहीं। दवा लेने से रोग शरीर के अंदर गहराई तक चला जाता है, मूलतः जमा हो जाता है। सतह पर कष्ट समाप्त हो जाएगा, लेकिन यह शरीर की गहरी परतों में जमा हो जाएगा। सर्जरी भी वैसी ही है। उदाहरण के लिए, यदि आपको ट्यूमर है, तो वे ट्यूमर को निकाल देंगे, लेकिन वे केवल सतही पदार्थ को हटा रहे हैं। लेकिन रोग का वास्तविक कारण अन्य आयामों में होता है, और वे उस तक नहीं पहुँच सकते। तो एक गंभीर कार्मिक रोग दोबारा उभरेगा। कुछ मामलों में ऐसा लगता है कि रोग ठीक हो गया है और इस जन्म में दोबारा नहीं आता है, लेकिन यह आपको अगले जन्म में ढूंढ लेगा, क्योंकि इसे एक गहरे स्तर पर धकेल दिया गया है और इस प्रकार किसी बिंदु पर उसका फिर से उभरना निश्चित है। यहां सिद्धांत यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अंत में अपने कर्मों का भुगतान करना ही होगा। हम यहां जो करते हैं वह यह है कि, आपके अस्तित्व की उत्पत्ति से शुरू होते हुए, आपके शरीर से गंदी चीजों को बाहर निकालते हैं। लेकिन ऐसा कोई और नहीं करता; यह केवल अभ्यासीयों के लिए ही किया जा सकता है, और हम इसे आपके लिए करेंगे। हालाँकि, आपको मन की अच्छी स्थिति बनाए रखनी चाहिए, और जैसे ही आपका शरीर अस्वस्थ अनुभव करता है, आप यह नहीं सोच सकते, "अरे मैं फिर से बीमार हो गया हूँ"। यदि आपको लगता है कि आप बीमार हैं और दवा लेते हैं, तो हम आपको नहीं रोकेंगे, क्योंकि साधना चीजों को ठीक से समझने की आपकी क्षमता पर निर्भर करती है, और किसी भी चीज के लिए कोई कठोर नियम नहीं हैं। हमने कभी नहीं कहा कि यदि आप अस्वस्थ अनुभव करते हैं तो आपको दवा नहीं लेनी चाहिए। हमने ऐसा कभी नहीं कहा।
कुछ लोग स्वयं को अभ्यासियों के अनुरूप ढालने में असफल हो जाते हैं। वे केवल अभ्यास करते हैं, वे शिक्षाओं का अध्ययन नहीं करते हैं, और वे अपने व्यवहार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाते हैं। भले ही वे अभ्यास करते हैं, मेरे दिव्य शरीर उनका ध्यान नहीं रखते। बिना किसी के ध्यान रखने के, वे केवल साधारण लोग रहेंगे, और उनको रोग हो जायेंगे। यदि हमने कोई नियम निर्धारित किया जो आपको दवा लेने से रोकता है, और यदि आप एक साधक के मानकों के अनुसार स्वयं को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होते हैं, तो आप अभी भी एक साधारण व्यक्ति ही होंगे। समय आने पर आप फिर भी बीमार हो जायेंगे, लेकिन तब आप कहेंगे कि ली होंगज़ी ने आपको दवा लेने की अनुमति नहीं दी। इसलिए मैं आपको यह नहीं बताता कि आपको दवा लेनी चाहिए या नहीं; आप स्वयं निर्णय लें। वैसे भी, परिस्थिति आपकी परीक्षा लेने के लिए होती है, और यदि आप एक अभ्यासी की मानसिकता को अपनाने में विफल रहते हैं, तब भी आप बीमार पड़ जाएंगे—यह ऐसा ही है। हम यहां केवल संबंधित सिद्धांत पर चर्चा कर रहे हैं, इसलिए आपको पता होना चाहिए कि यदि आप स्वयं को आध्यात्मिक रूप से विकसित करना चाहते हैं, तो अब से, जब आपका शरीर अस्वस्थ अनुभव करना शुरू कर देगा, तो यह बहुत संभव है कि आपके पिछले जन्मों के कर्म बाहर निकल रहे हों। मैंने देखा है कि कुछ लोगों ने दर्जनों या यहां तक कि सौ से अधिक बार पुनर्जन्म लिया है, और उन कई जीवनकालों में उन्होनें कई भिन्न-भिन्न रोग एकत्रित किये हैं; हमें यह सब आपके अंदर से बाहर निकालने होंगे, और किसी न किसी तरीके से हमें आपके लिए इन्हें हटाना होगा। हम दूसरे आयाम के माध्यम से इसका अधिकांश भाग हटा देंगे, और हमें इसका एक भाग अवश्य ही हटाना होगा। लेकिन हम इसे पूर्ण रूप अन्य आयामों के माध्यम से नहीं हटा सकते, क्योंकि आपको थोड़ा कष्ट सहना चाहिए। यदि आप कुछ भी सहन नहीं करते हैं, तो इसका अर्थ यह होगा कि आपने अनिवार्य रूप से बुरे कार्य किए हैं और उनके लिए भुगतान करने से बच गए हैं। जब आप अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी कर लेते हैं और आपको बुद्ध की दिव्य प्रतिष्ठा दी जाती है, तो आपको ऐसा अनुभव होगा कि आप वहां रहने के योग्य नहीं हैं। दूसरों को भी आश्चर्य होगा: "वह यहाँ कैसे आया?" क्या आपको ऐसा नहीं लगता? तो आपको कष्ट का एक भाग सहन करना होगा। और जैसे-जैसे आप इसे सहन करेंगे, आपकी आध्यात्मिक विवेक की शक्ति में भी सुधार होगा। क्या आप इसे एक रोग के रूप में देखेंगे? या क्या आप इसे एक अभ्यासी द्वारा कर्म को हटाने के अवसर के रूप में देखेंगे?
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