फालुन दाफा

आगे और प्रगति के लिए आवश्यक लेख

ली होंगज़ी

अनुवाद मार्च 2024 में अद्यतन किया गया


  1. लुनयु
  2. धन के साथ सद्गुण
  3. विस्तृत और अथाह
  4. सच्ची साधना
  5. संयमित रहे
  6. ज्ञानप्राप्ति
  7. व्यक्ति देख क्यों नहीं पाता
  8. फा को सीखना
  9. सहायता कैसे प्रदान करें
  10. नभमंडल
  11. लोक
  12. रिक्तता क्या है?
  13. दृढ़ता
  14. बुद्धमत की शिक्षाएं बुद्ध फा का सबसे अशक्त और संक्षिप्त अंश है
  15. प्रज्ञा क्या है?
  16. यह साधना अभ्यास है, कोई व्यवसाय नहीं
  17. सेवा निवृति के प्रश्चात साधना अभ्यास
  18. जब फा सही होगा
  19. ऋषि
  20. गुरु से दीक्षा प्राप्त करना
  21. एक स्पष्ट स्मरण पत्र
  22. आप साधना अभ्यास किसके लिए करते हैं?
  23. बुद्ध फा की शब्दावली
  24. आतंरिक साधना से बाह्य शांत करें
  25. मोहभावों से और अधिक छुटकारा
  26. मान्यकरण
  27. एक साधक सहज रूप से इसका अंश है
  28. सहनशीलता (रेन) क्या है?
  29. मी-शिन (अन्धविश्वास) क्या है?
  30. रोग कर्म
  31. साधक की त्यागने योग्य वस्तुएं
  32. उत्तम सामंजस्य
  33. त्रुटि-हीन
  34. साधना और कार्य
  35. सुधार
  36. अपरिवर्तनीय
  37. निराधार वचन न कहें
  38. जागृति
  39. फा की स्थिरता
  40. साधना अभ्यास और उत्तरदायित्व लेना
  41. शास्त्रों की हस्तलिखित प्रतियों का क्या किया जाए
  42. फा सम्मेलन
  43. शिजिआज़ुआंग दाफा सामान्य सहायक केंद्र के नाम एक पत्र
  44. आप के चरित्र में सुधार
  45. शान (करूणा) की एक संक्षिप्त व्याख्या
  46. "आप के चरित्र में सुधार" का अनुशेष
  47. बुद्ध-प्रकृति और आसुरिक-प्रकृति
  48. बड़ा रहस्योद्घाटन
  49. साधना अभ्यास राजनितीक नही है
  50. प्रभारी भी एक साधक ही है
  51. साधना अभ्यास क्या है?
  52. दाफा हमेशा के लिये हीरे की तरह शुध्द रहेगा
  53. और अधिक समझ
  54. सजगता परामर्श
  55. दाफा को कभी भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता
  56. ज्ञानप्राप्ति क्या है?
  57. मानवजाती का पूनर्निर्माण
  58. क्षय
  59. बुद्ध-प्रकृति में अचूकता
  60. स्पष्ट समझदारी
  61. हमेशा ध्यान रखें
  62. कठोर आघात
  63. मुल्यांकन मापदंड पर एक और टिप्पणी
  64. निश्चित निष्कर्ष
  65. समय के साथ संवाद
  66. फा पर व्याख्या
  67. मानवीय मोहभावों का त्याग करें और सच्ची साधना करते रहें
  68. बीच का मार्ग अपनाएं
  69. फा मानव मन को शुद्ध करता है
  70. अभ्यासीयों के लिये सिद्धांत जो भिक्षु एवं भिक्षुणियां हैं
  71. वातावरण
  72. जड़ें खोदना
  73. आपका अस्तित्व किसके लिए है?
  74. फा में विलीन हो जाएं
  75. बुद्ध फा और बुद्धमत
  76. बीजिंग के अनुभवी अभ्यासियों के लिए
  77. शांदोंग फालुन दाफा सहायता केंद्र के लिए
  78. दाफा का लाभ नहीं उठाया जा सकता
  79. दृढ़ संकल्प और दृढ़ता
  80. आसुरिक प्रकृति को नष्ट करें

 

दाफा के बारे में

(लुनयु)

दाफा2 विधाता का ज्ञान है। यह उस सृष्टि का आधार है जिस पर स्वर्ग, पृथ्वी एवं ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है। इसमें सभी कुछ समाहित है, अत्यंत सूक्ष्म से लेकर वृहत से वृहत्तम तक, यह ब्रह्माण्ड के प्रत्येक स्तरों पर भिन्न रूप से अभिव्यक्त होता है। सूक्ष्मजगत की गहराईयों से जहाँ सूक्ष्मतम कण सर्वप्रथम प्रकट होते हैं, इसमें परत दर परत असंख्य कण हैं, जो आकार में सूक्ष्म से विशाल तक होते हुए, उन बाह्य आयामों तक पहुँचते हैं जिनका मानवजाति को ज्ञान है—परमाणुओं, अणुओं, ग्रहों एवं आकाशगंगाओं तक—और उससे आगे, जो और भी विशाल है। विभिन्न आकार के कण विभिन्न आकार के जीवनों तथा विभिन्न आकार के विश्वों का निर्माण करते हैं जो ब्रह्माण्ड में सर्वत्र व्यापक हैं। कणों के विभिन्न स्तरों में से किसी में भी जीवों को अगले बड़े स्तर के कण उनके आकाशों में ग्रहों के रूप में प्रतीत होते हैं, एवं यह समस्त स्तरों में सत्य है। ब्रह्माण्ड के हर स्तर के जीवों को—यह अनंत तक जाता प्रतीत होता है। यह दाफा था जिसने काल एवं अवकाश, अनेकों जीवों व प्रजातियों, तथा सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण किया; सब जो अस्तित्व में है इसी से है, और कुछ भी इससे बाहर नहीं है। ये सभी, दाफा के गुणों सत्य, करुणा और सहनशीलता की, विभिन्न स्तरों पर स्पर्श अभिव्यक्तियाँ हैं।

मनुष्यों के अंतरिक्ष की खोज एवं जीवन के अनुसंधान के तरीके कितने भी उन्नत क्यों न हों, प्राप्त जानकारी ब्रह्माण्ड के एक निम्न स्तर पर इस एक आयाम के कुछ हिस्सों तक सीमित है, जहाँ मनुष्यों का वास है। पूर्वऐतिहासिक काल की सभ्यताओं के दौरान भी मनुष्यों ने दूसरे ग्रहों की खोज की थी। किन्तु सभी ऊंचाइयां एवं दूरियां हासिल करने पर भी, मानवजाति कभी इस आयाम से बाहर नहीं निकल पाई जहाँ इसका अस्तित्व है। ब्रह्माण्ड की सही तस्वीर मानवजाति कभी समझ नहीं पायेगी। यदि मनुष्य को ब्रह्माण्ड, काल-अवकाश, एवं मानव शरीर के रहस्यों को समझना है, उसे एक सच्चे मार्ग की साधना करनी होगी और अपने स्तर में सुधार करते हुए सच्ची ज्ञानप्राप्ति करनी होगी। साधना से उसका नैतिक चरित्र उन्नत होगा, तथा एक बार वह बुराई से वास्तविक अच्छाई, और दुर्गुण से सद्गुण में अंतर करना सीख जाता है, तथा वह मानव स्तर से आगे चला जाता है, वह ब्रह्माण्ड की वास्तविकताओं तथा दूसरे आयामों व स्तरों के जीवन को देख और संपर्क कर पायेगा।

जबकि लोग अक्सर दावा करते हैं कि उनके वैज्ञानिक लक्ष्य "जीवन की गुणवत्ता सुधारने" के लिए हैं, यह तकनीकी प्रतिस्पर्धा है जो उनसे यह करवाती है। और ज्यादातर मामलों में वे तभी फलित हुए जब लोगों ने दिव्यता को हटा दिया और नैतिक संहिता का परित्याग कर दिया जो आत्म-नियंत्रण के लिए आवश्यक हैं। इन्ही कारणों से अतीत की सभ्यताओं का कई बार विनाश हुआ। लोगों की खोजें इस भौतिक जगत तक ही सीमित रहती हैं, तथा विधियां ऐसी हैं कि केवल उसी का अध्ययन किया जाता है जिसे मान्यता प्राप्त है। इस बीच, वस्तुएं जो मानव आयाम में अस्पर्श और अदृश्य हैं, किन्तु जो निष्पक्ष रूप से विद्यमान हैं और सही मायनों में खुद को इस वर्तमान जगत में प्रत्यक्ष करती हैं—जैसे कि अध्यात्म, श्रद्धा, दिव्य वचन, एवं चमत्कार—इनको निषेध माना जाता है, क्योंकि लोगों ने दिव्यता को बहिष्कृत कर दिया है।

यदि मानव जाति अपने चरित्र, आचरण, एवं सोच को नैतिक-मूल्यों पर आधारित करके सुधारने में सक्षम होती है, तो सभ्यता का स्थायित्व, और यहाँ तक कि मानव जगत में फिर से चमत्कारों का होना संभव होगा। अतीत में अनेक बार, इस संसार में ऐसी संस्कृतियाँ प्रकट हुईं जो उतनी दैवीय थीं जितनी मानवीय और लोगों को जीवन व ब्रह्माण्ड की सच्ची समझ पर पहुँचने में मदद की। जब लोग दाफा को इस संसार में अभिव्यक्त होने पर उचित सम्मान व श्रद्धा प्रदान करेंगे, तो वे, उनका वर्ग, या उनका राष्ट्र आशीर्वाद या सम्मान प्राप्त करेंगे। यह दाफा था—ब्रह्माण्ड का महान मार्ग—जिसने ब्रह्माण्ड, विश्व, जीवन तथा सारे सृजन का निर्माण किया। कोई जीवन जो दाफा से विमुख हो जाता है, वास्तव में भ्रष्ट है। कोई भी व्यक्ति जो दाफा के साथ समन्वय में हो सकता है सच में एक अच्छा व्यक्ति है, और स्वास्थय एवं सुख से पुरस्कृत व धन्य होगा। और कोई साधक जो दाफा के साथ एक हो जाता है वह एक ज्ञानप्राप्त व्यक्ति है—दिव्य।

ली होंगज़ी
मई 24, 2015


 

(2) धन के साथ सद्गुण

पूर्वजों ने कहा है, "धन इस भौतिक शरीर से बाहर की वस्तु है।" यह सभी जानते हैं, फिर भी सभी इसके पीछे लगे रहते है। एक युवा इसे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए चाहता है; एक युवती इसे आकर्षण और विलासिता के लिए चाहती है; एक वृद्ध व्यक्ति इसे वृद्धावस्था में अपनी देख-भाल के लिए चाहता है; एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति इसे अपनी प्रतिष्ठा के लिए चाहता है; एक सरकारी अधिकारी इसके लिए अपना कर्त्तव्य निभाता है, इत्यादि। इस प्रकार सभी इसके पीछे भागते हैं।

कुछ लोग इसके लिए प्रतिस्पर्धा और झगड़ा भी करते है; जो लोग अति-महत्वकांक्षी हैं वे इसके लिए संकट भी मोल लेते हैं, उग्र स्वाभाव के लोग इसके लिए हिंसा का प्रयोग करते है; ईर्ष्यालु लोग इसके लिए क्रोध में अपने प्राण भी दे देते हैं। यह शासक और अधिकारियों का उत्तरदायित्व है कि धन, जन साधारण तक पहुंचे, तदापि धन की उपासना सबसे बुरी नीति है जो कोई अपना सकता है। बिना सद्गुण () के धन सभी चेतन प्राणियों को हानि पहुंचाएगा, जबकि धन के साथ सद्गुण की आशा सभी लोग करते हैं। इसलिए, व्यक्ति बिना सद्गुण के समर्थन के धनी नहीं हो सकता।

सद्गुण पूर्व जन्मों से एकत्रित होता रहता है। एक राजा बनना, अधिकारी बनना, धनवान होना, या कुलीन होना, ये सब सद्गुण से प्राप्त होते हैं। सद्गुण नहीं तो कोई प्राप्ति नहीं; सद्गुण की हानि का अर्थ है सभी वस्तुओं की हानि। इसलिए जो लोग सत्ता और धन प्राप्ति की अपेक्षा करते हैं उन्हें पहले सद्गुण एकत्रित करना चाहिए। कष्ट उठाने से और अच्छे कार्य करने से व्यक्ति जनता के बीच सद्गुण एकत्रित कर सकता है। यह प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को कारण और प्रभाव का नियम समझना आवश्यक है। यह समझने से अधिकारियों और जन साधारण को आत्म संयम अपनाने में सहायता होगी और जगत में समृद्धि और शान्ति बनी रहेगी।

ली होंगज़ी

जनवरी 27, 1995


   

(3) विस्तृत और अथाह

फालुन दाफा के सिद्धान्त किसी भी व्यक्ति को, उसके धार्मिक विश्वासों के साथ-साथ, उसके साधना अभ्यास में मार्गदर्शन प्रदान कर सकते है। यह विश्व का सिद्धान्त है, एक सच्चा फा जो पहले कभी नहीं सिखाया गया। विगत में लोगों को इस विश्व के सिद्धांत (बुद्ध फा) को जानने की अनुमती नहीं थी। प्राचीन काल से लेकर आज तक यह मानव समाज के शैक्षणिक व नैतिक सिद्धांतों से परे है। जो कुछ धर्मों में सिखाया गया था और जो कुछ लोगों ने विगत में अनुभव किया वे केवल सतही और उथले सिद्धांत थे। इसके विस्तृत और अथाह, गहन आंतरिक अर्थ केवल उन साधकों के सामने प्रकट हो सकते है, और उनके द्वारा अनुभव किये और समझे जा सकते हैं, जो सच्ची साधना के विभिन्न स्तरों पर हैं। केवल तभी कोई व्यक्ति यह वास्तव में समझ सकता हैं कि फा क्या है।

ली होंगज़ी

फरवरी 6, 1995


   

(4) सच्ची साधना

मेरे सच्चे साधना करने वाले शिष्यों, जो मैंने आपको सिखाया है वह बुद्ध और ताओ की साधना का फा है। फिर भी, आप मेरे सामने अपने सांसारिक हितों को खोने का दुःख व्यक्त करते हैं, जबकि आपको इस बात की चिंता होनी चाहिए कि आप साधारण मानव मोहभावों को छोड़ पाने में असमर्थ रहे हैं। क्या यह साधना है? क्या आप साधारण मानव मोहभावों को छोड़ पाते हैं, यह आपके एक महान व्यक्ति बनने के मार्ग में एक निर्णायक परीक्षा है। हर एक शिष्य जो सच्ची साधना करता है उसे इसमें सफल होना आवश्यक है, क्योंकि यह एक साधक और साधारण व्यक्ति के बीच की विभाजन रेखा है।

वास्तव में, जब आप साधारण लोगों के बीच अपनी प्रतिष्ठा, आत्म हित, और भावनाओं की हानि के बारे में दुखी होते हैं, तो यह यही संकेत करता है की आप अपने साधारण मानव मोहभावों को नहीं छोड़ पा रहे। यह अवश्य याद रखें : साधना स्वयं कष्टप्रद नहीं है—इसकी कुंजी इस बात में है कि आप साधारण मानव मोहभावों को छोड़ पाने में असमर्थ रहते हैं। जब आप अपनी प्रतिष्ठा, हितों और भावनाओं को छोड़ रहे होंगे, केवल तभी आपको दुःख अनुभव होगा।

आप यहाँ एक पवित्र, शुद्ध और अत्यंत भव्य लोक से आ गिरे क्योंकि आपको उस स्तर पर मोहभाव उत्पन्न हो गए थे। इस जगत में गिरने के बाद, जो तुलना में, बहुत मलिन है, इसके स्थान पर कि आप साधना द्वारा वापस जाने की शीघ्रता करें, आप इस मलिन जगत की उन मलिन वस्तुओं को नहीं छोड़ पाते जिनसे आप चिपके हुए हैं, और आप छोटी छोटी हानि पर भी दुःख मनाते रहते हैं। क्या आप जानते हैं की आप को बचाने के लिए बुद्ध ने कभी साधारण लोगों से भोजन के लिए भिक्षा मांगी थी? आज, मैं फिर द्वार पूर्ण रूप से खोल रहा हूँ, और आप को बचाने के लिए यह दाफा सिखा रहा हूँ। जो अनेक कठिनाइयाँ मैंने सही हैं उनके बारे में मैंने कभी कड़वाहट अनिभव नहीं की। तो फिर आप के पास ऐसा क्या है जिसका अभी भी त्याग नहीं किया जा सकता? क्या आप अपने भीतर गहराई में छिपी उन वस्तुओं को दिव्यलोक में ला सकते है जिन्हें आप नहीं छोड़ सकते?

ली होंगज़ी

मई 22, 1995


   

(5) संयमित रहे

मैने कुछ अभ्यासियों को बताया है की चरम विचार, विचार-कर्म से उत्पन्न होते है। किन्तु बहुत से शिष्य अब अपने सभी दैनिक जीवन के बुरे विचारों को विचार-कर्म समझने लगे हैं। यह अनुचित है। यदि आपके कोई बुरे विचार नहीं होंगे तो आप के पास साधना करने के लिए क्या रह जायेगा? यदि आप इतने पवित्र हैं तो क्या आप पहले से ही एक बुद्ध नहीं हैं? ऐसी समझ अनुचित है। केवल जब आप का मन उग्र रूप से बुरे विचार दर्शाता है या गुरु, दाफा, और अन्य लोगों के बारे में अपशब्द सोचता है, इत्यादि, और आप उससे छुटकारा नहीं प्राप्त कर सकते या उन्हें नहीं दबा सकते, तब वे विचार-कर्म हैं। किन्तु कुछ दुर्बल विचार-कर्म भी होते हैं, हालाँकि वे सामान्य विचारों और धारणाओं से भिन्न होते है। आपको इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए।

ली होंगज़ी

मई 23, 1995


   

(6) ज्ञानप्राप्ति

इस मलिन मानवीय जगत में, मोती और मछली की आँखें मिश्रित हो गयी हैं। एक तथागत को इस जगत में चुपके से आना पड़ता है। जब वे फा सिखाते हैं, तो दुष्ट प्रथाएं अवश्य बाधा डालती हैं। ताओ और आसुरिक मार्ग एक ही समय में और एक ही जगत में सिखाये जाते हैं। सत्य और असत्य के बीच, ज्ञानप्राप्ति महत्वपूर्ण है। इनमें अंतर कैसे करें? असाधारण लोग अवश्य ही होते हैं। जिनका वास्तव में कोई पूर्व निर्धारित संबंध है और जो ज्ञान प्राप्त कर सकते है, वे एक के पीछे एक आएंगे, ताओ में प्रवेश करेंगे और फा प्राप्त करेंगे। वे अच्छाई और दुष्टता में भेद कर पाएंगे, सच्ची शिक्षा प्राप्त करेंगे, अपने शरीर हलके करेंगे, अपने ज्ञान में वृद्धि करेंगे, अपने मन समृद्ध करेंगे, और फा की नाव में सवार होकर, सुगमता से यात्रा करेंगे। कैसा अद्भुत होगा! भरपूर प्रयत्न के साथ आगे बढ़ें, फल पदवी तक।

जो इस जगत में बिना मार्गदर्शन और निम्न ज्ञानोदय गुण के साथ जी रहे हैं, वे धन के लिए जीते हैं और सत्ता के लिए मरते हैं, वे तुच्छ लाभों के लिए भी प्रसन्न या चिंतित होते रहते हैं। वे एक दुसरे के विरूद्ध बुरी तरह प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे जीवन भर कर्म एकत्रित करते रहते हैं। जब ऐसे लोग फा को सुनते हैं, तो वे इस पर हँसते हैं और अपने मुंह से “अन्धविश्वास” शब्द उगल देते हैं, क्योंकी उनके लिए अपने मन की गहराई से इसे समझना और विश्वास करना अवश्य ही कठिन होगा। ये लोग निम्न श्रेणी के लोग हैं जिन्हें बचाना कठिन होता है। उनका कर्म इतना अधिक है कि इसने उनके शरीर को पूरी तरह घेर लिया है और उनके विवेक को बंधित कर दिया है; उनकी मूल प्रकृति खो गयी है।

ली होंगज़ी

जून 14, 1995


   

(7) व्यक्ति देख क्यों नहीं पाता

"देखा तो विश्वास किया; नहीं देखा तो विश्वास नहीं।" यह एक निम्न व्यक्ति का दृष्टिकोण है। मनुष्य भ्रम में खोये हैं और बहुत सा कर्म उत्पन्न कर चुके हैं। जब उनकी मूल प्रकृति बाधित है तो वे कैसे देख पाएंगे? देखने से पहले ज्ञानोदय आवश्यक है। अपने मन को साधना में लगायें और अपने कर्म हटाएं। जब आपकी मूल प्रकृति उभर कर आयेगी तब आप देख पाएंगे। फिर भी, देखे या बिना देखे, एक असाधारण व्यक्ति फल पदवी तक पहुँचने के लिए अपनी ज्ञानप्राप्ति पर निर्भर कर सकता है। लोग कदाचित देख सकें या न देख सकें, और यह उनके स्तरों और उनके जन्मजात गुण द्वारा तय होता है। अधिकतर साधक इसलिए नहीं देख पाते क्योंकी वे देखने का हठ करते है, जो एक मोहभाव है। इसलिए, जब तक वह इसे छोड़ नहीं देता, वह नहीं देख पायेगा। यह अधिकतर कर्म के बाधा डालने, अनुचित वातावरण, या व्यक्ति के साधना करने के तरीके के कारण होता है। अनेक कारण हैं, जो हर एक व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न हैं। जो व्यक्ति देख सकता है वह भी हो सकता है स्पष्टता से न देख सके, क्योंकी स्पष्टता से न देख पाने से ही व्यक्ति को ताओ की ज्ञानप्राप्ति हो सकती है। जब कोई व्यक्ति सब कुछ स्पष्ट देख सके, जैसे वह स्वयं उस घटनास्थल पर हो, उसे “गोंग खुलने” (काइगोंग) की प्राप्ति हो गई है और वह आगे साधना अभ्यास नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास ज्ञानप्राप्त करने के लिए कुछ नहीं बचा।

ली होंगज़ी

जून 16, 1995


   

(8) फा को सीखना

दाफा को सीखते समय, बुद्धिजीवियों को एक सबसे मुख्य समस्या से अवगत होना चाहिए : वे दाफा का अध्ययन उसी प्रकार करते है जैसे साधारण लोग सैधांतिक लेखनों का अध्ययन करते हैं, जैसे अपने व्यवहार को परखने के लिए प्रसिद्ध लोगों के प्रासंगिक उद्धरण चुनना। यह साधक की उन्नति में बाधा डालेगा। और फिर, यह जान कर कि दाफा में अथाह, आतंरिक अर्थ और उच्च स्तर की बातें है जो विभिन्न स्तरों पर साधना अभ्यास का मार्गदर्शन कर सकती हैं, कुछ लोग इसका शब्द दर शब्द जांच करने का भी प्रयास करते है, पर अंत में उन्हें कुछ प्राप्त नहीं होता। ऐसी आदतें, जो लम्बे समय से राजनैतिक सिधान्तों के अध्ययन से बन जाती है, ये भी साधना अभ्यास में बाधा डालने का कारक बनती हैं; इनसे फा की अनुचित समझ हो सकती है।

फा को सीखते समय, आपको किसी समस्या विशेष का समाधान पाने के लिए, प्रासंगिक भागों की खोज नहीं करनी चाहिए। वास्तव में, यह (उन समस्याओं को छोड़कर जिनका तुरंत समाधान करना आवश्यक हो) भी एक मोहभाव है। दाफा की अच्छी समझ प्राप्त करने के लिए केवल यही मार्ग है कि इसका अध्ययन बिना किसी उद्देश्य से किया जाए। हर बार जब आप ज़ुआन फालुन को पढ़ कर समाप्त करते हैं, यदि आपने कुछ भी समझ प्राप्त की है तो आप उन्नति पर हैं। यदि इसे पढ़ने के बाद आपने एक भी बात समझ ली, तो आपने वास्तव में प्रगति की है।

वास्तव में, साधना अभ्यास में आपकी उन्नति स्वयं में सुधार करते हुए क्रमबद्ध और अनजाने में होती हैं। याद रखें : व्यक्ति को प्राप्ति सहज रूप से होनी चाहिए न कि हठ द्वारा।

ली होंगज़ी

सितम्बर 9, 1995


   

(9) सहायता कैसे प्रदान करें

विभिन्न क्षेत्रों के बहुत से स्वयंसेवक दाफा की बहुत ऊँचे स्तर की समझ रखते है। अपने आचरण से वे एक अच्छा उदाहरण स्थापित कर रहे है और अपने अभ्यास दलों के आयोजन का काम अच्छी तरह निभा रहे है। हालाँकि कुछ ऐसे भी स्वयंसेवक हैं जिनका प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा है, और यह विशेष रूप से उनके काम करने के तरीकों से प्रकट होता है। उदहारण के लिए, शिष्यों से अपनी बात मनवाने के लिए और अपना काम सरल करने के लिए, कुछ स्वयंसेवक अपना काम आदेश पत्र जारी करके करते हैं। इसकी अनुमति नहीं है। फा को सीखना स्वयं की इच्छा से होना चाहिए। यदि कोई शिष्य अपने मन की गहराई से ऐसा नहीं करना चाहता, तो कोई भी समस्या हल नहीं हो सकती। उसके स्थान पर, तनाव उत्पन्न हो सकता है। यदि इसे नहीं सुधारा गया तो तनाव बढ़ सकता है, जिससे लोगों के लिए फा की शिक्षा प्राप्त करने में रुकावट आ सकती है।

इससे भी गंभीर बात, कुछ स्वयंसेवक, अभ्यासियों द्वारा उन पर विश्वास रखने और अपनी बातें मनवाने के लिए, कई बार कुछ अफवाहें या कुछ सनसनीखेज बाते प्रचारित करते है जिससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ सके, या दिखावा करने के लिए वे कुछ अनोखी चीज़ें करते है। इन सब की अनुमति नहीं है। हमारे स्वयंसेवक स्वेच्छा से दूसरों की सेवा करते है; वे गुरु नहीं है, न ही उन्हें ऐसे मोहभाव रखने चाहिए।

फिर हम स्वयंसेवक का काम कैसे अच्छी तरह करें? पहली बात, आप स्वयं को दूसरे शिष्यों में से ही एक समझें न की उनसे ऊँचा। यदि कोई ऐसी बात है जो आप को अपने काम में समझ नहीं आती, तो विनम्रता से आपको औरों के साथ चर्चा करनी चाहिए। यदि आप से कोई गलती हो जाये, तो आपको निष्ठापूर्वक शिष्यों से कहना चाहिए "आप की तरह मैं भी एक साधक हूँ, तो यह सम्भव है कि मुझसे अपने काम में गलती हो जाए। अब जब मुझसे गलती हो गई है, तो आइये हम वह करें जो उचित है।" यदि आप निष्ठापूर्वक चाहते है कि सभी साधक मिलजुल कर काम पूरा करें, तो इसका क्या परिणाम होगा? कोई नहीं कहेगा की आप किसी काम के नहीं हैं। बल्कि, वे सोचेंगे कि आपने फा को अच्छी तरह समझा है और आप मुक्त विचारों वाले है। वास्तव में, दाफा यहाँ है और सभी इसका अध्ययन कर रहे है। शिष्य स्वयंसेवक द्वारा की गई प्रत्येक गतिविधि का आंकलन दाफा के अनुसार करते हैं, और यह अच्छा है या बुरा इसका अंतर स्पष्ट रूप से जाना जा सकता है। यदि आप का उद्देश्य अपनी छवि बनाने का है, तो शिष्य सोचेंगे की आप के शिनशिंग की कुछ समस्या है। इसलिए, केवल विनम्र होने से ही आप अच्छी तरह से काम कर सकेंगे। आपकी प्रतिष्ठा फा की अच्छी समझ के आधार पर बनती है। कोई साधक त्रुटियों से मुक्त कैसे हो सकता है?

ली होंगज़ी

सितम्बर 10, 1995


   

(10) नभमंडल

ब्रह्माण्ड का विस्तार और खगोल पिंडों की विशालता को मनुष्य खोज द्वारा कभी नहीं समझ सकते; पदार्थ की सूक्ष्मता का मनुष्य कभी पता नहीं लगा सकते। मनुष्य का शरीर इतना रहस्यमय है कि यह मनुष्य के ज्ञान की सीमा से परे है, जो केवल सतही स्तर तक ही सीमित है। जीवन इतना परिपूर्ण और जटिल है कि वह मनुष्यजाति के लिए सदैव एक अनसुलझा रहस्य बना रहेगा।

ली होंगज़ी

सितम्बर 24, 1995


   

(11) लोक

एक दुष्ट व्यक्ति ईर्ष्या से जन्म लेता है।

स्वार्थ और क्रोध से भरा वह अपने प्रति अन्याय का असंतोष व्यक्त करता है। 

एक दयालु व्यक्ति का मन सदा करुणामय होता है।

न कोई असंतोष न कोई घृणा, वह कष्ट को आनंद से अपनाता है। 

एक ज्ञानप्राप्त व्यक्ति में कोई भी मोहभाव नहीं होते।

वह शांत भाव से भ्रम में विलीन जगत के लोगों को देखता रहता है।

ली होंगज़ी

सितम्बर 25, 1995


   

(12) रिक्तता क्या है?

रिक्तता क्या है? मोहभाव से मुक्त होना यही रिक्तता की सच्ची अवस्था है। इसका अर्थ पदार्थ से रिक्त होना नहीं है। ज़ेन बुद्धमत अपने धर्मं की अंतिम अवधि तक पहुँच चुका है, तथापि, उसमें सिखाने के लिए कुछ नहीं बचा है। इस अराजक धर्मं विनाश काल में, जो लोग इसे सीखते है वे अब भी हठपूर्वक इसके रिक्तवाद के सिद्धान्त को जकड़े हुए हैं, अविवेकी और बेतुका आचरण करते हैं, जैसे कि उन्हें इसके मूल सिद्धांत का ज्ञानोदय हो गया हो। इसके संस्थापक, बोधिधर्म ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि उनका धर्मं छः पीढ़ियों तक ही प्रभावी रहेगा, और उसके पश्चात आगे हस्तांतरण के लिए कुछ नहीं रहेगा। इससे जागृत क्यों नहीं होते? यदि कोई कहता है कि सब कुछ रिक्त है, न कोई फा है, न बुद्ध, न छवि, न स्वयं, और न कोई अस्तित्व, फिर बोधिधर्म क्या है? यदि कोई धर्मं नहीं है, तो ज़ेन बुद्धमत की रिक्तता का सिद्धान्त क्या है? यदि कोई बुद्ध नहीं है, कोई छवि नहीं, तो शाक्यमुनि कौन हैं? यदि कोई नाम नहीं है, कोई छवि नहीं, कोई स्वयं नहीं, कोई अस्तित्व नहीं, और सब कुछ रिक्त है, तो फिर आप खाने पीने का कष्ट क्यों करते हैं? आप कपड़े क्यों पहनते हैं? आप की आँखें नोचकर निकाल ली जाएँ तो? आप के सांसारिक व्यक्ति की सात भावनाएं और छः आकांक्षाये किससे जुडी हैं? वास्तव में, तथागत के अनुसार “रिक्तता” का अर्थ है सभी साधारण मानवीय मोह भाव से मुक्त होना। त्रुटिहीन होना, सही अर्थ में रिक्तता का मूल तत्व है। मूल रूप से, ब्रह्माण्ड का अस्तित्व पदार्थ के कारण है और यह पदार्थ से निर्मित है और सदैव रहेगा। यह रिक्त कैसे हो सकता है? जो शिक्षा तथागत ने नहीं दी वह कभी अधिक दिन स्थायी नहीं रह सकती और ऐसी शिक्षाएं नष्ट हो जाती हैं—एक अरहत की शिक्षा बुद्ध फा नहीं हो सकती—इस बात से जागृत हो जाओ। इससे जागृत हो जाओ!

ली होंगज़ी

सितम्बर 28, 1995


   

(13) दृढ़ता

गुरु के यहाँ होने पर, आप में बहुत आत्मविश्वास रहता है। गुरु की अनुपस्थिति में, आपको साधना में कोई रुचि नहीं रहती, जैसे आप अपनी साधना केवल गुरु के लिए करते हैं और आपने यह मार्ग कोई रूचि पूरी करने के लिए अपनाया हो। यह एक साधारण व्यक्ति की मुख्य दुर्बलता है। शाक्यमुनि, येशु, लाओ ज, और कन्फ़्युशिअस को गए हुए दो हज़ार वर्ष से अधिक हो गए, फिर भी उनके शिष्यों ने कभी नहीं सोचा कि वे उनके गुरुओं के बिना साधना नहीं कर सकते। साधना आप का अपना मुद्दा है, और कोई दूसरा इसे आप के लिए नहीं कर सकता। गुरु केवल सतही रूप से नियम और सिद्धान्त बता सकते है। यह स्वयं आपका उत्तरदायित्व है कि आप अपने हृदय और मन का संवर्धन करें, अपनी इच्छाएं छोड़ें, ज्ञानप्राप्त करें और भ्रम दूर करें। यदि आप यह मार्ग किसी रूचि के कारण अपना रहे हैं, तो निःश्चित ही आपका मन स्थिर नहीं रहेगा और इस मानव समाज में रहते हुए निःश्चित ही आप मूल नियम भूल जायेंगे। यदि आप दृढ़ता से अपने विश्वास पर दृढ़ नहीं रहते हैं तो आपको कुछ प्राप्त नहीं होगा। कोई नहीं जानता कि अगला अवसर फिर कब आयेगा। यह बहुत कठिन है!

ली होंगज़ी

अक्टूबर 6, 1995


   

(14) बुद्धमत की शिक्षाएं बुद्ध फा का सबसे अशक्त और संक्षिप्त अंश है

सभी चेतन प्राणियों! सत्य - करुणा - सहनशीलता के दाफा का आंकलन कभी बुद्धमत से नहीं करना, क्योंकि यह असीमित है। लोग बुद्धमत के शास्त्रों को फा के नाम से जानने के अभ्यस्त हो गए है। वास्तव में, ब्रह्माण्डीय पिंड इतने विशाल है कि वे बुद्ध के ब्रह्माण्ड की समझ से बहुत उच्च है। ताओ विचारधारा के ताईजी सिद्धान्त की ब्रह्माण्ड की समझ भी निम्न स्तर की है। साधारण मनुष्यों के स्तर पर वास्तव में कोई फा नहीं है, बल्कि ब्रह्माण्ड की सीमा पर छिटकी कुछ अभिव्यक्तियाँ है जो व्यक्ति को साधना अभ्यास करने में सक्षम बना सकती है। क्योंकि साधारण लोग सबसे निम्न स्तर के जीव है, उन्हें बुद्ध फा की वास्तविकता जानने की अनुमति नहीं है। किन्तु, लोगों ने संतों से सुना है : बुद्ध की आराधना करने से साधना अभ्यास के अवसर के कारणीय बीज बोये जा सकते है; जो साधक मन्त्र का जाप करते हैं उन्हें उच्च प्राणियों से रक्षा मिल सकती है; उपदेशों का पालन करने से साधक के स्तर तक पहुँचा जा सकता है। इतिहास के आरम्भ से, लोग यही अध्ययन करते आ रहे हैं कि क्या जो “ज्ञानप्राप्त व्यक्ति” ने सिखाया, वह वास्तव में बुद्ध फा ही है। तथागत की शिक्षा बुद्ध-प्रकृति की अभिव्यक्ति है, और उसे फा की अभिव्यक्ति भी कहा जा सकता है। परंतु यह ब्रह्माण्ड का सच्चा फा नहीं है, क्योंकि अतीत के लोगों को बुद्ध फा की वास्तविक अभिव्यक्ति को समझना पूर्ण रूप से निषेध था। बुद्ध फा का ज्ञान केवल वही प्राप्त कर सकता था जो साधना अभ्यास द्वारा उच्च स्तर पर पहुँच चुका हो, इसलिए यह और भी इस प्रकार था कि लोगों को साधना अभ्यास का सच्चा सार समझने की अनुमति नहीं थी। फालुन दाफा ने आजतक के इतिहास में पहली बार मानवजाति को ब्रह्माण्ड की मूल प्रकृति—बुद्ध फा—प्रदान किया है; यह उन्हें दिव्यलोक तक पहुँचने की सीढ़ी प्रदान करने के समान है। तो आप ब्रह्माण्ड के दाफा का आंकलन उससे कैसे कर सकते हैं जो पहले बुद्धमत में सिखाया गया था?

ली होंगज़ी

अक्टूबर 8, 1995


   

(15) प्रज्ञा क्या है?

लोग समझते हैं की प्रसिद्ध व्यक्ति, विद्वान, और मानव समाज में अनेकों प्रकार के विशेषज्ञ बहुत महान है। वास्तव में, वे बहुत ही महत्वहीन है, क्योंकी वे साधारण व्यक्ति है। उनका ज्ञान केवल मानव समाज के आधुनिक विज्ञान की थोड़ी सी समझ तक ही सीमित है। इस अतिव्यापक ब्रह्माण्ड में, अति विशाल से लेकर अति सूक्ष्म तक, मानव समाज बिलकुल मध्य में, सबसे बाहरी परत में और सबसे बाहरी सतह पर स्थित है। और, इसके प्राणी अस्तित्व के सबसे निम्म स्वरुप है, इसलिए उनकी पदार्थ और मन की समझ बहुत ही सीमित, सतही और दयनीय है। यदि कोई मानवजाति का सारा ही ज्ञान क्यों न प्राप्त कर लें, वह तब भी एक साधारण व्यक्ति ही रहेगा।

ली होंगज़ी

अक्टूबर 9, 1995


   

(16) यह साधना अभ्यास है, कोई व्यवसाय नहीं

(15) यह साधना अभ्यास है, कोई व्यवसाय नहीं क्या आप मेरी सहायता केन्द्रों के लिए स्थापित आवश्यकताओं का पालन कर पाते हैं यह एक बहुत महत्वपूर्ण नियम की बात है, और इसका प्रभाव भविष्य में फा के प्रसार पर होगा। लम्बे समय से नौकरशाही दफ्तरों में रहते हुए आपने जो दिनचर्या बना ली है उन्हें छोड़ क्यों नहीं देते? सहायक केन्द्रों को मानव समाज के प्रशासनिक कार्यालयों की तरह मत बनाओ और उनकी पद्धतियां और मार्ग मत अपनाओ, जैसे दस्तावेज जारी करना, नीति लागू करने की कार्यवाही, या "लोगों की समझ में वृद्धि करना"। एक दाफा के साधक को साधना में केवल अपने शिनशिंग में सुधार करना चाहिए, और अपने फल पदवी के पद और स्तर को ऊँचा उठाना चाहिए। कई बार तो बैठकें भी साधारण लोगों के कार्यस्थलों के अनुरूप आयोजित की जाती है। उदहारण के लिए, वहां कोई अधिकारी भाषण देगा या कोई नेता भाषण का सारांश प्रस्तुत करेगा। आज कल, सरकार भी समाज में ऐसी भ्रष्ट प्रथाओं और नौकरशाही प्रक्रियाओं को सुधारने का प्रयास कर रही है। एक साधक होते हुए, आप जानते हैं की धर्मं विनाश काल में मानवजाति के सभी पक्ष अब अच्छे नहीं रह गए है। आप उन काम करने के तरीकों को छोड़ क्यों नहीं देते जो साधना अभ्यास के लिए बिलकुल उचित नहीं है? हम कभी भी इसे समाज के किसी प्रशासनिक संस्था या उद्यम में परिवर्तित नहीं करेंगे।

पहले, कुछ सेवानिवृत लोग, जिनके पास करने को कुछ नहीं था, को फालुन दाफा में अच्छाई दिखायी दी तो अपने आरामदेह जीवन का खालीपन मिटाने के लिए उन्होनें सहायता करने का प्रस्ताव रखा। यह कदापि उचित नहीं होगा! फालुन दाफा एक साधना अभ्यास है—कोई व्यवसाय नहीं। हमारे सभी स्वयंसेवक कार्यकर्ता पहले तो उच्च शिनशिंग स्तर वाले सच्चे साधक होने चाहिए, क्योंकि वे शिनशिंग की साधना के प्रेरणास्रोत हैं। हमें ऐसे नेताओं की आवश्यकता नहीं है जैसे साधारण लोगों में पाए जाते है।

ली होंगज़ी

अक्टूबर 12, 1995


   

(17) सेवा निवृति के प्रश्चात साधना अभ्यास

यह बड़े दुःख की बात है की कुछ शिष्य जिन्होंने मेरे व्याख्यान सुने और जिनके जन्मजात गुण अच्छे है उन्होंने साधना अभ्यास करना छोड़ दिया है क्योंकि वे अपने काम में व्यस्त है। यदि वे कोई औसत, साधारण लोग होते, तो मैं कुछ नहीं कहता और उन्हें अपने आप पर छोड़ देता। किन्तु इन लोगों से अब भी कुछ आशा शेष है। मानव नैतिकता तेजी से प्रति दिन गिरती जा रही है, और साधारण लोग सभी उस बहाव में बहते चले जा रहे हैं। ताओ से जितने दूर होते जायेंगे, उतना ही साधना के द्वारा लौटना कठिन होगा। वास्तव में, साधना अभ्यास का सन्दर्भ अपने हृदय और मन की साधना से है। विशेष रूप से, कार्यस्थल का जटिल वातावरण, आपके शिनशिंग की उन्नति के लिए आपको एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। सेवा निवृति के बाद, क्या आप साधना के अभ्यास का एक श्रेष्ठ वातावरण नहीं खो देंगे? बिना किसी कठिनाइयों के आप कैसे साधना करेंगे? आप कैसे स्वयं में सुधार लायेंगे? जीवन तो सीमित है। कई बार आप योजनायें अच्छी तरह बनाते है, पर क्या आप जानते है कि आपके पास अपनी साधना के लिए पर्याप्त समय शेष रहेगा? साधना अभ्यास कोई बच्चों का खेल नहीं है। यह साधारण लोगों के किसी भी कार्य से अधिक गंभीर है—इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। एक बार आप ने अवसर खो दिया, तो आपको दोबारा इस छः चक्रों के जन्म मरण के क्रम में एक मानव शरीर प्राप्त करने का अवसर कब मिलेगा? अवसर केवल एक बार दस्तक देता है। एक बार भ्रम जाल जिससे आप छूटना नहीं चाहते, के ओझल होने पर, आप को एहसास होगा की आप ने क्या खोया है।

ली होंगज़ी

अक्टूबर 13, 1995


   

(18) जब फा उचित होगा

जब लोगों में सदगुण नहीं होगा, तो प्राकृतिक आपदाएं और मनुष्य निर्मित प्रलय बहुतायात में होंगे। जब पृथ्वी में सदगुण नहीं होगा, तो सब कुछ बिखर कर गिर जायेगा। जब स्वर्ग ताओ से भटक जाता है, तब धरती फट जाएगी, अम्बर गिर जायेगा, और सारा ब्रह्माण्ड रिक्त हो जायेगा। जब फा उचित होगा, तब ब्रह्माण्ड भी उचित होगा। जीवन विकसित होगा, स्वर्ग और धरती स्थिर होंगे, और फा का अस्तित्व सदा बना रहेगा।

ली होंगज़ी

नवम्बर 12, 1995


   

(19) ऋषि

वे इस जगत में और उपर स्वर्ग में एक दैवकृत प्रयोजन से आये है। उनमें प्रचूर सदगुण भरा है और उनका हृदय करुणामयी रहता है; छोटी छोटी बातों पर ध्यान देने के साथ वे महान आकांक्षाओं का भंडार है। नियमों और सिद्धान्तों के प्रशस्त ज्ञान के साथ, वे अनिःश्चितताओ को सुलझा सकते है। इस जगत और इसके लोगों को मुक्ति का मार्ग प्रदान करते हुए, वे अपनी योग्यता स्वयं स्थापित करते है।

ली होंगज़ी

नवम्बर 17, 1995


   

(20) गुरु से दीक्षा प्राप्त करना

दाफा का प्रसार दूर-दूर तक हो रहा है। जो लोग इसके बारे में सुनते हैं, वे इसकी खोज कर रहे हैं। जिन्होंने इसे प्राप्त किया है, वे इससे प्रसन्न हैं। साधकों की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है और अनगिनत होती जा रही है। फिर भी, अधिकांश स्वयं से सीखने वाले औपचारिक रूप से गुरु से दीक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं, क्योंकि वे चिंतित हैं कि यदि उन्होंने गुरु को व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा है, तो उन्हें वास्तविक शिक्षाएँ प्राप्त नहीं हो सकती हैं। यह वास्तव में फा की उथली समझ के कारण है। मेरा व्यापक रूप से दाफा सिखाना सभी को मोक्ष प्रदान करने के लिए है। जो कोई भी इसे सीखता है, वह मेरा शिष्य है। पुराने अनुष्ठानों और परंपराओं का पालन न करते हुए, मैं सतही औपचारिकताओं को अनदेखा करता हूँ और केवल व्यक्ति के हृदय को देखता हूँ। यदि आप वास्तव में स्वयं साधना नहीं करते हैं, तो मुझे औपचारिक रूप से "गुरु" के रूप में स्वीकार करने का क्या लाभ है? एक व्यक्ति जो वास्तव में साधना करता है, वह चीजों को बिना उनका पीछा किए स्वाभाविक रूप से प्राप्त करेगा। सभी गोंग और फा पुस्तक में निहित हैं, और व्यक्ति स्वाभाविक रूप से दाफा पढ़कर उन्हें प्राप्त कर लेगा। जो लोग इसे सीखते हैं, वे अपने आप परिवर्तित हो जाएंगे, और वे पहले से ही दाओ में होंगे जब वे पुस्तक को बार-बार पढ़ेंगे। गुरु के फा शरीर (फाशन) निश्चित रूप से उनकी गुप्त रुप से सुरक्षा करेंगे। दृढ़ता के साथ, वे निश्चित रूप से भविष्य में फल पदवी प्राप्त करेंगे।

ली होंगज़ी

दिसंबर 8, 1995


   

(21) एक स्पष्ट स्मरण पत्र

इस समय एक मुख्य समस्या है : जब कुछ शिष्यों की मूल आत्मा उनके शरीर को छोड़ कर जाती है, तब वे किसी स्तर पर कुछ आयाम देख या उनसे संपर्क करते है। यह अनुभव उन्हें बहुत अद्भुत लगता है और सबकुछ बिलकुल वास्तविक जान पड़ता है, इसलिए वे लौटना नहीं चाहते। परिणामस्वरुप उनके भौतिक शरीर की मृत्यु हो जाती है। इसलिए वे उसी लोक में रह जाते हैं और लौट कर नहीं आ पाते। किन्तु उनमे से कोई भी 'तीन लोक' के आगे नहीं पहुँच सका था। मैंने पहले भी इस समस्या के बारे में बताया है। अपनी साधना में किसी भी आयाम से मोहित नं हो जायें। जब आपका पूरा साधनाक्रम सम्पूर्ण हो जायेगा तभी आप फल पदवी प्राप्त कर सकेंगे। इसलिए जब आपकी मूल आत्मा बाहर जाती है, आपको वे स्थान कितने भी अद्भुत क्यों न लगें, आपको लौट आना चाहिए।

हमारे कुछ शिष्यों को एक भ्रान्ति भी है। वे सोचते है की एक बार फालुन दाफा का साधना अभ्यास करने पर, उन्हें यह आश्वासन मिल जाता है कि उनके भौतिक शरीर की कभी मृत्यु नहीं होगी। हमारा साधना अभ्यास मन और शरीर दोनों की साधना करता है; एक साधक अपनी आयु तब तक बढ़ा सकता है जब तक वह साधना करता रहेगा। किन्तु कुछ लोगों ने त्रिलोक-फा साधना में प्रगति के कोई यत्न नहीं किये है, और वे किसी एक ही स्तर पर ठहरे रहते हैं। बहुत अधिक प्रयास के बाद अगले स्तर पर पहुँचने पर, वे फिर उस स्तर पर भी ठहरे रहते हैं। साधना अभ्यास एक गंभीर विषय है, इसलिए यह आश्वासन देना कठिन है कि आपका जीवन पूर्वनिर्धारित समय पर समाप्त नहीं होगा। हालांकि यह समस्या पर-त्रिलोक-फा साधना अभ्यास में नहीं होती है। किन्तु, पर-त्रिलोक-फा में परिस्थिति अधिक जटिल होती है।

ली होंगज़ी

दिसम्बर 21, 1995


   

(22) आप साधना अभ्यास किसके लिए करते हैं?

जब कुछ लोग मीडिया का आश्रय लेकर चीगोंग की निंदा करते है, तब कुछ अभ्यासियों का दृढ़ संकल्प डगमगाने लगता है और वे साधना अभ्यास छोड़ देते हैं; ऐसा लगता है कि जो मीडिया का लाभ उठाते हैं वे बुद्ध फा से अधिक ज्ञानपूर्ण है, और यह कि कुछ साधक अन्य लोगों के लिए साधना करते है। कुछ ऐसे भी लोग है जो दबाव की स्थिति उत्पन्न होने पर डर जाते है और साधना अभ्यास छोड़ देते है। क्या इस प्रकार के लोगों को उचित फल पदवी की प्राप्ति हो सकती है? निर्णायक स्तिथि में, क्या वे बुद्ध से भी विश्वासघात नहीं कर लेंगे? क्या भय एक मोहभाव नहीं है? साधना अभ्यास विशाल लहरों की तरह है जो रेत को छान कर अलग कर देती है : जो शेष रह जाता है वह सोना होता है।

वास्तव में, प्राचीन काल से लेकर आज तक, मानवीय समाज में एक नियम रहा है जिसे आपसी-सृजन और आपसी-विरोध कहते है। इसलिए जहां अच्छाई है, वहां बुराई है; जहां पवित्रता है, वहां दुष्टता है; जहाँ करुणा है, वहां क्रूरता है; जहाँ मानव हैं, वहां प्रेत हैं; जहाँ बुद्ध हैं, वहां असुर हैं। यह मानवीय समाज में और अधिक लागू होता है। जहां सकारात्मक है, वहां नकारात्मक है; जहां पक्ष है, वहां विपक्ष है; जहां श्रद्धालु हैं, वहां नास्तिक हैं; जहां अच्छे लोग हैं, वहां बुरे लोग हैं; जहां निस्वार्थी लोग है, वहां स्वार्थी लोग हैं; और जहां ऐसे लोग है जो दूसरों के लिए बलिदान देते हैं, तो ऐसे भी लोग है जो अपने लाभ के लिए कुछ भी करने से नहीं रुकते। यह अतीत का नियम था। इसलिए, यदि कोई व्यक्ति, कोई समूह, या कोई राष्ट्र, कुछ अच्छा करना चाहता है, तो उसके विरुद्ध उतना ही विरोध खड़ा हो जायेगा। सफलता पाने पर, आपको यह अनुभव होगा कि यह कितनी कठिनाई से प्राप्त हुआ है और इसे संजो कर रखना चाहिए। मानवजाति का विकास इसी प्रकार हुआ है (भविष्य में आपसी-सृजन और आपसी-विरोध का नियम बदल जायेगा)।

इसे दूसरी तरह से देखें तो, साधना अभ्यास अलौकिक है। चाहे जो भी व्यक्ति हो, क्या उसका चीगोंग की निंदा करना एक साधारण मनुष्य के दृष्टिकोण से नहीं है? क्या उसे बुद्ध फा और साधना को नकारने का कोई भी अधिकार है? क्या मनुष्यजाति की कोई भी संस्थाएं भगवान और बुद्ध से उपर उठ सकती है? क्या जो चीगोंग की निंदा करते हैं उनमें यह क्षमता है कि वे बुद्धों को आदेश दे सकें? क्या उनके कहने से बुद्ध बुरे बन जायेंगे? उनके यह कहने से कि बुद्ध नहीं होते, क्या बुद्धों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा? "महान सांस्कृतिक आन्दोलन" के समय धर्म के लिए आई विपत्ति, ब्रह्माण्ड की घटनाओं के क्रमागत बदलाव का परिणाम थी। बुद्ध, दाओ और देव सभी स्वर्ग की इच्छा का अनुसरण करते है। धर्म की विपत्ति मनुष्यों और धर्मों के लिए विपत्ति थी, न कि बुद्धों के लिए विपत्ति।

धर्मों के प्रति मान कम होने का सबसे बड़ा कारण मनुष्य के मन का भ्रष्ट होना है। लोग बुद्ध की उपासना बुद्ध की साधना के लिए नहीं, बल्कि बुद्ध से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करते हैं, जिससे वे धन कमा सकें, विपरीत परिस्थितियों को हटा सकें, बेटा पा सकें, या फिर एक सुखद जीवन व्यतीत कर सकें। सभी ने अपने पिछले जन्मों में बहुत सा कर्म एकत्रित किया हुआ है। तो व्यक्ति सुखद जीवन कैसे व्यतीत कर सकता है? यह कैसे हो सकता है कि व्यक्ति बुरे कर्म करने के बाद उसका भुगतान न करे? जब असुरों ने देखा कि मनुष्य का मन पवित्र नहीं है, तो वे एक के पीछे एक अपनी गुफाओं से मानवीय दुनिया में क्लेश और अव्यवस्था प्रसारित करने निकल आये हैं। जब देवताओं ने और बुद्धों ने देखा कि मनुष्य का मन पवित्र नहीं है, तो उन्होंने अपने पद त्याग दिए और एक के बाद एक मंदिर छोड़ दिए। बहुत से भेडिये, नेवले, प्रेत और सांप मंदिरों में उन लोगों द्वारा लाये गए हैं जो धन और लाभ के लिए प्रार्थना करने आते है। ऐसे मंदिरों में विपत्तियां क्यों नहीं आएगीं? मनुष्यों ने पाप किया है। बुद्ध लोगों को दंड नहीं देते, क्योंकि लोग भ्रमजाल में जी रहे हैं और स्वयं अपने आपको हानि पहुंचा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होने अपने लिए बड़ी मात्रा में कर्म एकत्रित कर लिया है, और महान आपदाएं शीघ्र ही उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं। क्या फिर भी उन्हें दंड देना आवश्यक होगा? वास्तव में, यदि कोई व्यक्ति कोई अनुचित काम करता है, तो उसे भविष्य में कभी न कभी उसका दंड भुगतना पड़ता है। बस यही बात है की लोगों को इसकी समझ या इस पर विश्वास नहीं होता; उन्हें लगता है कि दुर्घटनाएँ आकस्मिक होती हैं।

चाहे कोई भी और कैसी भी सामाजिक शक्तियां आप को साधना अभ्यास करने से रोकती हैं, आप साधना करनी छोड़ देते हैं। क्या आप उनके लिए साधना अभ्यास करते हैं? क्या वे आपको उचित फल पदवी तक पहुँचाएँगे? क्या आपका उनकी ओर झुकाव अन्धविश्वास नहीं है? बल्कि यही वास्तव में अज्ञानता है। इसके अतिरिक्त, हम कोई चीगोंग साधना नहीं कर रहे हैं, हम बुद्ध फा का साधना अभ्यास कर रहे हैं। क्या किसी प्रकार का दबाव इस बात की एक परीक्षा नहीं है कि आप का बुद्ध फा में विश्वास मूलरूप से कितना दृढ़ है। यदि आप अब भी मूल रूप से फा में दृढ़ नहीं हैं, तो बाकी सब कुछ व्यर्थ है।

ली होंगज़ी

दिसम्बर 21, 1995


   

(23) बुद्ध फा की शब्दावली

कुछ नये शिष्य पहले बुद्ध धर्मं का पालन करते थे और बुद्ध शास्त्रों में उपयोग की गयी शब्दावली का उन पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। जब वे मेरे उपयोग किये गए शब्दों को बुद्धमत के शब्दों के समान पाते हैं, तो वे समझते है कि उनके अर्थ वही हैं जो बुद्धमत में हैं। वास्तव में, उनका अर्थ पूर्ण रूप से समान नहीं है। हान क्षेत्र के बुद्धमत के कुछ शब्द चीनी शब्दावली बन चुके हैं, और वे केवल बुद्धमत के शब्द नहीं हैं।

मूलतत्व यह है कि ये शिष्य बुद्धमत की वस्तुओं को छोड़ नहीं पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का एहसास नहीं है की बुद्धमत की धारणा अब भी उनके मन को प्रभावित कर रही है, और न ही वे इस बात की पर्याप्त समझ रखते है कि केवल एक ही साधना मार्ग का अभ्यास करना चाहिए। यदि आप मेरे शब्दों का कुछ और ही अर्थ समझते हैं, तो क्या आप बुद्धमत की साधना नहीं कर रहे?

ली होंगज़ी

दिसम्बर 21, 1995


   

(24) आतंरिक साधना से बाह्य को शांत करें

यदि लोग सदाचार का मूल्य नहीं समझेंगे, तो विश्व अस्तव्यस्त और अनियंत्रित हो जायेगा; हर कोई एक दूसरे का शत्रु बन जायेगा और बिना सुख के जियेगा। बिना सुख के जीने से, उन्हें मृत्यु से डर नहीं लगेगा। लाओ ज़ ने कहा है "जब लोग मृत्यु से नहीं डरेंगे, तो उन्हें मृत्यु से डराकर क्या लाभ? यह एक बहुत बड़ा, वास्तविक संकट है। लोग एक शांतिपूर्ण संसार की आशा रखते है। यदि इस समय सुरक्षा स्थापित करने के लिए अत्यधिक नियमों और आदेशों को लागू किया जाता है, तो इसका विपरीत प्रभाव होगा। इस समस्या को हल करने के लिए, विश्व में सदाचार बढ़ाना आवश्यक है—केवल इसी प्रकार इस समस्या का मूल रूप से समाधान किया जा सकता है। जब अधिकारी नि:स्वार्थी होंगे, तो राज्य भ्रष्ट नहीं होगा। यदि लोग स्वयं-साधना को महत्व देंगे और सदाचार का पालन करेंगे, और अधिकारी और जनता मिलकर अपने मन से आत्म-संयम अपनायेंगे, तो पूरा राष्ट्र स्थिर रहेगा और उसे जनता का सहयोग प्राप्त होगा। राष्ट्र स्थिर और शक्तिशाली होने से, सहज ही विदेशी शत्रु भय में रहेंगे, और इस प्रकार विश्व में शान्ति बनी रहेगी। यह एक ऋषि का कार्य है।

ली होंगज़ी

जनवरी 5, 1996


   

(25) मोहभावों से और अधिक छुटकारा

मेरे शिष्यों ! गुरु बहुत चिंतित हैं, पर इससे कोई लाभ नहीं होगा! आप क्यों साधारण मानव मोहभावों को त्याग नहीं सकते? आगे कदम बढ़ाने से आप इतना क्यों हिचकिचाते हैं? हमारे शिष्य, और साथ ही हमारे कर्मचारी, दाफा के काम में भी एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं। क्या आप इस प्रकार बुद्ध बन पाएंगे? मैं एक अनौपचारिक प्रशासन केवल इसलिए चाहता हूँ क्योंकि आप साधारण मानवीय चीजें नहीं छोड़ पाते और इसलिए अपने काम में व्याकुल अनुभव करते हैं। दाफा सारे ब्रह्माण्ड के लिए है, न की एकमात्र महत्वहीन व्यक्ति के लिए। जो भी काम कर रहा है वह दाफा का प्रचार कर रहा है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि उसे आप करें या कोई और। क्या यह मोहभाव जिसे आप त्याग नहीं पाते, अपने साथ दिव्यलोक में ले जाओगे, और फिर बुद्ध से संघर्ष करोगे? किसी को भी दाफा को अपनी निजी संपत्ति नहीं मानना चाहिए। इस विचार को हटा दें कि आपके साथ कोई अन्याय हो रहा है! जब आपके मन से कोई बात नहीं हटती, तो क्या यह आपके मोहभाव से उत्पन्न नहीं हुई है? हमारे शिष्यों को यह नहीं सोचना चाहिए कि इसका उनसे कोई सम्बंध नहीं है! मैं यह आशा करता हूँ कि सभी स्वयं को जांचेंगे, क्योंकि आप सभी साधक हैं, मेरे, ली होंगज़ी के अतिरिक्त। सभी यह सोचें : मैं इस अंतिम प्रलय के समय यह महान फा क्यों सिखा रहा हूँ? यदि मैं सत्य को उजागर कर देता हूँ, तो यह एक दुष्ट पद्धति को सिखाने जैसा होगा क्योंकि ऐसे लोग अवश्य होंगे जो इसी के लिए फा सीखना चाहते है। वह फा को किसी लक्ष्य को पाने के हेतु से अध्ययन करना होगा। मुक्ति प्राप्त करने के लिए, केवल जब आप सत्य की खोज करते हैं, तभी आपके मोहभाव हटाये जा सकते हैं। आप सब जानते हैं कि कोई भी व्यक्ति मोहभावों को छोड़े बिना साधना में सफल नहीं हो सकता। आप और अधिक त्याग करने का साहस करके आगे क्यों नहीं बढ़ते? वास्तव में, मेरे द्वारा इस दाफा की शिक्षा प्रदान करने का कोई अनकहा कारण अवश्य होगा। जब सत्य प्रकट होगा तब पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। मैंने आप में से कुछ के मोहभाव देखे हैं, पर मैं आपको सीधा नहीं बता सकता। यदि मैंने ऐसा किया, तो आप जीवन भर गुरु के शब्दों को मन में बिठाये रखोगे और आजीवन उनसे जुड़ जाओगे। मुझे आशा है कि मेरे किसी भी शिष्य की बर्बादी नहीं होगी। लोगों को बचाना बहुत ही कठिन है, और उन्हें ज्ञानप्राप्ति कराना और भी कठिन। अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि हर कोई स्वयं की इस सम्बन्ध में जाँच करे। आप सब जानते हैं कि दाफा अच्छा है, तो फिर आप अपने मोहभाव क्यों नहीं छोड़ देते?

ली होंगज़ी

जनवरी 6, 1996


   

(26) मान्यकरण

बुद्ध फा मानवजाति को बचा सकता है, किन्तु बुद्ध फा का अस्तित्व मनुष्य के उद्धार के लिए नहीं हुआ है। बुद्ध फा ब्रह्माण्ड, जीवन और विज्ञान इन सभी के रहस्यों को उजागर कर सकता है। यह मानवजाति को विज्ञान के क्षेत्र में उचित मार्ग पर चलने में सक्षम बनाता है, किन्तु बुद्ध फा का उद्भव मानवजाति के विज्ञान के मार्गदर्शन के लिए नहीं किया गया है।

बुद्ध फा ब्रह्माण्ड की प्रकृति है। यह वह कारक है जिससे पदार्थ के मूल का निर्माण हुआ, और यह ब्रह्माण्ड के सृजन का भी कारण है।

भविष्य में ऐसे कई विशेषज्ञ और विद्वान होंगे जिनका ज्ञान बुद्ध फा के माध्यम से विस्तृत होगा। वे मानवता की नयी पीढ़ी के लिए शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में अग्रदूत होंगे। परंतु आपके अग्रदूत बनने के लिए बुद्ध फा ने ज्ञान प्रदान नहीं किया है। आपको इसकी प्राप्ति इसलिए हुई है क्योंकि आप साधक हैं। अर्थात, पहले आप साधक हैं, फिर एक विशेषज्ञ। तब, एक साधक के रूप में, आपको दाफा का प्रचार करने के लिए सभी संभव परिस्थितियों का उपयोग करना चाहिए और दाफा का एक सच्चे और उचित विज्ञान के रूप में मान्यकरण करना चाहिए, न कि उपदेश देना और आदर्शवादी बनना—यह सभी साधकों का कर्त्तव्य है। इस विशाल बुद्ध फा के बिना कुछ भी अस्तित्व में नहीं होगा—जिसमें यह सारा ब्रह्माण्ड, सूक्ष्तम से वृहत्तम तक सम्मिलित है, और साथ ही मानव समाज का सारा ज्ञान सम्मिलित है।

ली होंगज़ी

जनवरी 8, 1996


   

(27) एक साधक सहज रूप से इसका अंश है

एक साधक के लिए, सारी निराशा जिसका वह साधारण लोगों के बीच सामना करता है वे परिक्षण है, और सारी प्रशंसा जो वह प्राप्त करता है वे परिक्षायें है।

ली होंगज़ी

जनवरी 14, 1996


   

(28) सहनशीलता (रेन) क्या है?

सहनशीलता व्यक्ति के शिनशिंग को सुधारने की कुंजी है। क्रोध, शिकायतों या आंसुओं के साथ सहन करना एक साधारण व्यक्ति की सहनशीलता है, जो अपनी चिंताओं के मोह में बंधा है। पूर्ण रूप से बिना क्रोध या शिकायतों के सहन करना एक साधक की सहनशीलता है।

ली होंगज़ी

जनवरी 21, 1996


   

(29) मी-शिन (अन्धविश्वास) क्या है?

चीनी लोग आज इन दो अक्षरों "मी-शिन" के उल्लेख मात्र से फीके पड़ जाते है, क्योंकि बहुत से लोग जिस किसी बात पर विश्वास नहीं करते उसे मी-शिन कहते है। वास्तव में, इन दो अक्षरों, मी शिन को, महान सांस्कृतिक आन्दोलन के समय, अतिवादी 'वामपंथी' विचारधारा में लपेट दिया गया, और उन्हें उस समय राष्ट्रीय संस्कृति के विरुद्ध सबसे हानिकारक शब्द और सबसे घृणाजनक उल्लेख के लिए उपयोग किया गया। इस प्रकार यह उन सरल मन और अडियल लोगों के लिए सबसे बिना उत्तरदायित्व के पसंदीदा मुहावरा बन गया। यहाँ तक कि वे स्वयं घोषित, तथाकथित ‘भौतिकवादी’, वे भी हर बात जो उनकी समझ से परे हो या विज्ञान की समझ से परे हो तो उसे मी शिन का नाम दे देते है। यदि ऐसे सिद्धान्तों के अनुसार बातों को समझा जाता, तो मनुष्यजाति कोई विकास नहीं कर पाती। और न ही विज्ञान आगे प्रगति कर पाता, क्योंकि विज्ञान की सभी नई प्रगतियां और खोजें उनके पूर्वजों की समझ से परे रही हैं। तब क्या ये लोग स्वयं आदर्शवादी नहीं बन रहे है? एक बार मनुष्य किसी बात में विश्वास कर लेता है, तो क्या यह अपने आप में एक निर्धारित समझ नहीं हुई? क्या यह सच नहीं कि लोगों का आधुनिक विज्ञान और आधुनिक चिकित्सा-शास्त्र में विश्वास भी मी-शिन है? क्या यह सच नहीं कि लोगों की प्रतिमाओं में श्रद्धा भी मी-शिन है? वास्तव में, मी और शिन के दो अक्षरों से एक बहुत ही साधारण शब्द बनता है। एक बार लोग किसी बात में उत्साहित हो कर विश्वास कर लेते है—सत्य समेत—तो वह मी-शिन बन जाता है; यह कोई अपमानजनक अर्थ नही सूचित करता। केवल जब अनुचित प्रयोजन से वे लोग जो दूसरों पर वार करते है तब मी-शिन का सामंतवादी भावार्थ सामने आता है, और इस प्रकार यह एक भ्रामक और लड़ाकू अर्थ वाला शब्द बन गया है जो सरल मन वाले लोगों को इसे दोहराने के लिए उकसा सकता है।

वास्तव में, इन दो शब्दों, मी-शिन, का प्रयोग इस प्रकार नहीं करना चाहिए और न ही इन पर थोपा हुआ अर्थ इस प्रकार है। ये दो शब्द मी और शिन ऐसा कुछ सूचित नहीं करते जो नकारात्मक हो। अनुशासन में मी-शिन के बिना, सैनिकों में सामना करने की क्षमता नहीं रहेगी; अपने विद्यालयों और शिक्षकों में मी-शिन के बिना, छात्र शिक्षा नहीं पा सकेंगे; अपने माता-पिता में मी-शिन के बिना, बच्चों का पालन पोषण शिष्टाचार से नहीं होगा; अपने व्यवसाय में मी-शिन के बिना, लोग अपने कार्य में अच्छी तरह काम नहीं करेंगे। विश्वास के बिना, मनुष्यजाति में नैतिक आदर्श नहीं होंगे; मनुष्य के मन में अच्छे विचार नहीं रहेंगे और उनपर बुरे विचार हावी हो जाएंगे। उस समय मानव समाज के नैतिक मूल्यों में शीघ्रता से गिरावट आयेगी। दुष्ट विचारों के अधीन, सभी एक दुसरे के शत्रु बन जायेंगे और अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ भी करने से नही रुकेंगे। हालाँकि उन बुरे लोगों ने मी-शिन के इन दो शब्दों को नकारात्मक अर्थ दे कर अपना उद्देश्य प्राप्त कर लिया, उन्होंने संभवतः मानवजाति को उसके मूल से ही बर्बाद कर दिया।

ली होंगज़ी

जनवरी 22, 1996 पुनर्संशोधित अगस्त 22, 1996


   

(30) रोग कर्म

ऐसा क्यों है की एक नया अभ्यासी जिसने अभी अभ्यास करना प्रारंभ किया है, या फिर अनुभवी अभ्यासी जिसका शरीर व्यवस्थित किया जा चुका है, अपनी साधना में कुछ असहजता अनुभव करते हैं जैसे वे गंभीर रूप से रोगी हों? और ऐसा कभी कभार क्यों होता है? अपने फा के व्याख्यानों में मैंने बताया है कि यह आपके कर्म को दूर करने और आपके ज्ञान प्राप्ति के गुण को सुधारने के लिए है, साथ ही आप के अनेक पूर्व जन्मों के कर्म भी दूर किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त, यह इसकी भी परीक्षा है कि आप दाफा का पालन करने में कितने दृढ़ है; यह तब तक जारी रहेगा, जब तक आपकी साधना पर-त्रिलोक-फा-सिद्धांत तक नहीं पहुँच जाती। यह इसे साधारण शब्दों में समझाने जैसा है।

वास्तव में, एक व्यक्ति यह नही जानता की कितने जीवनकालों में—जिसमें से प्रत्येक में उसने बहुत से कर्म एकत्रित किये हैं—से वह गुजर चुका है। जब किसी व्यक्ति का मृत्यु के बाद पुनर्जन्म होता है, उसका कुछ रोग-कर्म उसके शरीर में एक सूक्ष्म स्तर पर दबा दिया जाता है। जब उसका पुनर्जन्म होता है, उसके नये शरीर के पदार्थ में उपरी तौर पर कोई रोग-कर्म नही होता (किन्तु जिनका कर्म बहुत अधिक होता है उनके लिए अपवाद हो सकते हैं)। जो पूर्व जन्म में शरीर में दबाया गया था वह अब उभरकर आता है, और जब वह इस भौतिक शरीर के सतह पर लौटता है तो व्यक्ति बीमार पड़ जाता है। किन्तु बहुधा यह रोग इस भौतिक जगत में बाहय कारकों द्वारा उत्पन्न हुआ दिखाई पड़ता है। इस प्रकार से यह उपरी तौर पर हमारे भौतिक जगत के नियमों के अनुरूप होता है। अर्थात, यह इस मानवीय जगत के नियमों का पालन करता है। परिणाम स्वरुप, साधारण लोग किसी भी प्रकार रोग के कारण का वास्तविक सत्य नहीं जान पाते, और वे इस तरह बिना ज्ञानोदय हुए भ्रम में खोये रहते हैं। रोग होने पर, वह व्यक्ति औषधि लेगा या फिर अनेक प्रकार के उपचार ढूंढेगा, जिससे वह रोग वापस शरीर में दब जाएगा। इस प्रकार, अपने पूर्वजन्मों के बुरे कार्यों से उत्पन्न रोग-कर्म का ऋण चुकाने के बजाय, वह इस जीवन में कुछ और बुरे कार्य करता है और दूसरों को दुःख पहुंचाता है; जिससे नए रोग-कर्म उत्पन्न होते हैं और फलस्वरूप अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते है। हालाँकि, वह फिर औषधि का प्रयोग करके या कुछ और उपचार करके रोग को फिर से अपने शरीर में दबा देता है। शल्यचिकित्सा केवल इस सतही भौतिक आयाम के मांस को हटा सकती है, जबकी दूसरे आयाम के रोग-कर्म को छुआ भी नही जा सकता—यह इस आधुनिक चिकित्सा तकनीक की पहुंच से परे है। जब रोग वापस लौटता है, व्यक्ति फिर से उपचार ढूंढेंगा। मृत्यु के पश्चात जब व्यक्ति पुनर्जन्म लेता है, जो भी रोग-कर्म एकत्रित होता है वह वापस उसके शरीर में दबा दिया जाता है। यह चक्र जीवन दर जीवन चलता रहता है; व्यक्ति के शरीर में कितने रोग-कर्म एकत्रित है इसका किसी को ज्ञान नहीं है। इसलिए मैने यह कहा है की आज की संपूर्ण मानवजाति इस बिंदू पर पहूंच गयी है जहाँ उसने कर्म के उपर कर्म एकत्रित किये है; रोग-कर्म के अतिरिक्त, व्यक्ति के पास दूसरे प्रकार के कर्म भी होते हैं। इसीलिए लोगों के जीवन में कठिनाइयाँ, क्लेश और चिंता होते हैं। कर्म का भुगतान किये बिना वे केवल प्रसन्नता की अपेक्षा कैसे कर सकते है? आजकल लोगों के कर्म इतने अधिक है कि वे इनमें डूबे हुए है, और किसी भी समय या स्थिति में उनका सामना अप्रिय परिस्थितियों से हो सकता है। जैसे ही वह व्यक्ति अपने कदम द्वार के बाहर रखता है, बुरी परिस्थितियां उसकी प्रतीक्षा कर रही होती है। जब कोई मतभेद होते हैं, लोग उन्हें सहन नहीं कर पाते और यह समझने में विफल रहते हैं कि वे अपने विगत के कर्मों का भुगतान कर रहे हैं। यदि किसी व्यक्ति से लोग बुरा व्यवहार करते हैं, तो वह उनसे और भी बुरा व्यवहार करेगा, जिससे वह पुराने कर्म का भुगतान करने से पहले नया कर्म उत्पन्न कर लेगा। इससे समाज की नैतिक मूल्यों में प्रतिदिन गिरावट आती है, और सभी एक दुसरे के शत्रु बन जाते है। बहुत से लोग यह नहीं समझ पाते : आज के लोगों को क्या हो गया है? आज कल के समाज में यह क्या हो रहा है? यदि मानवजाति इसी प्रकार बनी रही तो यह अंत्यत भयावह होगा!

हम साधकों के लिये, गुरु द्वारा हटाये गये कर्म के अतिरिक्त, कुछ भाग हमें स्वयं भुगतना होगा। इसलिए आपको शारीरिक तौर पर असुविधापूर्ण लगेगा, जैसे कि आप रोग से पीड़ित हो रहे हों। साधना अभ्यास आपको आपके जीवन के मूल से शुद्ध करने के लिए है। मानव शरीर एक पेड़ के वार्षिक छल्लों की तरह होता है जहां प्रत्येक छल्ले में रोग कर्म होते हैं। इसलिए आपका शरीर ठीक मध्य से शुद्ध किया जाना आवश्यक है। यदि सारा कर्म एक बार में ही बाहर निकाल दिया जाये, तो आप इसे सहन नही कर पायेंगें, क्योंकी इससे आपका जीवन संकट में पड़ सकता है। एक बार में केवल एक या दो भाग ही बाहर निकाले जा सकते हैं, जिससे आप इसे सहन कर सकें व पीड़ा द्वारा अपने कर्मों का भुगतान कर सकें। किन्तु मेरे द्वारा आपके कर्म हटाने के पश्चात केवल यह एक छोटा सा भाग ही आपके पीडा सहने के लिए शेष बचता है। यह तब तक जारी रहेगा जब तक आपकी साधना त्रिलोक-फा-सिद्धांत (शुद्ध श्वेत शरीर) के उच्च्तम स्तर पर नहीं पहुंच जाती, तब आपका सम्पूर्ण कर्म बाहर निकाल दिया गया होगा। हाँलाकी, कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनके रोग-कर्म बहुत कम हैं, और कुछ अन्य विशेष उदाहरण भी हैं। पर-त्रिलोक-फा साधना में शुद्ध अरहत शरीर की साधना की जाती है—ऐसा शरीर जिसमें कोई रोग-कर्म नहीं होता। किन्तु उस व्यक्ति के लिये जिसने अभी साधना परिपूर्ण नहीं की है और जो अभी पर-त्रिलोक-फा के उच्च स्तरों की ओर साधना कर रहा है, वह अभी भी पीड़ित होगा और अपने स्तर में उन्नति के लिए कठिनाइयों और परिक्षाओें का सामना करेगा। उसे केवल पारस्पारिक तनाव या शिनशिंग के क्षेत्र की कुछ वस्तुओं का सामना करना होगा और अपने मोहभावों का और अधिक त्याग करना होगा; उसके पास अब कोई शारीरिक रोग कर्म नही होंगें।

रोग कर्म कुछ ऐसा नहीं है जिसे एक साधारण व्यक्ति के लिए सहज ही हटाया जा सके; व्यक्ति जो साधक नहीं है उसके लिए ऐसा करना बिलकुल असंभव है, उसे चिकित्सा उपचार पर निर्भर होना होगा। एक साधारण व्यक्ति के लिए इच्छानुसार ऐसा करना वास्तव में दिव्यलोक के नियमों की अवहेलना करना है, क्योंकि इसका अर्थ होगा कि व्यक्ति कर्म का भुगतान किये बिना बुरे कार्य कर सकता है। यह कदापि स्वीकृत नहीं होगा कि कोई व्यक्ति अपने ऋण न चुकाए—दिव्यलोक के सिद्धान्त इसकी अनुमति नहीं देते ! यहाँ तक कि साधारण चीगोंग उपचार भी कर्म को व्यक्ति के शरीर के भीतर दबा देते हैं। जब किसी व्यक्ति के कर्म बहुत अधिक हो चुके होते है और वह अब भी बुरे कार्य करता है, वह अपनी मृत्यु के समय विनाश का सामना करेगा—शरीर और आत्मा दोनों का पूर्ण विनाश—जो सम्पूर्ण विघटन होगा। किसी मनुष्य के रोग का उपचार करते समय, एक महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति उसके रोग के कार्मिक कारण को पूर्ण रूप से हटा सकता है, पर यह मुख्य रूप से लोगों को बचाने के उद्देश्य से किया जाता है।

ली होंगज़ी

मार्च 10, 1996


   

(31) साधक की त्यागने योग्य वस्तुएं

जो अपनी प्रतिष्ठा का मोह रखते है वे एक दुष्ट मार्ग का अभ्यास करते है, जो स्वार्थ से भरा है। एक बार इस जगत में प्रसिद्ध हो जाने पर, वे निःश्चित ही अच्छी बातें कहेंगे किन्तु उसका अर्थ बुरा होगा, जिससे लोग गुमराह होंगे और ‘फा’ की अवहेलना होगी।

जो धन से मोह रखते है वे संपत्ती की चाह रखते हैं और साधना करने का ढोंग रचते हैं। अभ्यास एवं फा की अवहेलना करते हुए, वे बुद्धत्व की साधना करने के स्थान पर अपने जीवनकाल व्यर्थ करते हैं।

जो वासना से मोह रखते है वे दुष्ट लोगों से भिन्न नहीं हैं। शास्त्रों को पढ़ते समय, वे यहाँ-वहाँ ताकते रहते हैं; वे ताओ से बहुत दूर हैं और दुष्ट, साधारण लोग हैं।

जो अपने परिवार के मोह में बंधे है वे निःश्चित ही उस मोह में जलेंगे, उलझेंगे और पीड़ित होंगे। जीवनभर मोह के धागों से खींचें जाने और त्रस्त होने पर, उनके अपने जीवन के अंत में पश्चाताप के लिये भी देर हो चुकी होगी।

ली होंगज़ी

अप्रैल 15, 1996


   

(32) उत्तम सामंजस्य

(I)

विभिन्न कार्यस्थल वातावरण में लोग हत्या के विभिन्न पहलुओं में लिप्त हैं। जीवों का संतुलन विभिन्न तरीकों में प्रकट होता है। एक साधक के तौर पर, सर्वप्रथम आपको अपने सभी मोहभावों को त्याग देना चाहिये और मानव समाज के तौर-तरीकों के अनुरूप रहना चाहिये, क्योंकि यह फा की एक निःश्चित स्तर पर अभिव्यक्ति को बनाये रखना है। यदि किसी ने भी मानवीय कार्य नहीं किये होते तो इस स्तर पर फा का अस्तित्व समाप्त हो जाता।

(II)

फा के अंतर्गत जीव स्वाभाविक रूप से जीते और मरते हैं। ब्रह्माण्ड उत्पत्ति, स्थिरता एवं विनाश के चक्र से गुजरता है तथा मनुष्य जन्म, बुढ़ापा, रोग एवं मृत्यु से गुजरता है। जीवन के संतुलन के लिए अप्राकृतिक जन्म और मृत्यु भी होते हैं। सहनशीलता में त्याग है, और पूर्ण त्याग त्रुटिहीन होने का एक ऊँचे स्तर का सिद्धांत है।

ली होंगज़ी

अप्रैल 19, 1996


   

(33) त्रुटि-हीन

सहनशीलता में त्याग होता है। त्याग करने के लिये समर्थ होना व्यक्ति के साधना में उन्नति का परिणाम है। ‘फा’ के विभिन्न स्तर होते हैं। एक साधक की ‘फा’ की समझ उसके साधना स्तर की ‘फा’ की समझ है। विभिन्न साधक ‘फा’ को विभिन्न तरीकों से समझते हैं क्योंकी वे भिन्न स्तरों पर होते हैं।

भिन्न स्तरों पर साधकों के लिये ‘फा’ की भिन्न आवश्यकताएं होती हैं। त्याग का प्रमाण व्यक्ति के साधारण मानव मोहभावों से अनासक्त होने में मिलता है। यदि व्यक्ति वास्तव में अपना हृदय अप्रभावित रखते हुए शांतिपूर्वक सब कुछ त्याग दे, वह पहले ही उस स्तर पर पहुँच चुका है। फिर भी साधना अभ्यास करना स्वयं में सुधार लाना है : आप जब मोहभाव छोड़ सकते हैं, तो फिर मोहभाव का डर भी क्यों न छोड़ दें? तो क्या त्रुटि-हीनता के बिना त्याग उच्चतर त्याग नहीं है? फिर भी कोई साधक या साधारण व्यक्ति जो मौलिक त्याग भी नही कर सकता यदि इस सिद्धान्त की चर्चा करे, वह उन मोहभावों को जिन्हे वह छोड नही सकता को बहाने बना कर वास्तव में ‘फा’ की अवहेलना कर रहा है।

ली होंगज़ी

अप्रैल 26, 1996


   

(34) साधना और कार्य

मठों के सन्यासी साधकों को छोड़कर, हमारे फालुन दाफा के बहुसंख्यक शिष्य साधारण लोगो के समाज में साधना अभ्यास कर रहे हैं। दाफा का अध्ययन एवं अभ्यास करते हुए, अब आप प्रसिद्धि एवं व्यक्तिगत स्वार्थ को हल्केपन से ले पाने में समर्थ हैं। किन्तु, फा की गहरी समझ न होने से एक समस्या खड़ी हुई है : कुछ साधकों ने साधारण लोगों के बीच के अपने काम छोड़ दिए हैं या नेतृत्व पद के लिए मिल रही पदोन्नति को ठुकरा दिया है। इससे उनके जीवन एवं कार्य में अनावश्यक व्यवधान उत्पन्न हुए हैं, जिससे उनकी साधना सीधे प्रभावित हुई है। कुछ शालीन व्यापारियों की सोच है कि उन्होने धन को हलकेपन से लिया है, और साथ-साथ, यह समझा कि व्यापार करने से दूसरों को हानि पहुंच सकती है और उनकी स्वयं की साधना प्रभावित हो सकती है। उन्होने अपने व्यापार तक छोड़ दिये हैं।

वास्तव में, दाफा की शिक्षाएं अथाह हैं। साधारण मानव बंधनों को त्याग देने का अर्थ यह नहीं है कि आप साधारण लोगों के व्यवसाय छोड़ दें। प्रसिद्धि और स्वार्थ छोड़ देने का अर्थ यह नहीं है कि आप समाज के साधारण लोगों से दूर हो जायें। मैने अनेक बार इंगित किया है कि वे जो साधारण लोगों के समाज मे साधना करते हैं उन्हें साधारण लोगों के समाज के तौर-तरीकों के अनुरूप होना चाहिये।

दूसरे दृष्टीकोण से देखा जाए तो, यदि साधारण लोगों के समाज में सभी अधिकारपूर्ण पद हमारे जैसे लोगों से भरे जाएं जो अपनी प्रतिष्ठा एवं स्वार्थ की चिंता छोड़ सकते हैं, तो इससे लोगो को कितना अधिक लाभ होगा? और यदि लालची लोग सत्ता प्राप्त कर लेते हैं तो समाज को क्या मिलेगा? यदि सभी व्यापारी दाफा के साधक होते तो समाज की नैतिकता कैसी होती?

ब्रह्माण्ड का दाफा (बुद्ध फा), उच्चतम स्तर से लेकर निम्नतम स्तर तक सुसंगत और संपूर्ण है। आपको पता होना चाहिये कि साधारण मानव समाज भी फा का एक स्तर है। यदि हर कोई दाफा का अभ्यास करे और समाज में अपने व्यवसाय छोड़ दे, तो साधारण मानव समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा, और साथ ही फा के इस स्तर का भी। साधारण मानव समाज फा के निम्नतम स्तर की अभिव्यक्ति है, और इस स्तर पर यह बुद्ध फा के लिये जीवन एवं पदार्थ के अस्तित्व का स्वरूप भी है।

ली होंगज़ी

अप्रैल 26, 1996


   

(35) सुधार

वर्तमान में, रिसर्च सोसायटी द्वारा प्रस्तुत निम्नलिखित पंक्तियाँ ‘फा’ के नाम पर या मेरे शब्द कहकर, भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में प्रचारित और सीखी जा रही हैं :

ध्यान से दाफा पढ़ें,

सच में शिनशिंग की साधना करें,

परिश्रम से व्यायाम करें,

... इत्यादि।

वास्तव में, ये मेरे शब्द नहीं है, न हीं उनका कोई गहरा अर्थ है—निःश्चित ही यह फा नहीं है। "ध्यान से पढ़ें" का अर्थ फा के पढ़ने की मेरी आवश्यकताओं से बहुत ही भिन्न है। वस्तुतः, ‘‘फा का अध्ययन’’ लेख जो मैने सितंबर 9, 1995 को लिखा था; उसमें पुस्तक पढ़ने के बारे में बहुत ही स्पष्टता से बताया था। इसके अतिरिक्त, ‘‘ध्यान से पढ़ने’’ के अर्थ से “फा के अध्ययन” में गंभीर व्यवधान उत्पन्न हुआ है। आगे से, आपको इस समस्या की गंभीरता पर ध्यान देना चाहिये। मैने भारत से बुद्धमत के लुप्त होने के कारण एवं उससे सीख लेने के बारे में बात की है। यदि भविष्य में कोई सावधानी नही रखी गई, यह फा के विघटन का आरम्भ होगा। सतर्क रहें : जब समस्या उत्पन्न होती है, यह खोजने का प्रयास न करें कि इसका कारण कौन है। इसके स्थान पर, आपको अपना स्वयं का आचरण देखना चाहिये। यह जानने का प्रयास न करें कि उन्हे किसने लिखा है। इससे सीख लें और भविष्य में सचेत रहें।

ली होंगज़ी

अप्रैल 28, 1996


   

(36) अपरिवर्तनीय

ऐसा लगता है यदि हमें दाफा को हमेशा के लिये अपरिवर्तनीय रखना है तो इसमें अभी भी एक समस्या है। जैसे कि, कुछ ऐसे शिष्य हैं जो अपनी दिखावे की मानसिकता से और अलग दिखने की चाह में, जैसे ही अवसर मिलता है दाफा में व्यवधान उत्पन्न करने वाले काम करते हैं। यह कभी-कभी वास्तव में गंभीर हो जाता है। उदाहरण के लिये, हाल ही में कोई यह कह रहा था कि मैंने किसी शिष्य को व्यायाम की क्रियाएं व्यक्तिगत रूप से सिखायी हैं (वास्तविकता यह है कि मैंने उस शिष्य के कहने पर केवल उसकी क्रियाओं में कुछ सुधार किया था)। इसके फलस्वरूप पिछले कुछ वर्षों से व्यायाम की क्रियाएं जो मैं सिखा रहा हूँ वे अमान्य हो जाती हैं। मेरे यहाँ होते हुए और इस स्थिति में कि व्यायाम सम्बन्धी मेरे विडियो टेप भी उपलब्ध हैं, इस व्यक्ति ने सार्वजनिक रूप से दाफा की व्यायाम क्रियाओं में बदलाव किया। उसने शिष्यों को विडियो टेप के अनुसार नहीं बल्कि उसके अनुसार व्यायाम करने के लिये कहा, और दावा किया कि गुरुजी के पास उच्च स्तरीय गोंग है, वे अपने शिष्यों से भिन्न हैं, इत्यादि। उसने शिष्यों को पहले उनकी अपनी स्थिति के अनुसार व्यायाम करने, और भविष्य में क्रमशः बदलाव करने के लिये कहा, इत्यादि।

प्रारंभ से ही मैने व्यायामों को उनकी संपूर्णता में सिखाया है, क्योंकी मुझे चिंता थी कि कुछ शिष्य इसमें मनमाने बदलाव कर सकते हैं। एक बार शक्ति यन्त्र प्रणाली स्थापित हो जाने पर कभी बदली नही जा सकती। यह समस्या महत्वहीन दिखायी देती है, परंतु यह वास्तव में दाफा में गंभीर विघ्न का आरम्भ है। कुछ लोग सीखने के दौरान गति-क्रियाओं को अपने अनुसार समझ लेते हैं और शिष्यों को उसी प्रकार से करने के लिए कहते हैं। इस प्रकार करना सबसे भिन्न होने का प्रयास करने जैसा है। इससे वर्तमान में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बहुत गंभीर प्रभाव पड़ा है। मेरे शिष्यों! मेरे व्यायाम सम्बन्धी विडीओ टेप अभी भी उपलब्ध हैं—फिर आप इन लोगों का अनुसरण इतनी तत्परता से क्यों करते हैं?! दाफा इस विश्व का एक पवित्र, महान फा है। यदि आप इसमें थोडा सा भी विघ्न डालते हैं तो यह कितना विशाल पाप होगा! एक साधक होने के नाते, आपको सुस्पष्ट और गरिमामय तरीके से साधना का अभ्यास करना चाहिये और पूर्ण रूप से समझना चाहिये। यह कैसे हो सकता है कि सभी की गति-क्रियाएँ बिना किसी अंतर के बिल्कुल एक-समान हों? ऐसी छोटी-छोटी बातों पर अपना ध्यान केंद्रित न करें। व्यायाम गति-क्रियाएँ फल पदवी तक पहुँचने का एक मार्ग हैं और वे निःश्चित ही महत्वपूर्ण हैं। किन्तु, आपको अपना प्रयास अपने शिनशिंग बढ़ाने में समर्पित करना चाहिए, न कि कहीं अटके रहने में। वस्तुतः, दाफा के लिए अधिकांश व्यवधान भीतर से आते है, स्वयं साधको के द्वारा। बाह्य कारक कुछ व्यक्तियों को केवल प्रभावित ही कर सकते हैं और फा में बदलाव करने में असमर्थ हैं। वर्तमान में या भविष्य में, वे लोग जो दाफा की अवहेलना कर सकते हैं कोई और नहीं बल्कि हमारे अभ्यासी ही हो सकते हैं। सचेत रहिये! हमारा फा हीरे की तरह ठोस एवं अपरिवर्तनीय है। किसी भी परिस्थिति या किसी भी कारणवश कोई भी गति-क्रियाओं में थोडा सा भी बदलाव नहीं कर सकता जिनसे हमें फल पदवी तक पहुंचना होता है। अन्यथा, यह व्यक्ति फा की अवहेलना कर रहा है चाहे उसका उद्देश्य अच्छा हो या बुरा।

ली होंगज़ी

मई 11, 1996


   

(37) निराधार वचन न कहें

हाल ही में एक बात प्रचलित हो रही है। वह है, जब अभ्यासी दाफा का प्रचार करते हैं और परिणामस्वरुप कुछ लोग जिनके पूर्वनिर्धारित संबंध हैं, उन्हें फा प्राप्त करने और साधना अभ्यास आरंभ करने में सहायता करते हैं, इनमें से कुछ अभ्यासी यह दावा करते हैं कि उन्होंने लोगों को बचा लिया है। वे कहते हैं, "आज मैंने कुछ लोगों को बचाया, और आपने कुछ और लोगों को बचाया," इत्यादि। वास्तव में, यह फा है जो लोगों को बचाता है, और केवल गुरु ही ऐसा कर सकते हैं। आप केवल पूर्वनिर्धारित संबंध वाले लोगों को फा प्राप्त करने में सहायता करते हैं। उन्हें वास्तव में बचाया जा सकता है या नहीं केवल इस पर निर्भर करता है कि क्या वे साधना द्वारा फल पदवी तक पहुँच पाते हैं। सावधान रहें : एक बुद्ध ऐसे निराधार वचनों से चौंक जायेगें, चाहे वे जान बूझकर कहे गए हों या नहीं। स्वयं के साधना अभ्यास में विघ्न उत्पन्न न करें। इस संबंध में आपको अपनी बोल-चाल की साधना पर भी ध्यान देना चाहिए। मैं आशा करता हूँ कि आप समझेंगे।

ली होंगज़ी

मई 21, 1996


   

(38) जागृति

दाफा अभ्यास की वास्तविक साधना का समय सीमित है। बहुत से शिष्य समझ चुके हैं कि उन्हे अब अविलम्ब और यत्न से निरंतर आगे बढ़ना होगा। फिर भी कुछ शिष्य अपने समय का मूल्य नही समझते और अपना ध्यान महत्वहीन मुद्दों पर केन्द्रित करते हैं। जबसे यह पुस्तक ‘ज़ुआन फालुन’ प्रकाशित की गयी है, बहुत से लोगों ने मेरे व्याख्यान की रिकॉर्डिंग की तुलना पुस्तक से की और दावा किया कि रिसर्च सोसायटी ने गुरु के शब्द बदल दिए हैं। कुछ और लोगों ने कहा कि यह पुस्तक अमुक व्यक्ति की सहायता से लिखी गयी है, और इस प्रकार उन्होने दाफा की अवहेलना की है। मैं अभी आप से कहता हूँ कि दाफा मुझसे, ली होंगज़ी, से संबंधित है। यह आपके उद्धार के लिये सिखाया गया है और मेरे मुख द्वारा बोला गया है। इसके अतिरिक्त, जब मैंने फा सिखाया, मैंने कोई आलेख या अन्य साधन का उपयोग नहीं किया, केवल एक कागज का टुकड़ा उस विषय पर कि मैंने शिष्यों को क्या सिखाना है; इसपर काफी साधारण लिखा हुआ था, केवल कुछ शब्द जो कोई और नहीं समझ सकता था। हर बार जब मैंने फा सिखाया, मैंने इसे भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया और शिष्यों की समझ के अनुसार समझाया। तो हर बार जब मैंने फा की शिक्षा दी, मैंने उसी मुद्दे को भिन्न दृष्टिकोण से संबोधित किया। इसके अतिरिक्त, यह फा की पुस्तक ब्रह्माण्ड की प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है और यह महान बुद्ध फा की सच्ची अभिव्यक्ति है। यह वह है जो मेरे पास मूल रूप से था—वह जिसका मैंने साधना अभ्यास द्वारा ज्ञानप्राप्ति के पश्चात पुनः स्मरण किया। तब मैंने इसे साधारण मानवीय भाषा में सार्वजनिक किया, और साथ ही इसे आपको और जो दिव्यलोकों में हैं उन्हें सिखाया, जिससे फा द्वारा ब्रह्माण्ड का सुधार हो सके। शिष्यों के लिए साधना अभ्यास सुगम करने के लिए, मैंने कुछ शिष्यों को मेरे मूल शब्दों में बिना किसी बदलाव किये टेप रिकॉर्डिंग से मेरे व्याख्यान की प्रतिलिपि बनाने का काम सौंपा। फिर उन्होंने यह मुझे अवलोकन के लिए दिया। शिष्यों ने केवल मेरे अवलोकन की प्रतिलिपि बनायी या उसे कंप्यूटर पर टाइप किया जिससे मैं पुनः अवलोकन कर सकूं। जहाँ तक ज़ुआन फालुन की बात है, मैंने स्वयं इसके अंतिम आलेख के प्रकाशन से पहले तीन बार अवलोकन किया।

किसी ने कभी भी इस दाफा की पुस्तक के विषय-वस्तु में थोडा सा भी बदलाव नहीं किया। और फिर, ऐसे भला कौन कर सकता था? पहला, लोगों की साधना अभ्यास में सहायता करने के लिए मैंने अपने कई फा-व्याख्यानों को अवलोकन करते समय मिश्रित किया। दूसरा, फा पर व्याख्यान देते समय, मैंने शिष्यों की विभिन्न समझने की क्षमता और उस समय की परिस्थितियों और दशा के अनुसार शिक्षा दी थी; इस कारण, मुझे इन्हें पुस्तक में सम्पादित करते समय भाषा की रचना में सुधार करना पड़ा। तीसरा, जब साधक इसे पढ़ते हैं, तब व्याख्यान और लिखित भाषा के बीच के अंतर के कारण भ्रम उत्पन्न हो सकते हैं, इसलिए सुधार करने की आवश्यकता थी। फिर भी, मेरे फा व्याख्यानों के स्वरूप और बोल-चाल की भाषा को संरक्षित रखा गया। ज़ुआन फालुन (भाग दो), और फालुन दाफा के विषय की व्याख्या, का भी प्रकाशित करने से पहले मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से अवलोकन किया गया। ज़ुआन फालुन (भाग दो) को लिखते समय मैंने विभिन्न स्तरों के विचारों को सम्मिलित किया है, जिससे कुछ लोगों को लिखने के ढंग में बदलाव दिखायी देता है और वे इससे उलझन में पड़ जाते हैं। पहली बात तो यह है कि ये साधारण मानवीय बातें नहीं हैं। वास्तव में, भाग दो भविष्य की पीढियों को आज के मानवजाति के पतन की सीमा से अवगत कराने के लिए रहेगा, और इस प्रकार लोगों के लिए यह एक गंभीर ऐतिहासिक सीख छोड़ जाएगा। चीनी फालुन गोंग, इसके संशोधित संस्करण सहित, लोगों को आरंभिक रूप से समझने के लिए चीगोंग के रूप में केवल अल्पकालिक सामग्री है।

फा का व्यवधान कई रूप धारण करता है, जिसमें से शिष्यों के स्वयं के द्वारा अनजाने में हुए व्यवधान को पहचानना सबसे कठिन होता है। शाक्यमुनि के बुद्धमत का विकृत होना इसी प्रकार प्रारंभ हुआ था और यह गंभीर सीख है।

शिष्यों को यह याद रखना चाहिए : सभी फालुन दाफा के लेखन मेरे सिखाए गए फा हैं, और मेरे द्वारा व्यक्तिगत रूप से संशोधित और संपादित किये गए हैं। अब के बाद, किसी को भी मेरे फा-व्याख्यानों की टेप रिकॉर्डिंग में से कुछ अंश निकाल कर लेने की अनुमति नहीं है, न ही उन्हें लिखित रूप में संकलित करने की। चाहे आप के कुछ भी बहाने हो, यह फिर भी फा का अनादर करना होगा; इसमें तथाकथित "भाषण और उसके लिखित रूप के बीच की भिन्नताओं को बताना" भी सम्मिलित है, और इत्यादि।

ब्रह्माण्ड के क्रमिक विकास या मानवजाति के विकास में कुछ भी आकस्मिक नहीं है। मानव समाज का विकास इतिहास की व्यवस्था के अनुसार होता है और यह ब्रह्मांडीय वातावरण द्वारा संचालित होता है। भविष्य में संसार में और भी लोग होंगे जो दाफा की शिक्षा प्राप्त करेंगे। यह कुछ ऐसा नहीं है जो कोई मनमानी करने वाला व्यक्ति कर पाए केवल इसलिए क्योंकि वह चाहता है। इतनी महत्वपूर्ण घटना के साथ, ऐसा कैसे हो सकता कि इतिहास में इसके लिये विभिन्न व्यवस्थाएं न बनी हों? वास्तव में, मैंने जो कुछ भी किया है वह अनगिनत वर्षों पूर्व व्यवस्थित किया गया था, और इसमें यह भी सम्मिलित है कि कौन फा प्राप्त करेगा—कुछ भी आकस्मिक नहीं है। लेकिन इन वस्तुओ का अभिव्यक्त होने का तरीका साधारण मनुष्यों को ध्यान में रखते हुए होता है। वास्तव में, इस जीवन में मेरे कई गुरुओं द्वारा मुझे दी गई वस्तुएं भी वे हैं जिन्हें मैंने जानबूझकर कुछ जीवनकाल पहले मैंने उनसे प्राप्त करने के लिए व्यवस्थित किया था। जब पूर्वनिर्धारित अवसर आया, तो उनके द्वारा उन वस्तुओ को मुझे वापस करने की व्यवस्था की गई जिससे मुझे मेरा पूर्ण फा याद आ जाए। इसलिए मैं आपको बताना चाहुंगा कि फा की इस पुस्तक का अध्ययन न केवल मानव स्तर पर किया जाता है, बल्कि उच्च स्तर के प्राणियो द्वारा भी किया जाता है। क्योंकि ब्रह्माण्ड का एक विशाल क्षेत्र ब्रह्मांड की प्रकृति से भटक गया है, इसे फा द्वारा सुधारना आवश्यक है। इस विशाल ब्रह्माण्ड में मानवजाति बहुत नगण्य है। पृथ्वी कुछ नहीं केवल इस ब्रह्माण्ड में धूल के एक कण के सामान है। यदि मनुष्य उच्च स्तर के प्राणियों द्वारा महत्व पाना चाहते हैं, तो उन्हें साधना का अभ्यास करना होगा और स्वयं भी उच्च स्तरीय प्राणी बनना होगा!

ली होंगज़ी

मई 27, 1996


   

(39) फा की स्थिरता

पिछले दो वर्षों में अभ्यासिओं की साधना में कुछ समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। मैं शिष्यों की साधना का निरीक्षण करता रहा हूँ। इन उभरती हुई समस्याओं के तुरंत समाधान के लिए, मैं अक्सर विशिष्ट उद्देश्यों से लघु लेख (जिन्हें हमारे शिष्य "शास्त्र" कहते हैं), अभ्यासियो की साधना में मार्गदर्शन के लिए लिखता हूँ। इसका उद्देश्य दाफा की साधना के लिए एक स्थिर, स्वस्थ और उचित मार्ग छोड़ना है। भविष्य की पीढ़ियों के लिये, यदि उन्हें फल पदवी तक पहुंचना है तो, आने वाले हजारों वर्षों तक इसी मार्ग को अपनाते हुए साधना करनी होगी जो मैंने उनके लिए व्यक्तिगत रूप से छोड़ा है।

हाल ही में, हालांकि, मैंने होंगकोंग में एक अभ्यास स्थल पर शास्त्रों का संग्रह देखा जो किसी और क्षेत्र से लाया गया था; उसमें दो छोटे लेख सम्मिलित थे जिन्हें मैं प्रकाशित नहीं करना चाहता था। यह दाफा को क्षति पहुंचाने का एक गंभीर और जानबूझकर किया गया प्रयास था! यहां तक ​​कि हमारे टेप रिकॉर्डिंग की स्वयं ही प्रतिलिपि बना लेना भी अनुचित है! मैंने इसे "जागृति" लेख में स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी मेरे टेप रिकॉर्डिंग के शब्दों से किसी भी बहाने से लिखित शास्त्र न बनाएं—ऐसा करना फा को अपमानित करना है। साथ ही, मैंने बार-बार जोर दिया है कि मेरे व्याख्यान के दौरान आपके लिखे हुए निजी लेखन का आप प्रसार नहीं कर सकते। आप अभी भी ऐसा क्यों करते हैं? कौन सी मनोदशा आपको इन्हें लिखने के लिए प्रेरित करती है? मैं आपको यह बता दूं कि मेरी अनेक अधिकारिक रूप से प्रकाशित पुस्तकों और मेरे हस्ताक्षरित दिनांकित लघु लेख हैं और रिसर्च सोसाइटी द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में वितरित किए जाते हैं, उनको छोड़कर, जो भी मेरी अनुमति के बिना लिखा गया है, फा को अपमानित करना है। साधना आपका व्यक्तिगत मुद्दा है, और यह स्वयं आपका निर्णय है कि आप किसका अनुसरण करते हैं। सभी साधारण लोगों में आसुरिक-प्रकृति और बुद्ध-प्रकृति दोनों होती हैं। यदि व्यक्ति का मन उचित नहीं है तो उस पर आसुरिक-प्रकृति प्रभावी होगी। मैं दोबारा बताना चाहुंगा कि कोई बाहरी व्यक्ति फा को कभी क्षति नहीं पहुंचा सकता। केवल शिष्य ही फा को हानि पहुंचा सकते हैं—यह याद रखें!

प्रत्येक कदम, जो मैं, ली होंगज़ी, उठाता हूँ वह भविष्य की पीढ़ियों तक दाफा के प्रसारण का अपरिवर्तनीय और अटल मार्ग है। इस प्रकार का एक विशाल फा एक पल की लोकप्रियता के बाद समाप्त नहीं होगा। आने वाले अनगिनत वर्षों में इसमें थोडा सा भी बदलाव नहीं आ सकता। अपने आचरण द्वारा दाफा की सुरक्षा हमेशा दाफा शिष्यों का उत्तरदायित्व है, क्योंकि दाफा ब्रह्माण्ड के सभी चेतन प्राणियों से संबंधित है, और इसमें आप भी सम्मिलित हैं।

ली होंगज़ी

जून 11, 1996


   

(40) साधना अभ्यास और उत्तरदायित्व लेना

लगन और दृढ़ता से साधना करने का उद्देश्य है कि जितना शीघ्र हो सके फल पदवी तक पहुंच सकें। एक साधक केवल वह है जो साधारण मनुष्य के मोहभावों को हटा सकता है। शिष्यों, आपको इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि आप क्या कर रहे हैं!

दाफा के प्रति उत्तरदायी होने के लिए, सहायक केंद्र, विभिन्न क्षेत्रों के साधारण सहायक केंद्र, और रिसर्च सोसायटी को किसी भी सहायक या शाखा के प्रभारी को बदलने का अधिकार है। इसलिए कभी-कभार, अधिकारिक पदों पर पदस्थ लोगों को विभिन्न स्थितियों के अनुसार प्रतिस्थापित किया जा सकता है। क्योंकि प्रभारी व्यक्ति, सबसे पहले, एक साधक है जो यहां केवल प्रभारी होने के लिए नहीं बल्की साधना के अभ्यास के लिए आया है, उसे अपने स्थान से ऊपर और नीचे जाना स्वीकार्य होना चाहिए। उत्तरदायित्व के साथ जो पद सौंपा गया है वह साधना अभ्यास के लिए है, फिर भी व्यक्ति उत्तरदायित्व के पद के बिना भी उसी प्रकार साधना अभ्यास कर सकता है। यदि व्यक्ति अपने प्रतिस्थापित होने को स्वीकार नहीं कर पाता है, क्या यह उसके मोहभाव के कारण नहीं है? क्या यह उसके लिए उस मोहभाव से छुटकारा पाने का अच्छा अवसर नहीं है? यह देखते हुए, यदि वह अभी भी इस मोहभाव को नहीं छोड़ सकता है, तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रतिस्थापन करना उचित है। उत्तरदायित्व के पद से मोहभाव होना स्वयं ही साधना के लिए एक अपवित्र उद्देश्य है। तो मैं शिष्यों को याद दिलाना चाहूँगा : इस मोहभाव को छोड़े बिना आप फल पदवी तक नहीं पहुंच सकेंगे।

ली होंगज़ी

जून 12, 1996


   

(41) शास्त्रों की हस्तलिखित प्रतियों का क्या किया जाये

अधिक से अधिक लोग अब दाफा सीख रहे हैं, और हर सप्ताह यह संख्या दोगुनी हो रही है। प्रकाशकों द्वारा पुस्तकों की आपूर्ति अपर्याप्त है, जिस कारण वे मांग पूरी नहीं कर पाते। इसलिए पुस्तकें कुछ क्षेत्रों या ग्रामीण क्षेत्रों में अनुपलब्ध हैं। कुछ शिष्यों ने मुझसे पूछा है कि उनकी दाफा की हस्तलिखित प्रतियों का क्या करें। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि वर्तमान समय में ज़ुआन फालुन या अन्य शास्त्रों की प्रतियां जिन्हें आपने दाफा के अध्ययन के दौरान हस्तलिखित किया है, आपका उनको देना उपयुक्त है जो अभ्यास और फा को प्रचारित करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जाते हैं; जिससे वे किसानों तक पहुँच पाएं और साथ ही उनका आर्थिक बोझ भी कम हो सके। इसलिए, यह आवश्यक है कि शिष्यों की हस्तलिखित प्रतियाँ स्पष्ट लिखी हों जिससे सीमित शिक्षा वाले किसान उन्हें समझ सकें। हस्तलिखित प्रतियों में भी फा की उतनी ही शक्ति है जितनी छपी हुई पुस्तकों में।

ली होंगज़ी

जून 26, 1996


   

(42) फा सम्मेलन

शिष्यों के लिए यह आवश्यक है कि वे एक दूसरे के साथ अपनी साधना के अनुभव और सीख साझा करें। जब तक उनका दिखावे का आशय नहीं है, इसमें कोई समस्या नहीं है कि वे एक दूसरे की एक साथ प्रगति करने में सहायता करें। साधना अनुभवों को साझा करने वाले कुछ सम्मेलन दाफा प्रसारित करने की सहायता के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित किए गए हैं। ये सभी सम्मेलन प्रारूप और विषय दोनों में उत्कृष्ट और अच्छे रहे हैं। किन्तु शिष्यों के व्याख्यानों को सहायता केंद्रों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए जिससे राजनीतिक मुद्दों से बचा जा सके—जिनका साधना अभ्यास के साथ कोई लेना देना नहीं है—या ऐसे मुद्दे जो साधना अभ्यास और समाज में अनुचित प्रवृत्ति निर्धारित करते हैं। साथ ही, हमें ऐसे ही डींग हांकने से दूर रहना चाहिए—जो साधारण लोगों के सैद्धांतिक अध्ययन से प्राप्त होती है। दिखावे के आशय से, किसी को भी आधिकारिक रिपोर्ट की शैली में लेख संकलित कर उन्हें किसी बड़े सार्वजनिक व्याख्यान में प्रस्तुत नहीं करना चाहिए।

सामान्य सहायक केन्द्रों द्वारा आयोजित साधना अभ्यास के अनुभव साझा करने के बड़े सम्मलेन जो प्रांतीय या शहरी स्तर पर किये जाते हैं उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नहीं किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन रिसर्च सोसाइटी द्वारा आयोजित किया जाना चाहिए, और इसे भी बार-बार नहीं किया जाना चाहिए। एक वर्ष में एक बार पर्याप्त होगा (विशेष अवसरों को छोड़कर)। उन्हें एक औपचारिकता या प्रतिस्पर्धा में ना बदलें; बल्कि, इसे एक महत्वपूर्ण फा सम्मलेन बनाएं जिससे वास्तव में साधना में प्रगति हो सके।

ली होंगज़ी

जून 26, 1996


   

(43) शिजिआज़ुआंग दाफा सामान्य सहायक केंद्र के नाम एक पत्र

शिजिआज़ुआंग दाफा सामान्य सहायक केंद्र :

मैंने यह सुना है कि साधना के अनुभवों को साझा करने के आपके सम्मेलन में कुछ बाधाएं आयी हैं। इसके तीन कारण हैं, जिनसे निःश्चित ही आपको सीख प्राप्त होगी। वास्तव में, इस घटना ने बीजिंग और पूरे देश में दाफा गतिविधियों को सीधे प्रभावित किया है, और भविष्य में इसका साधारण दाफा गतिविधियों पर कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मुझे लगता है कि आपको निःश्चित ही इसका एहसास होगा और भविष्य में बेहतर करेंगे।

साथ ही, मैं किसी अभ्यासी द्वारा आयोजित सम्मलेनों के बारे में कुछ और कहना चाहूँगा। जब कुछ विशेष परिस्थितियों में सम्मेलन आयोजित किए गए, जिनमें अलौकिक शक्तियों वाले शिष्यों सम्मिलित थे, ये विज्ञान के दृष्टिकोण से दाफा की वैज्ञानिक प्रकृति की पुष्टि के लिए थे, जिससे वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय या शैक्षिक वर्ग दाफा को समझ सकें। मुद्दा यह नहीं था कि उन व्यक्तियों को शिष्यों के बीच चर्चा करने दिया जाए, क्योंकि ऐसा करने से कुछ भी अच्छा नहीं होता और केवल नए शिष्यों, या ऐसे साधक जिनकी फा की समझ परिपक्व नहीं है, उनके मोहभाव उत्पन्न हो सकते थे। ऐसे साधक जो फा का अच्छी तरह अध्ययन करते हैं, इस तरह के व्याख्यानों को सुनने की आवश्यकता के बिना, दाफा में अपनी दृढ़ साधना जारी रखेंगे।

और महत्वपूर्ण बात यह है कि, मैंने दो साल फा की शिक्षा दी है, और मैंने शिष्यों को साधना अभ्यास के लिए दो साल दिए हैं। शिष्यों के इन दो वर्षों के वास्तविक साधना करने के दौरान, मैंने और किसी गतिविधियों की अनुमति नहीं दी है जिनका शिष्यों के वास्तविक साधना से कोई सम्बन्ध न हो, जो उनके व्यवस्थित, चरण-दर-चरण सुधार की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करें। यदि व्याख्यान वैज्ञानिक और शैक्षिक समुदायों को दाफा की वैज्ञानिक प्रकृति के पुष्टिकरण के लिए नहीं दिए जाते हैं, बल्कि उन साधना करने वाले शिष्यों को दिए जाते हैं जिनके पास सीमित समय है, तो सोचें : क्या शिष्यों के लिए इससे अधिक कोई विघ्न हो सकता है? मैं शिष्यों को मिलता तक नहीं हूँ जिससे वे अशांत न हों। शिष्य मुझे देखने के बाद कम से कम कुछ दिनों तक शांत नहीं हो पाते हैं, और इससे मेरे फा-शरीर द्वारा उनके लिए की गई व्यवस्था में बाधा आती है। मैंने इस समस्या के बारे में रिसर्च सोसाइटी को बताया है, लेकिन हो सकता है यह उस शिष्य के साथ स्पष्ट नहीं किया गया हो। अब जबकि यह मुद्दा समाप्त हो गया है, आप में से किसी को भी यह निर्धारित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए कि इसका उत्तरदायी किसे ठहराना चाहिए। मुझे लगता है कि ऐसा होने का मुख्य कारण यह है कि आपको इसका आभास नहीं हुआ। किन्तु आपको अब से ध्यान देना होगा। आज हम जो कुछ भी करते हैं, वह आने वाले वर्षों में दाफा के प्रसार के लिए नींव रखता है, और साधना अभ्यास का एक परिपूर्ण, उचित, त्रुटि-रहित प्रारूप छोड़ता है। मैं आज यह बात किसी की आलोचना करने के लिए नहीं कह रहा हूं, बल्कि साधना अभ्यास के प्रारूप को सही करने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसे छोड़ने के लिए कर हूँ।

इस पत्र को विभिन्न क्षेत्रों के सहायक केंद्रों में वितरित करें।

ली होंगज़ी

जून 26, 1996


   

(44) आप के चरित्र में सुधार

जैसे-जैसे दाफा की और अधिक गहनता से साधना की जा रही है, अनेक शिष्यों ने क्रमिक रूप से ज्ञानप्राप्ति या क्रमिक ज्ञानप्राप्ति की अवस्था प्राप्त की है। वे अन्य आयामों के वास्तविक, उत्कृष्ट, भव्य दृश्य देख सकते हैं। ज्ञानप्राप्ति की प्रक्रिया का अनुभव करने वाले शिष्य इतने उत्साहित हो जाते हैं कि वे मेरे फा-शरीर को "दूसरा गुरु" कहते हैं, या मेरे फा-शरीर को एक सच्चा और स्वतंत्र गुरु मानते हैं—यह एक अनुचित समझ है। फा-शरीर मेरे सर्वव्यापी विवेक की अभिव्यक्त छवि हैं, किन्तु वह एक स्वतंत्र प्राणी नहीं है। कुछ अन्य शिष्य फालुन को "गुरु फालुन" कहते हैं। यह पूरी तरह, बिल्कुल अनुचित है। फालुन मेरे फा शक्ति की प्रकृति और दाफा के ज्ञान का एक और अभिव्यक्त रूप है—ये बातें इतनी अद्भुत हैं जिनका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। फालुन ब्रह्मांड के सभी पदार्थों के फा की प्रकृति की अभिव्यक्ति है, स्थूलतम स्तर से सूक्ष्मतम स्तर तक, और यह एक स्वतंत्र जीव नहीं है।

जब आप मेरे फा-शरीर और फालुन को आपके लिए उन महान, चमत्कारी और अद्भुत चीजों को करते हुए देखते हैं, आप शिष्यों को याद रखना चाहिए कि मेरे फा-शरीर या फालुन की साधारण मानवीय विचार से परख या प्रशंसा न करें। उस प्रकार की सोच निम्न ज्ञानोदय और निम्न शिनशिंग की एक मिश्रित अभिव्यक्ति है। वास्तव में, सभी अभिव्यक्त स्वरुप फा की विशाल शक्ति की ठोस अभिव्यक्तियाँ हैं जिनका फा का सुधार करने और लोगों को बचाने के लिए मेरे द्वारा उपयोग किया जाता है।

ली होंगज़ी

जुलाई 2, 1996


   

(45) शान (करूणा) की एक संक्षिप्त व्याख्या

शान विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न आयामों में ब्रह्मांड की प्रकृति की अभिव्यक्ति है। यह महान ज्ञान प्राप्त प्राणियों की मूल प्रकृति भी है। इसलिए, एक साधक को शान की साधना करनी चाहिए और ब्रह्मांड की प्रकृति ज़न-शान-रेन के साथ आत्मसात होना चाहिए। इस महान खगोलीय पिंड की उत्पत्ति ब्रह्मांड की प्रकृति, ज़न-शान-रेन से हुई थी। दाफा का सार्वजनिक रूप से सिखाया जाना ब्रह्मांड के प्राणियों की मूल प्रकृति को फिर से प्रदर्शित करता है। दाफा परिपूर्ण सामंजस्य में है : यदि "ज़न-शान-रेन" के तीन अक्षरों को अलग किया जाए, तब भी प्रत्येक में ज़न-शान-रेन पूरी तरह समाहित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पदार्थ सूक्ष्म पदार्थ से बना है, जो स्वयं और भी सूक्ष्म पदार्थ से बना है—यह अंत तक चलता रहता है। इसलिए, ज़न में ज़न-शान-रेन निहित है, शान में ज़न-शान-रेन निहित है, और रेन में भी ज़न-शान-रेन निहित है। तो क्या ताओ विचारधारा की ज़न की साधना, ज़न-शेन-रेन की साधना नहीं है? क्या बुद्ध विचारधारा की शान की साधना, ज़न-शान-रेन की साधना नहीं है? वास्तव में, वे केवल अपने सतही रूपों में भिन्न हैं।

केवल शान की बात करें तो, जब यह मानव समाज में अभिव्यक्त होता है तो कुछ साधारण लोग जो साधारण लोगों के समाज से जुड़े हुए हैं, यह सामान्य मानवीय सामाजिक प्रश्न कर सकते हैं : "यदि हर कोई दाफा सीखता है और शान का पालन करता है, तो हम अपने विरुद्ध विदेशी आक्रमण या युद्धों से कैसे निपटेंगे?" वास्तव में, मैंने ज़ुआन फालुन में पहले ही कहा है कि मानव समाज का विकास वैश्विक वातावरण के विकासक्रम के अनुसार चलता है। क्या मानव जाति के युद्ध आकस्मिक हैं? कोई क्षेत्र जिसमें बहुत सा कर्म है या कोई क्षेत्र है जहां लोगों के मन बुरे हो चुके हैं, वह निःश्चित ही अस्थिर होगा। यदि किसी राष्ट्र को वास्तव में सद्गुणी होना है, तो इसका कर्म बहुत कम होना चाहिए; तब निःश्चित ही इसके विरुद्ध कोई युद्ध नहीं होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि दाफा के सिद्धांत इसका निषेध करते हैं, क्योंकि ब्रह्मांड की प्रकृति ही सब कुछ संचालित करती है। इसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है कि किसी सद्गुणी राष्ट्र पर आक्रमण होगा। ब्रह्मांड की प्रकृति—दाफा—सर्व व्यापी है और पूरे खगोलीय पिंड में अति विशाल स्तर से अति सूक्ष्म स्तर तक समाहित है। आज मैं जो दाफा सिखाता हूं उससे न केवल पूर्व के लोगों को, बल्कि पश्चिमी लोगों को भी साथ ही सिखाया जा रहा है। उनमें जो दयालु लोग हैं उनको भी बचाया जाना आवश्यक है। सभी राष्ट्रीयताएं जो अगले, नए ऐतिहासिक युग में प्रवेश करनी चाहिए को फा प्राप्त होगा और उनका सभी के साथ सुधार होगा। यह केवल एक राष्ट्रीयता की बात नहीं है। मानव जाति का नैतिक स्तर भी मूल मानव प्रकृति के स्तर पर दोबारा लौट आएगा।

ली होंगज़ी

जुलाई 20, 1996


   

(46) "आप के चरित्र में सुधार" का अनुशेष

मेरे यह कहने के प्रश्चात कि "फा शरीर और फालुन स्वतंत्र जीव नहीं हैं," कुछ शिष्यों ने पूछा कि क्या यह इस बात से विपरीत नहीं है जो ज़ुआन फालुन में कहा गया है : "फा शरीर की चेतना और विचार गुरु के स्वरुप द्वारा नियंत्रित होते हैं। फिर भी फा शरीर स्वयं में पूर्ण, स्वतंत्र और वास्तविक पृथक जीव हैं।" मुझे लगता है कि यह फा की निम्न समझ के कारण है। फा शरीरों को पूरी तरह से स्वतंत्र जीव के जैसी अवधारणा के रूप में नहीं समझा जा सकता, क्योंकि फा शरीर व्यक्ति विशेष की छवि और विचारों के अधीन शक्ति और ज्ञान की इच्छित अभिव्यक्ति है; वे व्यक्ति विशेष की इच्छा के अनुसार, स्वयं कुछ भी पूर्ण करने में सक्षम होते हैं। लेकिन शिष्यों ने केवल दूसरे वाक्य पर ध्यान दिया और पहले वाक्य को अनदेखा कर दिया: "फा शरीर की चेतना और विचार व्यक्ति विशेष द्वारा नियंत्रित होते हैं।" इस प्रकार फा शरीर में न केवल व्यक्ति विशेष की स्वतंत्र और पूर्ण छवि होती है, बल्कि उनका स्वरुप भी होता है। वे स्वयं भी प्रत्येक वस्तु को पूर्ण कर सकते हैं जो व्यक्ति विशेष चाहते हैं, लेकिन एक साधारण जीव को कोई नियंत्रित नहीं करता। जब लोग फा शरीरों को देखते हैं तो वे उन्हें पूर्ण, स्वतंत्र, वास्तविक विशिष्ट जीव समझते हैं। सरल शब्दों में, मेरे फा शरीर मैं ही हूँ।

ली होंगज़ी

जुलाई 21, 1996


   

(47) बुद्ध-प्रकृति और आसुरिक-प्रकृति

ब्रह्मांड के बहुत उच्च और बहुत सूक्ष्म आयाम में दो भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थ विद्यमान हैं। ब्रह्मांड में कुछ आयामों के स्तरों पर ब्रह्मांड की सर्वोच्च प्रकृति, जन-शान-रेन द्वारा अभिव्यक्त होने वाले भौतिक अस्तित्व के दो रूप हैं। वे कुछ आयामों में ऊपर से नीचे तक, या सूक्ष्मतम स्तर से स्थूलतम स्तर तक व्याप्त होते हैं। विभिन्न स्तरों पर फा की अभिव्यक्तियों के साथ, स्तर जितना निम्न होगा, उतना ही इन दो भिन्न-भिन्न पदार्थों की अभिव्यक्तियों और प्रकारों में अंतर होगा। परिणामस्वरूप, यह वह दर्शाता है जिसे ताओ विचारधारा में यिन और यांग और ताइजी के सिद्धांत कहते हैं। और निम्न स्तरों पर, विभिन्न गुणों के साथ ये दो प्रकार के पदार्थ एक दूसरे से और अधिक विपरीत होने लगते हैं, और ये आपसी-सृजन और आपसी-विरोध के सिद्धांत उत्पन्न करते हैं।

आपसी-सृजन और आपसी-विरोध के माध्यम से दयालुता और दुष्टता, उचित और अनुचित, और अच्छा और बुरा प्रकट होता है। तब, जीवित प्राणियों की बात करें तो, यदि बुद्ध हैं, तो असुर भी हैं; यदि मनुष्य हैं, तो भूत-प्रेत भी हैं—यह साधारण लोगों के समाज में और अधिक स्पष्ट और जटिल है। जहां अच्छे लोग हैं, बुरे भी हैं; जहां निःस्वार्थी लोग हैं, स्वार्थी भी हैं; जहां खुले विचारों वाले लोग हैं, वहां संकीर्ण-सोच वाले भी हैं। साधना की बात करें तो, जहां ऐसे लोग हैं जो इस पर विश्वास करते हैं, तो ऐसे लोग भी हैं जो नहीं करते हैं; जहां ऐसे लोग हैं जो ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, तो ऐसे लोग भी हैं जो नहीं कर सकते; जहां इसके समर्थन में लोग हैं, तो इसके विरोध में भी लोग हैं—यह मानव समाज है। यदि सभी साधना अभ्यास कर पाए, इसकी ओर बढ़े, और इसमें विश्वास करें, तो मानव समाज देवताओं के समाज में परिवर्तित हो जाएगा। मानव समाज केवल मनुष्यों का समाज है, और इसके अस्तित्व को समाप्त करने की अनुमति नहीं है। मानव समाज हमेशा के लिए अस्तित्व में रहेगा। इसलिए, यह स्वाभाविक है कि ऐसे लोग हैं जो इसका विरोध करते हैं। यदि कोई भी इसका विरोध नहीं करता तो यह असामान्य होगा। भूतों के बिना, मनुष्य, मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म कैसे ले सकते हैं? राक्षसों के अस्तित्व के बिना, कोई बुद्धत्व की साधना करने में सक्षम नहीं हो सकता। कड़वाहट के बिना, मिठास नहीं हो सकती।

जब लोग कुछ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, तो उन्हें आपसी-सृजन और आपसी-विरोध के इसी सिद्धांत के अस्तित्त्व के कारण कठिनाई का सामना करना पड़ता है। केवल तभी जब आप कड़वे प्रयास के माध्यम से और कठिनाइयों का सामना करते हुए जो चाहते हैं उसे प्राप्त करते हैं, जब आप पाएंगे कि यह सरलता से नहीं मिला है, जो आपने प्राप्त किया है उसको संजोएंगे, और प्रसन्न होंगे। अन्यथा, यदि आपसी-सृजन और आपसी-विरोध का कोई सिद्धांत नहीं होता और आप प्रयास किए बिना कुछ भी प्राप्त कर सकते, तो आप जीवन से ऊब जाएंगे और प्रसन्नता की भावना और सफलता की खुशी अनुभव नहीं कर पाएँगे।

ब्रह्मांड में किसी भी प्रकार का पदार्थ या जीवन सूक्ष्म कणों से बना होता है जो बड़े कण बनाते हैं, और फिर यह सतह के पदार्थ का निर्माण करते हैं। विपरीत गुणों के इन दो प्रकार के पदार्थों के भीतर, सभी पदार्थों और जीवों में दोहरे गुण होते हैं। उदाहरण के लिए, लोहा और स्टील कठोर होते हैं, लेकिन मिट्टी में दबाने पर उनका ऑक्सीकरण होता है और उनमें जंग लग जाती है। दूसरी ओर, मिट्टी और चीनी मिट्टी के बर्तन, मिट्टी में दबाने पर उनका ऑक्सीकरण नहीं होता है, लेकिन वे भुरभुरे और सरलता से टूट जाते हैं। यही मनुष्यों पर भी लागू होता है, जिनमें बुद्ध-प्रकृति और आसुरिक-प्रकृति एक साथ दोनो पाए जाते हैं। नैतिक दायित्वों और सीमाओं के बिना जब कोई कुछ करता है वह आसुरिक-प्रकृति का होता है। बुद्धत्व की साधना करना आपकी आसुरिक-प्रकृति को समाप्त करना है और आपकी बुद्ध-प्रकृति को शक्तिशाली करना और बढ़ाना है।

आपकी बुद्ध-प्रकृति शान है, जो कुछ करने से पहले दूसरों के बारे में सोचना, और पीड़ा सहने की क्षमता, और यह करुणा के रूप में स्वयं को अभिव्यक्त करती है। आपकी आसुरिक-प्रकृति क्रूरतापूर्ण है, और यह हत्या करना, चोरी और लूटना, स्वार्थता, दुष्ट विचार, विवाद पैदा करने के रुप में अभिव्यक्त होती है और अफवाहें फैलाकर, ईर्ष्या, दुष्टता, क्रोध, आलस्य, अनाचार इत्यादि के माध्यम से समस्याएं उत्पन्न करती है।

ब्रह्मांड की प्रकृति, जन-शान-रेन, विभिन्न स्तरों पर विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होती है। ब्रह्मांड के कुछ स्तरों के भीतर यह दो भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थ विभिन्न स्तरों पर विभिन्न रूपों में भी अभिव्यक्त होते हैं। स्तर जितना निम्न होगा, आपसी-विरोध उतना ही अधिक स्पष्ट होगा, और इस प्रकार अच्छे और बुरे के बीच की भिन्नता भी। सद्गुणी अधिक सद्गुणी बन जाते हैं, जबकि बुरे अधिक बुरे बन जाते हैं। एक ही भौतिक शरीर में दोहरा स्वभाव भी अधिक जटिल और परिवर्तनशील हो जाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसा बुद्ध ने कहा था, "प्रत्येक वस्तु में बुद्ध-प्रकृति होती है।" वास्तव में, प्रत्येक वस्तु में आसुरिक-प्रकृति भी होती है।

जो भी हो, ब्रह्मांड की विशेषता जन-शान-रेन है, और इसी प्रकार साधारण मानव समाज की भी। इन दो प्रकार के पदार्थ जिनकी मैंने चर्चा की है कुछ और नहीं बल्कि दो प्रकार के पदार्थ हैं जिनका अस्तित्त्व उपर से लेकर नीचे तक है, सूक्ष्मतम स्तर से स्थूलतम स्तर तक, मानव समाज तक, और जीवित प्राणियों और पदार्थों में प्रतिबिंबित होते हैं और उनमें दोहरे स्वभाव के कारण बन सकते हैं। लेकिन जीवन और पदार्थ ऊपर से नीचे तक, मानव समाज तक, सूक्ष्मतम स्तर से स्थूलतम स्तर तक अनगिनत विविध पदार्थों से बना है।

यदि मनुष्य जाति मानव नैतिक मानकों का पालन नहीं करती है, तो समाज प्राकृतिक आपदाओं और मानव-निर्मित आपदाओं के साथ अनियंत्रित अराजकता अनुभव करेगा। यदि एक साधक साधना के माध्यम से अपने आसुरिक-स्वभाव से छुटकारा नहीं पाता है, तो उसका गोंग बुरी तरह से गड़बड़ा जाएगा और वह कुछ प्राप्त नहीं कर पाएगा या आसुरिक मार्ग पर चल पड़ेगा।

ली होंगज़ी

अगस्त 26, 1996


   

(48) बड़ा रहस्योद्घाटन

बड़ी संख्या में शिष्यों ने अब फलपदवी प्राप्त कर ली है या प्राप्त करने वाले हैं। एक मनुष्य के लिए फलपदवी प्राप्त करना कितना पवित्र है! इस पृथ्वी पर इससे अधिक अद्भुत, श्रेष्ठ, या भव्य और कुछ नहीं हो सकता है। यही कारण है कि, साधना अभ्यास के दौरान प्रत्येक अभ्यासी पर कठोर नियम लागू होने चाहिए। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक उच्च स्तर पर दृढ़तापूर्वक उनके मानकों का पालन करके पहुंचा जा सकता है। समग्र स्थिति को देखा जाए तो, दाफा की साधना में शिष्य योग्य हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो विभिन्न मोहभावों के साथ डगमगा रहे हैं जिन्हें उन्होंने अभी तक नहीं छोड़ा है। सतही रूप से, वे भी यह कहते हैं कि दाफा अच्छा है, लेकिन वास्तव में वे साधना अभ्यास नहीं करते। विशेष रूप से ऐसा तब होता है जब सामान्यतः सब कोई कहता है कि दाफा अच्छा है, क्योंकि सभी—समाज के उच्च वर्गों से लेकर साधारण लोगों तक—इसकी स्तुति करते हैं। कुछ सरकारें भी इसके बारे में अच्छी बातें कहती हैं जो जनता द्वारा दोहराई जाती हैं। फिर, निष्ठावान कौन है? कौन केवल दूसरों की बातों को प्रतिध्वनित कर रहे हैं? कौन इसकी प्रशंसा के गीत गाते हैं जबकि वास्तव में इसकी अवमानना करते हैं? यदि हम मानव समाज की स्थिति बदल देते हैं और सामान्य वातावरण को उलट देते हैं, तब देखते हैं कि कौन फिर भी कहता है कि दाफा अच्छा है और कौन अपना मन बदल लेता है। इस प्रकार, क्या सबकुछ अचानक पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं हो जाएगा?

क्वांगमिंग डेली की घटना से अब तक, प्रत्येक दाफा शिष्य ने अपनी भूमिका निभाई है : कुछ दृढ़तापूर्वक साधना करने के लिए डटे रहे; कुछ ने दाफा की प्रतिष्ठा के लिए अधिकारियों को बिना किसी संकोच के लिखा; कुछ ने दायित्वहीन रिपोर्ट द्वारा किए गए अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने कठिन परिस्थितियों के बीच अपनी आत्म साधना नहीं की है, लेकिन विभाजनकारी गतिविधियों में लगे हुए हैं, जिससे वर्तमान स्थिति और जटिल हो गई है। अपनी प्रतिष्ठा और स्वार्थ को क्षति पहुंचने के डर से, कुछ लोगों ने साधना करना तक छोड़ दिया। कुछ और लोगों ने भी दाफा की स्थिरता की चिंता किये बिना अफवाहों को प्रसारित किया, जिससे फा को क्षीण करने के कारक और भी बिगड़ गए। विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण संपर्क व्यक्ति भी थे जिन्होंने सामाजिक प्रवृत्तियों को देखने की नकारात्मक आदत के साथ दाफा की स्थिति का विश्लेषण किया, वह आदत जो वर्षों के राजनीतिक संघर्ष से बनती है। विभिन्न क्षेत्रों में उभरी भिन्न-भिन्न समस्याओं को जोड़कर, उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि कुछ प्रकार के सामाजिक झुकाव सामने आ रहे हैं और इसलिए उन्होंने जानबूझकर शिष्यों को यह बताया। यद्यपि इसके और कई कारण थे लेकिन क्या फा को कुछ और इससे अधिक गंभीर क्षति पहुंचा सकता था? इससे भी बुरा, कुछ लोगों ने अपने आसुरिक-स्वभाव के साथ अफवाहें पैदा करके समस्याएं उत्पन्न की, जैसे की स्थिति पहले से ही बहुत बुरी नहीं थी।

दाफा ब्रह्मांड का है और यह नीचे मानव समाज तक पहुंचता है। जब इतनी विशालता का फा सिखाया जाता है, तो कुछ भी व्यवस्था के बाहर कैसे हो सकता है? क्या जो कुछ हुआ वह दाफा अभ्यासियों के शिनशिंग की परीक्षा नहीं है? साधना क्या है? जब आप कहते हैं कि यह अच्छा है, मैं कहता हूं कि यह अच्छा है, और सभी कहते हैं कि यह अच्छा है, तो आप किसी व्यक्ति के मन को कैसे परख सकते हैं? केवल निर्णायक पल में ही हम उसके मन को परख सकते हैं। यदि वह कुछ मोहभावों को नहीं छोड़ता तो वह बुद्ध को धोखा देने का साहस भी कर सकता है—क्या यह कोई छोटी समस्या है? कुछ लोग भयभीत हो गए थे। लेकिन आप किससे डर गए थे? मेरे अभ्यासियों! क्या आपने मुझे यह कहते हुए नहीं सुना कि कोई व्यक्ति अरहत की साधना में सफल होने वाला था, वह गिर गया क्योंकि उसके मन में डर उत्पन्न हो गया था? प्रत्येक मानव मोहभाव को हटा देना चाहिए, चाहे वह जो भी हो। कुछ अभ्यासियों ने कहा: "डर किस बात का है? यदि मेरा सिर भी काट दिया जाए तब भी मेरा शरीर वहीं बैठा रहेगा।" यदि आप उनकी तुलना करते हैं तो यह एक ही दृष्टि में स्पष्ट हो जाता है कि वे कितनी अच्छी तरह साधना करते हैं। हालांकि, कुछ प्रमुख संपर्क व्यक्ति दाफा की सुरक्षा के लिए चिंतित हैं, और यह एक और ही बात है।

हम केवल यह चाहते हैं कि उन अभ्यासियों को उनकी स्वयं की कमियां दिखाएँ जो परिश्रमपूर्वक साधना का अभ्यास नहीं कर रहे हैं, जो ऊपरी तौर पर अभ्यास कर रहे हैं, उन लोगों को सामने लाएं जो छद्म रूप से फा की अवमानना करते हैं, और उन लोगों को फलपदवी प्राप्त करने के योग्य बनाएं जो सच्चे अभ्यासी हैं।

ली होंगज़ी

अगस्त 28, 1996


   

(49) साधना अभ्यास राजनीतिक नहीं है

कुछ शिष्य समाज और राजनीति से असंतुष्ट हैं; वे इस प्रबल मोहभाव के साथ हमारे दाफा को सीखते हैं जिसका वे त्याग नहीं करते हैं। वे राजनीति में सम्मिलित होने के लिए हमारे दाफा का लाभ उठाने का प्रयास भी करते हैं—बुद्ध और फा को अपवित्र करने वाली दूषित मानसिकता से उत्पन्न होने वाला एक कार्य। यदि वे उस मानसिकता को नहीं त्याग देते तो वे निःश्चित रूप से फलपदवी तक नहीं पहुंचेंगे।

मेरे व्याख्यानों में मैंने बार-बार जोर देकर कहा है कि मानव समाज का रूप—चाहे कोई भी सामाजिक या राजनीतिक व्यवस्था हो—पूर्व निर्धारित और स्वर्ग द्वारा निर्धारित होता है। एक साधक को मानव संसार के कार्यों में ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है, और राजनीतिक संघर्षों में सम्मिलित होने की तो बात ही नहीं है। क्या जिस प्रकार समाज हमारे साथ व्यवहार करता है साधकों के मन की परीक्षा नहीं है? हमें राजनीति में सम्मिलित नहीं होना चाहिए।

ऐसा ही हमारे दाफा की साधना अभ्यास का रूप है। हम देश या विदेश में किसी भी राजनीतिक शक्तियों पर निर्भर नहीं होंगे। वे प्रभाव वाले लोग साधक नहीं है, इसलिए वे निःश्चित रूप से हमारे दाफा में कोई भी उत्तरदायित्व का पद नहीं संभाल सकते—चाहे वह नाममात्र का हो या वास्तविकता में हो।

मेरे अभ्यासियों, आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि हम सच्चा साधना अभ्यास कर रहे हैं! हमें प्रतिष्ठा, लाभ और भावना जैसी उन साधारण मानवीय चिंताओं को त्याग देना चाहिए। क्या सामाजिक प्रणाली की परिस्थितियों से आपके साधना अभ्यास का कुछ लेना-देना है? आप अपने सभी मोहभावों को त्यागने के बाद ही फलपदवी तक पहुंच सकते हैं और उनमें से कुछ भी नहीं बचने चाहिए। अपना काम अच्छी तरह से करने के अतिरिक्त, एक साधक को किसी भी प्रकार की राजनीति या राजनैतिक शक्ति में रूची नहीं होनी चाहिए; यदि ऐसा नहीं है, तो वह निःश्चित रुप से मेरा शिष्य नहीं है।

हम साधकों को फा प्राप्त करने और सच्ची फलपदवी प्राप्त करने में सक्षम कर सकते हैं, जैसे कि हम लोगों को समाज में करुणामयी होने की शिक्षा देने में सक्षम हैं—यह मानव समाज की स्थिरता के लिए अच्छा है। लेकिन दाफा को मानव समाज के लिए नहीं, बल्कि आपको फलपदवी तक पहुंचने के लिए सिखाया जाता है।

ली होंगज़ी

सितंबर 3, 1996


   

(50) साहायक भी एक साधक ही है

विभिन्न क्षेत्रों में हमारे सहायता केन्द्रों के प्रभारी व्यक्ति वे हैं जो शिकायत किये बिना दाफा के लिए कड़ा परिश्रम कर सकते हैं। लेकिन ऐसा लगता है इनमें से कई एक दूसरे के साथ मिल-जुल कर कार्य नहीं कर सकते, और इसलिए अपने कार्यों में सहयोग करने में असफल रहते हैं। इससे लोगों के मन में दाफा की छवि बुरी तरह से धूमिल हो गई है। कुछ ने मुझसे पूछा, "क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि वे लोग कार्य करने में असमर्थ हैं?" मैं कहता हूं कि एक साधारण मनुष्य ऐसा सोच सकता है। महत्वपूर्ण कारण यह है कि आप, सहायता केन्द्रों के प्रभारी और सहायक प्रभारी के रूप में, साधक हैं और आपके भी मोहभाव होते हैं जिन्हें आप त्याग नहीं पाए हैं, और उनसे छुटकारा पाने के लिए आपको एक वातावरण की आवश्यकता है। लेकिन जब उन सहायकों के बीच तनाव उत्पन्न होता है, तो आप साधारणतः अपने अन्दर झाँकने और स्वयं को सुधारने के लिए इस अच्छे अवसर का उपयोग करने के स्थान पर "कार्य में सहयोग नहीं करने" या "दाफा के लिए कार्य करने" के बहाने इसे किनारे कर देते हैं। क्योंकि आपने मोहभावों को नहीं छोड़ा या स्वयं को नहीं सुधारा, समस्या अगली बार फिर से उत्पन्न होगी। यह निःश्चित रूप से आपके दाफा के कार्य में हस्तक्षेप करेगा। क्या आप नहीं जानते कि सहायकों के बीच यह तनाव मेरे द्वारा आप में सुधार लाने के लिए व्यवस्थित किये गए हैं? फिर भी आप अपने दाफा के कार्य का उपयोग उन मोहभावों को छिपाने के लिए करते हैं जिन्हें आपको सुधारना चाहिए था, लेकिन आपने सुधार नहीं किया। जब समस्याएँ हल करने के लिए अत्यधिक गंभीर हो जाती हैं तब आप मन ही मन मुझ से दुःख व्यक्त करते हैं। क्या आप जानते हैं कि उस समय मैं इसके बारे में कैसा अनुभव करता हूं? ऐसा नहीं है कि आप एक केंद्र के प्रभारी हैं और दाफा के लिए कार्य करते हैं, तो आप अपने शिनशिंग में सुधार लाए बिना ही फलपदवी तक पहुंच सकते हैं। यहां तक कि एक शिष्य भी समझ सकता है की किसी भी मतभेद में वह अपने शिनशिंग में सुधार कर सकता है—तब केंद्र का सहायक क्यों नहीं? आपके सुधरने के लिए, समस्याओं के आने पर आपके मन को उत्तेजित करना पड़ता है; अन्यथा कुछ नहीं होगा। दाफा के लिए कार्य करना आपके लिए अपने शिनशिंग में सुधार करने का एक अच्छा अवसर भी है!

मैं विशेष रूप से आपके लिए यह लेख क्यों लिख रहा हूँ? क्योंकि आपका प्रत्येक कार्य और प्रत्येक कथन सीधे शिष्यों को प्रभावित करता है। यदि आप अपना साधना अभ्यास अच्छी तरह से कर रहे हैं, तो आप अपने स्थानीय क्षेत्र में फा के प्रसार में अच्छा प्रदर्शन करेंगे और शिष्य अच्छी तरह से साधना कर पायेंगे। यदि ऐसा नहीं है, तो आप फा को क्षति पहुंचाएंगे। क्योंकि आप साधारण लोगों के स्तर पर दाफा के उत्कृष्ट हो, मैं आपको ऐसे ही काम नहीं करने दे सकता यदि आप फल पदवी तक नहीं पहुंचते।

ली होंगज़ी

सितंबर 3, 1996


   

(51) साधना अभ्यास क्या है?

जब साधना अभ्यास की बात आती है, बहुत से लोग यह मानते हैं कि साधना अभ्यास केवल कुछ व्यायाम करना, ध्यान में बैठना और कुछ मंत्रों को सीखने के बारे में है जो उन्हें देवताओं या बुद्ध में परिवर्तित कर देंगे, या उन्हें ताओ प्राप्त करने में सक्षम करेंगे। वास्तव में, वह साधना अभ्यास नहीं है बल्कि केवल सांसारिक युक्तियों के लिए अभ्यास करना है।

धर्म में, साधना अभ्यास पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, और इसे "आचरण की साधना" कहा जाता है। फिर यह एक दूसरे चरम तक पहुँच जाता है। एक भिक्षु या भिक्षुणी शास्त्रों का जप करने के लिए कड़ा परिश्रम करते हैं, और वे किसी व्यक्ति के शास्त्रों के ज्ञान को फल पदवी तक पहुचने का माध्यम समझते हैं। वास्तव में, जब बुद्ध शाक्यमुनि, ईसा, और लाओ ज़ इस संसार में थे, तब कोई शास्त्र नहीं थे—केवल सच्ची साधना थी। जो आदरणीय गुरुओं ने सिखाया वह साधना अभ्यास का मार्गदर्शन करने के लिए था। बाद में, शिष्यों ने उनके शब्द स्मरण किये, उनकी पुस्तकें बनायी, और उन्हें शास्त्रों का नाम दे दिया। धीरे-धीरे वे बौद्ध शास्त्र या धर्म के सिद्धांतों का अध्ययन करने लगे। उन आदरणीय गुरुओं के समय में जो चल रहा था उसके विपरीत—जब लोग सच्चा साधना अभ्यास करते थे और उनकी शिक्षाओं को अपनी साधना का मार्गदर्शन में उपयोग करते थे—इसके स्थान पर इन लोगों ने धार्मिक शास्त्रों का अध्ययन और विद्वत्ता को ही साधना अभ्यास समझ लिया है।

यह इतिहास की एक सीख है। फालुन दाफा में साधना अभ्यास करने वाले शिष्यों को यह याद रखना चाहिए कि सच्चे साधना अभ्यास के स्थान पर, आप फा को निःश्चित तौर पर केवल एक साधारण मानवीय शैक्षिक अध्ययन के रूप में या कुछ जो केवल भिक्षुओं के सीखने के लिए है ऐसा नहीं समझना चाहिए। मैं आपको ज़ुआन फालुन का अध्ययन, पढ़ने और याद करने के लिए क्यों कहता हूँ? आपकी साधना के मार्गदर्शन के लिए! और वे जो केवल व्यायाम करते हैं लेकिन फा का अध्ययन नहीं करते हैं, वे कदापि दाफा के शिष्य नहीं हैं। केवल तभी जब आप फा का अध्ययन करेंगे और सच्चे हृदय और मन से साधना करेंगे और उसके अतिरिक्त फल पदवी तक पहुँचने के माध्यम—व्यायाम, और शिनशिंग के सुधार के साथ-साथ मूल रूप से अपने आप में सच्चा बदलाव लाएंगे और अपना स्तर ऊँचा उठाएंगे—तभी इसे सच्चा साधना अभ्यास कहा जा सकता है।

ली होंगज़ी

सितंबर 6, 1996


   

(52) दाफा सदैव हीरे की तरह पवित्र रहेगा

धर्म को राजनीति के साथ मिश्रित नहीं किया जा सकता है, अन्यथा इसके प्रभारी अनिवार्य रूप से सांसारिक कार्यों में व्यस्त हो जाएँगे। दिखावटी तौर पर लोगों के मन को अच्छा बनने की शिक्षा देना और लोगों को पवित्र भूमि पर लौटने का नेतृत्व करना, ऐसे लोगों का मन निःश्चित ही दुष्ट और पाखंडी हो जाएगा; निःश्चित रूप से वे केवल प्रसिद्धि और स्वार्थ के पीछे भागते है। सांसारिक व्यक्ति को सत्ता की लालसा होती है, जबकि प्रसिद्धि फल पदवी तक पहुँचने में बहुत बड़ी बाधा होती है। ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे एक दुष्ट धर्म का प्रभारी बन जाएगा। क्योंकि धर्म का ध्येय लोगों को अच्छा बनने की शिक्षा देना है जिससे वे अंततः अपने दिव्यलोक में लौट पाएं, उसके प्रचार किये गए सिद्धान्त मावन समाज की तुलना में उच्च होने चाहिए। यदि उन्हें मानव संसार की राजनीति में लागू करें, तो यह दिव्य सिद्धान्तों का सब से गंभीर भ्रष्टाचार होगा। देवता और बुद्ध मानव मोहभावों द्वारा संचालित होकर भ्रष्ट राजनैतिक मुद्दों और सत्ता संघर्षों में कैसे सम्मिलित हो सकते हैं? मनुष्य अपने आसुरिक प्रकृति द्वारा संचालित होकर यही करता है। इसी प्रकार के धर्म को सरकारों द्वारा हिंसा करने और धार्मिक युद्ध प्रारंभ करने के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे वे एक दुष्ट धर्म बन जाते हैं जो मनुष्य जाती को हानि पहुंचाते हैं।

यह भी सम्भव नहीं है की "सभी लोग धर्म का पालन करें।" पहला, यह सरलता से धार्मिक सिद्धांतों को बदल सकता है और उन्हें साधारण मानव समाज के सिद्धान्तों के स्तर तक निम्न कर सकता है। दूसरा, धर्म को सरलता से एक राजनीतिक शस्त्र में परिवर्तित किया जा सकता है जो बुद्ध फा की छवि को धूमिल कर सकता है। तीसरा, धार्मिक प्रभारी राजनीतिज्ञ बन जायेंगे, और इससे धर्मं का अंत हो जायेगा, और यह एक दुष्ट धर्मं में परिवर्तित हो जायेगा।

फालुन दाफा कोई धर्म नहीं है, पर भविष्य की पीढियां इसे ऐसा ही मानेंगी। इसकी शिक्षा मनुष्य को कोई धर्म स्थापित करने के स्थान पर, साधना अभ्यास के उद्देश्य से दी जाती है। बड़ी संख्या में दाफा सीखने वाले लोग हो सकते हैं, परन्तु राष्ट्र की सारी जनता को धार्मिक अनुयायीओं में परिवर्तित करने और उन सभी को साधना अभ्यास की संयुक्त गतिविधियों में भाग लेने को बाध्य करने की अनुमति नहीं है। दाफा साधना अभ्यास हमेशा स्वैच्छिक होता है। कभी भी किसी को साधना अभ्यास में सम्मिलित होने के लिए बाध्य न करें।

भविष्य में किसी भी समय दाफा को राजनीतिक मामलों के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता है। दाफा लोगों के मन को अच्छा बना सकता है, इस प्रकार समाज को स्थिर बना सकता है। परन्तु यह कदापि मानव समाज की बातों को बनाये रखने के उद्देश्य से नहीं सिखाया जा सकता। शिष्यों, ध्यान रखें कि भविष्य में राजनीतिक बलों और अन्य शक्तियों से कितना भी दबाव हो, दाफा कदापि राजनीतिक शक्तियों द्वारा उपयोग नहीं किया जा सकता।

कभी राजनीति में सम्मिलित नहीं होना, न ही राज्य के मामलों में हस्तक्षेप करना। सच्ची साधना करो और सहनशील बनो। दाफा को हीरे की तरह पवित्र, अपरिवर्तित और अविनाशी बनाये रखें, और इस प्रकार यह सदा अस्तित्व में रहेगा।

ली होंगज़ी

सितंबर 7, 1996


   

(53) और आगे की समझ

मैं बुद्ध-प्रकृति और आसुरिक-प्रकृति के विषय को और अधिक स्पष्ट रूप से आप को समझा नहीं सकता था। जिस परीक्षा में आपको सफल होना है वास्तव में उसका आशय आपकी आसुरिक-प्रकृति को हटाना है। फिर भी, समय-समय पर आपने इसे छिपाने के लिए विभिन्न बहाने या फिर दाफा का ही उपयोग किया है, और बार-बार अवसर मिलने पर भी अपने नैतिक गुण में सुधार करने में विफल रहे हैं।

क्या आप को एहसास है कि जब तक आप एक साधक हैं, किसी भी परिवेश या परिस्थिति में, मैं कोई भी समस्याओं या अप्रिय वस्तुओं का उपयोग करुंगा जिनसे आपका सामना होगा—चाहे वे दाफा के ही कार्य क्यों न हों, या उन्हें आप चाहे कितना भी अच्छा और पवित्र समझें—आपके मोहभावों को हटाने और आपके आसुरिक-प्रकृति को उजागर करुंगा जिससे उसे हटाया जा सके, आपके सुधार के लिए यह अति आवश्यक है।

इस प्रकार यदि आप अपने आप में सुधार लाने में सफल होते हैं, तब आप सच्चे मन के साथ जो भी करेंगे, वह सबसे अच्छा और सबसे पवित्र होगा।

ली होंगज़ी

सितंबर 9, 1996


   

(54) सजगता परामर्श

चार वर्षों से मैं दाफा की शिक्षा प्रदान कर रहा हूं। कुछ शिष्यों के नैतिक गुण और आयाम के स्तर में धीरे-धीरे सुधार हुआ है; वे मेरे और दाफा के विषय में स्वयं की समझ की धारणात्मक अवस्था पर रुके हुए हैं, सदैव अपने शरीर में परिवर्तन और अलौकिक क्षमताओं की अभिव्यक्ति के लिए मेरे प्रति आभारी हैं—जो एक साधारण मनुष्य की मानसिकता है। यदि आप स्वयं की मानवीय स्थिति को बदलना, और तर्कसंगत रूप से दाफा की सच्ची समझ की ओर बढ़ना नहीं चाहते हैं, तो आप यह अवसर गवां देंगे। यदि आप इस मानव सोच को नहीं बदलते हैं, एक साधारण मनुष्य होते हुए, जो हज़ारों वर्षों में आपकी जड़ों की गहराई में घर कर गयी है, तो आप इस सतही मानवीय कवच को तोड़ने और फलपदवी प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। आप स्वयं के बुरे कर्म को हटाने के लिए सदैव मुझ पर आश्रित नहीं रह सकते जबकि आप वास्तव में फा को समझने में सच्ची प्रगति करने और मानवीय सोच और धारणाओं से ऊपर उठने में विफल रहते हैं। आपकी सोच, आपकी समझ, और आपका मेरे और दाफा के प्रति मान एक साधारण मानवीय सोच की उपज है। लेकिन जो मैं आपको सिखा रहा हूँ वह वास्तव में साधारण मानवों से परे एक तर्कसंगत, दाफा की सच्ची समझ है।

साधना अभ्यास करने में, आप अपने बल पर वास्तविक, ठोस प्रगति नहीं कर रहे हैं, जो आंतरिक तौर पर महान, मूल परिवर्तनों को प्रभावित कर सकता है। लेकिन, आप मेरी शक्ति पर निर्भर होते हैं और शक्तिशाली बाहरी कारकों का लाभ उठाते हैं। यह आपकी मानव-प्रकृति को बुद्ध-प्रकृति में कभी भी परिवर्तित नहीं कर सकता है। यदि आप में से सभी अपने मन की गहराइयों से फा को समझ सकते हैं, तो वह वास्तव में फा की अभिव्यक्ति होगी जिसकी शक्ति की कोई सीमा नहीं होती—महान बुद्ध फा मानव समाज में पुन: प्रकटीकरण।

ली होंगज़ी

सितंबर 10, 1996


   

(55) दाफा को कभी भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता

मेरे शिष्यों! मैंने बार-बार कहा है कि मानव जाति को दाफा प्रदान करना पहले ही उनपर एक बहुत बड़ी कृपा है। यह ऐसा है जो अरबों वर्षों में किसी ने नहीं किया। फिर भी कुछ लोग इतना भी नहीं समझते हैं कि उन्हें इसे संजोना चाहिए। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो फा या अभ्यास को उनके अनुरुप, उनकी संस्कृति या उनके राष्ट्र से संबंधित बना कर परिवर्तित करना चाहते हैं। इसके बारे में सोचें। आप अपने स्वार्थ के मोहभाव या राष्ट्र के लोगों की अच्छाई, इत्यादि के कारण ऐसा सोचते हैं—यह एक साधारण मानवीय मानसिकता है। यह उचित होता यदि आप साधारण मानव समाज से सम्बंधित बातें करतें, परन्तु यह साधारण मनुष्यों की बातें नहीं है! फा को आपके राष्ट्र के लोगों के लिए नहीं सिखाया जा रहा है। यह ब्रह्मांड का दाफा है, मूल बुद्ध फा! यह मानव जाति को बचाने के लिए प्रदान किया गया है। फिर भी आप इस फा को इतना अधिक परिवर्तित कर रहे हैं...? इसमें इतना सा भी परिवर्तन बहुत बड़ा पाप होगा। ध्यान रहे कि केवल आपके साधारण मानव समाज के प्रति मोहभाव के कारण कभी भी दुष्ट विचार उत्पन्न न हो! यह बहुत भयानक है!

क्या आप जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कुछ शिष्यों की अचानक मृत्यु हो गयी? कुछ कि इसी कारण मृत्यु हो गयी क्योंकि उन्होंने ऐसा ही कुछ किया था। ऐसा नहीं सोचना कि आपके गुरु आपके साथ ऐसा कुछ करेंगे। आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि विभिन्न स्तरों पर फा के अनेको दिव्य संरक्षक होते हैं जिनका कर्तव्य फा की रक्षा करना है। इसके अतिरिक्त, असुर भी आपको नहीं छोड़ेंगे! क्योंकि आप एक सच्चे फा का साधना अभ्यास कर रहे हैं इसलिए आप अपने पिछले जन्मों के बचे हुए बुरे कर्मों के भुगतान से बच गए हैं। जैसे ही आप एक साधारण मानव के स्तर पर उतर जाएंगे, कोई भी आपकी रक्षा नहीं करेगा और असुर भी आपके प्राण ले लेंगे। अन्य बुद्ध, ताओ, और देवताओं से रक्षा की अपेक्षा करनी भी व्यर्थ होगी, क्योंकि वे किसी ऐसे व्यक्ति की रक्षा नहीं करेंगे जो फा को हानि पहुंचाता हो। और फिर, आपके बुरे कर्म भी आपके शरीर में लौटा दिए जाएंगे।

साधना अभ्यास करना कठिन है, पर गिर जाना उतना ही सहज। जब कोई व्यक्ति परीक्षा में असफल होता है या अपने प्रबल मानवीय मोहभाव का त्याग नहीं कर पाता, तो वह स्वयं को पीछे धकेल सकता है या विपरीत दिशा में जा सकता है। इतिहास में बहुत सारी सीख हैं। नीचे गिरने के बाद ही व्यक्ति पछतावा करता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

ली होंगज़ी

सितंबर 22, 1996 बैंकॉक में


   

(56) ज्ञान प्राप्ति क्या है?

ज्ञानप्राप्ति को विवेक का बोध भी कहा जाता है। हमारे दाफा में, इसे गोंग का खुलना कहते हैं; अर्थात्, व्यक्ति ने साधना अभ्यास द्वारा फलपदवी प्राप्त कर ली है, साधना अभ्यास के संपूर्ण मार्ग में सफल हुआ है, और अब दिव्यलोक में जाने ही वाला है।

ज्ञानप्राप्ति तक पहुंचने के बाद व्यक्ति की अवस्था कैसी होती है? जिसने बुद्धत्व की साधना में सफलता प्राप्त की है वह बुद्ध बन जाएगा; जिसने बोधिसत्व की साधना में सफलता प्राप्त की है वह बोधीसत्व बन जाएगा; जिसने अर्हत्व की साधना में सफलता प्राप्त की है वह अर्हत बन जाएगा; जिसने ताओ की साधना की है वह ताओ को प्राप्त करेगा; और जिसने देवत्व की साधना में सफलता प्राप्त की है वह पहले ही देव बन चुका होगा। क्योंकि कुछ ज्ञानप्राप्त व्यक्तियों को फलपदवी प्राप्त करने के बाद भी साधारण मानव समाज में कुछ कार्य करने शेष रह गए हैं या कुछ इच्छाएं पूरी करनी रह गयी हैं, उन्हें साधारण लोगों के बीच कुछ समय और रहना होगा। लोकिन इस प्रकार साधारण लोगों के बीच रहना उनके लिए कठिन होता है। क्योंकि उनकी सोच का आयाम साधारण मनुष्यों से बहुत अधिक भिन्न होता है, वे साधारण लोगों के मन के सभी बुरे विचारों को, साथ ही उनके प्रबल मोहभावों, स्वार्थ, मलीनता, और दूसरों के प्रति षड्यंत्रों को स्पष्ट रूप से पहचानने में सक्षम होते हैं। इसके अतिरिक्त, वे एक साथ हज़ारों लोगों की थोड़ी सी भी मानसिक गतिविधियों को भांप लेते हैं। इसके अतिरिक्त, बुरे कर्म और वायरस साधारण मानव समाज में सभी स्थानों में हैं; और भी कई बुरे तत्व हवा में तैर रहें है, जो मानव जाति के लिए अज्ञात हैं। वे इन सभी को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। इस धर्म विनाशकाल के वर्तमान मानव समाज में बुरे कर्म अत्याधिक हैं। सांस लेते हुए, लोग बड़ी मात्रा में बुरे कर्म, वायरस और विषैली गैसें अंदर लेते हैं। इस साधारण मानव संसार में रहना वास्तव में उनके लिए बहुत ही कठिन है।

तो वे कैसे होते हैं? ऐसे शिष्य जिन्हें इस विषय का मोहभाव है वे यही पता लगाने का प्रयत्न करते हैं। यह जानने का प्रयत्न ना करें कि क्या यह व्यक्ति ज्ञानप्राप्त प्रतीत होता है या वह व्यक्ति ऐसा दिखता है जैसे उसने फलपदवी प्राप्त कर ली हो। आपको अपना मन लगाकर और सच्चाई से साधना अभ्यास करते हुए और शीघ्र फलपदवी तक पहुंचना है। दूसरों को क्यों देखें? वास्तव में, जिन लोगों ने ज्ञानप्राप्ति कर ली है वे अक्सर ऐसे अभ्यासी होते हैं जो स्वयं अपना दिखावा नहीं करते बल्कि चुपचाप और वास्तव में साधना करते हैं। वे विभिन्न आयु के होते हैं और साधारण मनुष्यों से भिन्न नहीं दिखते हैं। स्वभाविक तौर पर वे अधिक ध्यान आकर्षित नहीं करते हैं। यद्यपि उनके पास सभी दिव्य शक्तियां, रूपांतरण होते हैं, उन्हें लगता है कि मनुष्य वास्तव में बहुत ही सूक्ष्म, निम्नस्तर के जीव हैं जो इन सब वस्तुओं को दिखाने के योग्य नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, यदि मनुष्यों ने यह सब देख लिया, तो वे विविध प्रकार की क्षुद्र मानवीय सोच और विचार विकसित करेंगे और उन्हें मानवीय उत्साह के मोहभाव से देखेंगे; ज्ञानप्राप्त व्यक्ति यह सह नहीं सकते। साधारण लोगों के लिए यह समझना कठिन होता है कि बुद्ध फा की दिव्य शक्तियों का आंतरिक अर्थ का सच्चा महत्व क्या है।

वर्तमान में, कुछ शिष्य साधना में यत्न करने के स्थान पर बहुत सी दूसरी बातों के बारे में सोचते हैं, वे सभी ओर ऐसे लोगों को ढ़ूंढते जिनको ज्ञानप्राप्ति हुयी हैं, आदि। आप सभी, इसके बारे में सोचें: ज्ञानप्राप्त व्यक्ति पहले से बुद्ध बन चुके हैं और उनके पास वह सबकुछ है जो एक बुद्ध के पास होना चाहिए। वे सहज ही लोगों को अपने बारे में जानने की अनुमति कैसे दे सकते हैं? मनुष्य बुद्ध के विषय में कैसे जान सकते हैं? जब आप उन्हें सभी स्थानों पर ढूंढते हैं, तो आपके मोहभाव, प्रतिस्पर्धा, जिज्ञासा, दिखावे की मानसिकता और आपका हस्तक्षेप करना, और इच्छा प्रयास का मोहभाव, इसके साथ ही वे शिष्यों की शांतिपूर्वक साधना में विघ्न डालते हैं। तो क्या आप जानते हैं कि वे इसके बारे में कैसा अनुभव करते हैं? इच्छानुरूप किए गए सभी मानवीय कर्म या विचार उन्हें असहज अनुभव कराते हैं!

क्योंकि कुछ शिष्य बहुत ही उच्च स्तर से फा प्राप्त करने के लिए आए हैं, वे शीघ्र ही ज्ञानप्राप्त कर पाएंगे। साधना अभ्यास के लिए दो वर्ष का समय जिसका मैंने उल्लेख किया था वह इन शिष्यों के लिए था। लेकिन हमारे सभी दाफा के शिष्यों ने वास्तव में सच्ची साधना में शीघ्रता से प्रगति की है। उनमें से कई शीघ्र ही ज्ञानप्राप्त कर लेंगे, जो कि साधकों की कल्पना से परे होता था। मुझे आशा है कि सभी शांतिपूर्ण मन बनाए रखेंगे और दृढ़ता के साथ निरंतर प्रगति करेंगे। जैसे-जैसे प्रत्येक व्यक्ति फलपदवी तक पहुंचेगा, मैं उनका स्वागत करूँगा और उनका उद्धार करूँगा।

ली होंगज़ी

सितंबर 26, 1996


   

(57) मानव जाति का पूनर्निर्माण

मानव द्वारा ज्ञात वास्तविकता इतिहास के विकास के बारे में उनके अनभिज्ञ दृष्टिकोण और अनुभवजन्य विज्ञान द्वारा निर्मित एक भ्रम है। यह ब्रम्हांड में पायी गयी महान वास्तविकता की सच्ची अभिव्यक्ति नहीं है। इसके अतिरिक्त, वास्तविक यथार्थता एक नया विज्ञान और एक नई समझ लाएगी। ब्रह्मांड के नियम और सिद्धांत मानव संसार में पुनः प्रकट होंगे।

मानवीय स्वार्थ, लोभ, मूर्खता और अज्ञानता मानव प्रकृति की जन्मजात अच्छाई के साथ बुने हुए हैं, और मनुष्य अनजाने में जो भी उत्पन्न कर रहा है उसे भोगना पड़ेगा; यह वर्तमान में समाज को निगल रहा है। विश्व में विभिन्न प्रकार की कई सामाजिक समस्याएं उभर रही हैं और सभी ओर संकट छिपे हुए हैं। फिर भी मनुष्य स्वयं की प्रकृति में इनके कारण ढूँढने की नहीं सोचता। नैतिकता के पतन के बाद, मनुष्य यह समझने में असमर्थ है कि उसका भयानक मानव मन ही सभी सामाजिक समस्याओं की विषैली जड़ है, और इसलिए वे हमेशा मूर्खता से सामजिक घटनाओं में ही समाधान ढूँढने का प्रयत्न करते हैं। परिणामस्वरूप, मनुष्य को कभी अनुभव नहीं हुआ कि स्वयं के लिए बनाये गए उनके तथाकथित सभी “बच कर निकलने के मार्ग” वास्तव में उन्हें पूरी तरह से बंद कर देते हैं। ऐसे में, बच कर निकलने के बहुत ही कम मार्ग रह जाते हैं, और उसके बाद होने वाली नयी समस्याएं और विकट होती हैं। इस प्रकार, बहुत कठिनाई के साथ मनुष्य फिर से एक छोटा स्थान ढूंढता है और नये उपाय करता है, जिससे इस शेष स्थान को एक बार फिर से बंद कर दिया जाता है। समय के साथ-साथ यह बार-बार होता है, कोई स्थान नहीं बचता और वे अब बचने का कोई मार्ग नहीं ढूंढ पाते हैं, ना ही वे उस बंद स्थान के आगे की सच्चाई देख पाते हैं। मानव जाति ने अपने लिए जो कुछ भी बनाया है उन सभी से वे पीड़ित होने लगते हैं। यह अंतिम माध्यम है जिससे ब्रह्माण्ड जीवों का विनाश करता है।

सभी बुद्धों के अधिपति, जिनकी करुणा अविश्वसनीय रूप से अपार है, वे मानव जाति के लिए बुद्ध फा छोड़ गए हैं। ब्रह्माण्ड मनुष्यों को एक और अवसर दे रहा है, जिससे यह महान बुद्ध फा एक बार फिर ब्रह्माण्ड की सच्ची वास्तविकता को मानव जगत में प्रकट कर, सभी मलिनता और अज्ञानता धोकर, और मानवीय भाषा का उपयोग कर अपनी प्रतिभा और वैभव पुनः प्राप्त कर सके। आप इसे संजो कर रखें! बुद्ध फा आपके समक्ष ही है।

ली होंगज़ी

सितंबर 28, 1996


   

(58) क्षय

धर्मगुरुओं का बुरा आचरण उनकी ली हुई पवित्रता की प्रतिज्ञा का पूरी तरह से उल्लंधन करता है, जिससे देवों के विश्वास का मूल्य एक कौड़ी का भी नहीं रह जाता, और देव और मनुष्य जाती दोनों को आश्चर्यचकित कर देता है। सज्जन लोग इन्हें एकमात्र ऐसा व्यक्ति मानते आ रहे हैं जिन पर वे अपनी मुक्ति के लिये निर्भर हो सकते हैं। निराशा ने लोगों में धर्म के प्रति अविश्वास बढ़ा दिया है, और अंत में लोगों ने देव में अपना विश्वास पूरी तरह से खो दिया है, जिससे वे बिना किसी संकोच के सभी प्रकार के बुरे कर्म कर रहे हैं। यह इस हद तक विकसित हो गया है कि लोग आज पूरी तरह भ्रष्ट लोगों में परिवर्तित हो गए हैं जो आसुरिक उपद्रव प्रकट करते हैं, और इससे सभी देवताओं ने मनुष्यों में पूरी तरह से अपना विश्वास खो दिया है। यह मुख्य कारणों में से एक है कि देवता अब मनुष्यों की देखभाल क्यों नहीं करते हैं।

ली होंगज़ी

अक्टूबर 10, 1996


   

(59) बुद्ध-प्रकृति में अचूकता

फा की शिक्षा प्रदान करते समय, मैंने कई बार उल्लेख किया है कि शाक्यमुनि के बुद्धमत और धर्म-विनाश काल के समय में शास्त्रों के बनने का मुख्य कारण यह था कि कुछ लोगों ने धर्म में अपने स्वयं के शब्दों और समझ को जोड़ा—यह इतिहास का सबसे बड़ी सीख है। फिर भी, कुछ शिष्य अपने साधारण मानवीय मोहभाव को त्यागना नहीं चाहते। जब उनकी आसुरिक प्रकृति उनके वाक्पटुता और साहित्यिक योग्यता का दिखावा करने के मानवीय मोहभाव का लाभ उठाती है, वे अनजाने में बुद्ध फा को क्षति पहुंचाते हैं।

हाल ही में, कुछ लोग अपने साधना की अपनी समझ बढ़ाने के बाद, जब वे अपने अनुभवों को बताते समय अपनी पिछली कमियों के बारे में बात करते हैं, तो उसे "गन्दा पानी फेंकना" कहते है। इसने साधना अभ्यास के पाठ्य-सामग्री को पूरी तरह से बदल दिया है। साधना अभ्यास पवित्र होता है, और यह कोई सांसारिक व्यक्ति की आत्म-परीक्षा या पश्चाताप की तरह नहीं है। शिष्यों! आपको किसी के भी द्वारा उपयोग या वर्णित की गयी परिभाषा को ऐसे ही नहीं अपनाना चाहिए। क्या फिर यह दाफा में कुछ मानवीय जोड़ना नहीं होगा? पिछले वर्ष, बीजिंग स्वयंसेवक केंद्र द्वारा चार वाक्यांशों को प्रस्तुत करने के पश्चात, मैंने विशेष रूप से इसके लिए एक लेख "सुधार" लिखा था। इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। हालांकि, अभी भी कुछ अन्य अनुचित शब्दों को प्रसारित किया जा रहा है। आपको इसके बारे में सोचना चाहिए: यदि आज एक शब्द जोड़ा जाता है और परसों एक और, तो समय की अवधि के साथ आने वाली पीढ़ी के अभ्यासी यह नहीं बता पाएंगे कि वे किनके शब्द हैं, और धीरे-धीरे दाफा परिवर्तित हो जाएगा।

आपको यह स्पष्ट होना चाहिए कि साधना अभ्यास का रूप जो मैंने आपको दिया है उसे कभी भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। ऐसा कुछ न करें जो मैं नहीं करता, और ऐसा आचरण न करें जैसा आचरण मैं नहीं करता। साधना में आपको वही बातें कहनी चाहिए जैसे मैं कहता हूं। ध्यान दें! अनजाने में भी किया गया बुद्ध फा का परिवर्तन भी इसे हानि पहुंचाने जैसा ही होगा!

मैं आपको यह भी बताना चाहता हूं कि अतीत में आपका स्वभाव वास्तव में अहंकार और स्वार्थ पर आधारित था। अब से, आप जो भी करें, आपको दूसरों का विचार पहले करना चाहिए, जिससे आपको निःस्वार्थता और परोपकार की सच्ची ज्ञानप्राप्ति हो सके। तो अब से, जो भी आप करेंगे या जो भी आप कहेंगे, आपको दूसरों का विचार करना होगा—या भविष्य की पीढ़ियों का—साथ में दाफा की अनन्त स्थिरता का भी।

ली होंगज़ी

फरवरी 13, 1997


   

(60) स्पष्ट समझदारी

विविध क्षेत्रों के स्वयंसेवक केन्द्रों में काम करने की वर्तमान कार्यप्रणालियों पर कुछ टिप्पणियों का यही समय है। रिसर्च सोसाइटी की आवश्यकताओं को लागू करना उचित है, लेकिन कैसे करना है इसका आप ध्यान रखें। मैं अक्सर कहता हूँ कि यदि कोई व्यक्ति केवल दूसरों का भला चाहता है और यदि यह बिना किसी भी निजी हित या व्यक्तिगत समझ के हो, तो वह जो भी कहेगा उससे सुननेवाले की आँखों में आंसू आ जाएंगे। मैंने केवल आपको दाफा ही नहीं सिखाया, बल्कि आपको अपना आचरण भी प्रदान किया है। काम करते समय, आपके बोलने का ढ़ंग, आपकी करुणा, और आपके तर्क किसी भी व्यक्ति के मन को परिवर्तित कर सकते हैं, जबकि आदेश से ऐसा कभी नहीं होगा! यदि कोई मन से आश्वस्त नहीं होते हैं, लेकिन ऊपरी तौर पर मान रहे हैं, तो जब उनके आसपास कोई नहीं होगा तब वे फिर अपनी मनमानी ही करेंगे।

दाफा के किसी भी कार्य का लक्ष्य लोगों को फा प्राप्त करने और अभ्यासियों के स्वयं सुधार के लिए है। इन दो बातों को छोड़कर सबकुछ व्यर्थ है। इसलिए, अड़ जाने के स्थान पर, सभी कार्य स्थानीय स्थिति और अभ्यासियों की परिस्थितियों के अनुसार आयोजित करने चाहिए। दाफा को सीखना भी स्वैच्छिक है, तो कार्यों के आयोजन की तो बात ही नहीं है! वास्तव में, केंद्र का प्रभारी व्यक्ति पहले तो फा का अभ्यास करने में अग्रणी होता है। यदि व्यक्ति स्वयं ही फा का अच्छी तरह अभ्यास नहीं कर रहा है, तो वह अपने कार्य में अच्छा काम नहीं कर पायेगा। स्वयंसेवक केन्द्रों के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित किये गए अनुभव साझा करने के सम्मेलनों को कभी भी आत्म-आलोचना के सम्मेलनों में परिवर्तित नहीं किये जाने चाहिए। ऐसे साधना के अनुभवों को साझा करने वाले फा के पवित्र सम्मेलनों को कभी भी समाज के काले पक्ष को उजागर करने के प्रदर्शन सम्मेलनों में परिवर्तित नहीं करना चाहिए, और कभी भी आपको शिष्यों को उनकी कमियों और उनकी गलतियों को, जो उन्होंने साधारण व्यक्ति होते हुए की थी, उनको उजागर करने पर विवश नहीं करना चाहिए; इससे आप बहुत ही गंभीर, नकारात्मक प्रभाव डालेंगे, जिससे दाफा की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचेगी। आपको यह स्पष्ट होना चाहिए कि आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं। यह एक पवित्र साधना अभ्यास है। अनुभव साझा करने के सम्मेलनों का उद्देश्य शिष्यों में सुधार लाना है और दाफा का प्रसार करना है, लेकिन इस बात को प्रचारित करना नहीं कि हमारे शिष्य पहले कितने बुरे थे। वे दाफा के साधना अभ्यास करने की बात करने के लिए हैं, ना कि तथाकथित "गन्दा पानी" फेंकना! जो आप दाफा के लिए कार्य कर रहे हैं वह साधना अभ्यास से असंबंधित नहीं है। आपके नैतिक गुण को सुधारने के कारक आपके कार्यों में दिखायी देंगे। आपको ना केवल कार्य करने है, लेकिन फलपदवी तक भी पहुंचना है। मैं जानता हूँ कि आप में से कुछ लोग कभी कभार ही पुस्तकें पढ़ते हैं और फा का अभ्यास करते हैं, ना ही उन अनेक लेखों के अनुसार जो मैंने आपके लिए लिखे हैं, आत्मनिरीक्षण करते हैं, जिन्हें आप शास्त्र कहते हैं। ये "शास्त्र" क्या हैं? वे केवल लेख है जिन्हें बारंबार पढ़ना चाहिए। क्या आप उन्हें पढ़ते हैं? यदि आप फा का अधिक अध्ययन करेंगे, तो आप अपने कार्य करने में अच्छे रहेंगे। मैं आपकी कमियों को इसलिए दर्शाता हूँ जिससे कम समस्याओं के साथ दाफा अधिक स्वस्थ रूप से विकसित हो सके। वास्तव में, दाफा आपकी अंतर्दृष्टि को भी समृद्ध कर रहा है और दाफा के उत्कृष्ट वर्ग का सृजन कर रहा है।

ली होंगज़ी

जून 13, 1997 हांगकांग में.


   

(61) हमेशा ध्यान रखें

दाफा समीति:

मेरा यह सुझाव है कि सभी साधकों को तुरंत, उसी स्थान पर, वह सब कुछ नष्ट कर देना चाहिए, जो मैंने सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं किये हैं और जो मेरी अनुमति के बिना प्रचारित किये गये, जैसे कि: मेरे व्याख्यान जो चेंग्डे से प्रसारित किये गये थे; बीजिंग के साधक द्वारा की हुई अलौकिक क्षमताओं की बातों की चर्चा; डालियन के स्वयंसेवक केंद्र के संचालक का भाषण; गुईझोऊ के स्वयंसेवक केंद्र के संचालक की गुफा की कथा और अन्य भाषण; और विभिन्न स्वयंसेवक केन्द्रों के संचालकों के अन्य भाषण; मुझसे मिलने के बाद की गयी शिष्यों की बातें; दाफा रिसर्च सोसाइटी के संचालकों के भाषण, इत्यादि, और सभी लेखन, रिकॉर्डिंग, वीडियोटेप, आदि, जो मेरी अनुमति के बिना मेरे व्याख्यानों से लेकर लिखे गये हैं। इन सभी को तुरंत ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए, और किसी भी बहाने से उन्हें नहीं रखा जा सकता। "दाफा की सुरक्षा" क्या है? यही दाफा की पूर्णतया सुरक्षा है, और इस बात की परीक्षा है कि क्या आप मेरी कही गयी बातों का अनुसरण करते हैं और क्या आप वास्तव में मेरे अभ्यासी हैं! मैं सभी को एक बार फिर बता दूं कि बुद्ध शाक्यमुनि के सिखाए गए धर्म को इसी तरह क्षति पहुँचायी गयी थी। यह इतिहास की एक सीख है। अब से, कोई भी विभिन्न क्षेत्रों के संचालकों द्वारा या किसी भी अभ्यासी द्वारा दिये गये भाषणों को टेप रिकॉर्ड या वीडियोटेप नहीं करेगा; और ना ही उन्हें लिखा जा सकता है या लोगों में पढ़ने के लिए बांटा जा सकता है। यह किसी व्यक्ति विशेष की समस्या नहीं है, ना ही यह किसी व्यक्ति विशेष की निंदा करने के लिए है; बल्कि, यह दाफा के सुधार के लिए है। यह ध्यान में रखें : रिसर्च सोसाइटी के समर्थन से प्रमुख सहायक केंद्रो द्वारा आयोजित किये गये फा के अध्ययन के लिए अनुभव साझा करने के सम्मेलनों के अतिरिक्त, जो कुछ दाफा से सम्बंधित नहीं है लेकिन दाफा के नाम से प्ररिचारित किया जाता है वह दाफा को हानि पहुंचाता है।

ली होंगज़ी

जून 18, 1997


   

(62) कठोर आघात

साधना अभ्यास अधिक लोगों के लिए सुविधाजनक बनाने के लिए, वर्त्तमान में दाफा ने मुख्य रूप से साधारण लोगों के समाज में साधना अभ्यास का रूप धारण किया है; साधक अपने आपको कार्यस्थल और अन्य साधारण लोगों के वातावरण में तप कर सुधार करते हैं। केवल भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों को भ्रमण करने की आवश्यकता होती है। फिर भी कुछ लोग अब पूरे देश में यात्रा कर रहे हैं और स्वयं को दाफा अभ्यासी बता रहे हैं। वे बिना किसी कारण के दाफा अभ्यासियों के घरों में रहते हैं, जहाँ वे खाते, पीते, वस्तुओं को लेते और मांग करते हैं। ठगते और धोखा देते हुए, वे दाफा का सहारा लेते हुए शिष्यों के दयालु स्वभाव का लाभ उठाते हैं। लेकिन हमारे शिष्य उनमें भेद क्यों नहीं कर पाते? साधना अभ्यास करना स्वयं की साधना करना है। इसके बारे में सोचें : यह लोग वास्तव में शांतिपूर्वक अपने घरों में साधना क्यों नहीं करते हैं? कठिन वातावरण व्यक्ति को अच्छी तरह से साधना करने में सहायता कर सकता है। क्यों यह लोग मेरी बातों को अनसुना करते हैं और पूरे देश में घूमते रहते हैं? यह लोग क्यों खाते है, मांग करते हैं और शिष्यों की वस्तुएं लेते हैं, और फिर उन्हें मोहभाव त्यागने को भी कहते हैं? क्या मैंने उन्हें यही सिखाया है? इससे भी बुरा, कुछ लोग शिष्यों के घरों में लगातार कई महीनों तक रहते हैं। क्या यह नीचता से शिष्यों के साधना अभ्यास में हस्तक्षेप करना और उन्हें हानि पहुँचाना नहीं है? मुझे लगता है कि जो कुछ भी इन लोगों ने खाया है और धोखे से लिया है उसका पूर्ण रूप से उन्हें भुगतान करना पड़ेगा। दाफा भी इसकी अनुमति नहीं देगा। यदि भविष्य में इस प्रकार की बात दोबारा होती है, तो आप उस व्यक्ति को साधारण ठग समझ सकते हैं और उसे पुलिस के हवाले कर सकते हैं, क्योंकि ऐसा व्यक्ति कदापि हमारा शिष्य नहीं हो सकता।

साथ ही, कुछ क्षेत्रों में लोगों ने बिना अनुमति के तथाकथित "फा उपदेश समूहों" का आयोजन किया है, जहाँ वे शिष्यों के बीच ढ़ोंग करते हैं और सभी ओर लोगों को ठगते हैं। कुछ लोग दूसरों को भाषण देने के लिए भी आमंत्रित करते हैं, जिससे शिष्यों की साधना में हानि और हस्तक्षेप होता है। सतह पर यह लोग दाफा का प्रचार करते हुए प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में वे स्वयं का प्रचार कर रहे होते हैं। एक शिष्य की साधना मेरे फा शरीरों द्वारा नियमित रूप से व्यवस्थित की जाती हैं। केवल यह है कि कुछ शिष्यों को इस बात का ज्ञान नहीं है या वे इससे अनभिज्ञ रहते हैं। तो क्या यह लोग बाधा नहीं डाल रहे हैं? यह उन लोगों के लिए स्पष्टता से भेद करना विशेष रूप से कठिन हो जाता है, जिन्होंने फा की शिक्षा अभी-अभी प्रारम्भ की है। ऐसे भी लोग हैं जो सम्मेलनों में तथाकथित "भाषण" देते हैं जहाँ हज़ारों की संख्या में लोग उपस्थित होते हैं। वे जो भी कहते हैं वह सब स्वयं उनके बारे में होता है। यहां तक कि वे दाफा के कुछ वाक्यों को परिभाषित या दाफा की व्याख्या करते हैं, जबकि शिष्यों तक उनके शरीरों से निकले काले कर्म और मोहभाव के पदार्थ पहुंचते हैं। मैंने ज़ुआन फालुन में स्पष्ट रूप से कहा है कि ऐसा करना वर्जित है। आप इसके बारे में क्यों नहीं सोचते? यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो आयोजन के प्रभारी हैं और जिन्होंने लोगों को ऐसी बातें करने के लिए आमंत्रित किया है, क्योंकि हो सकता है कि आपने दाफा के शिष्यों को कुछ अप्रत्यक्ष हानि पहुंचाई हो, और अब आप दाफा के शिष्यों के प्रभारी होने के योग्य नहीं हैं। मुझे सुने बिना या दाफा की आवश्यकताओं का पालन किये बिना, आप मेरे शिष्य कैसे हो सकते हैं? क्या यह दाफा के विरुद्ध जाना नहीं है? यदि यह दाफा को हानि पहुँचाने का कार्य नहीं है, तो और क्या है? मेरे अभ्यासियों, आपको हमेशा इन बातों से अनजान नहीं रहना चाहिए जबतक कि मैं उन्हें इंगित नहीं करता। वास्तव में, फा में सब कुछ समाविष्ट है। क्यों न पुस्तकों को अधिक पढ़ा जाये? मेरा सुझाव है कि मेरी लिखित पुस्तक ‘आगे और प्रगति के लिए आवश्यक लेख’, जिन्हें आप शास्त्र कहते हैं, उसे सभी को दस बार पढ़ने का मन बना लेना चाहिए। जब आपका मन शांत नहीं होता है, तो फा का अभ्यास प्रभावी नहीं होगा। आपको इसका अभ्यास शांत मन से करना चाहिए।

कुछ क्षेत्रों में ऐसे प्रभारी लोग हैं जो पुस्तक नहीं पढ़ते हैं या फा का अध्ययन नहीं करते हैं। उस पर, वे यह भी दावा करते हैं कि जब भी वे फा को पढ़ते हैं उन्हें सिरदर्द होता है। क्या यह स्पष्ट नहीं है कि असुर उनके साथ हस्तक्षेप कर रहे हैं, और फिर भी वे उनके नियंत्रण से छुटकारा प्राप्त नहीं करना चाहते हैं? यहां तक कि एक नया शिष्य भी यह बात समझ सकता है। ऐसे लोग प्रभारी कैसे हो सकते हैं? मुझे लगता है कि ऐसे लोगों को स्वेच्छा से साधारण शिष्य बन जाना चाहिए और कुछ समय के लिए शांतिपूर्वक वास्तव में साधना अभ्यास करना चाहिए—यह उनके और दाफा दोनों के लिए अच्छा होगा। कोई और भी थी जिन्होंने उनको लिखे हुए मेरे आलोचना पत्र को विपरीत ढंग से समझा। उन्होंने अपनी भूल को समझे बिना, दिखावा करने के लिए उस पत्र की प्रतियां बनायी और वितरित की। उन्होंने दावा किया, "गुरुजी ने मुझे लिखा भी है।" साथ ही, शिष्यों से अपने आदेशों का पालन करवाने के लिए, कुछ लोग अक्सर अपने भाषणों में ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं जैसे "गुरुजी ली की ओर से, मैं..." और इत्यादि। कोई भी मेरा प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। आपके शब्द मेरे शब्द कैसे बन सकते हैं? मेरे शब्द फा हैं। क्या आपके शब्द फा बन सकते हैं? मेरे अभ्यासियों! मेरा यह सुझाव है कि पहले कुछ समय के लिए आप साधारण शिष्य बनें, और स्पष्ट समझ आने के बाद आप अपना काम पुनः प्रारंभ करें। एक प्रभारी व्यक्ति ने साधारण लोगों के बीच चाहे जितना भी काम किया हो, वह दाफा के लिए स्वेच्छा से काम करता है। उनके काम की सफलता केवल साधारण मनुष्यों के बीच एक अभिव्यक्ति है। यह स्वयं दाफा की प्रबल शक्ति है और मेरे फा शरीरों द्वारा की गयी विशिष्ट व्यवस्था है जो लोगों को फा को प्राप्त करने और फा को व्यापक रूप से फैलाने में सक्षम बनाती है। मेरे फा शरीरों के बिना इन वस्तुओं को करना, यहां तक कि प्रभारियों की रक्षा सुनिश्चित करना भी कठिन है, फा को व्यापक स्तर पर फैलाना तो दूर की बात है। इसलिए हमेशा स्वयं को अधिक श्रेष्ठ न समझें। दाफा में कोई प्रसिद्धि, स्वलाभ, या आधिकारिक पदवी नहीं है, लेकिन केवल साधना अभ्यास है।

ली होंगज़ी

जून 18, 1997


   

(63) मुल्यांकन मापदंड पर एक और टिप्पणी

वर्तमान में, ऐसे कई नये शिष्य हैं जिन्होंने अभी तक दाफा की आवश्यकताओं की गहरी समझ प्राप्त नहीं की है। विशेष रूप से कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां के दाफा अभ्यासियों के अध्यक्ष भी नये हैं। इसलिए, आवश्यक है कि बहुत ही कम समय में आप फा का गहराई से अभ्यास करें जिससे आपके सभी आचरण एवं व्यवहार दाफा के अनुरूप हो सके। तब तक, विभिन्न क्षेत्रों के सामान्य सहायता केन्द्रों को लोगों का चयन करने में सावधानी बरतनी होगी। जो शिष्यों को भटकाते हैं उन्हें जितना शीघ्र हो सके बदल दिया जाना चाहिए, और जो दाफा का अभ्यास अच्छी तरह से करते हैं उन्हें प्रभारी बनाना चाहिए।

पिछले दिनों, कुछ स्वयंसेवक केन्द्रों ने उनसे शिष्यों की साधना की जांच करने को कहा जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके दिव्य नेत्र खुले हैं। उन लोगों ने जो कुछ भी देखा है वह वास्तव में झूठा और भ्रामक है। मैंने बहुत पहले कहा था कि अभ्यासी का मूल्यांकन और कुछ नहीं बल्कि उसका नैतिकगुण है, और जिनको ज्ञानप्राप्ति नहीं हुई है या जो फलपदवी तक नहीं पहुंचे हैं उनको मैं इसकी अनुमति कभी नहीं दूंगा कि वे स्पष्ट रूप से मेरे अभ्यासियों की वास्तविक साधना स्थिति देख सकें। जो देख सकते हैं उन्हें केवल उनके निम्नस्तर की अभिव्यक्ति ही दिखायी जाएगी, और वे उच्च स्तर की वस्तुओं को देखने में असमर्थ हैं। यदि कोई प्रभारी ऐसे व्यक्ति को अन्य छात्रों की जांच करने के लिए कहता है, तो उस शिष्य में दिखावा करने का मोहभाव विकसित होगा। इसके अतिरिक्त, उसकी आसुरिक प्रकृति भी हस्तक्षेप और क्षति का कारण बनेगी, जिससे जो कुछ वह देख सकता है वह उसके मन के अनुरूप परिवर्तित हो जायेगा। पहले तो उसका दाफा अभ्यासियों की जांच करना ही अनुचित है। जिस प्रभारी ने उसे शिष्यों की जांच करने को कहा है उसने भी मेरे आदेशों का पालन नहीं किया है। आप अपने गुरु की बातों को क्यों नहीं सुनते हैं: "एक शिष्य की साधना के मूल्यांकन का एकमात्र मापदंड उसका नैतिकगुण है।" क्या आप नहीं जानते कि सभी आयामों का अस्तित्व एक साथ एक ही स्थान पर होता है? किसी भी आयाम में रहने वाले जीवित प्राणी के शरीर का मानव शरीर के साथ-साथ दिखने की सम्भावना है, और वे ग्रसित होने वाले प्रेत (फूटी) से बहुत मिलते जुलते दिखाई देते हैं। फिर भी विभिन्न आयामों में उनका अस्तित्त्व होता है और उन्हें मनुष्यों से कोई लेना-देना नहीं है। जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके दिव्य नेत्र खुले हैं क्या वे इन जटिल परिस्थितियों को समझ सकते हैं?

इसके अतिरिक्त, कुछ लोग सहज ही यह कह देते है कि यह व्यक्ति ग्रसित है या वह व्यक्ति ग्रसित है। मैं यही कहूँगा कि समस्या उनमें है जो स्वयं ऐसे वक्तव्य देते हैं।

इस ब्रम्हाण्ड के आयाम अत्यंत जटिल हैं। मैंने जो कुछ कहा है उसको मानवीय भाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता। बहुत सी स्थितियाँ मानवीय भाषा के वर्णन से परे हैं। फलपदवी प्राप्त अभ्यासी भी केवल उतना ही स्पष्ट रूप से देख सकता है जहाँ तक उसका प्राप्ति के स्तर पर ज्ञानोदय हुआ है, और जो व्यक्ति अभी भी साधना अभ्यास कर रहा है उसके उल्लेख की तो बात ही नहीं।

ली होंगज़ी

जून 18, 1997


   

(64) निश्चित निष्कर्ष

दाफा के अभ्यासियों, आपको यह ध्यान में रखना चाहिए कि किसी ने भी, किसी भी समय, किसी भी स्थान पर, और किसी भी बहाने से, भविष्य में ऐसा कोई भी आचरण जैसे कि दाफा को शाखाओं, विद्यालयों, पंथ, या संप्रदाय में विभाजित करने का कार्य किया, तो वह फा को क्षति पहुंचाना होगा। आपको वह कभी नहीं करना चाहिए जिसकी अनुमति मैं नहीं देता हूं। आपके मन का आसुरिक अंश आपके दिखावा करने की इच्छा और उत्साह के मोहभाव को बहुत ही सरलता से शोषित कर सकता है। आपने दाफा में जो कुछ भी ज्ञानोदय प्राप्त किया है वह फा के असीम सिद्धान्तों के अंतर्गत एक निश्चत स्तर पर फा के सिद्धान्तों का केवल एक छोटा सा भाग है। आपको फा या उसके किसी भी अंश को परिभाषित नहीं करना चाहिए—इसका एक वाक्य भी नहीं। यदि आप सार्वजनिक रूप से ऐसा करते हैं, तो जिस क्षण आप इसका उच्चारण करेंगे आपके पाप कर्म उत्पन्न हो जाएंगे। गंभीर स्थितियों में, यह पाप किसी पर्वत या अंबर जितना विशाल हो सकता है—तब आप अपनी साधना कैसे कर पाएंगे? यदि कोई दाफा को परिवर्तित कर देता है और दूसरी प्रणाली बनाता है, तो उसका पाप इतना अधिक होगा कि उसकी कोई सीमा नहीं होगी। जब एक जीवन उस बुरे कर्म के लिए भुगतान कर रहा होता है, तो उसे परत दर परत दूर करने की पीड़ा अनंत और अंतहीन होगी।

दाफा ब्रह्मांड का सुधार कर सकता है, इसलिए इसमें निश्चित रूप से दुष्टता को दबाने की, अव्यवस्था को समाप्त करने की, सबकुछ समरूप करने की और अपराजित होने की फा की शक्ति होती है। वास्तव में, इस सम्बन्ध में ऐसे अनेक सीख हैं। जो वस्तुएं फा को क्षति पहुंचाती हैं उन्हें फा की रक्षा करने वाले देव संभाल लेंगे। जब सभी चेतन प्राणी दाफा को संजोते हैं, तो वे स्वयं का जीवन संजो रहे होते हैं और सभी चेतन प्राणियों के प्रति करुणामयी हो रहे होते हैं। दाफा अपरिवर्तनीय और स्थिर है। यह हमेशा के लिए जीवित रहेगा और विश्व में इसका अस्तित्व हमेशा बना रहेगा। स्वर्ग और पृथ्वी हमेशा के लिए स्थिर बने रहेंगे।

ली होंगज़ी

जुलाई 1, 1997


   

(65) समय के साथ संवाद

गुरु जी : मेरे अभ्यासियों में कौन सी कमियाँ अभी भी शेष है?

दिव्य प्राणी : आपके अभ्यासियों को दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है।

गुरु जी : वे दो समूह क्या है?

दिव्य प्राणी : एक समूह आपकी आवश्यकताओं का पालन करते हुए फा में कठिनाइयों में भी प्रगति करने में सक्षम है। यह समूह काफी अच्छा है। दूसरा समूह मानवीय विषयों से मोहभाव रखता है, उन्हें त्यागना नहीं चाहता, और निरंतर शीघ्रता से प्रगति करने में असमर्थ है।

गुरु जी : हाँ, मैंने भी यह देखा है।

दिव्य प्राणी : आप उन्हें फा को समझने के लिए कुछ समय की अनुमति देते हैं, इसलिए कुछ लोग विभिन्न आशयों के साथ आते हैं। फा का अभ्यास करने के बाद, उनमे से अधिकांश फा सीखने के लिए अपने प्रारंभिक उद्देश्य को बदलने में सक्षम हैं।

गुरु जी : उनमे से कुछ अब तक नहीं बदले।

दिव्य प्राणी : फिर भी अब बहुत लम्बा समय बीत चुका है।

गुरु जी : हां !

दिव्य प्राणी : मेरे विचार से, जो देव नहीं बन सकते उनके लिए और प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में, वे केवल मनुष्य ही बने रह सकते हैं।

गुरु जी : (स्वयं से बात करते हुए) मानवीय जगत में, वे वास्तव में पूरी तरह से खो गए हैं। उनका अंत संभवतः इसी प्रकार होगा। मुझे डर है कि अंत में वे मनुष्य कहलाने के भी योग्य नहीं रहेंगे!

दिव्य प्राणी : वास्तव में नये विश्व में मनुष्य बनना बुरा नहीं है। ब्रह्माण्ड के उन अनगिनत ऊँचे स्तर के प्राणियों की तुलना में जिनको इतिहास ने समाप्त कर दिया है, यह उनसे तो अतुलनीय रूप से भाग्यशाली हैं।

गुरु जी : मैं अभी भी कुछ समय प्रतीक्षा करना चाहता हूँ, देखूंगा कि वे कैसे होंगे जब और अधिक सूक्ष्म कणों को हटा दिया जायेगा जो मानवजाति को हानि पहुंचाते हैं, और तब मैं निर्णय लूँगा। वैसे भी वे फा प्राप्त करने के लिए ही तो आये हैं।

दिव्य प्राणी : वर्तमान में लोगों के इस समूह के संदर्भ में, कुछ लोग फा का अभ्यास करने के लिए आए हैं क्योंकि वे जीवन में अपना उद्देश्य नहीं पा सके हैं। वे इन धारणाओं से जुड़े हुए हैं जिन्हें वे बदलना नहीं चाहते।

गुरु जी : नये अभ्यासियों में ऐसे लोग अधिक हैं।

दिव्य प्राणी : उनमें से कुछ लोग फा के उस पक्ष को ढूंढने आये हैं जिन्हें वे अच्छा मानते हैं, लेकिन वे उस पक्ष का त्याग करने में असमर्थ हैं जो उन्हें फा की पूर्ण समझ पाने से रोक रहा है।

गुरु जी : अनुभवी अभ्यासियों में भी ऐसे लोग हैं। और उसका सबसे उत्कृष्ट प्रमाण यह है कि वे हमेशा स्वयं की तुलना मनुष्यों से और उनके स्वयं के अतीत से करते रहते हैं, लेकिन विभिन्न स्तरों के फा की आवश्यकताओं से स्वयं का आत्मनिरीक्षण करने में विफल हो जाते हैं।

दिव्य प्राणी : यह समस्याएँ अब बहुत गंभीर हो गयी हैं। यह अच्छा होगा यदि वे अपने मन में झांक कर उन वस्तुओं की खोज कर सकें जो वे दूसरों में खोजने में सक्षम रहे हैं।

गुरु जी : अब उनके समझदार होने का समय आ गया है जिससे उनका परिवेश सच्चे साधना अभ्यास करने के लिए परिवर्तित हो सके, और इस प्रकार वे सच्चे देव बनने में सक्षम हो पाएंगे।

ली होंगज़ी

जुलाई 3, 1997


   

(66) फा पर व्याख्या

समय की एक लम्बी अवधि से दाफा के चेतन प्राणियों को, विशेष रूप से अभ्यासियों को, नैतिकगुण में सुधार के संबंध में विभिन्न स्तरों के फा के प्रति भ्रम रहा है। जब भी कोई आपत्ति आती है, तो आप इसे अपने मूल प्रकृति के दृष्टिकोण से नहीं देखते बल्कि इसे पूरी तरह से अपने मानवीय दृष्टिकोण से देखते हैं। दुष्ट असुर तब आपकी इस बात का लाभ उठाते हैं और अंतहीन हस्तक्षेप और क्षति पहुंचाते हैं, जिससे शिष्य दीर्घकालिक कठिनाइयों में पड़ जाते हैं। वास्तव में, यह आपके मानवीय दृष्टिकोण से फा की अपर्याप्त समझ के कारण होता है। आपने अपने दिव्य रूप को मानवीयता द्वारा नियंत्रण में रखा हुआ है; दूसरे शब्दों में, आपने उन भागों को प्रतिबंधित कर दिया है जो सफलतापूर्वक ज्ञानप्राप्त कर चुके हैं और उन्हें फा-स्पष्टिकरण करने से रोक दिया है। आपका अज्ञानी पक्ष आपके मुख्य विचारों को या उस पक्ष को कैसे नियंत्रित कर सकता है जो पहले से ही फा प्राप्त कर चुका है? दुष्ट असुरों को मानवीय रूप से बढ़ावा देने के बाद, आप उन्हें फा से बचने के मार्ग का लाभ उठाने की अनुमति देते हैं। जब कोई आपत्ति आती है, यदि आप, एक अभ्यासी, वास्तव में स्थिरता से शांत रहते हैं या विभिन्न स्तरों की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दृढ़ रहते हैं, तो यह आपके लिए परीक्षा में सफल होने के लिए पर्याप्त है। यदि ऐसा निरंतर चलता रहा और यदि आपके नैतिकगुण या आचरण में कोई और समस्या नहीं है, इसका अर्थ यह है कि दुष्ट असुर आपके नियंत्रण की कमी के कारण आपके निर्बल मन का लाभ उठा रहे हैं। आखिरकार, साधक कोई साधारण मानव नहीं होते। तो फिर आपके मूल प्रकृति का पक्ष फा का सुधार क्यों नहीं करता?

इसके दो कारण है कि गुरु जी ने आजतक इस फा की शिक्षा प्रदान क्यों नहीं की : पहला यह कि इस संबंध में आपकी समस्या विशिष्ठ हो चुकी है; दूसरा यह कि आपने फा की बहुत गहरी समझ प्राप्त कर ली है और उसे सरल तरीके से नहीं समझ पाएंगे।

आपको यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि ‘प्राकृतिक’ कुछ नहीं होता, और ‘निश्चित’ के पीछे कारण होते हैं। वास्तव में, ‘प्राकृतिक’ शब्द बिना उत्तरदायित्व के साधारण लोगों द्वारा अपने लिए बहाने बनाने के लिए उपयोग किया जाता है जब वे ब्रह्माण्ड, जीवन और पदार्थ की घटनाओं को समझाने में असमर्थ हो जाते हैं। वे कल्पना नहीं कर सकते कि ‘प्रकृति’ स्वयं में क्या है। इस प्रकार की धारणा के प्रभाव में आपको लगता है कि यह सब कठिनाईयां निश्चित हैं और यह बस ऐसे ही होता है, जिससे उनमें एक निष्क्रिय और निराशावादी मनोदृष्टि विकसित होती है। इसलिए आपके मानवीय पक्ष को सतर्क रहना चाहिए। इससे भी महत्त्वपूर्ण, आपके फा प्राप्त किये हुए पक्ष को स्पष्ट होना चाहिए।

सतर्क रहें : मैं आपको जानबूझकर कुछ करने को नहीं कह रहा हूँ। मैं केवल आपको फा के सिद्धान्तों को समझाने का प्रयत्न कर रहा हूँ जिससे आपको इसकी स्पष्ट समझ हो। वास्तव में, दाफा केवल मानवजाति की रक्षा के लिए ही नहीं है—यह विभिन्न आयामों में सभी प्राणियों को भी सिखाया जाता है। आपकी ज्ञानप्राप्त, मूल प्रकृति स्वतः ही जान जाएगी कि क्या करना है। अपने मानवीय पक्ष को संजोने से वह आपको ज्ञानप्राप्ति पाने और फा में ऊँचा उठने के लिए समर्थ बनाता है। दाफा सभी चेतन प्राणियों से सामंजस्य बना रहा है, और सभी चेतन प्राणी भी दाफा से सामंजस्य बना रहे हैं। मैंने आपको फा की गंभीरता और पवित्रता के बारे में बताया है जिससे आपके फा के प्रति भ्रम और मिथ्याबोध समाप्त हो जाए।

ली होंगज़ी

जुलाई 5, 1997


   

(67) मानवीय मोहभावों का त्याग करें और सच्ची साधना करते रहें

दाफा के प्रसार के साथ, अधिक से अधिक लोग दाफा को समझने में सक्षम हो रहे हैं। इसलिए हमें एक बात पर ध्यान देना चाहिए : जाति और भेदभाव की मानवीय अवधारणाओं को दाफा में न लाएं। अनुभवी तथा नये शिष्यों दोनों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। जो भी दाफा का अभ्यास करने आता है—चाहे वह कितना भी शिक्षित हो, उसका कितना भी बड़ा व्यवसाय हो, उसका पद कितना भी ऊँचा हो, उसमें कैसे भी विशेष कौशल हों, या उसके पास कैसी भी अलौकिक क्षमताएँ हों—उसे वास्तव में साधना का अभ्यास करना ही होगा। साधना का अभ्यास भव्य और पवित्र है। क्या आप अपनी विशेष मानवीय धारणाओं का परित्याग कर पाएंगे जो आपके लिए एक प्रमुख परीक्षा है जिसे पारित करने में आपको कठिनाई होगी, फिर भी आपको सफल होना होगा। आखिरकार, सच्चाई से साधना अभ्यास करने वाले अभ्यासी होने के नाते, आपको इन मोहभावों का त्याग करना होगा क्योंकि धारणाओं का त्याग किये बिना आप फलपदवी तक कभी नहीं पहुँच सकते।

अनुभवी अभ्यासियों को भी इस बात पर ध्यान देना चाहिए। जैसे-जैसे अधिक लोग फा का अभ्यास करेंगे, आपको नए शिष्यों के मार्गदर्शन पर अधिक ध्यान देना होगा कि वे वास्तव में साधना अभ्यास कर सकें। इस बीच, आप स्वयं सुस्त न हो जाएं। यदि परिस्थितियां अनुकूल हों तो, आप फा के अभ्यास और व्यायाम करने के समय को बढ़ा सकते हैं। दाफा की परंपरा को बनाए रखना, साधना के सिद्धांतों को बनाए रखना, और सच्ची साधना में दृढ़ रहना यह सभी दाफा अभ्यासियों के लिए दीर्घकालीन परीक्षाएं हैं।

ली होंगज़ी

जुलाई 31, 1997


   

(68) बीच का मार्ग अपनाएं

जब भी कोई साधारण या गंभीर समस्या उत्पन्न होती है, दाफा अभ्यासियों को उनकी साधना अभ्यास में भटकने से बचाने के लिए, मैं समय पर उसे इंगित करने के लिए लेख लिखता हूं जिससे अभ्यासियों को उसका पता चले और दाफा को कम हानि पहुंचे। इसका कारण यह है कि क्या हमने सच्ची राह अपनायी है यह केवल अभ्यासियों के उचित साधना अभ्यास पर ही निर्भर नहीं करता; यह भी एक महत्वपूर्ण कारक है कि क्या दाफा का समग्र रूप पवित्र है। इसलिए, आपका गुरु होने के नाते, अक्सर होने वाले भटकावों को मैं ठीक कर दूंगा।

अभ्यासियों की समझ में अंतर होने के कारण, कुछ अभ्यासी हमेशा इस चरम सीमा से दूसरी पर जाते हैं। मेरे लिखित फा को जब भी वे पढ़ते हैं तब वे कार्य करने में अति कर देते हैं, जिससे नयी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। जब मैं आपको अपनी मानवीय समझ बदलने के लिए कहता हूं, तो मैं आपको दाफा को मानवीय सोच के आधार पर समझने को नहीं कह रहा हूं। लेकिन आपको तर्कहीन या सनकी भी नहीं होना चाहिए। मैं चाहता हूं कि आप दाफा को समझने में स्पष्ट रहें।

ली होंगज़ी

अगस्त 3, 1997


   

(69) फा मानव मन को शुद्ध करता है

जैसे-जैसे दाफा का साधना अभ्यास करने वाले अभ्यासियों की संख्या बढ़ेगी, अधिक से अधिक लोग दाफा के बारे में सीखना चाहेंगे। फिर भी उनमें से कुछ ऐसे हैं जो यहां साधना अभ्यास करने नहीं आते हैं। बल्कि, वे दाफा में समाधान ढूंढना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें यह पता चल गया है कि मानव समाज के लिए कोई और मार्ग नहीं रह गया है; इससे पूर्ण रूप से साधकों का संयोजन अशुद्ध हो जाता है। साथ ही, इससे दाफा में दूसरे प्रकार से भी हस्तक्षेप हुआ है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग दाफा से कुछ प्रेरणा प्राप्त करते हैं और वे उसे समाज में एक नागरिक आन्दोलन जैसे शुरु करते हैं। इस प्रकार का फा को क्षति पहुंचाने वाला व्यवहार, जो दाफा से उत्पन्न होता है लेकिन दाफा को मान्य करने में विफल रहता है, अन्य प्रकार से दाफा के विरुद्ध काम करता है। वास्तव में, कोई भी आन्दोलन मानव मन में मूल परिवर्तन नहीं ला सकता है। न ही आन्दोलन की घटना लम्बे समय तक चलती है—समय के साथ लोग हत्तोसाहित हो जाते हैं। उसके बाद, अनुचित घटनाएँ उभरेंगी जिनसे निपटना कठिन होगा। दाफा कदापि इस प्रकार की अवस्था तक नहीं जा सकता।

वर्त्तमान में, मीडिया द्वारा प्रचारित सभी अच्छे नागरिकों और अच्छे कर्मों की बातें—जैसे कि रेडियो, टीवी, समाचारपत्र, इत्यादि—अधिकतर हमारे दाफा के साधकों द्वारा किए गए हैं क्योंकि वे दाफा का साधना अभ्यास करते हैं और उनके नैतिकगुण में सुधार हुआ है। हालाँकि, समाचार यह दावा करते हैं कि उन लोगों नें ऐसा इसलिए किया है क्योंकि वे प्रेरणास्त्रोत या प्रतिष्ठित व्यक्ति, इत्यादि हैं, इस प्रकार वे इस तथ्य को पूरी तरह से नकार देते हैं कि यह उनके दाफा के साधना अभ्यास का परिणाम है। यह मुख्य रूप से स्वयं अभ्यासियों के कारण होता है। साधना अभ्यास महान और भव्य है। तब आप उन्मुक्त और गरिमापूर्ण ढंग से साक्षात्कारकर्ताओं को क्यों नहीं बता सकते कि आप उन वस्तुओं को कर पाते हैं क्योंकि आप दाफा साधना अभ्यास करते हैं? यदि पत्रकार दाफा का उल्लेख नहीं करना चाहते हैं, तो हमें किसी भी ऐसी बात का उत्तरदायित्व नहीं लेना चाहिए जो दाफा को हानि पहुंचाता है और दाफा को मान्यता नहीं देता है। हम सब अच्छे लोग बनने का प्रयत्न कर रहे हैं, और यह समाज और मानवजाति के हित में है। तब हमारे लिए उचित और वैद्य वातावरण क्यों नहीं हो सकता? अभ्यासियों, आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दाफा आपसे सामंजस्य कर रहा है और आप भी दाफा से सामंजस्य कर रहे हैं।

ली होंगज़ी

अगस्त 17, 1997


   

(70) अभ्यासीयों के लिये सिद्धांत जो भिक्षु एवं भिक्षुणियां हैं

हाल में, कई अभ्यासी जो किसी धर्म के भिक्षु और भिक्षुणियां हैं, ने दाफा का साधना अभ्यास आरंभ कर दिया है। उनको शीघ्रता से प्रगति करने में सक्षम होने के लिए, आधुनिक धर्मों में समय के साथ जो बुरा झुकाव हुआ है उनका त्याग करना होगा। इस सम्बन्ध में, साधारण लोगों के बीच साधना अभ्यास करने वाले हमारे दाफा अभ्यासियों को इन लोगों में ऐसी बातें विकसित करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। बुद्ध शाक्यमुनि ने भिक्षु और भिक्षुणियों के लिए जो साधना पद्दति छोड़ी थी वह बहुत ही अच्छी थी। लेकिन आधुनिक भिक्षु और भिक्षुणियों ने इसे बदल दिया है क्योंकि उनमें से कई धन के प्रति अपने मोहभाव का त्याग नहीं कर पा रहे थे। इस विषय में अपनी बात मनवाने के लिए उन्होंने कई बहाने बनाए हैं, जैसे कि मंदिरों का जीर्णोद्धार करना, बुद्ध की प्रतिमाओं का निर्माण करना, बौद्ध धर्मग्रंथों का मुद्रण करना, मंदिरों के रख-रखाव का खर्च संभालना, आदि। इनमें से कोई भी साधना अभ्यास नहीं है, बल्कि, वे सभी आशयों से भरे कार्य हैं जिनका वास्तविक साधना से कुछ लेना-देना नहीं है। इन सबसे कभी कोई भी व्यक्ति निश्चित ही फलपदवी प्राप्त नहीं कर सकता।

यदि आप दाफा की साधना करना चाहते हैं, तो आपको धन और संपत्ति के मोहभावों का त्याग करना होगा। अन्यथा, आप दाफा अभ्यासी होने के आदर्श को कैसे पूरा कर पाएंगे? इसके अतिरिक्त, विशेष स्थितियों को छोड़ कर, जो अभ्यासी भिक्षु और भिक्षुणियां हैं उन्हें मोटर वाहन, विमान या समुद्री जहाज़ से यात्रा करने की अनुमति नहीं है। सभी को पैदल यात्रा करनी चाहिए। केवल कष्टों को भोगने से ही कोई अपने बुरे कर्मों का भुगतान कर सकता है। जब आप भूखें हों तो आप भिक्षापात्र से भिक्षा मांग सकते हैं (आपको केवल भोजन की भिक्षा मांगनी चाहिए, लेकिन कभी भी पैसे या वस्तुओं की नहीं)। रात में, आप विभिन्न क्षेत्रों में दाफा अभ्यासियों के घरों में रह सकते हैं, लेकिन लम्बे समय तक नहीं। आपको अपने लिए कड़ी आवश्यकताएं निर्धारित करनी होंगी! अन्यथा, आप मेरे शिष्य नहीं हैं। क्योंकि जो अभ्यासी भिक्षु या भिक्षुणी होते हैं उनकी साधना करने की परिस्थितियां उन अभ्यासियों से भिन्न होती हैं जो घर में साधना अभ्यास करते हैं, समाज भी आपको साधारण लोगों की तरह नहीं मानता। शीघ्रता से फलपदवी प्राप्त करने के लिए, जो अभ्यासी भिक्षु और भिक्षुणी हैं उन्हें अपने आपको मानव समाज में तपाना होगा। आपको कभी भी सुख-सुविधा और प्रसन्नता का मोहभाव नहीं होना चाहिए, और न ही प्रसिद्धि या लाभ पाने के लिए कोई बहाना बनाना चाहिए। और अपने घर भेजने के लिए धन की मांग तो कदापि नहीं करनी चाहिए। यदि आप सांसारिक विचारों का त्याग नहीं कर सकते, तो आपको भिक्षु या भिक्षुणी नहीं बनना चाहिए था। प्राचीन काल में भिक्षु या भिक्षुणी बनने के लिए कड़ी आवश्यकताएं होती थी। दाफा के अभ्यासी जो भिक्षु या भिक्षुणी हैं उन्हें अपने लिए और अधिक कड़ी आवश्यकताएं निर्धारित करनी चाहिए। जब आप भिक्षु या भिक्षुणी बने हैं तो आप सांसारिक विचारों को छोड़ क्यों नहीं देते?

शिष्यों! जो शिष्य अपने घर में साधना अभ्यास कर रहे हैं, वे धीरे-धीरे, जग के प्रति पूर्ण रूप से मोहभावों का त्याग कर पाएंगे। परन्तु, जो शिष्य भिक्षु या भिक्षुणी होते हैं, यह पहली आवश्यकता है जो उन्हें शुरुआत से ही पूरी करनी होती है, और साथ ही साथ भिक्षु और भिक्षुणी बनने की आवश्यकता भी।

ली होंगज़ी

अक्टूबर 16, 1997


   

(71) वातावरण

दाफा अभ्यासियों के लिए मैंने जो साधना पद्धति छोड़ी है, यह सुनिश्चित करती है कि अभ्यासी वास्तव में स्वयं में सुधार ला सकें। उदाहरण के लिए, वातावरण का निर्माण करने के लिये मैं आपको समूहों में पार्कों में व्यायाम करने के लिए कहता हूँ। यह वातावरण किसी व्यक्ति को सतही तौर पर परिवर्तित करने के लिए सर्वोत्तम माध्यम है। इस वातावरण में दाफा अभ्यासियों ने जो उच्च आचरण स्थापित किया है—सभी बातों और कार्यों को मिलाकर—लोगों को अपनी निर्बलता को जानने और उनकी कमियों को पहचानने में सक्षम बना सकता है; यह उनके मन को परिवर्तित कर सकता है, उनके आचरण को सुधार सकता है, और उन्हें अधिक तेजी से प्रगति करने में सक्षम बना सकता है। इसलिए, नये शिष्यों को या स्वयं सीखने वाले अभ्यासियों को व्यायाम करने के लिए अभ्यास स्थलों पर जाना चाहिए। वर्तमान में चीन में लगभग 4 करोड़ अभ्यासी हैं जो अभ्यास स्थलों पर समूह अभ्यास में प्रतिदिन सम्मिलित होते हैं, और ऐसे करोड़ों अनुभवी अभ्यासी हैं जो अभ्यास स्थलों पर अक्सर नहीं जाते हैं (अनुभवी अभ्यासियों के लिए, यह स्वाभाविक है, क्योंकि यह उनके साधना अभ्यास की अवस्था के परिणामस्वरूप है)। तब भी, नये अभ्यासी होने के नाते, आपको इस वातावरण का अवसर कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए। यह इसलिए क्योंकि समाज में आप जिन लोगों के संपर्क में आते हैं वे सभी साधारण लोग हैं। और फिर, वे साधारण लोग हैं जिनकी मानवीय नैतिकता में तेजी से गिरावट आई है। इस अंधकार में, लोग केवल धारा के साथ ही बह सकते हैं।

ऐसे कई नये दाफा अभ्यासी हैं जो गुप्त रूप से अपने घरों में अभ्यास कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें दूसरों को पता चलने का लोकलाज का डर है। इसके बारे में सोचें : यह किस प्रकार का विचार है? साधारण डर एक ऐसा मोहभाव है जिसे साधना अभ्यास के माध्यम से समाप्त करने की आवश्यकता है। फिर भी आप इस बात से डरते हैं कि दूसरों को यह पता चल जायेगा कि आप दाफा सीख रहे हैं? साधना अभ्यास एक बहुत ही गंभीर विषय है। आपको स्वयं को और फा को कैसे समझना चाहिए? उच्च पदों पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें बाहर जाकर अभ्यास करने में संकोच होता है। यदि आप ऐसी तुच्छ भावना पर भी नियंत्रण नहीं पा सकते, तो आप किसकी साधना कर पाएंगे? वास्तव में, यदि आप अभ्यास स्थल पर चले भी जाते हैं, तो वहां ऐसे लोग नहीं भी हो सकते हैं जो आपको जानते हों। कुछ कार्यस्थलों पर, लगभग सभी अधिकारी दाफा सीख रहे हैं, लेकिन कोई नहीं जानता कि अन्य भी सीख रहे हैं। यह परिवेश स्वयं आपके ही द्वारा बनाया गया है, और यह भी आपके सुधार के लिए आवश्यक है। मैंने अक्सर देखा है कि जब आप फा का अभ्यास करते हैं या व्यायाम करते हैं तो आपकी मनः स्थिति अच्छी होती है, लेकिन जब आप अपने कार्य के या अन्य लोगों के संपर्क में आते हैं तो, आप साधारण लोगों के समान हो जाते हैं। कभी-कभी तो आप साधारण लोगों से और भी बुरे हो जाते हैं। यह एक दाफा अभ्यासी का आचरण कैसे हो सकता है?

मैं आपको अपना अभ्यासी मानना चाहता हूं, लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ, यदि आप स्वयं ही मेरे शिष्य नहीं बनना चाहते हैं? आपके साधना अभ्यास में प्रत्येक मोहभाव एक दीवार है जिसे आपको हटाना है, जो आपके सामने खड़ी है और आपके साधना अभ्यास के मार्ग में बाधा डाल रही है। यदि आप स्वयं फा के प्रति दृढ़ नहीं रह सकते, तो आप साधना अभ्यास नहीं कर सकते। साधारण लोगों के बीच अपने पद को बहुत गंभीरता से न लें। यह मत सोचें कि यदि आप दाफा सीखते हैं तो दूसरे लोग आपको नहीं समझ पाएंगे। इसके बारे में सोचें : लोगों का दावा कि वे वानरों से विकसित हुए हैं इसे भी बहुत सम्मानित समझा जाता है। ब्रह्माण्ड का महान दाफा होते हुए भी, आप उसे उपयुक्त स्थान देने में संकोच करते हैं—यह मानवजाति के लिए बहुत लज्जा की बात है।

ली होंगज़ी

अक्टूबर 17, 1997


   

(72) जड़ें खोदना

हाल ही में, साहित्यिक, वैज्ञानिक और चीगोंग दलों के कुछ बदमाश, जो चीगोंग के विरोध के माध्यम से प्रसिद्ध होने की आशा कर रहे हैं, निरंतर संकट पैदा कर रहे हैं, मानो अंतिम वस्तु जो वे देखना चाहते हैं वह है एक शांतिपूर्ण जगत। देश के विभिन्न क्षेत्रों के कुछ समाचार पत्रों, रेडियो स्टेशनों और टीवी स्टेशनों ने दाफा को हानि पहुँचाने के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रचार साधनों के रूप में इनका सहारा लिया है, जिससे जनता पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा है। यह दाफा को जानबूझकर हानि पहुँचाना था और इसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। ऐसी विशेष परिस्थितियों में, बीजिंग में दाफा अभ्यासियों ने उन लोगों को दाफा को हानि पहुँचाने से रोकने के लिए एक विशेष पद्दति अपनायी—यह वास्तव मे अनुचित नहीं था। यह तब किया गया जब कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था (अन्य क्षेत्रों को उनका दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए)। परन्तु जब शिष्य स्वेच्छा से उन असूचित और अनुत्तरदायी मीडिया एजेंसियों से संपर्क करते हैं और उन्हें वास्तविक स्थिति के बारे में समझाते हैं, तो इसे अनुचित नहीं मानना चाहिए।

मैं यह नहीं कहना चाहता कि यह घटना स्वयं में उचित थी या अनुचित। बल्कि, मैं यह बताना चाहता हूँ कि इस घटना ने कुछ लोगों को उजागर किया है। उन्होंने अभी भी मौलिक रूप से अपनी मानवीय धारणाओं को नहीं बदला है, और वे अभी भी समस्याओं को मानवीय मानसिकता के साथ देखते हैं जहाँ मानव मानव की रक्षा करता है। मैंने कहा है कि दाफा को कभी भी राजनीति में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। स्वयं में इस आयोजन का उद्देश्य मीडिया को हमारी वास्तविक स्थिति को समझने और सकारात्मक रूप से हमारे बारे में जानने में सहायता करना था जिससे वे हमें राजनीति में न घसीटें। दूसरे दृष्टिकोण से बात करें तो, दाफा मानव मन को अच्छा बनने की सीख दे सकता है और समाज को स्थिर बना सकता है। लेकिन आपको स्पष्ट होना चाहिए कि दाफा इन उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि साधना अभ्यास के लिए सिखाया जाता है।

दाफा ने सबसे निम्न स्तर, मानवजाति के अस्तित्व के लिए एक मार्ग बनाया है। फिर, इस स्तर पर मानव रूप के अस्तित्व में व्याप्त विभिन्न प्रकार के मानवीय व्यवहारों में, जिसमें किसी के सामने एक साथ तथ्यों को रखना, और इत्यादि, क्या यह सभी अस्तित्व के अनेक रूपों में से एक नहीं है जिन्हें दाफा ने मानवजाति को निम्नतम स्तर पर दिये हैं? बस यह बात है कि जब मनुष्य कुछ कार्य करता है, अच्छा और बुरा दोनों का अस्तित्व साथ-साथ होता है। इसिलिए, संघर्ष और राजनीति हैं। हालांकि, बहुत ही विशेष परिस्थितियों में, दाफा अभ्यासियों ने निम्न स्तर के फा के उस दृष्टिकोण को अपनाया है, और उन्होंने अपने अच्छे पक्ष का पूर्ण रूप से उपयोग किया है। क्या यह वह कार्य नहीं है जिसने फा का मानवजाति के स्तर पर सामंजस्य बनाया? बहुत ही विशेष चरम स्थिति को छोड़कर, इस प्रकार का दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए।

मैं लंबे समय से देख रहा हूं कि कुछ लोगों का दाफा की सुरक्षा करने का मन नहीं है, बल्कि वे मानव समाज की कुछ वस्तुओं को सुरक्षित रखने का आशय रखते हैं। यदि आप साधारण व्यक्ति होते तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती—निश्चित रूप से एक अच्छा मनुष्य होना अच्छी बात है जो मानव समाज की रक्षा करता है। लेकिन अब आप एक साधक हैं। आप मूलभूत रूप से दाफा को किस दृष्टिकोण से देखते हैं—यह भी वह है जिसके बारे में मैं आपको बताना चाहता हूं। आपके साधना अभ्यास के दौरान, मैं आपके सभी मोहभावों को उजागर और उन्हें जड़ों तक खोदकर निकालने के लिए किसी भी माध्यम का उपयोग करूँगा।

आपको और ऊँचे स्तर पर उठाने के लिए आप हमेशा मुझ पर निर्भर नहीं रह सकते, जबकि आप स्वयं कुछ नहीं करते। केवल फा द्वारा स्पष्ट रूप से कहे जाने के बाद ही आप अपने कदम उठाते हैं। यदि यह स्पष्ट रूप से सिखाया नहीं जाता, तो आप आगे नहीं बढ़ते, या फिर पीछे हटने लगते हैं। मैं इस प्रकार के व्यवहार को साधना अभ्यास नहीं मानता। निर्णायक क्षण पर जब मैं आपको मानवीयता से सम्बन्ध तोड़ने के लिए कहता हूं, लेकिन आप मेरी बात नहीं मानते। कोई भी अवसर फिर से नहीं आएगा। साधना अभ्यास एक गंभीर विषय है। दूरी अधिक और अधिक बढ़ गयी है। साधना अभ्यास में किसी भी मानवीय बात को जोड़ना अत्यंत भयंकर है। वास्तव में, केवल एक अच्छा व्यक्ति बने रहना भी ठीक है। लेकिन आपको स्पष्ट होना चाहिए कि आप अपना मार्ग स्वयं चुनें।

इस घटना के माध्यम से, यह देखा गया है कि कई व्यक्ति अभ्यासियों के बीच रहकर, उन्हें हानि पहुंचाते हैं। उचित ढंग से सोचने और स्वयंसेवक केंद्रों को अपने विचार बताने के स्थान पर, उन्होंने अभ्यासियों के बीच अफवाहें फैलायी, विवाद उत्पन्न किये, गुटबंदी की, और सबसे बुरे साधारण मानवीय माध्यम अपनाये। इससे भी बढ़कर, कुछ लोगों ने बिना सोचे-समझे शिष्यों को दूर भगाने का प्रयत्न भी किया। जिन शिष्यों को आपने भगाने का प्रयत्न किया है उन्होंने आपसे कई गुना बढ़कर स्वयं की साधना की है। क्या आपने इसके बारे में सोचा है? आपने इतने क्रोध के साथ तर्कहीन व्यवहार क्यों किया? क्या वह मानसिक स्थिति आपको आपके उस प्रबल मोहभाव को पहचानने में सक्षम नहीं बना सकती थी? मैं सभी को यह बताना चाहता हूँ : यह फा आपकी कल्पना से कई गुना विशाल है, और उसके नियम और सिद्धान्तों को आप पूर्ण रूप से कभी भी जान या समझ नहीं पाएंगे।

मैं किसी विशेष प्रणाली पर महत्त्व नहीं देता; मैं विभिन्न माध्यमों से आपके गहराई में छुपे हुए मोहभावों को उजागर कर और उनसे छुटकारा दिलाऊंगा।

ली होंगज़ी

जुलाई 6, 1998


   

(73) आपका अस्तित्व किसके लिए है?

लोगों के लिए सबसे कठिन होता है अपनी धारणाओं का त्याग करना। कुछ लोग नहीं बदल पाते, चाहे उन्हें अपने झूठे सिद्धान्तों के लिए अपने प्राण ही क्यों न देने पड़े। लेकिन यह धारणाएँ जन्म के बाद ही बनती हैं। लोगों का यह मानना है कि यह न हिलने वाली अवधारणाएँ—अवधारणाएँ जो उन्हें बिना सोचे-समझे किसी भी मूल्य को चुकाने के लिए विवश कर देती हैं—उनके अपने विचार हैं। यहां तक कि सच्चाई देखने के बाद भी वे इसे अस्वीकार कर देते हैं। वास्तव में, मनुष्य की जन्मजात पवित्रता और निर्दोषता के अतिरिक्त, सभी धारणाएँ जन्म के बाद बनती हैं और किसी व्यक्ति का वास्तविक रूप नहीं होती।

ये बनी हुई धारणाएँ यदि अधिक प्रबल हो जाती हैं, तो उनकी भूमिका विपरीत होकर मनुष्य के वास्तविक सोच और आचरण पर हावी हो जाती हैं। उस समय, वह व्यक्ति अभी भी शायद यह सोचता है कि वे उसके अपने विचार हैं। वर्तमान के सभी लोगों के साथ लगभग ऐसा ही है।

प्रासंगिक, महत्वपूर्ण विषयों के निवारण में, यदि कोई जीव बिना किसी पूर्व धारणाओं के वस्तुओं का वास्तव में आकलन करता है, तो यह व्यक्ति वास्तविकता में स्वयं पर नियंत्रण रखने में सक्षम होगा। यही स्पष्टता, विवेक है, और उससे भिन्न है जिसे औसत लोग "बुद्धिमत्ता" कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता है, तो वह बनी बनायी धारणाओं या बाहरी विचारों द्वारा निर्देशित होता है। हो सकता है उनके लिए संघर्ष में वह अपना पूरा जीवन समर्पित कर दे; लेकिन जब वह बूढ़ा हो जाता है, तो वह यह भी नहीं जान पाएगा कि उसने इस जीवनकाल में क्या किया। हालाँकि, उसने अपने इस जीवनकाल में कुछ भी प्राप्त नहीं किया, लेकिन इन बनी बनायी धारणाओं में बहकर उसने असंख्य गलतियाँ की हैं। इसलिए, अपने अगले जीवन में उसे अपने कुकर्मों के अनुसार कर्मों का भुगतान करना होगा।

जब कोई व्यक्ति उत्तेजित हो जाता है, तब उसके विचारों और मनोभावों को विवेक नहीं बल्कि भावनाएं नियंत्रित करती हैं। जब किसी व्यक्ति की विभिन्न अवधारणाएँ, जैसे कि विज्ञान, धर्म, या किसी विचारधारा, आदि में उसकी आस्था को बुद्ध के सत्य द्वारा चुनौती दी जाती है, वह तब भी उत्तेजित हो जाता है। इससे मानवीय प्रकृति पर बुरा पक्ष हावी हो जाता है, जिससे वह और भी अधिक विवेकहीन हो जाता है; यह बनी बनायी धारणाओं द्वारा नियंत्रित होने का एक परिणाम है। वह बिना सोचे समझे निष्कर्ष पर पहुंच जाता है या बात को उलझा देता है। पूर्वनिधारित सम्बन्ध रखनेवाला व्यक्ति भी इसके कारण अपना पूर्ववर्ती अवसर गंवा सकता है, जिससे वह अपने ही कर्मों को अनंत, गहरे पछतावे में परिवर्तित कर देता है।

ली होंगज़ी

जुलाई 11, 1998


   

(74) फा में विलीन हो जाएं

वर्त्तमान में, अधिक से अधिक लोग दाफा के शिष्य बन रहे हैं, और अब ऐसा चलन है जिसमें नये लोगों को अच्छी बोधात्मक समझ है। अति-वामपंथी विचारधारा जो अतीत में समाज में थी उससे अब बाधा नहीं होने के कारण, और इसे स्वीकार करने की कोई धारणात्मक प्रक्रिया नहीं होने के कारण, उन्हें फा के सामूहिक अभ्यास के दौरान विचार-विमर्श में अधिक समय बिताने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए उन्हें फा अभ्यास में अधिक समय बिताना चाहिए जिससे वे शीघ्रता से अपने स्तर में ऊपर उठ सकें। जितना अधिक आपका मन धारण करेगा, परिवर्तन उतनी ही शीघ्रता से होगा।

मैंने एक बार यह बताया था कि अच्छा व्यक्ति क्या है और बुरा व्यक्ति क्या है। ऐसा नहीं है कि जो बुरा कार्य करते दिखायी देता है वह बुरा व्यक्ति है और जिसने कुछ अच्छा किया वह अच्छा व्यक्ति है। कुछ लोगों के मन बुरे विचारों से भरे हुए हैं—बस यह बात है कि वे उसे व्यक्त नहीं करते और अपेक्षाकृत अच्छी तरह से चालाकी से छुपा देते हैं; लेकिन वास्तव में ये बुरे लोग हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग, पहले से ही बुरे नहीं होते हैं लेकिन कभी-कभी बुरे कार्य करते हैं; यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे लोग बुरे हों। तब हमें अच्छे लोगों और बुरे लोगों की पहचान कैसे करनी चाहिए?

एक व्यक्ति एक पात्र के समान होता है, और उसमें जो है वैसा ही वह होता है। व्यक्ति सब कुछ जो आँखों से देखता है और कानों से सुनता है, वह है : हिंसा, वासना, साहित्यिक कार्यों में सत्ता के लिए संघर्ष, व्यवहारिक जगत में लाभ के लिए संघर्ष, धन की पूजा, आसुरिक-प्रकृति की अन्य अभिव्यक्तियाँ, इत्यादि। इनसे भरे हुए उसके मस्तिष्क के साथ, ऐसा व्यक्ति वास्तव में एक बुरा व्यक्ति है, चाहे वह कैसा भी प्रतीत हो। एक व्यक्ति का व्यवहार उसके विचारों द्वारा नियंत्रित होता है। ऐसी वस्तुओं से भरे मन के साथ, एक व्यक्ति क्या करने में सक्षम हो सकता है? यह केवल इसलिए है क्योंकि सभी का मन कुछ हद तक कम या अधिक दूषित होता है जिसके कारण लोग उस समस्या के उभरने का पता नहीं लगा पाते हैं। अनुचित सामाजिक प्रवृत्तियाँ जो समाज के सभी पक्षों में प्रदर्शित होती हैं वे लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से परिवर्तित कर रही हैं, मानवजाति को विषाक्त कर रही है, और बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को उत्पन्न कर रही है जिसे लोग आसुरिक प्रकृति रखने वाले "अपारंपरिक", "अन्यायी," और "अनैतिक" मनुष्य कहते हैं। यह वास्तव में चिंताजनक है! भले ही समाज की अर्थव्यवस्था ने प्रगति की है, यह इन लोगों के हाथों में बर्बाद हो जाएगा क्योंकि उनके पास सोचने की मानवीय नैतिकता नहीं हैं।

दूसरी ओर, यदि कोई व्यक्ति करुणामयी, परंपरागत विचारों को स्वीकार करता है जो हजारों वर्षों से प्रचलित हैं, उचित मानवीय आचरण और आदर्शों में विश्वास रखता है, और सभी अच्छाईयों से भरा है, तो ऐसे व्यक्ति का आचरण कैसा होगा? चाहे वह व्यक्ति प्रदर्शित करे या न करे, वह वास्तव में एक अच्छा व्यक्ति है।

एक शिष्य के रूप में, यदि उसके मन में दाफा के अतिरिक्त कुछ नहीं भरा है, तो ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से एक सच्चा साधक है। इसलिए आपको फा अभ्यास कैसे करना है इसकी स्पष्ट समझ होनी चाहिए। पुस्तकों को अधिक पढ़ना और पुस्तकों का अधिक अभ्यास करना यही आपकी वास्तविक उन्नति की कुंजी है। अधिक सरलता से समझाया जाये तो, जब तक आप दाफा का अध्ययन करते हैं, आप परिवर्तित हो रहे हैं; जब तक आप दाफा का अध्ययन करते हैं, आप ऊँचा उठ रहे हैं। दाफा के असीमित तत्वों के साथ उसके पूरक—व्यायाम—आपको फलपदवी तक पहुँचने में सक्षम करेंगे। समूह में पढ़ना या स्वयं अकेले में पढ़ना दोनों एक समान है।

पूर्वजों की एक कहावत है, "सुबह ताओ को सुनने के बाद, शाम को वह मर सकता है।" आज मानवजाति में कोई भी इसका अर्थ वास्तव में नहीं समझ सकता है। क्या आप जानते हैं कि जब किसी व्यक्ति का मन फा को स्वीकार कर लेता है, तो उसके मन का वह भाग जो फा को स्वीकार कर लेता है वह फा के साथ आत्मसात हो जाता है? उस मनुष्य की मृत्यु होने पर वह भाग जिसने फा को सुना है वह कहां जायेगा? फा का अधिक अभ्यास करने, अपने मोहभावों का त्याग करने, और विभिन्न मानवीय धारणाओं से मुक्त होने को जो मैं कहता हूँ इसका कारण यह है कि, इससे न केवल आप उस भाग को अपने साथ ले जा सकते हैं, बल्कि फलपदवी तक भी पहुंच सकते हैं।

ली होंगज़ी

अगस्त 3, 1998


   

(75) बुद्ध फा और बुद्धमत

जब कभी बुद्ध का उल्लेख किया जाता है तब बहुत से लोग बुद्धमत के बारे में सोचते हैं। वास्तव में, बुद्धमत मानवीय जगत में बुद्ध फा की अभिव्यक्तियों का केवल एक रूप है। बद्ध फा की अभिव्यक्ति मानवीय जगत में अन्य रूपों में भी होती है। दूसरे शब्दों में, बुद्धमत सम्पूर्ण बुद्ध फा का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

बुद्धमत में सबकुछ केवल बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा नहीं सिखाया गया था। विश्व में बुद्धमत के अन्य रूप हैं जो बुद्ध शाक्यमुनि को अपना गुरु नहीं मानते हैं। वास्तव में, कुछ का बुद्ध शाक्यमुनि से कोई सम्बंध नहीं है। उदाहरण के लिए, तिब्बती बुद्धमत का पीला संप्रदाय महावैरोचन तथागत की पूजा करते हैं, और वे बुद्ध शाक्यमुनि को महावैरोचन तथागत के बुद्ध का फा शरीर मानते हैं। जबकि तिब्बती बुद्धमत का श्वेत संप्रदाय, मिलारेपा को पूजनीय मानते हैं और उनका बुद्धमत से कोई सम्बंध नहीं है, न ही वे शाक्यमुनि के बुद्धमत का उल्लेख करते हैं। उस समय के उनके श्रद्धालु बुद्ध शाक्यमुनि का नाम तक नहीं जानते थे, बुद्ध शाक्यमुनि कौन थे इसकी तो बात ही नहीं है। तिब्बती बुद्धमत के अन्य संप्रदायों ने बुद्ध शाक्यमुनि को भिन्न-भिन्न ढंग से समझा है। थेरवाद ने हमेशा स्वयं को बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा सिखाया गया परंपरागत बुद्धमत माना है, क्योंकि प्रणाली के अनुसार, बुद्ध शाक्यमुनि के युग के दौरान की साधना विधि वास्तव में उन्हें विरासत में मिली है। इसने मूल उपदेशों और पहनावे को वैसे ही बनाये रखा है, और यह केवल बुद्ध शाक्यमुनि की उपासना करता है। चीनी बुद्धमत को चीन में बताये जाने से पहले बदल दिया गया था। साधना अभ्यास करने की विधि में बहुत अधिक बदलाव किया गया था, जिसमें केवल बुद्ध शाक्यमुनि की उपासना के स्थान पर अनेक बुद्धों की उपासना होती थी। इस बीच, उपदेशों की संख्या दोगुनी हो गई है और प्राचीन चीन के लोक धर्मों के संस्कारों को सम्मिलित किया गया है। उनके धार्मिक समारोहों के दौरान, चीनी संगीत वाद्ययंत्र—जैसे लकड़ी की मछली, घंटियाँ, घंटे और ढोल—का उपयोग किया गया है, और उन्होंने अपने कपड़ों की शैली को प्राचीन चीनी लोक परिधान में बदल दिया है। इसका नाम बदलकर "महायान" कर दिया गया था और यह बुद्ध शाक्यमुनि के प्रारंभिक बुद्धमत से बहुत भिन्न हो गया। इसलिए, थेरवाद ने उस समय महायान को शाक्यमुनि के बुद्धमत के रूप में मान्यता नहीं दी।

मैंने बुद्धमत के संदर्भ में बुद्ध फा और बुद्धमत के बीच के संबंधों को संबोधित करने के लिए उपरोक्त का उल्लेख किया है। अब मैं इसकी चर्चा ऐतिहासिक दृष्टिकोण से करता हूं। पश्चिमी समाज में, खुदाई में मिले प्राचीन ग्रीक संस्कृति के अवशेषों में, इस 卍 प्रतीक की भी खोज की गई थी। वास्तव में, नूह के बाढ़ से पहले के सुदूरकाल में, लोग बुद्ध की उपासना भी करते थे। बाढ़ के समय, पश्चिमी एशिया में रहने वाले प्राचीन यूनानी वंश और हिमालय के दक्षिण-पश्चिम में रहने वाले कुछ लोग बच गए थे। तब उन्हें "ब्राह्मण" कहा जाता था, और वे आज के श्वेत भारतवासी बन गए। वास्तव में, शुरुआत में ब्राह्मणवाद में भी बुद्ध की उपासना होती थी। बुद्ध की उपासना की परंपरा को उन्होंने वंशानुगत रूप से प्राचीन ग्रीक से अपनाया था जो, उस समय, बुद्ध को "देवता" कहते थे। लगभग एक हजार वर्ष बाद, ब्राह्मणवाद ने अपने रूप-परिवर्तन की शुरुआत की, उसी प्रकार जैसे आधुनिक महायान में बुद्धमत में परिवर्तन हुआ, तिब्बती बुद्धमत में परिवर्तन हुआ, जापानी बुद्धमत में परिवर्तन हुआ, इत्यादि। उसके बाद हजार वर्षों के दौरान प्राचीन भारत में, ब्राह्मणवाद के धर्मविनाशकाल की शुरुआत हुई। लोग बुद्ध के स्थान पर अन्य कुटिल वस्तुओं की उपासना करने लगे। तब तक ब्राह्मणों ने बुद्ध में विश्वास करना छोड़ दिया था। इसके स्थान पर, जिनकी वे उपासना करते थे वे सभी असुर थे। पूजा अनुष्ठान के रूप में पशुओं का वध और बलि चढ़ायी जाने लगी। बुद्ध शाक्यमुनि के जन्म के समय तक, ब्राह्मणवाद पूर्ण रूप से एक दुष्ट धर्म बन चुका था। इसका अर्थ यह नहीं है कि बुद्ध परिवर्तित हो गए थे, बल्कि यह कि धर्म दूषित हो चुका था। प्राचीन भारत के बचे हुए सांस्कृतिक अवशेषों में, पर्वतीय गुफाओं में अब भी पूर्व ब्राह्मणवाद के समय की मूर्तियाँ मिल सकती हैं। देवताओं की तराशी गयी मूर्तियाँ सभी बुद्ध की छवियों से मेल खाती हैं। वे चीन के बुद्धमत में बुद्ध की मूर्तियों के बीच भी पायी जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, कई प्रमुख गुफाओं में ऐसी मूर्तियाँ है जिसमे दो बुद्ध एक दूसरे के सामने बैठे हैं, इत्यादि। बुद्ध तो तब भी बुद्ध थे—यह धर्म था जो भ्रष्ट हो गया था। धर्म देवता या बुद्ध का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। यह मानव मन की अनैतिकता थी जिसने धर्म को विकृत कर दिया।

यह सब कुछ यह दर्शाता है कि बुद्ध फा शाश्वत है और बुद्ध फा ब्रह्मांड की प्रकृति है। यह महान बुद्ध फा है जो बुद्धों का सृजन करता है, और ऐसा नहीं है कि बुद्ध शाक्यमुनि ने बुद्ध फा का सृजन किया है। बुद्ध शाक्यमुनि को बुद्ध फा का ज्ञानोदय हुआ, उनके प्राप्ति की स्थिति के स्तर तक का ज्ञानोदय।

मानव सभ्यता के इस चक्र के संदर्भ में मुझे कुछ और टिप्पणियां करनी है। क्या आप यह जानते हैं कि ताओ एक प्रकार के देवता हैं; बुद्ध दूसरे प्रकार के देवता हैं, यहोवा, ईसा और संत मेरी भी एक प्रकार के देवता ही हैं? उनकी प्राप्ति की स्थिति और शारीरिक रूप उनकी साधना के उद्देश्यों और ब्रह्मांड के दाफा की उनकी समझ में अंतर के परिणामस्वरूप भिन्न होती हैं। यह बुद्ध फा है जिसने इस विशाल ब्रह्माण्ड का सृजन किया, न कि इन बुद्ध, ताओ और देवताओं ने। मनुष्यजाति इतना जानती है। जो कुछ मानवजाति अभी नहीं जानती वह और भी अधिक विशाल है! क्या बुद्ध शाक्यमुनि ने एक बार यह केवल तथागत बुद्ध के बारे में नहीं कहा था कि, वे इतने अधिक हैं जितने कि गंगा नदी में रेत के कण? क्या इन बुद्धों की शिक्षाएँ बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा सिखाए गए धर्म के समान हो सकती हैं? यदि और जब वे मानव समाज में आये, तो क्या उनका दिया गया ज्ञान, बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा सिखाए गए धर्म के प्रत्येक शब्द से मेल खा सकता है? बुद्ध शाक्यमुनि से पहले जो छः बुद्ध आए थे, क्या उन्होंने वही धर्म सिखाया जो बुद्ध शाक्यमुनि ने सिखाया था? बुद्धमत में इसका उल्लेख है कि भविष्य के बुद्ध, बुद्ध मैत्रेय, मानव जगत में अपनी शिक्षाओं का प्रचार करने आएंगे। क्या वे फिर बुद्ध शाक्यमुनि के शब्द दोहराएँगे? मुझे यह देखकर दुःख होता कि बुद्धमत इस स्थिति पर पहुंच गया है, वास्तव में साधना अभ्यास करने के स्थान पर मूर्खतापूर्वक धर्म में ही ग्रसित हो गया है। पाखंडी और धार्मिक कपटी गंभीर रूप से साधना अभ्यास के स्थलों और भिक्षुओं दोनों को भ्रष्ट कर रहे हैं। पुनः विचार करें तो, यह इतना आश्चर्यजनक नहीं है। बुद्ध शाक्यमुनि ने वास्तव में एक बार धर्मविनाशकाल की स्थिति के बारे में बात की थी। आधुनिक बुद्धमत आज के ब्राह्मणवाद से आखिर कितना भिन्न है?

वर्तमान में, मैं इस जगत में एक बार फिर फा की शिक्षा प्रदान करने के लिए आया हूं—प्रत्यक्ष रूप से ब्रह्मांड के मूल फा को सिखाने। कुछ लोग इस तथ्य को स्वीकार करने का साहस नहीं रखते हैं—इसलिए नहीं कि वे स्वयं के साधना अभ्यास को लेकर चिंतित हैं, बल्कि धर्म की रक्षा के उद्देश्य से या क्योंकि वे अपने साधारण मानवीय भावनाओं को रुकावट पैदा करने देते हैं। वे बुद्ध के साथ धर्म की बराबरी करते हैं। कुछ अन्य हैं जो अपनी साधारण मानवीय सोच का उपयोग करते हुए विरोध करते हैं, क्योंकि बुद्धमत में उनकी प्रसिद्धि को चुनौती दी जाती है। क्या यह कोई छोटा मोहभाव है? जो छुपे हुए उद्देश्यों से बुद्ध फा और बुद्धों की झूठी निंदा करने का भी साहस करते हैं, वे पहले से ही नर्क में प्रेत बन चुके हैं। बस केवल इतना है कि पृथ्वी पर उनका जीवन अभी समाप्त नहीं हुआ है। वे हमेशा स्वयं को किसी प्रकार के धर्म का विद्वान समझते हैं। आखिर वे बुद्ध फा के बारे में वास्तव में जानते ही कितना हैं! कई बार, जैसे ही बुद्ध का उल्लेख किया जाता है, वे तुरंत ही इसे बुद्धमत से संबंधित करते हैं; जैसे ही बुद्ध विचारधारा का उल्लेख होता है, वे सोचते हैं कि यह उनके संप्रदाय का बुद्धमत है; जैसे ही बुद्ध फा का उल्लेख किया जाता है, वे इसे वैसा ही मानते हैं जैसा वे समझते हैं। विश्वभर में कई लोग हैं जो लंबे समय से पहाड़ों की कंदराओं में साधना अभ्यास कर रहें हैं। उनमें से कई बुद्ध विचारधारा की विभिन्न साधना प्रणालियों का अनुसरण करके साधना अभ्यास करते हैं, जो सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। उन्हें शाक्यमुनि के धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। उन धार्मिक कपटियों की बात करें तो जो इन अवधारणाओं या परिभाषाओं के बारे में भी स्पष्ट नहीं हैं, उनमें फालुन दाफा की आलोचना करने की किस प्रकार की योग्यता है? अतीत में, ईसा के प्रकट होने पर यहूदी धर्म डगमगा गया था। दो हजार पांच सौ वर्ष पहले, शाक्यमुनि के प्रकटीकरण ने ब्राह्मणवाद को हिला दिया था। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग इतिहास से कभी सकारात्मक सीख नहीं ले सकते हैं। इसके स्थान पर, वे हमेशा अपने स्वार्थ के लिए नकारात्मक सीख लेते हैं। ब्रह्मांड में, सृजन, स्थिरता और पतन का एक नियम है। कुछ भी स्थिर और अपरिवर्तनीय नहीं है। ऐसे बुद्ध हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालों में इस जगत में लोगों को बचाने के लिए आते हैं। इतिहास इस प्रकार विकसित होता है। भविष्य में मानवजाति भी बुद्ध फा के बारे में जानेगी।

ली होंगज़ी

दिसम्बर 17, 1998


   

(76) बीजिंग के अनुभवी अभ्यासियों के लिए

बीजिंग के अनुभवी अभ्यासियों के लिए :

मैं पंजीकरण के लिए आपके आवेदन पर अपने कुछ विचार साझा करना चाहता हूँ। हम चीन के “खेल के सामान्य प्रशासन” को अपनी स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं। हमें सबसे पहले उन्हें स्पष्ट रूप से सूचित करना चाहिए कि :

1. हमारा प्रणाली स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिए एक चीगोंग अभ्यास नहीं है। बल्कि, यह आध्यात्मिक विकास के लिए है। हालाँकि, यह हमारे अभ्यासियों को उनके रोगों को ठीक करने और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने में सहायता करने में सक्षम है।

2. हमारे अभ्यास के अभ्यासी औपचारिक रूप से संगठित नहीं हैं, और हमने एक ऐसा मार्ग अपनाया है जो विस्तृत है और बिना किसी विशिष्ट प्रारूप या संरचना के है। हम किसी भी धन या भौतिक चीजों को [अभ्यास के लिए, या उसकी ओर से] संचित करने की अनुमति नहीं देते हैं, न ही हम अधिकार के किसी पद की पेशकश करते हैं या कुछ पदों को नामित करते हैं। हम [फालुन गोंग के] अभ्यासियों को अपने आप काम करने और अपने क्षेत्र में सरकारी प्रशासन के साथ अपने अभ्यास को अव्यवस्थित ढंग से पंजीकृत करने से पूरी तरह मना करते हैं, जो हमारे नियमों का उल्लंघन करता है, या कुछ पदों को नामित करता है, अपने स्वयं के नियम बनाता है, या स्वास्थ्य या धोखाधड़ी वाली चीगोंग प्रथाओं की गतिविधियों में सम्मिलित होता है।

3. मुझे लगता है कि आप चीन के “खेल के सामान्य प्रशासन” को सूचित कर सकते हैं कि “चीन चीगोंग विज्ञान अनुसंधान सोसायटी” से मेरे हटने का उद्देश्य यह था कि मैं उन तथाकथित चीगोंग प्रथाओं से जुड़ना नहीं चाहता था। उन प्रथाओं का उद्देश्य लोगों का धन लेकर धोखा देना है; यहां तक ​​कि वे जो लोगों को अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने में सहायता करने में सक्षम होने के लिए माने जाते है, वे भी धन के पीछे पड़े हुए हैं। चीगोंग गुरु के कुछ "मूल्यांकन" और बाद में "पदनाम" हुए हैं, लेकिन चीगोंग गुरु केवल दशकों के आध्यात्मिक विकास के बाद ही वह बन सकते हैं जो वे हैं, न कि ऐसे मूल्यांकन के माध्यम से पदनाम द्वारा। इस तरह के पदनामों का पालन करना समाज के लिए उत्तरदायी ना होना और हानिकारक है, और यह सभी प्रकार की बुरी मंशा को बढ़ावा दे सकता है—इस प्रकार के मोहभाव बिल्कुल वही हैं जिन्हें हम अपने अभ्यास में हटाने में काम करते हैं। इस कारण से, हमें उन अभ्यासों के लोगों के साथ बिल्कुल भी जुड़ना नहीं चाहिए और उनका अनुसरण नहीं करना चाहिए।

यह सबसे अच्छा होगा यदि हम बीजिंग के अभ्यासियों को चीन के सभी अभ्यासियों की ओर से राष्ट्रीय प्रशासन के साथ [हमारे अभ्यास] को पंजीकृत करवा सकें। अन्य क्षेत्रों के अभ्यासियों को व्यक्तिगत रूप से पंजीकरण नहीं करवाना चाहिए या अपने क्षेत्रीय प्रशासनिक संस्थाओं के साथ आवेदन जमा नहीं करना चाहिए। यदि राष्ट्रीय प्रशासन के साथ एक भी पंजीकरण अव्यवहारिक सिद्ध होता है, तो हमारे अभ्यासियों को बिना किसी संगठन के, फा का अध्ययन करना और स्वेच्छा से अभ्यास करना जारी रखना चाहिए—वे स्वेच्छा से सुबह के अभ्यास में सम्मिलित हो सकते हैं—इस प्रकार हमारे अभ्यास की विशिष्ट विशेषताओं और शुद्धता को संरक्षित कर सकते हैं।

ली होंगज़ी

25 दिसंबर, 1998


   

(77) शांदोंग फालुन दाफा सहायता केंद्र के लिए

शांदोंग फालुन दाफा सहायता केंद्र के लिए:

चिंगयुन अभ्यासियों द्वारा मंदिर या मठवासी सुविधा बनाने के प्रयास के संबंध में, आपको उन्हें स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि यह ऐसा कुछ नहीं है जो हमारा दाफा करना चाहता है, इसका दाफा के आध्यात्मिक अभ्यास से कोई लेना-देना नहीं है, और उन्हें इस प्रकार के मुद्दे पर अपना ध्यान नहीं लगाना चाहिए। मठवासी जीवन के लिए समर्पित लोगों द्वारा मंदिर बनाने की इच्छा व्यक्तिगत रूप से उनकी अपनी पहल है, और यह मुद्दा केवल मठवासी जीवन के लिए समर्पित लोगों से संबंधित है। पिछले वर्षों में, क्योंकि मठवासी व्यक्तियों ने अपने गुरु के रूप में हमारे दाफा अभ्यास को अपनाया था, इसलिए मैंने अपने शिष्यों के सिर पर छत की आवश्यकता के मुद्दे पर विचार किया, और इस प्रकार मैंने इस मुद्दे पर कुछ ध्यान दिया। लेकिन अब इस मुद्दे ने लोगों के मन को विचलित कर दिया है और कुछ लोगों को फा का अध्ययन करते समय अपने विचारों को शांत करने में असमर्थ बना दिया है। और घर पर शांति से फा का अध्ययन करने के स्थान पर, अन्य क्षेत्रों के कुछ अभ्यासी चिंगयुन चले गए और इस सब में उलझ गए। इस मुद्दे ने हमारे अभ्यासियों की आध्यात्मिक साधना में गंभीर रूप से हस्तक्षेप किया है। कुछ गैर-मठवासी अभ्यासियों ने भी कुछ हद तक मंदिर निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, और जब अन्य अभ्यासियों ने बताया कि इस प्रकार का व्यवहार दाफा की शिक्षाओं के अनुरूप नहीं है, तो उन्होंने यह दावा करके अपने मोहभाव को छुपाया कि गुरु यहाँ आए थे, और इत्यादि। उनके इस प्रकार के व्यवहार ने हमारे अभ्यासियों की अपनी दैनिक साधना में बहुत गंभीर रूप से हस्तक्षेप किया है। वे अपने मोहभाव में उलझ गए हैं और अपनी समस्याओं को पहचानने में विफल रहे हैं, भले ही वे जो कर रहे हैं वह दाफा के अभ्यास के तरीके के विरुद्ध हो। हमारे अभ्यासियों से कहें कि वे सभी मोहभाव त्याग दें और फा का अध्ययन करें, और अन्य क्षेत्रों के लोगों को घर लौटने का परामर्श दें।

दाफा में आध्यात्मिक अभ्यास जिस प्रकार किया जाता है, इसे परिवर्तित नहीं करना चाहिए चाहे आप कहीं भी हों। एक गैर-मठवासी व्यक्ति को किसी मठवासी व्यक्ति का अनुसरण नहीं करना चाहिए और उसके साथ सभी ओर नहीं घूमना चाहिए, विभिन्न क्षेत्रों में एक अभ्यासी से दूसरे अभ्यासी के पास जाना तो दूर की बात है, या मंदिर बनाने के नाम पर अभ्यासियों से धन भी नहीं माँगना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि मठवासी सुविधा के निर्माण के लिए एक निश्चित राशि दान करना अभ्यासी की साधना के लिए सहायक होगा। इसके विपरीत, इसका साधना और आध्यात्मिक उत्थान से कोई सम्बन्ध नहीं है। और यह सीमित वित्तीय साधनों वाले अभ्यासियों के लिए एक प्रकार का भार उत्पन्न कर सकता है, जिससे उनकी साधना में बाधा उत्पन्न हो सकती है। मैं उन चीजों में स्वयं को सम्मिलित नहीं करता जो व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से करना चाहते हैं, फिर भी [इन अभ्यासियों द्वारा प्रदर्शित] व्यवहार निश्चित रूप से मेरे मार्गदर्शन के अनुरूप नहीं है, और इसका आध्यात्मिक अभ्यास से कोई सम्बन्ध नहीं है। शिष्यों, आप कुछ चीजें करने की अपनी इच्छा को क्यों नहीं छोड़ सकते?!

वास्तव में, जब वे अनुचित काम कर रहे थे, तो मैं उन्हें संकेत देता रहा, लेकिन वे जो करना चाहते थे, उस पर उनका जोर उनके मोहभावों को ढक देता था, और वे न तो उनका सामना करना चाहते थे और न ही उनका सामना करने का साहस करते थे। जब उन्होंने फा का अध्ययन किया, तो वे अपने महाभावों को पकड़े रहे, और ऐसे शब्दों की खोज करते रहे जो उनके मोहभावों का समर्थन कर सकें और उनका उपयोग उनके मोहभावों को बनाए रखने के लिए आधार के रूप में किया जा सके। किसी व्यक्ति को इस प्रकार से फा का अध्ययन नहीं करना चाहिए, न ही उसे आध्यात्मिक रूप से स्वयं को विकसित करने के लिए इस प्रकार से आगे बढ़ना चाहिए। मैंने अनेक बार कहा है कि अभ्यासियों को सभी ओर यात्रा नहीं करनी चाहिए, और उन्हें शांत रहना चाहिए और अपने विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मैंने यह भी सिखाया है कि किसी को भी सभी ओर जाकर अभ्यासियों को फा “सिखाने” की अनुमति नहीं है। उपर्युक्त व्यक्तियों के व्यवहार ने विभिन्न क्षेत्रों में काफी प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। मैं उनका अवलोकन करता रहा हूँ और उन्हें अपने आप जागृत होने के अवसर दिए हैं। लेकिन बार-बार उन्होंने मेरे द्वारा दिए गए अवसरों को ठुकरा दिया है, और बार-बार ऐसे काम किए हैं जो दाफा के विरुद्ध हैं। वे न केवल स्वयं दृढ़ता से साधना करने में असमर्थ हैं, बल्कि उन्होंने अन्य अभ्यासियों के काम में भी बाधा डाली है। उन्होंने बार-बार अपने अवसर खो दिए हैं। बेहतर होगा यदि आप सुधर जाएं! मैं ध्यान रखूँगा कि वे अब से किस मार्ग पर चलने का निर्णय लेते हैं... जब कोई समस्या हो, तो कारण जानने के लिए आत्मनिरीक्षण करें—यह एक दाफा शिष्य और एक जो अभ्यासी नहीं हैं उनके बीच मूलभूत अंतर है।

ली होंगज़ी

3 मार्च, 1999


   

(78) दाफा का लाभ नहीं उठाया जा सकता

दाफा सभी जीवों को बचा सकता है। महान तथ्यों के समक्ष, वे तथाकथित "उच्च-स्तरीय जीव" जो बचने के लिए तीनों लोकों में आ रहे हैं और वे जो तीनों लोकों में से हैं जिन्होंने दाफा को हानि पहुंचायी है इसे अब और नकार नहीं सकते। फिर भी, एक समस्या आयी है और साधारण मनुष्यों के बीच प्रकट हुई है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग जो दाफा का विरोध करते थे या दाफा में विश्वास नहीं करते थे, वे भी दाफा साधना अभ्यास सीखने के लिए आ गए हैं। दाफा सभी जीवों को बचा सकता है। मैं इसे सीखने आने वाले किसी पर आपत्ति नहीं जताता, और वास्तव में मैं सभी जीवों को दाफा सिखाता आ रहा हूं। मुख्य बात यह है कि ये लोग मन से मुझे अपना सच्चा गुरु नहीं मानते हैं। दाफा सीखने का उनका उद्देश्य यह है कि वे इसका लाभ उठाना चाहते हैं उन वस्तुओं को बचाने के लिए जिन्हें वे छोड़ नहीं पाते हैं, धार्मिक बातें या देवता। यह फा को चुराने जैसा है। दाफा का लाभ उठाने का उद्धेश्य स्वयं एक अक्षम्य अपराध है। उनमें से कुछ के लिए, हालांकि, उनके मन का मानवीय पक्ष इतना सचेत नहीं है; इसलिए, मैं उन सभी को ध्यान से देखते आ रहा हूं। क्योंकि मुझे लगता है कि जिस भी कारण से उन्होंने दाफा का मार्ग अपनाया है, यह अब भी उनके लिए एक दुर्लभ अवसर है, मैं उन दोषियों को एक और अवसर दे रहा हूं। आखिरकार, उन्होंने एक ऐसे समय में जन्म लिया है जब दाफा व्यापक रूप से प्रसारित किया जा रहा है, और वे एक मानव शरीर में भी हैं। मैं इसकी प्रतीक्षा कर रहा हूं कि कब वे इसको समझेंगे।

वास्तव में ऐसे लोगों का एक समूह भी है जो इस इस समझ के साथ आया और अपनी मूल समझ को पूरी तरह से बदल दिया, दृढ़ होते हुए, सच्चे दाफा अभ्यासी बन गये। लेकिन अभी भी ऐसे लोगों का एक और समूह है जो बदलना नहीं चाहते है और जो लंबे समय से दाफा में लड़खड़ा रहे हैं। मानव जगत में दाफा की स्थिरता बनाये रखने के लिए, मैं उनके बने रहने में अब और समर्थन नहीं कर सकता। इस प्रकार, वे वास्तव में अपना अवसर गंवा देंगे। जैसा कि मैंने कहा है, ऊपरी परिवर्तन दूसरों को दिखावा करने के लिए है। आपको बचाया जा सकता है या नहीं, यह आपके स्वयं के मन के परिवर्तन और उत्थान पर निर्भर करता है। यदि वहाँ परिवर्तन नहीं होता है, तो आप सुधर नहीं सकते और कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। वास्तव में, यह जुआन फालुन को पढ़ने के कारण है कि आपके शरीर को सतही तौर पर कुछ आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त, आपने कुछ भी प्राप्त नहीं किया है। इतने व्याधिग्रस्त मन के साथ, क्या आप कुछ और प्राप्त कर सकते हैं? मनुष्यों! इसके बारे में सोचें! आपको किस पर विश्वास करना चाहिए? आपको किस पर विश्वास नहीं करना चाहिए? आप साधना क्यों करते हैं? आप किसके लिए साधना करते हैं? आपके जीवन का अस्तित्व किसके लिए है? मुझे विश्वास है कि आप इस तरह के प्रश्नों पर ठीक प्रकार से ध्यान देंगे। अन्यथा, जो आप खो देंगे आप कभी भी उन तक पहुंच नहीं पाएंगे। जब दाफा स्वयं को मानवजाति के सामने प्रकट करेगा, तो केवल यही वे वस्तुएं नहीं होंगी जिन्हें आप गंवा देंगे।

ली होंगज़ी

मार्च 16, 1999


   

(79) दृढ़ संकल्प और दृढ़ता

बुद्ध फा का साधना अभ्यास प्रभावशाली है। साथ ही, यह गंभीर भी है। अभ्यासियों, आप केवल यह जानते हैं कि इस जगत में सत्य और असत्य का अस्तित्त्व होता है, लेकिन आप नहीं जानते कि अन्य आयामों में जो जीव हैं—देवताओं सहित—उनके विभिन्न स्तरों के कारण, पूरे ब्रह्मांड में उनमें अत्यधिक भिन्नता होती है। इसके कारण वस्तुओं और सत्य की उनकी समझ में अंतर हो जाता है। विशेष रूप से, इस परिस्थिति के कारण कि वे फा-सुधार के संबंध की वास्तविकता के बारे में अस्पष्ट हैं, कुछ ने गंभीर हस्तक्षेप और प्रतिरोध किये हैं, शिष्यों के संपर्क में आने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग करके उन्हें हानि पहुंचाई है। इस प्रकार उन्होंने कुछ शिष्यों को जिनके दिव्य नेत्र निम्नस्तर पर खुले हैं, दाफा के बारे में संदेह और भ्रम उत्पन्न किया है। तीनों लोकों (तथाकथित "देवताओं") और विभिन्न तथाकथित "उच्च-स्तरीय जीवों" के जीवों में से जो फा-सुधार से बचने के लिए उच्च आयामों से भागकर आए हैं, उनमें से अधिकांश को फा-सुधार के सत्य का पता नहीं है और फा-सुधार का विरोध कर रहे हैं। वे शिष्यों को अपनी स्वयं की धारणाओं के आधार पर उनकी कुछ समझ को प्रदर्शित कर या बताकर या शिष्यों को कुछ वस्तुएं प्रदान कर, इत्यादि, और इस प्रकार वे शिष्यों की आस्था और दृढ़ संकल्प को क्षति पहुंचा रहे हैं। वास्तव में, वे सभी बहुत ही निम्नस्तर वस्तुएं और भ्रामक झूठ हैं। क्योंकि वे देवता हैं, वे बहुत दयालु दिखाई देते हैं, ऐसे शिष्यों के समूह जिनकी दाफा की अपर्याप्त समझ होती है उन्हें दुविधा में डाल देते हैं। जिसके कारण, कुछ लोगों ने दाफा का अभ्यास करना छोड़ दिया है, और कुछ तो विपरीत दिशा में भी चले गए हैं। वर्तमान में, यह समस्या बहुत ही गंभीर है। इसके कारण, इन लोगों की स्थिति अत्यंत शोचनीय है। साथ ही, वे कभी भी उसे पुनः प्राप्त नहीं कर पाएँगे जो उन्होंने गंवा दिया है, और यह उनके जीवन में एक बहुत बड़ी आपदा है।

मैंने इन सबका आपको पहले ही आगे और प्रगति के लिए आवश्यक लेख और जुआन फालुन में उल्लेख किया है : "कोई अन्य साधना मार्ग नहीं," और "अपका दिव्य नेत्र खुला होते हुए साधना अभ्यास कैसे करना चाहिए।" आप स्वयं को ठीक से क्यों नहीं संभाल सकते जब आप उन तथाकथित "उच्च प्राणियों" को देख लेते हैं, जो आपसे बात करते समय दयालु होने का ढोंग करते हैं? क्या वे आपको फलपदवी तक पहुंचा सकते हैं? आप इसके बारे में क्यों नहीं सोचते हैं? आपके दाफा सीखने से पहले उन्होंने आपकी उपेक्षा क्यों की थी? आपके दाफा सीखने के बाद वे आपके बारे में इतने चिंतित क्यों हो गए हैं? साधना गंभीर है। मैंने आपको पहले ही फा के सभी सिद्धांतों को सिखा दिया है। ये सभी वस्तुएं ऐसी हैं जिनके माध्यम से आपको गुजरना होगा और परीक्षाएं जिनमें आपके व्यक्तिगत साधना अभ्यास में आप ही को उत्तीर्ण होना होगा। उन्हें पारित करने में विफल होना यह आप पर निर्भर करता है। अब तक मैं आपको इसे समझने और मार्ग पर वापस लौटने के अवसर प्रदान करता रहा हूं। दाफा के लिए, मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर पाया और मुझे यह लेख लिखना पड़ा। मैं जानता हूं कि जब आप इस लेख को पढेंगे तो आप निश्चित ही जागृत हो जाएँगे; लेकिन यह आपकी स्वयं की साधना से नहीं हुआ है। अन्य लोगों के साथ हस्तक्षेप क्यों नहीं हुआ? मैंने कहा है कि त्रिलोक के बाहर से फा-सुधार प्रारंभ हुआ है, और इसलिए त्रिलोक के अंदर कुछ तथाकथित "देवता" इसे नहीं देख पाये। इसलिए, उन्होंने उन वस्तुओं को करने का साहस किया जिसने दाफा को क्षति पहुंचायी। जब फा-सुधार ने त्रिलोक और मानव जगत में प्रवेश किया, तो उनके बचकर निकलने का कोई स्थान नहीं रहा। हालांकि, उनके द्वारा किए गए सभी कार्यों की सूची है, जो भविष्य में उनका स्तर बन जाएगा जिसे उन्होंने स्वयं निर्धारित किया है। कुछ अपने स्तर को कम कर लेंगे, और कुछ मनुष्य बन जाएंगे। कुछ नर्क में प्रेत बन जाएंगे, और कुछ ने वह सब जो किया है उसके भुगतान के रूप में अंतहीन और बार-बार विनाश के माध्यम से पूर्ण रूप से नष्ट हो जाएंगे; इसका कारण यह है कि जो स्तर उन्हें मिलेंगे वे उनके स्वयं के नैतिकगुण के सच्चे प्रदर्शन के माध्यम से प्राप्त होंगे। इस प्रकार, मानव जगत में इन बातों को और इसके साधारण मनुष्यों की बात तो छोड़ दें, उच्चस्तरीय प्राणी भी दाफा में अपने स्तरों को पुनर्व्यवस्थित कर रहे हैं। फा-सुधार में, कुछ ऐसे हैं जो ऊपर उठते हैं, कुछ ऐसे हैं जो नीचे गिरते हैं और कुछ ऐसे हैं जो नष्ट कर दिये जाते हैं। चाहे वे देवता हों, मानव हों या प्रेत हों, सभी को भिन्न-भिन्न लोकों में किसी एक स्तर पर नये प्रकार से स्थान दिया जायेगा—जीवित रहने से लेकर पूर्ण उन्मूलन तक। मानवजाति को संजोया जाता है क्योंकि आप साधना करने में सक्षम हैं; यही कारण है कि आपको इस प्रकार के उच्च-स्तरीय सिद्धांत सिखाये जाते हैं। आपको संजोया जाता है क्योंकि साधना के माध्यम से आप वास्तव में पवित्र फा और नैतिक आत्मज्ञान के साथ महान ज्ञानप्राप्ति वाले जीव बनने में सक्षम हैं।

ली होंगज़ी

मार्च 16, 1999


   

(80) आसुरिक प्रकृति को नष्ट करें

पश्चिमी अमेरिकी दाफा अनुभव साझा सम्मेलन के परिप्रेक्ष्य में, मोहभावों के साथ फा सुनने वाले कुछ लोगों ने दावा किया कि साधना अभ्यास शीघ्र ही समाप्त हो जायेगा और गुरु अपने साथ कुछ अभ्यासिओं को लेकर चले जायेंगे। यह एक ऐसा कृत्य है जो दाफा को गंभीर रूप से क्षति पहुंचाता है, और यह आसुरिक-प्रकृति का विशाल प्रदर्शन है। मैंने कब इस प्रकार के कथन कहे थे? यह आपके मोहभावों के कारण आपके बातों को अनुचित रूप से समझने से आता है। आप कैसे जानते हैं कि आप फलपदवी प्राप्त करेंगे? जब आप अपने स्वयं के मोहभावों को भी छोड़ नहीं सकते, तो आप फलपदवी कैसे प्राप्त कर सकते हैं? दाफा गंभीर है। यह वैसा कैसे कर सकता है जो दुष्ट धर्म करते हैं? आसुरिक-प्रकृति के अन्य कौन से रूप हैं जिन्हें आपने आश्रय दे रखा है? आपको दाफा के विपरीत दिशा में क्यों जाना है? यदि आप अभी भी मेरे अभ्यासी बने रहना चाहते हैं, तो तुरंत ही बातें करते समय असुरों द्वारा आपका अनुचित लाभ उठाने से बचें।

अभ्यासियों, मैंने बार-बार कहा है कि साधना अभ्यास गंभीर और पवित्र दोनों है। साथ ही, हमारी साधना, समाज, मानवजाति और स्वयं के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए। आप साधारण लोगों के समाज के अनुरूप और अच्छाई से साधना क्यों नहीं कर सकते? उन सभी के लिए जिन्होंने दूसरों को बताया कि कोई समय नहीं बचा है, कि वे अपनी अंतिम व्यवस्था कर रहे हैं, या कि गुरु उन्हें छोड़कर और किस-किसको अपने साथ ले जाएंगे, इत्यादि, मेरा सुझाव है कि आप तुरंत इस प्रभाव को पहले जैसा कर दें जो आपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पन्न किये हैं। असुरों द्वारा किसी भी वाक्य का लाभ नहीं उठाया जाना चाहिए। फलपदवी प्राप्त करने का हमारा मार्ग स्पष्ट और निष्कपट होना चाहिए।

ली होंगज़ी

मार्च 30, 1999


   
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