न्यूजीलैण्ड में हुए सम्मेलन में दी गयी फा की सीख
 

ली होंगज़ी
मई 8, 1999 ~ न्यूजीलैण्ड

(तालियां) सभी का अभिवादन!

हम में से जो यहां बैठे हैं, उनमें से कुछ ने मुझे अभी अभी सिडनी फा सम्मेलन में देखा है। जबकि आप में से अधिकांश न्यूजीलैंड के शिष्य हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो दूसरे क्षेत्रों से आए हैं। अपनी साधना प्रक्रिया में, आपको अपनी साधना से संबंधित कई प्रश्न उठते होंगे। मेरे यहाँ आने का मुख्य उद्देश्य आप सभी के साथ मिलना है और, साथ ही, इस फा सम्मेलन के दौरान आपके कुछ प्रश्नों की ओर ध्यान देना है। यह सम्मेलन आप सभी का सही अर्थ में सुधार करने और फलपदवी प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए है। यह आपके एक साथ एकत्रित होने से आपकी कमियों का पता लगाने में सहायक होगा, क्योंकि आप देखेंगे कि दूसरों ने कैसे साधना की है और आप स्वयं की कमियों का पता लगा सकेंगे। मुझे लगता है कि हमारे फा सम्मेलन का यही लक्ष्य होना चाहिए।

साधना करते समय एक व्यक्ति के मन में सभी प्रकार के प्रश्न उठते ही हैं। वास्तव में, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि लंबे समय तक फा का अभ्यास करने के बाद आप में से कई लोगों ने ऐसा अनुभव किया होगा कि अब अधिक प्रश्न नहीं रहे हैं। आपके पास उतने प्रश्न क्यों नहीं हैं? ऐसा लगता है कि मुझे देखकर भी आपके मन में मुझे पूछने के लिए कोई प्रश्न नहीं उठते हैं। वास्तव में, इसका मुख्य कारण यह है कि फा के अभ्यास के माध्यम से आपने धीरे-धीरे फा की अपनी समझ में सुधार किया है, और आप वास्तव में फा के अनुसार सुधार करने में सक्षम रहे हैं। जब आप फा के आधार पर फा को समझने में सक्षम होते हैं, तो आपके लिए सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन क्योंकि दाफा अभी भी साधारण मानव समाज में फैलाया जा रहा है, अभी भी नए लोग सीखने के लिए आ रहे हैं, और इसलिए यह स्वभाविक है कि बहुत से लोग लगातार प्रश्न उठाते रहेंगे। आपने देखा होगा कि हमारे फा सम्मेलनों में बहुत से पूछे गए प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं। अर्थात्, सभी सम्मेलनों में पूछे गए कई प्रश्न पहले से ही अन्य फा सम्मेलनों में पूछे जा चुके होते हैं। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि सीखने के लिए नये शिष्य आते रहते हैं, और नये शिष्य ऐसे प्रश्न उठाते हैं जो फा का अभ्यास करने के शुरुआती चरणों के दौरान उनका सामना जिन वस्तुओं से होता है उनसे संबंधित होते हैं। हालांकि, इन प्रश्नों में से कुछ उनके होते हैं जो अनुभवी शिष्यों के हैं या वे जो कुछ विषयों के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं उनके होते हैं। तब भी मुझे लगता है कि जब तक आप पुस्तक पढ़ते रहेंगे और फा का अभ्यास करते रहेंगे, आपको सब कुछ ज्ञात होता जाएगा। जब तक आप पुस्तक पढ़ते रहेंगे और फा का अभ्यास करते रहेंगे, आप वह सब जान जाएंगे जो आपको विभिन्न स्तरों पर जानना चाहिए।

निःसंदेह, जब आपको अपनी साधना के दौरान वाक्य के आंतरिक अर्थ का अनुभव होता है, आप वास्तव में पहले से ही उसी स्तर पर होते हैं। यह केवल इतना है कि आप अभी भी अपने मानवीय सोच के आधार पर साधारण मानव विचार रखते हैं। "साधारण मानवीय विचारों" का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि आप में अभी भी साधारण लोगों की विभिन्न भावनाएं और इच्छाएं हैं, आप में अभी भी विभिन्न प्रकार के साधारण मानवीय मोहभाव हैं, और अभी भी आप में साधारण मानवीय भावनाएं हैं जब आप किसी चीज़ के विषय में सोचते हैं—जो सभी साधारण मानवीय विचार हैं—और जन्म के बाद आपकी बनाई गयी अवधारणाएं भी होती हैं, और कर्म भी उसका एक भाग है, विचार कर्म। क्योंकि आप साधना करने की प्रक्रिया में हैं, इन वस्तुओं का निश्चित रूप से अस्तित्व हैं; यह केवल उनकी मात्रा की बात है। लेकिन साधना के माध्यम से ये कम से और कम हो सकते हैं। ऐसे किसी व्यक्ति के लिए, जिसने लंबे समय तक साधना नहीं की है, या जिसमें उतनी लगन नहीं है, साधारण मानवीय विचारों की मात्रा अधिक ही होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि, सभी के पास इतने साधारण मानवीय विचार हैं कि यदि आप उच्च आदर्शों की सोच के साथ वस्तुओं का मूल्यांकन नहीं करते हैं, तो आपके पास पूछने के लिए बहुत से प्रश्न होंगे। वास्तव में, यह साधारणतः बहुत अधिक साधारण मानवीय अवधारणाओं के कारण होता है। आपको फा के कई सिद्धांतों को एक निश्चित स्तर पर एकदम से स्पष्ट रूप से समझने की अनुमति नहीं है जैसे तब होता है जब आपका गोंग खुल गया हो या आपने ज्ञानप्राप्ति कर ली हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके पास बहुत से साधारण मानवीय विचार हैं, और एक मानव मन को बुद्ध की बातों को जानने की अनुमति नहीं है। फा के वास्तविक सिद्धांतों और दिव्यों के आयामों की वास्तविक स्थितियों को मनुष्यों को नहीं बताया जा सकता है। साधना करते समय ऊपरी तौर पर, जब आप ज़ुआन फालुन में फा के सिद्धांतों की एक पंक्ति या अनुच्छेद को समझते हैं, तो आप वास्तव में उस स्तर पर पहले से ही हैं। आपके पास साधारण मानवीय विचार होने के कारण आपको इतना सब जानने की अनुमति नहीं है। आपके मन का वह भाग जिसमें साधारण मानवीय विचार हैं और जिसकी पूरी तरह से साधना नहीं हुई है उसे बुद्ध की बातों को सीखने की अनुमति नहीं है। यही कारण है। लेकिन जब आप उस पंक्ति के सही आंतरिक अर्थ को समझते हैं या विभिन्न स्तरों पर इसके अलग-अलग अर्थों को समझ पाते हैं, तब आप वास्तव में उस स्तर पर होते हैं।

आपको अभी भी साधारण लोगों के बीच साधना नियमित रखने और साधारण मानवीय मोहभावों को हटाने की आवश्यकता है। जब आप साधना कर रहे होते हैं तो आपके साधारण मानवीय विचारों को तुरंत ही नहीं हटाया जा सकता है। यदि उन्हें पूरी तरह से हटा दिया गया, तो आप साधना नहीं कर पाएंगे। मैं हमेशा कहता हूँ कि यदि किसी व्यक्ति के पास कोई साधारण मानवीय विचार नहीं है, तो वह सब कुछ समझ जाएगा जो अन्य लोग सोच रहे होंगे। किसी व्यक्ति के हावभाव या आंखों की गतिविधियों को देखने भर से ही उसे पता चल जाएगा कि वह व्यक्ति क्या सोच रहा है, वह व्यक्ति क्या चाहता है, या यह कि कोई बात कितने आगे तक जा सकती है। आप इन बातों को अभी तक क्यों नहीं जान पाए हैं? इसका कारण यह है कि आपके पास अभी भी साधारण मानवीय विचार हैं और आप अभी भी अपने आप को साधारण लोगों के साथ भ्रमित कर रहे हैं। जब आप साधारण लोगों के स्तर से ऊपर उठते हैं, आप पाएंगे कि साधारण लोगों के बीच की बातों को एक दृष्टि डालने से ही देखा जा सकता है। लेकिन आप सभी लोग साधारण लोगों के बीच साधना कर रहे हैं। यदि आप साधारण लोगों के बीच साधना नहीं करते, तो आप सुधार नहीं कर पाएंगे। यदि आज ही आप अपने सभी साधारण मानवीय विचारों और बुरे कारकों को हटा सकते हैं, जिसमें आपकी विभिन्न साधारण मानवीय अवधारणाएँ सम्मिलित हैं, और पूरी तरह से शुद्ध और निर्मल बन जाते हैं, तो आप पाएंगे कि आप अब साधना करने में सक्षम नहीं हैं। क्यों? जैसा कि आप जानते हैं, फलपदवी प्राप्त करने के बाद एक दिव्य अब साधना नहीं कर सकता है, क्योंकि अब उसके सारे भ्रम टूट चुके होंगे। यदि आपके पास वे साधारण मानवीय विचार नहीं हैं, अब आप साधारण मानवीय स्थिति में नहीं रहेंगे और सभी भ्रम टूट चुके होंगे। आपको अपना अतीत और भविष्य पता चल जाएगा, साथ ही दूसरों का भी। इसीलिए अब साधना करते रहना आपके लिए कठिन हो जाएगा। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि जैसे ही आप अपने अतीत और भविष्य को जान जाते हैं आप आगे साधना नहीं कर सकते है, क्योंकि आपकी ज्ञात बातों की भी सीमाएं होंगी। मैं जिसकी बात कर रहा था, वह पूर्ण ज्ञानप्राप्ति की स्थिति पर पहुंचने के विषय में था—सब कुछ जानने के विषय में, सर्वज्ञ होने के विषय में। तो इसमें एक अंतर है। दूसरे शब्दों में, जब आप साधारण लोगों के बीच दाफा का अभ्यास कर रहे होते हैं, ऐसा नहीं हो सकता है कि आपके पास फलपदवी प्राप्त करने से पहले कोई साधारण मानवीय विचार नहीं बचे हों। लेकिन साधारण मानवीय विचारों के साथ, आपको विभिन्न स्तरों पर वस्तुओं की सही स्थिति जानने की अनुमति नहीं है। यह ऐसे ही होता है।

क्योंकि आपके पास साधारण मानवीय विचार हैं, जब भी आप साधना में सतर्क नहीं होते हैं तो आप निश्चित रूप से दाफा को एक साधारण मानवीय मानसिकता और विचारों के साथ देखेंगे। इस तरह की बातें अवश्य ही होंगी। साथ ही यह भी कहना चाहता हूँ कि आपकी साधना के दौरान संघर्ष और परीक्षाएं होंगी, और ऐसी बातें जो साधारण मानवीय सोच को हटाने में अड़चनें पैदा करेंगी। यही साधना है। दाफा अभ्यास में परत दर परत मानवीय विचारों को हटाया जाता है। जैसा कि आप जानते हैं, यह प्याज़ की परतों को एक-एक करके छीलने के समान है जब तक कि आखिरकार मूल तक नहीं पहुंच जाते। दाफा की साधना में, एक व्यक्ति सब कुछ एक साथ नहीं हटा सकता है। यदि यह इस तरह से किया जाता, आप साधारण लोगों के बीच साधना नहीं कर पाते, क्योंकि आपकी ऊपरी सतह एक साधारण मनुष्य की सतह की तरह नहीं होती।

कुछ और भी है जो आपकी दाफा की साधना के दौरान होगा। अर्थात्, कभी-कभी साधना में आपको लगेगा कि आपने बहुत अच्छा किया है। जब आप कुछ समस्याओं का सामना करते हैं, तो आपका मोहभाव वास्तव में उसी क्षण या उसी समय हट जाता है, और बिना कोई घटना घटे आप उससे गुज़र जाते हैं। लेकिन कुछ समय बाद आप पाते हैं कि उसी स्थिति और उसी समस्या के साथ वही मोहभाव फिर से उभर आता है। तब आपको पता चलता है कि यह पूरी तरह से जड़ से समाप्त नहीं हुआ था—वास्तव में, यह फिर से उभर आया है। किंतु यह वास्तव में सच नहीं है। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि सीढ़ी की तरह ही दाफा की साधना को विभिन्न स्तरों में बाँटा गया है। जैसे कि मैने प्याज़ का उदाहरण दिया था, जो परत छील दी गयी थी अब वह नहीं रही है, लेकिन अभी भी और परतें हैं जो छीली नहीं गयी हैं। दूसरे शब्दों में, उन्हें परत दर परत हटाया जाता है, और केवल जब उन सभी को हटा दिया जाएगा तो उसका अस्तित्व नहीं रहेगा।

कभी-कभी साधना में आपके लिए इस तथ्य के कारण परीक्षा में सफल होना वास्तव में कठिन हो जाता है क्योंकि आप फा को अच्छी तरह से समझ नहीं पाए हैं। यद्यपि आप जानते हैं कि आपको फा के सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने चाहिए, तब भी आप कभी-कभी अच्छी तरह नहीं कर पाते हैं। कुछ लोग ऐसा सोच सकते हैं, ''इतनी कठिन साधना के बाद भी मुझ में मोहभाव क्यों है? क्या इसका अर्थ यह है कि मैं फलपदवी प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाऊंगा?'' ऐसा सोचने वाले बहुत सारे लोग हैं। वास्तव में, मैं कहना चाहता हूँ कि आपको ऐसा नहीं सोचना चाहिए। चाहे आप परीक्षा में अच्छी तरह से सफल हुए हो या नहीं, या आपने अपने सभी मोहभावों को हटाया है या केवल कुछ को, आप वास्तव में साधना कर रहे हैं। यही साधना है। क्योंकि आप परीक्षा में अच्छी तरह से सफल नहीं हुए हैं इसलिए आपको पछतावा होगा। ''मैं इसमें अच्छी तरह से सफल क्यों नहीं हुआ? अगली बार मैं और अच्छा करने का प्रयत्न करुंगा।'' यदि आप प्रत्येक परीक्षा, प्रत्येक विपत्ति और प्रत्येक परख में वास्तव में अच्छी तरह से सफल हो सकते हैं, मैं कहूँगा कि आपको अब साधना करने की आवश्यकता नहीं है और आप को फलपदवी मिल जानी चाहिए थी, क्योंकि कुछ भी आपके साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकता। केवल एक ज्ञानप्राप्त व्यक्ति या कोई व्यक्ति जिसने ज्ञानप्राप्ति कर ली हो, वही उस स्तर तक पहुंच सकता है।

लेकिन आपको एक बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि जो भी उन्होंने सुना वह उन्हें समझ आ गया है, लेकिन उन्होंने जिन मोहभावों को पकड़ रखा है वे उन्हें विपरीत समझ की ओर ले जाते हैं: ''चाहे हम परीक्षा में अच्छी तरह से सफल होते हैं या नहीं यह तब भी साधना ही है। इसलिए मुझे लगता है कि हमें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। यहां तक ​​कि यदि मैं उनमें अच्छी तरह से सफल होता हूँ या नहीं तब भी मुझे भविष्य में चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।'' यह अस्वीकार्य है। यदि आप स्वयं साधना नहीं करते हैं और आप लगन से आगे नहीं बढ़ते हैं, तो यह साधना नहीं करने से अलग नहीं है। ये इस बात के दो पक्ष हैं। हमारे फा सिद्धांत, निम्न स्तरों से लेकर उच्च स्तरों तक, वस्तुओं को देखने और विभिन्न स्तरों पर फा के सिद्धांतों को समझने का मार्ग प्रदान करते हैं। आपकी समझ उस स्तर पर सही हो सकती है, लेकिन जब आप एक अलग स्तर पर जाते हैं या अपने दृष्टिकोण को बदलते हैं, आप पाएंगे कि आपकी समझ पहले जैसी नहीं रही है। इसी प्रकार आप धीरे-धीरे फा को समझते जाएंगे जैसे-जैसे आप सुधार करते और साधना करते जाएंगे।

अभी जो भी मैंने कहा, वह आपको यह समझाने के लिए था कि साधना करते समय आपके पास बहुत सारे प्रश्न होना अनिवार्य है। लेकिन मुझे लगता है कि यदि आप सभी फा के अनुरूप वास्तव में सुधार कर सकते हैं, और फा के अनुरूप फा को समझ सकते हैं, तो आपका सुधार संभवतः बहुत तेज़ी से होगा। इसके अतिरिक्त, यह ऐसा भी हो सकता है कि जिन प्रश्नों को आप नहीं समझ सके और वह सभी प्रश्न जिन्हें आप ने अभी तक नहीं उठाया है उन सभी के उत्तर फा में मिल सकते हैं। इसलिए एक ही मार्ग है कि पुस्तक को और पढ़ें—केवल व्यायाम करने पर ध्यान केंद्रित न करें। अपेक्षाकृत अधिक कॉकेशियन छात्रों और अन्य जातीय समूहों के छात्रों का मानना है कि चीगोंग अभ्यास का अर्थ केवल व्यायाम करना है। "इसके अतिरिक्त और क्या है? पुस्तक पढ़ने का क्या अर्थ है?" आप लोग ऐसा ही सोचते होंगे। यह वास्तव में आपकी समझ में सबसे बड़ा दोष है। क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि आपके चीगोंग अभ्यास और अन्य शारीरिक व्यायामों की क्रियाओं के बीच क्या अंतर है? ऊपरी तौर पर, अंतर न्यूनतम है। तब चीगोंग अभ्यास किसी व्यक्ति में सुधार करने, किसी व्यक्ति को ठीक करने और उसे स्वस्थ बनाने में सक्षम क्यों होता है, जबकि अन्य शारीरिक व्यायाम नहीं होते है? इसका स्पष्ट कारण यही है कि यह साधना है। साधना का आंतरिक अर्थ पूरी तरह से केवल व्यायाम में ही समाहित नहीं है; इसके अतिरिक्त, साधना में व्यायाम केवल एक पूरक साधन है। आप वास्तव में सुधार कर पाते हैं और विभिन्न स्तरों तक पहुंच सकते हैं इसका मूल कारण आपकी फा की समझ है; अर्थात, यदि आपको उच्च स्तरों पर ऊपर उठना है तो आपको फा के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। इसीलिए मैंने कहा था कि किसी के गोंग की ऊंचाई उसके नैतिकगुण की ऊंचाई के बराबर है। यह एक अटल सत्य है।

अतीत में लोग सोचते थे, "यदि मैं ताओ की साधना करने जा रहा हूँ या चीगोंग अभ्यास कर रहा हूँ, तो मुझे बस कुछ विशेष कौशल और तकनीकों को ढूंढने या कुछ विशेष क्रियाओं को अपनाने की आवश्यकता होगी और मैं अपनी साधना में प्रगति कर पाऊंगा, है ना?" लोगों को उन प्रकार की बातों को जानने की अनुमति थी, लेकिन उन्हें साधना में आगे बढ़ने के वास्तविक कारणों को जानने से प्रतिबंधित किया गया था। यदि ऐसा इस प्रकार नहीं होता, तो सभी दिव्य बन जाते। तो कहने का तात्पर्य यह है कि लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए विधियां और सिद्धांत थे, और ऐसे मार्ग थे जो किसी व्यक्ति को साधना के माध्यम से ऊपर उठने में सक्षम बना सकते थे। आज हम उन्हें और अधिक स्पष्ट रूप से समझा रहे हैं: फा और उसके सिद्धांत आपके मार्गदर्शन करने के लिए हैं। ताओ की साधना के सभी अतीत की पद्धतियों में से, अधिकतर जो सार्वजनिक किए गए थे वे सांसारिक लघु-मार्ग अभ्यास थे।

जिन्हें साधारण लोगों द्वारा महान मार्ग माना जाता है वे लाओ ज, यीशु, और शाक्यमुनि की शिक्षा हैं, बाकी सब केवल सांसारिक लघु-मार्ग अभ्यास हैं; वे अन्य वस्तु और भी कम प्रगाढ़ हैं, उनकी क्रिया जटिल है, और वे फा के कई सिद्धांतों को नहीं जानते हैं, इसलिए उनके साथ साधना करना वास्तव में कठिन है। वे अभ्यास केवल कठिनाइयों को सहने करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और वे लंबे समय तक कठिनाइयों को सहन करने के माध्यम से साधना करते हैं। यद्यपि कठिनाइयाँ सहने से व्यक्ति में सुधार हो सकता है और उसके कुछ बुरे कर्म हट सकते हैं, वह फा के सिद्धांतों को बहुत धीरे-धीरे समझने लगता है, और यही कारण है कि वह अपनी साधना में इतनी धीमी गति से आगे बढ़ता है। लेकिन आज मैं जो सिखा रहा हूँ वह है दाफा—संपूर्ण ब्रह्मांड का सिद्धांत। इस तरह के प्रगाढ़ फा को सिखाया जा रहा है ताकि लोग सुधार कर सकें, निश्चित रूप से सुधार अधिक तेजी से होगा। फा के ये सिद्धांत न केवल अज्ञानता और गलत धारणाओं को हटाते हैं, और सभी मानवीय विचारों को सुधारते हैं, बल्कि सभी असामान्य अवस्थाओं को भी ठीक करते हैं। इसलिए, जब तक आप फा के सिद्धांतों का अभ्यास करते हैं, जब तक आप पढ़ते रहते हैं, आप सुधार की प्रक्रिया में रहेंगे। इसी कारण से पुस्तक को पढ़ना, फा का अभ्यास करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कुछ लोग कहते हैं: "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप पुस्तक को कितनी अच्छी तरह से पढ़ते हैं; यह केवल आपके मन में समझ को बढ़ाना है। हम जो साधना करते हैं क्या यह उससे अलग नहीं है?" इससे गोंग की साधना का विषय सामने आता है। हम जानते हैं कि साधना पहले ची और उसके बाद गोंग विकसित कर सकती है, जो दोनों पदार्थ के रूप हैं। दूसरी ओर, समझना मानसिक लगता है और भौतिक वस्तुओं से असंबंधित लगता है। वास्तव में, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मन और पदार्थ एक ही समान हैं! क्या आपको नहीं लगता कि साधना में वे एक ही वस्तु हैं? जब आपका मन एक निश्चित स्तर पर फा के सिद्धांतों को समझता है, क्या आप पहले से ही उस स्तर पर नहीं हैं? यह सब ज़ुआन फालुन में सिखाया गया है। मैं अभी यहाँ विस्तार से नहीं बताऊँगा। आप जाकर पुस्तक पढ़ सकते हैं। इसलिए पुस्तक पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। यह पहला विषय है जिसकी चर्चा मैं हमेशा अपने प्रत्येक फा व्याख्यान में करता हूँ। आप सभी शिष्य हैं, और आप सभी सुधार करना चाहते हैं और वास्तव में फलपदवी प्राप्त करना चाहते हैं—इसीलिए आप यहां इस फा को सीखने के लिए आए हैं। आपके सुधार और फलपदवी प्राप्त करने की कुंजी यह पुस्तक है, ज़ुआन फालुन। सभी ध्यान दीजिए, आपको किसी भी तरह से इसे अक्सर पढ़ने का प्रयत्न करना चाहिए।

कई दिनों पहले एक शिष्य ने मुझसे कहा था : "मैंने इसे दो सौ से अधिक बार पढ़ा है, और वास्तव में मैं इसे पढ़ना अभी भी नहीं छोड़ पाता हूँ। मैं अब भी इसे पढ़ रहा हूँ।" क्योंकि वह जितना अधिक पढ़ता है, उतनी ही अधिक चीज़ें वह उसमें पाता है। जब आप विभिन्न स्तरों पर पहुंच कर पुस्तक को पढ़ते हैं, आप पाएंगे कि किसी दी गयी पंक्ति की आपकी समझ परिस्थितियों या आपने इसे कितनी बार पढ़ा है उसके आधार पर पूरी तरह से अलग हो सकती है। हो सकता है इससे पहले आप ने इसे अलग दृष्टिकोण से समझा हो। सुधार करने के बाद, आपको शायद लगेगा कि इसका अर्थ बदल गया है और इसमें उच्चतर आंतरिक अर्थ समाहित हैं। आप अपनी सर्वत्र साधना के दौरान इसका अनुभव करते रहेंगे।

आप जानते हैं, इस फा के द्वारा जिसे मैंने सार्वजनिक किया है मैं केवल आपको उपचार और स्वस्थ रहना ही नहीं सिखा रहा हूँ: मैं आपके शरीर को तब तक शुद्ध करुंगा जब तक कि यह रोग मुक्त अवस्था में नहीं पहुंच जाता, और उसके बाद आपको अपना स्तर बढ़ाने में सक्षम करुंगा जब तक कि आप फलपदवी तक नहीं पहुंच जाते हैं। यदि आपके पास मार्गदर्शन करने के लिए ऐसा उच्च-स्तरीय फा नहीं है, तो आप यह नहीं जान पाएंगे कि उच्च स्तर पर साधना कैसे की जाती है। यदि आपको उन स्तरों पर फा के सिद्धांतों का आंतरिक अर्थ नहीं पता है, तो आप वहां नहीं पहुंच सकते। इसलिए आपको पुस्तक अवश्य पढ़ते रहना चाहिए। साथ ही, आपको अपने विचारों और अपनी समझ को ऊंचा करते हुए अपने स्तर में सुधार करना चाहिए। साधारण लोगों के शब्दों में, हम अच्छे लोग बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। वास्तव में, यह उससे कहीं आगे है: आप अपनी साधना में केवल स्वस्थ शरीर या कुछ अलौकिक क्षमताओं को ही प्राप्त नहीं करेंगे, बल्कि फलपदवी प्राप्त करेंगे और उच्च स्तरों तक पहुँचेंगे।

यदि आप उन स्तरों तक पहुँचना चाहते हैं, लेकिन आप उन स्तरों के फा के सिद्धांतों को नहीं जानते हैं, आप वहां कैसे पहुंच सकते हैं? जैसे जैसे आप उन उच्च स्तरों की ओर बढ़ने का प्रयत्न कर रहे होते हैं, आपको सभी प्रकार के मानवीय मोहभावों को छोड़ना होगा जैसे जैसे आप वास्तव में साधना करते जाएँगे। वे तालों के स्तरों या द्वार के स्तरों के समान हैं जो आपका मार्ग अवरुद्ध करते हैं। जैसे-जैसे आप फा के सिद्धांतों को समझते जाएंगे, आपको साधारण मानव समाज की प्रत्येक स्थिति में हमेशा अच्छा व्यवहार करना होगा। कम से कम, आपको उच्च स्तर और उच्च आदर्श के साथ एक साधक की तरह आचरण करना होगा। दूसरे शब्दों में, चाहे आप जहां भी हों, दूसरों को यह लगना चाहिए कि आप एक अच्छे व्यक्ति हैं। जैसे-जैसे आपका स्तर और आपकी सोच का स्तर ऊंचा होता है, तो क्या साधना की प्रगति के साथ-साथ आपका गोंग भी नहीं बढ़ेगा? यही कारण है कि कुछ लोग लंबे समय से चीगोंग अभ्यास के माध्यम से ऊंचा उठने में असफल रहे हैं। उन्होंने कई पद्धतियों का अभ्यास किया है, तब भी वे उच्च साधना करने में सफल नहीं हुए हैं। उन्हें अभी भी स्वास्थ्य समस्याएं हैं। क्या उनकी साधना व्यर्थ नहीं हुई?

उन लोगों का साधना के माध्यम से उच्च स्तरों पर नहीं पहुंच पाने का वास्तविक कारण यह है कि उनके पास मार्गदर्शन के लिए फा के सिद्धांत नहीं थे। जो फा मैंने आपको सिखाया है वह व्यापक, व्यवस्थित, और वास्तव में आपको फलपदवी प्राप्त करने में सक्षम बना सकता है—यह सर्वोत्तम है। यही कारण है कि इतने सारे लोग इसे संजोते हैं। समाचार पत्रों ने घोषित किया है कि हमारे 10 करोड़ से भी अधिक शिष्य हैं। इतने सारे शिष्य क्यों हैं? आप सभी जानते हैं कि चीन जैसे समाज में, लोग, विशेष कर जो थोड़े वृद्ध हैं, उन्होंने कई आंदोलनों का अनुभव किया है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है सांस्कृतिक क्रांति। उनमें पहले से ही आस्था थी और वे अंधविश्वासी थे, और उन्होंने गलतियाँ की थी और वे उस अनुभव के माध्यम से गुज़रे थे। विभिन्न आंदोलनों से गुज़रने के बाद, वे संभवतः किसी भी बात पर अंधविश्वास कैसे कर पाते? यह पूर्णतः असंभव है! इसके अतिरिक्त, क्यों कई प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी, सही निर्णय लेने में सक्षम इतने सारे लोग, इस फा को सीखने के लिए आते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि यह फा वास्तव में लोगों के प्रति उत्तरदायी हो सकता है। यह जो सिखाता है वह सामान्य सिद्धांत हैं, फा के सिद्धांत हैं। यह लोगों को विवेक-बुद्धि के द्वारा विश्वास दिलाता है।

यहाँ न्यूजीलैंड में बहुत सारे शिष्य हैं। मैं, ली होंगजी, यहाँ एक बार भी नहीं आया या आपको कुछ भी करने के लिए नहीं कहा। मैने आपको कभी विशेष व्यवहार करने को नहीं कहा है या आपके सीखने का निरीक्षण कभी नहीं किया, क्या मैने किया? तब भी आप सभी यहाँ अपनी साधना में इतने दृढ़ क्यों हैं? यह इसलिए है क्योंकि आप जानते हैं कि फा के सिद्धांत अच्छे हैं। मानव जीवन का उद्देश्य क्या है? क्या किसी व्यक्ति को स्वयं के जीवन के लिए उत्तरदायी नहीं होना चाहिए? यह मानव जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है।

मैंने अभी जो कुछ भी कहा है, वह मुख्य रूप से इस आशा से कहा कि आप फा का गंभीरता से अभ्यास करेंगे। यह सुनिश्चित करें कि आप फा का गंभीरता से अभ्यास करें। कुछ लोग साधना करने के लिए ताओ को ढ़ूँढ़ने यहाँ वहां जाते थे, लेकिन वे अपने स्तर को बढ़ाने में सक्षम नहीं रहे। वे ताओ प्राप्त नहीं कर पाए। यह व्यायाम नहीं था जिसे वे प्राप्त नहीं कर पाए, यह फा था—किसी ने भी सच्ची साधना के लिए फा के सिद्धांत नहीं सिखाए। आप सभी यह सोचें, ब्रह्मांड के फा ने विभिन्न स्तरों पर जीवन के लिए विभिन्न स्तरों के वातावरण और अस्तित्व के मार्ग बनाए हैं। दूसरे शब्दों में, यह ब्रह्मांड के निर्माण की नींव है, क्योंकि यही फा है ​​जिसने सभी जीव और पदार्थ बनाए हैं। तब, क्या वे लघु फा, लघु मार्ग, लघु नियम, और साधना की लघु पद्धतियां जिन्हें लोग अतीत में छोटे-छोटे टुकड़ों या भागों में जानते थे ब्रह्मांड के इस फा से नहीं हैं? वे फा के सबसे निम्न स्तर पर छोटे छोटे भाग हैं जिन्हें मनुष्यों को बताया जा सकता था। लेकिन आज आपने जो प्राप्त किया है वह ब्रह्मांड का दाफा है—सत्य जो पहले कभी ज्ञात नहीं था। यह ऐसा सत्य है जिसे पूरे इतिहास में किसी ने कभी नहीं सिखाया है!

मुझे लगता है कि आप सभी जो यहां बैठे हैं यह जानते हैं। जिन्होंने अभी-अभी इस मार्ग को अपनाया है, या जिन्होंने अभी तक इस मार्ग को नहीं अपनाया है, या अभी तक अभ्यास नहीं किया है, शायद यह सोचते होंगे कि मैं बढ़ा-चढ़ा कर बोल रहा हूँ। वास्तव में, पुस्तक को व्यवस्थित रूप से पढ़ने के बाद, मुझे लगता है कि आप समझेंगे कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ। हम किसी को नियंत्रित नहीं करते हैं। आप अपनी इच्छानुसार इसे सीख सकते हैं या छोड़ सकते हैं। कोई भी आपकी निगरानी नहीं करेगा। लेकिन यदि आपने सीखने का निर्णय कर लिया है, मुझे आपके लिए उत्तरदायी होना होगा। मैं जो उत्तरदायित्व लूँगा वह साधारण लोगों में नहीं दिखाई देगा। यह ऐसी ही परिस्थिति है।

मैंने अभी इस बारे में बात की है कि कैसे आपको फा का अभ्यास गंभीरता पूर्वक लेने की आवश्यकता है। इसके बाद मैं समाज में कुछ परिस्थितियों के बारे में बात करूँगा जो अभी-अभी विकसित हुई हैं, विशेषकर चीन में। कुछ शिष्य देश के नेताओं को कुछ समस्याओं के बारे में बताने के लिए झोंगनानहाई गये, और साथ ही मैं इस विषय पर भी बात कर लेता हूँ। अभी, हांगकांग के समाचार पत्र जो प्रकाशित कर रहे हैं वह बकवास है, यह पूरी तरह से गड़बड़ है। अन्य देशों के चीनी समाचार पत्रों ने उन हांगकांग समाचार पत्रों से कुछ अंश लिए हैं। विश्व जानता है कि हांगकांग की जनसंख्या केवल 60 लाख है, फिर भी वहाँ इतने सारे समाचार पत्र और इतनी सारी पत्रिकाएँ हैं, जो सभी अपने लाभ के लिए समाचारों को बेचने के लिए लड़ते हैं। इसलिए समय के साथ उन्होंने भयानक दायित्वहीन समाचार प्रकाशित करने की आदत विकसित कर ली है। वे मनमाने ढंग से अफवाहें बनाते हैं, लापरवाही से कहानियां गढ़ते हैं, या यों ही काल्पनिक बातें बनाते हैं। और तब वे इसे इस तरह से प्रकाशित करते हैं। इसलिए विश्व के सबसे कमतर गंभीर समाचार पत्र हांगकांग के चीनी समाचार पत्र हैं। यहां तक ​​कि वे अफवाह और गपशप को आधिकारिक समाचार के रूप में प्रकाशित करने का साहस भी करते हैं।

यहाँ मैं आपके साथ अपने स्वयं का दृष्टिकोण भी साझा करना चाहता हूँ। हमारे शिष्य जो देश के नेताओं से बातें स्पष्ट करने के लिए झोंगनानहाई गए थे वह न तो कोई विरोध था और न ही कोई धरना। वे धरना देने नहीं बैठे थे। वहां कुछ लोग बैठ गये क्योंकि वे ध्यान अभ्यास कर रहे थे। उनके पास नारे या बैनर नहीं थे, न ही उन्होंने कोई आक्रामक कार्य किया और न ही कठोर भाषा का उपयोग किया। वे सभी अच्छे आशय के साथ गये थे और देश के नेताओं को बताना चाहते थे कि हम वास्तव में क्या सोच रहे थे। स्थिति उन अफवाहों से अलग है जो सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो द्वारा फैलाई जा रही थी। कुछ लोग ऐसे हैं जो इस बात पर तंज कसते हैं कि हमारा झोंगनानहाई जाना यह था या वह था। क्या झोंगनानहाई में लोकतंत्र की सरकार नहीं है? क्या लोग वहां नहीं जा सकते हैं? हमारे शिष्य वहां क्यों गये थे? क्या वे सरकार का विरोध करने गए थे? क्या वे वहां देश के नेताओं को समस्याओं के बारे में बताने और लोगों के लिए न्याय बनाए रखने के लिए कहने नहीं गये थे? इसके आयोजन के बारे में गपशप क्यों होनी चाहिए? क्या सरकार को प्रसन्न नहीं होना चाहिए जब लोग सरकार के कार्यों का समर्थन करने के लिए संगठित होते हैं?

हालांकि, इसके बारे में सोचें, इतने सारे लोग वहां क्यों गये थे? वास्तव में, मुझे लगता है कि वहां जाने वालों की संख्या बहुत कम थी! (तालियां) अब मैं सभी को जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रहा हूँ। मेरे बोलने का क्या अर्थ है? इस दाफा को सीखने वाले 10 करोड़ से भी अधिक लोग हैं। इसलिए यदि आप इसके बारे में सोचें, अपेक्षाकृत रूप से कहें तो, जो लोग वहां गये थे क्या उनकी संख्या कम नहीं थी? और ऐसा इसलिए है क्योंकि शिष्यों की संख्या बहुत बड़ी है, है ना? तब वहां इतने लोग क्यों गये थे? हम जानते थे कि तियानजिन में पुलिस ने हमारे शिष्यों को गिरफ्तार किया था और मारा था, और हम पर एक विधर्मी पंथ होने का आरोप लगाया था। हम सभी यह सीख रहे हैं कि हम बेहतर लोग कैसे बनें। यदि हम सच में बुरे लोग होते, तो हमें चिंता भी नहीं होती कि आप हमें बुरा कहते हैं या कुछ और, है ना? हालाँकि, हम वास्तव में अच्छे लोग हैं। हम पर बुराई का ठप्पा लगाकर, क्या आप हमारी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचा रहे हैं? क्योंकि आपके साथ तर्क नहीं किया जा सका और हम आपको वहां की स्थिति के बारे में अच्छी तरह से नहीं समझा सके, इसलिए हमें इसकी सूचना केंद्र सरकार के नेताओं को देनी पड़ी। ऐसा करना अनुचित नहीं था! (तालियां) और यह इसलिए क्यों कि हम कोई आंदोलन नहीं कर रहे थे, न ही हम सरकार पर आरोप लगा रहे थे; हम केवल यह कह रहे थे कि सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो ने स्थिति को अनुचित प्रकार से संभाला है। इसलिए हमारे कार्यों में कुछ भी अनुचित नहीं था।

कुछ समाचार संवाददाता अनुत्तरदायी रहे हैं। जब वे कुछ ऐसा देखते हैं जिसे वे सनसनीखेज बना सकें, तो यह संभावना है कि वे उसकी एक कहानी बना दें। तो फिर हम भी उन्हें हमारा लाभ उठाने नहीं देंगे। इसलिए में अपनी ओर से पूरी तरह से स्पष्ट था कि हम सरकार के विरुद्ध नहीं थे; कोई विरोध या जुलूस नहीं निकला था, और हमने कुछ भी उग्र नहीं किया। यह सिर्फ स्थिति को बताने के लिए था। एक व्यक्ति जाना चाहता था, और दूसरा व्यक्ति भी जाना चाहता था, और सब जुड़ते चले गये। 10 करोड़ लोगों में से, केवल दस हजार से कुछ अधिक वहां गये थे—यह एक छोटा सा हिस्सा भी नहीं है। क्या यह बहुत कम नहीं है? यदि स्थिति बदतर या अधिक बुरी होती, मुझे लगता है कि यह केवल दस हजार नहीं, बल्कि इससे बहुत अधिक होते। आप यह नहीं कह सकते कि यह अनुचित था क्योंकि बड़ी संख्या में लोग स्थिति के बारे में बताने गये थे, क्या आप यह कह सकते हैं? देश के नेताओं को समस्याओं के बारे में बताना प्रत्येक नागरिक का उत्तरदायित्व, कर्तव्य और अधिकार है। यह अनुचित कैसे हो सकता है? ऐसा नहीं है। हम सरकार के विरुद्ध नहीं हैं, न ही हम राजनीति में हस्तक्षेप कर रहे हैं; साथ ही, हम स्वेच्छा से देश के कानून को बनाए रखें हैं। क्या ऐसा नहीं है? हम अच्छे लोग हैं चाहे हम जहां भी हों। उस स्थिति के बारे में मैं यही सोचता हूँ।

हम सभी जानते हैं कि हम साधना कर रहे हैं। क्योंकि यह साधना है, हमारी साधना के मार्ग में कुछ भी संयोग से नहीं होता। मैं हमेशा यह कहता हूँ: साथ साथ ऐसे भी लोग हैं जो इसके विरुद्ध हैं और ऐसे भी हैं जो इसका समर्थन करते हैं, ऐसे जो इसमें विश्वास करते हैं और ऐसे भी हैं जो नहीं; ऐसे जो अच्छे हैं और ऐसे भी जो बुरे हैं; ऐसे जो धर्मी हैं और ऐसे भी जो दुष्ट हैं। मानव जाती ऐसी ही है, और ऐसा ही परस्पर-सहयोग और परस्पर-विरोध का सिद्धांत है। यदि ऐसे लोग हैं जो किसी बात का विरोध करते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि यह अच्छा नहीं है। आप जानते हैं कि यदि असुर नहीं होंगे तो, आप साधना नहीं कर पाएंगे। जब वे आपका विरोध करते हैं, तो क्या वे हमें आपके मन में झाँकने का अवसर प्रदान नहीं करते, यह देखने के लिए कि क्या आप दृढ़ हैं और क्या आप साधना करने में सक्षम हैं? क्योंकि साधना गंभीर है, यदि एक साधारण व्यक्ति को फलपदवी के स्तर तक पहुँचना है, इसके बारे में सोचें, बिना किसी वास्तविक परीक्षा के, इसको कैसे माना जा सकता है? इसलिए इस प्रकार की परीक्षाएं और इस प्रकार की परिस्थितियां होंगी।

यह अर्थ यह नहीं है कि जो लोग बुरे काम कर रहे हैं वे वास्तव में हमारी सहायता कर रहे हैं। वे वास्तव में बुरे काम कर रहे हैं। लेकिन मैं साधकों को साधना के अवसर प्रदान करने के लिए उनके अनुचित कार्यों का उपयोग कर रहा हूँ। क्या आप तब भी साधना करेंगे जब ऐसे लोग होंगे जो इसका विरोध करते हैं? क्या आप तब भी इसे अच्छा मानेंगे जब ऐसे लोग होंगे जो कहेंगे कि यह अच्छा नहीं है? क्या यह आपके मन की परीक्षा नहीं है? इसलिए आप सभी को यह स्पष्ट होना चाहिए कि साधना गंभीर है और संयोग से बिलकुल कुछ भी नहीं होता है।

क्या आपने इस विषय में सोचा है : इस घटना के माध्यम से सारे विश्व ने दाफा के उदगमन के विषय में जान लिया है! (तालियां) यह दाफा को फैलाने के लिए कोई भी गतिविधियाँ जो आप संभवतः कर सकते थे, से अधिक व्यापक स्तर पर और बहुत बड़े क्षेत्र में लोगों तक पहुँचने में सक्षम हो गया है। (तालियां) इसके साथ ही, यह मुख्य भूमि चीन के शिष्यों के लिए वास्तव में एक बहुत ही गंभीर परीक्षा है। वास्तव में, ये बातें साधकों के लिए हैं। साधारण मानव समाज में यह साधारण रूप से ही व्यक्त होने वाला है। मैंने अपनी स्थिति अभी-अभी स्पष्ट की है—यह ऐसा ही है। हमने किसी भी राज्य के नेताओं, सरकारों, कानून, आदि, के साथ हस्तक्षेप नहीं किया है या बाधा उत्पन्न नहीं की है, क्योंकि हम अच्छे लोग बने रहे हैं। हम केवल परिस्थिति के विषय में बताने के लिए वहां गये थे।

इसके विषय में मुझे बस इतना ही कहना है। क्योंकि यह एक फा सम्मेलन है, तो आपके पास साझा करने के लिए अनुभव होंगे, और इनके माध्यम से आप स्वयं की जांच कर पाएंगे कि आप में कहां कमी है और वास्तव में सुधार कर पाएंगे। आज हम पूरा दिन अनुभव साझा करने में व्यतीत करेंगे। कल सुबह मैं आपके प्रश्नों के उत्तर दूँगा। यह सम्मेलन डेढ़ दिन तक चलेगा। मुझे आशा है कि अन्य लोगों के अनुभवों को सुनने के दौरान आप सभी शांत बैठे रहेंगे। दूसरों को संजोना स्वयं को संजोना है। इसका कारण यह है कि फा सम्मेलन पावन और पवित्र है, और आप ब्रह्मांड के दाफा की साधना कर रहे हैं! बस, मुझे इतना ही कहना है। (तालियां)

कल के फा सम्मेलन के दौरान मैं पास वाले कक्ष में आपके अनुभव देख और सुन रहा था। मुझे लगता है कि यह फा सम्मेलन बहुत अच्छी तरह से संपन्न हुआ है, और फा सम्मेलन के वास्तविक ध्येय को पूरा करने में सक्षम रहा है। सम्मेलन आपको लाभान्वित करने और वास्तव में स्वयं में सुधार करने में सक्षम बनाता है, इसलिए यह बहुत अच्छी बात है। आज मैं आपके प्रश्नों के उत्तर दूँगा। यह हमारे फा सम्मेलनों के लिए नियमित कार्यक्रम बन गया है। आप कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं। मैं आपके सभी प्रश्नों के उत्तर देने का पूरा प्रयत्न करुंगा जब तक कि समय अनुमति देगा।

सांसारिक बातों से जुड़े प्रश्नों के लिए, मुझे लगता है कि अच्छा होगा कि आप उन्हें न पूछे। और आपकी परीक्षा में उन बातों के लिए जिनमें आप ज्ञानोदय नहीं कर पाए हैं, हालांकि आप मुझसे उनके बारे में पूछना चाहते हैं, उन परीक्षाओं में वास्तव में आपको सफल होना है। यदि आपके लिए उनका उत्तर दिया जाता है, तो यह ऐसा होगा जैसे आपके ज्ञानोदय के लिए कुछ भी नहीं बचा है, है ना? ऐसे अधिक प्रश्न पूछे जो हमारी साधना से संबंधित हैं। ऐसे कम पूछे जो साधना से संबंधित नहीं हैं। कुछ भी नहीं पूछना सबसे अच्छा है। ठीक है, अब शुरू करते हैं।

प्रश्न : क्योंकि यह न्यूज़ीलैंड में पहला फा सम्मेलन है, और हम सभी नये शिष्य हैं, हमें आशा थी कि गुरु जी हमारी साधना का मार्गदर्शन करने के लिए दाफा पर अधिक बोलेंगे।

गुरु जी : आपके प्रश्नों का उत्तर देकर, मैं वास्तव में आपको फा सिखा रहा हूँ, क्योंकि पूछे गये अधिकांश प्रश्न हमारी साधना से संबंधित होते हैं। जब इन विषयों की बात होगी तो मैं इसे आपके लिए जितना संभव हो सके उतना स्पष्ट कर दूँगा।

प्रश्न : मैं किराये के घर में रहता हूँ। दूसरे कक्ष के व्यक्ति के पास बहुत सी चीगोंग और धार्मिक पुस्तकें हैं, और वह किसी प्रेत से ग्रसित हो सकता है। कृपया मुझे बताएं, क्या मेरे ऊपर इसका प्रभाव हो सकता है ?

गुरु जी : इसे इस तरह से समझते हैं, आप जो साधना कर रहे हैं वह दाफा है, एक सच्चा साधना मार्ग। अन्य चीगोंग अभ्यास के साथ केवल एक ही बात हो सकती है जो है आपकी पवित्र साधना की ऊर्जा से दब जाना। वे आपके साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकते। लेकिन एक बात है जो मैं कहना चाहता हूँ : यदि आप स्वयं को अच्छी तरह से नियंत्रित करने में विफल रहते हैं, और आप उन्हें मिलाते हैं, सब कुछ पढ़ते हैं और सबका अभ्यास करते हैं, तो आप संकट में पड़ सकते हैं। यदि आप अपने नैतिक गुण की रक्षा कर सकते हैं, तो फिर, आप किसी भी परिवेश में प्रभावित नहीं होंगे। वास्तव में, आप कह सकते हैं कि बहुत से लोग बुरी वस्तुओं का अभ्यास करते हैं, लेकिन क्या आपने यह अनुभव किया है कि आज कोई भी मानवीय पद्धति शुद्ध नहीं है? इसलिए, जहाँ भी हमारे साधक हैं, जब तक आप अपने मन के प्रति सतर्क हैं और सच्चाई और गरिमा से साधना करते हैं, आपको उन वस्तुओं के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आपको कोई समस्या नहीं होगी। क्योंकि आपकी चिंता भी स्वयं में एक मोहभाव है, तो जैसे ही आपका मोहभाव उत्पन्न होता है उसे हटाना चाहिए। इसलिए यद्यपि यह दूसरों द्वारा हस्तक्षेप प्रतीत होता है, यह वास्तव में आपके स्वयं के मन के कारण हो सकता है।

प्रश्न : जब आपने अपनी कविता में लिखा "और इस मानव संसार की यात्रा करने में गुरु जी की सहायता करें " और "अभी आओ, और मेरे फालुन को घुमाने में सहायता करो ", तो क्या आप अभ्यासियों की बात कर रहे थे या बुद्धों, ताओ, और दिव्यों की ?

गुरु जी : दोनों। इसके बारे में सोचें : पूर्व में जब मैं फा सिखाता था, मैं कक्षाओं का आयोजन करता था। मैं वास्तव में दाफा के उत्कृष्ट वर्ग की देखभाल कर रहा था। आज, यह आप हैं जो दाफा को साधारण लोगों के बीच प्रमाणित कर रहे हैं—आप ही ऐसा कर रहे हैं। यहां तक कि हमारे नये शिष्य भी अनुभवी शिष्य बन गये हैं, और सभी फा को फैलाने में व्यस्त हैं और अधिक लोगों को फा प्राप्त करने में सहायता कर रहे हैं। आपकी साधना, साथ ही दाफा में आपका दृढ़ संकल्प, चट्टान की तरह ठोस है, और आपने दाफा को दृढ़ता से स्थिर किया है। साथ ही, साधारण मानव समाज में फा को प्राप्त करने में अधिक लोगों की सहायता करना स्वयं में गुरु जी की सहायता करना है। वास्तव में, यह सब बिना किसी उद्देश्य के किया जाता है; यह आपकी साधना का एक अनिवार्य भाग है। यह जैसा होना चाहिए वैसा ही है। वास्तव में, उच्च स्तर पर उन लोगों की अपनी परिस्थितियां है, और वहां यह ऐसे ही होता है।

प्रश्न : मुझे आपकी कविता की इन दो पंक्तियों को कैसे समझना चाहिए: "जो लोग प्रचुर ज्ञान का दावा करते हैं, // वे अपने कौशल को इतनी निपुणता से कार्य में लगाते हैं, // लेकिन यह सब भावना में बहकर किया जाता है।"

गुरु जी : सर्वत्र इतिहास में कई प्रसिद्ध लोग हुए हैं, कई लोगों को ऋषि माना जाता है, और कई लोगों को साधारण लोगों द्वारा सराहनीय व्यक्ति माना जाता है, जिनमें आज के कई प्रसिद्ध लोग भी सम्मिलित हैं। हालाँकि, ये सभी, हालांकि, साधारण लोग हैं, और वे भावनाओं से ऊपर और बाहर नहीं निकल पाए हैं। उसे लगता है कि उसके पास कुछ उपलब्धियाँ थी, और अन्य लोगों ने उसे उल्लेखनीय, चतुर और ज्ञान युक्त माना। वास्तव में, मेरा यह मानना है, वह सब भावना के अंतर्गत होता है। इसका यही अर्थ है। उनमें से कोई भी भावना से ऊपर और उसके आगे नहीं बढ़ा है, और सभी साधारण लोगों के वातावरण में हैं। इसलिए वे अभी भी साधारण लोग ही हैं।

प्रश्न : मेरा बच्चा दो वर्ष का है, और वह गुरु जी के व्यायाम-अभ्यास वीडियो को देखना बहुत पसंद करता है। लेकिन उसके पिता इसके बहुत विरुद्ध हैं।

गुरु जी : दाफा की साधना द्वारा स्वयं के सच्चे, मूल स्वरूप की ओर लौटना ही आज इस संसार में आने वाले लोगों का वास्तविक उद्देश्य है। मैंने जो आपसे कहा है वह निश्चित रूप से सत्य है। आज संसार के सभी लोगों में से, वास्तव में, कोई भी मानव बनकर रहने के लिए यहां नहीं आया है। हालांकि सभी यहाँ फा प्राप्त करने आएं है यह भी आवश्यक नहीं है। क्योंकि मानव समाज में रहना हमारा लक्ष्य नहीं है, जैसा कि मैंने अभी उल्लेख किया है, यह भी आवश्यक नहीं कि सभी लोग यहां फा प्राप्त करने के लिए आए हैं, लेकिन सभी फा के कारण यहां आए हैं। क्योंकि मानव समाज में हमारा अस्तित्व ही हमारे जीवन का एकमात्र लक्ष्य नहीं है, और किसी के भी जीवन और अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य वापस लौटना है, तो क्या जो हम कर रहे हैं वह सबसे उत्तम चीज़ नहीं है? हो सकता है उसे साधना की अनुमति नहीं देकर, बच्चे के पिता आप दोनों को परीक्षा में सफल होने में सहायता कर रहे हैं। अन्य कारक भी हो सकते हैं, जैसे कि वास्तव में आप दोनों को साधना करने से रोकने का प्रयत्न करना। तो आपको इन बातों को कैसे देखना चाहिए? जो आपको ठीक लगे, बस उसे वैसे ही करें। इसे परखना आपके ऊपर है।

प्रश्न : लोगों के अलग-अलग व्यक्तित्व होते हैं। क्या यह सच है कि जितने उच्च स्तर पर साधना करते हैं, उतना ही कम [व्यक्तित्व] होता है ?

गुरु जी : लोगों के अलग-अलग व्यक्तित्व होते हैं, लेकिन वे उनकी मूल प्रकृति के समान नहीं होते हैं। लोगों के व्यक्तित्व, अधिकतर, उन मोहभावों की अभिव्यक्ति होते है जिन्हें वे छोड़ना नहीं चाहते हैं। हमारी मूल प्रकृति हमारी साधना में बाधा नहीं बनेगी, क्योंकि कई लोगों के मूल गुणों की जड़ें बहुत गहरी होती हैं। वे उनके अस्तित्वों के विभिन्न गुण हैं। कुछ चीजों को जल्दी जल्दी करना पसंद करते हैं और कुछ को धीरे-धीरे करना पसंद हैं। हालांकि, उनमें जन्म के बाद की विकसित आदतें सम्मिलित नहीं होती हैं। चाहे आपका अस्तित्व तेज़ गति वाला है या धीमी गति वाला आपकी साधना में वह बाधा नहीं डालेगा।

लेकिन आपको फा का अभ्यास लगन से करना होगा, क्योंकि वास्तव में किसी के जीवन में सीमित समय ही होता है। हालांकि साधारण मानव समाज में लोग उन वस्तुओं को प्राप्त करना चाहते हैं जो वे समझते हैं की अनंत काल तक उनके जीवन में रहेंगी, इस मानव संसार में, बिना साधना के माध्यम के वे कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते हैं। आपके पास कितना भी पैसा क्यों न हो, आपका पद कितना भी ऊँचा क्यों न हो, या आपका जीवन कितना भी आरामदायक क्यों न हो, आप अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकते। आप यहां अपने शरीर के सिवाय और कुछ लेकर नहीं आते हैं, और जब आप जाते हैं तो कुछ भी ले जाने में सक्षम नहीं होते हैं। केवल एक वस्तु जिसे आप अपने साथ ले जा सकते हैं उसे साधना के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जो सीधे व्यक्ति के मूल शरीर द्वारा ले जायी जा सकती है। इसलिए इसे प्राप्त करना सबसे अमूल्य और सबसे कठिन है। इसीलिए यह किसी भी वस्तु से अधिक संजोने के योग्य है। यह निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति अनंत काल तक क्या प्राप्त करेगा, और यह निर्धारित करता है कि विभिन्न स्तरों पर उसके लिए किस तरह के अस्तित्व और व्यवस्था स्थापित की जाएगी। यह मानव स्थान भयंकर है, लेकिन व्यक्ति यहां साधना कर सकता है; दिव्य लोक बहुत अच्छा होता है, लेकिन वहां साधना करना सरल नहीं है। इस मानव स्थान पर कष्टों के कारण ही ऐसा है कि लोग यहां साधना कर सकते हैं।

प्रश्न : यदि कोई व्यक्ति पहले से ही अच्छे स्वभाव का है, तो क्या उसके लिए साधना करना अधिक सरल होगा ? क्या साधना किसी ऐसे व्यक्ति के लिए और कठिन है जो जल्द ही क्रोधित हो जाता है?

गुरु जी : मैंने अभी अभी कहा है कि किसी व्यक्ति में स्वयं के अस्तित्व की विशेषताएँ होती हैं। लेकिन क्रोधित होने की बात करें तो, वह किसी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रकृति का भाग नहीं होता है। मैं आपको बता दूँ कि जब कोई व्यक्ति क्रोधित होता है तो निश्चित रूप से यह उसके आसुरिक प्रकृति के कारण होता है। क्यों? कोई ऐसे सोच सकता है: "मेरे इरादे अच्छे थे। मैं उसे अच्छा आचरण सिखाने के लिए क्रोधित हो गया।" या, "मैं उसे अपना कार्य अच्छी तरह से करना सिखाने के लिए क्रोधित हो गया।" यह आसुरिक प्रकृति के कारण है, और इसे "बुराई से लड़ने के लिए बुराई का उपयोग करना" कहा जाता है, क्योंकि आप दूसरों से अच्छा कार्य करवाने के लिए आसुरिक प्रकृति का उपयोग कर रहे थे। यदि आप उसके प्रति करुणा दिखाते और उसे विनम्रता से कहते कि उसे कोई काम अच्छे से करना चाहिए, तो मुझे लगता है कि उसका मन परिवर्तित हो जाएगा और वास्तव में वह अपनी इच्छा से अच्छा काम करेगा न कि आपके दबाव में आकर। तब वह और भी अच्छा करेगा। इसलिए साधना करते हुए आपको धीरे-धीरे अपने क्रोधित होने के अवगुण को समाप्त करना होगा। आपने हमेशा अनुभव किया है कि अपने क्रोध को नियंत्रित करना कठिन है; वास्तव में यह कठिन नहीं है। कई विषयों में आप स्थिति को और अच्छी तरह से संभाल सकते यदि आप कारण समझाते। इसलिए आप क्रोधित नहीं हो सकते।

जब आपने किसी पर क्रोध किया, तब आप उसे सद्गुण दे रहे थे। आप का क्रोध करना वास्तव में दूसरे पक्ष के बुरे कर्मों को कम कर सकता है। यह निश्चित है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपने उसके साथ एक असुर की तरह व्यवहार किया, चाहे यह दैनिक जीवन में हो या साधना में हो, और इससे उन्हें अपने बुरे कर्मों को कम करने का अवसर मिला। लेकिन जो आपको प्राप्त हुआ वह बुरा कर्म हो सकता है जो उससे आपको मिला। इसलिए मुझे लगता है कि एक साधक के रूप में आपको उस तरह का काम नहीं करना चाहिए। उन्हें अपनी स्वयं की साधना करने दें और अपने स्वयं के बुरे कर्मों को रूपांतरित करने दें।

प्रश्न : मेरी साधना में बहुत दुःख और कठिनाइयाँ हैं, इसलिए मैं आत्म-सुधार पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं और फा को प्रचारित नहीं कर पा रहा हूं। क्या यह सच है कि मैं केवल अर्हत की स्थिति तक ही साधना कर पाऊंगा ?

गुरु जी : ऐसा नहीं है। वह बुद्ध धर्म का सिद्धांत है। प्रत्येक दाफा अभ्यासी की एक अलग साधना अवस्था होती है। ऐसा नहीं है कि सभी को फा को प्रचारित करना है। ऐसा कोई नियम नहीं हैं कि आपको यह करना है या वह करना है। वास्तव में, फा को फैलाने के बारे में सोचने में सक्षम होना, और क्या आप इसे दैनिक जीवन में लोगों से मिलते समय या इसे व्यवस्थित तरीके से करते हैं, यह दोनों अभ्यासी की स्वयं की साधना की अभिव्यक्तियां हैं, और यह एक महान बात है। यह आज के हमारे सम्मेलन की तरह ही है : कुछ लोग अपने अनुभवों के बारे में बताने में सक्षम हैं, जबकि अन्य नहीं, हालांकि वे भी साधना करते हैं। यह केवल इतना है कि साधना में सब की परिस्थिति भिन्न होती है। यह उससे संबंधित है, और यह कोई समस्या नहीं है।

प्रश्न : मैं उन कठिनाइयों को कैसे समझ सकता हूँ जो मैंने स्वयं ही पैदा की हैं ? यदि वे दूर हो गयी, तो क्या वे उन परीक्षाओं के रूप में गिनी जाएंगी जो साधना में पारित की जाती हैं?

गुरु जी : मैं आपको बताना चाहता हूँ: आप स्वयं पर लाई गई कठिनाइयों को दूर करने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन वे केवल आपके साधारण जीवन की कठिनाइयाँ हैं। क्यों? क्योंकि उन्हें आपकी साधना मार्ग के लिए व्यवस्थित नहीं किया गया था, और क्योंकि प्रत्येक कदम को क्रमानुसार व्यवस्थित किया गया है—वे मोहभाव जिन्हें समाप्त करने की आवश्यकता है, कुछ चुनौतियों पर नियंत्रण पाने के बाद आप कब सुधार करेंगे, शरीर का वह भाग जिसे समृद्ध होना है, समस्याओं के कौन से भाग हल किये जाने हैं, साधना के माध्यम से किस तरह की वस्तु सामने आयेगी, आप किस स्तर तक पहुँचेंगे... इन सभी को क्रमानुसार व्यवस्थित किया गया है। इसलिए यदि आप कुछ अतिरिक्त जोड़ते हैं तो यह उन वस्तुओं के इस समूह को अस्तव्यस्त करने के समान है जो आपके लिए क्रमानुसार व्यवस्थित किये गये थे।

इसलिए आपको जानबूझकर कठिनाई नहीं ढूँढ़नी चाहिए और न ही किसी बात की जानबूझकर योजना बनानी चाहिए। स्वाभाविक रूप से साधना करें। जब तक आप जो भी सामना करेंगे उसमें अच्छी तरह से सफल होते हैं, तो यह बहुत अच्छा होगा। जब आप किसी भी संकट का सामना करते हैं यदि आप स्वयं के अंदर झांक सकें और स्वयं के मोहभाव ढ़ूँढ़ पाएँ, तो यही सच्ची साधना है। आप जानते हैं कि लोग पहाड़ों में साधना करते हैं। वास्तव में, वे इसी क्षेत्र में ऊँचे पहाड़ों में हैं, केवल लोग उनके बारे में नहीं जानते हैं। विश्व के कई ऊँचे पहाड़ों में साधक हैं। उनमें से कुछ ने कई हजार वर्षों से साधना की है और उनके स्तरों को बढ़ाने की गति बहुत धीमी है। वे केवल कष्ट सह कर ही साधना कर रहे हैं। हालांकि कष्ट वास्तव में लोगों को साधना और कुछ बुरे कर्मों को हटाने में सक्षम कर सकता है, यदि वे फा सिद्धांतों के अनुसार साधना नहीं करते हैं तो उनकी साधना धीमी होनी निश्चित है। और क्योंकि वे इतने उच्च स्तर पर फा के सिद्धांतों को नहीं जानते हैं, इसलिए वे इतने उच्च स्तर पर नहीं उठ पाते हैं।

आज आप इतनी जल्दी साधना क्यों कर पाते हैं? आप की वर्तमान की स्थिति में आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि आप कितनी तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं। अभी केवल कुछ वर्ष ही बीते हैं जब से मैंने फा सिखाना शुरु किया है, और अभी से ही ऐसे कई लोग हैं जो फलपदवी प्राप्त करने के मानक को पूरा कर सकते हैं। यह बस अद्भुत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे दाफा सीख रहे हैं, और ब्रह्मांड के दाफा के लिए किसी व्यक्ति को आत्मसात करना बहुत ही सरल है। मुझे याद है कि मैंने यह उदाहरण दिया था: यदि लकड़ी का बुरादा या एक टुकड़ा पिघले हुए इस्पात की भट्टी में डाल दिया जाए, तो तुरंत ही आप को इसका निशान तक नहीं मिलेगा। एक व्यक्ति उस लकड़ी के टुकड़े के समान है, और ब्रह्मांड का यह दाफा पिघले हुए इस्पात की भट्ठी जैसा है। किसी व्यक्ति को आत्मसात करना, किसी एक व्यक्ति को आत्मसात करना, यह इतना सरल है। लेकिन मैं ऐसा इस तरह नहीं कर सकता, मुझे आपको आपकी स्वयं की साधना करने देनी होगी। यदि मैंने इसे उस तरह किया तो यह एक नया अस्तित्व बनाने के समान होगा; तब आपके पास आप का मूल व्यक्तित्व और विशेषताएँ हो सकती हैं, लेकिन जो अंतिम परिणाम होगा वह फिर आप नहीं होंगे। यही कारण है कि मैं आपको वास्तव में स्वयं को ऊंचा उठाने और मुक्ति पाने के लिए सच्ची साधना करने के लिए कहता हूँ।

प्रश्न : क्या व्यायाम करते समय बार बार व्यायाम के श्लोक का जाप करना ठीक है ?

गुरु जी : ऐसा न करें। व्यायाम करना व्यायाम करना है। क्योंकि व्यायाम के लिए एक शांत अवस्था की आवश्यकता होती है, इसलिए एक व्यक्ति को किसी भी चीज़ के बारे में नहीं सोचने का पूरा प्रयास करना चाहिए। और फा का अभ्यास करना फा का अभ्यास करना है। इसलिए उन्हें अलग-अलग होना चाहिए। यहां तक कि प्रत्येक व्यायाम की शुरुआत की चार पंक्तियों का केवल व्यायाम करने से पहले ही पाठ करना चाहिए, और इसके दौरान नहीं। इस तरह शांत अवस्था तक पहुँच पाना और सरल होगा।

प्रश्न : नए शिष्यों को अभ्यास के सिद्धांतों को समझने की आवश्यकता है, और यहां तक ​​कि कुछ अनुभवी अभ्यासी भी क्रियाओं को त्रुटिपूर्ण ढंग से करते हैं।

गुरु जी : यदि वे सही नहीं हैं तो उन्हें ठीक करें। जहां तक फा को नहीं समझने की बात है, तो उन्हें केवल फा का अभ्यास करने के लिए कहें। इसे व्यायाम करने से अलग समझा जाना चाहिए। जो लोग फा का अभ्यास नहीं करते हैं आपको उन्हें फा का अभ्यास करने के लिए कहना चाहिए; अन्यथा उनके व्यायाम व्यर्थ हो जाएंगे। मैं आपको बताना चाहता हूँ, क्या आप जानते हैं कि सबसे दयनीय बात क्या है? जिन्हें फा प्राप्त हुआ है लेकिन वे चूक गये, या जिन्होंने इसे नहीं अपनाया जब उन्हें यह दिया गया —इसके लिए उन्हें हमेशा-हमेशा के लिए बहुत पछतावा होगा। वह कष्टदायक प्रश्चाताप जो वे हमेशा के लिए अनुभव करेंगे उसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई जीवों का यहाँ फा प्राप्त करने के लिए आना निर्धारित था। इन लंबे युगों के दौरान, ऐसे जीव भी हैं जिन्होंने अपने पवित्र विचारों को खो दिया है, जो यह जानने में बहुत कम सक्षम हैं कि वे यहां किस लिए हैं, और इसलिए वे सरलता से भटक जाते हैं। एक बार भटक जाने के बाद, यह सच में… वास्तविक है, सौभाग्यवश फा के सिद्धांत इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। चिंता का एकमात्र कारण यह है कि आप इसे पढ़ते नहीं हैं; चिंता का एकमात्र कारण यह है कि आप इसे सीखते नहीं हैं। मैं आप के अंदर सब कुछ जागृत कर सकता हूँ और मैं उन सभी वस्तुओं को शुद्ध कर सकता हूँ जिसने आपकी मूल प्रकृति को ढँक दिया है।

प्रश्न : क्या मैं ध्यान के दौरान अपने मन में अभ्यास का संगीत गा सकता हूँ ?

गुरु जी : गाओ मत। अभ्यास करते समय कोई व्यक्ति संगीत क्यों सुनता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने इस बात को ध्यान में रखा है कि आज के लोग [जिन परिस्थितियों में] साधना करते हैं वे अतीत के अन्य सभी साधकों की परिस्थितियों से भिन्न है। आप को काम पर जाना होता है, और आप समाज में रहकर व्यस्तता से काम कर रहे हैं और शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, और इससे आपके मन को शांत करना कठिन हो जाता है। आपको संगीत सुनाने का निश्चित रूप से उद्देश्य यह है कि आप शांत अवस्था में पहुँच पाएँ। संगीत सुनने के एक विचार का उपयोग कर यह आपको अन्य बातों के बारे में सोचने से रोकता है। यह एक विचार का उपयोग कर हजारों अन्य विचारों का स्थान लेता है। लेकिन संगीत सुनना आसानी से एक मोहभाव बन सकता है। सौभाग्यवश हमारे संगीत को ऊर्जा से प्रबल किया गया है, और इसमें हमारे दाफा के तत्व हैं। इसलिए इसे इस तरह परिवर्तित किया गया है जिससे आप को लाभ हो और आप अपनी साधना में सुधार कर पाएँ। दाफा संगीत यही भूमिका निभाता है। संगीत की सतही मधुरता पर ध्यान केंद्रित न करें; दूसरे शब्दों में, इससे मोहभाव न रखें।

प्रश्न : मैंने घूमते हुए श्रीवत्स 卍 को देखा। क्या यह वही चिन्ह है जो गुरू जी ने अंकित किया था?

गुरु जी : साधारण रूप से कहें तो, चिन्ह व्यक्ति के माथे पर अंकित होता है। जो आपको उन अन्य स्थिति में नज़र आते हैं वे केवल श्रीवत्स के प्रतीक हैं, जो बुद्ध मार्ग का चिन्ह है।

प्रश्न : बुद्ध शाक्यमुनि ने बहुत दुःख झेले जब वे लोगों को बचाने के लिए नीचे उतरे। क्या वे अभी भी तथागत के स्तर पर हैं?

गुरु जी : बुद्ध शाक्यमुनि एक तथागत हैं, और यह पूर्णतः सत्य है। लेकिन किसी ने भी इस विषय में बात नहीं की कि वे किस स्तर पर थे। विभिन्न स्तरों पर पाए जाने वाले बुद्ध और फा के दिव्यों सभी को तथागत कहा जाता है। किसी ने भी इसके विषय में बात नहीं की है, और इसे बताया नहीं जा सकता है।

प्रश्न : ताओवादी मार्ग "बुद्ध अमिताभ" और "बोधिसत्व गुआनयिन" के भी जाप क्यों करता है?

गुरु जी : सही रूप से व्यवस्थित ताओवाद मिंग राजवंश [1368–1644 ईस्वी] तक आकार नहीं ले पाया था। इससे पूर्व ताओवादी मार्ग में कोई भी धर्म नहीं था। यह केवल गुरु द्वारा शिष्यों की साधना में मार्गदर्शन कराने का रूप ले लेता था जैसे जैसे वे साधना करते थे। हालाँकि लोगों का एक समूह था, यह किसी पूर्ण-रूप के धर्म में विकसित नहीं हुआ था। मिंग राजवंश के बाद, इसका रूप मूल रूप से मठों और धर्मों के रूप के समान हो गया। क्योंकि ताओ की शुद्ध मन से, एकांत में और शांति से साधना करने की आवश्यकता होती है, इसलिए इसमें सभी चेतन प्राणियों को मोक्ष प्रदान करने के तत्व नहीं हैं। किसी धर्म के निर्मित होने के बाद उसके क्या उद्देश्य होते हैं? एक तो लोगों को फलपदवी प्राप्त करने के लिए साधना में समर्थ करना; दूसरा यह है कि धर्म समाज के लोगों को संपूर्ण रूप से अपने मन और मस्तिष्क को उत्तम बनाने का नेतृत्व करना। इसलिए ताओवाद ने भी इन बातों को करना शुरू कर दिया, लोगों के लिए धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करना और लोगों का मोक्ष का मार्गदर्शन करना पड़ा। क्योंकि बड़ी संख्या में लोग अनुयायी बन गये, इसलिए उन सभी को मोक्ष के मार्ग का सुझाव देना पड़ा। लोगों को मोक्ष प्रदान करने का अर्थ यह नहीं है कि केवल एक या दो लोगों को बचाया जाए—इसे "लोगों को मोक्ष प्रदान करना" नहीं बल्कि "शिष्यों को पालना" कहा जाएगा। इसलिए इन्होंने भी बुद्ध, बोधिसत्व, यहां तक कि अर्हत जैसी उपाधियों का उपयोग करना शुरू कर दिया। जिस [धर्म] के विषय में मैंने अभी बात की है वह साधारण ताओ है—महान ताओ नहीं। यह वर्तमान के इतिहास में संगठित हुआ है।

प्रश्न : एक ग्रसित करने वाले प्रेत ने मेरे शरीर में प्रवेश कर लिया क्योंकि मैंने किसी अन्य चीगोंग का अभ्यास किया। इसके बाद उसने मेरे बेटे के शरीर में प्रवेश किया और उसे वही चीगोंग सिखाया। क्या मैं उसकी आत्मा का ग्रसित होना हटा सकता हूँ ?

गुरु जी : यदि कोई व्यक्ति केवल दाफा के समीप पहुँचता है, पर वास्तव में इसे नहीं अपनाता है—यदि वह केवल इससे परिचित हुआ है या केवल ऊपरी तौर से इसे देख रहा होता है—तो यह सबसे दुःखद बात है! यहां मैं जो कुछ भी सिखा रहा हूँ, वह आपको यह बताने के लिए कि एक साधक कैसे बनना चाहिए। यदि आप अपने मोहभावों को नहीं छोड़ सकते हैं, तो आप कभी भी साधक नहीं बन सकेंगे। आप केवल उन तुच्छ वस्तुओं से जुड़े रहते हुए दुर्गति में फँस सकते हैं। मैं शिष्यों के लिए उन वस्तुओं का समाधान करुंगा जो वास्तव में साधना करते हैं, लेकिन आपको एक साधक होना चाहिए। मैनें आपकी बातों के समाधान के बारे में जो भी कहा है आगे चलकर सब को अपने मन से निकाल देना चाहिए। आपको इस बारे में कुछ भी नहीं सोचना चाहिए कि गुरु जी आपके लिए क्या कर सकते हैं—[केवल यह सोचें] मैं आपके लिए कुछ नहीं करुंगा। आपको बस फा का अभ्यास करना चाहिए और स्वयं को दाफा के प्रति दृढ़ कर देना चाहिए। जहां तक आपके बच्चे की बात है, आपको उसके बारे में कुछ भी नहीं सोचना चाहिए। आप उनका समाधान करने में सक्षम नहीं होंगे, भले ही आप अपना पूरा जीवन उसी में लगा दें। जब आप उनके साथ कोई मोहभाव नहीं रखेंगे, तो समय आने पर मैं उन बातों का ध्यान रखूंगा।

यह कैसे हो सकता है कि जब कोई व्यक्ति फलपदवी प्राप्त करता है तब भी वह बहुत सारी समस्याओं से घिरा हुआ होता है? इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? मैं आपके लिए सबका समाधान कर दूँगा—न केवल पुराने हिसाब जो आपने एक के बाद एक जीवनकाल में एकत्रित किये हैं, बल्कि आपके द्वारा बनाये गये पूर्वनिर्धारित संबंध भी। किसी व्यक्ति के लिए फलपदवी तक साधना करना कोई सरल बात नहीं है। एक के बाद एक जीवन के जो आपके ऊपर ऋण है, और एक के बाद एक जीवन के जो हिसाब आप चुकाना चाहते हैं—और ये बहुत सारे हैं—आपके लिए उन सभी का समाधान करना आवश्यक है। आपको वास्तव में एक ज्ञानप्राप्त व्यक्ति होने के लिए पूर्ण रूप से शुद्ध होना होगा, अंदर से बाहर तक, इससे पहले कि आप फलपदवी प्राप्त कर पाएँ। आप फलपदवी प्राप्त कैसे कर सकते हैं यदि आप अपने साथ लायी गयी कई वस्तुओं का भुगतान नहीं करते, साथ ही साथ कई ऋणों और व्यथाओं का समाधान नहीं करते? लेकिन आप उन वस्तुओं से अवगत नहीं हैं, और न ही आप उनका समाधान कर सकते हैं। आप केवल उनके साथ जीवन भर दुःख के साथ जुड़े रह सकते हैं; आप उनका समाधान नहीं कर सकते। अब जब आप दाफा के साथ जुड़ गये हैं, तब भी उन वस्तुओं से आप परेशान क्यों हैं? अपने मन को शांत कर दें। आपके पास अभी भी कम से कम एक सांस शेष है, और आपके पास अभी भी कम से कम एक पवित्र विचार है, है ना? तो बस दाफा की साधना करें। मान लिया कि आप स्वयं के अन्य भागों को संरक्षित करने में सक्षम नहीं है : कम से कम क्या आप पवित्र विचार वाले भाग को संरक्षित नहीं कर सकते? इसके अतिरिक्त, जब आप भविष्य में फलपदवी प्राप्त करते हैं, तो उन वस्तओं का ध्यान कैसे नहीं रखा जाएगा? लेकिन यदि आप उन वस्तुओं से हठपूर्वक चिपके रहते हैं, तो आपके लिए मैं उन वस्तुओं को कैसे संभाल सकता हूँ? कोई भी विचार मोहभाव है, और मोहभाव मात्र एक या दो दिन में नहीं बनते हैं। इतना अधिक समय बीतने के बाद भी, इतने सारे मोहभाव, और इतना डर, आप कैसे एक साधक हो सकते हैं? इन कठोर शब्दों को सुनना आपके लिए अच्छा है।

प्रश्न : विचार कर्म के कारण मुझे मेरे कुछ विचार आते हैं, और मुझे पता है कि यह मेरे लिए बुरे कर्म को रूपांतरित करने का एक अवसर है। गुरु जी, कृपया इस बारे में बात करें कि इसका क्या किया जाए।

गुरु जी : उस मोहभाव को छोड़ दें, सच्चाई और गरिमापूर्ण ढंग से साधना करें—बस इतना ही! यहां जो शिष्य हैं यदि आप में से किसी के मन में कुछ ऐसी वस्तुएँ हैं जिन्हें आप छोड़ नहीं पाते हैं, इस समय आप उन्हें छोड़ने में सक्षम होंगे। मैं आश्वासन देता हूं कि जब आप आज इस सभागार से बाहर निकलेंगे, तो आपके पास उन विषयों के बारे में सोचने का एक अलग तरीका होगा। साधना मानवीय मोहभावों को अधिकतम मात्रा में छोड़ने की एक प्रक्रिया है। आप उस वस्तु के बारे में इतनी चिंता क्यों करते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके मन में जो वस्तु घुसी हुई हैं, जिसमें आप अटके हुए हैं और बहुत चिंता करते हैं, वह दीवार है—ऐसी दीवार जो आपको मानवीयता को पीछे छोड़ने से रोकती है। मैं कहता हूँ कि आप अपने सभी विचारों को धीरे-धीरे मानवीयता से दूर ले जाएं और दिव्य स्थिति में प्रवेश करें। तब भी आपका प्रत्येक विचार मनुष्यों के इस लोक से जुड़ा और बंधा हुआ है। यह उस जहाज की तरह है जो चलने ही वाला है, तब भी इसकी रस्सियाँ किनारे से बंधी हैं। कई रस्सियां बंधी हुई हैं, और जब तक आप उन्हें खोल नहीं देते तब तक आप नहीं जा सकते।

प्रश्न : कुछ छात्र लंबे समय से रोग कर्म को हटाने की स्थिति में ही है। क्या इसका अर्थ यह है कि वे एक ही स्तर पर हैं और आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं?

गुरु जी : वे वास्तव में बहुत लंबे समय से उसी स्तर पर ठहरे हुए हैं, और दूसरे शब्दों में, मोहभाव बहुत लंबे समय तक बने हुए हैं। अभ्यासियों के बीच साधारणतः दो परिस्थितियां होती हैं। कुछ का कहना है कि उन्हें बहुत लंबे समय से अपनी स्वास्थ्य समस्याओं से मोहभाव है। जैसा कि आप जानते हैं, आपकी साधना केवल एक लक्ष्य तक पहुँचने के लिए नहीं होती है। आपके बुरे कर्म समाप्त होते हैं जब आप स्वयं को सुधारते हैं। यदि आपको बुरे कर्म से मोहभाव है, तो आप स्वयं को अच्छा बनाने में सक्षम नहीं होंगे, और आप अपने नैतिकगुण में सुधार नहीं कर पाएंगे, ऐसी परिस्थिति में आप परीक्षा में सफल होने में सक्षम नहीं होंगे। यह कठिन परीक्षा लंबे समय तक खिंचती चली जाएगी। कहने का अर्थ यह है कि, आप अपनी साधना में प्रगति नहीं कर पाए हैं, और उसी स्थिति में बने हुए हैं। यदि आप सही अर्थों में, लगन से प्रगति कर रहे होते और स्वयं को सुधार रहे होते, तो आप उस परीक्षा में बहुत पहले ही सफल हो चुके होते। लेकिन आपको इतने लंबे समय के बाद भी इसका ज्ञानोदय नहीं हुआ है। और इसके विपरीत, आपने स्वयं उस स्वास्थ्य समस्या के प्रति मोहभाव विकसित कर लिया है, जिसने दाफा की साधना में आपके दृढ़ विश्वास को हिला दिया है। परिणामस्वरूप, इससे पहले कि एक कठिन परीक्षा पर काबू पाया जाता है, अन्य एक के बाद एक ढेर लगा देती हैं, जिससे परीक्षा असहनीय हो जाती है। वास्तव में, हम इस बात को अस्वीकार नहीं कर सकते हैं कि कुछ अभ्यासियों के बहुत से बुरे कर्म हैं। साधना जटिल है। लेकिन मुझे लगता है कि अधिकांश मुद्दे स्तरों में बहुत धीरे-धीरे बढ़ने के कारण हुए हैं, जो उस तरह की स्थिति को बढ़ाते हैं।

प्रश्न : क्या यह ठीक होगा कि आपके फा व्याख्यान जो आपने चुनिंदा अवसरों पर दिये थे, जैसे कि व्यक्तिगत छात्रों के साथ आपकी बैठकें या जब छात्र परिस्थितियों के बारे में बता रहे थे और प्रश्न पूछ रहे थे ,उन्हें दिखाया जा सकता हैं ?

गुरु जी : यह अच्छा नहीं है! कदापि अच्छा नहीं है! कुछ निजी स्थितियों में जब मैंने किसी को रिकॉर्डिंग या वीडियो निकालने की अनुमति नहीं दी, कुछ लोगों ने जिद करके अपनी जेब में टेप रिकॉर्डर छुपा लिया। वह व्यक्ति मुझे मूर्ख बनाने का प्रयत्न करता है, लेकिन वह वास्तव में केवल स्वयं को मूर्ख बना रहा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपकी संपूर्ण साधना के साथ-साथ आपका संपूर्ण सुधार भी स्वयं की साधना करने की एक प्रक्रिया है। कुछ भी छुपाना बचकाने कार्य के समान है। विशिष्ट परिस्थितियों में मैं जिन बातों को संबोधित करता हूँ, वे साधारणतः बातों पर लागू नहीं होती हैं। तो क्या यह दूसरों के साथ हस्तक्षेप नहीं करेगी जब आप उन्हें वे बातें दिखाते हैं जो साधारण परिस्थितियों के लिये नहीं है? मैं आपको बताना चाहूँगा कि, फा के सिद्धांत बहुत व्यापक हैं। मैं सभी की सुविधाओं को ध्यान में रखकर व्यापक और संपूर्ण फा सिखा रहा हूँ, और मैंने आपको कुछ विशिष्ट नहीं बताया है। यदि मैने बताया होता, तो आपके लिए साधना करनी बहुत कठिन हो जाती। आप उन लोगों में से हैं जो दाफा में साधना करते हैं, और दाफा के प्रति उत्तरदायी होना स्वयं के प्रति उत्तरदायी होना है। यदि यह दाफा एक कदम भी भटक जाता है, तो आप वापस नहीं लौट पाएंगे। यदि फा पवित्र नहीं होता, आप फलपदवी तक साधना नहीं कर पाएंगे।

प्रश्न : मैंने स्वयं के भीतर झाँकना सीख लिया है और अपने मन में चल रहे बुरे विचारों को सचेतनता से हटा रहा हूँ, लेकिन कभी-कभी जब मैं किसी को उसके बुरे विचारों के बारे में बताता हूँ, तो वह मुझसे नाराज हो जाता है। क्या मैंने बुरे कर्म उत्पन्न किये ?

गुरु जी : यह बुरे कर्म उत्पन्न करना नहीं है। यह अच्छा है कि हमारे जो मोहभाव हैं उन्हें हम देख सकते हैं, लेकिन हमें ऐसे लोग नहीं बन जाना चाहिए जो सभी छोटी-छोटी बातों से बहुत चिंतित हो जाते हैं।

जहां तक दूसरों को बताने की बात है, यदि आपने इसे अच्छे आशय के साथ किया है, तो आपको ऐसा ही करना चाहिए। जब आप साधना करते हैं तो क्या आपको दूसरों की भलाई की चिन्ता नहीं करनी चाहिए? आपको पहले दूसरों के बारे में सोचना चाहिए। जब आप किसी और की कमी देखते हैं, तो उसे क्यों नहीं बताएं, क्योंकि वह भी साधना कर रहा है? इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह इसे कैसे समझता है, यदि उसे बताना आवश्यक है, तो आपको उसे बताना चाहिए। आपका अभिप्राय नेक था और गुरु जी ने उसे देखा, और यह आवश्यक नहीं है कि आप इसे दूसरों को दिखाएं। यदि वह यह नहीं स्वीकार करता है कि आप क्या कहते हैं, चाहे वह इसे मानता है या नहीं, आपने उसके मोहभावों को स्पर्श किया है जिन्हें उसे हटाने की आवश्यकता है, और मुझे लगता है कि यह उसके सुधार के लिए उत्प्रेरक का काम करेगा। हो सकता है कि उस समय उसे ज्ञानोदय न हो, लेकिन बाद में हो सकता है। यदि वह तब भी इससे अवगत नहीं होता है, तो मैं उसे सचेत करने के लिए अन्य लोगों के मुंह से कहलवाऊंगा। यदि अब भी उसे पता नहीं चलता है, तो उसके सिर पर कुछ लगेगा और वहां बड़ी सूजन हो जाएगी। (गुरु जी हंसते हैं) बस उपहास कर रहा हूँ! वास्तव में, साधना मोहभावों को दूर करने के लिए है। यदि आप यह समझना चाहते हैं कि साधना कैसे की जाती है, तो आपको जुआन फालुन पुस्तक को पढ़ना होगा, और इसे बार-बार पढ़ना होगा। यदि आपको स्वयं के मोहभावों का पता चल गया है लेकिन आप उसे दूर नहीं करना चाहते हैं तो यह आपकी समस्या है। यदि आप स्वयं उन्हें ढ़ूँढ़ने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन अन्य लोगों ने उन्हें आपको बताया है और यदि आप इससे नाराज हो जाते हैं, तो आप जुआन फालुन से मार्गदर्शन ले सकते हैं। आपको इसे किसी भी उद्देश्य को ध्यान में रखकर पढ़ने की आवश्यकता नहीं है, बस जुआन फालुन को उठायें, और चाहे वह चीनी, अंग्रेजी, या किसी अन्य भाषा में हो, जब आप इसे कहीं से भी खोलते हैं, तो यह निश्चित है कि जो भी अनुभाग खुलेगा वह सीधे आपसे संबंधित होगा। ऐसा होना निश्चित है। लेकिन इसे प्रयोग के तौर पर न करें। प्रयोग करने का अभिप्राय बहुत अनुचित है; यह फा के प्रति सम्मानजनक नहीं है। इसलिए यदि आप इसका परीक्षण करना चाहते हैं, तो यह काम नहीं करेगा या आपकी सहायता नहीं करेगा।

प्रश्न : दो साल हो गये हैं जब मैंने फा का अभ्यास शुरू किया था, और मेरे नैतिकगुण में सुधार हुआ है। लेकिन मुझे शारीरिक रूप से किसी भी कठिन परीक्षा का अनुभव नहीं हुआ। क्या गुरु जी अब भी मेरी देखभाल कर रहे हैं?

गुरु जी : आपने दो साल से साधना की है। इसके बारे में सोचें : यदि मैंने आपका ध्यान नहीं रखा होता, आप इस साधना को बहुत पहले ही छोड़ चुके होते। वास्तव में, आपको दूसरों से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए। आप सोच रहे होंगे, "दूसरे लोग कठिन परीक्षा से गुजर चुके हैं, जैसे कार से टकरा जाना। और भले ही कार क्षतिग्रस्त हो गई थी, लेकिन उन्हें शारीरिक रूप से कोई चोट नहीं आई। मुझे भी उस तरह की परीक्षा से गुजरना चाहिए।" साधना में सब की एक अलग परिस्थिति होती है। मैंने आपके लिए यह व्यवस्था नहीं की होगी, और हो सकता है कि मैंने बुरे कर्म को समाप्त करने में आपकी सहायता करने के लिए अन्य मार्गों का उपयोग किया हो। वास्तव में, यदि सभी परीक्षाएं समान होती, आपके लिए साधना में करने के लिए कुछ भी नहीं होता—जैसे ही आप इसे आते हुए देखते आपको सब पता चल जाता। यदि आप जिससे टकराते, वह दूसरे व्यक्ति के समान ही होता और आप केवल उसका अनुसरण करते, तो वह साधना नहीं होगी। इसलिए सभी की परिस्थिति बहुत भिन्न होती है।

प्रश्न : मेरा बच्चा गुरु जी के फा व्याख्यानों की टेप रिकॉर्डिंग सुनने का अभ्यस्त हो रहा है। उसके सोने से पहले मैं भी इसे उसके लिए चलाता हूँ। तो ऐसा करने से जब वह बड़ा होगा तब क्या फा सुनने पर उसे नींद आएगी ?

गुरु जी : ऐसा नहीं होगा। आपने सही किया है। बच्चे को इसे सुनने में आनंद आता है क्योंकि उसका मुख्य, मूल प्रकृति वाला पक्ष इसे समझता है। बच्चों के तीन साल की उम्र के पहुँचने तक वे मूल प्रकृति वाली वस्तुएँ धीरे-धीरे कम और दब जाती हैं। तीन के बाद और छः साल की उम्र से पहले तक बच्चे फिर भी मासूम होते हैं। वे छः के बाद अपनी अवधारणाएँ बनाते हैं।

प्रश्न : साधना के लिए पूर्व निर्धारित संबंध कैसे बनाये गये थे?

गुरु जी : कुछ का गठन विभिन्न स्तरों पर किया गया था, और कुछ का गठन इस मानव स्थान में किया गया था।

प्रश्न : हमारे क्षेत्र में, दाफा सामग्री अभी भी सार्वजनिक रूप से समाज में बड़े स्तर पर वितरित नहीं की गयी है। क्या यह किसी विशेष कारण से है?

गुरु जी : आप सभी की साधना अच्छी चल रही है। संरचना के संदर्भ में, आप मूल रूप से दाफा के संरचना के अनुसार साधना कर रहे हैं, और यह कोई समस्या नहीं है। सामग्री के विषय में, कुछ क्षेत्रों में उनके पास हो सकती है और कुछ में नहीं हो सकती है। मुख्य भूमि चीन में ऐसे भी क्षेत्र हैं जहां कई दर्जन लोगों को एक ही पुस्तक साझा करनी पड़ती है, जहां उनके पास सामग्री की दुःखदायक कमी है। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में पुस्तकों की वास्तव में कम आपूर्ति हैं। पुस्तकों की बहुत ही कम आपूर्ति हैं। इन समस्याओं का समाधान किया जाएगा।

प्रश्न : हम फा के आधार पर फा को अच्छी तरह कैसे समझ सकते हैं ?

गुरु जी : फा के आधार पर फा को समझने में असफल होने का सबसे बड़ा कारण लोगों की साधारण मानवीय अवधारणाओं के साथ फा को देखना है, और बाहरी व्यक्ति की तरह साधारण मानवीय शब्दों का उपयोग करते हुए दाफा के बारे में बोलना है। यदि कोई फा के सिद्धांतों के आधार पर फा को समझता है, तो वह जो कहता है वह फा होगा, और उसका व्यवहार भी दाफा अभ्यासी का होगा। यही लगन से साधना है। उसकी बोलचाल अलग है। वह इस बात पर चर्चा करता है कि साधना में लगन से प्रगति करते हुए कैसे और भी अधिक परिश्रमी होना चाहिए। हालाँकि जो लोग फा के आधार पर फा के बारे में बात नहीं कर पाते हैं, वे इसे केवल अवधारणात्मक रूप से समझ रहे हैं, या केवल साधारण मानव मानसिकता के आधार पर अनुभव कर रहे हैं कि दाफा अच्छा है, और फा के बारे में साधारण मानवीय शब्दों में बात करते हैं। यह साधारणतः ऐसा ही है। इनमें अंतर बहुत अधिक है।

प्रश्न : आजकल मेरा मनोबल कम हो गया है, और कार्यों को ऊर्जावान रूप से नहीं कर पाता हूँ। क्या यह आलस्य है?

गुरु जी : परिश्रमी बनो! सुधर जाओ! मैं आपको बताना चाहता हूँ कि यह आसुरिक-प्रकृति की एक और अभिव्यक्ति है, और यह विचार कर्म के कारण होता है। यह आपको निश्चित रूप से उस स्थिति में उलझा देता है और आपकी प्रगति को अवरुद्ध कर देता है। यदि आप फा के सिद्धांतों के आधार पर फा को समझते हैं और वास्तव में परिश्रम के साथ प्रगति करते हैं, तो आप इससे उबर जाएंगे।

प्रश्न : मेरा तीन वर्षीय पोता गुरू जी की तस्वीर और फालुन प्रतीक को देखना पसंद करता है। वह कहता हैं, "फालुन दिव्य लोक और पृथ्वी में घूमता है, फलपदवी प्राप्त करने का अर्थ घर लौटना है।" लेकिन बच्चे का पिता हमेशा उसके फा सीखने के साथ हस्तक्षेप करता है। कुछ ऐसी बातें हैं जिनमें मैं सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

गुरु जी : पहले आपको कारणों के लिए स्वयं की जांच करने की आवश्यकता है। क्योंकि उसके पिता इसे नहीं समझते हैं और उसे साधना नहीं करने देते, उनकी उपस्थिति में ऐसा मत करो। इसके बारे में सोचें : साधना करना सबसे सही है। क्योंकि उसके पिता इसे नहीं समझते हैं और आप स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाते हैं, आप बच्चे से इसके बारे में कुछ समय बाद बात कर सकते हैं। आप जानते हैं कि वह कोई साधारण बच्चा नहीं है। वह केवल तीन साल का है, लेकिन उसके कहे गए शब्द साधारण लोगों द्वारा नहीं बोले जाते।

प्रश्न : साधारण लोगों की सफलता के लिए होड़ और आपने जिन मोहभावों के बारे में बताया है क्या वे समान हैं?

गुरु जी : ब्रह्मांड के दाफा ने विभिन्न स्तरों के जीवन के अस्तित्व के लिए वातावरण बनाये हैं और विभिन्न स्तरों पर जीवन का सृजन किया है। मनुष्य वातावरण के सबसे निचले स्तर पर हैं और ब्रह्मांड के दाफा द्वारा रचित जीवन हैं। इस स्तर पर इसने मनुष्यों के लिए सिद्धांतों को बनाया है जो उन्हें जानने चाहिए। जहां तक दाफा के साथ समानता की बात है, मैं आपसे सहमत नहीं हो सकता। सफलता की होड़ मनुष्यों के लिए एक अच्छी बात हो सकती है। लेकिन वह साधारण लोगों के लिए है। मैं यहां जो बात कर रहा हूँ वह साधकों की है। साधक काम और पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करते हैं जो उन्हें करना चाहिए, लेकिन वे इससे मोहभाव नहीं रखते हैं।

प्रश्न : क्या अपनी कक्षा में पहले स्थान पर आने के लिए विद्यालय में परिश्रम के साथ पढ़ाई करना एक मोहभाव है ?

गुरु जी : मैंने इस विषय को बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है। कई बच्चों ने न केवल फा अच्छी तरह से सीखा है, बल्कि विद्यालय में अपनी पढ़ाई में पहले या दूसरे स्थान पर भी आए हैं। ऐसे बहुत से है, और बहुत सारे हैं। ऐसा आवश्यक नहीं है कि उनको शैक्षणिक उपलब्धियों से मोहभाव है, लेकिन यह कि दाफा की साधना के माध्यम से उन्हें समझ में आ गया है कि उन्हें क्या करना चाहिए। वे विद्यालय की पढ़ाई और फा को अच्छी तरह से संतुलित करने में सक्षम हैं। छात्रों को अपने विद्यालय के कार्यों में अच्छा प्रदर्शन करना चाहिए। जो फा को समझने से आता है; वे जानते हैं कि वे जहां भी हों उन्हें अच्छे लोग बने रहना चाहिए। वे जानते हैं कि क्योंकि वे छात्र हैं, उन्हें परिश्रम से पढ़ाई करनी चाहिए। इसलिए स्वाभाविक रूप से वे अच्छा करते हैं। जब तक वे परिश्रम से पढ़ाई करते हैं और अपने कार्यों को पूरा करते हैं, उन्हें अच्छे विद्यालयों में प्रवेश मिल जाएगा या उन्हें महाविद्यालय में स्वीकार किया जाएगा। यह अच्छे विद्यालयों, या उच्च अंकों, या महाविद्यालय से मोहभाव रखने के माध्यम से नहीं मिल सकता है। मैं हमेशा यह कहता हूँ : जब लोग कुछ करने के बारे में सोचते हैं या कुछ पाना चाहते हैं, तो इसका परिणाम अधिकतर विपरीत होता है; जब आप किसी कार्य को अच्छे से करने के बारे में अधिक नहीं सोचते हैं, तो यह स्वाभाविक रूप से हो जाएगा।

प्रश्न : यदि कोई अपने काम में बहुत अधिक समय और परिश्रम व्यय करता है और उत्कृष्टता चाहता है, तो क्या यह मोहभाव है ?

गुरु जी : यदि आप काम के दौरान बेकार इधर उधर घूमते रहते हैं और अच्छा काम नहीं करते हैं, तो मुझे लगता है कि जब आप अपना वेतन प्राप्त करेंगे तो आपको अच्छा नहीं लगेगा। क्योंकि एक साधक चाहे वह जहाँ भी हो उसे एक अच्छा व्यक्ति होना चाहिए। यह केवल एक अच्छे व्यक्ति का दिखावा करने के लिए एक अच्छा व्यक्ति बनने के बारे में नहीं है। आप एक साधक हैं, और आपको इन सभी बातों को अच्छी तरह से संभालने में सक्षम होना चाहिए। यह ऐसा ही होना चाहिए।

प्रश्न : मुझे चिंता है कि मैं साधना में सफल नहीं हो पाऊंगा। मैंने अपना मन बना लिया है कि यदि मैं इस जीवनकाल में सफल नहीं हो पाया, तो मैं अगले जीवनकाल में अपनी साधना जारी रखूंगा।

गुरु जी : आप बहुत दृढ़ संकल्पित प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में आप थोड़े से भी संकल्पित नहीं हैं। यदि आपकी वर्तमान स्थिति आपके अगले जीवनकाल में दोबारा आयेगी तो क्या होगा? तब, क्या आप फिर उससे अगले जीवनकाल में साधना करेंगे? आपको दृढ़ संकल्पित होने की आवश्यकता है कि इस पूर्वनिर्धारित अवसर को कदापि नहीं गंवाए, और तब आप निश्चित रूप से इस जीवनकाल में सफल हो पाएंगे।

प्रश्न : अब मुझे समझ में आ गया है कि फालुन दाफा भविष्य की मानवजाति के लिए व्यापक रूप से फैलाया नहीं जाएगा। फिर मेरे लिए अपने अगले जीवनकाल में साधना जारी रखनी आवश्यक नहीं है। क्या यह सोच सही है ?

गुरु जी : आप कह रहे थे कि आप इस जीवनकाल में सफल नहीं हो सकते, और आप अपने अगले जीवनकाल में साधना करते रहेंगे, लेकिन अगले जीवनकाल में फालुन दाफा नहीं होगा, इसलिए उस समय साधना करने का कोई लाभ नहीं है। लेकिन क्योंकि यदि आपने प्रश्न पूछा है, इसका अर्थ है कि आप में अभी भी साधना करने की इच्छा है। परिश्रमी बनें। अपने मोहभावों को छोड़ दें और सही अर्थों में साधना करें। ऐसा क्या है जो आप त्याग नहीं सकते? आप जानते हैं कि इस ब्रह्मांड में एक भी घटना संयोग से नहीं होती है। इतनी बड़ी घटना मानव समाज में घटित हुई है—क्या यह संयोग हो सकता है? मैं भविष्य की मानवजाति के बारे में कुछ भी जाहिर नहीं कर सकता, क्योंकि तब आप मोहभाव के कारण सीखने आएंगे। यह मोहभाव के साथ सीखना होगा। मुझे लगता है कि आप में लगन नहीं होने का कारण यह है कि आपको अभी तक फा की पर्याप्त समझ नहीं है। इस समस्या को हल करने का विकल्प केवल पुस्तक को अधिक पढ़ना है। यह केवल आपका थोड़ा समय लेता है, और इससे आपको शारीरिक या मानसिक कष्ट भी नहीं होता है। पुस्तक को अधिक पढ़ें, अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करें, और देखें कि क्या आप लगन से आगे बढ़ सकते हैं और क्या आप अपनी साधना में बने रह सकते हैं।

प्रश्न : हांगकांग के शिष्यों की ओर से गुरु जी को शुभकामनाएं!

हम हांगकांग मीडिया द्वारा गुरु जी और फालुन दाफा पर विकृत समाचार के लिए गहरा दुःख अनुभव करते हैं। हमने मीडिया को उनके अनुचित और विकृत समाचारों को सही करने के लिए सार्वजनिक पत्र भेजा है। सिडनी और न्यूजीलैंड में गुरु जी के फा उपदेशों को सुनने के बाद, हम अभ्यासी गुरु जी के फालुन दाफा के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए और वास्तव में फा की साधना और प्रसार करने के लिए और भी अधिक दृढ़ हो गये हैं।

गुरु जी : आप सभी का धन्यवाद! (तालियां) फालुन दाफा के लिए विश्व में सभी व्यक्तियों को पुस्तक की प्रतिलिपि प्रदान करना संभव नहीं है, और चीन में एक अरब से भी अधिक सभी लोगों को पुस्तक की एक-एक प्रतिलिपि प्रदान करना संभव नहीं है और फिर तय करना कि उन्हें किस स्तर पर रखा जाना चाहिए। मनुष्यों का एक पक्ष है जो सब समझता है साथ ही एक पक्ष है जो नहीं समझता। हालाँकि ऊपरी तौर पर वे जागरूक नहीं हैं, वास्तव में, उन सभी के पास एक पक्ष हैं जो जागरूक है। जब फालुन दाफा और सत्य, करुणा, सहनशीलता के शब्दों को लोगों को बताया जाता है, तो उनके मन में कुछ विचार आएंगे। उस क्षण वे क्या सोचते हैं, इसके आधार पर, यह उनके भविष्य और उनके स्तरों को निर्धारित कर सकता है। इसलिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह कैसे बताया गया था और उन्होंने इसे कैसे संभाला, जैसा कि मैंने कल कहा था, संसार के लगभग सभी कोनों में लोगों ने सुना है कि क्या हुआ; सब कोई इस बारे में अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। यह कोई साधारण बात नहीं है। इतने गंभीर दाफा के साथ, इसके बारे में सोचें : जो कुछ भी पत्रकार ने लिखा है, उसने जो कुछ भी किया उसका उत्तरदायित्व उसे स्वयं उठाना होगा। और यह इस तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि साधारण मानव समाज में प्रत्येक व्यक्ति और भविष्य में, प्रत्येक व्यक्ति को अपने द्वारा किए गए सभी कार्यों का उत्तरदायित्व उठाना होगा। यह एक पूर्ण सत्य है—यह पूर्णतः वास्तविक है। दाफा पर हमला करना स्वयं में कोई छोटी बात नहीं है, क्योंकि इस फा द्वारा ही मनुष्यों का सृजन किया गया था। यदि कोई व्यक्ति इसका विरोध करता भी है, तो उसका अंत क्या होगा?

प्रश्न : मैं, आपका अभ्यासी, हाँग यिन पुस्तक पढ़ने के बाद मेरी आँखों से आँसू बहने लगे, और मुझे इससे बहुत लाभ हुआ। यह हमारी साधना के लिए एक और अनमोल पुस्तक है।

गुरु जी : उस पुस्तक में मैंने मुख्य रूप से साधना की वस्तुओं और फा से जुड़ी वस्तुओं के बारे में लिखा है। मैंने सोचा कि इसे पढ़ने से आपको सुधार करने में सहायता मिल सकती है, इसलिए हमने इसे प्रकाशित किया।

प्रश्न : बीजिंग में हुई घटना के संबंध में, हम सभी को इसे सहन करना चाहिए और दाफा में दृढ़ होना चाहिए।

गुरु जी : यह वास्तव में सही है कि लोगों को स्वयं की साधना की संभाल करनी चाहिए। लेकिन यदि अन्य लोग आप पर अनुचित मार्ग होने का आरोप लगा रहे हैं और आप उदासीन बने हुए हैं, तो मैं कहूँगा कि यह कोई सही बात नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारा प्रत्येक अभ्यासी दाफा में साधना कर रहा है, और वह दाफा की अनमोलता को जानता है। दाफा को संजोना स्वयं को संजोना है। आपके दाफा सीखने के दौरान, आप अक्सर कुछ परीक्षाओं का सामना करेंगे, आपके सपनों में परीक्षाओं सहित, वे आपके दैनिक कार्य में या आपके दैनिक जीवन में भी होंगी। वे सीखने के कुछ समय के बाद आयोजित प्रश्नोत्तर की तरह होंगे जो यह जाँचने के लिए आते हैं कि क्या आप दृढ़ हैं और अच्छी तरह से सीख चुके हैं। और मैं आपको बता सकता हूं कि उस समय भी परीक्षाएं होंगी जब आप अंततः दाफा में फलपदवी प्राप्त कर रहे होंगे।

प्रश्न : यदि अनुवांशिक रोगों का कारण बनने वाले जीन को हटा दिया जाए , तो क्या वे जो इससे प्रभावित होंगे—उदाहरण के लिए प्रयोगशाला तकनीशियन और बाद में गर्भ धारण किए गए बच्चे, और साथ-साथ इस आयाम और अन्य आयामों में भी—उनको कोई लाभ या हानि होगी ?

गुरु जी : मैं इसे कैसे समझाऊं? आप अन्य आयामों में वस्तुओं को स्पर्श करने में सक्षम नहीं हैं। लोग निरंतर मानव जीवन विज्ञान के क्षेत्र में खोज कर रहे हैं, लेकिन वे जो जान सकते हैं वह मानव शरीर की सबसे बाहरी सतह की अवस्था है, जो अणुओं द्वारा बनायी गयी है। फिर भी मनुष्य कभी नहीं जान पाएंगे कि मूल रूप से मानव जीवन किन से बना है। हालाँकि लोग मानव जीवन के मूल तक जाने का प्रयत्न करते हैं और पता करने की कोशिश करते हैं कि वास्तव में जीवन क्या है, ये बातें हमेशा मानवजाति के लिए एक रहस्य बनी रहेंगी। उस जानकारी को जानने की मनुष्यों को किसी भी प्रकार से अनुमति नहीं है। अनुवांशिक रोगों को दूर करने वाले जीन को हटा दिया जाए तो लोग ठीक हों ही जायेंगे, यह इस तरह से काम नहीं करता है। मानव शरीर के अपने कारक हैं जो रोग का कारण बनते हैं। साथ ही, रोग-विज्ञानियों ने पाया है कि रोग उन कारकों के कारण नहीं होते हैं जो कभी रोग का कारण माने जाते थे। इसलिए मनुष्यों के लिए रोग मुक्त होना संभव नहीं है।

साधना के दृष्टिकोण से, यदि किसी व्यक्ति को कभी भी स्वास्थ्य समस्याएं नहीं होती हैं तो मृत्यु के बाद उसका नरक जाना निश्चित है। क्यों? यदि कोई व्यक्ति केवल बुरे कर्म उत्पन्न करता है और अपने बुरे कर्मों का भुगतान नहीं करता है, वह जिन बुरे कर्मों को वह संचित करेगा वे बहुत अधिक होंगे। यही कारण है कि मनुष्यों को स्वास्थ्य समस्याएं, दुःख, जीवन में कष्ट, क्लेश और कठिन समय होते हैं। यह सब लोगों के बुरे कर्मों को दूर करता है, यह उनके बुरे कर्मों को कम करता है। जब किसी व्यक्ति को स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, तो बहुत अधिक बुरे कर्म समाप्त हो जाते हैं। तब क्या स्वास्थ्य समस्याओं का होना अच्छी बात है? कदापि नहीं। यदि वह व्यक्ति उन बुरे कर्मों को नहीं करता, तो उसे संभवतः ही कोई रोग होगा। तो क्या इसका अर्थ यह है कि लोगों को रोगजनक जीन को हटाने की आवश्यकता नहीं है? वास्तव में, लोग जो भी करना चाहें वे कर सकते हैं—वे मानवीय बाते हैं। मैं आपको केवल सिद्धांत बता रहा हूँ। मनुष्य हमेशा खोज करना चाहता है और हमेशा "उन्नति" करना चाहता है। मनुष्य के पास हमेशा वे विकृत विचार होते हैं, इसलिए वे जो चाहे कर सकते हैं। आधुनिक विज्ञान ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है और छोटे से छोटे क्षेत्रों में भी है। सब कुछ जैसे उसी के लिए जीवित और अस्तित्व में है। इस तरह के शोध करने के लिए आप स्वतंत्र हैं, क्योंकि आज लोग इसी परिस्थिति के बीच जीते हैं। वह केवल आपका काम है। मुझे लगता है कि आपको इसे अच्छी तरह से करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। यहाँ कोई समस्या नहीं है।

आपके द्वारा बताये गये लाभ या हानि की बात की जाए तो, उनका साधना से कोई लेना-देना नहीं है। आप केवल अपना काम कर रहे हैं। आपका काम और साधना अलग-अलग है, वे एक ही बात नहीं हैं। आपका काम आपकी साधना का स्थान नहीं ले सकता। लेकिन आपके नैतिकगुण और आपकी साधना की अवस्था आपके काम में और आपके आस-पास की सभी वस्तुओं के प्रति आपके व्यवहार में प्रतिबिंबित होगी।

प्रश्न : यदि ब्रह्मांड एक व्यवस्थित प्रणाली है, और ऊर्जा असीमित है, तो आधुनिक अव्यवस्था सिद्धांत ब्रह्मांड के बनावट में कैसे बैठेगा ?

गुरु जी : वास्तव में, चाहे वह मानव स्तर पर कितना भी अव्यवस्थित क्यों न हो, चाहे विचारों के कितने भी मार्ग हों—प्राचीन चीन में दर्शनशास्त्र की सैकड़ों पद्धतियां थीं, और वर्तमान समय में दर्शन और धर्म में भी कई सिद्धांत हैं—वे जो भी कहें या करें, वे सभी इस स्तर की वस्तुएँ हैं। वे ब्रह्मांड को प्रभावित नहीं करते हैं। मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। यह दूसरों की बुराई करने जैसा लग सकता है, लेकिन यह वास्तव में ऐसा नहीं है। मैं केवल एक उदाहरण दे रहा हूँ : कूड़ेदान हमेशा विभिन्न गंधों का उत्सर्जन करता है, और आप इसे रोक नहीं सकते। यह इस मानव स्थान में अव्यवस्था की अभिव्यक्ति मात्र है। इसलिए इसका ब्रह्मांड से कोई सीधा संबंध नहीं है। अव्यवस्था के कारण ही हम लोगों के मन को देख सकते हैं, और हम समझ सकते हैं कि किसके विचार अभी भी पवित्र हैं।

प्रश्न : एक बार मैं वास्तव में आठ घंटे और बीस मिनट के लिए कमल मुद्रा में बैठा था। उसके बाद से मैं हमेशा लंगड़ा कर चलने लगा। यह अब थोड़ा ठीक है। क्या मेरा वास्तव में ऐसा करना अनुचित था ?

गुरु जी : आठ घंटे या इससे अधिक यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे आपको करना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार अधिक अभ्यास करना अच्छी बात है। यदि यह आपकी क्षमता से अधिक है और तब भी आप उस स्थिति में लंबे समय तक बैठने पर बल देते हैं, या एक निश्चित ढंग से कुछ करने पर बल देते हैं, हालांकि, साधना के लिए आपका मन बहुत अच्छा है, लेकिन क्या यह एक और मोहभाव हो सकता है? यदि आपको वास्तव में कमल मुद्रा में बैठने का मोहभाव है, तो यह एक ऐसा कारक पैदा कर सकता है जो आपको इस तथ्य से ज्ञानोदय और अनुभव करवाएगा। इसलिए मुझे लगता है कि आपकी साधना में आपको किसी भी तरह का मोहभाव नहीं होना चाहिए, जैसे किसी बात में प्रथम बनने पर बल देना, या ध्यानावधि में सभी को पीछे छोड़ना या कोई अन्य मोहभाव विकसित करना। यह निश्चित है कि इसका विपरीत परिणाम होगा। आपको निश्चित रूप से दाफा की साधना में मोहभाव विकसित नहीं करने चाहिए—आपको केवल मोहभावों को हटाना चाहिए।

यदि ऐसा होता है कि, लंबी अवधि की साधना के माध्यम से, आप स्वाभाविक रूप से उस लंबी अवधि के लिए कमल मुद्रा में बैठने में सक्षम होते हैं, साथ ही आपके पास समय है क्योंकि घर पर कुछ खास काम नहीं है, और आप लंबे समय तक बैठ सकते हैं, तब मुझे लगता है कि यह ठीक है। लेकिन एक और बात है। मैंने कहा है कि हमारा दाफा लंबी अवधि की गहन शांति (दिंग) की अवस्था का समर्थन नहीं करता है। फा का अधिक अभ्यास करने के लिए, आपको पुस्तक को और अधिक पढ़ना होगा। आपको जानते हुए अपने मन की साधना करनी है और फा में सुधार करना है। साधना अभ्यास फलपदवी को प्राप्त करने का एक पूरक साधन मात्र है। इसलिए यदि आप उन आठ घंटों को फा अभ्यास करने में व्यतीत करते, तो मुझे लगता है कि आपने बहुत सुधार किया होता। वास्तव में, मैंने आपसे पहले कहा था कि जब हमने इस फा को सिखाना शुरू किया था तब हमने इस प्रश्न पर विचार किया था कि साधारण मानव समाज के लोगों से साधना कैसे करवाई जाए। क्योंकि उनके पास समय की कमी है, ऐसे कई लोग जो काम में व्यस्त हैं निश्चित रूप से उनके पास इतनी लंबी अवधि तक ध्यान का समय नहीं है।

वास्तव में, मैंने इसे पहले भी संबोधित किया है। यहां तक ​​कि यदि आपके पास ध्यान करने के लिए केवल आधे घंटे का समय भी है, मैं आपको पीछे नहीं छूटने दूँगा। अभ्यास के माध्यम से जिसका भी समाधान किया जाना चाहिए, उसके संदर्भ में आपको पीछे नहीं छूटने दिया जाएगा—हमारी साधना वास्तव में उस परिस्थिति को ध्यान में रख कर बनायी गयी है। यदि सब कोई इसे प्रत्येक दिन आठ घंटे करता है, तो हम साधारण मानव समाज में अपने काम नहीं कर पाएंगे, और अन्य लोग हमें समझ नहीं पाएंगे। यह सही नहीं होगा। मैं जिस बारे में बात कर रहा हूँ वह एक सिद्धांत है। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप यह या वह नहीं कर सकते। यदि आपके पास बहुत समय है और स्वाभाविक रूप से बहुत लंबे समय के लिए ध्यान करने में सक्षम है, तो मैं इसके विरुद्ध नहीं हूँ। मेरे कहने का यह अर्थ है कि आपको मोहभावों के साथ कुछ भी नहीं करना चाहिए।

मेरे सोचने का ढंग अधिकतर पूर्वी होता है। अभी मैं जिस तरह से बोल रहा था उस पूरे समय में मैं सभी बातों के दोनों पक्षों को संबोधित कर रहा था। मुझे पक्का नहीं पता है कि कॉकेशियन शिष्य इसे समझ पाए हैं। क्या आपको समझ में आया? (तालियां) बढ़िया। मेरे सोचने का ढंग ज्यादातर एशियाई होता है जब मैं फा सिखाता हूँ, इसलिए मैं आपसे पूछना चाहता था।

प्रश्न : यदि किसी प्राणी को त्रिलोक में सृजित किया गया हो, क्या उसके लिए त्रिलोक से परे साधना करनी बहुत कठिन है ?

गुरु जी : आवश्यक नहीं है। अतीत के साधना मार्गों में यह बहुत कठिन था। आप कह सकते हैं कि यह असंभव था। हालाँकि वे कहते थे कि वे व्यापक तौर पर सभी चेतन जीवों को मोक्ष प्रदान कर रहे हैं, तथ्य यह है कि, मोक्ष केवल उन्हीं को दिया जाता था जो उनके अपने लोकों से उतरे थे। जैसे बुद्ध शाक्यमुनि और यीशु, जो लोगों को बचाने के लिए आए थे, उन्होंने अपनी प्रजाति की सीमाओं के भीतर सभी को मुक्ति प्रदान की। लेकिन इसकी भी कुछ सीमाएं थीं। वर्तमान में, ब्रह्माण्ड के सभी चेतन प्राणी स्वयं की स्थिति बदल रहे हैं। तो इस विषय [जो आपने उठाया है] को ध्यान में रखकर कुछ अन्य अवसरों की संभावनाएं हैं। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति इन सब विषयों को कैसे संभालता है।

प्रश्न : हमारे दाफा में बुद्धमत, ताओवाद और चीमन सिद्धांत सम्मिलित हैं। अन्य तथागतों ने जिन फा सिद्धांतों की पुष्टि और ज्ञानप्राप्ति की है क्या वे हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं ?

गुरु जी : नहीं। दाफा में सब कुछ सम्मिलित है, लेकिन आप किसी भी बगल मार्ग के, किसी भी बगल मार्ग की पद्धति के, या किसी भी तथागत के सिद्धांतों को नहीं जोड़ सकते। वे केवल आपकी समझ को भटका सकते हैं, क्योंकि उन्हें ब्रह्मांड के दाफा के साथ एक ही श्रेणी में रखा या उल्लेखित नहीं किया जा सकता है। फा ने समझ और ज्ञानप्राप्ति की अवस्था के विभिन्न स्तर निर्माण किये हैं। दाफा में आपने जो कुछ भी साधना की है उसमें भी फा के ऐसे तत्व हैं जिनको आप स्वयं मान्य और ज्ञानोदय करते हैं। वही ज्ञानप्राप्ति की अवस्था है जो आपने स्वयं प्राप्त की है।

साथ ही यह भी बताना चाहूँगा कि : यहां आप में से कुछ नये लोग हैं जिन्होंने अभी तक मेरी पुस्तक नहीं पढ़ी है, या आप यहां हमारे शिष्यों या आपके परिवारों द्वारा लाये गये हैं। यह संभवतः एक पूर्वनिर्धारित संबंध के कारण है कि आप यहां बैठे हैं। तब भी मुझे आपको यह बताने की आवश्यकता है कि आपके प्रश्नों के उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है। ऐसा क्यों है? मेरे लिए यहां होना इतना सरल नहीं है, यह पहली बार है कि [मेरे शिष्यों] ने कई वर्षों तक यहां रहने के बाद एक फा सम्मेलन आयोजित किया है, और उनकी साधना में बहुत सारे प्रश्न हैं जिनके मुझे उत्तर देने हैं। इसलिए साधकों के लिए समय अनमोल है। इसलिए मैं आपको समय नहीं दे सकता हूँ। ऐसा क्यों? कृपया समझें। आपके द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न साधारण लोगों के प्रश्न होते हैं, और मैं मानव समाज की वस्तुओं को नहीं संभालता। किसी ने अभी पूछा, "क्योंकि आपके गुरु जी इतने सक्षम हैं, वे देश की अर्थव्यवस्था को क्यों नहीं बढ़ा देते?" सब कोई जानता है कि मानव समाज का विकास कुछ नियमों के अनुसार होता है। एक विशेष चरण में क्या होगा यह दिव्यों द्वारा निर्धारित किया जाता है। बुद्ध, ताओ और दिव्य इन सभी वस्तुओं को संभालते हैं। आवेग में आकर इन बातों को बिगाड़ने की कदापि अनुमति नहीं है। यदि वे सभी दिव्य जो मन में आता वह करते, संसार में व्यवस्था की कोई झलक ही नहीं होती, अर्थव्यवस्था को बढ़ाने की तो बात ही नहीं है।

लेकिन उसने जो प्रश्न किया उसे देखते हुए, पहला, वह हमारे साधकों में से नहीं है; दूसरा, यह भड़काऊ है; और तीसरा, वह एक मानवीय दृष्टिकोण से वस्तुओं के बारे में सोच रहा है। क्या दिव्यों को वह करना चाहिए जो मनुष्य उनसे चाहते हैं? क्या दिव्य लोक को वह करना चाहिए जो मनुष्य चाहते हैं? क्या दिव्य मनुष्यों द्वारा निर्देशित होते हैं? आपको लगता है कि देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाना महत्वपूर्ण है, लेकिन आपको पता होना चाहिए कि दिव्य अन्य वस्तुओं को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं! आप जानते हैं, मनुष्यों के पास सद्गुण की कमी है क्योंकि उनकी नैतिकता में गिरावट आयी है और मानव मन का बहुत पतन हो गया है। जब लोगों का मन सुधर जाएगा, उनको सौभाग्य और समृद्धि मिलेगी। क्या आप इन सिद्धांतों को समझ सकते हैं?! मनुष्य इस हद तक पतित हो चुके हैं, फिर भी आप अभी भी यह या वह प्राप्त करना चाहते हैं। कौन यह आपको देने जा रहा है?! यहाँ मैं किसी विशिष्ट जाति या किसी विशिष्ट देश का उल्लेख नहीं कर रहा हूँ। मैं फा के एक सामान्य सिद्धांत के बारे में बात कर रहा हूँ। यह ऐसे ही काम करता है। सौभाग्य प्राप्त करने के लिए मनुष्यों को अपने बुरे कर्म कम करने पड़ेंगे। केवल अपार सद्गुण से ही लोग समृद्ध और शक्तिशाली बन सकते हैं। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, लोगों के पास पवित्र मन होना चाहिए और बुरे कर्म कम होने चाहिए। अन्यथा केवल अर्थव्यवस्था ही नहीं घटेगी; सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं और मानवीय आपदाएं आती रहेंगी। लेकिन एक मनुष्य के रूप में, उसे यह समझ में नहीं आया, और वह नहीं जानता है कि सभी वस्तुओं की अपनी व्यवस्था होती है। वह सिर्फ यह सोचता है कि मनुष्य जो भी करना चाहते हैं, वे बस जाकर कर सकते हैं।

प्रश्न : क्योंकि बुरे लोग जो अनुचित करने के लिए समर्पित होते हैं जो पूर्वनिर्धारित भी होते हैं, क्या उन्हें क्षमा किया जाएगा ?

गुरु जी : नहीं, उन्हें नहीं किया जा सकता। जब हम कहते हैं कि सब कुछ पूर्व निर्धारित है, हम इस तथ्य का उल्लेख करते हैं कि लोगों के जीवन को क्रमानुसार व्यवस्थित किया गया है। मैंने फा में बताया है कि ऐसी दो परिस्थितियाँ होती हैं जिनमें किसी व्यक्ति की नियति को बदला जा सकता है, जिसमें व्यक्ति की व्यवस्था को बदला जा सकता है। एक वह है जब कोई व्यक्ति साधना के मार्ग पर चल पड़ता है। आपके जीवन में साधना की कोई योजना नहीं थी, इसलिए आपका पूरा जीवन पुनर्व्यवस्थित किया जाता है। दूसरी परिस्थिति यह है कि जो व्यक्ति बुरे काम करता है, वह अपना भाग्य बदल सकता है; हमेशा बुरे काम करते रहने से उसके समस्त जीवन का भाग्य भी बदल सकता है। यदि कोई बुरा काम नहीं करता है तो वह कोई बुरे कर्म सृजित नहीं करता है। इसीलिए जब कोई व्यक्ति बुरा काम करता है तो यह उसके भाग्य को बदल सकता है, और स्वयं की मूल व्यवस्था को बदल सकता है। लेकिन जो उसकी प्रतीक्षा कर रहा है, वह है सर्वनाश, प्रत्येक स्तर का, उसके द्वारा किये गये सब बुरे कर्मों का भुगतान। साधना किसी व्यक्ति के जीवन को वास्तव में बदल सकती है। और कोई रास्ता नहीं है।

प्रश्न : जब मैं जुआन फालुन को पढ़ता हूँ, अक्सर जैसे ही मैं इसे पढ़ना समाप्त कर देता हूँ मैं इसके कई गहन सिद्धांतों के बारे में भूल जाता हूँ । फा व्याख्यान की टेप रिकॉर्डिंग सुनने के बाद, मैं कुछ भी याद नहीं रख पाता हूँ ।

गुरु जी : यह स्वाभाविक है। पहली बात, यह इसलिए है क्योंकि शुरुआत में आपके मन में बहुत सी बुरी बाते होती हैं। दूसरी बात, आप का पक्ष जिसने फा को ग्रहण किया है उसे याद रखता है। यह आप का वह भाग है जिसकी साधना सफलता से पूरी हो गयी है। जैसे-जैसे आप निरंतर साधना में आगे बढ़ते हैं, आपका सुधार शीघ्र होता जाता है, शीघ्र ही आपका जो भाग साधना पूर्ण कर चुका है वह अलग किया जाएगा। जैसे ही वह आदर्श स्थिति तक पहुँचता है वह अलग हो जाता है। एक बार जब यह अलग हो जाता है, तो यह आपके सतही भाग के साथ संपर्क नहीं कर सकता है, जिसने अभी तक साधना पूरी नहीं की है। इसलिए आपको लगता है कि आप सब कुछ भूल गए हैं। इसका अर्थ यह है कि आप का भाग हट चुका होता है। क्योंकि योग्य होते ही, आदर्शों के अनुरूप होते ही, और फा की आवश्यकताओं को पूरा करते ही, यह ऊपर उठ जाता है। जो भाग ऊपर उठ गया होता है वह दिव्य है, और यह निश्चित रूप से मनुष्यों के साथ मिश्रित नहीं हो सकता है। हालांकि, यह जरूरी नहीं है। जो लोग अतीत में सुदूर पहाड़ों और जंगलों में साधना करते थे वे उस तरह से नहीं थे, क्योंकि वे साधारण समाज के संपर्क में नहीं थे। जबकि दाफा अभ्यासी यहीं साधारण मानव समाज में साधना कर रहे हैं। यदि दिव्य भाग मनुष्य के समान ही काम करेगा, निश्चित ही इसे प्रतिबंधित किया जाएगा, इसलिए इसे अलग करना होगा। चाहे आप इधर अच्छा करें या बुरा, जिस भाग ने सफलतापूर्वक साधना कर ली है वह निष्क्रिय बना रहेगा और मानवीय बातों में भाग नहीं लेगा। यह सुनिश्चित करता है कि आपके द्वारा सफलतापूर्वक साधना किया गया भाग नीचे नहीं गिरेगा और निरंतर सुधार ही करता रहेगा। यही सर्वोत्तम तरीका है।

यही कारण है कि कभी-कभी आपको लगता है कि आप इसे फिर से भूल गये हैं, या क्यों एक परीक्षा में सफल होने के कुछ समय बाद आपको लगता है कि किसी तरह मोहभाव वापस आ गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके जिस भाग की साधना सफलतापूर्वक हो गयी है, वह भाग जो आदर्श को पूरा कर चुका है, अलग हो चुका है। यही कारण है। लेकिन यह पूरी तरह से ऐसा नहीं है। जब आप लगातार सच्ची साधना कर रहे होते हैं, तो आपके सबसे ऊपरी मानवीय भाग में परिवर्तन अधिक से अधिक हो जाता है, और आप फा को अधिक से अधिक याद रख पाते हैं। इसलिए कुछ समय की निश्चित अवधि के बाद ऐसा ही होगा, और यह स्वाभाविक है।

प्रश्न : मेरी आजकल कम से कम बोलने की इच्छा होती है, और जो कुछ भी करता हूँ उसे बहुत सहज ही लेता हूँ। मैं कुछ बातों को भी भूल जाता हूँ। क्या इस प्रकार की अवस्था सामान्य है?

गुरु जी : एक और परिदृश्य है जिसमें वस्तुओं को भूलना सम्मिलित है। आपके जीवन में साधारण लोगों के बीच, विशेष रूप से चीन में, आगे बढ़ने के लिए दूसरों को दबाने के लिए बहुत से लोगों ने अपने सभी विचारों को छल-कपट में लगा दिया है । इसलिए उनके विचार और सोचने का ढंग बहुत बुरा है, और पूरी तरह से साधकों के विचारों के विपरीत है। लोग इसके आदी हो गये हैं। जब भी आप किसी समस्या के बारे में सोचते हैं, तो आपका मन वहां जाकर बुरे विचारों में फँस जाएगा। तब हम इसके बारे में क्या कर सकते हैं? मैं सबसे पहले आपके विचारों के उस भाग को बंद कर देता हूँ ताकि यह इतना सक्रिय न हो, इस प्रकार आपके अच्छे विचार अधिक सक्रिय होने में सक्षम बनते हैं। इसीलिए उस अवधि के दौरान आप पाएंगे कि आप सरलता से वस्तुएँ भूल जाते हैं। यह आपके लाभ के लिए है। ऐसा कदापि नहीं चलेगा कि प्रत्येक बार जैसे ही आप सोचना शुरू करें और बुरे विचार शुरु हो जाएं। हालांकि, कहने का अर्थ यह नहीं है कि यह बहुत बुरा है, लेकिन सोचने का यह ढंग कदापि उचित नहीं है। जैसे ही आप सोचते हैं, आप सोच के उस ढंग में चले जाते हैं, इसलिए इसे बदलने की आवश्यकता है। समय की एक निश्चित अवधि के लिए आप भुलक्कड़ हो जाएंगे। ऐसा आपकी साधना के लिए किया गया है। लेकिन यह आपके काम या पढ़ाई को प्रभावित नहीं करेगा। यदि आपको यह पता चलता है कि आपने जो कुछ किया है वो सही नहीं लग रहा है, तो संभवत: इसमें आपके सुधार के लिए कुछ होगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फा के सिद्धांत लगातार ऊँचे होते जाते हैं। आप पाएंगे कि वर्तमान में आपको जो सही लगता है सुधार के बाद वह पूरी तरह से सही नहीं भी हो सकता है। और जब आप इसमें और सुधार करेंगे, तो आप पाएंगे कि जो आपको अभी समझ में आया है वह फिर से पूरी तरह से सही नहीं है। इस तरह की अवस्था आप अनुभव कर सकते हैं। इस प्रकार आप जितने ऊँचे स्तर पर साधना करेंगे, उतना ही यह ठीक होता जाएगा।

प्रश्न : साधना की शुरुआत किसी के मूल से होती है, और यह तब तक जारी रहती है जब तक कि फलपदवी प्राप्त न हो जाए; इस बीच, गोंग स्तम्भ सिर के ऊपर से तब तक बढ़ता है जब तक कि कोई फलपदवी तक नहीं पहुंच जाता। इन दो प्रक्रियाओं के बीच क्या संबंध है?

गुरु जी : उच्च-ऊर्जा पदार्थ द्वारा शरीर का रुपांतरण आपके मूल शरीर का रुपांतरण है। महान ज्ञानप्राप्त प्राणियों में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा होती है। यह ऊर्जा साधना में एक गोंग स्तम्भ के रूप में प्रकट होती है, और यह साधक के फा का भाग है जो दिखाई देता है। उनका अस्तित्व दो अलग-अलग रूपों में होता है। उसके शरीर के अणुओं के परिवर्तन सहित, साधना में आवश्यक सभी वस्तुओं को उस ऊर्जा पर निर्भर होना पड़ता है। यह सब कुछ बदल सकता है। दाफा साधना जीवन के सबसे सूक्ष्म स्तर से शुरू होती है। लेकिन क्योंकि वह एक साधक है, इसलिए उसका बाहरी शरीर भी परिवर्तित होता है; यह केवल इतना है कि अनुपात बहुत कम होता है। यह अनुपात लगभग एक प्रतिशत होता है।

प्रश्न : साधना मानव पक्ष के शरीर द्वारा संपन्न होती है। मुझे लगता है कि फा के सिद्धांत और स्पष्ट हो गये हैं और मैं उनके पीछे पड़े बिना वस्तुओं को स्वाभाविक रूप से प्राप्त कर रहा हूँ। क्या यह समझ और अनुभव सही है ?

गुरु जी : हाँ! यह एक बहुत अच्छी अवस्था है। जब आप उस अवस्था में पहुँच जाते हैं, तो आप सहज अनुभव करते हैं और यह की आपका जीवन परिपूर्ण हो गया है। जब आप साधना में प्रगति करते जाते हैं, जैसे-जैसे आप फा के सिद्धांतों के बारे में स्पष्ट और स्पष्ट होते जाते हैं, आप पाएंगे कि साधना सरल और सरल होती जाती है। अब कई वस्तुएँ इतनी जटिल नहीं लगती जितनी की जब उन्हें मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाता था। सब कुछ एक ही दृष्टि में स्पष्ट हो जाता है। जब साधारण लोग असहमत हो जाते हैं, वे बहस करते हैं और एक दूसरे को समझा नहीं पाते। यदि आप उनके बहस में नहीं पड़ते हैं, जब आप उन्हें तीसरे व्यक्ति के रूप में शांति से देखेंगे, आपको पता चल जाएगा कि कौन सही है। यदि आप पूरी तरह से साधारण लोगों में से नहीं हैं और तब आप उनके बहस को देखेंगे, आपको अधिक सुनने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और आप यह सब समझ जाएंगे। आपको लगेगा कि इसमें कुछ भी बहस करने जैसा नहीं है। सब कुछ एक ही दृष्टि में स्पष्ट हो जाएगा।

प्रश्न : मेरी वृद्धावस्था के कारण, मेरे जोड़ सख्त हैं और मेरे लिए ध्यान करना बहुत कठिन है। मेरे लिए अर्ध-कमल मुद्रा करनी भी असंभव है। मैं केवल सुखासन में बैठकर ही अभ्यास कर सकता हूँ।

गुरु जी : किसी भी आयु के लोगों के लिए साधना समस्या नहीं होनी चाहिए। वृद्धावस्था अपने आप में साधना की चुनौतियों में योगदान नहीं करती है, क्योंकि किसी की आयु का साधना से कोई लेना देना नहीं है। चाहे आप वृद्ध हों या युवा, आप सभी फा को समझ सकते हैं। जहां तक कमल मुद्रा में बैठने की बात है, निश्चित रूप से मैं इसे बड़ी आयु के लोगों के लिए अलग तरह से संभालूंगा। यदि आप अपने जीवन में कभी भी कमल मुद्रा में नहीं बैठे हैं, और आपके जोड़ और स्नायु कभी इतने खिंचे नहीं है, तो आप क्या कर सकते हैं? इस पर धीरे-धीरे काम करें, चिंता न करें, और मुझे लगता है कि अंत में आप इसे करने में सक्षम होंगे। यहां तक ​​कि जो लोग अपने अस्सी के दशक में हैं या नब्बे के पास पहुंच रहे हैं और जो कभी कमल मुद्रा में नहीं बैठे हैं वे भी इसे कर सकते हैं। इसे करके देखें और स्वयं पर पूरा आत्मविश्वास रखें। अतीत में, अधिकतर साधक अपने अस्सी या नब्बे की आयु में या जब तक वे सौ वर्ष से अधिक नहीं हो जाते थे, तब तक भी वे ताओ प्राप्त करने में सक्षम नहीं हो पाते थे।

प्रश्न : भविष्य में लोगों को इस फा के बारे में पता नहीं चलेगा, लेकिन यह "फा की स्थिरता" में कहा गया है, "भविष्य की पीढ़ियों को आने वाले हजारों सालों तक अपनी साधना करनी पड़ेगी जैसे मैने इसे व्यक्तिगत रूप से बताया है, यदि उन्हें फलपदवी तक पहुँचना है।"

गुरु जी : जब मैं आपसे बात करता हूँ तो मैं केवल मानवीय भाषा का उपयोग कर सकता हूँ। इस फा को किसी भी आयाम या ब्रह्मांड के किसी भी स्तर पर कभी भी नहीं बदला जा सकता। इसे फिर कभी भी नहीं बदला जा सकता। अतः ब्रह्माण्ड का यह दाफा हमेशा अजेय रहेगा। इसके अतिरिक्त, इसमें स्वयं को ठीक करने की क्षमता है, स्वयं को निरंतर सामंजस्यपूर्ण और परिपूर्ण करते हुए हमेशा के लिए दोषरहित बनाता है। आप जानते हैं कि मनुष्य इतने विशाल फा को सुनने के योग्य नहीं है। ऐसा नहीं है कि बुद्ध शाक्यमुनि ने सच्चा फा नहीं सिखाया है, या यीशु लोगों को पूरी तरह से समझाना नहीं चाहते थे। यह ऐसा है कि मनुष्यों को केवल इतना ही जानने की अनुमति है, नहीं तो वे बुद्धों और दिव्यों की सच्चाई को जान जाते, और इसकी अनुमति नहीं है। आज मैंने आपको कई दिव्य रहस्य बताए हैं। यदि आप फलपदवी तक पहुँचते हैं, तो मैंने जो कुछ भी उपदेश दिये हैं वे सभी दिव्यों के लिए हुए और न कि मनुष्यों के लिए।

जो लोग फलपदवी प्राप्त नहीं कर पाएंगे उनकी स्मृतियाँ भविष्य में मिटा दी जाएंगी—उन्हें इस बारे में कुछ भी जानने की अनुमति नहीं है। इस दाफा में वास्तव में ऐसे लोग हैं जो फालुन दिव्य लोक में जाएंगे, और जो इस साधना मार्ग के विशिष्ट आंतरिक अर्थों को समाहित करता है। इसलिए वे वस्तुएँ लोगों को दी जाएंगी या नहीं यह भविष्य में निर्धारित किया जाएगा। लेकिन भविष्य में मानवजाति को स्वयं दाफा या मेरे बारे में नहीं पता होगा। लोग इसे आने वाले कई वर्षों तक दंतकथा के रूप में बताएंगे, परिकथाओं के जैसे जो लोग सदियों तक बताते हैं। वे उन गंभीर सीखों को भी याद रखेंगे जो मनुष्यों के लिए छोड़ दी जाएंगी जब इस स्तर के प्राणियों की स्थिति को अंततः पुन: बदला जाएगा।

प्रश्न : फालुन गोंग सत्य, करुणा, सहनशीलता सिखाता है। तो क्या सहनशीलता का तब पालन करना चाहिए था जब तियानजिन में फालुन गोंग अभ्यासियों के साथ अन्यायी घटना हुई थी?

गुरु जी : इस प्रश्न का उत्तर दिया जा चुका है, इसलिए मैं इस पर और बात नहीं करुंगा। सहनशीलता सभी साधकों के आचरण में प्रदर्शित होती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई कार्रवाई नहीं की जाए। क्या हमें अपने विचार व्यक्त करने के लिए नहीं जाना चाहिए जब लोग मनमाने ढंग से इस तरह के विशाल फा को क्षति पहुंचा रहे हैं? मैं आपको फिर से बताना चाहता हूँ कि : जो छात्र बीजिंग गये थे, वे वहां प्रदर्शन या जुलूस के लिए नहीं गये थे; कोई चिल्लाना, कोई नारेबाजी और कोई अनुचित मंशा नहीं थी। वे सभी देश के नेताओं को वास्तविक स्थिति बताने की अच्छी भावना से वहां गये थे। मुझे लगता है कि वैसी बातों को किया जाना चाहिए। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्हें लगता था कि दाफा अभ्यासियों के साथ जो अन्याय हुआ था, वह स्वयं उनके साथ अन्याय जैसा था। [उन्हें लगा,] "जब आप उस पर बुरे होने का आरोप लगाते हैं, यह वैसा ही है जैसे मुझ पर बुरे होने का आरोप लगाना।" उन सभी ने भी ऐसा सोचा। वे सभी दाफा की प्रतिष्ठा को वापस पाना चाहते थे और देश के नेताओं को परिस्थिति के बारे में बताना चाहते थे। यह उस विचार के कारण ही किया गया था। यह अनुचित नहीं था! क्या बहुत सारे लोग वहाँ गये थे? मैं कहूँगा कि उतने अधिक नहीं गये। क्योंकि 10 करोड़ लोग अभ्यास कर रहे हैं, यदि सब कोई वहाँ जाता तो यह अकल्पनीय होता—बीजिंग में इतने लोगों को समाने की क्षमता नहीं है। पूरे राष्ट्र में 10 करोड़ में से लगभग दस हजार लोग ही वहां गये। यह बहुत अधिक कैसे हुए? यदि वे वास्तव में इसे एक सांप्रदायिक गुट बनाते, मुझे लगता है कि यह केवल दस हजार लोग नहीं होते। क्या केंद्र सरकार के सामने सही स्थिति रखने में कुछ अनुचित है? इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है! (तालियां)

हमने कहा है कि हम सरकार का विरोध नहीं करते हैं और हम राजनीति में नहीं पड़ते। वे सभी अच्छे लोग बनने का प्रयास कर रहे हैं। क्या इसमें कुछ अनुचित है? क्या [अधिकारियों] को अभी भी उन पर बुरे होने का आरोप लगाने पर बल देना चाहिए? यदि वे सभी साधारण लोगों की तरह ही काम करते, कोई भी उनके बारे में कुछ भी कह सकता है और वे कदाचित बुरा नहीं मानते। लेकिन वे वास्तव में अच्छे लोग बनने का प्रयत्न कर रहे हैं, तब भी उन पर बुरा होने का आरोप लगाया जाता है—वे कैसे व्यथित अनुभव नहीं करेंगे?

प्रश्न : क्या किसी व्यक्ति का मन कितना अच्छा है यह उसके मूल चेतना के स्तर से निर्धारित होता है?

गुरु जी : अच्छाई वास्तव में किसी की भी मूल प्रकृति है। इस धर्मनिरपेक्ष संसार में, इसे केवल किसी व्यक्ति की जन्मजात अच्छाई का प्रतिबिंब कहा जा सकता है। यह उन मनुष्यों से पूरी तरह से अलग है जो पूरी तरह से पशुओं या अन्य प्राणियों से पुनर्जन्म लेते हैं। मनुष्य के रूप में, सभी के पास कुछ अच्छाई होती है क्योंकि सभी जीव एक निश्चित स्तर के आदर्शों को पूरा करते हैं जब वे उस स्तर पर बनते हैं। यह सिर्फ इतना है कि लोग साधारण मानव समाज में अपनी जगह बनाने के लिए जन्म के बाद विभिन्न अवधारणाएँ बनाते हैं। वे हमेशा अपनी रक्षा करते हैं, अपने तुच्छ हितों की रक्षा करते हैं, और दूसरों को हमेशा चोट पहुँचाते हैं। इसलिए उनकी अच्छाई कम होती चली जाती है।

प्रश्न : बुद्ध उच्चतम स्तर पर हैं और मानवजाति निम्नतम स्तर पर है। बुद्ध और मनुष्यों के बीच कितने स्तर होते हैं?

गुरु जी : ऐसा लगता है कि आपने फा का अभ्यास नहीं किया है। मैंने पहले ही अपने शिष्यों को ब्रह्मांड की संरचना पर कई बार उपदेश दिये हैं। आप इसे मेरी पुस्तक में देख सकते हैं। क्योंकि यह विषय बहुत व्यापक है, इसलिए इसे बताने में समय लगता है और यह ऐसा नहीं है जिसका इस समय पूरी तरह से उत्तर दिया जा सके। आप जो कल्पना करते हैं, उसके विपरीत, बुद्ध सर्वोच्च नहीं हैं। अतीत में, उच्चतम स्तरों पर दिव्य निराकार थे, उनके पास शरीर नहीं था। संपूर्ण ब्रह्मांड के परिप्रेक्ष्य से, शरीरों वाले दिव्य सभी मध्य या निम्न स्तरों पर हैं। उच्च स्तर और उससे ऊपर, विशाल दिव्य सभी निराकार हैं। वे निराकार तैरने वाले पदार्थ की तरह हैं, लेकिन उनके भी विचार और जीवन होते हैं। उनके स्तर जितने उच्च होंगे, उनके पास उतनी ही अधिक ऊर्जा होगी और वे अधिक शक्तिशाली होंगे; उनके स्तर जितने उच्च होंगे, उनका विवेक उतना ही विशाल होगा।

प्रश्न : मैंने केवल आधे साल के लिए अभ्यास किया है, और मेरे अभ्यास से कोई प्रतिक्रिया या साधना स्थिति नहीं हुई है। क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि गुरु जी मेरी देखभाल नहीं कर रहे हैं? कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं महान जन्मजात गुण वाला व्यक्ति हो सकता हूँ। क्या इस प्रकार के विचार रखना ठीक है?

गुरु जी : आपके ऐसे या वैसे विचार हो सकते हैं, और यह एकदम ठीक है। लेकिन उन विचारों को अपना मोहभाव न बनने दें। उन्हें छोड़ दें। सभी के साधना मार्ग में कुछ व्यवस्थाएँ होती हैं, इसलिए आगे बढ़ें और साधना करें। दाफा सभी चेतन प्राणियों के लिए उपलब्ध है। यदि शिष्य के रूप में मैं आपका ध्यान नहीं रखता हूँ, तो यह मेरी समस्या है। वास्तव में, आप फा के सिद्धांतों को समझ पा रहे हैं और इसमें साधना कर पा रहे हैं, भले ही आप अपने बदलावों को अनुभव नहीं कर पा रहे हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप साधना नहीं कर रहे हैं। कुछ लोग वास्तव में बहुत संवेदनशील होते हैं, जबकि अन्य नहीं होते हैं। इसलिए लोगों की साधना की अवस्थाएं अलग-अलग होती हैं। यह हो सकता है कि वह व्यक्ति महान जन्मजात गुण वाला हो, या नहीं भी हो सकता है। तो यह कैसी भी दशा हो सकती है।

प्रश्न : यदि किसी ने केवल दिव्य प्राणियों के स्तर तक ही साधना की है, तो क्या उसके सही स्थान पर पहुंचने से पहले उसे तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है जब तक कि उसके भौतिक शरीर की मृत्यु नहीं हो जाती ?

गुरु जी : त्रिलोक के भीतर दिव्य प्राणी की बात की जाए तो, उसके पास आणविक कणों की सबसे बड़ी परत से बना शरीर नहीं होता है। उनका शरीर मानवीय कणों के इस स्तर से अधिक सूक्ष्म कणों से बना है। इसलिए, वह इस स्तर का शरीर नहीं ले सकता। लेकिन मैंने कहा है कि त्रिलोक के भीतर फलपदवी तक पहुंचने वाले व्यक्ति होने जैसी कोई बात नहीं है। त्रिलोक को पार किए बिना, किसी को भी फलपदवी प्राप्त करने के रूप में नहीं गिना जा सकता है। वास्तव में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने दूसरों की तुलना में अपेक्षाकृत अच्छा किया है, अर्थात वे साधारण लोगों के बीच अच्छे व्यक्ति हैं और उनके पास कम बुरे कर्म हैं, या, उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत सारे अच्छे काम किए हैं। यहां तक ​​कि साधना के बिना भी वे त्रिलोक में विभिन्न स्तरों पर दिव्य प्राणी बन सकते हैं। इसके लिए साधना की आवश्यकता नहीं है। लेकिन उन्हें अभी भी नीचे उतरना होगा और कई वर्षों बाद पुनर्जन्म लेना होगा। बगल के साधना मार्गों की बात की जाए तो, ऐसे अन्य कारण हैं जिससे वे त्रिलोक को पार नहीं कर सकते। यह उनका अपना मामला है, और हम उनके मामले पर ध्यान नहीं देते।

प्रश्न : क्योंकि मुझ में बातों को हल करने में स्वयं के दृष्टिकोण की कमी है, इसलिए मैं सरलता से अन्य लोगों से प्रभावित हो जाता हूँ। क्या यह स्थिति मेरे लगन की कमी के कारण है ?

गुरु जी : यह तर्कशक्ति की समस्या है। एक साधक होने के नाते, आपका दृष्टिकोण काम करते समय पवित्र विचारों से नियंत्रित होना चाहिए।

प्रश्न : क्या कोई अच्छा काम करना साधना से संबंधित है ?

गुरु जी : जब आप साधारण लोगों के बीच काम कर रहे होते हैं, यदि यह केवल एक तकनीकी मुद्दा है कि इसे कैसे अच्छे से किया जाए और इसमें आपका नैतिकगुण सम्मिलित नहीं है, मुझे लगता है कि इसका आपकी साधना से कोई संबंध नहीं है। यदि आप जिस समस्या का सामना कर रहे हैं उसका आपके नैतिकगुण से संबंध है, अर्थात यदि आप जो काम कर रहे हैं उससे कुछ अच्छा या बुरा हो सकता है, मुझे लगता है आप सही करेंगे जब तक आप जितना हो सके साधक के आदर्शों का पालन करते हैं।

प्रश्न : क्या शरीर का वह भाग जो उच्च-ऊर्जा पदार्थ द्वारा रूपांतरित या आंशिक रूप से रूपांतरित हो चुका है, भौतिक आयाम के सिद्धांतों द्वारा अभी भी नियंत्रित होगा ?

गुरु जी : पूरी तरह से रूपांतरित होने के बाद यह नहीं होगा। जब तक यह भाग रूपांतरित नहीं हो जाता है, तब तक यह मानवीय आयाम से प्रभावित हो सकता है, इस आयाम से यह नियंत्रित हो सकता है।

प्रश्न : गर्म भोजन खाने से अत्यधिक आंतरिक गर्मी होती है, जिससे सर्दी और खांसी होती है, और अत्यधिक खाने से वजन बढ़ जाता है।

गुरु जी : यह एक साधारण व्यक्ति द्वारा पूछा गया प्रश्न लगता है—इसका साधक से कोई संबंध नहीं है। एक साधक के रूप में, आपके स्वयं के शरीर से निकलने वाली ऊर्जा आपके शरीर की अवस्था को बदल सकती है चाहे आप इसकी कामना करते हों या नहीं। वैसे भी, आप साधारण लोगों से अलग हैं। यदि कोई साधक गर्म भोजन करने से चिंतित है, इस डर से कि यह अत्यधिक आंतरिक गर्मी पैदा कर देता है, तो यह एक मोहभाव है। इसके अतिरिक्त यह वैसे भी ऐसा नहीं है। एक साधक के रूप में, आपको फा के आधार पर फा को समझना होगा और उच्च सिद्धांतों के साथ अपने बारे में सोचना होगा। यदि आप अभी भी अपने बारे में सोचने के लिए साधारण लोगों के सिद्धांतों का उपयोग कर रहे हैं, तो मैं कहूँगा कि यह कोई सही बात नहीं है। क्या यह सच नहीं है? यह नैतिकगुण की समस्या है। यह साधारण लोग हैं जो ठंड या खांसी होने से डरते हैं। मुझे पता है कि आपने अभी तक साधना शुरू नहीं की है। साधकों के रूप में, आपके शरीर अंततः शुद्ध-श्वेत शरीर बन जाएंगे, त्रिलोक को पार कर जाएंगे, और उच्च ऊर्जा पदार्थ से बने शरीर बन जाएंगे। क्या हमें अपनी साधना के दौरान स्वयं को उच्च आदर्शों पर नहीं रखना चाहिए? यदि आप तर्क देते हैं, "इससे पहले कि मैं वहां पहुंचूं मैं स्वयं के बारे में सोचने के लिए अभी भी साधारण मानवीय अवधारणाओं का उपयोग कर सकता हूँ और स्वयं के लिए आवश्यकताएं निर्धारित कर सकता हूँ," तब आप हमेशा मानव ही बने रहेंगे। और आपको यह पता भी नहीं चलेगा कि आप आदर्शों को पूरा कर चुके हैं या नहीं। आपको हमेशा स्वयं को उच्च आदर्शों पर रखना चाहिए।

यदि आप साधना करना चाहते हैं तो आप कर के देख सकते हैं। कुछ शिष्य अतीत में ठंडा पानी पीने से डरते थे, और अब उन्हें ऐसा करने में कोई समस्या नहीं होती है। वे इससे या उससे डरते थे, और अब उनमें से किसी को कोई भी समस्या नहीं है। लोग जिस पर विश्वास करते हैं वे केवल मानवीय अवधारणाएं हैं। कल, मैंने एक शिष्य का उदाहरण दिया था जिसने मुझे बताया कि वह एक कार से टकरा गया था। उसके कंधे, शरीर की हड्डियाँ और उसकी श्रोणि सभी टूट गए थे। अचेत अवस्था में उसे अस्पताल भेजा गया। अस्पताल ने कहा कि उसका ठीक होना कठिन है, कि वह बहुत बुरी अवस्था में है, और यह कि उसके अंतिम संस्कार की व्यवस्था शुरू करने का समय आ चुका है। लेकिन दूसरे दिन वह अपने आप पलंग से उठकर चला गया। अस्पताल के कर्मचारियों को कुछ समझ में नहीं आया। डॉक्टरों ने पूछा, "वह आदमी कैसे बच सकता है?" और वह घर चला गया। बाद में, अस्पताल यह जानना चाहता था कि व्यक्ति कैसा है और पूछा, "क्या वह अभी भी चल रहा है?" उनका तात्पर्य था, "क्या वह अभी भी चल सकता है?" डॉक्टर से कहा गया कि वह अब नहीं चलता। डॉक्टर ने टिप्पणी की, "देखा, मैंने तुम्हें बताया था कि वह नहीं कर पाएगा।" लेकिन तब डॉक्टर को तुरंत बताया गया, "अब वह दौड़ सकता है।" (तालियां) वास्तव में, आप इसे मानवीय अवधारणाओं के साथ समझ नहीं सकते। कहने का अर्थ यह है कि, एक साधक के रूप में, आपको यह जानना होगा कि आप क्या कर रहे हैं। आपको हमेशा साधारण लोगों के साथ स्वयं की तुलना नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न : लोगों को मोक्ष प्रदान करने में, गुरु जी ने इतना विस्तृत द्वार खोल दिया है। इस बात नें विभिन्न आयामों में इतने सारे दिव्यों को क्यों प्रभावित किया है ?

गुरु जी : क्योंकि मैं फा को ठीक कर रहा हूँ! वे सब सुधारे जा रहे हैं। (तालियां) सभी प्राणी भविष्य के लिए अपने जीवन का पुनःस्थापन कर रहे हैं।

प्रश्न : कुछ लेखों में गुरु जी के मूल शब्दों के अंश हैं। हमें उनका निपटारा कैसे करना चाहिए ?

गुरु जी : उन्हें जला सकते हैं। क्योंकि आप एक साधना करने वाले अभ्यासी हैं, आप अपमान करने की मंशा नहीं रखते हैं, और शायद आपके पास उन्हें रखने के लिए कोई स्थान न हो। पुस्तक की हस्तलिखित प्रतियों के साथ, विशेष रूप से, कुछ लोगों ने पूछा है कि उनके साथ क्या करना है जिनमें त्रुटियां हैं। वे सभी जलाए जा सकते हैं, इसमें कोई समस्या नहीं है। फा अक्षरों के अन्य आयामों में है, और मानव लोक की अग्नि इसे स्पर्श नहीं कर सकती है। जो नष्ट होता है वह केवल कागज और सतह की स्याही है, जो कणों की सबसे बड़ी परत से बनते हैं।

प्रश्न : ध्यान के दौरान हिलना-डुलना नहीं चाहिए। यदि शरीर की मुद्रा बिना जाने बदल जाती है और अब आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है, क्या हमारे लिए इसे ठीक करना सही है ताकि यह सही स्थिति में हो जाए ?

गुरु जी : यह ठीक है, और कुछ भी असर नहीं होगा। जब कुछ ऐसा पता चलता है जो सही नहीं है तो उसे ठीक करना चाहिए। अन्यथा, यदि आप इसकी आदत डाल लेते हैं तो यंत्र विकृत हो जाएंगे, इसलिए इसे सही करना चाहिए। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति की क्रियाओं में कोई छोटा सा भी अंतर नहीं हो सकता है। यह संभव नहीं है कि सभी की क्रियाएं बिलकुल समान हों, मानो वे एक ही सांचे से निकले हों। यह निश्चित रूप से संभव नहीं है। जबतक सभी की क्रियाएं मूल रूप से आवश्यकताओं को पूरा करती हैं तब तक यह ठीक है। एक साथ अभ्यास करने का पूरा प्रयत्न करें। जब आप अभ्यास करते हैं तो क्रियाएं एक साथ होनी चाहिए।

प्रश्न : यदि मैं दो घंटे का ध्यान करता हूँ, तो क्या मैं दोनों हथेलियों को बारी-बारी से गोलाकार सुदृढ़ बनाने और बेलनाकार सुदृढ़ बनाने के लिए आधे-आधे घंटे के लिए समय दे सकता हूं, और फिर शांत ध्यान के लिए आधा घंटा ?

गुरु जी : यदि आपके साथ कोई हस्तक्षेप नहीं होता है, या यदि आपके पास बहुत समय है और उतने लंबे समय तक बैठने की क्षमता है, तो मैं इसके विरुद्ध नहीं हूँ। लेकिन इसे अपने सामान्य जीवन को प्रभावित न करने दें, और इसे आपके कार्य या अध्ययन को प्रभावित न करने दें। साथ ही, आपको फा-अभ्यास को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। आप इन बातों को अपने अनुसार कर सकते हैं। आपको अनुचित नहीं कहा जा सकता। सभी के अलग-अलग कार्यक्रम होते हैं। लेकिन फा-अभ्यास को सर्वोच्च प्राथमिकता देना सुनिश्चित करें।

प्रश्न : मैं सत्तावन साल की हूँ और दो साल से दाफा की साधना कर रही हूँ। लेकिन अभी भी मेरा मासिक धर्म वापस शुरु नहीं हुआ है।

गुरु जी : सभी की स्थिति अलग होती है, और यह आवश्यक नहीं है कि यह आपकी अपेक्षा के अनुरूप हों। लेकिन साधारणतः लोगों की स्थिति वैसी ही होगी जैसा मैंने बताया था। मैं व्यक्तिगत स्थिति के बारे में बात नहीं कर सकता। यदि मैं आज इसके बारे में बात करता हूँ तो यह फिर से सर्व-साधारण के लिए हो जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति की एक अलग परिस्थिति होती है, और एक साधक के रूप में आपको इसे महत्व नहीं देना चाहिए। यदि आप उसके बारे में सोचती रहेंगी तो यह मोहभाव बन जाएगा। हो सकता है कि आपको यह होना चाहिए, लेकिन संभव है कि यह नहीं हो। यदि आपको यह होता भी है, तब भी हो सकता है कि आपको इसे देखने की अनुमति न हो, क्योंकि यह आपके शरीर के अंदर रूपांतरित हो सकता है। इसलिए इसे बड़ी बात मत मानिये। जैसा भी हो यह ठीक होगा। आखिरकार, प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थिति अलग होती है। ऐसा नहीं है कि यदि आपको होता है तो आप साधना कर सकती हैं, और आप नहीं कर सकती यदि नहीं होता है। यह ऐसा नहीं है।

प्रश्न : न्यूजीलैंड में रहते हुए, मुझे सरकारी अनुदान स्वीकार किये बिना जीवनयापन करना कठिन लगता है। क्या इससे मेरा सद्गुण कम होगा ? क्या मुझे साधना करने के लिए मुख्य भूमि चीन वापस जाना चाहिए ?

गुरु जी : आप कहीं भी साधना करें एक ही बात है। मुझे इसकी चिंता नहीं है। जहां तक जीवनयापन करने की समस्या की बात है, यदि आप उन्हें स्वयं हल कर सकते हैं तो यह सबसे अच्छा है। यदि आपके पास उन्हें हल करने की क्षमता नहीं है, तो [अनुदान स्वीकार करना] आपके लिए अनुचित नहीं माना जाएगा क्योंकि आखिरकार इस देश में लोक-कल्याण लाभ होता है। लेकिन मुझे लगता है कि आप उन्हें हल कर सकते हैं या नहीं, या जहां भी आप साधना कर रहे हैं, यदि आपके जैसी परिस्थिति है, तो आपको इसे बड़ी बात नहीं माननी ​​चाहिए। आप कहीं भी साधना करते हुए फलपदवी प्राप्त कर सकते हैं। मैंने कहा है कि आपको साधारण लोगों की तरह रहते हुए साधना करनी चाहिए, और इसका निहित अर्थ बहुत व्यापक है। यदि आपको लगता है कि वर्तमान में यहां साधना करना अच्छा है, तो कीजिए। लेकिन मुझे लगता है कि यदि आप स्वस्थ और सक्षम हैं तो आपको इस समस्या को हल करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। यदि आप बूढ़े हैं तो आपको इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी कई बातें हैं जो ऊपरी तौर पर जैसी प्रतीत होती हैं वैसी नहीं होती हैं, और विशेष मुद्दों को विशेष रूप से देखा जाएगा। क्योंकि यह परिस्थिति इतनी व्यापक नहीं है, इसलिए मैं इसके बारे में बहुत अधिक बात नहीं करना चाहता।

प्रश्न : आपके लेख "उत्तम सामंजस्य" में, "पूर्ण त्याग" का विशेष रूप से क्या अर्थ है ?

गुरु जी : यह पूरी तरह से स्वयं के सभी मोहभावों से छुटकारा पाना है। जब तक आपको मोहभाव है, यह एक ताले के समान होगा, जैसे एक द्वार मार्ग को अवरुद्ध करता है, या एक रस्सी की तरह जो आपकी नाव को आगे जाने से रोकती है। आपको उन सभी से निकलना होगा। वास्तव में, मैंने बताया है कि स्वयं की साधना कैसे की जाए और साधना के दौरान मोहभावों को पीछे कैसे छोड़ा जाए। मोहभावों को छोड़ने का अर्थ यह नहीं है कि सभी भौतिक वस्तुओं को छोड़ देना और भिखारी बन जाना। इसका यह अर्थ नहीं है। मैं इसे फिर से नहीं दोहराऊंगा। आपके बीच जो नये शिष्य हैं जिनको अभी भी स्पष्ट नहीं हैं वे पुस्तक पढ़ सकते हैं।

प्रश्न : फा-सुधार की अवधि के दौरान, शुरुआत में उच्च स्तर पर कुछ चेतन प्राणी दाफा की सहायता करके कुछ अच्छे काम करना चाहते थे, लेकिन इसके बजाय वे बाधाएं बन गये हैं और अब वे भी नष्ट किये जाने वालों में गिने जायेंगे।

गुरु जी : मैं आप सभी को बताना चाहता हूँ, फा को ठीक किया जा रहा है क्योंकि सभी चेतन प्राणी दाफा से भटक गये हैं। तब इसके बारे में सोचें : भले ही वह एक अच्छे कार्य में सहायता करने का प्रयत्न कर रहा था, क्या उसके पास अभी भी अपनी पुरानी अवधारणाएं नहीं हैं? तो क्या उसके आदर्श अभी भी पुराने नहीं हैं? इसलिए उसके लिए कुछ भी नहीं करना अच्छा है; अन्यथा यह समस्या बढ़ा सकता है। यदि वह ऐसा करने पर बल देता है, यह हानिकारक होगा। इसके पीछे यही कारण है, इसलिए कोई भी उसकी सहायता नहीं कर सकता है। लेकिन यदि वे दृढ़ता से उसका पालन करते हैं जो मैं उनसे करने के लिए कहता हूँ, तो यह समस्या नहीं होगी—यह सबसे अच्छी बात होगी।

प्रश्न : हांग यिन की पुस्तक में, गुरु जी कहते हैं, "दस दिशाओं का विस्तार, सूक्ष्म से विशाल तक // अंतरिक्ष से दृष्टि मिलती है।" क्या मैं ऐसा कह सकता हूँ कि गुरु जी बहुत सूक्ष्म स्तर पर ब्रह्मांडीय पिंडों का अवलोकन कर रहे हैं ?

गुरु जी : हाँ, इसका यही अर्थ है। "सूक्ष्म से विशाल" में "विशाल" सबसे बड़े कण को ​​संदर्भित करता है, जो उन कणों से कहीं बढ़कर है जिन्हें आप जानते हैं। वास्तव में, सीधे शब्दों में कहा जाए तो, क्या एक बड़े क्षेत्र वाला ब्रह्मांड भी एक बड़ा गोला नहीं है? यह एक कण है। जिस तरह से मैं ब्रह्मांड के चेतन प्राणियों और उनकी अवस्थाओं को देखता हूँ, वह उससे अलग है जिस तरह से मनुष्य वस्तुओं को देखते हैं—उनको उसी तरह से नहीं देखा जाता है। दूसरी ओर, "सूक्ष्म", अत्यंत सूक्ष्म को संदर्भित करता है; "सूक्ष्म से विशाल" का दूसरे स्तर पर एक और अर्थ है, जो सबसे सूक्ष्म को संदर्भित करता है। "विशाल" स्वयं में विशालता को दर्शाता है। "दस दिशाओं का विस्तार, सूक्ष्म से विशाल" का अर्थ है कि व्यक्ति को सबसे बड़े और सूक्ष्म दोनों को देखने की आवश्यकता है, और साथ ही उसे व्यापक विस्तार को भी देखना होगा। बुद्धमत के मार्ग में दस-दिशाओं वाले विश्व की अवधारणा का अर्थ है ऊपर और नीचे, साथ ही सभी आठ क्षैतिज दिशाएँ—तो यह दस दिशाएँ हुई। यही अर्थ है। सभी स्थान एक ही दृष्टि से देखे जा सकते हैं। "दस दिशाओं का विस्तार, सूक्ष्म से विशाल तक // अंतरिक्ष से दृष्टि मिलती है" का अर्थ है कि यदि आप स्पष्ट रूप से ब्रह्मांडीय पिण्ड को देखना चाहते हैं, तो आपको इसे इस तरह से देखना चाहिए। वास्तव में, तब भी आप जितना समझ सकते हैं, उतना ही समझ सकते हैं। मैं इसके आगे नहीं समझाऊंगा।

प्रश्न : जब कोई अपने कार्यस्थल पर अपने सहयोगियों को फा के बारे में बता रहा था, उन्होंने कहा कि वे दाफा तभी सीखेंगे यदि वह सिद्ध कर सके कि उसके रोग ठीक हो गये थे। इसलिए व्यक्ति जांच के लिए अस्पताल गया, लेकिन परिणाम इतने अच्छे नहीं थे। वह बहुत हैरान हो गया।

गुरु जी : कारण जानने के लिए आपको अपने नैतिकगुण की जांच करने की आवश्यकता है। इस प्रश्न को देखते हुए, मैं बता सकता हूँ कि अब तक आपने पर्याप्त फा का अभ्यास नहीं किया है। आपके द्वारा पूछा गया प्रश्न ऊपरी तौर पर सरल लगता है—उसने इतने लंबे समय से अभ्यास किया है, और वह मूल रूप से एक अच्छा काम करने का प्रयत्न कर रहा था, तब वह दूसरों के लिए फा को मान्य करने में सक्षम क्यों नहीं हुआ? यह इतना सरल नहीं है। साधना में आपका सुधार और आपके मोहभावों को दूर करना प्राथमिकता है। आपकी जहां तक दूसरों को फा प्राप्त करवाने की बात है, वह उनका अपना काम है और बाद की बात है। आपका सुधार प्राथमिक है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप क्या करते हैं, यह आपके अपने सुधार से भिन्न नहीं हो सकता। इसलिए जब आप इन बातों का सामना करते हैं तो आपको अपने नैतिकगुण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आप में कोई रोग के लक्षण नहीं हैं, आपने इतने सालों से दवा नहीं ली है, और साथ ही आपने बहुत स्वस्थ अनुभव किया है। यदि आप अस्वस्थ होते तो क्या स्थिति होती? रोग ने आपके काम, आपके जीवन और आपकी पढ़ाई को प्रभावित किया होता, और आप अधिकतर समय अच्छा अनुभव नहीं करते। क्या वह रोगग्रस्त होना नहीं है? यदि आप अपने स्वास्थ्य के बारे में अनिश्चित रहे हैं, या यदि आप कुछ कार्य करने का एक प्रबल मोहभाव रखते हैं, तो आपको एक गलत निदान मिलने की संभावना है। तो यह शायद यही मुद्दा है। साधना वास्तव में बहुत गंभीर है—यह सबसे गंभीर बात है। एक अन्य दृष्टिकोण से, वे लोग केवल तभी सीखने आयेंगे जब वे देखेंगे कि आपके रोग ठीक हो गये हैं। दाफा सीखने के लिए उनके पास किस तरह की प्रेरणा होगी? हम ऐसे लोग चाहते हैं जो साधना करने के लिए दाफा सीखने आएं।

प्रश्न : मैं उन बच्चों को फालुन दाफा सिखाने के बारे में सोच रहा हूँ जो मुझसे चीनी भाषा सीख रहे हैं, जबकि दूसरी ओर मैं चिंतित हूँ कि कोई संकट न आ जाए।

गुरु जी : इसमें कोई भी विपत्ति नहीं आएगी, और यह केवल उनका भला कर सकता है। बच्चों में बुरे कर्मों की समस्या या वयस्कों की तरह परीक्षाओं से गुजरने जैसी कोई बातें नहीं होती हैं। बच्चों की अपनी परिस्थितियाँ होती हैं, और निश्चित ही कोई भी संकट नहीं होगा।

प्रश्न : क्या कोई साधक अपने दाँत भरवा सकता है या उन पर कैप लगवा सकता है ?

गुरु जी : यह ठीक है। पहले ही आपके ऊपरी शरीर के कुछ भागों को बदल दिया गया है, यदि आपको लगता है कि खराब दाँत अच्छे नहीं लगते हैं तो आप उन्हें भरवा सकते हैं। इससे कोई समस्या नहीं है। यह ऐसा है जैसे पहनने के लिए पसंद के कपड़े चुनना और ढंग से कपड़े पहनने का प्रयत्न करना—यह ऐसा ही है।

प्रश्न : माननीय गुरु जी, हम यूवेई (विचारों वाली अवस्था) और वुवेई (बिना विचारों वाली अवस्था) के बीच अंतर कैसे कर सकते हैं?

गुरु जी : मैंने पहले भी इस बारे में बात की है। हमारी दाफा साधना में यूवेई और वुवेई अतीत के साधना मार्गों से अलग हैं। अतीत में सभी व्यवहार को यूवेई के रूप में माना जाता था। यहां तक ​​कि लोग खाने और पैदल चलने को भी यूवेई के रूप में देखते थे, इसलिए वे समाधि की स्थिति में चले जाते थे, लंबे समय तक चलना बंद कर देते थे और केवल एक ही स्थान पर बैठकर ध्यान करते थे। उन्होंने सोचा कि यह वूवेई है। मेरे द्वारा सिखायी गई वूवेई आज की दाफा साधना का मार्ग है। आप सभी साधारण मानव समाज में रहते हैं, और कुछ भी नहीं करना संभव नहीं है। इसलिए हमने कहा है कि सुधार करने का सबसे अच्छा मार्ग हमारे मन का सुधार करना है—यही सबसे मौलिक बात है। वास्तव में, कोई अंतर नहीं पड़ता कि उन्होंने जो अभ्यास किया था वह वूवेई था या कष्टों के माध्यम से साधना, उनका एकमात्र लक्ष्य मानव मन को सुधारना था। लेकिन आज मैं सीधे मानव मन को लक्षित कर रहा हूँ, जिससे आप सीधे अपने मन को सुधार सकते हैं, इसलिए दाफा में साधना सबसे तेज माध्यम है।

दाफा में वुवेई का अर्थ जानबूझकर स्वयं के लिए कठिनाइयों की व्यवस्था करना या स्वयं के लिए यह व्यवस्था करना कि आप किस तरह से साधना करेंगे ऐसा नहीं है, और न ही कुछ विशेष बातों को करने पर बल देना जिन्हें आप अच्छा मानते हैं या स्वयं के लिए कठिनाई को ढूंढना, न ही ऐसा या वैसा करने पर बल देना। ऐसी सभी बातें यूवेई हैं। उन बातों के साथ आपको वुवेई की स्थिति बनाए रखने और स्वाभाविक रूप से साधना करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। जब आपको काम करना है, आप काम करें; जब आपको पुस्तक पढ़नी है, पुस्तक पढ़ें; और जब आपको अभ्यास करना है, अभ्यास करें। जो कुछ भी समस्याएं उभरेंगी, आपको यह समझना होगा कि वे आपकी साधना में आपके सुधार के लिए प्रकट होती हैं। अपने आपको लगातार सुधारें और लगातार पुस्तक पढ़ें—ऐसे ही साधना में लगन से आगे बढ़ना है। बाकी सब कुछ जो आप चाहते हैं जो आपको लगता है कि अच्छा है, लाभदायक है, या ऐसा कुछ, सभी बाधाएं बन सकती हैं। इसलिए इन मुद्दों पर मुझे लगता है कि एक दाफा साधक के रूप में, वुवेई का अभ्यास करना उन बातों को नहीं कहना या करना है जो आपको नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न : फा अभ्यास करते समय, कभी-कभी मुझे यह आत्मज्ञान होता है कि गुरु जी ऐसे क्यों सिखाते हैं। क्या यह प्रतिक्रिया सामान्य है ?

गुरु जी : ऐसी बातें साधना में एक सामान्य स्थिति हैं, और इस तरह की बातें अधिकतर लोगों के साथ होती हैं। जब मैं फा सिखाता हूँ तो कुछ विशेष करता हूँ। वह है, जब मैं उन प्रश्नों के उत्तर देता हूँ जो मुझे लगते हैं कि अधिकांश लोगों से सीधे संबंधित नहीं हैं और केवल कुछ व्यक्तियों से संबंधित हैं, या जो महत्वपूर्ण नहीं हैं, मेरे उत्तर साधारणतः उस प्रश्न को संबोधित नहीं करते हैं। जैसा कि मैं वास्तव में फा को सिखा रहा हूँ, मैं उन बातों के बारे में नहीं कहता जो उपयोगी नहीं हैं। मैं जो कहता हूँ वह बातें लोगों के लिए छोड़ जाऊँगा, और सभी चेतन प्राणी इसे सुनेंगे। इसीलिए मैं किसी ऐसे प्रश्न पर ध्यान नहीं देता जिसे लोग पहले ही समझ चुके हैं। इसलिए मैं अन्य बातों के बारे में बात करते हुए उस व्यक्ति के प्रश्न पर आता हूँ, जिन बातों को अधिक लोगों और अधिक प्राणियों द्वारा जानना आवश्यक है। इससे भी अधिक, जब मैं फा सिखाता हूँ, यदि मुझे पता चल जाता है कि आपने इसे समझ लिया था जब मैं पिछले प्रश्नों का उत्तर दे रहा था, चाहे मैंने आपकी पर्ची में प्रश्नों को पूरा नहीं पढ़ा, मैं उन्हें उसी समय पढ़ना छोड़ देता हूँ क्योंकि आप पहले ही समझ चुके होते हैं। मैं उस प्रश्न को अन्य विषयों में तत्परता से उपयोग कर लेता हूँ। मैं इसे इसी तरह से करता हूँ। इसलिए मैं जिस तरह से फा को सिखाता हूँ वह उन तरीकों से अलग है जिस तरह से साधारण लोग प्रश्नों के उत्तर देते हैं।

प्रश्न : कभी-कभी मैंने ब्राम्हाण्ड के पदार्थों और जीवों के अस्तित्व के सिद्धांतों और गति के नियमों का अनुभव और ज्ञानोदय किया है। इस समझ और प्राप्ति की स्थितियों के बीच मूल अंतर क्या है जिन्हें मुझे भविष्य में प्राप्त करना है?

गुरु जी : यह एक घटना है जो किसी के मन में प्रकट होती है, और यह अधिकतर होती है। फा का अभ्यास करते समय कई शिष्यों को फा के विभिन्न सिद्धांतों का अनुभव हुआ है जो विभिन्न स्तरों पर फा द्वारा प्रकट किया जाता है। तब भी इस तरह की समझ को स्पष्ट करना कठिन है। एक बार जब उन्हें शब्दों के साथ वर्णित कर दिया जाता है तो वे उतने भव्य नहीं रह जाते हैं—वे केवल साधारण मानवीय सिद्धांत बन कर रह जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उच्च स्तर पर फा मानवीय भाषा द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है। मैं आपको केवल सामान्य तरीके से सिखाता हूँ, जबकि फा के सिद्धांतों का सही प्रदर्शन अलग होता है। इसलिए कभी-कभी जब आपका वास्तव में फा के सिद्धांतों के उस स्तर पर ज्ञानोदय होता है, और सब कुछ अचानक आपके लिए एकदम स्पष्ट हो जाता है, यह आपका वास्तविक सुधार, समझ और उत्थान होगा।

फा के सिद्धांतों में आपके द्वारा ज्ञानप्राप्त की गयी बहुत सी बातें सही हैं। मोहभावों के बिना जो भी आपने ज्ञानप्राप्त किया है वह सही है। ऐसा भी होता है की आप अपने मोहभावों को पकड़े रहते हैं और उन सिद्धांतों को ढ़ूँढ़ने पर बल देते हैं जो आपके मोहभावों के अनुरूप होते हैं। उन स्थितियों में यह बहुत संभावना है कि आपके मोहभाव आपके विचार कर्मों को बदल कर नकली बातों को अभिव्यक्त करेंगे। लेकिन वे फा के सिद्धांतों की अभिव्यक्ति नहीं करते हैं, इसलिए वे नकली हैं। केवल जब आप किसी मोहभाव या अवधारणा को पकड़ कर नहीं रखते आप फा के वास्तविक सिद्धांतों को देख पाएंगे। उदाहरण के लिए, जब आप दाफा को मोहभावों के साथ आंकने का प्रयास करते हैं, ऐसा सोचकर की यह सही है, वो सही नहीं है, या जब आप इस भाग से सहमत होते हैं और उस भाग के साथ समस्याएँ होती हैं, आप कुछ भी नहीं देख पाएंगे। इसका कारण यह है कि फा पवित्र है। मनुष्यों को फा के सिद्धांतों या बुद्ध के सिद्धांतों का आकलन करने की अनुमति नहीं है। इसलिए आप कुछ भी देखने में सक्षम नहीं हैं। उन विशिष्ट बातों या वस्तुओं जिनका आपने ज्ञान प्राप्त किया है, वे उन अवस्थाओं से संबंधित हो सकती हैं जिनका आपने विभिन्न स्तरों पर अनुभव किया है, वे अभी भी आपकी अंतिम ज्ञानप्राप्ति की स्थिति से कम हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो आज आप प्रश्न नहीं पूछते, क्योंकि आप उन सभी को समझ गए होते। इसलिए आपको जो पता चला है वह केवल विभिन्न लोकों में और विभिन्न स्तरों पर फा के सिद्धांतों की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं।

प्रश्न : क्या मैं गुरु जी से पूछ सकता हूँ कि नया अभ्यास संगीत क्यों बनाया गया? कॉकेशियन शिष्यों को इसमें ढलने में कुछ समस्या लग रही है।

गुरु जी : ऐसा इसलिए है क्योंकि मूल संगीत का टेप जिससे मूल संगीत बनाया जाता था खराब हो गया था, और इसे दोबारा बनाना था। टेपों की गुणवत्ता प्रभावित हुई होगी क्योंकि सभी मूल टेप बहुत बार डबिंग के बाद खराब हो गये थे। जब तक यह आपको मिलता तब तक इसकी गुणवत्ता खराब और खराब हो जाती। इस समस्या का हमें सामना करना पड़ा, इसलिए हमने एक नया बनाया।

यदि कुछ लोग नये टेप से अभी तक अभ्यस्त नहीं हुए हैं, तो मुझे लगता है कि आप अभी भी पुराने टेपों को सुन सकते हैं। इसमें कोई समस्या नहीं है। यदि आप नये टेप का उपयोग करना चाहते हैं तो यह भी ठीक है। लेकिन शिष्यों ने अनुभव किया है कि नये टेप स्पष्ट लगते हैं, क्योंकि यह नया रिकॉर्ड किया गया है। क्योंकि इस बार मूल टेप स्पष्ट है, ध्वनि की गुणवत्ता निश्चित रूप से अच्छी होने वाली है। यही स्थिति है। जब आप अभ्यास करते हैं तो आपके द्वारा अनुभव किए गये अंतर के अतिरिक्त, साधना में कोई वास्तविक अंतर नहीं होगा।

प्रश्न : गुरु जी, कृपया "परम पदार्थ" के बारे में समझाएं।

गुरु जी : इसके बारे में बात नहीं की जा सकती। यदि मैंने आपको इसके बारे में बताया, भविष्य में मानवजाति उस आयाम को खोलने में सक्षम हो सकती है। मनुष्यों को उस आयाम को खोलने की अनुमति नहीं है; मनुष्यों को इसके बारे में जानने की अनुमति नहीं है।

प्रश्न : क्योंकि मैं चीनी भाषा नहीं जानता, इसलिए मुझे पता नहीं चल पा रहा है कि अनुवाद सही है।

गुरु जी : यदि आप चीनी भाषा नहीं जानते हैं, तो आप उन शिष्यों से पूछ सकते हैं जो चीनी भाषा जानते हैं। लेकिन यह वास्तव में कठिन होगा, क्योंकि अन्य लोगों के लिए उन सभी नौ व्याख्यानों को आपके लिए अनुवाद करना वास्तव में कठिन होगा। सौभाग्य से, अलग-अलग व्याख्याओं के साथ मेरे व्याख्यानों की रिकॉर्डिंग संयुक्त राज्य में उपलब्ध कराई गयी है, और यह समस्या को हल कर सकती है।

प्रश्न : मैं एक अस्पताल में काम करता हूँ और प्रत्येक दिन रोगियों को देखता हूँ। क्या उनके बुरे कर्मों का मुझ पर कोई प्रभाव पड़ेगा ?

गुरु जी : जब किसी रोगी के बुरे कर्म एक निश्चित क्षेत्र में प्रबलता से प्रकट होते हैं, रोगी के शरीर के उस भाग में रोग दिख सकता है। वास्तव में, कई लोगों के बहुत से बुरे कर्म होते हैं, केवल इतना है कि वह रोग के रूप में प्रकट नहीं होते हैं। यह उनके दैनिक जीवन में अप्रसन्नता और समस्या के रूप में प्रकट होते हैं। यह बहुत सामान्य है। दूसरे शब्दों में, बुरे कर्म वास्तव में सभी ओर हैं। हालांकि, यह आपकी साधना को प्रभावित नहीं करता है, और अस्पताल में आपकी कार्य व्यवस्था आपको प्रभावित नहीं करेगी। क्योंकि आप जिसकी साधना करते हैं वह गोंग है, उस प्रकार के बुरे कर्म आपके साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

मुझे याद है कि अमेरिका में एक शिष्य था, जो रोगाणुओं के विश्लेषण में विशेषज्ञ था, वह कीटाणुओं का परीक्षण और उनकी उपज करता था। उसने पाया कि कांच की पट्टियों पर लगे कीटाणु उसके हाथों के स्पर्श से मर गये। दूसरे शब्दों में, उसके हाथों से निकलने वाली ऊर्जा ने कीटाणुओं को मार दिया। उस प्रकार की परिस्थिति हो सकती है। क्योंकि हमारी ऊर्जा गोंग है और यह आपकी साधना के माध्यम से प्राप्त हुआ है और आपकी स्वयं की छवि और विचारों को वहन करता है, आपको केवल अपने मन में सोचने की आवश्यकता है कि आप प्रयोग कर रहे हैं और उन्हें मारने की इच्छा नहीं हैं, और गोंग ऐसा नहीं करेगा। कुछ छात्रों ने अन्य विचार उत्पन्न किए हैं। आपको हमेशा ऐसा नहीं सोचना चाहिए, "विषाणुओं, जैसे ही तुम आओगे मैं तुम्हें मार दूँगा।" निश्चित रूप से ऐसा नहीं सोचना चाहिए, अन्यथा यह एक मोहभाव बन जाएगा। इसे ऐसे ही छोड़ दीजिए। यह स्वाभाविक रूप से जानता है कि आपकी रक्षा कैसे की जाए, क्योंकि यह आपकी साधना का परिणाम है।

प्रश्न : साधरणतः अधिकांश समय में मैं एक साधक की तरह आदर्शों का पालन कर पाता हूँ, लेकिन सपने में मैं अक्सर क्षीण नैतिकगुण वाले कार्य और अन्य लोगों के साथ झगड़े करता हूँ।

गुरु जी : सामान्य अवसरों पर जब हमारा मन साफ होता है हम स्वयं को अनुशासित कर सकते हैं और अच्छा आचरण कर सकते हैं। तब भी इस तरह के अनुशासन का अर्थ यह नहीं है कि आपने अपने नैतिकगुण की परीक्षा को पूरी तरह से पार कर लिया है। आपने इसे अच्छी तरह किया होगा क्योंकि आप अपनी प्रतिष्ठा बचाना चाहते थे, या क्योंकि आपकी सोच ने निर्धारित किया था कि आपको इसे इस तरह से करना चाहिए, लेकिन वास्तव में आपका मन उस स्तर तक शायद नहीं पहुंचा था। ऊपरी कारण ने आपको तर्कसंगत रूप से स्वयं को संयमित करने में सक्षम बनाया। लेकिन आप वास्तव में अपने व्यवहार में उतने पक्के नहीं बन पाए हैं, और इसीलिए इस समय आपके सपनों में परीक्षाएं होंगी। वास्तव में, यह आपके लिए एक स्पष्ट संकेत भी है कि आपको इस पर और काम करने की आवश्यकता है। इसका अर्थ यही है। सपने साधना नहीं होते हैं, लेकिन वे आपके लिए परीक्षाएं हैं और एक तरह से आपकी साधना की परीक्षा है।

प्रश्न : लोग हमेशा कहते हैं कि बुद्ध, ताओ, दिव्यों और भूतों पर विश्वास करना "अंधविश्वास है।" फा को फैलाते समय हमें इन बातों को कैसे समझाना चाहिए ?

गुरु जी : आपको उन बातों के बारे में बताने की कदापि आवश्यकता नहीं है। और ऐसा इसलिए है क्योंकि आप फा को फैला रहे हैं ताकि लोगों को फा प्राप्त हो सके, न कि उन्हें दूर कर दिया जाए। आप जानते हैं, जब आप इतने उच्च स्तर पर बात करते हैं तो यह लोगों को दूर भगाने के समान है। जब आपने पहली बार साधना करनी शुरू की थी, तब आपने भी फा के निम्नतम स्तरों पर सिद्धांतों की समझ के साथ शुरुआत की थी। क्योंकि दाफा निश्चित रूप से लोगों को यह सिखाने से शुरू होता है कि वे कैसे अच्छे व्यक्ति बने, यहीं से आपको भी बात शुरु करनी चाहिए। यह फा लोगों को रोगमुक्त करने और उन्हें स्वस्थ रखने में सक्षम है, और यह किसी व्यक्ति को उच्च नैतिक मूल्यों वाले व्यक्ति में बदल सकता है। आप बस सिद्धांतों के बारे में बात करके शुरू कर सकते हैं, और वह व्यक्ति स्वाभाविक रूप से बाकी सब समझ जाएगा जैसे-जैसे वह सुधार करेगा। यदि आप उन वस्तुओं के बारे में बात करते हैं जो बहुत अधिक उच्च हैं, तो उसके लिए यह स्वीकार करना कठिन होगा और परिणामस्वरूप वह अभ्यास नहीं सीखेगा।

प्रश्न : यदि किसी बात की ज्ञानप्राप्ति होने पर भी कोई उसका पालन नहीं कर पाता तो क्या यह "जानबूझकर गलत करना" है ?

गुरु जी : ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी ने स्वयं को साधक नहीं माना है। जब वे किसी परीक्षा से गुजर रहे होते हैं तब बहुत से लोग इस बात की अच्छी समझ रखने में असफल होते हैं कि क्या हो रहा था, लेकिन शांत होने के बाद वे बातों को समझ जाते हैं। यह भी एक प्रकार से सुधार है, केवल आप उस समय यह समझने में सक्षम नहीं थे। यदि आपके समझने के बाद भी आप उसके अनुसार कार्य नहीं करते हैं, इसका अर्थ है कि आपकी साधना दृढ़ नहीं है। यदि समस्या दोबारा आने पर आप उसमें अच्छा कर सकते हैं, तो यह आपके सफल होने के रूप में माना जाएगा। यदि आप अभी भी सब कुछ अनुभव करने के बाद भी इसमें सफल नहीं हो पाते हैं, तो आपको वास्तव में सुधार के लिए दृढ़ प्रयास करने की आवश्यकता है।

प्रश्न : मैंने चार से पांच साल तक साधना की है। मैं यह कैसे पता लगाऊं कि मैं साधना के किस चरण में हूँ ?

गुरु जी : ऐसे लोग हैं जो कुछ भी अनुभव नहीं कर सकते हैं। इसका समाधान यह है कि स्वयं को एक अभ्यासी मानें। ऐसा नहीं सोचें कि आपके जीवन में कई साल बचे हैं और आप अपना समय ले सकते हैं और धीरे-धीरे साधना कर सकते हैं। यद्यपि आप साधना कर रहे हैं और आप दाफा नहीं छोड़ सकते, लेकिन आपने वास्तव में स्वयं को समर्पित नहीं किया है। दूसरे शब्दों में, आप लगन के साथ आगे नहीं बढ़ रहे हैं। ऐसा नहीं चलेगा! क्योंकि दाफा पवित्र है, आप इसे उस तरह की मानसिकता से नहीं देख सकते। व्यक्ति को किसी लघु फा और लघु मार्ग के साथ भी ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह दाफा है आपको इसे संजोना आना चाहिए। यह आपको ऐसी वस्तुएँ देता है जो कोई लघु मार्ग आपको कभी नहीं दे सकते हैं, इसलिए आपको इसे उचित सम्मान के साथ संभालना चाहिए।

प्रश्न : मेरी आसुरिक-प्रकृति बहुत शक्तिशाली है, और मेरे आसपास का परिवेश अच्छा नहीं है। मुझे इसका समाधान कैसे करना चाहिए ?

गुरु जी : मुझे लगता है कि वे दोनों बातें आपकी साधना से संबंधित हैं। यह या तो आपके बुरे कर्मों को दूर करने में सहायता करने के लिए या आपको अपने नैतिकगुण को ऊँचा उठाने में सहायता करने के लिए है। इसलिए आपको उन्हें सही ढंग से देखना होगा। कुछ लोग बहुत कठिन परिस्थितियों में हैं, लेकिन निश्चित रूप से वे आपके लिए अच्छी हैं, क्योंकि आप साधक हैं। आपको लगता है कि आपके लिए वे अच्छी नहीं हैं इसका कारण यह है कि आपने अपना मानवीय पक्ष नहीं छोड़ा है। आपको लगता है कि आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है, और आप सोचते हैं कि इस व्यक्ति को आपके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, और इसके स्थान पर उसे आपसे अच्छा व्यवहार करना चाहिए। तब भी एक अभ्यासी के दृष्टिकोण से, यदि सभी आपके साथ अच्छा व्यवहार करेंगे, तो आप साधना कैसे करेंगे? आपके मोहभाव उजागर कैसे होंगे? आप कैसे सुधार करेंगे? आप बुरे कर्मों को कैसे समाप्त करेंगे? क्या यह प्रश्न नहीं है? जब आप इस तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं तो आपको द्वेष या प्रतिरोधी मनोभाव नहीं रखना चाहिए। आपको उन्हें सही ढंग से देखना चाहिए क्योंकि आप एक साधक हैं। मैं आपसे अलग हूँ; यदि कोई मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करता है, या कोई दाफा के साथ वैसा ही व्यवहार करता है, तो वह दुष्ट है जो फा-सुधार को क्षति पहुंचा रहा है।

प्रश्न : जब मेरे पति 1997 के जून में बुरे कर्मों का भुगतान करने वाले एक कठिन समय से गुजर रहे थे, उनके कुछ पक्षाघात जैसे लक्षण लग रहे थे। वे फा उपदेशों के वीडियो टेप देखते रहे। इक्कीस दिनों के बाद, वे फा व्याख्यान को सुनने के लिए बिस्तर से उठने में सक्षम हो गये। 1998 की शुरुआत में वे शारीरिक चुनौतियों से उबरने और अभ्यास स्थल पर फा-अभ्यास और सामूहिक अभ्यास में सम्मिलित होने में सक्षम हो गये।

गुरु जी : ऐसी बातें इसलिए हुई क्योंकि जब वह फा सीख रहा था तो वह दृढ़ नहीं था। लेकिन, जब उसने साधना की शुरुआत की मुझे उसे साधक की तरह मानना ​​पड़ा। भले ही वह पर्याप्त दृढ़ नहीं था, गुरु होने के नाते, मैंने उसे एक साधक के रूप में माना। आखिरकार, वह सीख रहा था और साधना कर रहा था। पक्षाघात आपको जिस अवस्था में डालता है वह साधारणतः बहुत गंभीर होती है, और बहुत से लोग पाक्षिक लकवाग्रस्त हो जाते हैं। तब भी उसके लक्षण बहुत हल्के थे। यदि वह स्वयं के बारे में पवित्र विचारों के साथ सोचने में सक्षम रहा होता इसके बजाय कि वह कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे कोई स्वास्थ्य समस्या है, मुझे लगता है कि तब इस तरह से नहीं हुआ होता। यदि वह ऐसा कर पाता, तो उसकी स्थिति और भी अच्छी होती। दूसरी ओर, यह बहुत संभव है कि उसके पास उस संबंध में बहुत अधिक बुरे कर्म थे और उसे इस तरह से हटाना आवश्यक था। इसके अतिरिक्त, ये बातें यह देखने के लिए भी होती हैं कि क्या आप अभी भी उस परिस्थिति में दृढ़ रह पाते हैं। तो यह इस तरह की समस्या भी हो सकती है। अलग-अलग परिस्थितियों के कारण साधना की अलग-अलग अवस्थाएं होती हैं, और सब कोई अलग है। लेकिन मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या आप स्वयं को एक साधक के रूप में मान सकते हैं या नहीं। इस स्थिति के माध्यम से हम देख सकते हैं कि वह अभी भी सीख रहा है और साधना कर रहा है, और यह कि अभी भी मोहभाव हैं जो उसे समाप्त करने चाहिए।

एक और बात यह है कि यदि उसके परिवार के सदस्य भी अभ्यासी हैं, और वे उन वस्तुओं को बड़ी समस्या मानते हैं, तो यह एक मोहभाव है, और वह भी उनको विलंबित कर देगा। साधना आपके फलपदवी को ध्यान में रखती है और आपके सुधार के लिए उत्तरदायी है, न केवल यह उसके लिए उत्तरदायी है और उसके बुरे कर्मों को समाप्त करती है, बल्कि इसे आपके मोहभावों को भी हटाना होता है। आपको एक सच्चा साधक होना चाहिए, वास्तव में परिश्रमी होना चाहिए, और कुछ भी त्यागने में सक्षम होना चाहिए। तब देखें क्या होता है। यदि आप कुछ बातों को बहुत अधिक पकड़ कर रखते हैं तो यह एक बड़ा मोहभाव बन जाएगा, और यह अन्य लोगों को प्रभावित करेगा। आपको इन बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हालांकि, यह सभी बातें जिनकी मैंने अभी बात की है संभवतः आप पर लागू न हों; आपकी परिस्थिति अलग हो सकती है। यह कि, [जो मैंने कहा] आपको उससे मोहभाव नहीं होना चाहिए। मैंने जो बात की है वे फा के सिद्धांत हैं। यह कि, मैंने जो कहा है, उसके साथ आपको मोहभाव नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे फा के सिद्धांत हैं।

प्रश्न : साधना के दौरान, विभिन्न स्तरों पर दाफा ने हमारे लिए जो विभिन्न आवश्यकताओं को निर्धारित किया है, उन्हें मैं कैसे पूरा कर सकता हूँ?

गुरु जी : बहुत से शिष्यों का यही विचार है। किसी जीव की विशेष परिस्थितियों की आवश्यकताओं को पूरी तरह से निभाना या उस स्तर के आदर्शों को पूरा करना आपके लिए कठिन है। और ऐसा इसलिए है क्योंकि आपका कुछ मानवीय होना मैं आपके लिए छोड़ रहा हूँ ताकि आप साधारण लोगों के बीच साधना करनी जारी रख सकें। हम सबसे बुरे मोहभाव से शुरू करते हैं और उन्हें एक-एक करके समाप्त करते हैं। कुछ वस्तुएँ प्रत्येक स्तर पर धीरे-धीरे समाप्त की जाती हैं। एक स्तर से समाप्त करने के बाद दूसरा स्तर आता है, एक के बाद एक जबतक ऊपरी स्तर तक नहीं पहुंच जाते। जब सब कुछ समाप्त हो जाता है तो आप फलपदवी तक पहुंच जाते हैं। इससे पहले कि सब कुछ समाप्त हो जाए, आपके पास अभी भी मानवीय व्यवहार और मानवीय अवस्थाएँ होंगी। यह एकमात्र और सबसे अच्छा दृष्टिकोण है जो मैं प्रदान कर सकता हूँ, जहां आप साधारण लोगों के बीच रहने और उनके बीच साधना करने में सक्षम होंगे। क्या इसका अर्थ यह है कि क्योंकि आपके पास अभी भी साधारण मानवीय बाते हैं, आप अभी से स्वयं के साथ शिथिल हो सकते हैं? नहीं, इसका अर्थ यह नहीं हैं! जो मैंने आपको बताया है, वह इसका सिद्धांत है, लेकिन आपको लगातार परिश्रमी होना चाहिए और स्वयं के लिए एक कड़ा आदर्श निर्धारित करना चाहिए—क्योंकि यही साधना है। यदि आप सुस्त हो जाते हैं, तो यह आपकी साधना के रूप में नहीं माना जाएगा। या कम से कम, आपका पूरी लगन से आगे बढ़ना नहीं माना जाएगा। यह ऐसे ही काम करता है। साधारण मानवीय वस्तुओं के प्रत्येक स्तर को समाप्त करने के लिए, आपको स्वयं ही साधना और प्रयास करना होगा।

प्रश्न : जब हम फा को फैलाते हैं, हमें ऐसा क्या करना चाहिए ताकि मानवीय वस्तुओं को दाफा में न जोड़ा जाए ?

गुरु जी : जब तक आपके पास मानवीय मोहभाव हैं, वे स्वयं को प्रकट कर सकते हैं। समाधान यह है कि आप मोहभाव या मानवीय अवधारणा को कैसे समाप्त करते हैं जब आपको इसके बारे में पता चलता है। यह सबसे महत्वपूर्ण बात है। यदि आप पाते हैं कि कोई समस्या है, और आप इसे समाप्त कर पाते हैं, केवल यही मार्ग है जिससे आप सबसे अच्छा कर सकते हैं और जो सबसे पवित्र है।

प्रश्न : ब्रह्मांड में जीवन का सृजन होने के बाद, ब्रह्मांड के कौन से स्तर उन लोगों के हैं जो नीचे नहीं गिरते? वे किस दिव्य लोक से संबंधित हैं ?

गुरु जी : ब्रह्मांड बहुत विशाल है, और फा में यह सब सम्मिलित है, फा ने सभी जगत बनाए हैं। जो धूल के कण और रेत के कण हम देख सकते हैं वे इससे भी कहीं अधिक हैं, असंख्य और अनगिनत से भी अधिक। रेत के एक कण में भी इनकी अनगिनत संख्या है। प्रत्येक ब्रह्मांडीय पिण्ड जीवन का सृजन कर सकता है—जीवन का सृजन, स्तर या दिव्य लोक के अधीन नहीं है। जीवों के नीचे गिरने के संबंध में मैने जो उल्लेख किया है वह एक दुर्लभ परिस्थिति है जो एक खरब में से एक से भी कम होती है, और साथ ही, यह कुछ ऐसा है जो बहुत अधिक लंबे समय तक चलता है। ब्रह्मांड में अनगिनत जीव हैं, फिर भी पृथ्वी पर कितने जीव हैं? यह ऐसा कुछ नहीं है जिसकी कल्पना मानव विचारों के साथ की जा सकती है।

प्रश्न : जब तक बुद्ध हैं, असुर भी हैं। बुद्धत्व की साधना तभी कर सकते हैं जब असुर हों। क्या एक व्यक्ति जो असुर होने के बाद पुनर्जन्म लेता है तब भी उसका सर्वनाश किया जाएगा भले ही वह कुछ भी बुरा नहीं करता हो ?

गुरु जी : इस ब्रह्मांड में, यहां पर असुरों के भी राजा हैं और साथ ही फा के भी राजा हैं। फा का राजा एक तथागत होता है। इसलिए, कुछ स्तरों पर वे परस्पर-सहयोग और परस्पर-विरोध के ढंग में साथ-साथ अस्तित्व रखते हैं। लेकिन वास्तव में बहुत सारे असुर नहीं हैं। पवित्र दिव्य सभी स्थानों पर हैं। और ऐसा इसलिए है कि नकारात्मकता सकारात्मकता को पराजित नहीं कर सकती है, हालांकि नकारात्मकता का अस्तित्व होता है। इसलिए, असुर ब्रह्मांड की उत्पति हैं, और असुरों के बिना आप वास्तव में साधना करने में सक्षम नहीं होंगे। आप जानते हैं, साधारण लोगों के बीच आपकी साधना में, लोग अपनी आसुरिक प्रकृति के साथ आपके लिए समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं, और आप लगातार सुधार करते हैं और आगे बढ़ते हैं। जब आप उच्च स्तरों पर पहुंच जाते हैं तब मानव आपके लिए कोई समस्या उत्पन्न नहीं कर पाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जैसे ही मनुष्य आपको देखते हैं, उनकी छोटी, तुच्छ मानवीय वस्तुएँ अब प्रभावी नहीं होंगी, क्योंकि वे बहुत निर्बल होते हैं और आप एक निश्चित स्तर पर साधना कर रहे होते हैं। जो लोग आपके साथ हस्तक्षेप करेंगे वे मनुष्य प्रतीत होंगे, लेकिन वे असुरों द्वारा नियंत्रित होते हैं। विभिन्न स्तरों पर असुर होंगे जो आपकी साधना में बाधाएं उत्पन्न करने और आपको साधना करने से रोकने के लिए मनुष्यों को नियंत्रित करेंगे। लेकिन जो आपको साधना से दूर रखने के उद्देश्य से है वह आपके लिए बुरे कर्मों को समाप्त करने और सुधार करने का सबसे अच्छा अवसर है। हम इसे ऐसे ही देखते हैं।

जहां तक ब्रह्मांड में उनके पुनर्जन्म और अभी भी सभी प्रकार की बुरी वस्तुओं को करने की बात है, संभवतः आप जानते होंगे कि लामा तांत्रिक साधना में आसुरिक साधना के तत्व भी हैं। असुर बनने के लिए साधना की क्या आवश्यकता है? एक असुरराज बनने की साधना में, उन्हें भी साधना में अलग-अलग साधारण मानवीय भावनाओं, विभिन्न मोहभावों और मानवीय मोहभावों से छुटकारा पाने की आवश्यकता होती है; तभी वे उस आयाम तक पहुंच सकते हैं। तब वे असुर क्यों बन जाते हैं? वे करुणा की साधना नहीं करते हैं, इसलिए वे असुरराज हैं। वे उन आदर्शों को पूरा कर चुके हैं और उस आयाम में पहुंच गये हैं, लेकिन वे असुरराज हैं। यदि कोई साधारण लोगों के बीच सभी तरह की बुरी बातें करता है, तो यह महत्व नहीं रखता है कि वह मूल रूप से एक दिव्य था या असुर—वह सर्वनाश का सामना करता है। यह ऐसी ही स्थिति है। यदि कोई असुर एक मानव के रूप में पुनर्जन्म लेता है, लेकिन वह मानवजाति को हानि नहीं पहुँचाता है, तो उसका सर्वनाश नहीं किया जा सकता है। यदि वह फा प्राप्त करने में सक्षम होता है, तो वह हम जैसे ही साधना कर सकता है और फलपदवी भी प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न : "गोंग के खुलने की स्थिति तक पहुंचने के बाद कोई भी साधना नहीं कर सकता है।" क्या इसका अर्थ यह है कि अब किसी को व्यायाम करने या नैतिकगुण में सुधार करने की आवश्यकता नहीं है ?

गुरु जी : ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपने अपनी फलपदवी की स्थिति को मान्य और ज्ञानप्राप्त कर लिया है। एक बार जब आप ज्ञानप्राप्त कर लेते हैं तो आपके अब मानवीय विचार नहीं होते हैं। इसके स्थान पर, आपके पास सोचने का एक अलग तरीका और स्वयं की एक अलग अवस्था होगी। आप वह सब कुछ देख पाएंगे जो आपके आयाम के नीचे है; आप उन स्तरों में से प्रत्येक को देख पाएंगे। यह एक मानव के रूप में अब आप जो कल्पना कर सकते हैं उससे पूरी तरह से अलग होगा। एक बार जब आप अपनी फलपदवी की स्थिति को मान्य और ज्ञानप्राप्त कर लेते हैं तो साधना की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। कोई भी जीव हमेशा के लिए साधना की स्थिति में नहीं रहता है। यह मनुष्यों के इस स्थान से उसके मूल स्थान पर लौटने की एक प्रक्रिया है, न कि एक अनंत प्रक्रिया जिससे एक जीव गुजरता है।

प्रश्न : निचले स्तर पर गोंग के खुलने तक पहुंचने के बाद, कोई व्यक्ति उस स्तर को कैसे बनाए रख सकता है, और क्या वह अभी भी उसी जीवनकाल में उच्च स्तरों पर साधना कर सकता है ?

गुरु जी : आप निचले स्तर पर गोंग के खुलने की अवस्था तक क्यों पहुँचेंगे? त्रिलोक में पूरी तरह से फलपदवी प्राप्त करने की कोई स्थिति नहीं है। लेकिन मैं आप सभी को वास्तव में फलपदवी प्राप्त करवाना चाहता हूँ, इसलिए भले ही आप में से बहुत से लोग ज्ञानप्राप्ति की स्थिति में पहुंच गये हों, लेकिन मैंने आप में से किसी को भी खोला नहीं है, और ऐसा इसलिए है क्योंकि मेरे पास इसके लिए एक व्यापक योजना है। आपकी साधना की व्यवस्थाएँ मूल रूप से व्यवस्थित रूप से की जाती हैं और आप जो कुछ सहन कर सकते हैं और आप जो अपने साथ लेकर आते हैं उसके अनुसार करते हैं। यह बहुत सटीक है, और यह कुछ ऐसा नहीं है जिसे मानव विचारों के साथ समझा जा सकता है। यदि आप इस्पात का एक टुकड़ा हैं, तो मैं निश्चित रूप से आपको लोहे का टुकड़ा नहीं रहने दूँगा।

प्रश्न : क्या ज़ेन बुद्धमत के छठे आचार्य बोधिसत्व के स्तर तक पहुंचे थे ? क्या शेनशिऊ के साथ उनका विवाद उनका मोहभाव था ?

गुरु जी : उनकी प्रारंभिक फलपदवी अर्हत की थी। इसका हमारी साधना से कोई लेना-देना नहीं है। मैं आपको जो सिखा रहा हूँ वह महान फा है, महान ताओ है, लेकिन आप लघु मार्गों के बारे में पूछने पर बल दे रहे हैं। क्योंकि बोधिधर्म स्वयं बुद्ध नहीं थे लेकिन एक ज्ञानप्राप्त अर्हत थे, उनके शिष्य निश्चित रूप से अधिकतम अर्हत तक ही पहुंच सकते थे। क्योंकि वे बुद्ध नहीं थे, इसलिए उन्होंने जो सिद्धांत सिखाए वे बुद्ध के सिद्धांत कैसे हो सकते हैं? निश्चित ही वे नहीं हो सकते थे। वास्तव में, चाहे यह बोधिधर्म हों या उसके बाद के पाँच आचार्य, उन सभी की देखभाल बुद्ध करते थे। यदि ऐसा नहीं होता तो वे अर्हत के स्तर तक पहुंचने में भी सक्षम नहीं होते। बोधिधर्म ने जो सिखाया वह बुद्ध फा नहीं था, बल्कि केवल अर्हत प्राप्ति के सिद्धांत थे जो उन्होंने अपने स्तर पर समझे थे।

जहां तक शेनशिऊ के साथ विवाद की बात है, यह उनकी साधना में मानवीय मोहभावों की अभिव्यक्ति थी। मुझे लगता है कि क्रमिक ज्ञानप्राप्ति या अचानक ज्ञानप्राप्ति—दोनो ही प्रणालियाँ साधना के लिए ठीक है। मुझे लगता है कि ऐसा उनकी मनःस्थिति के कारण था। सीधी तरह से कहा जाए तो, क्या यह एक ही बात नहीं है कि आपको सब कुछ अचानक या धीरे-धीरे समझ में आता है? तो जहां तक आप क्रमिक फलपदवी या अचानक फलपदवी के रूप में फलपदवी प्राप्त करते हैं, तब तक आप किसी भी मार्ग से सच्ची साधना करते हैं यह ठीक है। क्या यह एक ही बात नहीं है? यह केवल साधना के दृष्टिकोण पर विवाद था। यह ऐसा है जैसे धर्मों को बनाये रखने वाले लोगो करते हैं : यह मानवीय दृष्टिकोण से देखने पर सही है, लेकिन जब इसे किसी दिव्य या बुद्ध के दृष्टिकोण से देखा जाता है, तो यह सभी मोहभाव हैं। क्या धर्म को बनाए रखने से किसी व्यक्ति की साधना में फलपदवी को प्राप्त करने की अनुमति मिलेगी? ऐसा करने से आपके कौन से मोहभाव हट सकते हैं? कोई भी नहीं। इसके विपरीत, यह एक और मोहभाव को बढ़ाता है—वह स्वयं इस बात को बनाये रखने का मोहभाव है। यही कारण है कि शाक्यमुनि ने कहा कि इच्छा के सभी मार्ग बुलबुले की तरह भ्रामक हैं, क्योंकि उनमें मंशा है। आपके धर्म को बनाए रखने का अर्थ यह नहीं है कि आपने बुद्ध को बनाये रखा है। यह निश्चित रूप से उस तरह की समझ नहीं है। यह मनुष्य की मानवीय सोच की उपज है।

प्रश्न : क्या हममें से कोई अर्ध गोंग खुलने की स्थिति तक पहुंचा है ?

गुरु जी : हां, ऐसे लोग हैं जो क्रमिक ज्ञानप्राप्ति की स्थिति में हैं, और यह वास्तव में अर्ध गोंग खुलने से संबंधित है। बस इतना है कि स्तर अलग-अलग होते हैं। उस अवस्था में बहुत से लोग हैं।

प्रश्न : मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो फालुन दाफा के बारे में बहुत कम जानता है। यदि मैं भविष्य में बुद्ध बनने की इच्छा के साथ साधना करता हूँ, तो क्या यह मोहभाव है ?

गुरु जी : निःसंदेह यह एक मोहभाव है। एक छात्र का कर्तव्य अभ्यास करना है। जब तक आप अच्छी तरह से अभ्यास करते हैं तब तक आपके स्वाभाविक रूप से अच्छे अंक होंगे और स्वाभाविक रूप से महाविद्यालय में जा पाएंगे। यदि आप अपने काम में अच्छा करते हैं तो स्वाभाविक रूप से आपके पास उपलब्धियाँ होंगी। साधना करने की आपकी इच्छा को अपने आप में अनुचित नहीं माना जा सकता है। स्वयं बुद्ध बनने की इच्छा का अर्थ है किसी के वास्तविक, सच्चे मूल में लौटना, जो एक जीवन की ब्रह्मांड में अंतिम नियति होती है। यह अनुचित कैसे हो सकता है? यह वैसा ही है जैसे लोग घर जाना चाहते हैं—यह अनुचित कैसे हो सकता है? यह अनुचित नहीं है। लेकिन यदि आपके मन में आप हमेशा सोचते रहते हैं : "मैं एक बुद्ध की साधना करना चाहता हूँ। मैं साधना कर के बुद्ध कब बन सकता हूँ? मुझे बस बुद्ध की साधना करनी है।" ऐसे प्रबल विचारों का होना मोहभाव है।

बुद्धमत में लोग अब बहुत से विषयों के बारे में नहीं जानते हैं। पहले के बौद्ध भिक्षुओं का निधन हो गया है, और नये भिक्षु, जो सांस्कृतिक क्रांति के दौरान बहुत लंबे समय तक साधारण जीवन में रहे, सांस्कृतिक क्रांति के बाद वापस जाकर भिक्षु और मठाधीश बन गये। यह एक बहुत बड़ा अन्तराल था, और वे अतीत में की गई सच्ची साधना के बारे में सब कुछ नहीं जानते हैं। और विशेष रूप से जब से बुद्धमत ने कई फा कठिनाइयों का अनुभव किया है, सबसे मूल बातें पूरी तरह से गुम हो गई हैं या समझ में नहीं आयी हैं। वास्तव में, जेन बुद्धमत की प्रत्येक पीढ़ी को बंद मार्ग की तरफ जाना माना जाता है, और बोधिधर्म ने यह भी स्वीकार किया है कि केवल छह पीढ़ियाँ होंगी—कि बाद में कोई फा नहीं होगा। उनके फा को आगे पारित नहीं किया जा सकता था, और यह लोगों के लिए प्रभावी भी नहीं होता। फिर भी लोग आज भी इसको जकड़े हुए हैं। छठे आचार्य ह्वेनेंग के समाधिस्थ होने के बाद से लगभग एक हजार साल हो गये हैं, और उसके बाद इसे स्वीकार नहीं किया गया है, हालांकि इसे आगे भी पारित किया जाता है। अब साठ पीढ़ियाँ बीत चुकी हैं और लोग अब भी इसे जकड़े हुए हैं। बोधिधर्म ने जो सिखाया वह अर्हत फा था। अर्हत फा त्रिलोक के सबसे निकट है, इसलिए यह सबसे निम्न है। फा के निम्नतम सिद्धांत मानवीय दर्शनशास्त्र सिद्धांतों के सबसे निकट है, इसलिए मनुष्यों के लिए इसे स्वीकार करना सरल है। इसीलिए बहुत सारे लोग सोचते हैं कि उन्होंने दर्शनशास्त्र के उच्चतम सत्य को प्राप्त किया है, और वे इसे ऐसे दृष्टिकोण से देखते और समझते हैं जैसे वे साधारण लोगों के सिद्धांतों को समझते हैं। वर्तमान स्थिति ऐसी ही है।

प्रश्न : चेतन प्राणियों को ब्रह्माण्ड के मूलभूत दाफा को जानने की अनुमति क्यों है?

गुरु जी : क्योंकि वे सभी फलपदवी के बाद दिव्य बन जाएंगे। जो लोग फलपदवी प्राप्त नहीं कर पाएंगे उन्हें नया इतिहास बनने से पहले, इतिहास द्वारा पुनर्स्थापित, नवीनीकृत या समाप्त किया जाएगा। मैं आपको बताना चाहता हूँ, हालांकि मैंने आपको दिव्य लोक के बहुत सारे रहस्य बताये हैं और आपको इस तरह के एक विशाल फा को सिखाया है, वास्तव में, मैं केवल साधारण भाषा में मानवीय भाषा का उपयोग कर बोल रहा था, और फा के सच्चे सिद्धांतों का सार अभी भी आपके लिए अज्ञात है। जिनके बारे में आप अवगत हैं और जिनके बारे में जानते हैं—वह आपके वे भाग हैं जिनकी सफलतापूर्वक साधना हो चुकी है। यह फा के सिद्धांतों का भी भाग है जिन्हें आपको अपने स्तर पर जानना चाहिए। ऐसा नहीं है कि उस स्तर पर सब कुछ आपको दिखाया गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस संसार में लोगों को सच्चाई जानने की अनुमति नहीं है। यह ब्रह्मांड के पूरे इतिहास से इस तरह से चला आ रहा है। इसलिए वे केवल वही जान सकते हैं जो उन्हें जानना चाहिए।

प्रश्न : जब किसी जीव का स्तर गिरता है, तो क्या यह इसलिए है क्योंकि इसकी साधना में उस स्तर के आदर्श पूरे नहीं हुए हैं ?

गुरु जी : नहीं, ऐसा नहीं है। यदि आप उस ज्ञानप्राप्ति की स्थिति तक साधना नहीं कर सकते हैं, तो आप वहाँ तक पहुँचने में सक्षम भी नहीं होंगे। सीधे उस स्तर पर निर्मित किये गये जीवन स्वाभाविक रूप से उस स्तर के आदर्शों को पूरा करते हैं। यदि किसी जीवन ने कुछ विचार उत्पन्न किए हैं या कुछ ऐसे काम किए हैं जिन्हें उसे अपने स्तर पर नहीं करने चाहिए, तो यही उसके गिरने का कारण हो सकता है। हालांकि यह इतना सरल नहीं है। मानवीय विचार बहुत सक्रिय होते हैं और सभी प्रकार के विचारों को उत्पन्न कर सकते हैं। और ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके जन्म के बाद बनने वाली अवधारणाओं की गड़बड़ी और सभी प्रकार के बुरे कर्म प्रभाव डालते हैं। उन बातों के बिना आप मानव मन को स्पष्ट और शुद्ध पाएंगे। बुद्ध के आयाम में पहुंचने पर, किसी व्यक्ति के पास ऐसी निम्न चीजें नहीं होती हैं; बल्कि वे सभी पवित्र होती हैं। वह सब कुछ जान जाएगा, बैलों या घोड़ों के विचार भी। लेकिन वे बातें उसे प्रभावित नहीं करेंगी, और वह उनके बारे में सोचना भी नहीं चाहेगा। एक भी विचार उत्पन्न किए बिना वह सबकुछ जान जाएगा।

प्रश्न : मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं एक निश्चित स्तर पर रुक गया हूँ, और यदि हां, तो मैं उससे आगे कैसे बढ़ सकता हूँ ?

गुरु जी : वास्तव में, साधना में आपके धीमे होने का मुख्य कारण यह है कि आपने फा का अभ्यास करने का अधिक प्रयास नहीं किया है, और आप स्वयं के प्रति बहुत अनुशासित नहीं रहे हैं। साधारणतः यही कारण होता है। आप साधना में अपनी लगन कम नहीं कर सकते। यह याद रखें! अंत तक साधना करना सुनिश्चित करें! लोगों को साधना करने में सशक्त बनाने के लिए इस तरह के विशाल फा के साथ, यह निश्चित ही लंबे समय तक नहीं खिंच सकता है। इसलिए आपको लगन के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

प्रश्न : क्योंकि फालुन गोंग बुद्ध फा से उच्च है, तब इसे फालुन बुद्ध फा क्यों कहा जाता है ?

गुरु जी : मुझे पता है कि आपकी स्थिति क्या है। वास्तव में, आप समझ नहीं रहे हैं। मैंने इसे बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है। "बुद्ध फा से उच्च"—बुद्ध फा क्या है? शाक्यमुनि द्वारा सिखाया जाने वाला फा बुद्ध फा है। और बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा कि उनके पहले छः अतिप्राचीन बुद्ध थे, तब क्या छः अतिप्राचीन बुद्धों ने जो फा सिखाया वह बुद्ध फा था? क्या भविष्य के बुद्ध, बुद्ध मैत्रेय, द्वारा सिखाया जाने वाला फा, बुद्ध फा होगा? तब तथागतों ने जो फा सिखाया है, जो गंगा नदी में रेत के कणों जितने हैं, बुद्ध फा है? आखिर बुद्ध फा क्या है? क्या बुद्ध शाक्यमुनि सभी तथागतों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं? नहीं, वे नहीं कर सकते। क्या बुद्ध शाक्यमुनि पूरे बुद्ध फा का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं? नहीं, वे नहीं कर सकते। जिस व्यक्ति ने यह पर्ची दी है उसे इस बात की स्पष्ट समझ नहीं है।

इसे "फालुन बुद्ध फा" क्यों कहा जाता है, जिसे "फालुन दाफा" के रूप में भी जाना जाता है? इसे फालुन बुद्ध फा कहकर आज के बुद्धमत से अलग करना सरल हो जाता है। यह भेद करने के लिए केवल एक नाम है। वास्तव में, ये नाम—जिनमें फालुन दाफा भी सम्मिलित है—सभी साधारण लोगों के बीच के नाम हैं, वे साधारण मानव समाज में सिर्फ मनुष्यों को दिखाये गये नाम हैं। फालुन बुद्ध फा वास्तव में ब्रह्मांड की नींव है। यह वह नींव है जो सभी चेतन प्राणियों के साथ-साथ ब्रह्मांड में सभी वस्तुओं और पदार्थों का सृजन करती है।

प्रश्न : बुद्ध फा की साधना में कई पद्धतियां हैं। क्या अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग पद्धतियां हैं?

गुरु जी : ऐसी कोई धारणा नहीं है। आपका अर्थ है कि उन्हें विशेष रूप से अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग पद्धतियों का निर्माण करना चाहिए? क्या आपके कहने का अर्थ यह है कि बुद्ध फा इतना तुच्छ है? बुद्ध फा मनुष्यों के लिए या लोगों को बचाने के लिए नहीं बनाया गया था। बुद्ध लोगों को बचाते हैं क्योंकि वे करुणामयी हैं। यहां तक कि बुद्ध शाक्यमुनि ने भी कहा था कि तथागत गंगा नदी में रेत के कणों जितने हैं, फिर भी केवल बुद्ध शाक्यमुनि ही थे जो आए। क्या आपको लगता है कि यदि कोई बुद्ध आपको नहीं बचाता है तो वह असहज अनुभव करेगा या पीड़ित होगा? बुद्ध मनुष्यों के लिए नहीं बने हैं। ऐसी बात नहीं है।

प्रश्न : क्या एक फालुन गोंग पुस्तक सभी साधकों को फलपदवी तक पहुँचाने में सक्षम बना सकती है ?

गुरु जी : मुझे पता है कि आप यहाँ किसलिए आए हैं, लेकिन मैं तब भी आपको समझाऊँगा। जब बुद्ध शाक्यमुनि इस संसार में फा को सिखा रहे थे, तब कोई शास्त्र नहीं थे। बाद में, बुद्ध शाक्यमुनि के इस संसार में नहीं रहने के बाद, लोगों ने स्मृति से शास्त्रों का संकलन किया, जो बुद्ध शाक्यमुनि ने सिखाया था। उनके बीच बहुत बड़ी असमानताएं थी—उनके पास तब समय, स्थान, और परिस्थितियों की स्पष्टता नहीं थी। उसके बाद भी, ऐसे कई लोग हैं जो इस तरह के शास्त्रों का पालन करके साधना में सफल हुए हैं। इसे कौन अस्वीकार कर सकता है? उनके पास जो कुछ भी था वे शास्त्र थे। आपको क्या लगता है कि मनुष्यों को और कैसे साधना करनी चाहिए?

प्रश्न : फालुन दाफा ब्रह्मांड का महान सिद्धांत है, तो दाफा भी चौरासी हजार पद्धतियों में से एक क्यों है?

गुरु जी : यह उतना ही है जितना मनुष्य समझ सकता है। यदि आप उन्हें उच्च-स्तरीय बातें बताते हैं तो वे इसे वैसे भी नहीं समझ पाएंगे। वास्तव में, क्या आपने इस बारे में सोचा है : पूरे ब्रह्मांड में सभी बुद्ध फा के साथ-साथ, ये सभी केवल चौरासी हजार साधना मार्ग नहीं हो सकते हैं। तथागत गंगा नदी में रेत के कणों जितने हैं, और प्रत्येक तथागत के अपने स्वयं के सिद्धांत हैं जिन्हें उन्होंने मान्य और ज्ञानप्राप्त किया है। लेकिन वे सभी एक ही स्तर से संबंधित हैं। चौरासी हजार—क्या यह उस संख्या तक सीमित हो सकता है? यहां तक ​​कि 84 करोड़ भी पर्याप्त संख्या नहीं है—वे बहुत सारे हैं! बहुत सारे साधना मार्ग हैं। तब क्या वे सभी मार्ग अलग-अलग साधना मार्ग नहीं हैं जो हमारे दाफा द्वारा बनाये गये हैं—ब्रह्मांड का महान फा—उन स्तरों पर चेतन प्राणियों के लिए, जो उन्हें अलग-अलग स्तरों पर दाफा में समाहित फा के भाग को मान्य और ज्ञानप्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं? तब क्या इसमें वह भाग सम्मिलित नहीं होगा जो मैं आज लोगों को बता रहा हूँ, जो केवल फा का भाग है जिसे लोग अपने स्तर पर समझ सकते हैं? क्या ऐसा नहीं है? मैं केवल उन माध्यमों और अवधारणाओं का उपयोग कर सकता हूँ जो मनुष्य समझ सकता है जैसे उन्हें बातें समझायी जाती हैं। वास्तव में, चौरासी हजार से अधिक, या 8 अरब, या 80 अरब, या 80 खरब भी पद्धतियां हैं। वे बहुत अत्यधिक हैं, तब भी वे सभी दाफा से मान्य और ज्ञानप्राप्त हैं। हमारे दाफा की भी सबसे निम्न स्तर पर अभिव्यक्ति है जो साधारण लोगों के लिए है। तो क्या ये सब सम्मिलित नहीं हैं? मैं केवल चौरासी हजार पद्धतियों की धारणा का उपयोग कर रहा हूँ—जो बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा लोगों के लिए छोड़ा गया था और जिसे संसार के लोगों को जानने की संभावना है—एक ऐसे सिद्धांत को जिसे मनुष्य समझ सकते हैं, और ऐसा इसलिए किया गया ताकि लोगों के सही विचारों को जागृत किया जा सके।

प्रश्न : इस फा-सुधार के बाद, क्या ब्रह्मांड में फिर से भटकाव होगा ?

गुरु जी : वे बातें ऐसी नहीं हैं जिनके बारे में आपको पूछना चाहिए या जिसे मानव सोच का उपयोग करके समझ सकते हैं। मैं आपको केवल यह बता सकता हूँ कि इस बार दाफा सब कुछ सही, सामंजस्य और सुधार करने की क्षमता से सुसज्जित है। तो यह कभी भ्रष्ट नहीं होने वाला फा है। (तालियां)

प्रश्न : मुझे अधिकतर लगता है कि मेरा मन रिक्त है और यह नहीं जानता कि अन्य लोग क्या बात कर रहे हैं। यह वास्तव में क्या है ?

गुरु जी : यह वास्तव में एक बहुत अच्छी अवस्था है। कभी-कभी जब हम साधारण लोगों के बीच होते हैं तो हमारा मन बहुत चौकन्ना हो जाता है। जब अन्य लोग आपको थोड़ा भी अपमानित करते हैं या ऐसी बातें कहते हैं जिन्हें आप थोड़ा सा भी पसंद नहीं करते हैं, आप तुरंत सतर्क हो जाते हैं और अपने आप को बचाने के लिए और जवाबी हमले के रूप में उपयोग करने के लिए अपने मन में बातों को ढ़ूंढ़ते हैं। यह पूरी तरह से एक साधक की स्थिति नहीं है। तब इसके बारे में क्या किया जा सकता है? आपके उन विचारों को आपकी साधना के दौरान ठीक करने की आवश्यकता है। उस सुधार अवधि के दौरान, अब आपको स्वयं को बचाने के लिए और दूसरों को चोट पहुंचाने के लिए अपने साधारण विचारों का उपयोग करने की अनुमति नहीं है। इसलिए जब उस विचार का दोबारा उसी तरह से उपयोग किया जाता है, तो आप पाएंगे कि यह अब वहां नहीं है, और आपका मन रिक्त है। तो यह इस तरह से होता है। तो यह साधक के लिए लाभदायक है। यह आपके अच्छे विचारों को सुदृढ़ करना है ताकि आप स्वयं को अच्छी तरह से संभाल सकें। यह साधना में एक अच्छी स्थिति है।

प्रश्न : ब्रह्मांड में कई बार प्रलय हुआ है। उच्च प्राणियों और चेतन प्राणियों के विनाश के बाद क्या होता है? शरीर और आत्मा के पूर्ण विनाश का क्या अर्थ है ?

गुरु जी : आप ब्रह्मांड की किस धारणा के बारे में बात कर रहे हैं? आपका मन सोच भी नहीं सकता है कि ब्रह्मांड वास्तव में कितना बड़ा है, इसलिए आप यह नहीं जान पाएंगे कि आप जिस ब्रह्मांड का उल्लेख कर रहे हैं वह कितना विशाल है। कहने का तात्पर्य यह है कि, आप अपने मन का विस्तार कितना भी कर लो, जिस विशालता की आप कल्पना कर सकते हैं वह अभी भी बहुत सूक्ष्म है। लेकिन चाहे यह कितना भी बड़ा हो, यदि प्रलय ब्रह्मांड के एक निश्चित क्षेत्र में होता है, तो उस स्तर पर सभी जीवों का सर्वनाश हो जाएगा, और कुछ भी नहीं बचेगा। यह स्थिति भ्रष्ट जीवन से अलग है जिनका व्यक्तिगत रूप से सर्वनाश किया जाता है। व्यक्तिगत रूप से सर्वनाश किए गये जीवों को उनके बुरे कर्म के भुगतान के लिए प्रत्येक स्तर पर नष्ट किया जाता है। इसलिए यदि उनकी मृत्यु हो भी जाती है, तो उन्हें अपने बुरे कर्म का भुगतान करना पड़ता है, अपने ऋण का भुगतान करना होता है। लेकिन ब्रह्मांड में विस्फोट ऐसा है कि एक क्षण में, सब कुछ बिखर जाता है, और कुछ भी नहीं बचता है। यह निश्चित रूप से भयावह है। यह अत्यधिक भयावह है।

प्रश्न : मैं यह कैसे सुनिश्चित कर सकता हूँ कि मेरे द्वारा सोचा गया प्रत्येक विचार फा में निहित है, और, साथ ही, चरम पर जाए बिना बीच का विकल्प कैसे अपनाएं ?

गुरु जी : वास्तव में, मैं आपको यह बताना चाहूँगा कि आपको इसे इस तरह नहीं समझना चाहिए। साधना करते हुए जब तक आप अपनी स्वयं की कमियों को पहचानने में सक्षम होते हैं या जब आप दैनिक जीवन में समस्याओं या विपत्तियों का सामना करते हैं, तो आप वास्तव में साधना कर रहे हैं। अपनी स्वयं की कमियों को पहचानने और फिर बाद में बेहतर करने में सक्षम होते हैं—वह साधना है। जहाँ तक यह सुनिश्चित करने की बात है कि आप जो कहते है वह फा के अनुरूप है, और यह सुनिश्चित करने की कि आपके प्रत्येक शब्द और कार्य फा के आदर्शों को पूरा करते हैं, यह सब स्वाभाविक रूप से होते जाएगा जब आप स्वयं में सुधार करते हैं। आपके शब्द और कार्यों में आपके नैतिकगुण का स्तर स्वाभाविक रूप से दिखायी देगा। यदि आप फा-अभ्यास पर ध्यान नहीं देते हैं और इसे जानबूझकर करने का प्रयत्न करते हैं, तो आप इसे प्राप्त नहीं कर पाएंगे।

मैं बस आपको बता रहा हूँ कि जब भी आप कुछ करते हैं, जो कुछ भी आप सोचते हैं या करते हैं, आपको स्वयं की साधना करनी चाहिए और जब संघर्ष पैदा होता है या जब आप स्वयं में कमियाँ देखते हैं तो बेहतर करना चाहिए । यही मैं आपसे करने के लिए कहता हूँ, और यह दाफा साधकों के लिए सबसे मौलिक साधना मार्ग है। कार्य करना साधना नहीं है, फिर भी साधारण लोगों के बीच जो कुछ भी प्रदर्शित होता है वह साधक के मन का प्रतिबिंब है—किसी की साधना के आचरण को उसके काम में देखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में, आपका जीवन साधना नहीं है, फिर भी आपकी साधना की स्थिति आपके शब्दों, कार्यों और आप कैसे रहते हैं, में दिखायी देगी। जहां तक बीच का विकल्प लेने की बात है, जो मैंने फा सिद्धांतों में सिखाया वही मुझे आपसे विशेष परिस्थितियों में चाहिए। उदाहरण के लिए, जब हम कहते हैं कि ऐसा करना अच्छी बात नहीं है क्योंकि यह दाफा को हानि पहुँचाता है, तो कुछ लोग तुरंत दूसरे चरम पर चले जाते हैं। जब आप उन्हें बताते हैं कि यह भी सही नहीं है, तो वे फिर दूसरे चरम पर चले जाते हैं। मैं उसी स्थिति की बात कर रहा था।

प्रश्न : कभी-कभी मैंने स्वयंसेवकों को कुछ सुझाव दिये, लेकिन उन्होंने सभी प्रकार के बहाने बनाते हुए उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया।

गुरु जी : इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला यह है कि वह सोचता है कि वह सही है। दूसरा यह है कि वह उन बातों से अवरुद्ध हो रहा है जिनसे उसका मोहभाव है। लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि वह सिर्फ इसलिए अच्छा नहीं है। यह संभावना है कि उसने कई मोहभावों को हटा दिया हो, केवल यह है कि वह अभी भी साधना कर रहा है और अभी भी उसमें साधारण लोगों के मोहभाव बचे हुए हैं, इसलिए उसके मोहभाव और साधारण मानवीय अवधारणाएँ होंगी। यही कारण है कि जब वह कुछ करता है, चाहे वह दाफा का कार्य ही क्यों न हो, तो वह मानवीय मोहभाव प्रदर्शित कर सकता है—ऐसा ही होता है। इसलिए मैंने कहा है कि दाफा के लिए उनका काम भी साधना है, और उन्हें अपनी साधना के साथ अपने दाफा कार्य को करने की आवश्यकता है, क्योंकि वे अभी भी साधना कर रहे हैं। दूसरी ओर, आपको कोई अवधारणाएँ नहीं बनानी चाहिए। जो कुछ भी कोई करता है, वह तब तक अच्छे से किया जा सकता है जब तक वह दाफा के हित में है। इसके अतिरिक्त, आपको यह देखने की आवश्यकता है कि क्या आपका कोई मोहभाव है या नहीं। जब आपका सुझाव स्वीकार नहीं किया गया था, तो क्या आपने पहले दूसरों के साथ मतभेदों के बारे में सोचा था या आपने पहले स्वयं के भीतर देखा था?

प्रश्न : हाँग यिन में दिये गये तीन धर्म क्या है ?

गुरु जी : चीन में, यह साधारणतः कन्फ्यूशियसवाद, बुद्धमत और ताओवाद को संदर्भित करता है। यह मुख्य रूप से चीन के वातावरण को संदर्भित करता है।

प्रश्न : यदि सभी शिष्यों को फलपदवी प्राप्त होगी, और वे फालुन भी साथ लायेंगे, तो हमें फालुन के साथ वाले अलग-अलग बुद्धों और दिव्यों के ब्रह्मांड में फैले हुए लोकों के बारे में कैसे समझना चाहिए?

गुरु जी : मैंने इस प्रश्न पर बहुत पहले बात की थी। यह केवल इतना है कि इस शिष्य ने इसके बारे में पढ़ा या सुना नहीं है। बहुत सारे लोग फालुन दिव्य लोक में जाने के लिए नहीं हैं। मैंने जो फालुन आपको दिया है, वह केवल आपकी सभी मूल वस्तुओं को आत्मसात करने के लिए है जो ब्रह्मांड में सबसे अच्छी हैं। फा-सुधार के बाद आप जहां से आए थे, वहीं वापस जाएंगे, और आप जो भी थे, उस पर वापस लौट जाएंगे—चाहे आप बुद्ध, ताओ या दिव्य हों। फालुन दिव्य लोक में जाने वालों की संख्या बहुत कम है। मैंने जो कुछ भी किया है वह आपको ब्रह्मांड के फा के साथ आत्मसात करने के लिए है।

प्रश्न : धर्म सोचते हैं कि वे सही हैं, लेकिन इसका कोई साक्ष्य नहीं है। फालुन गोंग के पास भी यह प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य नहीं हैं कि आप सही हैं या नहीं, तब भी आप लोगों को अपने शिक्षाओं पर विश्वास करने के लिए कहते हैं, दूसरों के बारे में नहीं।

गुरु जी : यह सच नहीं है। हालाँकि आप मेरे शिष्य नहीं हैं, लेकिन मैं आपके इस तरह का प्रश्न पूछने के विरुद्ध नहीं हूँ। क्योंकि सभी के अलग-अलग विचार होते हैं जब वे फा को नहीं समझते हैं। वास्तव में, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि लोगों को मुझ पर विश्वास करना चाहिए। मैंने लोगों को जो सिखाया है वे फा के सिद्धांत हैं और सामान्य सिद्धांत हैं। जब आप आज बाहर जाएंगे, तो आप जो चाहें कर सकते हैं, और कोई भी आपको नहीं रोकेगा। ऐसा नहीं है कि मैं इसे सीखने के लिए किसी को विवश कर रहा हूँ। मैं बस लोगों को सच्ची साधना का वास्तविक चित्र बता रहा हूँ। जहां तक कौन किस पद्धति में साधना करना चाहता है कि बात है, यह उस व्यक्ति की अपनी सोच है। मुझे इस बात की चिंता है कि आपने इस फा के सिद्धांतों पर ध्यान भी नहीं दिया है; इस तरह का अवसर हजारों या लाखों वर्षों में भी आना कठिन है। अतीत में किसी ने नहीं सिखाया [जो मैंने आपको बताया है]; दिव्य रहस्यों को पहले मनुष्यों को बताने की अनुमति नहीं थी। इसलिए मैं केवल लोगों को इसके बारे में बताता हूँ। आप जिसकी भी साधना करना चाहते हैं वह आपका अपना काम है। साथ ही, मैंने लोगों को बताया है कि कोई भी दिव्य अब किसी भी धर्म की देखभाल नहीं कर रहा है। अतीत में जब कोई व्यक्ति अपराध स्वीकार करता था, तो वह वास्तव में अनुभव कर सकता था कि दिव्य उसे सुन रहे हैं, और कुछ लोगों के मन में समाधान भी दे जाते थे। अब ऐसा कोई नहीं है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि जिसने भी प्रश्न पूछा है वह पुस्तक पढ़ेगा और यह समझने का प्रयत्न करेगा कि यह किस बारे में है। हम सभी मनुष्यों के विचार होते हैं, और आप सभी विद्वान हैं। पुस्तक पढ़ने के बाद आपको पता चल जाएगा कि यह सही है या गलत।

प्रश्न : क्या मुझे अभ्यास सिखाने में सहायता करनी चाहिए, या मुझे अपने स्वयं के फा अध्ययन और अभ्यास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए? या मुझे दोनों करने चाहिए ?

गुरु जी : आपका सुधार और आपकी साधना सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं। निश्चित ही, यदि आपके पास समय है, तो आप दूसरों को फा को प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं—यह एक बहुत ही अद्भुत बात है। लोगों को यह नहीं समझ रहा है कि वर्तमान में मानवजाति कितने भयानक चरण में पहुंच गयी है। मैं कहूँगा कि दूसरों को इस बारे में बताना और उन्हें अच्छा मनुष्य बनने में सहायता करना बुरी बात नहीं है; यहां तक कि यदि वे साधना नहीं भी करते हैं, तो वे विनाश होने के कगार तक नहीं पहुँचेंगे। वास्तव में, यह अच्छा होगा यदि वे साधना कर सकते हैं, क्योंकि यह एक मानव होने का अंतिम उद्देश्य है।

प्रश्न : क्या यह सही नहीं है कि जितना सरल और शुद्ध मन होता है, उतना ही सरल इस आवरण को तोड़ना है ? और ब्रह्मांड की प्रकृति से जो जितना दूर है, मानव आवरण को तोड़ना उतना ही कठिन है ?

गुरु जी : यह सही है। मैंने पाया है कि बहुत से कॉकेशियन बहुत शुद्ध हैं, विशेषकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग। वे वास्तव में शुद्ध और सरल होते हैं। उनकी यह या वह अवधारणा नहीं होती है। या होती भी हैं, होती भी हैं तो वे बहुत कम होती हैं, और इसलिए फा प्राप्त करने के लिए उनकी बाधाएं भी छोटी होती हैं। यही कारण है कि कई कॉकेशियन का दिव्य नेत्र साधना शुरू करते ही खुल जाता है।

प्रश्न : कभी-कभी मुझे वास्तव में यह नहीं पता होता है कि इस मानव संसार में रहने का क्या अर्थ है।

गुरु जी : आपको इस मानव संसार में अपनी साधना को संजोने की आवश्यकता है और फा के सिद्धांतों को समझने में निरंतर और लगन से प्रगति करनी है। यह तथ्य कि साधारण समाज में कुछ भी साधकों के लिए आकर्षक नहीं है ऐसा इसलिए है क्योंकि एक साधक का स्तर साधारण व्यक्ति की तुलना में उच्च होता है। आपको लग सकता है कि आप इस मानव स्थान पर नहीं रहना चाहते हैं और सोचते हैं कि यह अर्थहीन है—ऐसा हो सकता है। यदि आपको यह पता चलता है कि यह समय साधना के लिए और वापस जाने के लिए एक अनमोल अवसर है, और दाफा साधना को ज्यादा महत्व देते हैं, तब आपको ऐसा अनुभव नहीं होगा।

बस इतने ही प्रश्नों का उत्तर मैं दूँगा। मूल रूप से सम्मेलन डेढ़ दिन तक चलने वाला था। उन्होंने दोपहर में कुछ समय और जोड़ा ताकि मैं आपके लिए कुछ और प्रश्नों के उत्तर दे सकूँ। मुझे लगता है कि सम्मेलन पूरी तरह से बहुत सफल रहा। इस सम्मेलन के माध्यम से आप सभी ने निश्चित रूप से विभिन्न विषयों में सुधार किया होगा, और यह सम्मेलन आपको और अधिक परिश्रम करने तथा और बेहतर करने के लिए गतिशील कर पायेगा। इस फा सम्मेलन का यही उद्देश्य है—सभी को सुधार करने में सहायता करना हमारे इस सम्मेलन का सही उद्देश्य है। अन्यथा यह केवल एक औपचारिकता होती। हम निश्चित रूप से स्वयं को औपचारिकताओं में नहीं पड़ने देंगे। कोई भी औपचारिकता किसी व्यक्ति को साधना करने या मन को सुधारने में सक्षम नहीं कर सकती है।

एक दूसरे के साथ फा अभ्यास करने के माध्यम से, आप सभी अपनी कमियों का पता लगा सकते हैं और देख सकते हैं कि दूसरे आपकी तुलना में कैसे साधना कर रहे हैं। मेरी यही आशा है कि आप इस गति के साथ अधिक परिश्रमी होंगे और फलपदवी को अधिक तेजी से प्राप्त करेंगे।

क्योंकि यहाँ मेरे द्वारा दिये गये सभी प्रश्नों के उत्तर विभिन्न स्तरों की साधना से संबंधित हैं, वे एक साधारण व्यक्ति के सुनने के लिए बहुत उच्च हैं। वास्तव में, आपकी समझ सीमित भी है। कुछ ऐसी बातें भी हैं जिन्हें आप पूरी तरह से स्वीकार नहीं भी कर सकते हैं। लेकिन कोई भी बात हो, तथ्य यह है कि इस सम्मेलन में जो भी आए हैं वह एक पूर्वनिर्धारित संबंध के कारण हो सकता है। पुस्तक को एक बार देखने से आपको कोई कष्ट नहीं होगा। यदि आप इसे बिना किसी अवधारणा के पढ़ते हैं, तो आप बहुत सारी बातों को देख और समझ पाएंगे। इतने सारे लोग साधना क्यों कर रहे हैं? केवल इसी बात के आधार पर आपको एक बार देखना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि वास्तविक कारण क्या है। लोगों के पास ज्ञान और तर्क करने की क्षमता है। आज के लोग जानकार भी बहुत हैं। आप इसे देख सकते हैं और इसका विश्लेषण कर सकते हैं, और यह पता लगा सकते हैं कि यह अच्छा है या बुरा, सही है या गलत। किसी ने भी यहां आने वाले किसी भी साधकों को सीखने के लिए निर्देशित या विवश नहीं किया है। वे सभी स्वेच्छा से साधना करते हैं और दाफा में सही अर्थों में साधना करते हैं। यही कारण है कि आज हमारा फा सम्मेलन हो पाया है। मुझे लगता है कि यह फा सम्मेलन बहुत सफल रहा और मुझे आशा है कि आपके वापस जाने के बाद आप अधिक परिश्रमी होंगे। आप सभी का धन्यवाद! (तालियां)




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