कनाडा के सम्मेलन में दी गयी फा की सीख
 

ली होंगज़ी
23 मई, 1999 ~ टोरंटो, कॅनेडा

सभी का अभिवादन! हो सकता है कि भोजन अवकाश थोड़ा छोटा रहा हो। आपमें से कुछ लोगों ने अभी-अभी दोपहर का भोजन समाप्त किया होगा, और कुछ अभी तक सम्मेलन कक्ष में नहीं लौटे हैं। मैंने सुना है कि कुछ छात्र शाम 4 बजे के बाद जाने वाले थे, इसलिए हमने सम्मेलन थोड़ा पहले ही पुनः आरंभ कर दिया।

ऐसा लगता है मानो हमने एक प्रथा बना ली है कि प्रत्येक सम्मेलन के समापन से पहले गुरूजी से प्रश्नों के उत्तर देने को कहा जायेगा। आज मैं आप सभी को याद दिला रहा हूं कि अक्सर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में इस तरह के सम्मेलन होते रहते हैं, फिर भी उनमें से हर एक में सम्मिलित होना मेरे लिए संभव नहीं है। यह मैं आपको पहले से बता रहा हूं। कभी-कभी आप मुझे आमंत्रित करते हैं, लेकिन हो सकता है मैं सम्मिलित न हो सकूं। क्योंकि फा पहले से ही सभी को सिखाया जा चुका है, वास्तव में जब तक आप साधना का अभ्यास करते हैं, आप उन सभी प्रश्नों के उत्तर जान लेंगे जिनका मैं उत्तर देता हूँ। अक्सर अधिकांश प्रश्न या तो नए छात्रों द्वारा उठाए जाते हैं या उन लोगों द्वारा उठाए जाते हैं जो समस्याओं से गुजरते हुए एक स्तर पर "अटक गए" होते हैं। मेरे विचार में, जब तक आप साधना के लिए ठोस प्रयास करते हैं, किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है और आप अंततः उन सभी चीजों को समझ जाएंगे जिन्हें आप कुछ समय तक नहीं समझ पाए थे। आज हम यहां जो अनुभव-साझाकरण सम्मेलन कर रहे हैं, वह शिष्यों द्वारा शुरू और आयोजित किया गया था क्योंकि साधना एक ऐसी चीज है जिसे आप स्वयं करते हैं—मैंने कभी भी कोई प्रारूप नहीं बनाये हैं। विशेषकर क्योंकि बहुत से शिष्य मुझसे मिल नहीं पाते हैं और मुझे आपके प्रति उत्तरदायी होना पड़ता है, मैं आप सभी से कह रहा हूँ कि आपको फा को ही गुरु मानना चाहिए। यदि आप पुस्तक अधिक पढ़ेंगे और फा का अधिक अध्ययन करेंगे तो कोई भी समस्या हल हो सकती है। (तालियाँ) हालाँकि, क्योंकि मैं आज यहाँ हूँ, इसलिए मैं आपके प्रश्नों के उत्तर दूँगा।

पहले मुझे एक अनुरोध करने दें। आप में से कुछ नए शिष्य हैं जो पहली बार अनुभव-साझाकरण सम्मेलन में भाग ले रहे हैं, इसलिए आपके कई प्रश्न हो सकते हैं। वास्तव में, आपके सभी प्रश्नों के उत्तर पुस्तकों में लिखे हुए हैं। शिष्यों के लिए एक सम्मेलन आयोजित करना और शिष्यों का मुझसे सम्मेलन में मिलने का आयोजन करना सरल नहीं है। इसके अतिरिक्त, समय सीमित है। आप [नए शिष्यों] के द्वारा किये गए प्रश्न निश्चित रूप से प्रारंभिक स्तर के होंगे। कुछ प्रश्न इस तथ्य के कारण हो सकते हैं कि आपने अभी तक फालुन दाफा को बिल्कुल भी नहीं समझा है। यदि आप पुस्तकें पढ़ेंगे तो आपके प्रश्नों के उत्तर मिल जाएंगे। क्योंकि समय बहुमूल्य है, मैं केवल उन्हीं समस्याओं पर चर्चा करूँगा जिनका आपने साधना में सामना किया है। इसके अतिरिक्त, आप में से कुछ लोग साधारण मानव समाज पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं और हो सकता है कि इसके बारे में या किसी और चीज के बारे में प्रश्न करना चाहते हैं। मुझे नहीं लगता कि आपको इन्हें पूछना चाहिए क्योंकि मैं साधारण मानव समाज की समस्याओं को बिलकुल भी संबोधित नहीं करता। आपने स्पष्ट रूप से देखा है कि वर्तमान में मैं केवल साधकों के प्रति उत्तरदायी हूँ। मैं साधना के अतिरिक्त किसी अन्य चीज में सम्मिलित नहीं हूँ और मैं साधना से असंबंधित प्रश्नों के उत्तर नहीं दूँगा। ठीक है, तो फिर, मैं आपके प्रश्नों के उत्तर देना शुरू करता हूँ।

शिष्य: एक शिष्य लंबे समय से कष्टों से गुजर रहा है और अभी भी उनसे उबर नहीं पा रहा है। क्या हमें उसे यह बताना चाहिए या हमें उसको स्वयं फा का अध्ययन करके इसे समझने देना चाहिए?

गुरुजी: क्योंकि आपको वह कारण दिख गया है जिसने उसे आगे बढ़ने से रोका हुआ है, तो आप उसे इसके बारे में क्यों नहीं बताते? यदि आप उसे दयालुतापूर्वक बताएं तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको उसके आपसे नाराज होने का थोड़ा भय है? फिर भी, क्या उस व्यक्ति का बुरा व्यवहार आपके लिए स्वयं की साधना करने का एक उचित अवसर नहीं होगा? चाहे उसे आपकी बात समझ में न भी आयी हो—क्या एक साधारण व्यक्ति की इस भावुकता (चिंग) को छोड़ नहीं देना चाहिए? यदि आपको कोई समस्या दिखे तो आपको उसे बताना चाहिए। कुछ लोग एक निश्चित स्तर पर अटके रहने के बाद आगे नहीं बढ़ पाते हैं। जितना अधिक वह उस स्तर पर रुकता है, उतना ही कम वह पुस्तक पढ़ता है, और उतना ही अधिक वह परिश्रमपूर्वक ऊपर की ओर बढ़ना भूल जाता है। फिर यह परीक्षण या कष्ट जितना बड़ा होता जाता है, उतनी ही अधिक संभावना होती है कि वह इस हद तक डगमगा जाएगा कि अंततः वह आगे और साधना नहीं कर पाएगा। इस प्रकार की समस्या प्रारंभ से अंत तक सदैव बनी रहेगी। साधना एक बहुत गंभीर विषय है। इसमें थोड़ी सी भी लापरवाही नहीं की जा सकती। जब तक आप किसी स्तर के मानकों को पूरा नहीं करते तब तक आप उस स्तर पर नहीं पहुँच सकते। एक औसत, साधारण व्यक्ति के रूप में आप फलपदवी तक पहुंचना चाहते हैं और एक महान ज्ञानप्राप्त व्यक्ति के समान पवित्र होना चाहते हैं, लेकिन यह कैसे संभव हो सकता है यदि आपको इस विषय की स्पष्ट समझ नहीं होती है और आप इसके महत्व को समझ भी नहीं पाते हैं?

शिष्य: होंग यिन पुस्तक में अनेक सुंदर चित्र हैं। ज़ुआन फालुन के अनुसार बुद्ध के शरीर को घेरे हुए वृत्त उस बुद्ध के स्तर को दर्शाता है। तो फिर बुद्ध के सिर को घेरे हुए वृत्त क्या दर्शाता है? बुद्ध के सिर और शरीर को घेरे हुए एक से अधिक वृत्त क्यों होते हैं?

गुरुजी: आपने मंदिरों में या प्राचीन भित्तिचित्रों पर जो बुद्ध चित्र देखे हैं, वे अधिकतर साधारण लोगों की कृतियाँ हैं। फिर भी, कुछ छवियां वास्तविकता के बहुत पास हैं, और वे लगभग एक बुद्ध या एक देवता की छवि को चित्रित करती हैं। ऐसा क्यों है? आप सभी जानते हैं कि आधुनिक समाज में अधिकांश लोगों को आधुनिक विचारधारा द्वारा ढाला गया है, और वे ऐसी किसी भी चीज पर विश्वास नहीं करते हैं जिसका विज्ञान द्वारा पता नहीं लगाया गया है। इस प्रकार, उन्होंने स्वयं को एक सीलबंद स्थिति में फँसा लिया है, इसलिए उनके उन वास्तविक स्थितियों को देखने की संभावना कम से कम होती जा रही है जिन्हें विज्ञान खोज नहीं पाया है। फिर भी वे अलौकिक घटनाएँ बहुत अच्छी तरह से स्वयं को प्रकट कर सकती हैं। जब भी वे प्रकट होती हैं या जनता को दिखायी जाती हैं, तो अक्सर उन्हें अज्ञात घटना या प्राकृतिक घटना, या अवर्णनीय माना जाता है, और बात यहीं समाप्त हो जाती है। वे उन्हें संबोधित करने का साहस नहीं करते, उनको समझने की तो बात ही नहीं है। यदि कोई उन पर ध्यान दे, तो जो स्वयं को स्थापित विज्ञान का भाग मानते हैं वे खड़े हो जाएंगे और इसका विरोध करेंगे, जिससे लोग इस पर विश्वास करने के लिए और अधिक अनिच्छुक हो जाते हैं।

जैसा कि आप जानते हैं, चाहे वह कैथोलिक धर्म हो, ईसाई धर्म हो, या बौद्ध धर्म हो, उसके उत्थान पर समाज का लगभग हर सदस्य इसमें विश्वास करता था। जब हर कोई देवताओं के अस्तित्व में विश्वास करता था, तो इसका एक परिणाम यह हुआ कि नास्तिकता की मानसिकता पर काबू पा लिया गया, और मनुष्यों के लिए ब्रह्मांड का वास्तविक अस्तित्व और देवताओं की छवियों को देखना सरल हो गया। यह ब्रह्माण्ड का एक सिद्धांत है: विश्वास देखने से पहले आता है। आप जितना अधिक अविश्वास करेंगे, यह आपको उतना ही कम देखने देगा। यह वास्तव में आपके अपने अपवित्र मन के कारण होता है। कुछ बहुत पुराने चर्चों में, और विशेष रूप से पेरिस के महलों में, मैंने उत्तम दिव्यलोकों और दिव्य प्राणियों की छवियों के साथ कुछ चित्र देखे, जो वास्तव में वास्तविकता के बहुत पास, वास्तविक चीज के समान दिख रहे थे। पुराने चीनी मंदिरों में बुद्ध की छवियों के चित्रों के साथ भी ऐसा ही है। [आप सोच रहे होंगे,] "मनुष्य ऐसा कुछ कैसे चित्रित कर सकते हैं? मनुष्य कैसे जान सकते हैं कि बुद्ध ऐसे दिखते थे?” उस युग में जब हर कोई दिव्य प्राणियों में विश्वास करता था, बहुत से लोग उन्हें देख पाते थे। जो लोग देख सकते थे वे कलाकार और अन्य विभिन्न व्यवसाय करने वाले लोग थे।

आज यहां बैठे दाफा अभ्यासियों में चित्रकार, मूर्तिकार और विभिन्न विशिष्टताओं वाले लोग हैं। जैसे ही एक कलाकार क्षण भर के लिए एक छवि देखता है, वह जो देखता है उसे चित्रित कर सकता है। धर्मों के उत्थान के दौरान, कई समर्पित धार्मिक अनुयायी थे जो कलाकार भी थे, इसलिए वे इस प्रकार की छवियों को चित्रित करने में सक्षम थे। जहाँ तक सुदूर पूर्व में पाए गए बुद्ध के चित्रों की बात है, तो लोगों को कैसे पता चला कि बुद्ध ऐसे दिखते हैं? वे कैसे जान सकते थे कि बुद्ध पीला कसाया पहनते हैं और उनके बाल नीले हैं? इसका उत्तर यह है कि कुछ लोग उन्हें देख पा रहे थे। जब तक आप उस स्तर तक नहीं पहुंच जाते, आपको सच्ची छवियां नहीं दिखायी जाएंगी। लोगों ने जो छवियाँ देखीं वे सामान्यतः वही थीं जो वे अपने स्वयं के स्तर से देख पाते थे। उदाहरण के लिए, मान लीजिए, एक व्यक्ति ने स्वर्गिक दिव्यलोकों एवं देवताओं को देखा। और एक अन्य व्यक्ति ने देवताओं एवं उत्तम दिव्यलोकों को देखा। फिर भी जो छवियाँ उन्होंने देखीं, वे संभवतः एक जैसी नहीं होंगी। कहने का तात्पर्य यह है कि आपमें से कोई भी समान स्तर पर नहीं है। यहां बैठे आपमें से कोई भी एक ही मानसिक स्तर पर नहीं है। ब्रह्माण्ड का सत्य बहुत जटिल है। कणों के विभिन्न आकारों के परिणामस्वरूप विभिन्न आयाम होते हैं; एक छोटा सा अंतर इसे किसी और स्तर का कण बना देता है। विभिन्न आयामों और स्तरों के बीच विभाजन रेखाएँ भी बहुत जटिल हैं; एक छोटी सी प्रगति भी इसे एक अन्य उच्च स्तर पर ले जाएगी। इसलिए जब आप बुद्ध के स्तर तक पहुंचने से पहले किसी बुद्ध को देखते हैं, तो वे आपके सामने जो प्रकट करते हैं वे केवल वही छवियां होती हैं जिन्हें आप अपने स्तर पर देख सकते हैं।

बुद्ध के शरीर के पीछे के प्रभामंडल का क्या अर्थ है? वास्तव में, एक बुद्ध के शरीर को घेरे हुए एक विशाल शक्ति क्षेत्र होता है। जब मैंने दिव्य मार्ग को उचित स्थान पर रखने (शुआनगुआन शेवेई) के बारे में बात की, तो मैंने इसकी उत्पत्ति और विकास के बारे में बताया। शुरुआत में यह एक दिव्य मार्ग का रूप लेता है। बाद में, अपनी स्थिति में लौटने पर, दिव्य मार्ग धीरे-धीरे मानव शरीर के अंदर अपना विस्तार करता है और अविनाशवान वज्र शरीर के विकास के साथ-साथ बढ़ता है। अंत में, जब वह बुद्ध-शरीर—अर्थात् दिव्य शरीर जिसे उन्होंने विकसित किया है—उनके भौतिक शरीर जितना बड़ा हो जाता है, तो दिव्य मार्ग उनके शरीर के बाहर फैल जाएगा। साथ ही, यह उनके शरीर से थोड़े बड़े क्षेत्र में फैला होता है। मैं इसे बुद्ध का दिव्यलोक कहता हूं, उनका अपना दिव्यलोक, जो बहुत समृद्ध है, हर चीज से भरा हुआ है, और वह जो कुछ भी चाहते हैं उसे प्रदान करने में सक्षम है। फिर इसके बारे में सोचें, सभी : यदि उन्हें वह सब कुछ मिलता है जो वे चाहते हैं, तो जो दृश्य वह प्रकट करते हैं वे भव्य, राजसी, शानदार और वर्णन से परे होने चाहिए। उनके पास सूक्ष्म जगत से लेकर स्थूल जगत तक सब कुछ है। इसलिए जब आप उन्हें देखते हैं तो छवियां हमेशा बहुत प्रतापी, चमकदार और सुंदर दिखती हैं। आपमें से कुछ लोगों ने बुद्ध की मूर्ति के पीछे नाव जैसी किसी चीज का चित्रांकन देखा होगा (इस प्रकार की छवि खड़े हुए बुद्ध की मूर्ति के पीछे दिखाई जाती है)। वास्तव में आपने जो देखा है वह बुद्ध के स्तर की छवि है। लेकिन यदि आप तथागत के स्तर तक नहीं पहुंचते हैं, तो आप बुद्ध की सच्ची छवि को पूरी तरह से नहीं देख सकते हैं। आप केवल उतना ही देख सकते हैं।

इस क्षेत्र के अस्तित्व का वास्तविक स्वरूप मनुष्य कूंची से नहीं बना सकते, क्योंकि मनुष्य के पास ऐसे रंग नहीं हैं। इस संसार में सभी रंग आणविक कणों से बने हैं। इस मानवीय आयाम की हर चीज आणविक कणों से बनी है, और इसी तरह इस संसार के रंगद्रव्यों के रंग भी। लेकिन बुद्ध के आयामों के रंगद्रव्यों के रंग अधिक सूक्ष्म कणों से बने हैं। उन रंगों के बिना उन्हें चित्रित करना असंभव है। मनुष्य जब यह देखते हैं तो सोचते हैं वाह, यह तो अद्भुत है! यह दृश्य कितना अद्भुत है!” वे साधारणतः ऐसा ही अनुभव करते हैं। तो फिर बुद्ध के सिर को घेरे हुए प्रभामंडल क्या दर्शाते हैं? यह वास्तव में बुद्ध या देवता के विवेक का प्रतीक है; यह उनके मन के विवेक से उत्सर्जित होता है। मैं जिस मन के बारे में बात कर रहा हूं वह उस मस्तिष्क से बिल्कुल अलग अवधारणा है जिसके बारे में मनुष्य बात करते हैं, क्योंकि जिस मन के बारे में मैं बात कर रहा हूं वह आपके सच्चे स्वरूप का मन है। यह आपके विचारों और उद्देश्यों का वास्तविक स्रोत है। दूसरी ओर, मानव मस्तिष्क, इस मानवीय स्तर पर आपके संपूर्ण अस्तित्व के भौतिक भाग से अधिक और कुछ नहीं है। यह सबसे उथला है और मानव मन से बिल्कुल अलग है। फिर भी जब कोई व्यक्ति कुछ व्यक्त कर रहा होता है, तो उसके विचार उसके मानव मस्तिष्क के माध्यम से प्रसारित होते हैं। निःसंदेह बुद्ध की अभिव्यक्ति के कई अन्य रूप भी हैं; वे काफी संख्या में हैं।

शिष्य:अन्य शिष्यों के मोहभावों को देखकर मैं अक्सर सोचता हूं कि कुछ समय बाद उन्हें इसका अनुभव होगा और वे स्वयं ही इन्हें सुधार लेंगे। फिर भी यदि यही स्थिति बनी रहती है, तो क्या यह सामूहिक रूप से अभ्यासियों के सुधार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है?

गुरुजी: इसका अन्य लोगों की साधना पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। यह केवल उनकी निजी स्थिति है। लेकिन मैं आपको एक उदाहरण देता हूं : जब गुरु को किसी व्यक्ति के मोहभाव दिखायी देते हैं, तो वे जानबूझकर उन्हें आपके सामने उजागर करते हैं और आपको उन्हें देखने देते हैं जिससे आप उनके बारे में उस व्यक्ति को बता सकें। तो क्या आप उसे उनके बारे में बताएंगे? क्योंकि आप में से हर कोई सत्य, करुणा, सहनशीलता की साधना कर रहा है, आपको हर परिस्थिति में एक अच्छा मनुष्य बनना चाहिए। यदि आप उसकी कमियाँ देखते हैं और देखते हैं कि वह ऊपर की ओर नहीं बढ़ पा रहा है, तो क्यों न उसे दयालुतापूर्वक बताएं? निश्चित ही, साधना के विभिन्न स्तरों की भिन्न-भिन्न स्थितियां होती हैं। सभी शिष्यों की भिन्न-भिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न अभिव्यक्तियाँ होंगी। प्रत्येक विशिष्ट स्थिति को वैसे ही संभालें जैसे आप उचित समझें।

शिष्य: मैं बहुत सपने देखता हूं, लेकिन कभी-कभी मैं यह निर्धारित नहीं कर पाता कि मेरे सपने गुरूजी के संकेत हैं, पिछले जन्मों की घटनाएं हैं, भविष्य की घटनाएं हैं, या अन्य आयामों के दृश्य हैं।

गुरुजी: जहाँ तक सपनों की बात है, मैंने उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है। पहले कोई भी स्पष्ट रूप से यह नहीं बता पाता था कि सपने क्या होते हैं, इसलिए मैंने इस विषय को आपको समझाने का विशेष प्रयास किया। एक मनुष्य में विभिन्न आत्माएँ होती हैं, और स्वयं उसके अस्तित्व में भी विभिन्न रूपों की विभिन्न जीवन सत्ताएं होती हैं। यह अत्यधिक जटिल है, इसलिए कोई इसके बारे में बात नहीं करता। लेकिन जब निम्नलिखित स्थिति होती है तो यह एक सपना नहीं है: जब आपके हाड़मांस के शरीर की सतही चेतना बेसुध होती है, आराम करती है, या ध्यान में शांति की स्थिति में होती है, तो आप दूसरे आयाम से एक दृश्य देखते हैं, या आप वास्तव में दूसरे आयाम के जीवों के संपर्क में होते हैं। यह अनुभव अत्यंत वास्तविक है. यह कोई सपना नहीं, बल्कि एक वास्तविक अनुभव है। आपके मन में विचार-कर्म या आपकी विभिन्न धारणाएँ भी सोते समय आपके मन में विभिन्न चीजों को प्रतिबिंबित कर सकती हैं। यह आपकी मुख्य चेतना (जू यिशी) से उत्पन्न नहीं हुआ है, इसलिए इससे निपटने की कोई आवश्यकता नहीं है।

शिष्य: बिना शिक्षा प्राप्त कोई व्यक्ति फालुन दाफा को पूरी तरह से कैसे समझ सकता है? क्या वह फलपदवी तक साधना कर सकता है?

गुरुजी: बिना कोई शिक्षा प्राप्त किये लोग भी निश्चित रूप से दाफा को समझ सकते हैं। चीन में इसके अनेक उदाहरण हैं। कई वृद्ध चीनियों ने अपने बचपन के दौरान बहुत बुरी जीवन परिस्थितियों का अनुभव किया था। वे स्कूली शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकते थे, इसलिए बहुत से लोग अशिक्षित हैं। मैंने पाया कि ये लोग साधना की प्रक्रिया के दौरान बिल्कुल भी पीछे नहीं रहे हैं, और उन्होंने बहुत अच्छी तरह से साधना भी की है। विशेष रूप से साधना के दौरान, जब वे दाफा पुस्तकें पढ़ते हैं तो उनके पवित्र मन अद्भुत चीजें कर सकते हैं। फा में उनका दृढ़ विश्वास दाफा में निहित बुद्धों, ताओ और देवताओं की प्रशंसा भी प्राप्त करता है। इस तरह के कई चमत्कार हुए हैं।

मान लीजिए, उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति है जो पढ़ नहीं सकता, और फिर भी वह देखता है कि अन्य सभी अभ्यासी आगे बढ़ रहे हैं, पुस्तकें पढ़ रहे हैं, या फा भी याद कर रहे हैं। वह सोचता है, “मैं एक शब्द भी नहीं पढ़ सकता। मैं क्या कर करूँ?" वह बहुत चिंतित होता है। उसके पवित्र विचार वास्तव में उसके सच्चे मन से उत्पन्न हुए हैं। इस स्थिति में बहुत से लोग बहुत परिश्रम से अध्ययन करते हैं और पाते हैं कि वे धीरे-धीरे पढ़ने में सक्षम हो रहे हैं। इसके कई उदाहरण सामने आए हैं। एक शिष्य जो पढ़ नहीं पाता था, बहुत चिंतित था। उसने बार-बार सोचा, "मुझे क्या करना चाहिए?" वह पुस्तक के ऊपर सिर रखकर सो गया। आधी नींद में और आधा जागते हुए उसने पाया कि पुस्तक के सभी शब्द सुनहरे हो गए और प्रत्येक शब्द उड़कर उसके मस्तिष्क में चला गया। जागने के बाद, वह पूरी पुस्तक पढ़ पा रहा था, और जबकि उसने कभी स्कूली शिक्षा नहीं ली थी। एक व्यक्ति जो अपना नाम भी लिखना नहीं जानता था, अब जुआन फालुन का हर शब्द पढ़ सकता है। यह घटना बहुत बार हुई है, फिर भी इसे इच्छा प्रयास के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता है। आप ऐसा नहीं सोच सकते कि जब इस प्रकार की बात हो चुकी है तो आप भी ऐसा करने का प्रयास कर सकते हैं। तब आप ऐसा इच्छा या मोहभाव से करेंगे। उसके संदर्भ में, वह कुछ भी प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच रहा था। वह वास्तव में फा प्राप्त न कर पाने को लेकर चिंतित था। उसका ध्येय अलग था। इसीलिए मैंने कहा कि जब आप सच्चे और पवित्र मन से फा का अध्ययन करते हैं, तो आपका दृढ़ संकल्प उल्लेखनीय होता है। यहां तक कि देवता भी सोचेंगे कि आपका दृढ़ संकल्प वास्तव में उल्लेखनीय है, और इस प्रकार चमत्कार हो सकते हैं।

निश्चित ही, ज़ुआन फालुन के अंग्रेजी संस्करण का प्रभाव [चीनी संस्करण के समान] है। और यह न केवल अंग्रेजी अनुवाद के बारे में सच है; यही बात अन्य भाषाओं के सभी संस्करणों पर भी लागू होती है। यह केवल इतना है कि इस फा को अन्य देशों में अधिक व्यापक रूप से मान्यता नहीं मिली है, इसलिए वहां साधना का ऐसा वातावरण विकसित नहीं हुआ है जैसा चीन में अब है। चीन में लोगों को दाफा के बारे में अपेक्षाकृत गहरी समझ है, इसलिए साधना का एक वातावरण बन गया है जिसमें उन्हें ऊपर की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

शिष्य: क्या किसी व्यक्ति को फालुन दाफा का अभ्यास करने से पहले अपना धर्म छोड़ना आवश्यक है?

गुरुजी: जहां तक धर्मों का प्रश्न है, मैंने इस विषय पर कई बार बात की है। आपके किसी भी धर्म का पालन करने पर मैं आपत्ति नहीं करता। हमारा कोई संस्थागत धर्म नहीं है, इसलिए हमें ऐसा न समझें। लेकिन मैं आपको एक सिद्धांत भी बता रहा हूं: साधना एक बहुत गंभीर विषय है। किसी धर्म का आचरण करना साधना है। यह वास्तव में साधना ही है। यदि आप यह साधना करना चाहते हैं और साथ ही वह साधना करना चाहते हैं, तो आप वास्तव में कौन सी साधना कर रहे हैं? आप एक साधना पद्धति में फलपदवी प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि आपने केवल एक साधना पद्धति का अभ्यास नहीं किया है। इसलिए, मैं आप सभी से कह रहा हूं कि यह आप पर निर्भर है कि कौन सी साधना करनी है। लेकिन, मैं आपसे यह भी कह रहा हूं कि आपको केवल एक ही साधना पद्धति का पालन करना चाहिए। केवल एक साधना मार्ग का अनुसरण करके ही आप फलपदवी प्राप्त कर सकते हैं; अन्यथा, आप कभी भी फलपदवी प्राप्त नहीं कर सकते। इस पर मैं बस इतना ही कहूंगा।

क्योंकि धर्म का विषय आया है तो मैं कुछ और शब्द कहना चाहूँगा। यहां ऐसे पत्रकार हो सकते हैं जिनकी इस विषय में रुचि हो। मैंने कहा है कि हम कोई संस्थागत धर्म नहीं हैं। हम यहां जो सम्मेलन कर रहे हैं वह पूरी तरह से शिष्यों द्वारा स्वेच्छा से शुरू और आयोजित किया गया था। क्योंकि वे एक साथ अभ्यास कर रहे हैं और यहाँ सभी कनाडा के स्थानीय शिष्य हैं, वे बस एक दूसरे के साथ अपने अनुभव साझा करना चाहते थे। अन्य स्थानों के अभ्यासियों ने भी ऐसा ही किया है। सभी ने स्वेच्छा से वह किया है जो वे कर सकते थे। कुछ लोग सभा-भवन किराए पर लेने गए; कुछ लोग [अनुभव साझा करने के] लेख एकत्रित करने के लिए उत्तरदायी थे; कुछ ने यह किया और कुछ ने वह किया—इस प्रकार यह सम्मेलन आयोजित किया गया था। दाफा का स्वरूप किसी संस्थागत धर्म जैसा नहीं है।

किसी संस्थागत धर्म का एक पूजा स्थल होता है या, यदि उनका कोई पूजा स्थल नहीं है, तो उनकी किसी प्रकार की व्यवस्था, स्थान या कार्यालय होता है। हमारा इनमें से कुछ भी नहीं है। हममें से प्रत्येक व्यक्ति समाज का एक सदस्य है और सब काम करते है; हम वही कर रहे हैं जो हमें करना चाहिए। बस इतना है कि हम अपने खाली समय में अध्ययन करते हैं, साधना करते हैं और व्यायामों का अभ्यास करते हैं। हम सब ऐसे ही हैं, इसलिए यह संस्थागत धर्म जैसा बिलकुल भी नहीं है। हमारी बौद्ध धर्म की तरह न तो पूजा प्रथाएं हैं और न ही धार्मिक नियम हैं। संस्थागत धर्मों में, कुछ नियम हैं जिनका आपको पालन करना होता है, और यदि आप उन नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो यह स्वीकार्य नहीं होता है। हमारे यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। आप अपनी इच्छानुसार जुड़ सकते हैं और छोड़ सकते हैं, और कोई भी आपको प्रबंधित या प्रतिबंधित नहीं करता है। साधना अभ्यास करने वाले शिष्यों के प्रति लिया गया उत्तरदायित्व साधारण लोगों के इस आयाम में प्रतिबिंबित नहीं होता है। तो फिर साधारण लोगों की औपचारिकताओं से बंधे रहने की क्या आवश्यकता है? दाफा में औपचारिकताएँ नहीं हैं, तो आप इसे संस्थागत धर्म कैसे कह सकते हैं? हमारा कोई सदस्यता रजिस्टर नहीं है जिसमें नाम और पते हों। हमारे पास वह नहीं है। इसके स्थान पर, कुछ अभ्यासी स्वेच्छा से दूसरों की सेवा करते हैं। उदाहरण के लिए, एक शिष्य अपना परिचय देगा और कहेगा कि जो कोई भी व्यायाम सीखना चाहता है वह उसके पास आ सकता है। वह दूसरों के लिए कुछ करना चाहता है और यह सब वह स्वेच्छा से करता है। फिर भी कुछ लोग शायद नहीं समझेंगे और इसे धार्मिक कहेंगे। उन लोगों के लिए, भूतकाल में व्यापक रूप से स्वीकार किए गए धर्मों को छोड़कर सब कुछ विधर्म या एक पंथ है। इसलिए वे कहते हैं कि आप एक पंथ का भाग हैं। पंथ क्या होता है? हमारा स्वरूप धार्मिक नहीं है, पंथ का भाग होना तो दूर की बात है। हर कोई जानता है कि एक पंथ में निम्नलिखित लक्षण होते हैं: वे अनुचित तरीकों से धन एकत्रित करते हैं, लोगों को ठगते हैं, या लोगों को बुरे काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे पवित्र नहीं हैं; वे बुरे हैं। इसके विपरीत, हम आप सभी से स्वयं साधना करने और दयालु बनने के लिए कहते हैं। जब आप काम करते हैं तो आपको दूसरों का ध्यान रखना चाहिए और जहां भी आप काम करते हैं, अपना काम अच्छी तरह से करना चाहिए। आपको दूसरों के विचार से एक अच्छा व्यक्ति होना चाहिए। जब मैं आपसे ये सब करने के लिए कहता हूं, तो क्या वह पंथ का भाग होना है? मैंने आपसे इन चीजों के अतिरिक्त कुछ भी करने के लिए नहीं कहा है। मैंने आप सभी से केवल बेहतर करने, एक अच्छा मनुष्य बनने या और भी बेहतर मनुष्य बनने के लिए कहा है। मैं आपसे एक अच्छे सामान्य व्यक्ति से भी बेहतर बनने के लिए कहता हूं। आप अंततः एक अद्भुत व्यक्ति बन जायेंगे, और फलपदवी तक पहुँच जायेंगे।

शिष्य: मैं कैथोलिक हूं और हमेशा अनुभव करता हूं कि मेरी प्रार्थनाएं सुनी जाती हैं। क्या मैं फालुन दाफा की साधना कर सकता हूँ और साथ ही प्रार्थना भी जारी रख सकता हूँ?

गुरुजी: मैं फिर से यही कहूँगा: आपको एक ही साधना पद्धति का अभ्यास करना चाहिए। चाहे आप जिस भी अभ्यास में साधना करना चुनते हैं, मैं हस्तक्षेप नहीं करूँगा; आप जो चाहें उसमें साधना कर सकते हैं। लेकिन मैं आपको परामर्श देता हूं कि यदि आप साधना करना चाहते हैं तो आपको एक ही साधना मार्ग चुनना होगा। आप एक ही समय में इस चीज और उस चीज का अनुसरण नहीं कर सकते। मैं ये बात आपके प्रति उत्तरदायी होने के कारण बता रहा हूं। यदि आप सोचते हैं कि आप रोमन कैथोलिक चर्च का अनुसरण करके दिव्यलोक जा सकते हैं, तो आगे बढ़ें। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। दूसरी ओर, यदि आपको लगता है कि आप फालुन दाफा में साधना करके फलपदवी तक पहुँच सकते हैं, तो आगे बढ़ें और साधना करें। मैं इस विषय को इसी प्रकार देखता हूं। किसी को यह या वह करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यदि अपने मन में आप इसे नहीं करना चाहते हैं तो यह काम नहीं करता है, यहां तक कि आपको शारीरिक रूप से बंदी बनाकर और आपको विवश करके भी नहीं। यदि आपका मन उसमें नहीं है तो क्या लाभ होगा? तो फिर, औपचारिकताएँ कुछ ऐसा नहीं हैं जिन पर मैं ध्यान देता हूँ। यह तभी काम करती हैं जब आप स्वयं इसे करना चाहते हैं।

वैसे, एक बार एक संवाददाता ने मुझसे प्रश्न पूछा था, "क्या आप मानते हैं कि आप जो कर रहे हैं वह संसार का सबसे भला कार्य है?" मैंने कहा, "मुझे विश्वास है कि मैं जो कर रहा हूं वह सबसे भला कार्य है!" (तालियाँ) मैं आपसे एक पैसा भी नहीं लेता, केवल अपने आप को आपके लिए समर्पित करता हूँ। मैं निश्चित रूप से सबसे पवित्र कार्य कर रहा हूँ! और मैं आपके लाभ के लिए चीजें करता हूं, जिससे आप वास्तव में फल पदवी प्राप्त कर सकें। निःसंदेह मैं सबसे भला कार्य कर रहा हूं। मैं इस अवसर पर आपको यह भी बताना चाहूंगा कि मैं किसी भी धर्म का विरोध नहीं करता, विशेषकर कैथोलिक, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म जैसे प्रामाणिक और सच्चे धर्मों का। मैंने बौद्ध धर्म सहित ऐसे धर्मों का कभी विरोध नहीं किया। लेकिन इस पर विचार करें: क्या लोग अभी भी उन धर्मों के माध्यम से फल पदवी प्राप्त कर सकते हैं? उन धर्मों में कौन आपको वह प्राप्त करने में सक्षम बना सकता है? यह एक वास्तविक चिंता का विषय है। मुझे लगता है कि आपके अनन्त जीवन के लिए, इस पर चिंतन करना एक अच्छा विचार है। मैं यह कहने से नहीं डरता कि यदि आप वास्तव में फालुन दाफा का अभ्यास करते हैं, तो मैं आपको फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम बना सकता हूं। यदि आप किसी भिन्न परिस्थिति में हैं या किसी धर्म का भाग हैं, तो आप उस धर्म के पुजारी या संस्थापक से यह प्रश्न पूछ सकते हैं: क्या आप मुझे फल पदवी प्राप्त करने में सक्षम बना सकते हैं? और यदि वे सकारात्मक उत्तर दे सकते हैं, तो यदि आप चाहें तो उनका अभ्यास चुन सकते हैं। इस पर मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा।

शिष्य: क्या भावना और युआन (एक पूर्वनिर्धारित संबंध) के बीच कोई संबंध है? भावनाओं से ऊपर और परे उठना संभव है, लेकिन क्या युआन से ऊपर और पार जाना संभव है?

गुरुजी: भावना और युआन दो भिन्न चीजें हैं, और दो पूरी तरह से भिन्न अवधारणाएं हैं। जहाँ तक भावना का प्रश्न है, मैंने इसे पहले ही स्पष्ट कर दिया है। मनुष्य किसलिए जीते हैं? वे केवल भावनाओं के लिए जीते हैं। चाहे आज आपको जो भी अच्छा लगता है और जो भी पसंद है, आपकी प्रसन्नता, क्रोध, दुःख या आनंद, आपको क्या करना पसंद है या क्या करना नापसंद है, कैसे आप यह नौकरी चाहते हैं और वह दूसरी नौकरी नहीं चाहते, कैसे आप किसी को पसंद करते हैं लेकिन दूसरे को नापसंद, कैसे आप किसी से प्रेम करते हैं लेकिन दूसरे से प्रेम नहीं करते हैं, या आप एक चीज चाहते हैं लेकिन दूसरी नहीं चाहते हैं—आपकी सभी इच्छाएँ आपकी भावनाओं से उत्पन्न होती हैं। तो, मनुष्य केवल भावनाओं के लिए जी रहा है। यदि आप साधना करना चाहते हैं, तो आपको इस भावना से ऊपर और पार जाना होगा। यदि आप भावना को पीछे नहीं छोड़ सकते, तो आप भावना के साथ ही जीते हैं। साधारण मनुष्यों में भावनाओं को कई प्रकार से अभिव्यक्त किया जाता है। आप जिस चीज से भी मोहभाव रखते हैं, जो भी आपको पसंद है वे सभी मोहभाव हैं जिन्हें आप छोड़ नहीं पाते।

अब बात करते हैं "युआन" की। आज कुछ लोग यहाँ आये हैं। मैं आपको एक मनुष्य ही समझूंगा, चाहे आप जिस भी उद्देश्य से यहां आए हों—समाचार रिपोर्ट करने, फा प्राप्त करने, कुछ जानकारी प्राप्त करने, या समाचारों की खोज में। क्योंकि आप यहाँ आये हैं, मैं आपको एक मनुष्य ही समझूंगा। बात केवल इतनी है कि काम विभिन्न प्रकार के होते हैं। चाहे आप जासूस हों, फिर भी आपके पास एक मानवीय हृदय है, इसलिए मैं आपको एक साधारण मनुष्य ही समझूंगा। आप किस प्रकार का काम करते हैं, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। मानव समाज में सभी कार्य साधारण लोगों के कार्य से अधिक कुछ नहीं हैं। आप यहां आकर फा के बारे में मेरे उपदेश सुनने में सक्षम हुए, और आपने विशेष रूप से बुद्ध फा को सुना है। क्या यह युआन के कारण नहीं है? मुझे आशा है कि आप इसका महत्व समझेंगे। निश्चित ही, जब युआन के बारे में वास्तविकता में विस्तार से बात की जाती है, तो कई भिन्न प्रकार और पहलू होते हैं, क्योंकि युआन एक प्रकार का पूर्वनिर्मित संबंध है। उदाहरण के लिए, पिछले जीवन में, इस व्यक्ति पर किसी अन्य व्यक्ति का कुछ ऋण था, या इसने कोई बुरा कार्य किया था। अगले जन्म में दोनों को फिर मिलना होगा; उसे वह चुकाना होगा जो उसका ऋण है। यह एक प्रकार का द्वेष का युआन है। फिर भी यदि आपने पिछले जन्म में उसके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया था, और उसने अगले जन्म में आपको चुकाने के लिए कुछ भी करने का वचन दिया था, यहाँ तक कि आपका भार उठाने वाला पशु भी बन जाने का, तो शायद वह अगले जन्म में आपका भार उठाने वाला पशु बन जाएगा। वह आपकी पत्नी बन सकती है, या वह आपका पति बन सकता है। या शायद वह ऐसा व्यक्ति बन जाता है जो आपकी बहुत सहायता करता है। यह एक अन्य प्रकार का संबंध है, जिसे कृतज्ञता का युआन कहा जाता है। दाफा से जुड़ा युआन पवित्र युआन हो सकता है। शायद हम एक समय साधारण लोगों के बीच संबंधी या अच्छे मित्र थे। इनमें से किसी के कारण भी पूर्वनिर्धारित संबंध बना होगा जिससे हम भविष्य में इस युआन को निभा सकें। यही स्थिति है। जो भी हो, मुझे आशा है कि आप दाफा को हानि नहीं पहुँचाएँगे। इससे युआन का सबसे बुरा स्वरूप सामने आ सकता है। आप इसका भुगतान कभी नहीं कर पाएंगे, और फिर भी आपको इसका भुगतान हमेशा के लिए करना होगा।

शिष्य: जब मैंने बड़ी परीक्षाओं का सामना किया तो मैंने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन मुझे कुछ छोटे पशुओं, जैसे बिल्लियों और कुत्तों, और यहां तक कि तितलियों और मच्छरों से भी डर लगता है।

गुरुजी: तो फिर आप थोड़े डरपोक हैं। डरपोक होना वास्तव में एक प्रकार का मोहभाव है, जो आपकी धारणाओं से पैदा हुआ है। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि जब आप छोटे थे तो आपको कीड़े-मकोड़े अच्छे नहीं लगते थे। आपको वे अच्छे नहीं लगते थे और जब आप उन्हें देखते थे तो वे आपको लगते थे। यह मानसिकता धीरे-धीरे बनती गई, यहाँ तक कि अंततः आप उन्हें छूना या उनके पास जाना नहीं चाहते थे। उनके पास आने से आपको डर लगता था। धीरे-धीरे, आप शायद और अधिक भयभीत हो गए होंगे। यह एक मानवीय, जन्म के बाद बनी मानसिकता द्वारा उत्पन्न हुआ है। वास्तव में, यह एक प्रकार के मोहभाव के रूप में प्रकट होता है। फिर भी इस प्रकार का मोहभाव अन्य प्रकारों से भिन्न है। जब आप इस बात से स्पष्ट होते हैं कि आपको क्या चाहिए और आप इसे कैसे प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह एक प्रकार की जन्म के बाद बनी मानसिकता को दर्शाता है।

शिष्य: मैं अपने सपनों में हमेशा लोगों को बचाता रहता हूँ। मेरी समझ यह है कि मुझे फा को प्रचारित करना है जिससे अधिक से अधिक लोग फा प्राप्त कर सकें।

गुरुजी: यह वैसा ही है जैसा मैंने अभी युआन के बारे में कहा था। यह उस युआन से संबंधित हो सकता है जिसे आपके अपने जीवन ने विभिन्न आयामों में स्थापित किया हो। फिर भी, इसका आपकी साधना और सुधार से सीधा संबंध नहीं है। बस दाफा में दृढ़ रहें और साधना करें। चाहे आप जिसका भी सामना करते हैं, आप क्या देखते हैं या आप क्या सपना देखते हैं, बस दाफा में दृढ़ रहें। जिन चीजों का आपने सामना किया, देखा, या सपना देखा, वे आपकी साधना की स्थिति की अभिव्यक्तियों से अधिक कुछ नहीं हैं। उदाहरण के लिए, यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे किसी व्यक्ति के पास बहुत सारी अलौकिक क्षमताएँ हों, फिर भी वह उन्हें परखना या जाँचना भी नहीं चाहता। वह इनका एक बार भी उपयोग नहीं करना चाहता। उसे नहीं लगता कि उसमें वह इच्छा है।

शिष्य: क्या यह सच है कि बुद्ध, ताओ और विभिन्न स्तरों के देवता अपने मामलों को संभालते समय ब्रह्मांडीय परिवर्तनों का अनुसरण करते हैं?

गुरुजी: महान उच्च-स्तरीय देवताओं की इच्छाएँ ही ब्रह्मांडीय वातावरण हैं। सभी देवताओं के कार्य उस ब्रह्मांडीय वातावरण की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। वे सभी देवता दिव्यलोक की इच्छा का समर्थन कर रहे हैं। साधारण मानव समाज में घटित होने वाली एक भी चीज संयोग से नहीं होती है, इसलिए चाहे मानवीय इच्छा कितनी भी प्रबल हो, या लोग क्या करना चाहते हैं, या उन्होंने कितनी अच्छी तरह से कुछ योजना बनाई है, वे इसे प्राप्त नहीं कर सकते हैं। एक राष्ट्र, एक देश या यहां तक कि उसके राष्ट्रपति ने बहुत अच्छी तरह से योजना बनाई होगी, लेकिन साधारणतः वे पाते हैं कि उनकी क्षमता उनकी इच्छाओं को पूरा करने में कम पड़ रही है। जहाँ तक एक मनुष्य की बात है, चाहे आपने जो भी योजना बनाई हो, आप क्या करना चाहते हैं, या आप किस चीज से डरते हैं, आपको वही मिलेगा जो आपको मिलना चाहिए, और जो आपको नहीं मिलना चाहिए वह नहीं मिलेगा। मेरे विचार से सब कुछ पूर्व निर्धारित है। मनुष्य केवल पूर्वनिर्धारित के अनुसार ही अपने उत्तरदायित्व निभा रहा है। फिर अगला प्रश्न यह है: क्योंकि यह पूर्व निर्धारित है, तो क्या हमें प्रवाह के साथ नहीं चलना चाहिए? मनुष्य तो फिर भी मनुष्य है। क्योंकि वह भूलभुलैया में है, उसे इस पर विश्वास नहीं होता। वह अभी भी होड़ और प्रतिस्पर्धा करेगा। वह जो चाहेगा, वही करेगा और इन चीजों से उसे कर्म प्राप्त होंगे।

कौन गारंटी दे सकता है कि वह आजीवन एक आधिकारिक पद पर बना रहेगा, पाताल लोक में भी? बहुत से लोग अपने जीवन में अनेक अच्छे कार्य करने के लिए अपने अधिकार का उपयोग करते हैं। जीवन का अस्तित्व मनुष्य होने के लिए नहीं है, इसलिए आपके जीवन का अस्तित्व केवल इसलिए समाप्त नहीं हो जाएगा क्योंकि आपका मानव मांस शरीर मर गया है। इस प्रकार, आपका जीवन अभी भी जारी है। इस कारण से, वे मनुष्य जो अपेक्षाकृत विवेकशील और वास्तव में बुद्धिमान हैं, वे अपने भविष्य के जीवन के लिए और भी बेहतर परिस्थितियाँ बनाने के लिए अपने अनुकूल अवसरों का लाभ उठाएँगे। दूसरे शब्दों में, वे कई अच्छे कार्य करेंगे। दूसरी ओर, अभी भी ऐसे लोग हैं जो अपने अधिकार का लाभ उठाकर बुरे काम करते हैं। यही एकमात्र चीज है जो मनुष्य कर सकता है। अर्थात जब भी कुछ होता है तो आप क्या करते हैं या चाहे उचित करते हैं या अनुचित करते हैं, यह आपका अपना चयन है। तो इस तरह की चीज अस्तित्व में होती है, और मानवजाति इस विषय पर भिन्न-भिन्न व्यवहार करती है।

शिष्य: सुधार का अर्थ है अपने अन्दर झांकना। क्या सृजन, ठहराव और पतन का अर्थ स्वचालित सुधार है?

गुरुजी: सृजन, ठहराव, पतन और सुधार के विषय का आपकी व्यक्तिगत साधना से कोई लेना-देना नहीं है। साधना का अर्थ है अपने अन्दर झांकना और अपनी कमियों, मोहभावों और बुरे विचारों को ढूंढ़ना, साथ ही बेहतर साधना करने के तरीके खोजना और अपने बुरे विचारों से छुटकारा पाना। यह अपने अंदर झांकने के माध्यम से साधना करना है। सृजन, ठहराव और पतन एक स्वरूप है जो ब्रह्मांड में होता है, और जब कोई चीज जो अच्छी नहीं रह जाती है उसे ठीक करने की आवश्यकता होती है, तो यह एक ऐसा विषय है जो व्यक्तिगत साधना से नहीं बल्कि फा से संबंधित है।

शिष्य: क्योंकि हम फलपदवी तक पहुँचने के बाद उच्च स्तर के सिद्धांतों को नहीं जानते हैं, क्या हम अनुचित काम करने पर फिर से नीचे गिर सकते हैं?

गुरुजी: हर कोई हंस रहा है। दूसरे शब्दों में, आप अभी भी ज्ञानप्राप्त प्राणियों के विषयों को मानवीय विचारों के साथ कल्पना कर रहे हैं। आप इसे उस प्रकार कभी नहीं समझ पाएंगे, न ही यह संभव है। जब कोई व्यक्ति फलपदवी प्राप्त कर लेता है, तो उसका मन एक देवता का होता है, ना की मनुष्य का। उसके सोचने का तरीका और सोचने का शुरुआती बिंदु एक मनुष्य से बिल्कुल अलग होता है। इसके अतिरिक्त, वह जिस वातावरण और आयाम में है वे भी भिन्न हैं, बिल्कुल भी समान नहीं है। सिद्धांतों को न समझने की अवधारणा नहीं होती है, क्योंकि यदि आप उस स्तर के सिद्धांतों को नहीं समझते हैं तो आप उस स्तर तक नहीं पहुंच सकते। ऐसा क्यों है? क्या आप जानते हैं कि आपकी साधना के दौरान आपसे फा को अधिक पढ़ने और पुस्तक को अधिक पढ़ने के लिए क्यों कहा जाता है? जब आप एक निश्चित स्तर पर पहुंच जाते हैं, तो आपको उस स्तर के सिद्धांतों और उस स्तर के फा को जानना होगा जिससे आप उस स्तर पर पहुंच सकें। फिर भी क्योंकि आपका मानव शरीर अभी भी साधना अभ्यास कर रहा है, आपके निश्चित रूप से मानवीय विचार होंगे। मानव मन को फा के इतने सारे सिद्धांतों को जानने की अनुमति नहीं है, इसलिए आपके मानवीय पक्ष को साधना के दौरान फा के बारे में आपके ज्ञान को इतना अधिक जानने की अनुमति नहीं है।

ज़ुआन फालुन में, मैं आपकी सच्ची चेतना को जागृत करने के लिए केवल साधारण तौर पर आपको फा सिखा रहा हूँ। मानवजाति को वास्तविक फा जानने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? इसलिए अपनी साधना के दौरान आप केवल यह अनुभव कर सकते हैं कि आप अचानक किसी स्थिति को समझ जाते हैं, या आप अचानक किसी सिद्धांत को समझ जाते हैं, लेकिन आप साधारणतः इसे मानवीय भाषा में नहीं समझा सकते हैं। जैसे ही आप इसे कहते हैं, यह अब वही बात नहीं रह जाती। लेकिन जब भी आप उस सिद्धांत को समझते हैं, तो आप वास्तव में उस स्तर पर होते हैं। आपको केवल साधारण तौर पर सिद्धांत के बारे में समझने की अनुमति है, एक सरलीकृत और संक्षिप्त छोटा सा भाग। यदि किसी व्यक्ति को किसी विशिष्ट, बहुत बड़े सिद्धांत को उसकी संपूर्णता में जानने की अनुमति दी जाए, तो क्या उस व्यक्ति का मानवीय पक्ष बुद्ध के स्तर का नहीं होगा? इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है?! इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। आप अभी भी साधना कर रहे हैं और आपके अभी भी मानवीय मोहभाव हैं जिनसे छुटकारा पाना है, इसलिए यह आपको ज्ञात नहीं कराया जा सकता। आपको केवल इतना ही जानने की अनुमति है, लेकिन यह आपके सुधार की अभिव्यक्ति भी है। तो आपने जिस भी स्तर तक साधना की है, आप उस स्तर के सिद्धांतों को जान लेंगे। उस क्षण में जब आपका वह भाग जिसने साधना पूरी कर ली है, आपसे अलग हो जाता है, तो वह उस स्तर के सभी सिद्धांतों को पहले ही समझ चुका होता है।

शिष्य: क्योंकि ज्वार-भाटा रेत को छान रहा है और लोग बड़ी परीक्षाओं एवं कष्टों से गुजर रहे हैं, कुछ लोग छोड़ सकते हैं या हार मान सकते हैं। उस समय, क्या हमें उनकी सहायता करनी चाहिए या उन्हें स्वयं ही इससे निपटने के लिए छोड़ देना चाहिए?

गुरुजी: साधना बिल्कुल सोने में से रेत को अलग करने वाले ज्वार-भाटा की तरह है। जो लोग सहन नहीं कर सकते वे शायद बाहर निकाले जा सकते हैं। जो बचता है वह चमकता हुआ सोना है, सच्चा सोना जो वास्तव में फलपदवी प्राप्त कर सकता है। बात बस इतनी है कि ऐसे लोग कम हैं। साधना एक गंभीर विषय है, इसलिए परीक्षाओं और कष्टों से गुजरते समय एक व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण क्षण में बिल्कुल भी लापरवाह नहीं हो सकता। यह देखना सबसे महत्वपूर्ण है कि वह आगे क्या कदम उठाता है और उन्हें कैसे समझता है। क्योंकि आपने देख ही लिया है, यदि आप उसकी सहायता कर सकते हैं तो सहायता कीजिये। उसे बताना और जगाना ठीक है। निश्चित ही, साधना में, यह पूर्व निर्धारित है कि उसे प्रत्येक परीक्षा को कैसे संभालना चाहिए, उसे प्रत्येक कष्ट से कैसे निपटना चाहिए, और उसे प्रत्येक मोहभाव से कैसे छुटकारा पाना चाहिए। यदि वह उस अवसर को चूक जाता है, तो उसे वापस पाना आम तौर पर बहुत कठिन होता है, विशेष रूप से उस विकट समय पर जब यह निर्धारित होता है कि वह फलपदवी प्राप्त कर सकता है या नहीं। यदि कोई महत्वपूर्ण परीक्षाओं में उत्तीर्ण नहीं होता है, तो वह वास्तव में इस प्रकार का अच्छा अवसर खो देगा। शायद उसके पास एक और अवसर होगा, लेकिन मैं केवल "शायद" ही कह सकता हूँ। केवल फा का पूरी तरह से अध्ययन करने और एक बहुत ही ठोस आधार बनाने से ही आपको उस परीक्षा को उत्तीर्ण करने में सहायता मिल सकती है। यह ऐसी चीज नहीं है जिसके लिए आप मानसिक रूप से तैयारी कर सकते हैं, या ऐसा कुछ जो आपके बस चाहने भर से अच्छा हो जायेगा।

शिष्य: जब भी मैं आपको देखता हूं या आपके व्याख्यान देखता हूं तो मेरी आँखें नम हो जाती हैं। कुछ लोगों को ये अजीब लगता है। मुझे उन्हें यह कैसे समझाना चाहिए?

गुरुजी: आपको समझाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आपको अपनी साधना दूसरों को दिखाने की आवश्यकता नहीं है। साधना की अवस्था में, आप स्वयं की साधना करते हैं, और आप स्वयं में सुधार कर रहे होते हैं। जहाँ तक इस प्रकार के आँसुओं का प्रश्न है, आप में से बहुत लोग वास्तव में इस अवस्था से गुजर चुके हैं। आपमें से अधिकांश लोग इससे गुजर चुके हैं, इसलिए आप अकेले नहीं हैं जिसने इसका अनुभव किया है। कुछ लोगों ने इस फा को प्राप्त करने के लिए जन्म-जन्मान्तर तक प्रतीक्षा की है। इतना कष्ट सहने और सभी प्रकार की कठिनाइयों का अनुभव करने के बाद, अंततः उन्हें यह फा मिल गया है। आप सभी लोग इसके बारे में सोचें: यह कैसी अनुभूति है! मनुष्य का एक पक्ष होता है जो समझता है और एक पक्ष होता है जो नहीं समझता है। मनुष्य का सबसे सतही पक्ष भटक गया है और अज्ञानी है, फिर भी दूसरे आयाम में विद्यमान पक्ष अत्यंत जागरूक है। एक मनुष्य ने ऐसे काम किये हैं जो या तो अच्छे हैं या बुरे। उसका और उसके कर्मफल भुगतान का किया गया मूल्यांकन बिल्कुल निष्पक्ष है। आप कह सकते हैं कि आप अनजान हैं, लेकिन आप केवल सतही स्तर पर ही इससे अनजान हैं, क्योंकि आप अज्ञानता में गिर गए हैं। इसीलिए आप अनजान हैं, लेकिन आपका वह पक्ष भी है जो जागरूक है।

शिष्य: कुछ लोग फा को प्रचारित करने के प्रति बहुत उत्साहित हैं, जबकि अन्य नहीं हैं। यह अंतर क्यों है?

गुरुजी: कुछ लोगों में इसे करने की इच्छा ही नहीं होती। ऐसा नहीं है कि वे साधना नहीं कर सकते; वास्तव में, उन्होंने बहुत अच्छी साधना की होगी। बात केवल इतनी है कि उनमें ऐसा करने का उत्साह नहीं है। ऐसे बहुत से लोग हैं।

दूसरी ओर, ऐसे लोग भी हैं जिनमें इच्छा है और जो दूसरों के लिए अच्छे काम करना चाहते हैं। ऐसे लोग कम नहीं हैं। इसका आपके साधना अभ्यास करने या फलपदवी प्राप्त करने की क्षमता से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी मुझे लगता है कि क्योंकि अभ्यासियों को दूसरों के बारे में सोचना चाहिए, जब आपको महानतम चीज मिल जाती है, तो आप दूसरों को बताना चाहते हैं जिससे अधिक लोगों को बचाया जा सके। अक्सर ऐसा ही होता है। इसके अतिरिक्त, कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि आप कोई वचन निभाना चाहते हैं या अपने पिछले जन्मों के मित्रों और सम्बन्धियों को खोजना चाहते हैं जिससे वे फा प्राप्त कर सकें।

शिष्य: क्या जो लोग फा में विश्वास नहीं करते उन्हें किसी दिन एहसास होगा कि उन्होंने यह अवसर गँवा दिया?

गुरुजी: उनके पास वह अवसर हो भी सकता है और नहीं भी, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से किसी ने भी उन लोगों पर ध्यान नहीं दिया है जिन्हें नष्ट कर दिया गया है। फिर भी जिन लोगों ने अच्छी तरह से साधना नहीं की, या जिन्होंने पहले लगन से इसका अभ्यास नहीं किया, लेकिन बाद में लगन से प्रगति करनी शुरू कर दी, उन्हें इसके बारे में खेद अनुभव होगा। उनके पास पछतावे का अवसर होगा।

शिष्य: मैं कई वर्षों से इस दाफा की प्रतीक्षा कर रहा हूं। मैं यह पूछे बिना नहीं रह सकता, "मेरे लिए फा प्राप्त करने की व्यवस्था इतनी देर से क्यों की गयी?"

गुरुजी: यह किसी व्यक्ति का पूरी तरह से मूल्यांकन करने के बाद निर्णय लिया जा सकता है, या यह किसी अन्य कारण से हो सकता है। जब फा प्रसारित किया जा रहा था, तो हमने इसे विज्ञापित करने के लिए किसी मीडिया या प्रचार का उपयोग नहीं किया। मैंने वह मार्ग नहीं अपनाया है। मैंने ऐसा नहीं किया क्योंकि मैंने बहुत सी ढोंगी और कुटिल चीजों को विज्ञापनों में स्वयं की प्रशंसा करते हुए देखा है। ऐसे में, लोग सच्ची चीज पर ध्यान नहीं देंगे यह सोचकर कि आप भी शायद धोखा दे रहे हैं। विज्ञापनों में दिखाई देने वाले लोगों की तरह स्वयं की प्रशंसा करना दाफा के साथ बहुत ही लापरवाही से व्यवहार करना होगा, इसलिए जितना संभव हो सके दाफा की गंभीरता को बनाए रखने के लिए हमने कभी भी वह मार्ग नहीं अपनाया। हो सकता है कि कुछ लोगों को इसके कारण फा देर से प्राप्त हुआ हो। जो भी हो, आपने फा प्राप्त कर लिया है, इसलिए आपको इसके बारे में अधिक नहीं सोचना चाहिए। बस अपने मन को शांत रखें और साधना करें।

प्राचीन चीन में एक कहावत थी कि जो व्यक्ति सूर्योदय होने पर ताओ सीखता है, वह सूर्यास्त होने पर मृत्यु पा सकता है। क्योंकि आपने अब फा प्राप्त कर लिया है, तो आपको किस बात का डर है? केवल यह देखना शेष है कि आप कैसे साधना करते हैं। वास्तव में, ऐसे कई पूर्वनिर्धारित लोग हैं जिन्होंने अभी तक फा प्राप्त नहीं किया है। जब मीडिया में वे अनुत्तरदायी लोग जो वास्तव में हमें नहीं समझते थे, हमें बदनाम करने लगे, तो उन लोगों ने अपना अवसर बहुत हद तक गवां दिया होगा। यह सचमुच दुःख की बात है। वर्तमान मानव समाज इस हद तक गिर चुका है कि कुछ पत्रकार वास्तव में आपको समझने का प्रयत्न नहीं करते हैं, बल्कि वे लापरवाही से टिप्पणी करते हैं या अपने विचारों और कल्पना के आधार पर अपनी बात को विस्तार से बताते हैं। वे सोचते हैं कि जो कुछ उन्होंने जन्म लेने के बाद सीखा है, या देखा है, वही सत्य है; इसलिए उनमें ऐसा करने का दुस्साहस है। अभी ऐसे बहुत से लोग हैं जो पूर्वनिर्धारित हैं, और कुछ ऐसे भी हैं जो बहुत अधिक पूर्वनिर्धारित हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक फा प्राप्त नहीं किया है।

शिष्य: दाफा के अध्ययन से पहले मैं समलैंगिक था। मैं वास्तव में वासना के असुर के मुद्दे को नहीं समझ पाया हूँ। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि इसे कैसे हल किया जाए।

गुरुजी: मैं इसे इस तरह देखता हूं: यदि आप दाफा का अध्ययन इस मुद्दे को हल करने के लिए करते हैं, तो आप कभी भी इसे हल नहीं कर पाएंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि फा बहुत गंभीर है; यह मानवजाति के लिए फलपदवी प्राप्त करने के लिए है। यह ऐसे ही नहीं सिखाया जाता कि साधारण लोग अपनी समस्याओं का समाधान करें। दूसरी ओर, यदि आप वास्तव में दाफा में साधना करने के लिए दृढ़ हैं और आप जो भी करते हैं उसमें एक सच्चे साधक और अभ्यासी के मानकों के साथ स्वयं को अनुशासित करने में सक्षम हैं, और यदि आप खुलेपन और गरिमा के साथ स्वयं की साधना करते हैं, तो मुझे लगता है आप इस परीक्षा में तुरंत सफल हो जायेंगे। (तालियाँ) वास्तव में, जब आप में से कई लोग अपने सामने आने वाली परीक्षाओं को पार नहीं कर पाते हैं, तो यह सब इसलिए होता है क्योंकि आप ऐसे ही काम चलाते रहते हैं और मनुष्यों की तुच्छ चीजों को नहीं छोड़ पाते हैं। परिणामस्वरूप परीक्षाएं लंबे समय तक चलेंगी। यदि आप वास्तव में मोहभाव को छोड़ सकते हैं और वह मार्ग अपना सकते हैं जिस पर आप चलना चाहते हैं, तो सब कुछ बदल जाएगा। यह उन चीजों के लिए विशेष रूप से लागू होता है जो फा का अध्ययन करते समय आपके साथ हस्तक्षेप करती हैं। इसे तेजी से बदला जा सकता है।

शिष्य: ऐसा प्रतीत होता है कि शिष्य गुरूजी के प्रति अपना सम्मान इस तरह प्रदर्शित करते हैं जिसमें कुछ अधिक ही औपचारिकता और मानवीय भावना होती है।

गुरुजी: मैंने भी ऐसा देखा है। फिर भी, आपने मुझसे पहले भी इस तरह के विषय के बारे में पूछा था और मैंने पहले ही उत्तर दे दिया था। मुझे इसकी चिंता नहीं है कि चीजें क्या प्रारूप लेती हैं, लेकिन उन प्रारूपों के बिना जैसे कि अनुभव-साझा करने वाले सम्मेलन या समूह अभ्यास, जो आप आज आयोजित कर रहे हैं, तो शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण वातावरण जो साधकों के एक साथ होने पर बनता है उसका अस्तित्व नहीं होगा। आपके पास ऐसा वातावरण नहीं होगा जहां साधकों के बीच चर्चा के विषय पवित्र विचारों पर आधारित हों। साधारण समाज में लोगों के बीच जिन विषयों पर चर्चा होती है, वे सभी व्यक्तिगत लाभ के बारे में होती हैं। हजारों वर्षों से मनुष्य उन्हीं चीजों के बारे में बात करता आया है; अंतर केवल इतना है कि आज अधिक आधुनिक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। साधकों द्वारा प्रदान किया गया वातावरण न होने से आपकी साधना, आपकी फलपदवी और आपकी लगन के लिए गंभीर कठिनाइयाँ पैदा होंगी। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा आज एक शिष्य ने अपने भाषण में कहा : उसे लगा कि घर पर दो महीने के स्वयं अध्ययन के बाद उसने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है क्योंकि उसे लगता था कि वह काफी बुद्धिमान है। लेकिन जब उसने इस वातावरण में कदम रखा तो उसे एक अंतर अनुभव हुआ। इस वातावरण के कारण, हर कोई एक-दूसरे को आगे बढ़ने और सुधार करने में सहायता कर सकता है, जो बहुत अच्छी बात है! मानव जगत में आपको एक भी पवित्र स्थान नहीं मिलेगा। यदि आप किसी धार्मिक स्थान पर जाएं, तो आप पाएंगे कि आजकल वे जिस बारे में बात करते हैं वह है धन और राजनीति। यहाँ तक कि यौन बातें भी धर्मों में सम्मिलित हो गई हैं। हमारा फालुन दाफा वास्तव में एकमात्र पवित्र स्थान है। (तालियाँ)

कुछ पत्रकारों को यह समझ में नहीं आता कि 10 करोड़ से अधिक लोग इस अभ्यास का अध्ययन क्यों कर रहे हैं। अभी मैंने जो कहा वह उनके प्रश्न के उत्तर में था। यह मानव जगत में एकमात्र बचा हुआ पवित्र स्थान है। इस प्रकार का वातावरण ही वास्तव में मनुष्य की नैतिकता को ऊँचा उठा सकता है और उसे पवित्र बना सकता है। यह उन्हें अच्छे लोगों में परिवर्तित कर सकता है, और यह बहुत बुरे लोगों को भी परिवर्तित कर सकता है और उन्हें उनकी सर्वोत्तम स्थिति में लौटा सकता है। अब, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि दाफा के अतिरिक्त और क्या है जो यह सब प्राप्त करवा सकता है? हम इसे प्राप्त करवा सकते हैं और इसीलिए इतने सारे लोग आए हैं।

शिष्य: क्या मेरे लिए कृत्रिम नस का वह टुकड़ा निकालना आवश्यक है जो पहले कीमोथेरेपी के दौरान मुझमें प्रत्यारोपित किया गया था?

गुरुजी: आप पर किए गए ऑपरेशन या आपके साथ पहले जो कुछ भी किया गया था, उसके बारे में चिंता न करें। जब तक आप सच्चे साधक हैं, कुछ भी हो सकता है। हमारे पास कुछ समय पहले एक साधक था जिसके पैर में स्टील की पिन और प्लेटें लगी थीं। उसकी हड्डियाँ और यहाँ तक कि कुछ अन्य भाग भी बदले गए थे। बाद में, उसने पाया कि वे सभी बिना किसी निशान के गायब हो गए थे, लेकिन उसका शरीर बिल्कुल उचित स्थिति में था। (तालियाँ) हालाँकि, दूसरी ओर, मैं यहाँ साधारण लोगों के लिए ये सब काम करने के लिए नहीं हूँ। मैं इसे साधकों के लिए कर रहा हूं जिससे वे फलपदवी प्राप्त कर सकें। कोई व्यक्ति कभी भी इसे किसी इच्छा प्रयास के मोहभाव से प्राप्त नहीं कर सकता।

शिष्य: जब से मैंने फालुन दाफा का अध्ययन करना शुरू किया है, मैंने पाया है कि मेरे शरीर के अंदर ऊर्जा का प्रवाह और अधिक शक्तिशाली हो गया है। अब मैं अपने चुंबकीय क्षेत्र से वस्तुओं को आकर्षित कर सकता हूं, लेकिन साथ ही, ऊर्जा प्राप्त करने के लिए मुझे अक्सर सूर्य के प्रकाश में रहना पड़ता है।

गुरुजी: मैं आपको बता दूं कि शुरुआत में यह ठीक था। हालाँकि, बाद में आपको इससे मोह हो गया और यह मोहभाव बन गया। आपने सोचा कि यह बहुत अच्छा है कि आपके पास यह अलौकिक सिद्धि है, और आपको इससे मोहभाव हो गया था। लेकिन, साधना और फलपदवी प्राप्त करने का उद्देश्य आपके लिए इस क्षमता से कम महत्वपूर्ण हो गया है। इसलिए यह अपनी शक्ति खो देगा, और तब आप स्वयं अपनी सिद्धि भी खो देंगे। आप सोचते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि आप इसकी पूर्ति के लिए सूर्य के प्रकाश या किसी अन्य ऊर्जा को अवशोषित करने में सक्षम हैं, लेकिन आप पाएंगे कि यह दुर्बल और दुर्बल होती जा रही है। उस प्रकार की पुनःपूर्ति इतनी नगण्य है कि वह लगभग शून्य के बराबर है।

मैंने ज़ुआन फालुन और होंग यिन में सभी को स्पष्ट रूप से बताया है कि, "अलौकिक क्षमताएं तुच्छ साधनों के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं।" वे साधना के दौरान बनने वाले सह उत्पाद हैं। आपको साधना अभ्यास के लिए उन्हें कभी भी अपना लक्ष्य नहीं मानना चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप कभी भी फलपदवी प्राप्त नहीं कर पाएंगे। मोहभाव विकसित करने से एक दीवार बन जाती है जो फलपदवी की ओर आपके रास्ते को अवरुद्ध कर देती है, और आप उसको पार करने में सक्षम नहीं होंगे। केवल एक साधारण व्यक्ति के सभी मोहभावों को त्यागकर ही आप इसको पार कर सकते हैं और फलपदवी की ओर बढ़ सकते हैं। यहां बैठे आपमें से कई लोगों के लिए, यदि मैं आपकी थोड़ी सी सहायता करूँ, आप महान दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन करेंगे। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे आपको फलपदवी प्राप्त करने देना है। आपकी पूरी साधना के दौरान, कुछ दिव्य सिध्दियाँ स्वाभाविक रूप से विकसित हो सकती हैं, इसलिए बेहतर होगा कि उन्हें किसी महत्वपूर्ण चीज के रूप में न देखा जाए। उनके बारे में बहुत अधिक परवाह न करें, और उन्हें अपने मन में न रखें। यदि वे आपके पास हैं, तो हैं; इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। बुद्ध और देवताओं की तुलना में वे क्या चीज हैं? अलौकिक सिध्दियाँ वह लक्ष्य नहीं है जिसे आप चाह रहे हैं। आप जो खोज रहे हैं वह बहुत उच्च और बड़ा है, जब तक कि आप फलपदवी तक नहीं पहुंच जाते। तब, आपके पास महान दिव्य शक्तियां होंगी, और ऐसा कुछ भी नहीं है जो वे नहीं कर सकती। यदि आप दृढ़ और संकल्पवान हो सकते हैं और जैसा मैंने पहले कहा था वैसा ही करते हैं, तो आपकी अलौकिक सिद्धियां और अधिक शक्तिशाली हो सकती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि साधना के दौरान शक्ति द्वारा सभी अलौकिक सिद्धियां धीरे-धीरे शक्तिशाली हो जाएंगी। मुझे लगता है कि आप इस संबंध को समझ गए होंगे कि यह एक अच्छी चीज या बुरी चीज कैसे हो सकती है।

शिष्य: हमारी साधना प्रक्रिया के दौरान, क्या मूल पदार्थ को मूल तक के उच्च स्तर पर पहुँचने से पहले परिवर्तित किया जा सकता है?

गुरुजी: वास्तव में, आपने फा का ध्यान से अध्ययन नहीं किया है। मैंने जो कहा था वह यह है : हम रूपांतरण की शुरुआत आपके जीवन के सबसे सूक्ष्म पदार्थ से करते हैं और सबसे सूक्ष्म पदार्थ से जिसने आपके जीवन का निर्माण किया है। तो फिर आपके जीवन का सबसे सूक्ष्म पदार्थ कहाँ है? मैंने आपको नहीं बताया। यह अत्यंत सूक्ष्म हो भी सकता है और नहीं भी। मेरे शब्दों का मूल अर्थ यही है। आपका सबसे सतही भाग मूल तक के उच्च स्तर पर नहीं पहुँच पाया है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आपमें से कोई भी उस स्तर तक नहीं पहुंचा है, केवल इतना है कि मैंने आपको विपरीत तरीके से साधना करायी है।

आप जानते हैं, अतीत में चीन में जब भी लोग साधना की बात करते थे, तो कई क्षेत्रों के लोग इसे समझ पाते थे। साधना की प्रक्रिया के दौरान, परिवर्तन अक्सर सतह के स्तर पर शुरू होते थे। आणविक कणों से बने भौतिक शरीर में परिवर्तन शुरू होता था, इसके बाद आणविक कणों की दूसरी परत में। परिवर्तन लगातार अधिक सूक्ष्म कणों तक चलता गया और फिर इसी प्रकार जारी रहा। यह वह मार्ग था जिसे उन्होंने अपनी साधना पद्धति के साथ अपनाया था। परिणामस्वरूप, साधना का अभ्यास शुरू करने के कुछ ही समय बाद, वे महान दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन करने में सक्षम हो गए। उनका बाहरी भाग पूरी तरह से किसी और चीज में परिवर्तित हो गया था। लेकिन इसके बारे में सब लोग सोचें: वर्तमान में, मैं सामान्य मानव समाज में इस फा को सिखा रहा हूं, और इसलिए मैं अभ्यासियों को साधारण मानव समाज में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दे सकता जब तक कि वे इसका एक भाग हैं। साथ ही, साधारण मानव समाज आपकी साधना के लिए एक वातावरण प्रदान कर सकता है, इसलिए हम ऐसे वातावरण में विघ्न नहीं डाल सकते। इसीलिए आप एक साधारण व्यक्ति के समान ही प्रतीत होते हैं। आपके पास समाज में एक काम और प्राप्त करने योग्य चीजें होनी चाहिए। लोग आपको सामान्य मानव समाज में साधना के अवसर प्रदान करेंगे। वे आपके लिए परेशानी खड़ी करेंगे और दुःख पैदा करेंगे, जिसके माध्यम से आप स्वयं को सुधार सकते हैं और कर्म को हटा सकते हैं। हर परीक्षा को अच्छे से पार करके आप स्वयं को ऊंचा उठाएंगे। इसलिए, इस वातावरण में विघ्न नहीं डाला जा सकता।

इस वातावरण में विघ्न न डालकर ही हम यहां साधना कर सकते हैं। फिर, ऐसी साधना पद्धति होनी चाहिए जो इस प्रकार के वातावरण के लिए उपयुक्त हो। इसको आपके लिए सूक्ष्म स्तरों की तुलना में सतह पर कम बदलाव करने होंगे। अतीत में, लोगों को सतही स्तर से शुरू करके रूपांतरित किया जाता था, लेकिन अब मैं सबसे सूक्ष्म स्तर से शुरू करके आपके अस्तित्व को बदल रहा हूं। लेकिन, मैं आपको बता दूँ कि अतीत में किसी ने भी इस प्रकार से ऐसा नहीं किया। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज के कुछ मनुष्य बहुत ऊंचे स्तर से आए हैं। यहां तक कि जो लोग आपको बचाने की इच्छा रखते थे, वे भी आपके जितने ऊंचे स्तर से नहीं थे, तो वे आपके मूल को कैसे परिवर्तित कर सकते थे? मैंने अभी जो कहा वह आप समझ गये होंगे। यह है कि अतीत में किसी ने ऐसा नहीं किया, लेकिन मैं अब यह कर रहा हूं। आपका मूल आपका सच्चा स्वरूप है। यह आपके मन और आपके विचारों का स्रोत है; आप जो कुछ भी करना चाहते हैं उसका उद्देश्य यहीं से उत्पन्न होता है। वही आपका सच्चा स्वरूप है। जो शब्द और सोचने का तरीका आप साधारण लोगों के बीच प्रदर्शित करते हैं, वे चीजें केवल सतही तौर पर स्तर दर स्तर व्यक्त की जाती हैं। जैसे-जैसे यह विभिन्न स्तरों से होकर गुजरता है, विभिन्न स्तरों और आयामों की धारणाएँ इसमें जुड़ जाती हैं। जब यह मानवीय स्तर पर पहुंचता है तो शब्दों, विचारों और व्यवहार के रूप में प्रकट होता है।

आपका सबसे सूक्ष्म भाग आपका सच्चा स्वरूप है, और मैं आपको सबसे सूक्ष्म स्तर से परिवर्तित करना शुरू करता हूँ। फिर भी इसका अर्थ यह नहीं है कि आपकी सतह का स्तर बिल्कुल परिवर्तित नहीं होता है। अंततः आप एक साधक हैं, और एक साधारण व्यक्ति से भिन्न हैं। इसलिए मुझे उन चीजों को दूर करना होगा जो आपकी साधना को प्रभावित कर सकती हैं और अधिकांश बुरी चीजों को हटाना होगा। मुझे उन रोगों को भी दूर करना होगा जो आपकी साधना को प्रभावित कर सकती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि फालुन गोंग जादू है; जिस क्षण आप इसका अभ्यास करते हैं, आपके रोग और पीडाएं दूर हो जाती हैं। हाँ वास्तव में, एक वास्तविक साधक में तुरंत परिवर्तन आ जाएगा। उनके रोग और पीडाएं तुरंत दूर हो जायेंगे। हालाँकि, यदि आप उनसे छुटकारा पाने के उद्देश्य से यहां आते हैं, तो आप इसे कभी प्राप्त नहीं कर पाएंगे, क्योंकि मैं यहां किसी साधारण व्यक्ति के लिए ऐसा करने के लिए नहीं आया हूं। मैं अपने साधकों को फलपदवी प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए ऐसा कर रहा हूं।

शिष्य: क्या यौन प्रेम की ऊर्जा को आध्यात्मिक शक्ति में परिवर्तित किया जा सकता है?

गुरुजी: मैं आप सभी को बता दूँ कि इसमें कोई शक्ति नहीं है। यह भावना और मानव शरीर की गर्मी से अधिक कुछ नहीं है। यह एक प्रकार का उत्साह है जो आपकी भावनाओं के प्रति शक्तिशाली मोहभाव और आपके मानव शरीर की प्रवृत्ति से उत्पन्न होता है। इस प्रकार के उत्साह के संबंध में, चिकित्सा क्षेत्र के लोग जानते हैं कि जब आप उस उत्साह तक पहुंचना चाहते हैं तो कैलोरी नामक पदार्थ की आवश्यकता होती है। एक बार इसका उपयोग हो जाने पर आप शांत हो जाएंगे और थकावट अनुभव करेंगे। आपने देखा होगा कि कैसे कुछ युवा इतने ऊर्जावान अनुभव करते हैं कि उन्हें हमेशा कुछ न कुछ करने की आवश्यकता होती है, और इसलिए जब वे चलते हैं तो वे उछलते भी रहते हैं। उनके शरीर में बहुत अधिक गर्मी होती है। इसलिए, यह शक्ति का एक रूप नहीं है और इसे कभी भी शक्ति का एक रूप न मानें।

शिष्य: जब हम ब्रह्मांड की सच्चाई के साथ तालमेल बिठाएंगे, तो हमारा अस्तित्व किस रूप में होगा?

गुरुजी: मैंने पहले कभी आपसे ऐसा कुछ नहीं कहा। आपने अन्य चीगोंग अभ्यासों से कुछ चीजें सीखी होंगी, जैसे कि ताओवादी विचारधारा का चीगोंग । जब कोई व्यक्ति जो कुछ भी करता है और उसका प्रत्येक विचार फा की आवश्यकताओं के अनुरूप होता है, वह एक ऐसा जीव है जिसने फलपदवी प्राप्त कर ली है। बहुत से लोग कहते हैं कि बुद्ध की कोई छवि नहीं होती। यह चीन के ज़ेन बौद्ध धर्म का सिद्धांत है—कोई बुद्ध नहीं और कोई छवि नहीं। इसलिए वरिष्ठ आचार्य बोधिधर्म ने स्वयं कहा कि उनका धर्म केवल छह पीढ़ियों तक ही हस्तांतरित किया जा सकता है, क्योंकि उसके बाद सिखाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। प्राचीन चीन से सांस्कृतिक क्रांति से पहले तक, ज़ेन बौद्ध धर्म को बौद्ध धर्म में "सींग की नोंक में खोदने" के रूप में माना जाता था। उन दिनों, ज़ेन बौद्ध धर्म और धर्म की अन्य विचारधाराओं के बीच हमेशा बहस होती रहती थी। वास्तव में, सोंग राजवंश 960-1279 ई. के बाद ज़ेन बौद्ध धर्म का अस्तित्व समाप्त हो गया, जिसका अर्थ है कि चीन में एक हजार वर्ष से भी पहले इसका अस्तित्व समाप्त हो गया था। फिर भी बाद की पीढ़ियों के लोगों ने हमेशा अनुभव किया कि वरिष्ठ आचार्य बोधिधर्म द्वारा सिखाए गए सिद्धांत साधारण लोगों के दर्शनशास्त्र के जैसे थे, इसलिए कुछ लोगों ने उन्हें एक दर्शनशास्त्र के रूप में माना है और इसे दर्शनशास्त्र के उच्चतम स्तर के रूप में माना है। कुछ लोग तर्कहीन और बेतुके ढंग से कार्य करते हैं, जैसे कि वे इसके दर्शनशास्त्र के मूल सिद्धांतों से परिचित हों। वास्तव में, यह समझ का बहुत निम्न स्तर है। क्योंकि यह निम्न है, साधारण व्यक्ति के लिए इसे स्वीकार करना सरल है।

बुद्ध की एक छवि होती है, लेकिन उनका शरीर अधिक सूक्ष्म कणों से बना होता है, वे कण भी पदार्थ से बने होते हैं, इसलिए मनुष्य इसे अपनी आँखों से नहीं देख सकते हैं। जो भी हो, केवल इसलिए कि आप इसे देख नहीं सकते इसका अर्थ यह नहीं है कि इसका अस्तित्व नहीं है। सम्पूर्ण विद्युत चुम्बकीय वर्णक्रम में मनुष्य केवल दृश्यमान प्रकाश ही देख सकता है, जो लगभग कुछ भी नहीं होने जैसा है। आप जो कुछ भी देखते हैं वह दृश्यमान प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है। जो दृश्यमान प्रकाश से परावर्तित नहीं हो सकता, उसे देखा नहीं जा सकता। क्या आप इसके अस्तित्व से इनकार कर सकते हैं? आजकल अमेरिका में कई शक्तिशाली खगोलीय दूरबीनें हैं। कई खगोलीय पिंड जो पाए गए हैं उन्हें केवल उस प्रकाश से देखा जा सकता है जो दृश्यमान प्रकाश से परे है, जैसे कि एक्स-रे, गामा किरणें, अवरक्त (इन्फ्रारेड) किरणें और पराबैंगनी किरणें। केवल उन परिस्थितियों में ही आप उनका अवलोकन कर सकते हैं। क्या आप कह सकते हैं कि उनका अस्तित्व नहीं है? यदि इन खगोलीय दूरबीनों के आविष्कार से पहले आपने दावा किया होता कि ये खगोलीय पिंड अस्तित्व में हैं, तो क्या हठी लोगों ने आप पर आँख बंद करके और बिना साक्ष्य के विश्वास करने का आरोप नहीं लगाया होता? यह बिल्कुल वैसा ही है जिसके बारे में हम आज बात कर रहे हैं; जब आप कहते हैं कि आपने बुद्धों के दिव्यलोक और स्वयं बुद्ध देखे हैं, तो कुछ लोग यह विश्वास ही नहीं करते कि यह संभव है। क्योंकि आपकी आँखें अणुओं से बनी हैं, परमाणुओं से नहीं, इसलिए आप परमाणु कणों की परत से बनी कोई भी चीज नहीं देख सकते। बुद्ध का शरीर परमाणुओं से बना है, तो आप इसे कैसे देख सकते हैं? कहने का तात्पर्य यह है कि वे दृश्यमान प्रकाश की सीमा के अंतर्गत नहीं हैं।

शिष्य: क्या पृथ्वी पर सभी जीव समाप्त हो जायेंगे? या फिर एक उचित समय पर बदलाव होगा?

गुरुजी: यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में मैं बात नहीं करता। मैं यहां इसके बारे में बात नहीं करता। यह सच है या नहीं, मेरे विचार से, आपको इसके बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। और ऐसा क्यों है? सभी लोग इसके बारे में सोचें: ब्रह्मांड में कुछ भी संयोग से अस्तित्व में नहीं है। यह केवल इतना है कि मनुष्य देवताओं के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते हैं, और फिर भी वे पूरे ब्रह्मांड में, हर स्थान पर अस्तित्व में हैं। मनुष्य कुछ भी करने का साहस करते हैं; उनकी नैतिकता चरम सीमा तक गिर गई है। सब लोग इसके बारे में सोचें. आजकल मनुष्य जो करना चाहते हैं वही करते हैं। वे लापरवाही से दूसरों की हत्या कर देते हैं। जब उनके पास बंदूकें होती हैं, तो वे लोगों को मारने का साहस करते हैं। उनके विचार और धारणाएं अनियंत्रित हैं। मानवीय नैतिकता में गिरावट के कारण लोग कुछ भी करने का साहस करते हैं। बहुत से लोग कहते हैं कि क्योंकि मनुष्य का इस हद तक पतन हो गया है, इसलिए संसार के विभिन्न भागों में अनेक आपदाएँ आ रही हैं। मनुष्य जितने बुरे होंगे, आपदाएँ उतनी ही अधिक होंगी।

दूसरी ओर, आज 10 करोड़ लोग दाफा का अध्ययन कर रहे हैं। चाहे कितने भी लोग फलपदवी प्राप्त कर पाएं, ये लोग कम से कम अच्छे मनुष्य तो बन ही गए हैं। यदि सब कुछ समाप्त हो गया तो इन अच्छे लोगों का क्या होगा? विशेष रूप से आज, यहां हर कोई साधना अभ्यास करने में सक्षम है और दाफा में साधना करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। इन अच्छे और नेक लोगों का क्या होगा? इसलिए मैं आप सभी से कह रहा हूं कि जब तक आप साधना का अभ्यास करते हैं, आपको अन्य चीजों के बारे में बिल्कुल भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। किसी भी आपदा के बारे में चिंता न करें। यदि कोई आपदा आ भी जाए, तो उसका आपसे कोई लेना-देना नहीं होगा। (तालियां) लेकिन बुरे लोग इससे बच नहीं पाएंगे।

शिष्य: गुरूजी ने कहा है कि एक प्रकार के व्यक्ति होते हैं जिनके जन्मजात पदार्थ और सहनशक्ति निश्चित होती है, इसलिए वे उच्च स्तर तक साधना नहीं कर पाते हैं।

गुरुजी: मानव समाज में, आज के लोग सभी भिन्न-भिन्न स्तरों से हैं। कुछ निम्न स्तर से हैं, इसलिए हो सकता है कि वे बहुत अधिक ऊंचाई तक साधना करने में सक्षम न हों। फिर भी उन्हें त्रिलोक से आगे जाने और फलपदवी प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। लेकिन वे चाहकर भी उच्च स्तर तक नहीं पहुंच पाते। किसी के लिए फा में साधना करना और फा प्राप्त करना कोई छोटी बात नहीं है। इस बार यह प्राणियों के अस्तित्व को पुनर्स्थापित कर रहा है, और यदि कोई व्यक्ति बहुत कुछ लेकर पैदा नहीं हुआ है, तो उसे पूरा किया जा सकता है। लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो फा पाने के योग्य भी नहीं हैं। और कुछ ऐसे भी हैं जो निश्चित रूप से फा प्राप्त नहीं कर सकते।

शिष्य: मुझे लगता है कि दाफा की महान शक्ति सब कुछ परिवर्तित कर सकती है। दाफा उन प्रकार के लोगों को क्यों परिवर्तित नहीं कर सकता?

गुरुजी: मैं आपको निम्नलिखित बता दूं। एक सामान्य बुद्ध, उदाहरण के लिए एक तथागत को लेते हैं : बुद्ध अमिताभ, बुद्ध शाक्यमुनि, जीसस या सेंट मैरी के हाथ के संकेत से मानव समाज में सब कुछ बदल जाएगा। उनमें इसे बदलने की शक्ति कैसे नहीं हो सकती है?? तो फिर वे ऐसा क्यों नहीं करते? ऐसा इसलिए है क्योंकि मनुष्यों ने बुरे कर्म किये हैं, और उन्होंने ये कार्य स्वयं ही किये हैं। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे ऐसा करना चाहते थे। यदि मैंने हाथ के संकेत से आपके कर्मों को हटा दिया और आपकी बुरी चीजें चली गईं, तो आप पलटकर वही बुरे काम करना एवं कर्म जमा करना जारी रखेंगे। तो फिर मैं ऐसा क्यों करूँ? यदि कोई मानवजाति को बचाना चाहता है, तो यह कोई मार्ग नहीं है। मनुष्यों को सिद्धांतों को समझने देना होगा और अपने ही हृदयों द्वारा स्वयं में परिवर्तन लाने देना होगा। यही वास्तव में लोगों को बचाना है। एक तथागत के पास भी इतनी महान शक्ति है, इसलिए ब्रह्मांड के इस दाफा के लिए किसी व्यक्ति को बदलना बहुत सरल है। पिछले दिनों मैंने आपको एक उदाहरण दिया था, एक साधारण सा उदाहरण: यह बिल्कुल पिघले हुए स्टील की भट्टी की तरह है। यदि बुरादे का एक कण भी इसमें गिर जाए तो वह पलक झपकते ही गायब हो जाता है। आपको इसका कोई निशान भी नहीं मिल सकता। इस दाफा के भीतर, मनुष्य बुरादे के उस कण की तरह हैं। मैं आपसे स्वयं की साधना करने के लिए क्यों कहता हूँ? यदि मैंने वास्तव में आपको दाफा के द्वारा फिर से बनाया और आपको स्वयं की साधना नहीं करने दी, तो सूक्ष्म स्तर से सतही स्तर तक आपका जीवन कभी भी आप नहीं होंगे। आपकी हर स्मृति, विचार और अस्तित्व का रूप बदल जाएगा। आपको पता नहीं होगा कि आप कौन थे। इसे पुनः सृजन कहते हैं। यह बहुत ही भयावह चीज है। यह लोगों को बचाना नहीं है। लोगों का उद्धार क्यों होना चाहिए? ऐसा नहीं है कि फा में ऐसी शक्ति नहीं है; बात यह है कि फा ने लोगों को ऐसा अवसर प्रदान किया है।

शिष्य: साधना के दौरान कोई व्यक्ति कष्टों से कैसे निपटता है? क्या आपने उसी तरह के कष्टों का अनुभव किया है जो हम अपनी साधना के दौरान अनुभव करते हैं?

गुरुजी: यह एक नए छात्र द्वारा उठाया गया प्रश्न है। मैं कभी भी अपने व्यक्तिगत मामलों के बारे में बात नहीं करना चाहता। फिर भी एक बात है जो मैं आपको बताना चाहता हूँ : आप लोग साधक हैं, लेकिन मैं नहीं। आपमें से प्रत्येक को बिना किसी अपवाद के एक साधक के मानकों का पालन करना होगा। आप सभी को फलपदवी के स्तर और मानकों तक अवश्य पहुंचना चाहिए। लेकिन, मैं आपके जैसा नहीं हूं। मैं आपको यह फा सिखाने के लिए यहां आया हूं। मैं जिन कष्टों को सहता हूँ वे सभी लोकों के जीवित प्राणियों के कष्ट हैं। मैंने जो अनुभव किया है उसे मैं किसी के साथ साझा नहीं कर सकता; आप इसे समझ नहीं पाएंगे। आपको लगता है कि साधना करना सरल है। मैंने आपसे बस इतना कहा है कि मैंने आपके कर्मों का आधा भाग हटा दिया है जिससे आप साधना कर सकें। लेकिन वास्तव में, जरा इसके बारे में सोचें : इस ब्रह्मांड में, क्या आपने अतीत में जो बुरे कर्म किए हैं, वे केवल इसलिए चुकता हो जाएंगे क्योंकि आपने साधना की है? मैंने निम्नलिखित कहा है। मैंने कहा है कि मैं जानता था कि यीशु को सूली पर क्यों चढ़ाना पड़ा। क्या उनके पिता यहोवा उन्हें छुड़ा नहीं सकते थे? क्या वे स्वयं को मुक्त करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग नहीं कर सकते थे? क्या उन्हें क्रूस पर कीलों से लटकाना आवश्यक था? ये चीजें वो नहीं हैं जिनकी आप कल्पना कर सकते हैं। लोगों को बचाना असाधारण रूप से कठिन काम है। कुछ लोग दूसरों के प्रति उन बुरे कामों के लिए ऋणी होते हैं जो उन्होंने साधारण जीवन में जन्म-जन्मान्तर किए हैं और इस प्रकार कर्म उत्पन्न किए हैं। ये ऋण उनसे सदैव जुड़े रहते हैं और जन्म-जन्मान्तर तक इससे मुक्ति नहीं हो पाती। हालाँकि, जब कुछ लोग उन स्तरों से नीचे गिर गए, तो उन पर विभिन्न स्तरों के ऋण चढ़ गए, और ये देवताओं को चुकाने वाले ऋण थे। वे उनका भुगतान कैसे कर सकते थे? इसलिए मनुष्यों को बचाना कोई साधारण बात नहीं है। कुछ धर्मों के लोग कहते हैं कि एक बार जब वे साधना पूरी कर लेंगे तो वे लोगों को बचा लेंगे। मैं कहता हूं कि यह एक मोहभाव है। वे मनुष्य को बांधने वाले कर्म के उलझे हुए जाल को कैसे सुलझा सकते हैं? कर्म के वे जाल उद्धारकर्ताओं के स्तर से बहुत ऊपर और परे तक जाते हैं। क्या मनुष्यों को बचाना इतनी सरल बात है?! इस बारे में मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा।

शिष्य: गुरूजी, कृपया हमें बताएं कि हम आपकी पूजा करने से स्वयं को कैसे रोक सकते हैं।

गुरुजी: मैं आपकी भावनाओं को पूरी तरह समझता हूं। आप ऐसे हैं क्योंकि आप जानते हैं कि मैंने आपको क्या दिया है और मैंने आपको किस चीज से छुटकारा दिलाया है जिससे आपको कर्म से भरे साधारण लोगों से साधकों में बदला जा सके; मैं आपकी कृतज्ञता की भावनाओं को पूरी तरह समझता हूं। कुछ लोग गुरू के प्रति अपना सम्मान दर्शाने के लिए कोई धार्मिक क्रिया करना चाहते हैं। मैं यह नहीं कह सकता कि आपको मेरा आदर नहीं करना चाहिए, क्योंकि अततः मैं आपका गुरु हूँ। आपको मेरा सम्मान करना चाहिए। फिर भी, मैं प्रारुप पर बल नहीं देता। कुछ शिष्यों में अन्य शिष्यों की तरह समझ का उच्च स्तर नहीं होता है और यदि वे गुरु के प्रति अपना सम्मान दिखाने के लिए कुछ नहीं करते हैं तो वे ऋणी अनुभव करते हैं। और वास्तव में, उन्होंने कुछ भी अनुचित नहीं किया है। लेकिन मैंने एक सिद्धांत के बारे में बात की है : कुछ लोगों को लगता है कि जब तक वे बुद्ध की पूजा करते हैं और कई मंदिर बनाते हैं, तभी ही वे बुद्ध बनने में सक्षम होंगे। मैं कहूंगा कि यह एक उपहास है। बुद्ध शाक्यमुनि ने कहा था कि उद्देश्य-युक्त फा साबुन के बुलबुलों की तरह क्षणभंगुर है। वे उद्देश्य से भरी गतिविधियाँ हैं, और कुछ भी नहीं हैं। यह लोगों को केवल साधारण लोगों का कुछ सद्गुण संचय करवा सकता है। क्या आपको लगता है कि आपने जो मंदिर बनाया है वह बुद्धों के लिए है? अब जब आपने मंदिर बना लिया है तो क्या बुद्धों को आना पड़ेगा? आप कह सकते हैं कि क्योंकि आपने मंदिर बनाया है तो बुद्ध को आना ही पड़ेगा। क्या बुद्धों को आपकी आज्ञा मानकर आना चाहिए? यह उस तरह से काम नहीं करता। कुछ लोग झुककर प्रणाम करते हैं और सोचते हैं, "क्योंकि मैंने आपको प्रणाम किया है, इसलिए आपको मुझे आशीर्वाद देना होगा और मेरी रक्षा करनी होगी और मुझे फलपदवी प्राप्त करवानी होगी।" आप सोचते हैं कि बुद्धों के पास साधारण मानव मन होता है—आप सोचते हैं कि मुझे प्रसन्न होना चाहिए क्योंकि आप मेरा सम्मान करते हैं और मुझसे अच्छी बातें कहते हैं! क्या आपको लगता है कि मैं साधारण संसार में सत्ता में बैठे किसी व्यक्ति की तरह व्यवहार करूंगा, जहां यदि आप मेरे चारों ओर मंडराते हैं और दिन रात मेरी चापलूसी करते हैं, तो मैं आपका एक समूह बनाने और आपको वेतन वृद्धि देने के लिए बाध्य हो जाऊंगा? मनुष्यों ने बुद्धों को मानवीय और भावनात्मक मान लिया है। वे बिल्कुल भी ऐसे नहीं हैं। इसलिए मैंने आपसे मेरे साथ एक निश्चित तरीके से व्यवहार करने के लिए नहीं कहा है। लेकिन कुछ स्थानों पर, उदाहरण के लिए, कुछ छात्र अपने स्थानीय रीति-रिवाजों के आदी हो चुके हैं। वे सोचते हैं कि ये अच्छी प्रथाएँ हैं। मैं यह नहीं कह सकता कि वे गलत हैं, लेकिन हमारा दाफा प्रारुप पर ज़ोर नहीं देता।

मैंने इस विषय पर कई बार बात की है। तो फिर आपको इसे कैसे संभालना चाहिए? अपने मन की सुनो। दूसरी ओर, यदि हमारे पास इस अनुभव-साझाकरण सम्मेलन का ऐसा स्वरूप नहीं होता जैसा कि हम आज यहां कर रहे हैं तो यह काम नहीं करता। आप एक साथ साधना कर रहे हैं, और इस क्षेत्र में प्रवेश करने पर आपको लगता है कि यह शांत और सामंजस्यपूर्ण है। किसी के मन में कोई बुरे विचार नहीं उत्पन्न होते। जो उत्सर्जित होती हैं वे करुणामयी और बहुत अच्छी ऊर्जाएँ होती हैं। वे सभी विषय जिनके बारे में हर कोई बात करता है वे साधना से संबंधित होते हैं, और इस बारे में कि वे कैसे बेहतर कर सकते हैं। हम जो करते हैं यह वातावरण उसका अभिन्न अंग है। अनुभव साझा करने के माध्यम से, सभी को अपनी कमियों का पता लग सकता है, और दूसरों को परिश्रमी होने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। यह बहुत अच्छा स्वरुप है। इसके अतिरिक्त, यह स्वेच्छा से आयोजित किया जाता है : कुछ अभ्यासी सम्मेलन भवन के किराये का भुगतान करते हैं; कुछ लोग सामग्री छपवाने के लिए भुगतान करते हैं; जबकि अन्य लोग कुछ अन्य काम करवाने के लिए भुगतान करते हैं। आप सभी इसे इसी प्रकार करते हैं। एक स्वयंसेवक केंद्र बिल्कुल भी पैसा जमा नहीं करता है। कुछ करने के बाद, उसे करने वाला अभ्यासी उसे अगले को सौंप देता है और यह पूरा हो जाता है। यह साधारणतः इसी प्रकार काम करता है।

मुझे याद है एक बार एक समाचार पत्र ने मेरे बारे में एक कहानी लिखी थी। इसमें कहा गया था कि ली होंगज़ी ने पैसे नहीं मांगे थे, लेकिन उनके एक शिष्य ने न्यूयॉर्क शहर में अनुभव-साझाकरण सम्मेलन आयोजित करने के लिए एक सम्मेलन भवन किराए पर लेने के लिए पैंतीस हजार डॉलर का भुगतान किया था। उस अभ्यासी का मन उचित अवस्था में था; उसने महान फा और पवित्र अनुभव साझा करने वाले सम्मेलन के लिए ऐसा किया, और उसके मन में, सर्वोत्तम स्थान ही दाफा के लिए योग्य था। मनुष्य सभी प्रकार की असभ्य और अवैध गतिविधियों पर भारी मात्रा में पैसा खर्च करते हैं, तो वह इतने पवित्र और भव्य अनुभव साझा करने वाले सम्मेलन के लिए एक अच्छा स्थान किराए पर क्यों नहीं ले सकता? लेकिन फिर भी, आप सभी को भविष्य में सावधान रहना चाहिए और पूरा प्रयत्न करना चाहिए कि महंगे सम्मेलन भवन किराए पर न लें। हमें भविष्य में इस विषय में और अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है। अमेरिका में पैंतीस हजार डॉलर शायद बहुत अधिक न लगें, फिर भी चीन में यह कुछ लाख युआन होते है। लेकिन जो भी हो, मैंने एक पैसा भी नहीं देखा, उसका निशान भी नहीं। शिष्य ने केवल पैंतीस हजार डॉलर का चेक लिखा और उस सम्मेलन भवन को किराए पर ले लिया। लेन-देन पूरा करने के बाद, उसने स्वयंसेवक केंद्र को बताया कि स्थान किराए पर ले लिया गया है और उस दिन के उपयोग के लिए इसका मूल्य पैंतीस हजार डॉलर था। केवल इतना ही था। उसने वास्तव में पैंतीस हजार डॉलर खर्च किये, और यह उसके पूरे मन, दाफा के प्रति उसकी निष्ठा दर्शा रहा था!

इस अवसर पर मैं कुछ और कहना चाहता हूं क्योंकि यहां कुछ पत्रकार उपस्थित हैं। कुछ लोग आश्चर्य करते हैं, "क्या ली होंगज़ी करोड़पति हैं?" आप मुझे करोड़पति, अरबपति या खरबपति मान सकते हैं। यह ठीक है, क्योंकि मेरे पास जो कुछ है वह संसार के सारे धन और संपत्ति से अधिक मूल्यवान है। (लंबे समय तक तालियाँ)

वास्तव में, यदि आप इसे दूसरे दृष्टिकोण से देखें, तो क्या इससे कोई अंतर पड़ता है कि मेरे पास पैसा है या नहीं? यदि मेरे पास पैसा होता तो भी मुझे इसकी परवाह नहीं होती। उदाहरण के लिए, 10 करोड़ शिष्य फा का अध्ययन कर रहे हैं, और यदि मैं अब आप सभी से मुझे एक डॉलर देने के लिए कहूं—इसके बारे में सोचें—यदि आप सभी मुझे एक डॉलर देते हैं, तो मैं दस-करोड़पति बन जाऊंगा। इसके अतिरिक्त, क्योंकि आप सभी इसे किसी भी समय मुझे देने को तैयार हैं, आप मुझे दस-करोड़पति ही मान सकते हैं! कुछ लोग मेरी जांच करने के लिए और पुस्तकें बेचने से मैंने कितना अर्जित किया है यह पता लगाने के लिए हर स्थान पर गए हैं। मैं आप सभी को बता सकता हूं कि हर बार जब मेरी पुस्तकें चीन में आधिकारिक प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की जाती थीं तो रॉयल्टी भुगतान कुछ हजार युआन होता था। कुल राशि 20 हजार युआन से कुछ अधिक थी, जो लगभग कुछ हजार अमेरिकी डॉलर है। बस इतना ही। क्योंकि प्रकाशक इसी राज्य के हैं, वे अन्य देशों के प्रकाशकों की तरह रॉयल्टी नहीं देते हैं। वे आपको बस इतना ही भुगतान करते हैं। अन्य स्थानों पर प्रकाशित पुस्तकों के लिए, अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद वे लेखक को 5 प्रतिशत, 6 प्रतिशत, 7 प्रतिशत या अधिकतम 8 प्रतिशत की रॉयल्टी का भुगतान करते हैं। मुझे जो मिला वह बहुत कम था, लेकिन मैं मूल रूप से रॉयल्टी के पैसे पर जीवन यापन करता हूं। मैं आपको बताना चाहता हूं : इस विषय से मोह नहीं रखिये। आपके लिए इसकी जांच करना व्यर्थ है। मैं केवल धन अर्जित करने के लिए इतना प्रयास क्यों करूंगा? मुझे बस आप सभी से यह कहना होगा कि मुझे दस डॉलर दीजिए, तो मैं अरबपति बन जाऊंगा। यह कितना तेज और सरल तरीका होगा! आप सभी इसे मुझे देकर प्रसन्न होंगे और मैं इसे खुले रूप से प्राप्त कर सकूंगा। मैं इतना अधिक प्रयास क्यों करूँ? मुझे लगता है कि कई बार लोगों के ध्येय अपवित्र होते हैं। वे चीजों को बहुत ही संकीर्ण सोच और मूर्खतापूर्ण तरीके से लेते हैं।

शिष्य: जब आप कर्म को हम में से हटा देते हैं तो वह कहां जाता है?

गुरुजी: मैं इसे आपके लिए नष्ट कर देता हूँ। (तालियाँ) मनुष्यों को बचाना बहुत कठिन है। मुझे याद है कि मैंने एक बार फा सम्मेलन में आपसे कहा था कि कोई ऐसा व्यक्ति था जिसे अपने जीवन में कभी न कभी आघात होना तय था। यह उसके कर्मों के कारण भुगतान था, इसलिए उसे यह होना ही था, फिर भी जब उसने दाफा का अध्ययन किया (ऐसा नहीं है कि आपको दाफा का अध्ययन करने के बाद किसी भी कर्म के लिए भुगतान नहीं करना पड़ता है; यह उस प्रकार काम नहीं करता है), मैंने उसके लिए बहुत सी चीजें हटा दीं, जिससे वह इसे सरलता से सहन कर सके। लेकिन स्थिति को तो प्रकट होना ही होता है। एक दिन वह अचानक जमीन पर गिर पड़ा और उसमे आघात के लक्षण दिखे, लेकिन उसने स्वयं को अभ्यासी नहीं माना। ऐसा होकर भी, उसका कर्म नष्ट हो गया था, अर्थात यह उतना गंभीर नहीं था। यदि वह स्वयं को अभ्यासी मानता और सब कुछ होते हुए भी खड़ा हो जाता, तो वह तुरंत ठीक हो जाता। परीक्षा इस प्रकार होनी थी, फिर भी वह उत्तीर्ण नहीं हुआ। हालाँकि यह उतनी कठिन नहीं थी जितनी हो सकती थी, फिर भी वह इसे उत्तीर्ण नहीं कर सका। फिर भी, परीक्षा वास्तव में उतनी कठिन नहीं थी, इसलिए वह तीन दिन बाद बिस्तर से उठने में सक्षम था और एक सप्ताह बाद चलने में सक्षम था। एक माह बाद ऐसा लगा मानो उसे कुछ हुआ ही न हो। हर कोई जानता है कि कोई भी आघात से इतना शीघ्र ठीक नहीं हो सकता, चाहे उनको अस्पताल में उपचार मिला हो। और फिर भी, उन्होंने पूछा, "अब जब मैंने फालुन गोंग सीख लिया है, तो फिर भी मुझे आघात क्यों हुआ?" यह तब था जब मैंने फा को सिखाना शुरू ही किया था। तब मैंने सोचा कि मनुष्यों को बचाना वास्तव में बहुत कठिन है। वह नहीं जानता था कि जब मैंने उसके लिए कष्ट सहा तो मुझे विष का कटोरा पिलाया गया। (तालियाँ)

शिष्य: भावनाएँ धारणाओं के माध्यम से प्रभावी होती हैं। आधुनिक विकृत मानव की विकृत धारणाएँ भावनाओं का दुरुपयोग कर रही हैं।

गुरुजी: ऐसा नहीं है कि विकृत धारणाएँ भावनाओं का दुरुपयोग कर रही हैं; यह है कि मनुष्य अब किसी भी चीज में विश्वास नहीं करता है और किसी भी नैतिकता से अब नियंत्रित नहीं होता है। अतीत में हर कोई जानता था कि धर्म है। मनुष्यों को कम से कम यह तो पता था कि यदि उन्होंने कुछ बुरा किया तो उन्हें दण्डित किया जायेगा। हालाँकि, आधुनिक मनुष्य, विशेषकर युवा लोग सोचते हैं कि यह हास्यजनक है। कैसा दंड? भगवान कहाँ है? वे इस पर विश्वास नहीं करते। वे विश्वास नहीं करते कि देवताओं का अस्तित्व है। हर कोई इसके बारे में सोचें : वे नहीं जानते कि जब वे बुरे काम करते हैं तो देवता उन्हें देख रहे होते हैं। वे नहीं जानते कि बुरे काम करने पर उन्हें दण्डित किया जायेगा। इन प्रतिबंधों के बिना, क्या वे कुछ भी करने का साहस नहीं करते—हत्या, आगजनी और हर कल्पनीय अपराध करने का?

प्राचीन मनुष्यों, अतीत के लोगों के उच्च नैतिक मूल्य क्यों थे? मनुष्य वास्तव में बहुत अयोग्य हैं, इसलिए ऐसा नहीं है कि उनके पास वास्तव में बहुत उच्च नैतिक मूल्य थे; यह केवल इतना है कि वे विश्वास करते थे और जानते थे कि बुरे काम करने पर दण्डित किया जायेगा और अच्छे काम करने पर पुरस्कार मिलेंगे। वे जानते थे कि मनुष्य को जीवन में दयालु होना चाहिए। अपने मन में इन नियंत्रणों के न होने पर, आजकल मनुष्यों के लिए चर्च जाना वह है जो केवल सुसंस्कृत लोग ही करते हैं। वे मंदिरों में जाने को धन, बेटे और सुरक्षा की प्राप्ति के साथ-साथ कष्टों से छुटकारा पाने और दूर करने का साधन मानते हैं। उनमें वास्तव में आस्था नहीं है। इसके बारे में सोचें, क्योंकि आज का समाज नैतिक संयम के विषय में पूरी तरह से नियंत्रण से बाहर है, तो क्या मनुष्य कुछ भी करने का साहस नहीं करेगा? वे अपना सारा जोर स्वयं के व्यक्तित्व पर लगाते हैं : "मैं जो चाहूँ वही करूँगा।" आप जो चाहेंगे वही करेंगे; आपको लगता है कि यह बहुत अच्छा है, लेकिन देवताओं को नहीं लगता कि यह अच्छा है। यह मत भूलिए कि आपको देवताओं ने बनाया है। जब देवता सोचते हैं कि आप अच्छे नहीं हैं, तो वे आपको छोड़ देंगे और नष्ट कर देंगे!

शिष्य: अतीत में, ब्रह्माण्ड में रहने वाले प्राणियों को ब्रह्माण्ड के नियम के बारे में पता नहीं था। क्या भविष्य के ब्रह्मांड में प्राणी, जिनमें वे शिष्य भी सम्मिलित हैं जिन्होंने फल पदवी प्राप्त कर ली होगी, उन स्तरों के सभी फा सिद्धांतों को जानने में सक्षम होंगे जिनमें वे रहते हैं?

गुरुजी: आप जो जानते हैं और जो समझते हैं, मैं आपको बता सकता हूं, वह वही है जो आपने स्वयं पुस्तकें पढ़कर फा के आधार पर समझा है। आप जो समझते हैं वह केवल वह भाग है जिसे ब्रह्मांड के महान नियम ने आपको समझने की अनुमति दी है। आपको वास्तविक फा को जानने की अनुमति नहीं है। यह न केवल मनुष्यों के लिए सच है, बल्कि ब्रह्मांड में सभी जीवों को इस फा के अस्तित्व के विशिष्ट स्वरूप को जानने की अनुमति नहीं है। मैंने जो किया है वह केवल साधारण लोगों की भाषा और सोचने के तरीकों का उपयोग करके आपको यह सामान्य तौर पर सत्य बताना है। लेकिन आपको इसके अस्तित्व के वास्तविक स्वरूप को जानने की अनुमति नहीं है। आपकी चेतना में एक निश्चित विचार हो सकता है, और भविष्य में आपको पता चलेगा कि ब्रह्मांड में एक फा है। लेकिन आपके पास यह जानने का कोई मार्ग नहीं होगा कि यह विशेष रूप से क्या है। क्योंकि विभिन्न स्तरों पर और विभिन्न लोकों में रहने वाले प्राणी उन लोकों की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में होते हैं, इसलिए एक व्यक्ति अपने स्तर पर देवता हो सकता है, साथ ही साथ वह एक साधारण व्यक्ति भी हो सकता है, उस देवता की दृष्टि में जो उससे कहीं अधिक उच्च होता है। जितना उच्च स्तर, उतना उच्च मानक।

शिष्य: यदि मैं पवित्र मन से जुआन फालुन को पढ़ता हूं, समस्याओं का सामना करते समय अपने अंदर झांकता हूं, और स्वयं की स्पष्टता और पवित्रता से साधना करता हूं, तो क्या यह परिश्रमी होने के रूप में गिना जायेगा?

गुरुजी: यह निश्चित रूप से परिश्रमी होने का संकेत है। यदि आप ऐसा कर सकते हैं, तो यह परिश्रमी होने का संकेत है। यदि आप फलपदवी प्राप्त करना चाहते हैं, तो पार करने के लिए कठिनाइयां हो सकती हैं। मैं जानता हूं कि आप शिष्यों को फा के बारे में बहुत गहरी समझ है। मैं टेलीविजन के माध्यम से आपके भाषण सुन रहा था, और मैं कहूंगा कि सभी शिष्य परिपक़्व हो गए हैं। यह ऐसा है। चीन में शिष्य बहुत परिपक़्व हैं, क्योंकि उन्होंने कुछ वर्ष पहले ही परिश्रमी होना शुरू कर दिया था। आज, चीन के बाहर भी बड़ी संख्या में शिष्य तेजी से परिपक़्व हो गए हैं। आप फा के आधार पर फा के बारे में बात करने में सक्षम हैं। यह बहुत अच्छा है।

शिष्य: "हम एक धर्म नहीं हैं लेकिन मानव जाति भविष्य में हमें एक धर्म के रूप में मान सकती है।" फा को फैलाने के क्रम में लोगों को ऐसा न समझने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

गुरुजी: क्षेत्रों के आधार पर परिस्थितियाँ भिन्न होती हैं। फा का प्रसार करते समय आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए। आप चाहते हैं कि अन्य लोग फा प्राप्त करें—आप चाहते हैं कि वे लोग फा प्राप्त करें जो पूर्वनिर्धारित हैं लेकिन जिन्होंने अभी तक फा प्राप्त नहीं किया है। आपको समाज में इस पर विशेष ध्यान देना होगा। लोगों को यह आभास न होने दें कि यह एक धर्म के जैसा है। दूसरी ओर, मैंने यह भी देखा है कि आधुनिक पश्चिमी लोगों के लिए, वे कहते हैं कि यदि लोग किसी चीज का अभ्यास करते हैं या एक साथ मिलकर काम करते हैं तो वह एक धर्म है। उनकी धर्म की कोई निर्धारित अवधारणा नहीं होती है।

शिष्य: क्या साधना के माध्यम से प्राप्त की गई फलपदवी का स्तर सीधे तौर पर जीवन और मृत्यु की उस परीक्षा से संबंधित है जिससे एक अभ्यासी गुजरता है?

गुरुजी: मैंने ऑस्ट्रेलिया के फा सम्मेलन में इस विषय पर बात की थी। वास्तव में, आपकी साधना के दौरान, आप फलपदवी प्राप्त कर सकते हैं या नहीं, यह अंतिम क्षण में निर्धारित नहीं होता है, बल्कि आपकी साधना के दौरान निर्धारित होता है। जब व्यक्ति ऐसा करने में सक्षम होने के पास होगा, तो यह निर्धारित करने के लिए परीक्षाएं शुरू हो जाएंगी कि क्या वह फलपदवी प्राप्त करेगा। इसलिए ये बहुत महत्वपूर्ण हैं। जब तक आप एक साधक हैं, आप निश्चित रूप से इसका सामना करेंगे। एक मनुष्य के लिए, यह परीक्षा वास्तव में जीवन और मृत्यु की परीक्षा है। निश्चित ही, हर कोई ऐसी स्थिति में नहीं आएगा जहां कोई आपको मारने या कुछ ऐसा करने का प्रयत्न करेगा। आवश्यक नहीं है कि यह वैसा ही हो। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसा मैंने एक उदाहरण में वर्णन किया किया था। मैंने कहा था कि महत्वपूर्ण क्षणों में, कुछ लोग अपना भविष्य, नौकरी और व्यवसाय छोड़ने में सक्षम होते हैं। यदि ऐसा है, तो क्या ये लोग इस परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हुए? मनुष्य किसके लिए जीते हैं? क्या वे साधारण लोगों के बीच अच्छे भविष्य और संतोषजनक आजीविका के अवसर के लिए नहीं जीते हैं जिससे वे अपने सपनों को पूरा कर सकें? वे कुछ चीजें प्राप्त करना चाहते हैं। जब ये चीजें उनके सामने रखी जाती हैं, तो क्या चुनौती आने पर वे उनसे बाहर निकल सकते हैं? यदि वे उनसे दूर जा सकते हैं, तो क्या उन्होंने जीवन और मृत्यु की परीक्षा पार नहीं कर ली है? क्या मनुष्य उन चीजों के लिए नहीं जीते हैं? जब वे इन्हें छोड़ सकते हैं, तो क्या वे जीवन के प्रति मोहभाव को छोड़ने में सक्षम नहीं हैं?

क्या महत्वपूर्ण क्षणों में कोई व्यक्ति जीवन के प्रति मोहभाव छोड़ सकता है, तथाकथित "खुशी" खोने का डर छोड़ सकता है और वह कदम उठाकर मोहभाव छोड़ सकता है? क्या यह आपके लिए नियोजित परीक्षा नहीं है? मैंने बार-बार कहा है कि कुछ भी संयोग से नहीं होता। कुछ लोग वह कदम क्यों उठा सकते हैं, जबकि अन्य नहीं? वे यह भी सोचते हैं कि वे जो कहते हैं वह उचित है और दूसरों को इसके बारे में सहमत करने का प्रयत्न करते हैं।

शिष्य: क्या यह कहना उचित है कि धारणाओं का अस्तित्व कर्म के कारण हैं और कर्म के बिना, कोई धारणाएँ नहीं होंगी?

गुरुजी: दोनों के बीच का संबंध इस प्रकार है : जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है, तो उसका मन शुद्ध होता है। उसके पास लोगों के ऐसे कोई विशिष्ट विचार नहीं होते हैं जो बाद में अवश्य ही बनने वाले होते हैं। मनुष्य सोचते हैं कि कुछ चीजें अच्छी हैं और कुछ अच्छी नहीं हैं, और चीजों को कुछ विशिष्ट तरीकों से किया जाना चाहिए। धीरे-धीरे मनुष्य अपनी धारणाएँ बना लेते हैं। कुछ लोग अपने बच्चों को यह भी सिखाते हैं कि अपना और अपने हितों का कैसे ध्यान रखना है, और दूसरे लोगों से कैसे निपटना है। वे जानबूझकर अपने बच्चों को बुरे मनुष्य बनना सिखाते हैं और जो कुछ वे सिखाते हैं उसे बच्चों के सीखने के लिए अच्छा अनुभव मानते हैं। यदि एक साधारण वयस्क के रूप में आपकी ये धारणाएँ नहीं हैं, तो आप अधिक विवेकशील हैं, और आप हर चीज के बारे में स्पष्ट और जागरूक हैं। निर्णय लेते समय आप किसी भी धारणा में नहीं फँसते। आप जिस भी चीज का सामना करते हैं और जो कुछ भी देखते हैं, उसके बारे में आपको एक ही दृष्टि में स्पष्ट हो जाता है। वही आपका सच्चा स्वरूप है और वही विवेक है।

जब कोई व्यक्ति अपने मस्तिष्क का उपयोग करना और सामने आने वाली समस्याओं को हल करना जानता है, तो उसे ही साधारण लोग बुद्धिमान कहते हैं; यह बुद्धिमत्ता नहीं है। यह स्वयं के हितों की रक्षा के लिए उपयोग की जाने वाली चालाक और धूर्त चीज है और यह जन्म के बाद प्राप्त विभिन्न धारणाओं से बनी है। यह स्वयं ही बुरे काम कर सकती है और आपको कर्म उत्पन्न करने के लिए निर्देशित कर सकती है। ये धारणाएँ इसलिए बनती हैं क्योंकि आप अपने हितों की रक्षा करना चाहते हैं। जब ये धारणाएँ बुरे कार्य करती हैं तो कर्म उत्पन्न होता है। धारणाएँ आपके कार्यों को प्रेरित करती हैं। जब आप कुछ करते हैं तो कर्म उत्पन्न होता है, फिर भी कर्म कोई धारणा नहीं है। कुछ लोग सोचते हैं कि वे बहुत अच्छा जीवन जीते हैं; दूसरे लोग स्वयं को बहुत चतुर और सक्षम समझते हैं। वे थोड़ा सा लाभ पाने के लिए दूसरों के विरुद्ध कड़ी प्रतिस्पर्धा करते हैं। वास्तव में, मुझे लगता है कि वे बहुत कष्ट में रहते हैं। वे नहीं जानते कि वे किसलिए जीते हैं। वे सोचते हैं कि वे चतुर हैं। कभी-कभी जब वे कुछ करते हैं तो उन्हें लगता है कि यह काम उनका मस्तिष्क कर रहा है। वस्तुतः उनकी धारणाएँ उनके कार्यों को निर्देशित कर रही होती हैं और उन्हें नियंत्रित कर रही होती हैं। उन लोगों की अपनी वास्तविक प्रकृति नहीं होती है। समाज के अधिकांश लोग इसी अवस्था में लटके हुए हैं। क्या वे अपने वास्तविक रूप में जी रहे हैं? मनुष्य ऐसे ही हैं और वे स्वयं को इससे मुक्त नहीं कर सकते। इसलिए, धारणाएं तो अवश्य ही बनेंगी, लेकिन उसकी मात्राएं भिन्न-भिन्न होंगी।

शिष्य: मनुष्य, यद्यपि सभी एक ही स्तर पर हैं, अपनी मूल प्रकृति और उत्पत्ति में बहुत भिन्न हैं। क्या यह सत्य है कि मनुष्यों जो निम्न स्तरों से नीचे गिर गए हैं उनके पास वह मूल पदार्थ नहीं होता जो उच्च स्तरों के प्राणियों के पास होता है?

गुरुजी: सभी मनुष्य मनुष्यों के आयाम में हैं, फिर भी उनके मूल भिन्न-भिन्न हैं। इसलिए, कुछ लोगों के पास वे अधिक सूक्ष्म कण नहीं होते हैं जो उच्च लोकों के जीवों के मूल का निर्माण करते हैं, जिसका अर्थ है कि जीवन का निर्माण करने वाले सबसे मूल कण भिन्न होते हैं। कुछ प्राणी इतने उच्च आयाम के नहीं हैं और इतने सूक्ष्म नहीं हैं; यह ऐसा है। यहाँ यह एक अंतर है।

लेकिन आपमें से जो लोग यहां बैठे हैं उन्हें इस बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है। आप चिंतित हैं कि आपका जीवन दूसरों के जितना सूक्ष्म नहीं है, इसलिए आप उस उच्च स्तर तक साधना नहीं कर सकते। वास्तव में, आप इस बारे में मानवीय मन से सोच रहे हैं। सबसे मूल बात यह है कि क्या आप वापस लौट सकते हैं और फलपदवी प्राप्त कर सकते हैं। जब आप फलपदवी प्राप्त कर लेते हैं और आप वास्तव में वापस लौट सकते हैं, तो आप पाएंगे कि अब आपके इस प्रकार के विचार नहीं रहे हैं। ब्रह्माण्ड बहुत विशाल है और जहाँ तक आपकी समझ से परे की चीजों तक पहुँचने की बात है, तो चीजें वैसी नहीं हैं जैसी आप सोचते हैं। वे बिल्कुल उस प्रकार नहीं हैं। उदाहरण के लिए : कुछ लोगों को हमेशा लगता है कि उनका घर सबसे अच्छा है, चाहे वे कहीं भी जाएं। वे घर वापस जाना चाहते हैं। यह तुलना उतनी उपयुक्त नहीं है, लेकिन यहां मुद्दा यह है कि आपके मानवीय विचार नहीं होंगे और आपको लगेगा कि आपका स्थान सबसे अच्छा है। किसी भी अन्य स्थान की तुलना नहीं की जा सकती और कोई भी अन्य स्थान उतना अच्छा नहीं हो सकता, चाहे वह कितना भी उच्च क्यों न हो। इसमें सोचने का बिल्कुल भिन्न तरीका सम्मिलित है।

शिष्य: हम अपने मूल, सच्चे स्वरूप में लौटने के संकेतों और अपने मोहभावों के कारण केवल कुछ अलग दिखने के लिए कुछ नया करने के संकेतों के बीच अंतर कैसे कर सकते हैं?

गुरुजी: तर्क का प्रयोग करें और इसे फा के प्रकाश में देखें। जो चीजें फा के अनुरूप नहीं हैं, और दाफा के लिए काम करते समय प्रदर्शित किया जाने वाला साधारण लोगों का व्यवहार, दोनों से छुटकारा पाना चाहिए। किसी विशिष्ट चीज पर काम करते समय, जैसे कि फा का प्रसार करना, किसी के पास एक अच्छा दृष्टिकोण हो सकता है जिससे अधिक लोग फा प्राप्त कर सकें, और साथ ही, दाफा की छवि को हानि न पहुंचाएं और न ही दूसरों को फा का अध्ययन करने के लिए विवश करें। यह स्वाभाविक और उचित है। इसका मोहभाव और केवल अलग दिखने के लिए कुछ नया करने से कोई लेना-देना नहीं है। अन्य लोगों को फा प्राप्त करने देने के लिए विभिन्न तरीकों का प्रयास करना वास्तव में उद्धार करना है। यह और फलपदवी प्राप्त करने के बाद अपने जीवन के मूल पर लौटने की इच्छा का विचार, मोहभाव के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। मैं आप सभी को बता दूँ कि आप साधना करने की प्रक्रिया में हैं; आपमें से प्रत्येक व्यक्ति साधना कर रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि आप सभी में साधारण मानवीय मोहभाव हैं। जब आपके द्वारा उठाए गए प्रश्नों, जिन चीजों के बारे में आप सोचते हैं, आप दूसरों के बारे में कैसे बात करते हैं, आप एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं और यहां तक कि स्वयं के साथ भी, इसमें मोहभाव सम्मिलित हो सकते हैं, क्योंकि आप में से प्रत्येक के पास एक साधारण व्यक्ति के समान मोहभाव हैं। यदि कोई प्रसिद्धि और लाभ की चाह में दाफा का कार्य करता है, तो मैं कहता हूं कि वह उस मोहभाव से छुटकारा पाए बिना फलपदवी प्राप्त नहीं कर सकता है। और यदि आप निष्ठा से दाफा के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो आपको दाफा को महत्त्व देना चाहिए और बाद में अपने विचारों को। यदि आप हमेशा स्वयं को महत्त्व देते हैं और दाफा की उपेक्षा करते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि यह उचित है। दाफा को प्राथमिकता देनी चाहिए।

शिष्य: सत्य, करुणा, सहनशीलता स्थिर रहते हैं। यदि जीव कम एवं और कम पवित्र होते जाते हैं, तो क्या सत्य, करुणा, सहनशीलता भी परिवर्तित हो सकते हैं?

गुरुजी: चाहे जीव पवित्र हों या न हों, फा नहीं परिवर्तित नहीं होगा। इसे मैं इस प्रकार कहूँगा : तीन शब्द सत्य, करुणा, सहनशीलता हमेशा सत्य, करुणा, सहनशीलता ही रहेंगे, चाहे कुछ भी हो। आप सत्य, करुणा, सहनशीलता को कुछ और नहीं कह सकते, क्या आप कह सकते हैं? जहाँ तक जीवों की मानकों से परे जाने की बात है, यह उन जीवों की समस्या है। इसलिए हम निरंतर सुधार कर रहे हैं—फा, अपरिवर्तनीय फा के अनुसार—उन जीवों का जिन्होंने फा से मुंह मोड़ लिया है। इसे सामंजस्य कहते हैं।

शिष्य: मेरा बेटा 15 साल का है। मुझे उसे बाल सुधार गृह में रखना होगा क्योंकि मैं उसे संभाल नहीं सकता। मैं अपने बेटे से प्रेम करता हूं और उसकी सहायता के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं। क्या यह कोई मोहभाव है?

गुरुजी: आपकी साधना के दौरान, इस प्रकार के माता-पिता के प्रेम को वर्तमान समय में मोहभाव नहीं कहा जा सकता है। फिर भी, मैं अपने उन शिष्यों से, जो अभ्यास कर रहे हैं, कह रहा हूँ कि वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति का अपना भाग्य होता है। आपने माता-पिता के रूप में अपना कर्तव्य निभाया है; आपके बच्चे ने अपनी मानसिकता बना ली है या वह बड़ा हो गया है; अब उसे परिवर्तित करना बहुत कठिन होगा। निश्चित ही, आप उसे केवल शिक्षित ही कर सकते हैं। यदि आप उसे अब और शिक्षा नहीं दे सकते हैं, और वह कुछ करने पर जोर देता है, तो आप कुछ नहीं कर सकते। जब तक वह अपराध नहीं करता है, आप वास्तव में बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं—यदि उसने अपराध किया है तो आप निश्चित रूप से कानूनी प्रणाली से उस पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। लेकिन यदि उसने कोई अपराध नहीं किया है, लेकिन कुछ बुरा किया है और वह आपकी बात नहीं मानता, चाहे आप उससे कुछ भी कहें, तो आप कुछ नहीं कर सकते, जब तक कि वह दाफा का अध्ययन नहीं करता।

हर किसी का अपना भाग्य होता है और कोई भी दूसरों का भाग्य नहीं बदल सकता, चाहे वे लोग आपके बच्चे ही क्यों न हों। आप सोचते कि आपके अनुसार उसका ऐसा-ऐसा भविष्य हो। मैं आपको बता रहा हूं कि यदि आपने उसके लिए अरबों डॉलर की विरासत छोड़ दी, लेकिन वह सौभाग्य उसके लिए नहीं है, तो वह किसी तरह से नष्ट हो जाएगा, या वह यह सब जल्दी और फिजूलखर्ची से खर्च कर देगा। उसके पास धन विरासत में पाने का सौभाग्य होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के पास नियति होनी चाहिए। कुछ लोग सोच सकते हैं कि वे चाहते थे कि उनका बेटा या बेटी इस-या-उस स्कूल में जाए, और उनके प्रयासों से वह उस स्कूल में पहुंच भी जाता है। सच तो यह है कि वह चीज उसके जीवन में होती है। जिस प्रयास से आपको मोहभाव है और जिसे आप नहीं छोड़ पाते हैं वह एक प्रकार का कार्य बन जाता है जिसे एक साधारण व्यक्ति को करना होता है, क्योंकि मनुष्य बिस्तर पर पड़े हुए अपनी दैनिक रोटी का आकाश से टपकने की प्रतीक्षा बिल्कुल नहीं करेगा। यदि आप उन्हें बताएं कि कुछ चीजें निश्चित समय पर घटित होंगी, तो वे इस पर विश्वास नहीं करेंगे। इसलिए, मनुष्य इधर-उधर भागते हैं और किसी भी तरह कड़ा परिश्रम करते हैं। मनुष्य आखिर मनुष्य ही है। अंततः, उनका कड़ा परिश्रम अवश्यंभावी है। यदि आपका बच्चा वयस्क नहीं हुआ है, तो आप उसे शिक्षित करना जारी रख सकते हैं। यदि वह बड़ा हो गया है और उसे सिखाना वास्तव में कठिन है, तो यह आपका दोष नहीं है।

शिष्य: जहां तक उन लोगों की बात है जो उनकी सह आत्मा द्वारा नियंत्रित होते हैं, क्या उनकी मुख्य आत्मा को सुदृढ़ करने में सहायता करने का कोई मार्ग है?

गुरुजी: मैंने आप सभी को बता दिया है कि मैं केवल साधकों के लिए उत्तरदायी हूं। यदि वे साधक हैं तो यह समस्या नहीं होनी चाहिए। ऐसा उनके साथ पहले हुआ था, क्योंकि तब वे साधना नहीं करते थे। अब, क्योंकि वे साधना कर रहे हैं, उन्हें गरिमापूर्ण और सच्चाई से अभ्यास करना चाहिए और यह सब छोड़ देना चाहिए। बस साधना करते रहें, और सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा क्योंकि आप एक साधक हैं। यदि आप केवल इस समस्या को हल करने के लिए व्यायाम करते हैं, तो यह काम नहीं करेगा, क्योंकि तब आप पूरी तरह से एक अभ्यासी या साधक नहीं हैं। आपके अभ्यास में कोई भाग है जो आपकी इस समस्या को हल करने के लिए है और आपका वहां एक छोटा सा मोहभाव होगा, आपने अभी भी स्वयं को पूरी तरह से साधक नहीं माना होगा।

आप पूछ रहे हैं कि क्या उनकी सहायता करने का कोई मार्ग है। आप सभी जानते हैं कि हमारे लगभग 10 करोड़ छात्र हैं। उनमें से, कौन जानता है कि उन्हें कितनी समस्याएँ थीं जो इससे कहीं अधिक गंभीर थीं और फिर भी हल हो गईं। इसके अतिरिक्त, आप अपने प्रश्न में जिस बारे में बात करते हैं, आवश्यक नहीं कि वह सह आत्मा का मुद्दा हो। आप वास्तव में अन्य लोगों की वास्तविक स्थितियों को नहीं जानते हैं। तो मैंने कहा कि यदि आप वास्तव में साधना करना चाहते हैं, तो आपको वास्तव में इसके बारे में भूलना होगा और किसी भी चीज के बारे में चिंता नहीं करनी है। फिर भी, ऐसा करना कठिन है क्योंकि सभी चीजों के पीछे कर्म संबंधी कारण होते हैं; वे संयोगवश नहीं होते हैं। हो सकता है कि उसका और दूसरों का पहले एक-दूसरे पर उपकार या शत्रुता का ऋण हो। इसलिए, आप सभी को वास्तव में स्वयं को साधक मानना होगा। आपको अभी भी इस प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, और वे कुछ समय तक बनी रह सकती हैं। मैं देखना चाहता हूं कि व्यक्ति उन्हें कैसे संभालता है और क्या वह दृढ़ है। यदि आप अब इसके बारे में चिंतित नहीं हैं, यदि आप दृढ़ हो गए हैं और वास्तव में एक साधक की मनःस्थिति बनाए रखते हैं, तो आपको इसका एहसास होने से पहले ही यह अदृश्य हो सकता है। हो सकता है कि इसे आपके लिए व्यवस्थित कर दिया गया हो। अतः साधना अत्यंत गंभीर विषय है। यह निश्चित रूप से बच्चों का खेल नहीं है। यह साधारण मानव समाज जैसा कुछ नहीं है जहां आप किसी को आपके लिए कुछ हल करने के लिए भुगतान करते हैं। ये ऐसी चीजें नहीं हैं जिन्हें धन से खरीदा जा सके।

शिष्य: जो लोग साधारण लोगों के बीच खो गए हैं, फिर भी जिनके पास अच्छा बुनियादी आधार (गेंजी) है, क्या सच्चाई सामने आने के बाद मनुष्य के रूप में उनके लिए शुरुआत करने का अवसर है?

गुरुजी: आप इस बात को लेकर अत्यधिक चिंतित हैं। यह भविष्य का विषय है। फा ब्रह्मांड को सुधार रहा है, इसके चेतन जीव ब्रह्मांड के फा से भटक गए हैं। जो जीव किसी विशिष्ट स्तर के लिए योग्य नहीं हैं वे उस स्तर से गिर जाएंगे। और जब वे फिर से अयोग्य हो जाएंगे, तो वे फिर से गिर जाएंगे—और भी निचले स्तरों तक। वे गिरते, और गिरते रहते हैं। उनमें से कुछ निचले स्तरों तक गिर जाएंगे, जबकि कुछ उस बिंदु तक गिर जाएंगे जहां वे मनुष्य बन जाएंगे। कुछ तो मनुष्य बनने के योग्य भी नहीं होंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी जीव स्वयं को भिन्न-भिन्न स्थिति में रख रहे हैं। यह उनके व्यवहार और उनके अपने आयाम की सच्ची अभिव्यक्ति से निर्धारित होता है। आज के संसार में सभी व्यवहारों को मापने का एक मानक है, या दूसरे शब्दों में, मनुष्य अपनी भविष्य की स्थिति निर्धारित कर रहे हैं। संसार का इस तरह हमेशा पतन जारी नहीं रह सकता। कुछ जीवों को नष्ट किया जा सकता है; कुछ साधना के माध्यम से वापस ऊपर चले जायेंगे; और कुछ मनुष्य या कुछ और बन सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि दाफा के प्रति जीव जैसा दृष्टिकोण रखते हैं, वही उनकी स्थिति निर्धारित करता है।

शिष्य: कई बार मुझे लगता है कि मैं समझ जाता हूं कि सिद्धांतों के आधार पर क्या करना है। लेकिन क्योंकि यह मेरे वास्तविक प्रकृति से उत्पन्न नहीं होता है, यह दूसरों के मन को प्रभावित नहीं कर सकता है।

गुरुजी: साधना के दौरान, आप कभी-कभी साधारण व्यक्ति या सांसारिक जगत के लिए महत्वपूर्ण चीजों में कोई रूचि नहीं दिखाते हैं। फिर भी, हमारे शिष्य, भी, साधारण विचार रखते हैं, इसलिए कभी-कभी आप उन चीजों से ऊब जाते हैं जिनके बारे में हमारे शिष्य बात करते हैं। इस तरह की बात हो सकती है। लेकिन यदि आपको फा का अध्ययन करने में रूचि नहीं हैं, तो यह एक समस्या होगी। यदि आप अपने दाफा के कार्य करते समय जो कहते हैं वह फा के अनुरूप है, तो आप दूसरों के मन को प्रभावित करेंगे; यदि आप जो कहते हैं वह फा से भिन्न होता है, आप नहीं करेंगे।

शिष्य: एक पश्चिमी अभ्यासी जो दाफा सीखना चाहता है, अब पीले सम्राट की चीनी औषधि की आंतरिक साधना का अध्ययन कर रहा है, जो उसकी शिक्षा का एक भाग है। वह पूछना चाहता है कि क्या इससे उस पर प्रभाव पड़ेगा।

गुरुजी: इसका कोई प्रभाव नहीं होगा। ऐसा क्यों है? क्योंकि इस या इस प्रकार की परिस्थितियों में हम इसे उसका कार्य, एक साधारण विषय मानते हैं। वह जो कुछ भी सीख रहा है वह एक साधारण व्यक्ति के कौशल से अधिक कुछ नहीं है। हमारे पास इस तरह की चीजों को संभालने के तरीके हैं। इसका उस पर प्रभाव नहीं होगा।

शिष्य: क्या महान दिव्य परिक्रमा को खोलना संभव है जबकि मुझे अभी भी पूर्ण-पद्मासन की स्थिति करने में कठिनता हो रही है?

गुरुजी: आप पूछ रहे थे कि क्या महान दिव्य परिक्रमा को खोला जा सकता है जबकि पूर्ण-पद्मासन की स्थिति करते समय भी आपको बहुत कष्ट अनुभव होता है, है ना? क्या आपका यही अर्थ है? किसी व्यक्ति की साधना के लिए कोई निश्चित, एक समान व्यवस्था नहीं है। जब आप साधना करते हैं, चाहे आपको कितना भी कष्ट सहना पड़े; आप इसे शून्य में घटित होने वाली किसी चीज के रूप में नहीं देख सकते। आप जो कष्ट अनुभव कर रहे हैं वह कर्म विघटित होने का प्रमाण है, और जैसे-जैसे आप व्यायाम करते हैं, आपके शरीर में परिवर्तन हो रहे हैं। वे साथ-साथ चलते हैं। लेकिन आप पूछेंगे कि यदि आप व्यायाम नहीं कर रहे हैं तब भी यदि आप अपने पैरों को खोलते हैं या अपने पैरों को एक दूसरे पर रखते हैं तो क्या होगा? क्योंकि आप साधक हैं, आपके सुधार के लिए सभी अवसर उपलब्ध कराये जायेंगे।

शिष्य: यदि मैं किसी दिन दूसरों के द्वारा हानि का लक्ष्य बन जाऊं, तो मुझे फा का अध्ययन कैसे करना चाहिए?

गुरुजी: परिस्थितियाँ चाहे जो भी हों, दाफा की दृढ़ता से साधना करते रहें। आप दूसरों के द्वारा हानि पहुंचाए जाने के बारे में क्यों सोचेंगे? एक साधक के रूप में, यदि आप उस समय या उसके बाद आपके आसपास जो कुछ भी घटित होता है, उसका सावधानीपूर्वक विश्लेषण करें, तो आप पाएंगे कि इसका कोई कारण था।

शिष्य: त्रिलोक-सिद्धांत से अनेकों बार आगे जाने का क्या अर्थ है?

गुरुजी: आपका अर्थ बार-बार साधना करने से था, है ना? सचमुच ऐसा होता है। आपको तब तक साधना करनी है जब तक आप उस स्तर तक नहीं पहुंच जाते जहां आपकी फलपदवी होनी चाहिए। दिव्यलोक में देवता आपके लिए कठिनाइयाँ पैदा नहीं करेंगे, इसलिए आपको मनुष्यों के बीच साधना करनी होगी। यदि बहुत उच्च स्तर तक पहुंचना है, तो व्यक्ति साधना का एक दौर पूरा करने के बाद तुरंत वापस लौट आएगा, और फिर से शुरू करेगा, प्रक्रिया को तब तक दोहराएगा जब तक कि वह उस मानक तक नहीं पहुंच जाता जिस तक उसे पहुंचना चाहिए। जब आप मनुष्यों के बीच साधना कर रहे होते हैं, तब आपका गोंग बढ़ रहा होता है और स्तरों को भेद रहा होता है। इसका यही अर्थ है। ऐसे उदहारण होते हैं, लेकिन आप सभी ऐसे नहीं हैं।

शिष्य: कुछ छात्र अपने माथे पर उत्पन्न होने वाले वृत्त पर विशेष ध्यान देते हैं। क्या इसका त्रिलोक-सिद्धांत से अनेकों बार आगे जाने से कोई लेना-देना है?

गुरुजी: ऐसा नहीं है। वास्तव में, साधना प्रक्रिया के दौरान आपके शरीर के एक स्तर से दुसरे स्तर के रूपांतरण में भिन्नता होती है, और वे सभी भिन्न-भिन्न होती हैं। यदि आप अपनी स्वयं की साधना की छवि देख सकें, तो पहले तो आप दंग रह जाएंगे, और फिर आपका मन इसे स्वीकार नहीं कर पाएगा। मनुष्य देवताओं और बुद्धों के भव्य और शानदार दृश्य को देखने को सहन नहीं कर सकते, वह जटिल स्थिति जिसे मानवीय भाषा के साथ वर्णित नहीं किया जा सकता है, और विभिन्न स्तरों पर रूप की स्थितियों की विशेष अभिव्यक्तियां। मैं आपको बता रहा हूं कि प्रत्येक स्तर की अभिव्यक्ति का अपना रूप होता है, और आपके शरीर को घेरे हुए क्षेत्र सहित, सिर से पैर तक आपके प्रत्येक भाग में परिवर्तन होते हैं। इसलिए जब कुछ लोग शीघ्र प्रगति करते हैं और स्तरों में शीघ्र सुधार करते हैं, तो हर दिन परिवर्तन होते हैं। आपने एक बुद्ध की छवि देखी होगी जहां उनके चार सिर हैं, और फिर चार के ऊपर तीन और सिर हैं; इसके आगे, तीन सिरों के ऊपर दो सिर हैं, उसके बाद शीर्ष पर एक और सिर है। यह अर्हतों को एक के ऊपर एक रखने जैसा है। वह विभिन्न स्तरों पर प्रदर्शित बुद्ध की सच्ची छवि भी है। वे पवित्र और भव्य होते हैं, मानव मन की कल्पना से परे।

शिष्य: मैं समझता हूं कि साधना करने के लिए मुझे और अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, फिर भी मैं जीवन से प्रेम करता हूं, अच्छी चीजों की आशा करता हूं, और चीजों को अच्छी तरह से करना चाहता हूं। क्या यह कोई मोहभाव है?

गुरुजी: इन्हें आपकी साधना के दौरान मोहभावों के रूप में नहीं गिना जाता है। मैंने यह नहीं कहा कि आपको अपना खुशहाल जीवन और अपनी आकांक्षाएं छोड़नी होंगी और काम में अच्छा प्रदर्शन नहीं करना होगा। इसके विपरीत, मैंने आपसे काम में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए कहा है। अपना काम अच्छे से किये बिना आप एक अच्छे मनुष्य कैसे बन सकते हैं? आप सच्चे साधक तभी हैं जब आप जहां भी रहें, एक अच्छे मनुष्य बने रहें। इसलिए मैं आपको केवल यह बता रहा हूं कि साधना के दौरान आपको पुस्तकें अधिक पढ़ने की, फा का अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है; परीक्षा उत्तीर्ण करते समय और समस्याओं का सामना करते समय आपको स्वयं को विकसित करने और स्वयं के प्रति सख्त होने की आवश्यकता है। जब आपका सामना मतभेद से हो तो आपको स्वयं के भीतर खोज करनी चाहिए। जब तक आप यह दृष्टिकोण अपनाएंगे, आपके स्तर में धीरे-धीरे सुधार होगा। जहां तक आपके प्रश्न की बात है, उस पर आपका एक नया दृष्टिकोण और नई समझ होगी। लेकिन, यह आपकी जानबूझकर अलग सोचने की इच्छा से नहीं आएगा। जैसे-जैसे आप साधना करते जाएंगे, उस प्रकार की उन्नति और नई समझ स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होगी।

शिष्य: मैं आपका 10 वर्षीय शिष्य हूं। व्यायाम करते समय मेरे पैर लगातार हिलते रहते हैं। जैसे ही मैं इन्हें नियंत्रित करता हूं, हिलना रुक जाता है।

गुरुजी: यह स्थिति अस्थायी है। क्योंकि आप एक बच्चे हैं, आपको ध्यान में उस प्रकार की असहनीय पीड़ा का अनुभव नहीं होगा जो एक वयस्क को होती है। लेकिन आप कर्म विघटित होने की स्थिति प्रदर्शित करेंगे। हो सकता है कि यह उतना पीड़ादायक न हो, फिर भी यह एक अवस्था की अभिव्यक्ति है। आप बाद में बिल्कुल ठीक हो जायेंगे।

शिष्य: सुपर-मैटर की अवधारणा के बारे में बात करते हुए, गुरूजी ने कहा है कि यह हमारे इस आयाम से अधिक भौतिक है।

गुरुजी: आप फिर से उन चीजों में रुचि दिखा रहे हैं। गुरु भौतिकी का व्याख्यान नहीं दे रहे हैं। मैं ब्रह्मांड की संरचना का उल्लेख केवल तभी करता हूं जब इसका उस वर्तमान स्थिति से कुछ लेना-देना हो जिस तक आप ऊपर पहुँच चुके हैं, इसलिए इससे मोहभाव न करें। यह समय नहीं है कि आपको ब्रह्माण्ड की संरचना के बारे में सब कुछ बताया जाए और सब कुछ आपके सामने उड़ेल दिया जाए। इसके अतिरिक्त, ब्रह्मांड बहुत जटिल है और मानव भाषा के द्वारा अवर्णनीय है। जब मैं स्विट्जरलैंड में फा सिखा रहा था तो मैंने ब्रह्मांड का वर्णन किया था। जब मैं इसके बारे में बात कर रहा था, मुझे इसे स्पष्ट रूप से समझाने में कठिनाई हो रही थी। जब मैंने पुस्तक पर काम किया, तो मैंने सावधानीपूर्वक संशोधन किए। यदि आप वह पुस्तक पढ़ेंगे तो आप इसके बारे में अधिक स्पष्ट हो सकेंगे। वास्तव में, मैं इसके बारे में बात करने में यहाँ तक ही बता सकता था, क्योंकि इसे अधिक स्पष्ट रूप से वर्णित करने के लिए शब्द ही नहीं थे। साथ ही, जैसे ही आप इसका साधारण लोगों की भाषा में वर्णन करते हैं, तो उसका अर्थ उचित नहीं निकलता है।

शिष्य: मैं हमेशा फालुन गोंग का संगीत सुन सकता हूं। कभी-कभी मैं इसे अपनी नींद में भी सुनता हूं।

गुरुजी: यह अच्छी बात है। यह दाफा का संगीत है, इसलिए आपकी साधना में इसने आपको फा का एक पक्ष दिखाया है, और संगीत में फा के गहरे अर्थ भी हैं।

शिष्य: वर्ष की शुरुआत में कैलिफोर्निया में फा सम्मेलन में, गुरूजी ने "बड़े चार " का उल्लेख किया। क्या आप इस पर विस्तार से बता सकते हैं?

गुरुजी: वास्तव में, "बड़े चार" की चर्चा सबसे पहले बुद्ध शाक्यमुनि ने की थी। वे पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु हैं। यह उस क्षेत्र में ब्रह्मांड के अस्तित्व के कारण की अभिव्यक्ति है, फिर भी यह अंतिम कारण नहीं है। तो आपके लिए यह एक ब्रह्मांड की तरह है। जब आप संपूर्ण ब्रह्मांड देखते हैं तो आपको लगता है कि यह ब्रह्मांड है, फिर भी यह केवल एक छोटे ब्रह्मांड का क्षेत्र है। उस ब्रह्मांड के समान अनगिनत ब्रह्मांड हैं और वे सभी एक बड़े ब्रह्मांड में सभी ओर हैं। यह बिल्कुल उन अणुओं की तरह है जो इस आयाम में फैले हुए हैं और वैसे ही जैसे कि यहां हर चीज अणुओं से बनी है। यह वही अवधारणा है। यह एक विशेष आयाम में प्रकट ब्रह्मांड का एक रूप है। और उस आयाम में फा है, जो उस आयाम में महान फा की अभिव्यक्ति है। उस आयाम में, यदि यह फा के मानक के अनुरूप नहीं है, तो उस आयाम के नीचे का पूरा क्षेत्र अच्छा नहीं होगा। तो, मैंने पाया कि "बड़े चार" का क्षय हो गया था, और ऐसा लग रहा था मानो लंबे समय के दौरान फा से भटकने के कारण वे ढहने वाले थे। हालाँकि, हर चीज के नवीनीकरण से पहले यही स्थिति थी।

शिष्य: जीवों की संख्या बढ़ती या घटती नहीं है। उनका विश्वव्यापी खगोलीय पिंड के कुछ स्तरों पर अस्तित्व है...?

गुरुजी: जीवो की संख्या न तो बढ़ती है और न ही घटती है—यह निश्चित है। यदि किसी आयाम में कोई जीवन नष्ट हो जाता है, तो समान स्तर पर एक नया जीवन निर्मित हो जाएगा। वास्तव में, पृथ्वी के इतिहास में एक भी व्यक्ति कम या एक भी अधिक नहीं हुआ है। लेकिन आज इसके बारे में बात करें तो किसी को भी इस बात पर विश्वास नहीं होगा। चीन अभी भी परिवार नियोजन को बढ़ावा दे रहा है; क्योंकि यह चीन के कई नीतिगत मुद्दों से जुड़ा है, इसलिए हम इन चीजों के बारे में बात नहीं करेंगे। आज पश्चिम में जनसंख्या कम है। शायद वे जो कभी पश्चिम में थे फा प्राप्त करने के लिए वहां चीन में पुनर्जन्म ले चुके हैं। (तालियाँ)

वास्तव में, वर्तमान में कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप क्या हैं—यूरोपीय, अमेरिकी, अफ्रीकी, ऑस्ट्रेलियाई, एशियाई—आप वास्तव में पीले, श्वेत आदि शायद न हों। इसलिए संयुक्त राज्य अमेरिका में कई कॉकेशियाई हैं जो पुनर्जन्मित अश्वेत लोग या अमेरिकी आदिवासी हैं। कुछ अश्वेत पुनर्जन्मित कॉकेशियाई हैं। इसीलिए ऐसे कॉकेशियाई लोग हैं जो अश्वेत लोगों के हितों की रक्षा करते हैं।

शिष्य: गुरूजी ने कहा था कि मानवीय धारणाएँ किसी के जीवन को नियंत्रित कर सकती हैं। यदि वह उन्हें नहीं बदलेगा तो वे हावी होती रहेंगी।

गुरुजी: यह सच है। मैंने एक बार निम्नलिखित कहा था: मैंने कहा था कि जब एक पश्चिमी व्यक्ति फा प्राप्त करता है, यदि आप इसे सिद्धांतों के आधार पर उसे समझाते हैं, तो उसे स्पष्ट होगा: "ओह, मैं समझा। यही सच है।" कहने का तात्पर्य यह है कि, सिद्धांत उन धारणाओं को तोड़ देंगे जो उसने जन्म के बाद अर्जित की थीं। बाहरी आवरण जो सत्य को छुपाता है और उसे सत्य देखने से रोकता है, टूट कर खुल जाता है। फिर भी चीनी लोग अलग हैं : उनकी प्राचीन धारणाएँ हैं। उनकी सभ्यता पांच से छह हजार वर्ष पुरानी है, चिन राजवंश से पहले 221 ईसा पूर्व से पहले के समय और हान राजवंश के प्रारंभिक वर्षों 206 ईसा पूर्व से 220 ईस्वी के बीच सभी विभिन्न विचारधाराओं के साथ, और फिर बाद के वर्षों से लेकर अब तक। युद्धरत राज्यों के काल से पहले पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से 221 ईसा पूर्व सभी प्रकार की मान्यताएँ थीं, इसलिए विभिन्न चीजों के लिए धारणाएँ बन गई थी। वे चीजें, जो जन्म-जन्मांतर में बनीं, वे सभी आपके संपूर्ण अस्तित्व में संग्रहीत हैं। आपका अस्तित्व नहीं मरता, जबकि आपका यह मांस का शरीर कपड़ों की तरह है : आप इसे एक जीवन के बाद दूसरे जीवन में बदलते हैं। जीवन के प्रत्येक पिछले दौरों से विरासत में मिली मन की स्थिति और प्रभाव आपके वर्तमान स्वरूप में प्रकट होंगे। निःसंदेह, इन्हें एक साधारण व्यक्ति द्वारा सरलता से अनुभव नहीं किया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त, चीनी संस्कृति बहुत प्रगाढ़ है; इसमें कई पीढ़ियों की चीजें सम्मिलित हैं। इसका अर्थ है कि चीनियों ने कई चीजों का अनुभव किया है, और इस तरह उनकी धारणाओं को तोड़ना कठिन है। एक बार जब आप उन्हें सच बता देते हैं, तो वे इसे समझ जाते हैं : “ओह, तो यह ऐसा है। लेकिन यह ऐसा क्यों है?” फिर आप उन्हें बताएं कि अ-ब-क के कारण ऐसा है। "ओह, मैं समझता हूँ," वे कहते हैं। लेकिन शीघ्र ही वे फिर से सोचने लगते हैं : "तो फिर ऐसा होने का कारण अ-ब-क क्यों है?" उनके समझने के लिए एवं उनका कोई और प्रश्न न हो, आपको हर एक परत को तोड़ना होगा, तह तक। इसलिए कभी-कभी मुझे लगता है कि गहरी संस्कृति वाले देशों के लोग बहुत अनुभवी होने के कारण बुद्धिमान होते हैं। लेकिन यदि आप चाहते हैं कि वे सच्चाई समझें, तो ये चीजें नकारात्मक भूमिका निभाएंगी। उदाहरण के लिए, पश्चिमी समाज में कॉकेशियाई लोगों का मन सरल होता है क्योंकि उनकी संस्कृति में इतने गहरे आंतरिक अर्थ नहीं होते हैं, और इसलिए उनमें इतनी अधिक बाधाएँ नहीं होती हैं। जैसे ही उन्हें एहसास होता है कि यह सच है, वे इसे समझ जाते हैं।

शिष्य: कन्फ्यूशियस द्वारा लिखित उद्धरण अक्सर मेरे मन में आते हैं। मैं इनको रोकने का प्रयत्न करता हूं। क्या मैं सही कर रहा हूँ?

गुरुजी: क्योंकि आप साधक हैं, आप सही कर रहे हैं। कन्फ्यूशियस ने केवल मनुष्य होने के सिद्धांतों के बारे में बात की। वास्तव में, कन्फ्यूशियस शिक्षा का सभी चीनियों के मन पर बहुत गहरा प्रभाव है। हालाँकि, शायद हर चीज का नवीनीकरण किया जा रहा है। अंततः वे मानवीय चीजें हैं, इसलिए उन्हें हटाना आपकी साधना के लिए अच्छा है; आप जो प्राप्त करेंगे वह सबसे शुद्ध और उच्च सिद्धांत हैं। चाहे वह शिक्षा कितनी भी अच्छी क्यों न हो, यह एक मानवीय चीज है। मेरा यही अर्थ है। यदि यह आपकी साधना में बाधा डालता है, यदि यह निरंतर आपके मन में प्रकट होता है और आपकी साधना को प्रभावित करता है, तो आपको इसका विरोध करना चाहिए और इसे अस्वीकार करना चाहिए। मैं आपको किसी खास विचारधारा को अस्वीकार करने के लिए नहीं कह रहा हूं : मैं साधकों को बता रहा हूं कि साधना कैसे करें। यहां बैठे आपमें से अधिकांश लोग साधना कर रहे हैं, इसलिए मैं साधारण लोगों को नहीं, बल्कि अपने शिष्यों को फा सिखा रहा हूं। आपको अंतर समझना चाहिए।

शिष्य: मेरे पति दूसरी पद्धति के चीगोंग गुरू हैं। जब भी मैं कर्मों को हटा रही होती हूँ तो वह अपने तरीकों से मेरा उपचार करते रहते हैं।

गुरुजी: आप सभी जानते हैं कि मैं जिस चीज को महत्व देता हूं वह आपका मन है। उनसे कहो : “मैं दृढ़ता से दाफा की साधना कर रही हूं और आपकी चीजें स्वीकार नहीं करती हूं। हम पति-पत्नी हो सकते हैं, लेकिन साधना गंभीर है। वह आप पर जो भी दबाव डालता है, आप उससे बच नहीं सकती, क्योंकि उसकी भुजाएं मजबूत हैं और उनमें अधिक ताकत है। इसलिए वह जो करना चाहता है उसका विरोध करने का आपके पास कोई मार्ग नहीं है। लेकिन, यदि आप अपने मन में दृढ़ हैं, तो मुझे लगता है कि चीजें बदल जाएंगी। साथ ही, यदि वह आपका उपचार करने का हठ करता है तो भी इसका कोई प्रभाव नहीं होगा। गुरु आपकी देखभाल कर रहे हैं। इसे रोकना बहुत सरल है, लेकिन वह इसे नहीं देख पाएगा।

शिष्य: जब अभ्यास के दौरान मन में ध्यान भटकाने वाले विचार आते हैं, तो क्या इसका परिणाम अनजाने में दुष्ट मार्ग से अभ्यास करना हो सकता है?

गुरुजी: मन का भटकाने वाले विचारों से भरा होना एक ऐसी चीज है जो आपमें से प्रत्येक के साधना करने के दौरान घटित होगी। हालाँकि, इसका आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जब मैंने उन चीजों के बारे में बात की जो आपको बुरे और दुष्ट तरीकों का अभ्यास करने के लिए प्रेरित कर सकती हैं, तो मैं जानबूझकर आपके अभ्यास के दौरान अन्य साधना तरीकों की चीजों को अपने मन में जोड़ने के बारे में बात कर रहा था; या जब आप किसी अन्य चेतना द्वारा नियंत्रित होते हैं। इनके अतिरिक्त, जिन चीजों का आपकी साधना से कोई लेना-देना नहीं है, उनसे कुछ नहीं होगा, लेकिन आपको अपने ध्यान भटकाने वाले विचारों को हटा देना चाहिए।

शिष्य: ध्यान करते समय, क्या अंडे के खोल में बैठने का एहसास तभी होता है जब पैरों में दर्द नहीं रह जाता है?

गुरुजी: आवश्यक नहीं कि ऐसा ही हो। यदि आप केवल आधे घंटे तक ध्यान कर सकते हैं और आपको आधे घंटे के भीतर दर्द अनुभव नहीं होता है, तो यह उस अवधि के दौरान भी हो सकता है। जब किसी दिन आपका मन शांत होने के उस स्तर तक पहुंच पाता है और आप उस हद तक शिथिल हो पाते हैं, तो आप उस स्थिति में प्रवेश कर सकते हैं। आवश्यक नहीं कि यह लंबे समय तक चले। यह बस कुछ सेकंड या कुछ मिनट तक ही रह सकता है, और फिर आप शांत अवस्था से बाहर आ जाते हैं। ऐसा इस प्रकार हो सकता है।

शिष्य: अनेक अवसरों पर मैं अनजाने में सत्य-करुणा-सहनशीलता से भटक गया। मेरे अंदर गहराई में बहुत से मोहभाव सतह पर मौजूद मोहभावों से ढके हुए हैं।

गुरुजी: इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। चिंता मत करो। जब तक आप साधना में दृढ़ हैं, सचेत रूप से इन चीजों को हटाने में सक्षम हैं, और बुरे विचारों को पहचानने और उन्हें हटाने में सक्षम हैं, आप स्वयं की साधना करने की प्रक्रिया में हैं। एकमात्र समस्या यह हो सकती है कि आप मोहभावों को पकड़कर रखते हैं और छोड़ते नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, कोई भी अन्य चीज वास्तव में आपके लिए यह या वह समस्या उत्पन्न नहीं करेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप अभी भी साधना कर रहे हैं, और आप वास्तव में स्वयं को सुधार रहे हैं।

शिष्य: क्या मेरे सारे मोहभाव उजागर हो जायेंगे?

गुरुजी: निश्चित रूप से वे होंगे। मैं निश्चित रूप से उन सभी को आपके सामने उजागर करूंगा। प्रश्न यह है कि क्या समय आने पर आप उन पर काबू पा सकेंगे? जब वे उजागर हो जाते हैं और आपको वे मोहभाव दिखते हैं जो नहीं होने चाहिए, और आप स्पष्ट रूप से जानते हैं कि वे मोहभाव हैं जो नहीं होने चाहिए, तो आपको उन्हें छिपाना नहीं चाहिए और आपको उनसे छुटकारा पाना चाहिए। जब भी मतभेद होता है तो मैं आपको यह बताने का प्रयास करता हूं कि आपका मोहभाव उजागर हो गया है। फिर भी अक्सर आप दोषों के लिए स्वयं की जाँच नहीं करते हैं, और इसके स्थान पर आप यह देखते हैं कि दूसरों ने आपके साथ कितना बुरा व्यवहार किया है, दूसरों ने क्या अनुचित किया है, और दूसरे आपकी अपनी राय और विचारों के साथ कितने अनुरूप नहीं हैं। यदि आप अपने भीतर खोज करने में सक्षम हैं तो आप अपने मोहभावों को देख पाएंगे।

शिष्य: क्या भविष्य के मनुष्यों द्वारा नैतिक मानदंड पुनर्स्थापित करने के बाद जीवों के स्तर फिर से प्रकट होंगे?

गुरुजी: विभिन्न स्तरों के खगोलीय पिंडों में रहने वाले जीवों की भिन्न-भिन्न क्षमताएँ होती हैं। मनुष्यों के स्तर अच्छाई की तुलना में दुष्टता के स्तर के साथ-साथ उनमें उपस्थित सद्गुण की तुलना में कर्म की मात्रा से निर्धारित होते हैं। पृथ्वी पर, मानव जीवन सभी पशुओं और पौधों से ऊपर है। मैंने एक समस्या भी देखी है : कई चीनी लोग, और विशेष रूप से मुख्य भूमि चीन के बाहर रहने वाले चीनी लोग, जिनके परिवार और संबंधियों के संबंध बहुत शक्तिशाली हैं, फा के साथ संबंधों से भी अधिक शक्तिशाली। मुझे लगता है कि यह निश्चित रूप से उनके फा प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा है। फिर भी वास्तविक साधना प्रक्रिया के दौरान, उनमें से अनेकों ने इस बाधा को पार कर लिया है। लेकिन मैंने इसे एक बड़ी बाधा के रूप में पाया है। यदि वे मनुष्यों के मानकों का पालन नहीं करते हैं तो मनुष्यों को मनुष्य नहीं माना जाता है। हम बंदरों को मनुष्य क्यों नहीं मानते? क्योंकि मनुष्यों के पास मनुष्यों के मानक हैं, और मनुष्यों का व्यवहार, सोच और नैतिक मूल्य हैं। तभी उन्हें मनुष्य माना जाता है। फिर भी, यदि आप अति पर जाते हैं तो यह काम नहीं करता है।

शिष्य: क्या यह सच है कि मानव इतिहास केवल 7 अरब जीवों का आपस में पुनर्जन्म लेने का है?

गुरुजी: शायद ऐसा है। आप सभी इस विषय में रुचि रखते हैं... सच तो यह है कि इतिहास में आज जैसा समाज कभी नहीं रहा। आपने समाचार पत्र में मेरे द्वारा परग्रही प्राणियों के मुद्दे को संबोधित करने के बारे में किसी का लेख पढ़ा होगा, और उसे यह हास्यास्पद लगा। आप सभी लोग इसके बारे में सोचें : इतिहास में कभी भी इस तरह की मानव जाति नहीं रही है, फिर भी इतिहास में ऐसे समय थे जब मानव जाति की तकनीक अधिक उन्नत थी—आज की तुलना में बहुत, बहुत अधिक उन्नत। आजकल मनुष्य चाँद बनाकर उसे आकाश में स्थापित नहीं कर सकता, फिर भी मानव जाति के इतिहास में मनुष्य ऐसा करने में सक्षम था। हालाँकि, आज की मानव जाति द्वारा विकसित विज्ञान और आज की वर्तमान परिस्थितियाँ मानव जाति के विकास की संपूर्ण प्रक्रिया में एकमात्र मार्ग नहीं हैं। विकास के विभिन्न मार्ग हैं। आज की मानव जाति का विज्ञान, वास्तव में, परग्रहीयों द्वारा लाया गया था। कुछ लोग परग्रहीयों का अध्ययन कर रहे हैं और उनके तथाकथित संकेत एकत्र कर रहे हैं। वास्तव में, वे बिल्कुल आपके आसपास ही होते हैं, केवल वे आपसे संवाद नहीं करते हैं। साथ ही, वे जो करना चाहते हैं उसे बहुत व्यवस्थित तरीके से कर रहे हैं।

आप सभी लोग इसके बारे में सोचें : पिछले दिन, जब मैंने बताया था कि विज्ञान एक धर्म है, तो आप सभी सही ढंग से समझ गए थे। धर्मों में, उनके संस्थापक और पुजारी होते हैं, जबकि विज्ञान में भी विभिन्न उपाधियाँ होती हैं : विश्वविद्यालय अध्यक्ष, डॉक्टर, स्नातकोत्तर, स्नातक, प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर, इत्यादि। और साथ ही, यह धर्म का एक आदर्श रूप है, जिसका हर स्थान पर अस्तित्व है और अत्यधिक व्यवस्थित है। मनुष्य किसी भी धर्म से अधिक इसमें विश्वास करते हैं, और यह विश्वास अनभिज्ञ रूप से उत्पन्न हुआ है। यदि आप इसका अच्छी तरह से अध्ययन नहीं करते हैं, तो आपको इस समाज द्वारा निष्कासित कर दिया जाएगा : आपको अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी या आपका भविष्य अच्छा नहीं होगा। हर कोई जानता है कि एक नियमित धर्म में आप मानसिक रूप से विश्वास करते हैं, और फिर यह आपको देवताओं के वास्तविक, सच्चे अस्तित्व को देखने, सुनने और अनुभव करने में सक्षम बनाता है।। इसके विपरीत, विज्ञान का धर्म आपको चीजों को भौतिक आधार पर देखने और आगे बढ़ने के लिए कहता है जिससे आप मानसिक रूप से उस पर निर्भर हो जाएं। यह विपरीत मार्ग अपनाता है।

लेकिन मैं विज्ञान का विरोधी नहीं हूं, क्योंकि यह भी ब्रह्मांड का एक उत्पाद है। मैं आपको केवल यह बता रहा हूं कि विज्ञान क्या है। विज्ञान वैज्ञानिक नहीं है, और यह मानव जाति के लिए कई आपदाएँ लेकर आया है जिन्हें कभी ठीक नहीं किया जा सकेगा। वायु प्रदूषण के बारे में तो आप सभी जानते हैं। उद्योगों ने जिस वायु को प्रदूषित कर दिया है उसे कभी भी उसकी शुद्धतम स्थिति में वापस नहीं लाया जा सकता है। उद्योगों ने पानी को भी प्रदूषित किया है, और चाहे आपके तरीके कितने भी अच्छे क्यों न हों, आप इसे कभी भी इसकी सबसे स्वच्छ स्थिति में वापस नहीं ला सकते। मनुष्य इसी हवा में सांस लेते हैं और यही पानी पीते हैं। यदि ऐसा ही चलता रहा, तो मानव जाति (दाफा शिष्यों को छोड़कर) विकृत हो जाएगी। उनके अंगों की संरचना विकृत हो जायेगी और वह बदतर, और बदतर होती जायेगी। यह भौतिक आयाम में लाई गई एक आपदा है। आध्यात्मिक क्षेत्र में, उस बिंदु तक आगे बढ़ने से पहले, विज्ञान दावा करेगा कि आप अंधविश्वासी और अवैज्ञानिक हैं, और यदि आप ऐसी किसी चीज के बारे में बात करते हैं जिसे विज्ञान ने अभी तक मान्यता नहीं दी है, या यदि आप देवताओं के अस्तित्व के बारे में बात करते हैं या इस तथ्य के बारे में कि अच्छाई को पुरस्कृत किया जाता है और बुराई को दंडित किया जाता है तो विज्ञान, विज्ञान का डंडा मारेगा। उस प्रकार के आघात का परिणाम क्या होता है? इसने मनुष्य के ईश्वर में विश्वास और उन अवधारणाओं को नष्ट कर दिया है जो मनुष्य के नैतिक मूल्यों को बनाए रखते हैं। और जब ये नष्ट हो जाते हैं, तो मानव जाति को बनाये रखने वाले नैतिक आदर्श पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। इसलिए आजकल कोई भी बुरा काम नहीं है जिसे करने से लोग डरते हैं। क्या यह सब उस विज्ञान के कारण नहीं हुआ जो वास्तव में इतना उन्नत नहीं है?

मैं आपको केवल सच बता रहा हूं। मैं यह नहीं कह रहा कि मैं विज्ञान के विरुद्ध हूं। यह केवल मनुष्यों के इस पर अत्यधिक अंधविश्वास के कारण है कि इसने मानव जाति को संकट में डाल दिया है। और इससे भी अधिक, यह विज्ञान परग्रहियों द्वारा यहां लाया गया था। तो फिर उनका लक्ष्य क्या है? वे व्यवस्थित रूप से मानव जाति के लिए गणित, भौतिकी और रसायन विज्ञान जैसे विषय लाए। तब आपके शरीर और मन में सोचने का वह ढाँचा बन चुका है जो वे चाहते थे। आजकल, उत्पादन और श्रम के उपकरण, काम के तरीके, दैनिक आवश्यकताएं, साथ ही विज्ञान द्वारा लाए गए जीवन के तरीकों ने मनुष्य के सोचने के तरीके और उसके सभी व्यवहार को आकार दिया है। इसने उस मानसिकता को पूरी तरह से तैयार कर दिया है जो आधुनिक मनुष्य को विकृत बनाती है। आजकल लगभग हर कोई ऐसा ही है। उन सभी के विचार परग्रहियों द्वारा आकारित हैं, और कोई भी इससे बच नहीं सकता क्योंकि हर एक चीज जो भी आपके सामने आती है वह आधुनिक विज्ञान द्वारा लायी गयी है। यह हर अवसर का लाभ उठाता है, इसलिए आपके जीवन का हर भाग विज्ञान से अविभाज्य है।

परिणामस्वरूप, आपके मन ने भौतिक जगत की समझ के आधार पर सोचने का एक तरीका और मानसिकता बना ली है—एक बाहरी स्वरूप जिसे आधुनिक विज्ञान ने बनाया है। यह भी कणों की एक परत है। आपका व्यवहार आपके मन से नियंत्रित होता है। फिर, जो चीजें आप संचालित करते हैं, जो वाहन आप चलाते हैं—वे सभी चीजें जो आप करते हैं—वे सभी विज्ञान द्वारा लायी गयी थी। इस प्रकार, मानव शरीर और मन दोनों में कणों की एक परत बन गई। वह विज्ञान जो मनुष्यों के लिए परग्रहियों द्वारा लाया गया था, उसने उनके विज्ञान से संबंधित कणों की एक परत बना दी है। यह वास्तव में मनुष्यों के शरीरों का अधिग्रहण करने के लिए परग्रहियों द्वारा की गई क्रमबद्ध व्यवस्था है।

इस प्रकार, जैसा कि आप जानते होंगे, विज्ञान लोगों की इच्छाओं का लाभ उठाता है और मनुष्य की इच्छाएँ उन्हें प्रगति की ओर प्रेरित करती हैं, जैसे हो रहा है। जब भी कोई आज के विज्ञान के बारे में संदेह उठाता है तो अक्सर वैज्ञानिकों का विरोध सामने आता है। मनुष्य को यह एहसास नहीं है कि प्रश्न पूछने के प्रति इस प्रकार की असहनशीलता स्वयं विज्ञान का परिणाम है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि इन "वैज्ञानिकों" की असहनशीलता उनकी भावना से उत्पन्न होती है, न कि तर्क से। मैं यह कह सकता हूं कि इस बिंदु पर पहुंचने के बाद वैज्ञानिकों ने जिन चीजों का आविष्कार और निर्माण किया है, वे वास्तव में मनुष्यों की रचनाएं नहीं हैं। तो फिर वे किसकी रचना हैं? वे उस संरचना द्वारा बनाए गए थे जो परग्रही प्राणियों द्वारा नियंत्रित होती है और जो मनुष्य के मस्तिष्क में निर्मित हुई है। और वह संरचना वास्तव में परग्रही प्राणियों द्वारा कड़ाई से नियंत्रित की गई चीज है। वे आपको प्रेरणा देंगे और आपसे कुछ आविष्कार करने को कहेंगे। उन्होंने व्यवस्थित तरीके से मानव जाति का स्थान लेना शुरू कर दिया है।

एक बार ऐसा हो गया, तो आप जानते हैं, लोगों की इच्छाएँ मानव विकास को आगे बढ़ाती हैं। पहले लोग रोबोट बनाना चाहते थे, लेकिन अब यह केवल रोबोट नहीं रह गया है। वे मनुष्य बनाना चाहते हैं—मनुष्य का प्रतिरूप बनाना चाहते हैं। यदि मनुष्य वास्तव में प्रतिरूपण के माध्यम से बनाया जाए, तो इसके बारे में सोचें... मनुष्यों का प्रबंधन देवताओं द्वारा किया जाता है। जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है, यदि उसमें कोई आत्मा (युआनशेन) नहीं है, तो वह केवल एक शव है। एक मनुष्य की मृत्यु क्यों हो सकती है जबकि उसके भौतिक शरीर में कोई समस्या नहीं है? उसकी अचानक मृत्यु कैसे हो सकती है? यह है कि उसकी आत्मा निकल गयी है। उस आत्मा के बिना, यह केवल मांस का एक टुकड़ा मात्र है। अपनी आत्मा के साथ, वह जीवित है। मनुष्य का शरीर वस्त्र के समान है : जब मनुष्य उसे पहनता है, तो वह जीवित रहता है; यदि इसे पहना नहीं गया, तो वह मृत होता है। तो इसके बारे में सोचें : क्या होगा यदि देवता एक प्रतिरूप प्राणी के अंदर एक आत्मा नहीं रखते हैं, क्योंकि यह मनुष्यों द्वारा बनाया गया है और देवता निश्चित रूप से इसे स्वीकार नहीं करते हैं? एक परग्रही प्राणी स्वयं को उस मानव की आत्मा के रूप में स्थापित करके उस शून्य स्थान को भर देगा। तो फिर उसके पास एक मानव शरीर होगा और एक मनुष्य में रहने लगेगा। इस प्रकार के प्राणी और भी अधिक संख्या में होंगे। और उनकी इच्छाओं के कारण, मनुष्यों को लगातार उन्हें बनाने का आदेश दिया जाएगा। इनका और भी अधिक निर्माण किया जाएगा। ये प्राणी बहुसंख्यक हो जाएंगे, और वे मानव जाति के सदस्य बन जाएंगे, और वे मनुष्य से अधिक चतुर होंगे। मनुष्य के मस्तिष्क में पहले से ही उनके कणों की एक परत होती है और वे उनके द्वारा नियंत्रित किये जा रहे हैं। इसलिए वे ऐसे कानून बनाएंगे जो मनुष्यों को एक निश्चित बिंदु के बाद प्रजनन की अनुमति नहीं देंगे। सभी जीवों का प्रतिरूप बनाना होगा। और तब वे बड़े प्रमाण में पृथ्वी पर आक्रमण करेंगे। सतह पर वे मनुष्यों जैसे दिखेंगे, लेकिन होंगे नहीं; वे परग्रही प्राणी होंगे। फिर इसके बारे में सोचें : मैं बिलकुल भी लोगों के लिए मनगढ़ंत कहानियाँ नहीं बना रहा हूँ! (तालियाँ)

निःसंदेह, वर्तमान परिस्थितियों के सामने मनुष्य पूरी तरह असहाय हैं। वे उस सब से अलग नहीं हो सकते जो विज्ञान द्वारा मनुष्यों को दिया गया है, क्योंकि विज्ञान परग्रही प्राणियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, और आप उनका पता भी नहीं लगा सकते हैं। मनुष्य परग्रही प्राणियों से संपर्क करना चाहता है, लेकिन आज मनुष्यों की लगभग हर चीज का आविष्कार उन्होंने ही किया है। मनुष्य सोचते हैं कि वे आपसे संपर्क नहीं करेंगे, लेकिन वास्तव में आप हर समय परग्रही प्राणियों से जुड़े रहते हैं। क्या वास्तव में आपको उनकी खोज करने की आवश्यकता है? तो मनुष्य इन सबके सामने विवश हैं। वे इसे हल नहीं कर सकते। मैं इसे वर्तमान मानव जाति के लिए सबसे बड़ी समस्याओं में से एक के रूप में देखता हूं। मैंने अब बोल दिया है और लोगों को बता दिया है।

मैंने कहा कि मैं तथाकथित विज्ञान का विरोध नहीं करना चाहता, फिर भी मैंने मानव जाति की वास्तविक कठिन परिस्थिति देखी है। क्योंकि मैं इस परिस्थिति में आपका उद्धार कर रहा हूँ, इसलिए मुझे इस स्थान पर रहना होगा, कारों में सवार होना होगा और हवाई जहाजों में उड़ना होगा। विज्ञान और परग्रही प्राणी भी ब्रह्माण्ड के उत्पाद हैं। हालाँकि, मानव जाति के विकास की हमेशा अपनी एक शुरुआत होगी और इसके अंत तक विकास होता रहेगा। यह एक नियम है। मैंने बस इतना किया है कि आपको आज की घटनाओं में से एक के बारे में बताया है जिससे मेरे शिष्य साधना करते हुए ब्रह्माण्ड को समझ सकें। यदि मैं विवरण में जाऊं तो कई सामान्य लोग उन पर विश्वास नहीं करेंगे, इसलिए मैं उनके बारे में बात नहीं करूंगा। कंप्यूटर का विकास वास्तव में मनुष्य के लिए एक भयावह चीज है। आप स्वयं को नष्ट कर सकते हैं, यह जाने बिना कि आप कैसे नष्ट हुए। आजकल लोग डाटा संग्रहीत करते हैं और फिर कंप्यूटर से परिणामों का विश्लेषण करते हैं। आगे के विकास के साथ, लोग निर्णय लेने के लिए कंप्यूटर का उपयोग कर सकते हैं, और यह मनुष्यों द्वारा कंप्यूटर की आज्ञा पालन करने की शुरुआत का संकेत होगा। तब कंप्यूटर पूरी तरह से लोगों को आदेश देना शुरू कर देंगे। कंप्यूटर अधिक से अधिक बुद्धिमान हो जाएंगे, और मनुष्य कंप्यूटर पर और अधिक निर्भर हो जाएंगे, जब तक कि अंततः वे पूरी तरह से कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित नहीं हो जाते। इस प्रकार मनुष्य की इच्छाओं का उपयोग मानव जाति को नष्ट करने के लिए किया जाएगा।

शिष्य: गुरूजी द्वारा लिखे गए लेख साधारणतः विशिष्ट परिस्थितियों को संबोधित करते हैं। क्या इससे विदेशी शिष्यों की फा की समझ प्रभावित होती है?

गुरुजी: नहीं, ऐसा नहीं होगा। यह एक ही है। मेरी पुस्तक आगे और प्रगति के लिए आवश्यक लेख मुख्य रूप से उन समस्याओं को निरंतर ठीक करने के लिए है जो आपकी साधना करते हुए सामने आती हैं। और जहां तक बात है कि आप कैसे साधना करते हैं, तो आप केवल जुआन फालुन पर निर्भर रह सकते हैं। कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।

शिष्य: सामूहिक अध्ययन के दौरान, ऐसा लग रहा था कि हमारे पढ़ने के एक निश्चित बिंदु पर मैं किसी चीज पर रुक गया था। जब तक मैंने इसे पूरी तरह समझा, तब तक कुछ अनुच्छेद पढ़े जा चुके थे।

गुरुजी: इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। फा का अध्ययन करने का उद्देश्य यह है कि आप इसे समझें। फा को समझना सबसे महत्वपूर्ण है। फा पढ़ते समय, आपको उन शब्दों का अर्थ पता होना चाहिए जो आप पढ़ रहे हैं। कम से कम, आपको सतही अर्थ को समझना चाहिए। यदि आप कहते हैं, "मैंने जो पढ़ा है वह भूल जाता हूँ," तो चिंतित न हों। यह कोई समस्या नहीं है। बस आगे बढ़ें और पढ़ें। लेकिन यदि आप कहते हैं, "मैं जो शब्द पढ़ रहा हूं उन्हें भी नहीं समझता, एवं मैं बस पढ़ता और पढ़ता रहता हूं, मुंह से बड़बड़ाता रहता हूं और आंखें देखती रहती हैं, लेकिन मेरा मन कहीं और है," तो ऐसा नहीं चलेगा, और आप साधना का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पायेंगे।

शिष्य: बौद्ध विचारधारा पूर्वनिर्धारित संबंधों को इतना महत्व क्यों देती है?

गुरुजी: वास्तव में, सभी पूर्वनिर्धारित संबंध को महत्त्व देते हैं। ब्रह्मांड के बारे में कई सत्य हैं जिनके बारे में मैं आपको नहीं बता सकता, क्योंकि उनमें देवता सम्मिलित हैं, और मैं नहीं चाहता कि आप देवताओं के बारे में मानवीय सोच के साथ सोचें। मनुष्य सोचते हैं कि जब तक वे स्वयं धर्मों में साधना करते हैं, वे दिव्यलोकों में जा सकते हैं। वे सोचते हैं, "जब तक मैं इसका सम्मान करता हूँ और इसकी शिक्षाओं का पालन करता हूँ, यह मेरी देखभाल करेगा।" वास्तव में, आप इसे बिल्कुल नहीं समझते हैं। अतीत में ऊपर की ओर साधना करना अत्यधिक कठिन था। जब आप नीचे गिर चुके हैं, चाहे जो भी हो वे आपको वापस ऊपर नहीं जाने दे सकते थे। आपको वापस ऊपर जाने की अनुमति ही नहीं थी, क्योंकि उन्होंने सोचा था कि आप उनकी तरह पवित्र नहीं थे, और चाहे आपने स्वयं कैसे भी साधना की हो, आप उन्हें दूषित कर देंगे। लेकिन आज यह बदल गया है। आप सभी जानते हैं कि बिल्कुल मूल से ही हम न केवल बेहतर हो गए हैं, बल्कि अतीत की हर चीज को पार कर जाएंगे, एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जो ब्रह्मांड के सर्वोत्तम ऐतिहासिक काल से भी आगे होगी। (तालियाँ)

शिष्य: कई शिष्यों को पर-त्रिलोक-फा से परे की समझ नहीं है। क्या उनके पास फलपदवी तक साधना करने के लिए पर्याप्त समय है?

गुरुजी: क्योंकि आपने फा प्राप्त कर लिया है, आपको बस चिंता मुक्त होकर साधना करने की आवश्यकता है। यदि पर्याप्त समय नहीं होता तो मैं उद्धार का प्रस्ताव नहीं रखता। वास्तव में, मेरी सबसे बड़ी चिंता समय नहीं है, बल्कि यह है कि क्या आप दाफा में अंत तक साधना कर पाएंगे। उस समझ से, आपमें से कुछ लोग काफ़ी ऊँचे स्तर पर पहुँच गए हैं फिर भी कुछ भी अनुभव नहीं किया है। आप वास्तव में शारीरिक अनुभूतियों से किसी व्यक्ति के स्तर का आकलन नहीं कर सकते। उस अनुभूति का क्या मूल्य है? कुछ लोगों को जानबूझकर चीजों को समझने की अनुमति नहीं दी जाती क्योंकि वे उच्च स्तर से हैं। थोड़ी सी भी अनुभूति होने से भ्रम और ज्ञानप्राप्ति का नियम कुछ हद तक टूट जाएगा, और फिर हो सकता है कि वे अपने मूल स्थानों पर कभी न लौट पाएं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें उच्च मानकों पर बने रहना होगा। अन्य लोग चीजों को देख सकते हैं और फिर भी वापस लौट सकते हैं, जबकि इन लोगों को न तो देखने की अनुमति है और न ही शारीरिक संवेदनाओं की। थोड़ा सा भी उन्हें अपने मूल स्थानों पर लौटने से रोक देगा। यही सत्य है, है ना?

शिष्य: गुरूजी की पुस्तक होंग यिन पढ़ते हुए, मैं आदरणीय गुरूजी की वीरतापूर्ण महिमा से इतना प्रभावित हुआ कि मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैंने उस अपार करुणा को गहराई से अनुभव किया जो शब्दों में अवर्णनीय है। (तालियाँ) यदि मैं गुरूजी का ऋण नहीं चुका सका तो अनन्त तक मुझे पछतावा रहेगा।

गुरुजी: वास्तव में, पछताने की कोई बात नहीं है। आपके लिए फा प्राप्त करना सरल नहीं था। आप बस इतना जानते हैं, ऐसा लगा कि संयोग से किसी ने आपको फा के बारे में बताया, और इसलिए आपने इसे प्राप्त कर लिया। वास्तव में, वह आपके मन में बहुत गहराई में छिपा हुआ था, विद्युत के प्लग की तरह। जैसे ही यह जुड़ता है, आप जागृत हो जाते हैं। फिर भी कुछ लोगों के लिए वह प्लग अब काम नहीं करता, क्योंकि वह धूल और मिट्टी से ढका हुआ है। प्लग लगाने पर भी विद्युत नहीं होती है। अतीत में कई लोगों ने अपनी जान दे दी जिससे वे फा प्राप्त कर सकें। उन्होंने अतीत में साधना की है और कई साधना परीक्षाओं से गुजरे हैं।

शिष्य: यदि बच्चे साधना नहीं करते हैं, तो जब उनके माता-पिता साधना में फलपदवी प्राप्त करेंगे तो उनका क्या होगा?

गुरुजी: आपकी वर्तमान स्थिति को देखते हुए, मैं यह नहीं कह सकता कि आपको इससे मोहभाव है; यह आपका वर्तमान का स्तर है। लेकिन यदि आप इसपर उच्च स्तर से सोचें तो यह एक मोहभाव है। आप यह भी नहीं जानते कि क्या आप फलपदवी प्राप्त कर पाएंगे—आपको इतनी सारी अनावश्यक चिंताएँ क्यों हैं?

क्या आपने इसके बारे में सोचा है : यह कैसे हो सकता है कि जब आप फलपदवी की ओर साधना करते हैं तो आप बस अपने हाथ धो लेते हैं और उन सभी ऋणों से मुक्त हो जाते हैं जिनके आप जन्म जन्मान्तर से ऋणी रहे हैं, और उन सभी उपकारों से जो आपको प्राप्त हुए हैं और सभी पुराने हिसाबों से जो आपके ऊपर है? आपने जो चुकाया है वह केवल भावात्मक ऋण है; आपने ऋणों का भौतिक भाग नहीं चुकाया है। फिर आप फलपदवी कैसे प्राप्त कर सकते हैं? मैं उन सबका निपटारा कर दूँगा और आपके लिये बहुत कुछ करूँगा। जरा इसके बारे में सोचें: आपके सभी उपकारों और पुराने हिसाबों का निपटारा करना होगा। आखिर कैसे? सबसे पहले, यदि आप फलपदवी प्राप्त करने में सक्षम होते हैं तो आपका दिव्यलोक रिक्त नहीं छोड़ा जा सकता है। क्या बुद्ध सभी चेतन जीवों को बचाने की बात नहीं करते? आपके दिव्यलोक में चेतन जीव होंगे। यह बहुत संभव है कि ये वही जीव होंगे जिनकी कभी आपने जान ली थी, या जिनका आप पर ऋण बकाया था, या जिनके आप घनिष्ठ मित्र थे। दोनों प्रकार के कर्म बंधन—उपकार और पुराना हिसाब—आपको चुकाने होंगे। तो बहुत सारे जीव आपके दिव्यलोक में चेतन जीव बन सकते हैं।

आपको अतीत के सभी उपकारों और पुराने हिसाबों का निपटारा करना है, तो क्या आपके वर्तमान कर्म बंधनों का भी ध्यान नहीं रखा जाना चाहिए? आपमें से कई महिलाएं अपने प्रियजनों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार करती हैं... वह वास्तव में आपकी साधना को प्रभावित करता है। मोहभाव त्यागें और साधना में आगे बढ़ें। वास्तव में, किसी के लिए अपनी भावनाओं को छोड़ना आपके लिए कितना भी कठिन क्यों न हो, आपकी मृत्यु होने से पहले आपको इसे प्राप्त करना होगा। हो सकता है कि आपमें से कुछ लोगों के पास जीवन के इतने वर्ष बचे न हों और शीघ्र ही किसी दिन चले जाएं। आपको तब इसे वैसे भी छोड़ना होगा। यदि आप फलपदवी तक साधना कर सकते हैं, तो आपके गुरु जानते हैं कि आप किसे बचाना चाहते हैं। लेकिन आप इसे एक मोहभाव के रूप में नहीं ले सकते हैं और आप इससे किसी और तरीके से मोहभाव नहीं रख सकते।

शिष्य: किसी व्यक्ति ने, जिसने साधना में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था, एक बार निम्नलिखित कहा था : "इच्छाभाव रखना भी बिना इच्छाभाव के होने का ही एक भाग है।" मुझे थोड़ा असमंजस अनुभव हुआ।

गुरुजी: क्या यह विघ्न नहीं है? इसके बारे में मत सोचो यदि यह मेरे द्वारा कहे गए फा में से नहीं है। चाहे यह दाफा में साधना करने वाले एक शिष्य द्वारा कहा गया हो, यह कुछ ऐसा हो सकता है जिसे उसने अपनी विभिन्न अवस्थाओं और विभिन्न स्तरों पर समझा हो। यह उचित या अनुचित हो सकता है। इसके बारे में चिंता न करें, और जैसा मैंने सिखाया है वैसा ही करें। अपने मन को फा पर केंद्रित करें और दूसरे क्या कहते हैं, उस पर ध्यान न दें।

सभी को यह स्पष्ट होना चाहिए कि फा को सिखाना और मनुष्यों का उद्धार करना इच्छा या अनिच्छा की अवधारणा पर निर्भर नहीं है। इसे कोई साधारण प्राणी नहीं समझ सकता। इसके अतिरिक्त, जो कुछ आपके लिए किया गया है वह यहां मनुष्यों के बीच अभिव्यक्त नहीं होता है। मैंने आपको पहले बताया था कि बुद्धों के दिव्यलोक अत्यंत समृद्ध और विविध हैं। वे और भी अधिक भव्य हैं, अन्यथा वहां कौन जाना चाहेगा? यह वैसा नहीं है जिसकी मनुष्यों ने कल्पना की है। बुद्धों, ताओ और देवताओं की दृष्टि में, मनुष्य जो अनेक चीजें करते हैं वे बाधाएं हैं जो उन्हें बुद्धों के दिव्यलोकों में जाने से गंभीरता से रोकती हैं। तो ये सभी इच्छाभाव के मोहभाव हैं। लेकिन मनुष्यों का उद्धार करना एक भिन्न बात है। साथ ही, मैं आपको बता सकता हूं कि मनुष्यों को बचाना एकमात्र काम नहीं है जो मैं कर रहा हूं। यह केवल उसका एक भाग है जो मैं करना चाहता हूं, तो अन्य कारण भी हैं। मैं इस विचार को स्पष्ट करूँगा। मान लीजिए कि इस ब्रह्मांड का पतन निश्चित है। एक देवता इसे रोकने में सक्षम है, फिर भी वह इसके बारे में कुछ नहीं करता है। क्या आप कहेंगे कि यदि वह आगे आये तो यह उनका "इच्छाभाव था" और यदि उन्होनें ऐसा नहीं किया तो वे "इच्छाभाव से मुक्त" थे? मैं बहुत उच्च स्तर की बातें मानवीय भाषा में समझा रहा हूँ, लेकिन इतने उच्च स्तर की बातें भिन्न होती हैं। "इच्छाभाव" की मानवीय अवधारणा किसी उच्च स्तर या बुद्धों के स्तर का वर्णन नहीं कर सकती है।

शिष्य: ताई पर्वत और मेरे बीच एक अटूट बंधन है, और मेरे पास इसके बारे में कई प्रश्न हैं। क्या गुरूजी मुझे कुछ रहस्य सुलझाने में सहायता कर सकते हैं?

गुरुजी: नहीं, मैं केवल साधकों को साधना संबंधी बातें समझा सकता हूँ। मैं आपके द्वारा फलपदवी प्राप्त किये जाने के लिए उत्तरदायी हूं। यदि आप अपने पिछले जन्मों के दौरान जो अनुभव किया उससे मोहभाव रखते हैं तो आप इसे प्राप्त नहीं कर सकते। यदि मैं उन्हें आपको समझाऊं तो आपका मोहभाव और अधिक बढ़ जाएगा।

शिष्य: मैं कभी-कभी एक स्वयंसेवक या स्वयंसेवक केंद्र का प्रमुख बनने की इच्छा रखता हूं। क्या यह एक शक्तिशाली मोहभाव है, और क्या मैं इच्छा करने की परिस्थिति में हूं?

गुरुजी: वास्तव में, हमारे कई स्वयंसेवक निर्वाचित नहीं होते हैं। ऐसा हुआ कि, उन्होंने फा प्राप्त कर लिया और उनके क्षेत्र में कोई अन्य अभ्यास नहीं कर रहा था, इसलिए वे सीखने के लिए लोगों के एक समूह को एक साथ लाये, और वे स्वाभाविक रूप से एक स्वयंसेवक केंद्र के प्रमुख या एक स्वयंसेवक बन गए। स्वयंसेवक केंद्र का प्रमुख केवल हमारे दाफा में ही नहीं होता है। यह केवल साधारण लोगों का शीर्षक है। अतीत में, चीगोंग अनुसंधान संस्थान की एक शाखा को केंद्र कहा जाता था। वे सभी स्वयंसेवक केंद्र कहलाते हैं।

यह अच्छी बात है कि आप दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं, फिर भी यदि आप प्रमुख बनने के लिए ऐसा करना चाहते हैं तो यह अच्छी बात नहीं है। किसी व्यक्ति के लिए कोई आधिकारिक पद नहीं है और न ही कोई वेतन है। कुछ भी नहीं है। मैं जानता हूं कि आप दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं। जब भी परिस्थितियाँ अनुमति दें आप ऐसा कर सकते हैं। बिना किसी पदवी के, आप अभी भी अपने उत्साह से लोगों के लिए काम कर सकते हैं। अब कई क्षेत्रों में बहुत सारे लोग दाफा का अध्ययन कर रहे हैं। यह हमारे शिष्यों द्वारा की गई कई फा-प्रसार गतिविधियों का परिणाम है।

शिष्य: जब हम यहां आपको फा सिखाते हुए सुन रहे हैं, तो क्या हमारे शरीर अन्य सभी आयामों में वही कर रहे हैं?

गुरुजी: क्या मैं आपके शरीर को उसके परम मूल से शुरू करते हुए परिवर्तित नहीं कर रहा हूँ? आप अभी भी उसके बारे में चिंतित क्यों हैं? (तालियाँ) इस आयाम में, आप केवल फा को सुन रहे हैं और परिवर्तन थोड़े से ही हैं। लेकिन वास्तविक परिवर्तन अन्य आयामों में हो रहे हैं।

शिष्य: हर बार फा सम्मेलन में भाग लेने से पहले, मुझे बाधाओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। क्या वे मेरे अपने कर्मों के कारण हैं या कुछ ऐसा है जो मैंने अनुचित किया?

गुरुजी: जब भी आपको समस्या हो तो अपने अंदर खोज करें। समस्याएं ऐसे ही नहीं घटित होती हैं। वे निश्चित रूप से आपके कुछ मोहभावों से छुटकारा पाने के लिए होती हैं जिससे आप स्वयं को बेहतर बना सकें।

शिष्य: जब से मैं फा का अध्ययन कर रहा हूं, मुझे अनुभव हुआ है कि साधारण चीजें करना या न करना अब कोई महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं रहा है। मैं कैसे पता लगा सकता हूं कि मुझे अभी भी कुछ विशिष्ट चीजें करने का मोहभाव है?

गुरुजी: मैं आपको इसे और समझाता हूँ। साधारण लोगों के बीच साधना करते समय, आपको साधारण लोगों के तरीके के अनुरूप साधना करने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। मैंने अभी जो कहा वह एक बड़े दायरे को सम्मिलित करता है : आपका भोजन, आश्रय और परिवहन, साथ ही आपका काम और अध्ययन—सब कुछ सम्मिलित है। आपको अपने आप को अधिकतम सीमा तक साधारण लोगों के अनुरूप बनाते हुए साधना करनी चाहिए। अतीत के साधकों के उदाहरण का अनुसरण न करें। जैसे ही उन्होंने साधना करना शुरू किया, वे मानव संसार के आर-पार देखते प्रतीत होते थे : "मैं सांसारिक जगत छोड़ दूंगा।" मैं आपसे साधारण लोगों के बीच साधना करने के लिए कह रहा हूं। साथ ही, मैं आपसे यह भी कह रहा हूं कि आप जो कुछ भी करें, उसे पहले से भी बेहतर तरीके से करें। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब पहली बार फा का प्रसार हुआ था, तो मैंने इस बात का ध्यान रखा था कि आज के लोग, जिनके पास नौकरियां हैं और व्यस्त कार्यक्रम हैं, साधना कैसे कर सकते हैं। इसलिए, जब आप अपने खाली समय का उपयोग फा की साधना और अध्ययन करने में करेंगे तो आप निश्चित रूप से किसी भी चीज में पीछे नहीं रहेंगे या चूकेंगे नहीं। यह आपके मोहभाव हैं जिनसे मैं आपको छुटकारा दिलवाना चाहता हूँ, आपकी भौतिक चीजों से नहीं। यदि ऐसा होता, तो सड़कों पर भीख मांगने वाले लोग उच्च स्तर के साधक बन गए होते। लेकिन ऐसा नहीं है. जिस चीज को हटाने की आवश्यकता है वह है मानवीय सोच, वे मोहभाव जिन्हे आप छोड़ना नहीं चाहते।

मैंने कहा है कि आपका घर सोने की ईंटों से बना हो सकता है, लेकिन आपको इसकी परवाह नहीं है, आप धन को अपने जीवन के समान प्रिय नहीं मानते हैं, और आपको अत्यधिक लोभ नहीं है। यदि आपके पास ऐसा कुछ है, तो उसे रहने दें, क्योंकि यह आपके जीवन में है और आपको इसकी परवाह नहीं है। यदि आप ऐसा कर सकते हैं—अर्थात, यदि आप मोहभाव से छुटकारा पा सकते हैं—तो इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आपके पास क्या है। यदि आपके मोहभाव नहीं है, लेकिन लोग आपके साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और आपको एक उच्च पद प्रदान करने पर जोर देते हैं, तो इसे स्वीकार कर लें। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। यदि आपका व्यवसाय फैलता है और बड़ा होता है और आप बहुत धन कमाते हैं, तो ऐसा होने दें। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। आप चाहे किसी भी सामाजिक वर्ग में हों, आप साधना कर सकते हैं। आपको अति नहीं करनी चाहिए। अतीत में कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने वास्तविक फा प्राप्त करने के बाद सब कुछ करना छोड़ दिया और साधना शुरू कर दी। यह चीजों को करने का उचित तरीका नहीं है। मैंने आपको जो सिखाया है वह इस प्रकार की साधना विधि है जिसका मैं वर्णन कर रहा हूं। दाफा की साधना करने वाले लोगों को फलपदवी प्राप्त करने से पहले निश्चित रूप से एक साधारण व्यक्ति के मोहभाव होंगे। और इस प्रकार, वे साधारण लोगों का कार्य कर सकते हैं, और उनमें कुछ हद तक सामान्य भावनाएँ होंगी।

शिष्य: मुझे एक संभावित मोहभाव का एहसास हुआ है लेकिन मैं इससे छुटकारा पाने में सफल नहीं हुआ हूं। क्या मांस के प्रति मोहभाव के जैसे, इसे गोंग द्वारा सतह पर लाया जा सकता है?

गुरुजी: जब आपने इसे पहचान लिया है तो अब इससे छुटकारा क्यों नहीं पाते? निश्चित ही, आप रातोरात ऐसा नहीं कर सकते, और यह बात हर किसी पर लागू होती है। लेकिन यदि आप नियमित रूप से स्वयं को संयमित करते हैं और स्वयं से अपेक्षा करते हैं कि आप और भी बेहतर करें, तो क्या आप धीरे-धीरे इसे प्राप्त नहीं कर लेंगे? लेकिन यदि आप कहते हैं, "गुरूजी ने कहा है कि हम इसे धीरे-धीरे कर सकते हैं, तो चलो इसे थोड़ा-थोड़ा करके करें," तो आप तेजी से ऊपर की ओर नहीं बढ़ रहे हैं, और आप अपनी साधना के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं। यह सब इस बारे में है कि आप साधना करते समय एक अभ्यासी के रूप में अपना आचरण कैसा रखते हैं। मुझे लगता है कि यदि आप वास्तव में स्वयं को इस तरह से संचालित कर सकते हैं, तो शेष सब कुछ समझना सरल हो जाएगा।

शिष्य: इस फा सम्मेलन के दौरान, कुछ शिष्यों ने कर्म को हटाने के लिए शारीरिक कष्ट को पाने की इच्छा की है।

गुरुजी: यह अनुचित है, यह गलत है। आप कठिनाई को ढूंढ कर साधना करने का एवं कर्म को नष्ट करने का अपना तरीका निर्धारित नहीं कर सकते हैं। वह काम नहीं करता। ऐसा करके, आप उस साधना प्रणाली को बाधित कर रहे हैं जो मैंने आपके लिए स्थापित की है। इसलिए, आपको बस पुस्तक पढ़ने, फा अध्ययन करने और स्वयं की साधना करने की आवश्यकता है। जब भी आप समस्याओं का सामना करें तो अपने अन्दर खोज करें। कार्यस्थल पर बेहतर काम करना और स्कूल में बेहतर विद्यार्थी बनना ही पर्याप्त है। (तालियाँ)

शिष्य: जितनी अधिक मैं साधना करता हूँ, मेरी सामान्य मानवीय धारणाएँ उतनी ही शक्तिशाली होती प्रतीत होती हैं—इस सीमा तक कि मुझे यह भी नहीं पता कि मैं एक साधक हूँ या नहीं।

गुरुजी: मैं आप सब को बता रहा हूं कि साधना में, यदि आप अपने स्वयं के मोहभावों को अधिक से अधिक स्पष्ट रूप से अनुभव कर सकते हैं, तो यह एक कदम पीछे नहीं है। यह एक कदम आगे है। एक साधारण व्यक्ति ऐसी चीजों की पहचान नहीं कर सकता है, लेकिन आप उन्हें स्पष्ट रूप से अनुभव कर सकते हैं। यह वास्तव में कहा जा सकता है कि आपने बहुत अच्छी तरह से साधना की है, फिर भी आपके कुछ मोहभावों को इस समय हटाना इतना कठिन कैसे हो गया है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मैंने आपके लिए जो साधना पद्धति बनाई है, वह आपके लिए एक ही बार में आपके सारे मोहभावों से छुटकारा पाना असंभव बना देती है। उन्हें परत दर परत हटाया जाता है—वे एक समय में एक परत कम हो जाते हैं। इस प्रकार, आपके पास कुछ साधारण मोहभाव होंगे जिससे आप साधारण लोगों के बीच रह सकें, साधना कर सकें और धीरे-धीरे प्रगति कर सकें। अन्यथा, उन मोहभावों के बिना, आप आगे प्रगति नहीं कर पाएंगे, और आपकी साधना समाप्त हो जाएगी और आप सामान्य लोगों के बीच नहीं रह पाएंगे। तो ऐसी है दाफा की साधना पद्धति।

शिष्य: ज़ुआन फालुन को पढ़ते समय मैं एक उपदेश पढ़ने के बाद कुछ भाग को याद करने के लिए कुछ वाक्यों को फिर से पढ़ता हूँ। क्या ऐसा करना ठीक है?

गुरुजी: यह ठीक है, लेकिन मैं आप सभी को बता दूँ कि सबसे अच्छा तरीका इसे बार-बार पढ़ना है।

शिष्य: दाहिनी आंख के नीचे कोई सह नाड़ी नहीं है। क्या इसका संबंध फा से है?

गुरुजी: यह अस्तित्व का वह रूप है जिसे फा ने इस स्तर पर जीवित प्राणियों के लिए बनाया है; यह एक स्तर की अभिव्यक्ति भी है। इसमें बहुत ऊंचे स्तर पर बदलाव आएगा। उस उच्च स्तर पर, नेत्र एक साथ कई स्तरों के आयामों को भेद सकता है और अनुभव कर सकता है। यह स्थूल से सूक्ष्म तक चीजों को देख सकता है। यह अधिक जटिल चेतन प्राणियों के अस्तित्व के साथ-साथ आयामों के अस्तित्व के स्वरूप को भी देख सकता है। उच्च-स्तरीय आयामों के चेतन जीव मनुष्यों के जैसे बुरे काम नहीं करते हैं, इसलिए इस स्तर पर नेत्र का यह रूप वहां काम नहीं करेगा। इसलिए प्रत्येक स्तर पर नेत्र बदलते रहते हैं। क्या मैंने आपको अभी नहीं बताया कि मानव भौतिक शरीर प्रत्येक स्तर पर भिन्न-भिन्न रूप प्रदर्शित करते हैं? आकार के सतही स्वरूप में भी बदलाव हो सकते हैं। एक निश्चित स्तर पर, उदाहरण के लिए, पूरे चेहरे पर ड्रैगन मक्खी के नेत्र की तरह एक नेत्र दिखाई दे सकता है—जिसके अंदर अनगिनत नेत्र होते हैं। यह हो सकता है। साधना प्रक्रिया के दौरान, विभिन्न स्तरों पर विभिन्न अभिव्यक्तियाँ बहुत जटिल होती हैं। मैं आपको इन चीजों के बारे में नहीं बताना चाहता; दूसरे शब्दों में, आपको उनसे मोहभाव नहीं रखना चाहिए। यदि आपने उन चीजों को प्रत्येक स्तर पर देखा होता, तो आप जीवन भर उनसे मोहभाव रखते, और परिणामस्वरूप, आप अपनी साधना में फिर से ऊपर की ओर नहीं बढ़ पाते। आप उनसे मोहभाव रखेंगे और हर समय उनके बारे में सोचेंगे—"वे बहुत अच्छी हैं!" इसलिए इसकी अनुमति नहीं है। यहां साधना के बहुत निचले स्तर पर कोई सह नाड़ी नहीं होती है क्योंकि मनुष्य जब बंदूक से दूसरों पर गोली चलाते हैं तो इसी नेत्र का उपयोग करते हैं। तीर चलाने के विषय में भी यही होता है। एक शब्द में कहें तो इस नेत्र का उपयोग हमेशा बुरे काम करने के लिए किया जाता है। निस्संदेह अन्य कारण भी हैं, इसलिए इसे ज्ञान युक्त सच्चे नेत्र के रूप में विकसित नहीं किया जा सकता है।

शिष्य: जब भी मैं बैठकर करने वाला अभ्यास करता हूं तो मेरा सिर डोलता है और हिलता है।

गुरुजी: यह बिल्कुल स्वाभाविक परिस्थिति है। आप में से बहुत से लोग जानते हैं कि जब मध्य दिव्य परिक्रमा खुलने वाली होती है, चाहे वह छोटी या बड़ी दिव्य परिक्रमा हो, जब तक मध्य दिव्य परिक्रमा खुली है, व्यक्ति का सिर हिलेगा। यदि शक्ति नाड़ी पीछे की ओर मुड़ती है तो व्यक्ति का सिर पीछे की ओर झुक जाएगा। जब शक्ति नाड़ी आगे की ओर मुड़ती है, तो व्यक्ति का सिर हिलता है। जब यह पीछे की ओर मुड़ती है तो सिर पीछे की ओर झुक जाता है। शक्ति का प्रवाह सिर को हिलाने लगता है। यदि माओयो दिव्य परिक्रमा खुली है, तो व्यक्ति का सिर हिलेगा। जब शक्ति इस ओर धकेलती है, तो व्यक्ति का सिर इस ओर हिलेगा। जब शक्ति उस ओर धकेलती है, तो व्यक्ति का सिर उस ओर हिलेगा। लेकिन आपको शक्ति का अनुसरण नहीं करना चाहिए और अपना सिर नहीं हिलाना चाहिए। वह एक मोहभाव होगा, एक उत्साह की भावना होगी। इसलिए आपको स्थिर रहने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए। कोई बुद्ध या ताओ सिर नहीं हिलाता, है ना? मुझे ऐसा नहीं लगता। इस प्रकार की परिस्थिति आपके अभ्यास करने के प्रारंभिक चरण में घटित होगी। आपको पूरा प्रयत्न करना चाहिए कि आप उसकी गति का अनुसरण न करें।

शिष्य: मैं एक समाचार पत्र को गुरूजी की संक्षिप्त जीवनी की सिफारिश करने की सोच रहा हूं। क्या यह उचित है?

गुरुजी: नहीं, मैं अपनी निजी चीजों के बारे में बात नहीं करना चाहता, और आपको भी ऐसा नहीं करना चाहिए। जुआन फालुन में मेरी एक बहुत ही सरल और संक्षिप्त जीवनी जोड़ी गई थी क्योंकि लोग जानना चाहते थे कि मैं कौन हूं। मैंने उसे भी हटाने के लिए कहा था। मैंने आपको जो सिखाया है वह फा है, और आप सभी को बस इस फा का अध्ययन करना चाहिए। मेरी पृष्ठभूमि में दिलचस्पी ना लें। बस इस फा का अध्ययन करें, और यह आपको फलपदवी प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा। (तालियाँ)

शिष्य: एक छात्र एक कंपनी में काम करता है। क्या होगा यदि उसका मालिक उसे कंपनी के लिए झूठ बोलने के लिए कहे?

गुरुजी: मैंने इस विशिष्ट मुद्दे पर बात की है। आप चाहे कुछ भी करें, आपको स्वयं की साधना करनी है। इसे संभालना सरल होना चाहिए। यदि आप इसे पूरी तरह टाल नहीं सकते, तो यह आपका दोष नहीं माना जाएगा। हालाँकि, यदि आप सच्चे साधक हैं, तो इस प्रकार की चीजें धीरे-धीरे कम होनी चाहिए। साथ ही, जब आप कोई विशिष्ट कार्य करते हैं तो आप उचित निर्णय ले सकते हैं। विशिष्ट परिस्थितियों को आपको स्वयं ही संभालना होगा। मैं आपको यह नहीं बता सकता कि उन परिस्थितियों में क्या करना है, अन्यथा आपके पास निर्णय लेने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा।

शिष्य: पुस्तक की अवैध प्रतियों में, फालुन प्रतीक को आपकी तस्वीर के पहले रखा गया था। क्या इन पुस्तकों में कोई समस्या है?

गुरुजी: अवैध पुस्तकें आजकल बड़ी मात्रा में फैली हुई हैं। यह सच है कि मेरी दाफा पुस्तकें उच्च सिद्धांतों के बारे में बात करती हैं, फिर भी मैंने विद्वतापूर्ण दृष्टिकोण से उनके बारे में बात करने का पूरा प्रयत्न किया। गंदी और भ्रष्ट चीजें, समाज में अश्लील चीजें—ऐसी चीजें जो अब और अधिक अश्लील नहीं हो सकती हैं और जो लोगों को अनुचित करना सिखाती हैं—उस अराजक सामग्री में सब कुछ है, और फिर भी उन पुस्तकों को प्रकाशित करने की अनुमति है। हमारी पुस्तक लोगों को अच्छा मनुष्य बनना सिखाती है, और फिर भी इसे प्रकाशित होने की अनुमति नहीं है। इसमें अजीब क्या है? इसके बारे में सोचें : 10 करोड़ लोगों द्वारा दाफा का अध्ययन करने से, सरकार को कर राजस्व से बड़े पैमाने पर वित्तीय लाभ हो सकता था। क्योंकि हमारी पुस्तक को मुद्रित करने की अनुमति नहीं है, अवैध प्रतियां प्रचलित हैं। निश्चित ही, अवैध पुस्तकों से कोई कर राजस्व नहीं मिलता है, और इसलिए सरकार को उनसे कोई आय नहीं होती है। कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है।

जहां तक अवैध पुस्तकों का प्रश्न है, मेरे विचार से यह किया जाना चाहिए। क्योंकि हमें उनका स्रोत नहीं मिल रहा है, तो हमें क्या करना चाहिए? उन पुस्तकों को न खरीदें जिनकी टाइपसेटिंग दोबारा की गई हो, क्योंकि उनमें टाइपिंग संबंधी त्रुटियाँ होनी निश्चित है। हर कोई जानता है कि छापने से पहले पुस्तक का त्रुटिसंशोधन करना बहुत कठिन है; क्योंकि यह फा है, इसमें आसुरिक विघ्न होता है। और मनुष्य का विचार-कर्म भी समस्या पैदा करता है, इसलिए ऐसा करना अत्यधिक कठिन है। छापने वाले दाफा के शिष्य नहीं हैं, इसलिए संभावना है कि वे इसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते। जब पुस्तक एक समय चीन में आधिकारिक प्रकाशन गृह द्वारा प्रकाशित की गई थी, तो त्रुटिसंशोधन हमारे शिष्यों द्वारा किया गया था। इसलिए, अवैध पुस्तकों में त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है, जिनमें शब्द गायब होते हैं या यहाँ तक कि पृष्ठ गायब और अव्यवस्थित होते हैं। इसलिए इन्हें न खरीदें। आप पुस्तकें केवल तभी खरीद सकते हैं जब वे एक लेजर प्लेट से मुद्रित हों जो हमारी मूल पुस्तक से फोटोकॉपी की गई हो, क्योंकि उस स्थिति में उन्होंने दाफा के विवरण को नहीं बदला होता है।

शिष्य: वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति, जो कम हो रही थी, अचानक बढ़ गई है और निरंतर तेज होती जा रही है। वैज्ञानिक इस बात पर विचार कर रहे हैं कि किस शक्ति ने इसे धकेला है।

गुरुजी: दूरबीनों से अवलोकन के माध्यम से मनुष्यों को ज्ञात यह ब्रह्मांड भी कुछ उस आयाम का है जो कणों की सतही परत से बना है, जो अणुओं से बनी है। तो, यह अभी भी इस आयाम की सीमा के भीतर है। जहाँ तक इस ब्रह्मांड की गति का प्रश्न है, निस्संदेह, हर कोई जानता है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा कर रही है, और इलेक्ट्रॉन नाभिक की परिक्रमा कर रहे हैं; वस्तुएं गतिमान हैं। हालाँकि, वास्तविकता में, गति के और भी बड़े रूप हैं। वैज्ञानिकों ने कुछ वर्ष पहले पता लगाया था कि ऐसा लग रहा था मानो पृथ्वी वायु के लिए हाँफ रही हो—यह फैल रही थी और सिकुड़ रही थी। हमारी पृथ्वी अणुओं से बनी है। फिर, चेतन प्राणियों के अधिक सूक्ष्म और छोटे संयोजन के दृष्टिकोण से, या पृथ्वी के अंदर उपस्थित चेतन प्राणियों के संयोजन से, क्या पृथ्वी एक ब्रह्मांड नहीं है? क्या वे अणु जो पृथ्वी का निर्माण करते हैं, खगोलीय पिंड नहीं हैं? वे भी ब्रह्माण्ड की एक परत हैं। फिर इसके बारे में सोचें : उनकी गति कैसी है? क्या यह उसी प्रकार की घटना नहीं है जो आज के वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्माण्ड में देखी जाती है? जहां तक गति के अचानक बढ़ने या घटने की बात है तो इसके कुछ अन्य कारण हैं। निःसंदेह, मैंने आपको बताया है कि फा-सुधार सभी समयों के साथ-साथ सभी आयामों को भी पार कर गया है; अन्यथा यह कभी सफल नहीं हो सकता था, चाहे पूरा जीवनकाल लगा दिया जाता।

शिष्य: कभी-कभी मेरे मन में वह विचार आता है जो मुझे तब आया था जब मैंने कोई बुरा काम किया था। मुझे लगता है कि मैं वास्तव में दाफा का अभ्यास करने के योग्य नहीं हूं।

गुरुजी: हार मत मानिए। बल्कि, यह अच्छी बात है कि आप उन चीजों के विघ्न को अनुभव कर सकते हैं। अर्थात आप अनुभव कर सकते हैं कि वे चीजें आप नहीं हैं। जब तक आप उन को नियंत्रित करते हैं और उन पर काबू पाते हैं, तब तक आप वास्तव में उन्हें हटा रहे होते हैं। यदि आप कुछ भी नहीं सोच रहे थे और कोई बुरा विचार मन में आ गया, और वह अपने आप आ गया, तो यह विचार-कर्म था जो आपके साथ हस्तक्षेप कर रहा था। यह आपको यह एहसास करवाकर अभ्यास करने से रोकने का प्रयत्न कर रहा था कि आप अभ्यास के योग्य नहीं हैं; ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी वस्तुएँ जीवित हैं। अर्थात्, कर्म आपके मन में उत्पन्न हुआ था, इसलिए इसका आपके मन से सीधा संबंध था और यह स्वयं को आपके मन में प्रक्षेपित कर सकता है। यह आपको ऐसा दर्शाता है कि वे आपके अपने विचार हैं, लेकिन वे नहीं है।

शिष्य: हम ऑस्ट्रेलिया के अभ्यासी हैं। क्या हमारा कनाडा के इस फा सम्मेलन में आना अनुचित होगा?

गुरुजी: बिलकुल नहीं। फा की खोज में आना आपके लिए कैसे अनुचित हो सकता है? गुरू को केवल इस बात की चिंता है कि आपके पास वास्तव में स्वयं की साधना करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है।

शिष्य: जिन परीक्षाओं से मैं गुजरा हूँ, उन पर दृष्टि डालने पर मुझे पता चला है कि मैं उन्हें केवल सतही तौर पर ही उत्तीर्ण कर पाया था, वास्तव में मेरे मन की गहराई से नहीं।

गुरुजी: यह कि आप इसे अनुभव कर सकते हैं और मौलिक रूप से स्वयं को बदल सकते हैं, उन कठिनाइयों को देख सकते हैं जिनसे आप गुजरे हैं और कमियां ढूंढ सकते हैं, मैं आपको बता दूँ, यही साधना है! विशेष रूप से, आपने पाया है कि आपने पर्याप्त रूप से अच्छी तरह से साधना नहीं की है, और आप अधिक परिश्रमी बनने का प्रयत्न कर रहे हैं। यह तो बहुत ही उत्तम है।

शिष्य: मैंने विभिन्न स्वयंसेवक केंद्रों को एक-दूसरे को फालुन गोंग बैज देते हुए देखा। इसके अतिरिक्त, सभी अभ्यासियों ने एक जैसे पीले वस्त्र पहने थे। यह मुझे उन चीजों की याद दिलाता है जो सांस्कृतिक क्रांति के दौरान चलती थीं।

गुरुजी: यह संभव है कि सांस्कृतिक क्रांति ने आप पर गहरी छाप छोड़ी हो। लेकिन अंतर यह है सांस्कृतिक क्रांति ने विद्रोह करने के अधिकार का समर्थन किया था, जबकि हम विद्रोह को बढ़ावा नहीं देते हैं। हम आपसे दूसरों के साथ करुणा से व्यवहार करने और एक अच्छा मनुष्य बनने के लिए कहते हैं।

जहाँ तक अभ्यास वस्त्र की बात है, ठीक है, मैंने उनसे कहा कि जब कोई सामूहिक गतिविधि होती है और एक जैसे वस्त्र धारण करना आवश्यक होता है, यदि आप चाहें तो इसे पहन सकते हैं। मैं वास्तव में नहीं जानता कि वे वस्त्र कहां बनाये जाते हैं। ऐसा लगता है कि भिन्न-भिन्न क्षेत्रों ने अपने अपने बना लिए हैं। जब उन्हें ऐसा लगा तो उन्होंने शायद कुछ वर्दियाँ बनावा लीं और वे उन्हें खेल की वर्दी की तरह एक साथ पहन लेते हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि आपको इन्हें अपने दैनिक अभ्यास के दौरान पहनना चाहिए। सबसे पहले, यह अन्य लोगों को धर्म से सम्बंधित लगता है। और दूसरी बात, जब आप वर्दी पहनकर अभ्यास करते हैं, तो जो लोग वर्दी नहीं पहने हुए हैं, लेकिन अभ्यास सीखना चाहते हैं, वे पराया अनुभव करेंगे। इसलिए इन्हें दैनिक अभ्यास के दौरान न पहनें। यदि आवश्यक हो तो सामूहिक गतिविधियों के दौरान इन्हें पहनना उचित है।

शिष्य:आदरणीय गुरु जी ने कहा था कि यदि कोई अपने शत्रु से प्रेम नहीं करता तो वह फलपदवी प्राप्त नहीं कर सकता। एक वर्ष बीत गया, और मैं अभी भी आदरणीय गुरु जी द्वारा बताई गई आवश्यकता को पूरा नहीं कर सका और अन्य लोगों के स्वार्थ और पाखंड को क्षमा नहीं कर सका।

गुरुजी: आप मेरी बात समझ नहीं रहे हैं। आप सभी लोग इसके बारे में सोचें : मनुष्य अपने स्वार्थ और पाखंड से स्वयं को नष्ट कर रहा है। क्या वे दयनीय नहीं हैं? वे स्वार्थी और पाखंडी हैं। जब वे अधिकाधिक दुष्ट कार्य करते हैं, तो उन्हें विनाश का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत, आप जो प्राप्त करते हैं जब आप साधना करते हैं तो वे चीजें निरंतर बेहतर होती हैं, और आप ऊंचा उठते रहते हैं। क्या आपको उन पर दया नहीं आती? लेकिन स्वार्थ और पाखंड अपने आप में दया की वस्तु नहीं हैं। मनुष्य भिन्न होते हैं, इसलिए आपको उन्हें क्षमा कर देना चाहिए। साथ ही, जिन्हें मानवजाति "शत्रु" मानती है वे कुछ और नहीं बल्कि मानवजाति के शत्रु हैं। इसके बारे में सोचें : वे साधकों के शत्रु नहीं हैं। आपको साधारण लोगों से ऊँचा उठना चाहिए। क्या कोई देवता मनुष्यों से अपने शत्रु जैसा व्यवहार कर सकता है? एक मनुष्य जो साधारण लोगों से ऊँचा उठ रहा है वह उन्हें अपना शत्रु नहीं समझ सकता। इसलिए, मैं आपको कहता हूं कि यदि आप अपने शत्रुओं से प्रेम नहीं करते हैं तो आप फलपदवी प्राप्त नहीं कर सकते। (तालियां) दाफा को हानि पहुंचाने वाले दुष्ट प्राणियों की बात भिन्न है।

शिष्य: चीन के पच्चीस प्रांतों, शहरों और प्रदेशों के अड़तालीस क्षेत्रों से दाफा शिष्य अपने-अपने क्षेत्रों के सभी दाफा शिष्यों की ओर से गुरूजी को अपना हार्दिक सम्मान भेजा है।

गुरुजी: आप सभी का धन्यवाद। (तालियाँ)

शिष्य: सोलह देशों के दाफा शिष्य उन देशों के दाफा शिष्यों की ओर से गुरूजी को अपना हार्दिक सम्मान भेजा है।

गुरुजी: मैं आप सभी का धन्यवाद करता हूं। (तालियाँ)

शिष्य: क्या गुरूजी कृपया समापन के बाद एक बार महान बुद्ध मुद्राएं करेंगे?

गुरुजी: महान बुद्ध मुद्राएँ करूँ? ऐसा नहीं है कि मैं उन्हें आपके लिए नहीं कर सकता। मैं निश्चित रूप से कर सकता हूँ। लेकिन अब से, कृपया अन्य अवसरों पर इस तरह का अनुरोध प्रस्तुत न करें, क्योंकि हमारे कई शिष्यों के लिए महान बुद्ध मुद्राओं का वास्तविक अर्थ समझना कठिन है। उन्हें गुरु द्वारा दिए गए प्रदर्शन के रूप में न मानें। यदि आप ऐसा करेंगे तो मुझे दुःख होगा। यदि मनुष्य मुद्राओं के महान अर्थ को नहीं समझते हैं तो मैं मुद्राएँ नहीं करूँगा। इस पर अवश्य ध्यान दें।

ठीक है, मैं कुछ महान बुद्ध मुद्राएं करता हूँ।

हमारा फा सम्मेलन समाप्त होने वाला है, क्योंकि मेरी वार्ता फा का अंतिम भाग होता है।

मैं जानता हूं कि हमारे अनुभवी शिष्य पहले से कहीं अधिक परिपक्व हो गए हैं। यह देखकर मुझे सचमुच बहुत प्रसन्नता हुई। आप फा को फा के दृष्टिकोण से समझ सकते हैं और वास्तव में स्वयं को साधक के रूप में संभाल सकते हैं। इस तथ्य ने ही दाफा के स्वरूप को सामान्य जगत में दृढ़तापूर्वक एवं दृढ़ता से स्थापित किया है। इसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता। यह चट्टान की तरह ठोस है। (तालियाँ)

कोई अपने मन में जो कुछ भी करने की ठान लेता है उसमें कोई बाहरी शक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकती। निश्चित ही, मैं लोगों से अच्छे काम करने के लिए कह रहा हूं, और आप सभी साधना कर रहे हैं। मैंने अभ्यासियों के शक्तिशाली, दृढ़ संकल्प का प्रभाव देखा है। वहीं, यहां ऐसे लोग भी बैठे हैं जो दाफा के बारे में अधिक नहीं जानते। अभी भी ऐसे लोग हैं जो अन्य कारणों से इस सम्मेलन में आये हैं। भले ही आप एक संवाददाता हों, एक जासूस हों, या कुछ और भी कर रहे हों, मुझे नहीं लगता कि आप अपने पूरे जीवन में कभी इस तरह की किसी चीज से सामना हुआ है। मैंने जो सिखाया है वह ऐसी चीज नहीं है जिसके बारे में कोई साधारण व्यक्ति बात कर सकता है, यहाँ तक कि सबसे महान प्रोफेसर या शीर्ष वैज्ञानिक भी नहीं, क्योंकि इसमें से कुछ भी मानव ज्ञान से उत्पन्न नहीं हुआ है। आप इसे किसी भी पुस्तक में खोजने से नहीं पा सकते, चाहे वे विदेशी हों या स्वदेशी, प्राचीन हों या आधुनिक। वास्तव में साधना के बारे में कुछ पुस्तकें पायी जाती हैं, फिर भी उनमें से कोई भी स्पष्ट नहीं है, और वास्तविक रहस्यों को नहीं बताया गया है, इसलिए उन्हें किसी की साधना के लिए मार्गदर्शक के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। मानव सभ्यता के इस काल में ऐसे बहुत ही कम लोग हुए हैं जो वास्तविक साधना के बारे में जानने योग्य सभी बातें बता सकें। मैं उनकी तुलना स्वयं से नहीं कर रहा हूं—मैं ऐसा नहीं करना चाहता। लेकिन जो मैंने आपसे कहा है वह सचमुच कुछ ऐसा है जिसे आप फिर कभी नहीं सुनेंगे। (देर तक तालियाँ)

मानव जीवन दीर्घ नहीं है, और लोग अपना मार्ग स्वयं चुनते हैं। लोग तय करते हैं कि वे अपना मार्ग कैसे अपनाएंगे, और कोई भी इसे दूसरे पर नहीं थोपता है। यहां के लोगों को लगता है कि यह फा अच्छा है। वे इसके बारे में अच्छा अनुभव करते हैं, इसलिए वे साधना का अभ्यास करते हैं। तो, आप सभी को अपने आप को उस स्थिति में रखना चाहिए और सोचना चाहिए कि आप किस लिए जी रहे हैं, और किसके लिए जी रहे हैं। आप अवसर को हाथ से जाने दे सकते हैं, और यह एक अपूरणीय क्षति होगी, चाहे इसके बाद आपको कितना भी दुःख या पछतावा अनुभव हो। चाहे आप आज यहां जैसे भी और जिस के लिए भी आए हैं, यह कुछ ऐसा हो सकता है जो आपको फा तक ले जाए। (तालियाँ)

जब मैंने, ली होंगज़ी ने यह कार्य लिया, तो मैंने मानव जाति और व्यापक रूप से समाज के प्रति उत्तरदायी होने के बारे में सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद ही ऐसा किया। यदि मैंने समाज और लोगों को निराश किया होता, तो मैंने ऐसा कभी नहीं किया होता, और फा सीखने वाले इतने सारे लोग कभी नहीं होते। तथ्य बताते हैं कि मैंने समाज के लिए समस्याएं नहीं लायी है। इसके विपरीत, कई कुटिल चीजों की कुटिलता मेरे और दाफा के सामने उजागर हो गई, इसलिए वे मुझ पर और दाफा पर दोष लगा रहे हैं। वह मेरा दोष नहीं है। मैं लोगों से अच्छे काम करने के लिए कहता हूं। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। न ही यह अनुचित है कि मैं लोगों से सुधरने के लिए कहता हूं। सटीक रूप से इसलिए कि शिष्यों और मैंने जो किया है वह बहुत ही उचित है, वे सभी जो कुटिल हैं या उतने उचित नहीं हैं, असंतुलित अनुभव कर रहे हैं।

हाँ, मैंने कहा है कि किसी से एक अच्छा मनुष्य बनने के लिए कहना कठिन है। यह सतही परिवर्तन करने के बारे में नहीं है। कोई व्यक्ति तब तक स्वयं को नहीं बदलेगा जब तक कि उसके मन को वास्तव में छुआ न जाए। और ऊपर से, वह जिन परिवर्तनों से गुजरता है उन्हें कोई भी शक्ति कभी भी नष्ट नहीं कर सकती। (तालियाँ) मैंने यह भी देखा है कि मनुष्यों में बुद्ध-स्वभाव होता है। भले ही मानव समाज का कितना भी बुरा पतन हो गया हो, लोग अभी भी दयालु हृदय वाले हैं और इसीलिए मैं यह करता रहा हूँ।

तथ्यों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मैं जो परिणाम चाहता था वह प्राप्त कर रहा हूँ। मैंने देखा है कि दाफा के शिष्य दाफा में परिश्रमी होने और निरंतर अपना स्तर बढ़ाने में सक्षम हैं। यह मेरे लिए सबसे अधिक संतुष्टि की बात है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि समाज हमें किस दृष्टि से देखता है, मुझे लगता है कि जब तक दाफा और मैं एक उचित मार्ग अपनाते हैं और मेरे शिष्य उचित कार्य करते हैं, चाहे लोगों के कितने भी पक्षपातपूर्ण विचार क्यों न हों, वे उससे गुजर जायेंगे। (तालियाँ) वे सभी जो हमें नहीं समझते, और जो हम पर आक्रमण करते हैं, उनकी एक ही टिप्पणी है : "आपने यह अच्छी तरह किया है? यह संभव नहीं है।" कहने का तात्पर्य यह है कि वे यह नहीं मानते कि इस संसार में अभी भी अच्छे लोग हैं। तो फिर, आइए हम उन्हें अपने कार्यों से दिखाएं! (तालियाँ)

मुझे लगता है कि जो लोग सत्य को नहीं जानते वे हमारा विरोध करते हैं इसका मुख्य कारण यह है कि वे वास्तव में हमें नहीं समझते हैं। इसलिए, हम उन्हें हमें समझने और हमें जानने में सहायता कर सकते हैं—किसी भी तरीके का उपयोग करना ठीक है। चाहे यह किसी सामान्य माध्यम से हो या नहीं, आइए द्वार खुला रखें और जो कुछ वे जानना चाहते हैं उसे बताएं और जो कुछ वे देखना चाहते हैं उसे देखने दें। यदि आप कुछ पता लगाना चाहते हैं, जब तक आप हमारे लिए समस्या खड़ी करने का इरादा नहीं रखते, आप जो चाहें कर सकते हैं। यदि वास्तव में समस्याएँ होतीं, तो हमारे पास वह पवित्र भूमि नहीं होती जो हमारे पास है। मैं आप सभी को ऐसा करने देने का साहस करता हूँ, मैं आपको ऐसा करने देने का साहस करता हूँ, क्योंकि हम इसे प्राप्त कर सकते हैं : हमारे पास वास्तव में यहाँ एक पवित्र भूमि है! (तालियाँ)

हमारे अभ्यास का रूप धार्मिक नहीं है, संप्रदायी होना तो दूर की बात है। मेरे शिष्य केवल साधना करते हैं। जो लोग फलपदवी प्राप्त नहीं कर सकते वे फिर भी समाज के अच्छे सदस्य बने रहेंगे। इनमें से बहुत से लोग समाज को प्रभावित कर रहे हैं, इससे संसार को लाभ होगा, चाहे वे किसी भी देश में हों। दाफा एक समाज को दृढ़ता से स्थिर कर सकता है और लोगों के मन को अच्छाई की ओर मोड़ सकता है, इसलिए मुझे लगता है कि किसी भी देश में दाफा का स्वागत किया जाएगा। दाफा के शिष्य और मैं निश्चित रूप से साधारण समाज के लिए कुछ करने का इरादा नहीं रखते हैं। मैंने, ली होंगज़ी, ने बहुत समय पहले कहा था कि मेरा इरादा साधारण समाज के लिए कुछ करने का नहीं है, लेकिन मैं जो काम कर रहा हूं उससे साधारण समाज को निश्चित ही लाभ होगा। मैं साधारण समाज के लिए कुछ नहीं करना चाहता; मैं बस अपने साधकों के प्रति उत्तरदायी होना चाहता हूं। निःसंदेह, दाफा सीखने वाले बहुत से लोग होंगे, और वे निश्चित रूप से समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगे। वे एक विशाल क्षेत्र बनाएंगे, और लोगों का एक बड़ा समूह बनाएंगे। वे संपूर्ण रूप से नैतिकता को पुनर्स्थापित करेंगे। (तालियाँ)

कई पत्रकार और अन्य लोग उलझन में हैं और सोच रहे हैं : इतने सारे लोग इस फा का अध्ययन क्यों कर रहे हैं? आज यहां बैठे लोगों ने इसका उत्तर समझ लिया होगा। और वह क्या है? यहां हम लोगों से पवित्र रास्ते पर चलने और वास्तव में अच्छे मनुष्य बनने के लिए कहते हैं। इसमें समाज में जो है वैसा कुछ भी भ्रष्ट या अपवित्र सम्मिलित नहीं है। हम किसी भी अपवित्र चीज को शुद्ध करेंगे और जब तक कि हम फलपदवी के मानक को पूरा नहीं कर लेते, ऐसे लोग बनेंगे जो दूसरों और समाज को लाभ पहुंचाते हैं। हम शुल्क नहीं लेते हैं, हम आपको बुरे काम करने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं, और हम राजनीति में सम्मिलित नहीं हैं। इसीलिए बहुत सारे लोग सीख रहे हैं। जो लोग यह नहीं मानते कि अभी भी अच्छे लोग हैं, उन्होंने हमें कमतर आंका है!!! (तालियाँ)

मैं अपना प्रचार नहीं करना चाहता, इसलिए मैं प्रयत्न करता हूं कि पत्रकारों से न मिलूं। जो लोग नहीं समझते हैं और जो साक्षात्कार करना चाहते हैं, उनके लिए हमारे कई शिष्य हैं, और वे आपको इसका विवरण दे देंगे। यदि आप हमारे फा को नहीं समझते हैं और मुझसे पूछना चाहते हैं कि फालुन गोंग क्या है, तो मैं आपसे नहीं मिलूंगा, चाहे आप कितना भी जोर दें। आपको पहले मेरी पुस्तक पढ़नी होगी और लोगों के इस समूह को समझने का प्रयत्न करना होगा। उसके बाद मैं आपसे मिलूंगा। (तालियाँ)

आप सभी जानते हैं कि इसे कुछ शब्दों में स्पष्ट रूप से नहीं समझाया जा सकता है, क्योंकि दाफा कोई साधारण चीज नहीं है। इस प्रकार, जो पत्रकार हमें नहीं समझते, उन्होंने मेरे शब्दों को संदर्भ से बाहर उद्धृत किया है, और उन्होंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर टिप्पणियाँ की हैं। मैं ऐसा दोबारा होते हुए नहीं देखना चाहता। मेरे सभी शिष्य अच्छे मनुष्य बनने का प्रयत्न कर रहे हैं, फिर भी उन्हें "बुरा" घोषित कर दिया गया। यह बहुत अनुचित है और इससे उनकी भावनाएं आहत हुई हैं। (तालियाँ) वे समाचार अत्यधिक पथभ्रष्ट हो गए हैं। यहां मैं इसके बारे में अधिक कुछ नहीं कहना चाहता। मुझे आशा है कि मेरे सभी दाफा शिष्य परिश्रमी रहेंगे और जितना शीघ्र हो सके फलपदवी प्राप्त करेंगे।

(देर तक तालियाँ)

आप सभी का धन्यवाद!




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